सोमवार, 5 मार्च 2018

Vadvanal - 04




‘‘आज़ाद  हिन्द  सेना  के  अधिकारियों  एवं  सैनिकों  को  हिन्दुस्तान  लाने  वाले हैैं ,   ऐसा    सुना    है ।    क्या    यह    सच    है ?’’    यादव    गुरु    से    पूछ    रहा    था ।
‘‘   केवल   उन्हें   यहाँ   लाया   गया   है   बल्कि   उन   पर   शाही   हुकूमत   के   ख़िलाफ विद्रोह  करने,  हत्याएँ  करने  आदि  जैसे  आरोप  लगाकर  मुकदमे  चलाने  की  तैयारी भी    की    जा    रही    है ।’’    गुरु    ने    जवाब    दिया ।
‘‘अंग्रेज़ी   हुकूमत   के   ख़िलाफ   बगावत   करना   प्रत्येक   हिन्दी   नागरिक   और सैनिक     का     कर्तव्य     है ।     उन्होंने     अपना     कर्तव्य     किया     है ।     उन     पर     मुकदमा     किसलिए ?’’
‘‘ऐसा    तुम्हारा    तर्क    है ।    अंग्रेज़ों को    यह    स्वीकार    नहीं ।    अंग्रेज़    उन    पर मुकदमा करेंगे    और    उन्हें    सजा    भी    देंगे ।’’
‘‘अगर   ऐसा   हुआ   ना   तो   सारा   देश   सुलग   उठेगा ।   मैं   भी   पीछे   नहीं   रहूँगा ।’’
‘‘तू    अकेला    ही    नहीं,    सभी    ऐसा    ही    सोचते    हैं ।’’
‘‘अरे,    इसी  बात को देखते हुए तो  कांग्रेस ने भी अपनी भूमिका में परिवर्तन किया है । आज तक  क्रान्तिकारियों    का    पक्ष        लेने    वाली    कांग्रेस    भटके    हुए नौजवान  कहकर  उनकी  ओर  से  मुकदमा  लड़ने  के  लिए  खड़ी  है’’  आर. के. ने जानकारी    दी ।
‘‘हमें  भी इन   सैनिकों    के    लिए    कुछ    करना    चाहिए ।’’    यादव    बोला ।
‘‘करना चाहिए, यह बात सही है । पर आखिर क्या किया जाए ? सभाएँ, मोर्चे,    सत्याग्रह    वगैरह    तो    हम    कर    नहीं    सकेंगे ।’’
‘‘हम   अदालत   में   उनका   मुकदमा   तो   लड़   नहीं   सकेंगे,   मगर   उनके   लिए मदद तो    इकट्ठा    कर    ही    सकते    हैं’’    आर.    के.    ने सुझाव दिया ।
‘‘यह  विचार  अच्छा  है ।  हम  जब  मदद  इकट्ठा  कर  रहे  होंगे,  तो  हमें  यह भी पता चल जाएगा कि हमारे जैसे खयालों वाले कितने लोग हैं । हमारे संगठन की   दृष्टि   से   यह   फायदेमन्द   होगा ।’’   गुरु   का   उत्साह   बढ़   रहा   था ।   और   फिर हुगली  के  किनारे  वाली  बेस  पर  और  बलूचिस्तान  पर  मदद  इकट्ठा  करने  का काम    शुरू    हुआ ।



तबादलों   की सूचियाँ  आयीं   और   जहाज़    के   क्रान्तिकारियों   के   दल   बिखर   गए । कई    दिनों    से    एक    साथ    रहने    के    कारण    बिछुड़ने    का    दुख    हो    रहा    था ।
‘‘तुम   दोनों   के   साथ   यदि   मेरा   भी   तबादला   तलवार   पर   हो   गया   होता तो    अच्छा    होता ।’’    यादव    गुरु    और    मदन    से    कह    रहा    था ।
‘‘तू विशाखापट्टनम् में सरकार्सपर जा रहा है ना ? अच्छी बेसहै वो,  मैं था वहाँ पर ।’’    मदन    ने    कहा ।
‘‘‘सरकार्स   पर   तबादला   हुआ   है   तो   इतना   परेशान   क्यों   है ?’’   गुरु   ने   पूछा।
‘‘अपना  एक  अच्छा  गुट  तैयार  हो  गया  था  रे ।  अब  वह  बिखर  जाएगा । इसके  अलावा  हमें  जो  एकदूसरे  का  मानसिक  एवं  वैचारिक  सहारा  प्राप्त  था  वह अब  समाप्त  हो  जाएगा ।  एकदूसरे  से  दूर  जाने  पर  शायद  हममें  शिथिलता  आ जाए ।’’    यादव    ने    कहा ।
''Be hopeful. हम   एकदूसरे   से   दूर   जा   रहे   हैं   इसलिए   इस   बात   से   न डर   कि   हमारा   आन्दोलन   कमजोर   पड़   जाएगा ।   अब   हम   नौसेना   में   इधरउधर बिखरने   वाले   हैं   और   मुझे   पूरा   यकीन   है   कि   हममें   से   हरेक   एकएक   गुट   का निर्माण  कर  सकेगा ।  यदि  हम  एकदूसरे  के  सम्पर्क  में  रहें  तो  हमारे  लिए  एकदम विद्रोह  करना  आसानी  से  सम्भव  होगा ।’’  मदन  ने  एक  अलग  ही  विचार  रखा ।
गुरु    और    मदन    तलवार    पर    प्रविष्ट    हुए    तो    तलवार    का    वातावरण    एकदम बदला  हुआ  था ।  युद्ध  समाप्त  होने  के  कारण  नौसेना  से  शीघ्र  ही  मुक्त  होने  वाले सैनिक  तलवार’  पर  ही  थे ।  सिग्नल  स्कूल  के  शिक्षकोंवहाँ  के  सैनिकोंदैनिक प्रशासन  सम्बन्धी  विभिन्न  शाखाओं  के  सैनिकों  की  भीड़  ही  तलवार’  पर  जमा हो गई थी । नौसेना छोड़कर जाने वाले सैनिक सिविलियन जीवन में प्रवेश करने के   मूड   में   थे   और   उन्हें   नौसेना   के   रूटीन   एवं   अनुशासन   की   ज़रा   भी   परवाह नहीं   थी ।   इन   सैनिकों   के   अनुसार   काग़जात   समय   पर   प्राप्त   न   होने   के   कारण उनकी  संख्या  बढ़ती  ही  जा  रही  थी ।  पानी  कीरहने  की  जगह  कीभोजन  की कमी    बढ़ती    जा    रही    थी ।
‘‘दत्त   का   कलकत्ते   से   ख़त   आया   है,” मदन कह रहा था।
‘‘क्या    कहता    है ?’’    गुरु    ने    पूछा ।
‘‘वह  फिर  से  शेरसिंह  से  मिला  था ।  उन्होंने  भूषण  को  कराची  भेजा  है । आर. के. की और उसकी पहचान होने के कारण यादव को उसकी सहायता ही मिलेगी ।   हुगली   में   सैनिकों   को   एकत्रित   करने   का   काम   खुद   दत्त   ही   कर   रहा   है ।’’
‘‘शेरसिंह    ने    क्या    सूचनाएँ    दी    हैं ?’’
‘‘ठोकपरखकर    साथीदार    चुनो    और    समय    गँवाए    बगैर    संगठन    स्थापित करो!’’    मदन    ने    जवाब    दिया ।
‘‘संगठन तो करना ही पड़ेगा । इस समय नौदल में चार प्रकार के सैनिक हैं ।  पहले - नौसेना  छोड़ने  की  तैयारी  में  लगे  हुए  सैनिक ।  उन्हें  नौसेना  से  बाहर निकलकर  जिन्दगी  में  स्थिर  होना  है ।  जातेजाते  इस  विद्रोह  के  झमेले  में  वे  पड़ना नहीं   चाहते ।   उनके   हृदय   में   देशप्रेम   तो   है,   परन्तु   विद्रोह   के   लिए   यह   समय   उचित नहीं,   ऐसा   वे   सोचते   हैं ।   दूसरा   गुट   ऐसे   सैनिकों   का   है   जिनके   मन   में   अंग्रेज़ों के    प्रति    नफरत    है ।    वे    अंग्रेज़ी    हुकूमत    से    मुक्ति    पाना    चाहते    हैं,    परन्तु    उनमें आत्मविश्वास की कमी है । यह विद्रोह कामयाब होगा इसका यकीन नहीं । अब तक  नौसेना  में  सात  बार  विद्रोह  किए  गए;   भूदल  में  हुए;   हवाई  दल  में  भी  विद्रोह हुए । सभी अल्प समय में समाप्त हो गए और असफल रहे । विद्रोह के असफल होने  के  बाद  उसमें  शामिल  सैनिकों  का  क्या  हाल  होता  है ?  फाँसी  के  फन्दे  को छोड़कर और कोई अन्य सहारा उन्हें नहीं मिलता - यह बात वे देख चुके हैं । ये सैनिक   बागड़   पर   बैठे   हैं।   यदि   विद्रोह   को   सफ़ल   होते   देखेंगे   तो   वे   कूदकर हमारे आँगन   में      जाएँगे ।   तीसरा   गुट   है   कट्टर   देशभक्तों   का ।   जान   की   परवाह किए बिना विद्रोह के लिए तत्पर सैनिकों का । मगर इनकी संख्या कम है । और चौथा गुट   है   गद्दारों   का ।   उनकी   संख्या   कम   होने   के   बावजूद   इनसे   सावधान रहना    चाहिए ।’’    गुरु    परिस्थिति    समझा    रहा    था ।
‘‘बँटा हुआ समाज दुर्बल हो जाता    है । वह स्वयं का विकास नहीं कर सकता ।’’    मदन अपने    आप    से    पुटपुटाया ।
 ‘‘शेरसिंह     द्वारा     दी     गई     सूचना     एकदम     सही     है ।     हम     इन     गुटों     को     कैसे     इकट्ठा करेंगे ।’’
गुरु   को   भी   यही   प्रश्न   सता   रहा   था ।   यूँ   ही   वह   आठदस   फुट   दूर   पड़े पत्थर  पर  छोटेछोटे  कंकड़  मार  रहा  था ।  कुछ  कंकड़  उस  पत्थर  को  लग  जाते, कुछ उसके आसपास गिर जाते । गुरु की धुन में मदन भी उस पत्थर पर कंकड मारने    लगा ।
‘‘अरे,      जवाब मिल गया । देख,  कितने कंकड़ जमा हो गए हैं ।’’      गुरु करीबकरीब   चीखा ।   ‘‘यहाँ   निष्क्रिय   पड़े   कंकड़ों   को   हमने   सक्रिय   किया,   यह   कैसे सम्भव    हुआ ?’’
‘‘इसमें   क्या   खास   बात   है ?’’
‘‘हम इन  कंकड़ों  को  जमा  करने  के  उद्देश्य  से  नहीं  फेंक  रहे  थे ।  हमारा उद्देश्य  था बड़े पत्थर    पर    कंकड़    मारना ।    उसी    तरह    सभी    सैनिकों    को    इकट्ठा करने  के  लिए  ऐसा  ही  कोई  सामान्य  उद्दिष्ट  अथवा  कारण  सामने  रखना  होगा ।’’
गुरु  को  पहले  स्वतन्त्रता  संग्राम  का  इतिहास  याद  आया ।  ‘‘1857  के  विद्रोह  में कारतूसों   पर   लगाई   गई   गाय   की   चर्बी   का   सवाल   था ।   आज   रहने   के   लिए   जगह...भोजन...   तनख्वाह... बर्ताव... सुविधाएँ - ये समस्याएँ सभी की   हैं ।   सबको   इकट्ठा लाने    वाले    ये    ही    प्रश्न    होंगे ।’’
‘‘सही   है ।   हम   अपनी   आम,   साधारण   समस्याओं   पर   प्रकाश   डालते   हुए सैनिकों  को  एकत्रित  करेंगे;  विद्रोह  भी  करेंगे,  मगर  अंग्रेज़  ऐसा  प्रचार  करेंगे  कि यह  बगावत  सैनिकों  ने  अपनी  व्यक्तिगत  समस्याओं  के  लिए  की  है ।  और  जब समूचा  देश  एक  महत्त्वपूर्ण  समस्या  पर  संघर्ष  कर  रहा  है  तब  ये  स्वार्थी  सैनिक दो     ग्रास     ज्यादा     पाने     के     लिए     लड़     रहे     हैं,     ऐसा     दोषारोपण भी हम पर किया जाएगा ।’’
मदन   ने   सन्देह   व्यक्त   किया ।
‘‘तेरी     बात     बिलकुल     सही     है,     मगर     फिर     भी     संगठन     तो     हमें     करना     ही     चाहिए । बग़ावत  भी  करनी  ही  होगी ।  हम  जानते  हैं  कि  हम  यह  क्यों  कर  रहे  हैं,  हमारा उद्देश्य  क्या  है;  फिर  हम  दोषारोपण  की  परवाह  क्यों  करें ?’’  गुरु  ने  बेफिक्री से कहा ।
‘‘कल   ही   मैं   दत्त   को   खत   लिखकर   अपनी   योजना   के   बारे   में   बताता   हूँ और    हमारे साथ पत्र व्यवहार के लिए एक अलग पता भी देता हूँ ।’’



 तलवार   में   कई   पुराने   दोस्त   एकत्रित   हो   गए   थे । युद्ध के अनुभव सुनाए   जा रहे थे । कुछ   लोगों   ने   आज़ाद हिन्द फ़ौज   के   सैनिकों   और   उनके   अधिकारियों से मुलाकात की थी । कई लोग उनके कर्तव्य को देखकर मन्त्रमुग्ध हो गए थे ।

फौज  के  जवानों  के  बारे  में  सम्मानपूर्वक  बातें  करते ।  मदन  तथा  गुरु  बड़ी  शान्ति से इस चर्चा को सुनते और मन ही मन इन घटनाओं तथा घटनाएँ सुनाने वालों की  फेहरिस्त  बनाते ।

  दोनों  ही  समझ  गए  थे  कि  अनेक  सैनिकों  के  मन  में  अंग्रेज़ों के प्रति गुस्सा है;  मगर इसके कारण भिन्न हैं ।
आजकल मदन,     गुरु और तलवार     पर नया आया हुआ दास अक्सर कैन्टीन में   ही   रहते ।   कैन्टीन   के   कोने   की   एक   मेज़ पर वे  बैठे   रहते ।   बैरेक्स   में   गप्पें   मारते हुए  यदि  उन्हें  कोई  व्यक्ति  उनके  गुट  में  शामिल  होने  योग्य  प्रतीत  होता  तो  वे उसे  यूँ  ही  कैन्टीन  में  बुलाते  और  उसके  साथ  अंग्रेज़ों  के  अत्याचार,  हिन्दुस्तानी सैनिकों  के  साथ  किए  जा  रहे  बर्ताव,  अन्याय  आदि  पर  अपने  अनुभव  सुनाते। उनके अनुभव  सुनते,  बीच  में  ही  यदि  कोई  अंग्रेज़ों  की  तरफदारी  करता,  तो ये दोनों उस पर टूट पड़ते । कैन्टीन में उनके साथ आए हुए सैनिक की प्रतिक्रिया. उसकी   बातों   से   प्रकट   हो   रहा   अंग्रेज़ों   के   प्रति   गुस्सा,   आजादी   के   प्रति   उसकी ललक  का  अनुमान  लगाते  और  तभी  उसे  अपने  गुट  में  शामिल  करते ।  इन  नये लोगों  को  अपने  गुट  में  मिलाने  की  धुन  में  तीनों  अपनी  टुटपूँजी  आय  का  एक बड़ा    हिस्सा    चाय,    सिगरेट,    शराब    आदि    पर    खर्च    करते ।
इस   मार्ग   से   साथियों   को   ढूँढ़ना   बड़ा   खतरनाक   काम   था   और   उनकी   संख्या भी  बहुत धीरेधीरे  बढ़  रही  थी  यह  बात  भी  तीनों  अच्छी  तरह  समझ  गए  थे ।
‘‘आज   तक,   पिछले   पन्द्रह   दिनों   में,   रोज   करीब   दोदो रुपये   खर्च   करके हम    केवल    पाँच    ही समविचारी साथी जुटा    सके    हैं ।    मेरा    ख़याल    है    कि    यह    उपलब्धि बहुत    छोटी    है    और    बहुत    वक्त    खाने    वाली    भी    है!’’    गुरु    शिकायती    लहजे    में    बोला ।
‘‘इसके   अलावा   बोस   जैसी   कोई   एक   मछली   जाल   समेत   हमें   भी   ले   जा सकती   है,” मदन बोला।
‘‘सही है । उस दिन हम सावधान थे, ये तो ठीक रहा, वरना मुसीबत हो जाती ।  शुरू  में  तो  बोस  हमारी  हाँ  में  हाँ  मिलाता  रहा,  मगर  जब  गुरु  उसे  परखने के   लिए   अंग्रेज़ों   की   तरफ   से   बोलने   लगा,   वैसे   ही   उस   बहादुर   ने   अपना   फ़न निकाला  और  हमें  ही  धमकाने  लगा ।  नेवी  में  कुछ  क्रान्तिकारी  घुस  गए  हैं,  उनके चक्कर   में   तुम   लोग      पड़ना!   वरना   नतीजा   अच्छा   नहीं   होगा ।’’   दास   ने   याद दिलाया।
 ‘‘फिर,    अब    क्या    करना    चाहिए ?’’    गुरु    ने    पूछा ।
और  फिर  बड़ी  देर  तक  वे  इस  प्रश्न  पर  चर्चा  करते  रहे  कि  साथीदार  कैसे जुटाए जाएँ । मगर योग्य    मार्ग    सूझ    नहीं    रहा    था ।
‘‘यदि   हम   गुस्सा   दिलाने   वाली   चीजों   के   बारे   में   बारबार   बोलते   रहें   तो कैसा रहेगा दास ?’’
‘‘गुलामों को उन पर किये जा रहे अन्याय का एहसास दिला दो तब वो बगावत कर देंगे । बाबा साहेब अम्बेडकर ने कहा था, पर यह एहसास जिन्हें है,  वे  उन  लोगों  को  कैसे  एहसास  दिला  पाएँगे ?’’  गुरु  फिर  से  सोच  में  डूब  गया ।
‘‘उनके  सामने  अन्याय  के  बारे  में,  खाने  के  बारे  में  बोलते  रहो ।  आज  नहीं तो   कल   उन्हें   अन्याय   का   एहसास   हो   ही   जाएगा ।’’   मदन   का   यह   विचार   गुरु तथा    दास    को    पसन्द        गया ।
दूसरे   दिन   से   उन्होंने   यह   काम   शुरू   कर   दिया ।   खाना   खाते   समय   या   नाश्ता करते   समय   वे   अलगअलग   मेजों   पर   बैठते   और   अपना   काम   शुरू   कर   देते,   ‘‘क्या मटन   है!   मटन   का   एक   भी   टुकड़ा   नहीं ।’’
‘‘मटन  तो  गोरे  खाते  हैं  और  हमारे  सामने  कुत्तों  को  डालते  हैं  वैसी  हड्डिया फेंकते    हैं ।’’    दूसरी    मेज़    से    जवाब    आता ।
‘‘यूरेका!    यूरेका!!’’    कोई    एक    चिल्लाता ।
‘‘नाच    क्यों    रहा    है    रे ?’’
‘‘दाल में दाल का एक दाना मिल गया!’’     ब्रेड में से कीड़े निकालनिकालकर मेज   पर   उन्हें   सजाते   हुए   ज़ोर से चिल्लाकर   सैनिक   एकदूसरे   को   कीड़ों   की   संख्या बताते ।  जिसे  ज्यादा  कीड़े  मिलते  उसका  वहीं  पर  सत्कार  किया  जाता - कोई  फूल देकर ।  किसी  दिन  भोजन  यदि  बिलकुल  ही  बेस्वाद  हो  तो  खाने  की  थाली  मेज पर    उलटकर    गालियाँ    देते    हुए    निकल    जाते ।
एक  रात  सबकी  नजरें  बचाकर एक  व्यंग्य  चित्र  बैरेक  की  दर्शनीय  दीवार पर    लगाया    गया ।
एक  बड़े  भगोने  में  एक  सैनिक  ने  इतना  गहरे  मुँह  घुसाया  था  कि  उसके सिर्फ  पैर  ही  ऊपर  दिखाई  दे  रहे  थे ।  पास  ही  में  खड़ा  हुआ  गोरा  सैनिक  उससे पूछ   रहा   था,   ''Hey, you bloody blacky, what are you doing?''
दाल    में    से    एकमात्र दाल का    दाना...’’    उसने    जवाब    दिया    था ।
अनेक हिन्दी सैनिकों   ने   उसे   देखा   और   गोरों की   नजर   पड़ने   तक   वह   व्यंग्य चित्र दीवार    पर    ही    रहा ।
वे  रोज  नयीनयी  तरकीबें  लड़ाते ।  मदन  एक  दिन  बेस  कमाण्डर  के  बेस में  घूम  रहे  कुत्ते  को  बिस्किट  का  लालच  दिखाकर  मेस में  ले  आया  और  उसके सामने    उस    दिन    परोसे    गए    मटन    के    शोरबे    का    बाउल    रखा ।    रोज    बकरे    और    मुर्गियाँ खाखाकर हट्टेकट्टे,    मोटेताजे    हो    गए    कुत्ते    ने    उस    शोरबे    को    मुँह    भी    नही लगाया ।    मदन    सबसे    कहने    लगा ।
‘‘हमें   जो   खाना   दिया   जाता   है   उसे   तो   गोरों के   कुत्ते   तक   मुँह   नहीं   लगाते ।’’
ये   सारी   बातें   सच   थीं ।   बारबार   जब   उन्हें   दुहराया   जाने   लगा   तो   वे   सैनिकों के    मन    में    काँटे    जैसी    चुभ    गर्इं ।    सैनिक    अस्वस्थ    हो    रहे    थे ।



जब    कराची    से    लीडिंग    टेलिग्राफिस्ट    खान    तबादले    पर    तलवार    में    आया    उस    समय मदन,   गुरु   और   यादव   सैनिकों   के   मन   में   अंग्रेज़ी   हुकूमत   के   खिलाफ   गुस्सा   दिलाने की   जीजान   से   कोशिश   कर   रहे   थे ।   गोरागोरा   तीखी   नाक   वाला   खान   पहली ही  नजर  में  प्रभावित  करने  वाला  था ।  खान  ने  तलवार’  पर  पहुँचने  के  बाद  मदन और  गुरु  के बारे  में पूछताछ  की  और  उन्हें  आर. के.  का  खत  दिया ।  उस  खत से मदन और गुरु को पता चला कि खान क्रान्तिकारियों में से ही एक था और अंग्रेज़ों    को    हिन्दुस्तान    से    भगाने    के    लिए    कुछ    भी    कर    गुजरने    को    तैयार    था ।
‘‘बोलो,  भाई,  कराची  की  क्या  हालत है? ’’  पहचान  होने  पर  गुरु  ने  खान से पूछा ।
‘‘सैनिक    अंग्रेज़ों    से    चिढ़े    हुए    हैं,    परन्तु    अभी    वे    इकट्ठा    नहीं    हुए    हैं, इसलिए उनमें  आत्मविश्वास  नहीं  है ।  मगर  आर. के.  के  आने  के  बाद  वे  इकट्ठा  होने  लगे हैं ।’’    खान    कराची    की    स्थिति    का    वर्णन    कर    रहा    था ।
‘‘कुल  मिलाकर  कराची  में  भी  परिस्थिति  विस्फोटक  हो  रही  है ।  मदन  के चेहरे    की    प्रसन्नता उसके    शब्दों    में    भी    उतर    रही    थी ।’’
‘‘बीच    ही    में    कभी    कोई    सैनिक    जल्दबाज़ी कर    बैठता    है    और    सारा    वातावरण बदल   जाता   है ।   उसे   फिर   से   वापस   पहली   स्थिति   में   लाने   में   टाइम   लग   जाता है।’’    खान    ने    अपना    रोना    रोया ।
‘‘मतलब,    ऐसा क्या  हुआ था ?’’    गुरु    ने    उत्सुकता    से    पूछा ।
‘‘तुम   एबल   सीमन   शाहनवाज   को   जानते   हो ?’’   खान   ने   पूछा ।   तीनों   ने इनकार    में    सिर    हिला    दिया ।
‘‘है तो ईमानदार,   मगर   गरम   दिमाग   वाला,   अंग्रेज़ों   से   नफरत   करने   वाला। कई  बार  उसे  समझाया  कि  गुस्सा  करना  छोड़  दे ।  इससे    सिर्फ  तेरा  बल्कि  औरों का भी नुकसान होगा,    और    परसों    हुआ    भी    ऐसा    ही ।’’
तीनों    के    चेहरों    पर    उत्सुकता    थी ।
कैप्टेन्स   डिवीजन   के   लिए   शिप्स   कम्पनी   फॉलिन   हो   गई   थी ।   कलर्स   के लिए  आठ  घण्टे  बजाए  गए ।  बैंड  की  ताल  पर  व्हाइट  एन्साइन  मास्ट  पर  चढ़ाई गई।   कैप्टेन   सैम   ने   हर   डिवीजन   का   निरीक्षण   आरम्भ   किया ।   शाहनवाज   कुछ फुसफुसा  रहा  था,  बीचबीच  में  हँस  भी  रहा  था ।  प्लैटून  कमाण्डर  का  इस  ओर ध्यान    गया    तो    वह    अपनी    जगह    से    ही    चिल्लाया । ''Shut up you, bloody bastards. Navy does not need your bloody opinion. Navy damn well expects you to obey bloody orders. I am here to knock some discipline in your empty rotten heads. let that bloody son of a bitch come forward and speak up.''
‘‘शाहनवाज  खामोशी  से  एक  कदम  आगे  आकर  फॉलिन  से  बाहर  आया और    गोरे    प्लैटून    लीडर    के    सामने    खड़ा    हो    गया ।
''Yeah, I was talking.''
''You bloody bastard, Join the fall in and report to me after Division. I shall teach you a good lesson. गोरा   प्लैटून   कमाण्डर   चीखा ।
''Don't use obscene language. Mind your tongue.'' शहनवाज को गुस्सा        गया    था ।
''Come on, Join the Fall in.''
शाहनवाज     प्लैटून     कमाण्डर     पर     झपट     पड़ा     और     आगापीछा     सोचे     बिना     उसने प्लैटून     कमाण्डर     पर     घूँसे  बरसाना     शुरू     कर     दिया ।     सामने     की     गोरी     प्लैटून     के     दोचार सैनिक बीचबचाव करते हुए शाहनवाज पर लातें बरसाने लगे । उन्होंने उसे तब तक  मारा  जब  तक  वह  बेहोश  नहीं  हो  गया ।  शाहनवाज  को  कैप्टेन  के  सामने खड़ा   किया   गया ।   कैप्टेन   ने   विभिन्न   आरोप   लगाते   हुए   चार   महीनों   की   कड़ी सज़ा   सुना   दी ।
गुरु    और    मदन    यह    सुनकर    पलभर    के    लिए    सुन्न    हो    गए ।
‘‘आर. के. ने आपको एक सन्देश भेजा है । शाहनवाज जैसा उतावलापन न  करना । इससे हमारे कार्य को हानि   पहुँचेगी ।



गुरु ड्यूटी समाप्त करके बैरेक में वापस   आया,   तो   एक सनसनीखेज   समाचार लेकर,    और    सुबूत    के    तौर    पर    हाथ    में    एक    काग़ज लिये ।
Secret Priority-101500 EF.
From–Flag officer Commander in Chief Royal Navy
To–Naval Suppply office.
Informataion–All Ships and Establishments of Royal Navy.
=Twenty percent cut in ration with immediate effect.=

यह  सन्देश  बम  का  काम  करेगा  इस  बात  की  किसी  ने  कल्पना  भी  नहीं की थी । गुरु ने वह सन्देश खान, मदन और दास को दिखाया तो तीनों को ही वह  सन्देश  सही  प्रतीत  हुआ ।  उस  रात  उस  सन्देश  की  अनेको  प्रतियाँ  बैरेक में चिपकाई    गर्इं ।
दूसरे   दिन   परोसा   गया  भोजन रोज़ जितना   ही   था,   परन्तु   फिर   भी   वह   हरेक को कम ही प्रतीत    हो    रहा    था ।
‘‘लो, अब पेट भी काटना पड़ेगा!’’ अपनी प्लेट ले जाते हुए गुरु ज़ोर से बड़बड़ा रहा    था ।
उस  दिन  से  तलवार  में  एक  ही  चर्चा  शुरू  हो  गई ।  महायुद्ध  के  कारण हुए   खर्च   से   इंग्लैंड   कंगाल   हो   चुका   है ।   उसकी   अर्थव्यवस्था   जर्जर   हो   गई   है । अर्थव्यवस्था  सँभालने  के  लिए  इंग्लैंड  ने  खर्चों  में  कटौती  करने  का  निश्चय  किया है । इसीलिए हिन्दुस्तानी सेना को दिए जा रहे भोजन की मात्रा में कमी की गई है ।  अब आधे पेट    रहकर    ही    काम    करना    पड़ेगा...
किसी  बात  की  कल्पना  की  जाए  और  वह  सच  हो  जाए  ऐसा  ही  भोजन की   मात्रा   में   कटौती   की   इस   खबर   के   बारे   में   हुआ   था ।   सरकार   ने   वाकई   में भोजन    में    कटौती    की    थी,    मगर    वह    पाँच    प्रतिशत    ही    थी ।



बेस  कमाण्डर  ले  कमाण्डर  कोल  की  तीक्ष्ण  दृष्टि  से  सैनिकों  की  अस्वस्थता  छिपी न   रह   सकी ।
''May I Come in, Sir'' तलवार  का  फर्स्ट  लेफ्टिनेंट  स्नो  पूछ  रहा  था ।
'Yes, Come in.'' कोल  ने  आवाज़  से  ही  पहचान  लिया  कि  स्नो  आया है ।
''Good Morning, Sir!'' स्नो    ने    अभिवादन    किया    और    वह    अदब    से    खड़ा रहा । 
''Please Sit down. ये   कैसी   अफवाह   फैल   रही   है ?’’
‘‘पिछले     कुछ     दिनों     से     रोज़     एकाध     अफवाह     सुनाई     दे     रही     है । पिछले     चारपाँच दिनों  से  यह  अफवाह  जोरों  से  फैल  रही  है  कि  भोजन  में  बीस  प्रतिशत  कटौती की    गई    है ।    बिलकुल    हिन्दुस्तानी    अधिकारी    भी    इस    बारे    में    पूछ    रहे    हैं ।’’
‘‘भोजन  में     कटौती     की     बात     सैनिकों     तक     पहुँची     ही     कैसे ?     यह समस्या गम्भीर है ।   अधिकारी   भी   इन   अफवाहों   पर   विश्वास   कर   लेते   हैं ।   इस   पर   कोई   उपाय सोचना   जरूरी   है ।   वरना   शायद   अधिकारी   भी   सैनिकों   के   साथ...और फिर...’’
‘‘नहीं,  सर,  वैसा  कुछ  भी  नहीं  होगा ।  वे  ब्रिटिश  साम्राज्य  के  प्रति  वफादार ही रहेंगे । मैंने आज दोपहर को ही उन सबको इकट्ठे बुलाया है । उनसे मैं बात करने    वाला    हूँ ।    उनकी    जिम्मेदारी    की उन्हें    याद    दिलाने    वाला    हूँ ।’’
''That' s good. मैं  तुमसे  यही  कहने  वाला  था ।’’
 मगर  सैनिकों का  क्या ? अफवाहें   फैलाने   वालों   को   ढूँढें   कैसे ?”
 ले.  कमाण्डर   कोल   सूझबूझ   वाला   व्यक्ति था ।  उसे  इस  बात  का  पूरा  अन्दाजा  था  कि  इन  अफवाहों  के  पीछे  क्रान्तिकारी सैनिकों  का  हाथ  है ।  इन  अफवाहों  का  उद्गम  कहाँ  से  हो  रहा  है  यदि  यह  समझ में      जाए   तो   अनेक   प्रश्नों   के   जवाब   मिल   जाएँगे ।   इसकी   जड़   तक   जाना   सम्भव होगा ।
‘‘सर  ये  सैनिक  कौन  हैं,  कितने  हैं,  आज  तो  कल्पना  करना  मुश्किल  है । नौसेना  में  इससे  पूर्व  हुए  विद्रोहों  को  याद  करके  हमें  सावधान  रहना  होगा ।  हर कदम    सोचसमझकर  उठाना    होगा ।’’    स्नो    कह    रहा    था ।
‘‘मेरा  ख़याल  है  कि  हमें  स्थिति  पर  नजर  रखनी  होगी  और  शान्त  रहना होगा ।’’    दूरदृष्टि    वाले    कोल    ने    सुझाव    दिया ।
''That's right, sir,  हमें   यह   दिखाने   की   जरूरत   नहीं   कि   हम   इन   अफवाहों को कोई महत्त्व दे रहे हैं । बेकार में मधुमक्खियों के छत्ते के पास आग क्यों ले जाएँ!’’    स्नो    कह    रहा    था ।
तुम    एक    काम    करो ।    आज    की    अधिकारियों    की    सभा    में    हिन्दुस्तानी    सैनिकों  को  समझाने  की  जिम्मेदारी  हिन्दुस्तानी  अधिकारियों  पर  डाल  दो’’  कोल  ने  सलाह दी ।
स्नो       के       जाने       के       बाद       कोल       काफी       देर       तक       सोचता       रहा ।       अन्य       गोरे अधिकारियों  के  समान  उसके  दिल  में  हिन्दी  सैनिकों  के  बारे  में  केवल  द्वेष  नही था, बल्कि उनकी स्थिति का ज्ञान उसे था और उनके प्रति सहानुभूति भी थी । बुद्धिमान    हिन्दुस्तानी    लोगों    का    वह    आदर    किया    करता    था ।
 ‘‘महात्माजी    वाकई    में    महान    हैं ।    उनके    विचारों    से    अधिकांश    नेटिव    प्रभावित हुए   हैं ।’’   वह   अपने   आप   विचार   करता   रहा,   ‘‘मगर   सदा   अपने   साथ   बन्दूकें   रखने वाले    सैनिकों    पर    उनका    प्रभाव    नहीं    है ।    1942    के    उस    तूफान    में    गाँधीजी    ने    सैनिकों को  आह्वान  नहीं  दियायह  अंग्रेज़ों  की  खुशकिस्मती  थी ।  वरना...अगर  1942 के    तूफान    में    सैनिक    शामिल    हो    जाते    तो... हिन्दुस्तानी    सैनिकों    के    भीतर    का असन्तोष...  गलत  क्या  है अगर  उनकी  जगह  हम  होते  तो  हम  भी...’’  राजनिष्ठ मन    ने    सत्य    की    ओर    भटकते    हुए    मन    को    लगाम    लगाई ।
‘‘इन  सब  अफवाहों  का  उचित  बन्दोबस्त  तो  करना  ही  होगा;  मगर  ऐसा करते  समय  सैनिकों  में  गुस्सा    फैल  जाए  इस  बात  का  ध्यान  रखना  होगा ।’’ उसने  मन  ही  मन  कुछ  निश्चय  किया  और  कुछ  अस्वस्थता  से  बेस  का  राउण्ड लेने   के   लिए   निकल   पड़ा ।
अफवाहें  जोरों  से  फैल  रही  थीं ।  सैनिकों  को  उद्विग्न  करने  में  मदन,  गुरु, खान और दास को काफी सफ़लता मिली थी । वे अपनी सफ़लता पर खुश थे । उन्हें  इस  बात  का  पूरा  एहसास  था  कि  नौसेना  अधिकारी,  विशेषत:  हिन्दुस्तानी अधिकारी   चुपचाप   नहीं   बैठेंगे ।   अपना   महत्त्व   बढ़ाने   के   लिए,   अपना   स्वार्थ   साधने के  लिए  इन  अफवाहों  का  उद्गम  ढूँढ़ने  का  प्रयत्न  करेंगे ।  उस  दिशा  में  कुछ  लोग प्रयत्न    कर    रहे    थे ।
''You leading tel, come here.'' सब   लेफ्टिनेन्ट रामदास मदन   को   बुला रहा    था ।    मदन    उसके    सामने    जाकर    अदब    से    खड़ा    हो    गया ।
''What is your name?''
‘‘मदन ।’’
रामदास  ने  मदन  को  ऊपर  से  नीचे  तक  देखा  और  कहा, "Come and report to me in my office."                  
‘‘मगर    क्यों    सर,    मुझसे    क्या...’’
'No arguments, obey first.''
पहले  तो  मदन  ने  सोचा  कि  रामदास  से  मिलूँ  ही  नहीं ।  मगर  यदि  उसके पास नहीं गया तो उसका सन्देह बढ़ेगा और वह हाथ धोकर पीछे पड़ जाएगा । इसके   अलावा,   रामदास   हाल   ही   में   तलवार   पर   आया   है ।  वह किस   हद   तक अंग्रेज़ों  का  चाटुकार  है  इसका  मदन  को  कोई  अन्दाज़ा  नहीं  था ।  उसने  निश्चय किया  कि रामदास    से    मिलेगा    तो    सही    मगर    ज्यादा    बोलेगा    नहीं ।
''May I come in, Sir?''
''Oh, come on Young man!'' दरवाज़े में खड़े मदन को रामदास     ने     भीतर बुलाया ।    मदन    अदब    से    अन्दर    गया    और    एक    कड़क    सैल्यूट    मारते    हुए    उसने रामदास    का    अभिवादन    किया ।
''Good noon, sir!''
‘‘देखो, For the time being, no formalities. आओ बैठो ।’’ रामदास ने  निकटता    साधने    की    कोशिश की।   ‘‘सिगरेट    लोगे ?’’
''No, thanks!" मदन   सतर्क   हो   गया ।
रामदास  ने  सिगरेट  सुलगाई  सीने  में  खींचा  हुआ  धुआँ  फस्  से  बाहर  छोड़ते हुए उसने    मदन    से    कहा - ‘‘तुम्हारे    और    तुम्हारे    दोस्तों    को    मुबारकबाद!’’
‘‘मुबारकबाद किसलिए ?’’ सपाट  चेहरे से    मदन    ने    पूछा ।
‘‘अब,   नादान   बनने   की   कोशिश      करो ।   अगर   तुम   मेरे   मुँह   से   सुनना चाहते  हो  तो  सुनो ।  तुम  लोगों  ने  अफ़वाह  फैलाकर  सैनिकों  को  उद्विग्न  कर  दिया इसलिए!’’
‘‘आपको   शायद   कोई   गलतफहमी   हो   रही   है ।   हमें   इस   बारे   में   कुछ   भी मालूम   नहीं   है ।’’
‘‘ये सब किस तरह हुआ । इसके पीछे कौनकौन हैं, यह मुझे मालूम है । कमाण्डर  कोल  के  कुत्ते  को  मेस  में  लाकर  उसके  सामने  मटन  का  बाउल  रखते हुए  मैंने  तुम्हें  देखा  है ।  मुझे  तुम्हारे  काम  में  व्यवधान  नहीं  डालना  था,  इसलिए मैं मेस के भीतर नहीं आया ?’’
मदन   ने   सोचा   भी   नहीं   था   कि   रामदास   उसकी   गतिविधियों   को   बारीकी से   देख   रहा   होगा ।   उसने   मन   में   निश्चय   कर   लिया   कि   चाहे   जो   भी   हो   जाए, कितने    ही    सुबूत    दिये    जाएँ,    फिर    भी    कुछ    भी    स्वीकार    नहीं    करना    है ।
‘‘सच   कहूँ   तो   मुझे   इस   बारे   में   कुछ   भी   मालूम   नहीं   है ।   कुत्ता   मेरे   पीछेपीछे आया । मुझे कुत्ते बेहद पसन्द हैं । वफ़ादार जानवर । उस दिन मटन कुछ ज़्यादा ही    था ।    फेंकने    के    बदले    मैंने    उसे    खिला    दिया ।’’
मदन की लीपापोती   का   रामदास पर कोई   असर   नहीं   हुआ । मदन की नज़रों से नज़र मिलाते हुए    उसने दूसरा    सुबूत    दिया ।
‘‘तुम शेरसिंह    को    जानते    हो    ना ?’’
‘‘मैं सिर्फ चाँदसिंह को जानता हूँ । यह शेरसिंह कौन है ?’’ मदन के चेहरे पर  मुस्कराहट  थी ।
“भूमिगत  क्रान्तिकारी  शेरसिंह,  तुम  कलकत्ते  में  उनसे  मिले  थे । मुझे    उन्होंने    ही    तुम    लोगों    से    मिलने    के    लिए    कहा    है ।’’
मदन   को   इतिहास   की   याद      गई ।   इतिहास   में   वर्णित   शिर्के,   पिसाल, आठवले ।   उसके   मन   ने   कौल   दिया - यह   फँसा   रहा   है ।   इकट्ठा   की   गई   जानकारी मेरे सामने फेंक रहा है । वह और भी ज्यादा सावधान हो गया । शायद रामदास मुझसे  सारी  जानकारी  उगलवा  लेगा  और  फिर  मुझे  फँसा  देगा...  अपने  लिए  कुछ और    सुखसुविधाएँ    प्राप्त    कर    लेगा ।    उसने    चुप    ही    रहने    की    ठानी ।
‘‘अभी     भी     विश्वास     नहीं     होता ।     मैं     भी     एक     क्रान्तिकारी     हूँ ।     मुझे     मदद     चाहिए, तुम    लोगों    का    सहकार्य    चाहिए ।’’
‘‘मदद ?   हम   क्या   मदद   कर   सकते   हैं ?’’
‘‘इस    बेस    में    बहुत    कम    अधिकारी    विद्रोह    के    पक्ष    में    हैं...   सैनिक    और अधिकारी  का  भेद  भूलकर  हम  एक  हो  जाएँहमारी  ताकत  बढ़ेगी ।  तीनों  दलों के  अधिकारी  विद्रोह  की  तैयारी  में  लगे  हैं ।  उन्होंने  कमाण्डर  इन  चीफ  को  एक ख़त    लिखा    है ।    देखना    चाहते    हो ?’’    रामदास    के    शब्दों    में    चिड़चिड़ाहट    थी ।
मदन   शान्त   था
रामदास   ने   गुस्से   से   सामने   की   ऐश   ट्रे   में   सिगरेट   मसल   दी   और   टेबल की   दराज   से   एक   ख़त   निकालकर   मदन   के   सामने   फेंका । ‘‘पढ़ो,   जिससे   तुम्हें विश्वास हो    जाए ’’
मदन     ने     पत्र     खोला     और     रामदास     की     ओर     देखा ।     रामदास     सामने     रखे     गिलास से    गटगट    पानी    पी    रहा    था ।
मदन   ने   ख़त   पर  नजर   दौड़ाई ।   ख़त   पर   कोई   तारीख   नहीं   थी   और   नीचे किसी    के    हस्ताक्षर    भी    नहीं    थे ।    ख़त    में    कोई    खास    दम    नहीं    था ।
‘‘हमने  युद्ध  के  समय  प्रजातन्त्र  को  नाज़िज्म  द्वारा  होने  वाले  खतरे  को  दूर करने के लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा कर दी थी । इस खतरे को टालने में हमारा भी बड़ा सहयोग रहा है । हमने समयसमय पर आपके सामने अपनी माँगें रखी हैं,   परन्तु   आपने   उन   पर   कोई   ध्यान   नहीं   दिया   है ।   अब   इस   सम्बन्ध   में   चर्चा करके   आप   इस   समस्या   का   हल   निकालें   ऐसी   आप   से   विनती   है ।   इसके   लिए हम   आपको   14   फरवरी   तक   का   समय   दे   रहे   हैं ।   यदि   हमारी   माँगें   मंजूर   नही हुर्इं तो 15 फरवरी, 1946 को पूरे देश की सेना में अनुशासनहीनता फ़ैलाने की हम    कोशिश    कर    रहे    हैं ।’’
ख़त  में  माँगों  का  कोई  उल्लेख  नहीं  था ।  ऑफिस  के  निकट  किसी  के  पैरों की   आहट   सुनाई   दी   तो   रामदास   ने   फौरन   मदन   के   हाथों   से   ख़त   छीन   लिया  और    उसे    मेज़    की    दराज    में    छिपा    लिया ।
'Sir, Please allow me to go.' मदन ने उठते हुए कहा और इजाज़त की    राह        देखते    हुए    वहाँ    से    बाहर    निकल    गया ।



रात    को    मदन,    गुरु,    खान    और    दास    अपने    संकेत    स्थल    पर    मिले।
‘‘दोपहर को मुझे रामदास ने बुलाया था ।’’ मदन ने दोपहर की मुलाकात के    बारे    में    बताया ।
‘‘तुमने   रामदास   पर   विश्वास   नहीं   रखा   यह   ठीक   ही  किया,’’   गुरु   ने   अपनी
राय    दी ।
‘‘यदि   हिन्दुस्तानी   अधिकारी   हमें   सहयोग   देने   के   लिए   तैयार   हों   तो   हमें उसे  स्वीकार  करना  चाहिए ।  उससे  बग़ावत  ज़ोर पकड़ेगी ।  हमारा  संगठन  मजबूत होगा।’’    खान    ने    अपना    विचार    रखा ।
‘‘ये  अधिकारी  मन:पूर्वक  और  परिणामों  की  परवाह  किए  बिना  यदि  हमारा साथ   देने   वाले  हों   तो   कोई   लाभ   भी   होगा,   वरना   हमारे   काम   का   नुकसान   ही होगा” गुरु ने कहा।
‘‘उनके  निकट  सम्पर्क  में    होने  के  कारण  कौन  कितने  पानी  में  है  यह समझना मुश्किल है ।’’    मदन    ने    जवाब    दिया ।
‘‘मदन   की   बात   मुझे   ठीक   लगती   है ।   हमें   कुछ   दिनों   तक   रामदास   पर   नज़र रखनी    चाहिए ।    उसने    यदि    दुबारा    बुलाया    तो    जाना    चाहिए; उससे बात करनी चाहिए,  मगर  जब  तक  पूरा  यकीन  नहीं  हो  जाता  उसे  इस  बात  की  भनक  नहीं मिलनी  चाहिए  कि  हम  कितने  लोग  हैं  और  हमारी  योजनाएँ  क्या  हैं ।’’  गुरु  की राय    सबको    उचित    प्रतीत    हुई ।
दूसरे   दिन   सुबह   रामदास   की   गिरफ्तारी की खबर पूरी   बेस   में   हवा   की   तरह फैल    गई ।
सब  लेफ्टिनेंट  रामदास  के  ऑफिस  के  सामने  ले.स्नो,  ले.  पीटर  और  थॉमस खड़े   थे ।   नेवल   पुलिस   की   सहायता   से   एक   वरिष्ठ   लेफ्टिनेंट   कमाण्डर   ऑफिस की    तलाशी    ले    रहा    था ।
''Come on Speak out, tell me the truth who are with you?'' स्नो रामदास    से    पूछ    रहा    था ।
रामदास    खामोश    था ।
‘‘हमारे  हवाले  कर  दीजिए ।  हमारा  मज़ा  दिखाने  की  देर  है,  सब  कुछ  उगल देगा ।’’    पीटर    ने    कहा ।
‘‘देखो,     सच बताओगे तो सज़ा कम होगी;  वरना...    बोल,     कौनकौन हैं तुम्हारे साथ ?’’    स्नो ने    पूछा ।
ऑफिस से कुछ दूरी पर एक पेड़ के पीछे छिपे मदन और गुरु सुनने की कोशिश कर रहे थे । मदन डर रहा था । कहीं उसने मेरा नाम बता दिया तो ?’’
‘‘मैं   अकेला   हूँ ।   मेरे   साथ   कोई   नहीं   है ।’’
‘‘राशन   में   कटौती   की   गई   है,   यह   अफवाह   किसने   फैलाई ?’’   थॉमस   ने पूछा ।
‘‘मैंने ।’’
गुस्साए  हुए  पीटर  ने  रामदास  का  गाल  लाल  कर  दिया ।  स्नो  आगे  बढ़ा ।
‘‘नहीं,  यह  मैं  होने  नहीं  दूँगा । अभी  हमने उसे तुम्हारे  हवाले  नहीं  किया है ।‘’
मदन  अपने  आप  से  बड़बड़ाया,  ‘‘उस  पर  विश्वास  करना  चाहिए  था । वह हमारा आदमी है। उसे    बचाना    चाहिए ।’’
मदन   ने   गुरु   को   पीछे   खींचा ।   ‘‘भावनावश   होने   की   जरूरत   नहीं   है ।   उसकी उसे    भोगने    दो!’’    और    वे    दोनों    बैरक    में    वापस    आए ।



कलकत्ते   से   दत्त   का   ख़त   आया   था ।   उसने   लिखा   था   कि   कलकत्ते   के   सैनिकों की    अस्वस्थता    बढ़ती    जा    रही    है ।
‘‘अरे,    मगर    कारण    क्या    है ?’’    गुरु    ने    पूछा ।
‘‘और क्या हो सकता है! वहाँ मिलने वाला भोजन । दत्त ने वहाँ दिये जा रहे  भोजन  के  बारे  में  लिखा  है: यहाँ  हिन्दुस्तानी  सैनिकों  को  मेस  में  जो  भोजन दिया  जाता  है  वह  गोरे  सैनिकों  को  मिलने  वाले  भोजन  की  अपेक्षा  निकृष्ट  किस्म का    होता    है,    उसकी    मात्रा    भी    कम    होती    है ।    यहाँ    मिलने    वाली चाय तो एक अजीब तरह का रसायन है । थोड़ीसी चाय का पाउडर और शक्कर को खूब सारे पानी में  मिलाकर  उसे  उबाला  जाता  है ।  दूध  सिर्फ  उतना  ही  डाला  जाता  है  कि  बस रंग बदल जाए । चाय नामक यह बेस्वाद द्रव गले से नीचे नहीं उतरता । दोपहर के भोजन में उबले चावल का जो भात दिया जाता है वह कंकड़ों से इतना भरा होता  है  कि  दाँतों  को  बचाते  हुए  उसे  चबाना  पड़ता  है ।  शाम  के  खाने  में  बुधवार को और शनिवार को पराँठा दिया जाता है । बाकी के पाँच दिन काले कीड़ों से भरपूर, सूखे  हुए  ब्रेड  के  टुकड़े  मिलते  हैं ।  हम  कीड़ों  को  निकालनिकालकर  नमक, मिर्च   डली   मसालादाल   या   काश्मीरी   बैंगन   जैसी   किसी   बेस्वाद   सब्जी   के   साथ उन    ब्रेड    के    टुकड़ों    की    जुगाली    करते    हैं ।    पराँठा    भी    ऐसा    ही    अफलातून  होता है ।  पाव  से  लेकर  आधा  इंच  तक  मोटा  और  दस  से  ग्यारह  इंच  व्यास  वाला  ये पराँठा   किस   जगह   पूरी   तरह   पका   हुआ   है,   यह   एक   संशोधन   का   विषय   हो   सकता है ।   खाने   में   जो   सब्जियाँ   दी   जाती   हैं,   उनके   नाम   चाहे   अलगअलग   हों,   मगर स्वाद सबका एक ही होता है । बैंगन, आलू, कद्दू, प्याज, परवल जैसी विभिन्न सब्जियाँ   एक   साथ   उबालकर   उनमें   मन   भर   नमक   और   मिर्च   डाली   कि   सब्जी तैयार!   मसाला   बदला   नहीं   जाता   मगर   सब्जियों   के   नाम   बदल   जाते   हैं ।   वेजिटेबल स्ट्यू, काश्मीरी आलू,    बैंगन,    शाही बैंगन...  यही    हाल    मटन    का    भी    है  - कलेजी, गुर्दाभेजा - हमेशा  गायब  हड्डियों  की  मगर  कोई  कमी  नहीं ।"  दत्त  ने  आगे  लिखा है,   ‘‘तुम्हारे   यहाँ   भी   स्थिति   अलग   नहीं   होगी   यह   सब   मैं   इतने   विस्तार   से   इसलिए लिख रहा हूँ ताकि तुम लोग इस बात पर गौर करो कि क्या इस परिस्थिति का लाभ  उठाया  जा  सकता  है ।  हम  इसी  एक  मुद्दे  को  लेकर  सैनिकों  को  संगठित कर   रहे   हैं ।’’
दत्त   द्वारा   किये   गए   खाने   के   वर्णन   को   सुनकर   गुरु   को   अपना   प्रशिक्षण काल   याद      गया   और   वह   अपने   आप   से   बड़बड़ाया,   ‘‘राशन   का   यह   मुद्दा अंग्रेज़ों    को    सबक    सिखायेगा ।’’
‘‘दत्त  ने  जिस  प्रकार  खाने  के  मुद्दे  को  लेकर  संगठन  किया  है  क्या  हमारे लिए वह सम्भव होगा,    यह    देखना    होगा ।’’    मदन    ने    सुझाव    दिया ।


‘‘क्या   कहता   है   अखबार ?’’   आठ   से   बारह   की   ड्यूटी   करके   लौटे   खान ने    गुरु    से    पूछा ।
चार  साल  पहले  बैरेक  में  सरकार  के  चापलूस  एकदो  पुराने  अखबार  पढ़ने के   लिए   दिये   जाते   थे ।   कुछ   साहसी   सैनिक   सरकार   विरोधी   अखबार   छुपाकर   लाते और   छुपछुपकर   पढ़ते ।   अब   स्थिति   बदल   चुकी   थी ।   अब   खुले   आम   अखबार लाए    और    पढ़े    जाते    थे ।
‘‘कुछ  खास  नहीं ।  जेल  से  आज़ाद  किए  गए  नेताओं  की  सूची  है ।’’  गुरु ने    बताया।
‘‘1942  का  आन्दोलन  कहने  को  तो  अहिंसक  आन्दोलन  था,  मगर  कितना खून   बहा ?’’   खान   ने   कहा ।
‘‘सरकार   कहती   है   कि   केवल   930   व्यक्ति   मारे   गए,   1630   ज़ख्मी   हुए   और 92    हजार    जेलों    में    भरे    गए ।’’
‘‘यह   संख्या   सही   नहीं   है ।   वास्तव   में   दस   हजार   लोग   मारे   गए   और   क्रान्ति के    नेताओं    के    अनुसार    तीन    लाख    लोग    जेलों    में    डाले    गए।’’    खान    ने    दुरुस्त    किया ।
‘‘यह कैसी अहिंसात्मक क्रान्ति है! आज़ादी का कमल रक्तमांस के कीचड में ही खिलता है - यही    सत्य    है!’’
‘‘इतना    बलिदान    करके    भी    हमें    क्या    मिला ?    जमा    खाते    में    तो    शून्य    ही         है ।’’
‘‘महात्माजी  अथवा  कांग्रेस  के  अन्य  नेता  1942  के  बाद  खामोश  ही  बैठे हैं ।
‘‘कांग्रेस   के   नेतागण   अब   थक   चुके   हैं । इसीलिए   उन्होंने   1942   के   बाद किसी नये आन्दोलन       का       आह्वान       नहीं       किया       है ।       इसके       विपरीत       भूमिगत       क्रान्तिकारियों के    आन्दोलन    जोरशोर    से    चल    रहे    हैं ।    कहीं    पुल    उड़ाए    जा    रहे    हैं,    तो    कहीं    सरकारी ख़जाने    लूटे    जा    रहे    हैं ।’’



एक    सुबह    आर.के.    को    बैरेक    में    देखकर    मदन    भौंचक्का    रह    गया ।
‘‘तू   यहाँ   कैसे ?’’
‘‘कैसे,    मतलब ?    तबादला    हुआ    है    मेरा    यहाँ - तलवार    पर ।’’
''Oh, that's good. ईश्वर    हमारे    साथ    है!’’    गुरु    ने    कहा ।
‘‘यह  याद  रखना  कि  सिर्फ  तलवार  पर  बग़ावत  करना  पर्याप्त  नहीं  है । सभी    जहाजों    पर    और    बेसेस    पर    बग़ावत    होनी    चाहिए ।    तैयारी    करने    के    लिए हमारे    आदमी    हर    जगह    पर    होने    चाहिए ।’’    मदन    ने    अपनी    राय    दी ।
‘‘चिन्ता  मत  करो ।  वह  भी  हो  जाएगा ।  पहले  तुम  यह  बताओ  कि  कराची में    हालात    कैसे    हैं ?’’    गुरु    ने    पूछा ।
‘‘कराची   में   बेस   पर   और   बाहर   भी   वातावरण   तनावपूर्ण   है ।   लोग   सिर्फ़ एक     ही     प्रश्न     पूछ     रहे     हैं : आजाद     हिन्द     फौज     हिन्दुस्तान     की     सेना     है ।     वह     हिन्दुस्तान की  आजादी  की  खातिर  लड़ी  थी ।  इस  सेना  के  सैनिकों  पर  राजद्रोह  के  मुकदमे चलाने   का   अंग्रेज़ी   हुकूमत   को   कोई   अधिकार   नहीं   है ।   सैनिक   महात्मा जी  और   कांग्रेस के   नेताओं   से   चिढ़   गए   हैं ।   राष्ट्रीय   नेताओं   को   अब   और   ज्यादा   खामोश   न रहकर अंग्रेज़ी  सरकार  से  कहना  चाहिए  कि  हिन्दुस्तान  छोड़ो  वरना  हम  हिन्दुस्तानी  सेना को आह्वान    देंगे ।’’    आर.के.    ने    जवाब    दिया ।
 ‘‘नेतागण  अपनी  ओर  से  कोशिश  कर  ही  रहे  हैं ।  कांग्रेस  तो  सैनिकों  की तरफ    से    मुकदमा    लड़    ही    रही    है ना ?’’    मदन    ने    पूछा ।
‘‘क्या    अंग्रेज़ों    के    कायदेकानून    और    उनकी    अदालतों    पर    भरोसा    करना चाहिए ? सैनिकों    का    गुस्सा    कायदे    आजम    जिन्ना    पर    है ।’’    आर.के.    ने    कहा ।
‘‘क्यों ?’’   गुरु   ने   पूछा ।
‘‘हिन्दुस्तान   की   आजादी   के   लिए   जातपाँत   भूलकर,   जान   की   बाजी   लगाते हुए लड़ने वाले सैनिकों के बीच फूट डालने का प्रयत्न जिन्ना ने किया । उन्होंने शाहनवाज  खान  को  सूचित  किया,  आप  अन्य  अधिकारियों  से  अलग  हो  जाइये । मैं आपकी ओर से लडूँगा ।’’ मेजर जनरल खान ने जवाब दिया, ‘‘हम आजादी की    खातिर    युद्धभूमि    पर    कन्धे    से    कन्धा    लगाकर    लड़े    हैं ।    अनेको    ने    युद्धभूमि पर   अपने   प्राण   न्यौछावर   कर   दिये ।   हम   इकट्ठे   रहकर   ही   जीतेंगे   या   मरेंगे!’’   खान के    जवाब    ने    सैनिकों    को    मन्त्रमुग्ध    कर    दिया    है ।
‘‘आर. के., आजाद हिन्द सेना के एक भी सैनिक को अगर सजा दी गई ना,    तो    मैं...   इस    अंग्रेज़ी    सरकार    को    अच्छा    सबक    सिखाऊँगा,    शायद    मुझे    सफलता न मिले;  मगर कोशिश तो मैं जीजान से करूँगा ।’’ गुरु की आँखों में खून उतर आया    था ।
‘‘दूसरी    एक    महत्त्वपूर्ण    घटना    यह    हुई    कि    कुछ    दिन    पहले    हम    राष्ट्रीय    कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद से मिले थे । हमारे साथ किये जा रहे व्यवहार के बारे में, कम तनख़्वाह के बारे में तो उन्हें बताया ही, साथ ही हरेक के   मन   में   पल   रही   आजादी   की   आस   और   उसके   लिए   हर   सैनिक   के   अपना सर्वस्व    न्यौछावर    करने    के    इरादे    के    बारे    में    भी    बताया ।’’
‘‘फिर   उन्होंने   क्या   कहा ?’’   मदन   ने   पूछा ।
‘‘उन्होंने  शान्ति  से  हमारी  बात  सुनी ।’’  आर.  के.  इस  जवाब  से  गुरु  को निराशा    हुई ।



''Leading, tell Madan to main gate for guest'' लाऊडस्पीकर   से   क्वार्टर मास्टर  ने  घोषणा  की  और  कौन  आया  होगा  इसके  बारे  में  विचार  करते  हुए  मदन मेन    गेट    पर    आया।
'Hello, good noon, Madan'' मेन  गेट  पर  खड़े  विलायती  पोशाक  वाले युवक    ने    उसे    विश    किया ।
''A letter From uncle Shersingh from Calcutta.'' और   उसने   मदन के हाथ में एक लिफाफा दिया। मदन ने उसे पहचाना नहीं था । उसने लिफाफा ले  लिया ।  उस  नौजवान  ने  अपनी  हैट  उतारकर  कमर  तक  झुकते  हुए  मदन  से कहा,   ''O.K. Madan, see you.'' मदन  ने  उसकी  ओर  देखा - वह  भूषण  था ।
पत्र  में  लिखे  निर्देशानुसार  दोपहर  चार  बजे  मदन,  गुरु  और  खान  गेट-वे के   पास   खड़े   होकर   भूषण   की   राह   देख   रहे   थे ।   उन्होंने   भूषण   को   देखा   और   उससे पर्याप्त  अन्तर  रखते  हुए  उसके  पीछेपीछे  इस  तरह  जाने  लगे  कि  किसी  को  कोई सन्देह    हो ।  पहले  ट्रामगाड़ी  से,  फिर  लोकल  से  और  फिर  पैदल  चलते  हुए  घण्टे भर   बाद   भूषण   एक   पुराने   घर   में   घुसा ।   घर   का   दरवाजा   खुला   ही   था ।   करीब पाँच   मिनट   बाद   वे   तीनों   उस   घर   में   घुसे   तो   घर   का   दरवाजा   बन्द   हो   गया । अब वहाँ    गहरा    अँधेरा    था ।
‘‘,    किधर    जा    रहे    हो ?’’    एक    डपटती    हुई    आवाज    सुनाई    दी ।
‘‘शेरसिंहजी    से    मिलना    है ।’’
‘‘हाथ    में    क्या    है ?’’
‘‘फूल ।’’
‘‘कौनसा    फूल ?’’
‘‘लाल    गुलाब ।’’
अन्दर  हर  तरफ  अँधेरा  था । अँधेरे में  टटोलते  हुए  तीन  कमरे  पार  करके वे एक दरवाजे के पास आए । दरवाजा खोलते ही प्रकाश की किरण भीतर को झाँकी । तीनों कमरे में गए । दरवाज़ा बन्द हो गया । उस बड़े से कमरे के भीतर वातावरण    गम्भीर    था ।    कमरे    में    सुभाषचन्द्र    की    एक    बड़ी    ऑयल    पेंटिंग    थी ।    उसकी तस्वीर    के    नीचे    बैठे    शेरसिंह    कुछ    लिख    रहे    थे ।
‘‘जय   हिन्द!’’   तीनों   ने   उनका   अभिवादन   किया ।   अभिवादन   स्वीकार   करते हुए  उन्होंने  तीनों  को  बैठने  का  इशारा  किया  और  लिखना  रोककर  वे  कहने  लगे, ‘‘तुम्हारे  मुम्बई  के  संगठन  कार्य  के  बारे  में  मुझे  पता  चला ।  सैनिकों  को  इस  बात का  ज्ञान  कराना  कि  उनके  साथ  अन्याय  हो  रहा  है - यह  लक्ष्य  उचित  है ।  मगर गति   बढ़ानी   होगी ।   मैंने   सन्देश   भेजे   हैं   कि   कलकत्ता,   कराची,   विशाखापट्टनम दिल्ली में चल रहे कार्य की गति तेज़ की जाए । समय गँवाना ठीक नहीं । मगर जल्दबाजी     करना     भी     उचित     नहीं           क्योंकि     यदि     विद्रोह     सर्वव्यापी     होगा     तभी     सरकार के  लिए  उसे  दबाना  मुश्किल  होगा ।  भूदल  और  हवाई  सेना  के  सैनिकों  से  सम्पर्क स्थापित  किया  है  वहाँ  से  भी  समर्थन  मिल  रहा  है ।  यह  याद  रखना  कि  अंग्रेज़ी हुकूमत    पर    यह    वार    अन्तिम    होगा ।’’
‘‘आज समाज में जो असन्तोष खदखदा रहा है उस पर यदि ध्यान दें तो यह   निष्कर्ष   निकाला   जा   सकता   है   कि   इस   विद्रोह   को   सामान्य   जनता   का   समर्थन मिलेगा ।   कांग्रेस   और   मुस्लिम   लीग   ने   आज़ाद हिन्द सैनिकों  की   कोर्ट   में   पैरवी करने     का     निश्चय     किया     है ।     अर्थात्     विद्रोह     को     कांग्रेस     का     भी     समर्थन     प्राप्त     होगा ।’’ खान    ने    अपनी राय    दी ।
‘‘यदि   आज़ाद   हिन्द   सेना   के   सैनिकों   को जनता   द्वारा   दिये   गए   समर्थन   पर ध्यान   दें,   तो   वह   निश्चित   ही   तुम्हारे   विद्रोह   को भी   प्राप्त   होगा ।   परन्तु   कांग्रेस तुम्हें   समर्थन   नहीं   देगी ।   आज   यदि   कांग्रेस   सैनिकों   के   साथ   है   तो   वह   सिर्फ   जनता के   दबाव   के   कारण,   अन्यथा   कांग्रेस   इन   अदालती   मुकदमों   से   अलिप्त   रहती । कांग्रेस का समर्थन इसलिए प्राप्त नहीं होगा, क्योंकि यदि इस विद्रोह के कारण आजादी  प्राप्त  होती  है  तो  उसका  श्रेय  कांग्रेस  को  नहीं  मिलेगा,  फिर  तुम्हारा  मार्ग भी    तो    कांग्रेस    के    मार्ग    से    भिन्न    है ।’’    शेरसिंह    ने    स्पष्टीकरण    दिया ।
कौन   हमें   समर्थन   देगा   और   कौन   नहीं   देगा,   इस   बात   पर   माथापच्ची   न करते   हुए  हमें   अन्तिम   विजय   के   ध्येय   को   सामने   रखना   होगा ।   सन्   1942   में अच्युतराव पटवर्धन ने भूमिगत क्रान्तिकारियों की सभा में कहा था, ‘‘हिन्दुस्तान की  सेना - जब Army of Occupation   रहकर Army of Liberation हो जाएगी तब प्रत्यक्ष रूप में स्वराज्य आएगा । हमें ठीक यही परिवर्तन लाना है ।’’
शेरसिंह    ने    निश्चित    ध्येय    के    बारे    में    बताया ।
‘‘सेना  के  भीतर  असन्तोष  बढ़  रहा  है - यह  सच  है  और  सरकार  को  भी इसकी     कल्पना     है ।     आज़ाद हिन्द सैनिकों के साथ किये जा रहे बर्ताव तथा हिन्दुस्तानी   सैनिकों   को   इंडोनेशिया   और   इंडोचायना   के   क्रान्तिकारी   आन्दोलनों   को दबाने  के  लिए  भेजने  के  कारण  यह  असन्तोष  है ।  हम  भी  इन्हीं  दो  कारणों  से लाभ उठाएँगे।’’    गुरु    ने    सुझाव    दिया ।
‘‘बिलकुल ठीक । जो भी मिले उस मौके से फ़ायदा उठाओ । सरकार को, सेना   के   वरिष्ठ   अधिकारियों   को   एक   के   बाद   एक   धक्के   पहुँचाओ ।   वातावरण का  जोश  बरकरार  रखो ।  इससे  सैनिकों  के  मन  का  डर  दूर  होकर  वे  निर्भय  हो जाएँगे ।    अब    समय        गँवाओ!”    शेरसिंह    ने    सलाह    दी ।
कुछ देर    तक    विभिन्न    पक्षों    की    विचारधाराएँ,    उनके    उद्देश्य,    उनके    बीच के  वादविवाद  पर  चर्चा  करने  के  बाद  जब  वे  शेरसिंह  की  गुफा  से  बाहर  निकले, तो    रात    के    आठ    बज    चुके    थे ।
अगली  रात  वे  फिर  संकेत  स्थल  पर  एकत्रित  हुए ।  ‘‘मध्यप्रदेश  के  जातीय दंगों के बारे में पढ़ा ? लिखा है कि दस लोगों को जलाकर मार डाला! जातिवाद के    अन्धे    आदमी    कितने    शून्य    हृदय    हो    जाते    हैं!’’    गुरु    अस्वस्थ    हो    गया ।
‘‘इस  जातिवाद  का  फैसला  हो  ही  जाना  चाहिए ।’’  मदन  गुस्से  से  कह  रहा था ।  ये  झगड़े,  ये  दंगे  कितने  दिनों  तक  चलने  देंगे ?  जो  लोग  इस  भूमि  के  प्रति ईमानदार  नहीं  रहना  चाहते,  जो  कट्टर  धार्मिक  हैं,  जिनके  मन  में  आशंका  है  कि बहुसंख्यक हिन्दू उन पर अत्याचार करेंगे, क्या उन्हें अलग कर देना उचित नही है ?    वरना आज़ाद हिन्दुस्तान    कमजोर    रहेगा,    विभाजित    रहेगा”।
खान इस विचार से सहमत नहीं था । ‘‘मुट्ठीभर कट्टर जातिवादी मुसलमानों  की जिद की खातिर क्या देश को और लोगों के दिलों को बाँटना सही है ? इस बात   की   क्या   गारंटी   है   कि   पाकिस्तान   बनने   से   देश   के   जातीय   दंगे   पूरी   तरह समाप्त  हो  जाएँगे ?  बँटवारे  के  लिए  कट्टर  मुसलमानों  के  बराबर  ही  कट्टर  हिन्दू भी   जिम्मेदार   होंगे ।   क्या   यह   बँटवारा   बिना   खून   की   नदियाँ   बहाए   होगा,   ऐसा आप सोचते हैं ? आज दिलों का बँटवारा हुआ है, कल ज़मीन का होगा । ज़मीन का  बँटवारा  होने  से  मन  फिर  से  नहीं  जुड़ेंगे,  बल्कि  कई  सवाल  पैदा  हो  जाएँगे ।’’ खान    तिलमिलाकर    कह    रहा    था ।
‘‘सेना   की   बगावत   यदि   एक   दिल   से   हुई; हिन्दू,   मुसलमान,   सिख   एक   दिल से मिलकर खड़े होंगे तभी बगावत कामयाब होगी । दिलों का यह मिलाप शायद ज़मीन    के    बँटवारे    को    टाल    सकेगा ।’’    गुरु    ने    कहा ।
‘‘जब   तक   सैनिक   अशान्त   हैं,   तभी   तक   कुछ   कर   लेना   चाहिए ।   अन्तर में  सुलगती  आग  तेज  करनी  चाहिए,  वरना,  फिर  से  सब  कुछ  शान्त  हो  जाएगा और  इस  वह्नी  को  प्रज्वलित  करना  मुश्किल  होगा ।’’  आर.  के.  ने  सुझाव  दिया ।
‘‘सरकार को, नौदल के वरिष्ठ अधिकारियों को एक ज़ोरदार धक्का देना पड़ेगा,   साथ   ही   सैनिकों   के   मन   का   डर   दूर   होना   चाहिए ।   उन्हें   यह   समझाना होगा  कि  अगर  हम  एक  होंगे  तो  ये  अंग्रेज़  हमारा  कुछ  भी  नहीं  बिगाड़  सकेंगे । गुलामी  में  गुजारी  अनेक  सालों  की  जिन्दगी  की  अपेक्षा  इज़्जत  से  जिया  गया  एक पल भी बहुमूल्य है । डरडर के जीने की अपेक्षा लड़ते हुए मरेंगे, यह बात यदि उन्हें    समझा    सकें    तो    काम    आसान    होगा ।’’    मदन    ने    कहा ।
‘‘कोई एक आगे बढ़कर यह दिखा दे कि नौसेना के नियमों के मुताबिक अंग्रेज़  थोड़ीबहुत  सजा  देने  से  ज़्यादा  कुछ  भी  नहीं  कर  सकते ।  ज़्यादा  से  ज़्यादा नौसेना से निकाल देंगे । किसी एक का यह बलिदान औरों को प्रेरणा देगा । वह व्यक्ति  हमारी  क्रान्ति  की  नींव  का  पत्थर  होगा ।’’  खान  ने  मदन  के  विचारों  का समर्थन    करते    हुए    कहा ।
‘‘मतलब,      करना क्या      होगा ?      हिंसात्मक      मार्ग      अपनाना      होगा      या      अहिंसात्मक ?’’ गुरु   ने   पूछा ।
‘‘अंग्रेज़ों को इस देश से बाहर निकालने के लिए सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग ही उचित है ।’’ मदन की इस राय से आर. के. सहमत नहीं था । ‘‘मेरा ख़याल है  कि  हमें  अहिंसात्मक  मार्ग  का  ही  पालन  करना  चाहिए ।  अहिंसा  से  ही  लोगों के   दिलों   और   उनके   विचारों   में   परिवर्तन   लाया   जा   सकता   है ।   बगैर   कटुता   उत्पन्न किए,  बिना  खून  बहाए,  आजादी  प्राप्त  करने  का  एक  अलग  ही  मार्ग  दिखाने  का प्रयत्न महात्माजी    कर    रहे    हैं ।    उसी    मार्ग    का    अवलम्बन    हम    करेंगे ।’’
‘‘सत्याग्रह,    प्रदर्शन    इत्यादि    जैसे    अहिंसात्मक    मार्गों    का    अवलम्बन    करने    वाले हजारों   लोगों   को   सरकार   ने   मार   डाला   है ।   सरकार   यह   समझ   गई   है   कि   तानाशाही से ऐसे आन्दोलनों को कुचला जा सकता है, इसलिए सरकार इस मार्ग की जरा भी  परवाह  नहीं  करती ।  फिर  हमारे  लिए  इस  मार्ग  को  अपनाना  कठिन  हैं ।  अरेका     जवाब     क्या रे     से     देने     की     हमारी     प्रवृत्ति     है,     अहिंसात्मक     मार्ग     के     लिए     आवश्यक सहनशीलता, अपने मन पर काबू रखना - ये सब बातें हमारे पास नहीं हैं । फिर इस  मार्ग  का  समर्थन  सैनिक  नहीं  करेंगे ।  मेरी  राय  में  तो  यह  मार्ग  उचित  नही है,’’    खान    ने    अपना    विरोध    दर्शाया ।
‘‘यदि  अहिंसात्मक  मार्ग  से  सैनिकों  का  आत्मविश्वास  बढ़ने  वाला  हो  तो इस   मार्ग   का   अनुसरण   करने   में   कोई   हर्ज   नहीं   है ।   मगर   करना   क्या   होगा ?’’ गुरु   ने   पूछा ।
‘‘असहयोग  करना  होगा ।  फॉलिन  के  लिए  नहीं  जाएँगे,  काम  नहीं  करेंगे, काम   करेंगे   नहीं   इसलिए   खाना   भी   नहीं   खाएँगे, ” आर.   के.   ने   सुझाव   दिया ।
इसके    लिए    आवश्यक    मनोबल    कौन    दिखाएगा ?    क्या    अपने    सर्वस्व    का    त्याग करने    के    लिए    कोई    तैयार    है ?’’    खान    ने    पूछा ।
‘‘मैं  तैयार  हूँ,  अर्थात्  यदि  आप  सब  आज़ाद  हिन्दुस्तानी  अनुमति  दें  तो!’’ आर.  के.  दृढ़ निश्चय से   बोला ।
आर.  के.  का  यह  निर्णय  सभी  के  लिए  अनपेक्षित  था ।  अंग्रेज़ी  सत्ता  का विरोध कोई एक व्यक्ति करेगा, यह उन्होंने सोचा ही नहीं था । सबको चुप बैठ देखकर  आर.के.    अपनी    बात    स्पष्ट    करते    हुए    कहने लगा:
 ‘‘मैं    पहले    काम    बन्द    करूँगा    और    अपनी    नौकरी    से    इस्तीफा    दूँगा ।    अधिकारी इस   पर   जरूर   कार्रवाई   करेंगे,   मुझे   सजा   देंगे,   मगर   मुझे   इसकी   परवाह   नहीं   हैक्योंकि  मैं  विरोध  करने  पर  उतारू  होने  वाला  हूँ  जान  की  बाज़ी लगाकर ।  अंग्रेज़ों द्वारा  मुझ  पर  किये  जाने  वाले  हर  अत्याचार  काबल  प्रयोग  का  जवाब  मैं  वंद मातरम्!’  से  दूँगा ।’’  आर. के.  के  हर  शब्द  में  आत्मविश्वास  कूटकूटकर  भरा  था ।
‘‘हम औरों से चर्चा करके अपना निर्णय तुम्हें सुनाएँगे ।’’ खान ने कहा ।




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