रविवार, 11 मार्च 2018

Vadvanal - 11




रात के दस बज चुके थे । बैरेक के सैनिक झुण्ड बनाबनाकर मदन, गुरु, पाण्डे की रिक्वेस्ट के बारे में चर्चा कर रहे थे । हरेक की राय अलगअलग थी,   परिणामों के बारे में आशंकाएँ भी अलगअलग थीं ।
‘‘तुम   दोनों   रात   को   बारह   से   चार   वाली   सेलसेन्ट्री   ड्यूटी   पर   जाने   की तैयारी करो,’’  मदन ने खान और जी. सिंह को एक ओर ले जाकर कहा ।
‘‘हम   किसके   बदले   में   ड्यूटी   पर   जा   रहे   हैं   और   क्या   वे   विश्वास   योग्य व्यक्ति हैं ?’’   खान   ने   पूछा ।
‘‘अरे, बारह से चार की ड्यूटी किसी को भी अच्छी नहीं लगती। वैसे ही त्यागी और सुमंगल को भी नहीं भाती। दोनों   भरोसे   लायक   हैं। उनके पेट में दर्द है इसलिए वे ड्यूटी पर नहीं जाएँगे ।’’    मदन ने जवाब दिया ।  
दत्त   ने   खान   और   जी.   सिंह   को   ड्यूटी   पर   देखा   तो   उसे   बड़ा   आश्चर्य   हुआ । सुबह से बैरेक  में  जो  कुछ  भी  हुआ  था  उसकी  भनक  उस  तक  पहुँच  गई  थी ।
‘‘फ्लैग ऑफिसर से मुलाकात करने के बारे में जो प्रार्थनापत्र दिये हैं वो ठीक  किया ।  स्नो  तुम्हारी  रिक्वेस्ट  पर  कोई  निर्णय  नहीं  ले  सकेगा ।  या  तो  वह तुम्हारी अर्ज़ियाँ आगे बढ़ा देगा या उन्हें खारिज कर देगा ।     यदि     वह     अर्जियाँ     खारिज कर   दे   तो   क्या   करना   होगा   इस   पर   विचार   करें ।   यदि   वह   अर्जियाँ   किंग   तक पहुँचाता  है  तो  हमें  इससे  फायदा  ही  होगा ।  नौसेना  के  सारे  सैनिकों  की  समझ में यह बात आ जाएगी कि हम गुलाम नहीं हैं । बिल्कुल कैप्टेन द्वारा भी किये गए अन्याय  के  विरुद्ध  हम  न्याय  माँग  सकते  हैं; और  इससे  उनका  आत्मसम्मान जागेगा ।’’    दत्त    ने    रिक्वेस्ट्स    के    फ़ायदे बताए ।
‘‘तुम्हें  शायद  पता  नहीं  है,  मगर  तुम्हारी  गिरफ़्तारी  से  भी  सैनिक  चिढ़  गए हैं। अंग्रेज़ों के खिलाफ गुस्सा   उफन   रहा   है   तुम्हें   जिस   दिन   पकड़ा   गया   उसके दूसरे   या   तीसरे   दिन   कराची   के   नौसैनिकों   का   सन्देश   आया   है   कि   कराची   के सारे  नौसैनिक  अपना  धर्म  भूलकर  स्वतन्त्रता  के  लिए  अंग्रेज़ी  हुकूमत  के  ख़िलाफ खड़े होने को तैयार हैं । उन्होंने साफसाफ कह दिया है, कि मुसलमानों के लिए आज़ाद मुल्क की माँग हमारा आपस का प्रश्न है । उसे हम खुद सुलझाएँगे । इसके लिए   तराजू   लेकर   बन्दरबाँट   करने   वाले   बन्दरों   की   हमें   कोई   जरूरत   नहीं   है ।
वे   हमारा   देश   हमें   सौंपकर   यहाँ   से   दफा   हो जाएँ ।’’   खान पलभर को रुका । ‘‘तुम शायद नहीं  जानते  कि  कराची  के  नौसैनिक  कांग्रेसअध्यक्ष  अबुल  कलाम  आज़ाद से  भी  मिल  चुके हैं ।  उन्हें पूरी  परिस्थिति  समझाकर  सैनिकों  की  मन:स्थिति  की कल्पना  दे  दी  है  और  यह  भी  बता  दिया  है  कि  यदि  उन  पर  हो  रहे  अन्याय  नहीं रुके तो नौसैनिक बग़ावत कर देंगे ।’’
‘‘फिर,   आज़ाद ने क्या कहा ?’’   दत्त   ने   पूछा ।
‘‘अरे   वे   क्या   सलाह   देंगे ?!   सब्र   से   काम   लो - बस यही। कांग्रेस के नेता अब  थक  गए  हैं ।’’  जी.  सिंह ने कहा,  ‘‘ठीक कहते हो। वरना वे 1942 के बाद किसी और आन्दोलन का आयोजन कर डालते ।’’    खान    ने    कहा ।
‘‘हम  जाति  और  धर्म  के  आधार  पर  बँटे  हुए  नहीं  हैं ।  आज  हमारे  बीच का मुसलमान कह रहा है कि वह पहले हिन्दुस्तानी है और बाद में मुसलमान है। यह सचमुच में अच्छी बात है । मगर हमारे बीच ऊँचनीच  का  भेद  है,  यह नहीं  भूलना  चाहिए ।  हम  ब्रैंच  के  अनुसार  विभाजित  हो  गए  हैं;  हम  यह  भूल  गए हैं कि यह विभाजन काम को सुचारु रूप से चलाने के लिए किया गया है । हमें इस  अन्तर  को  कम  करना  होगा ।  यदि  हमने  यह  अन्तर  कम  कर  दिया  तो  अन्य सैनिक  दलों  को  एकत्रित  करने  का  नैतिक  अधिकार  हमें  प्राप्त  होगा ।  अन्य  ब्रैंचों के सैनिक भी हमारे ही हैं। जैसेजैसे हम निचली रैंक्स के सैनिकों तक पहुँचेंगे, वैसेवैसे हमें समझ में आएगा कि उनकी हालत हमसे ज़्यादा दयनीय है। हमें उन  तक  पहुँचना  ही  होगा  तभी  हमें  सफलता  मिलेगी ।’’  दत्त  ने  एकता  पर  ज़ोर दिया ।
‘‘उस  दिशा  में  हमारी  कोशिशें  जारी  हैं। हम फोर्ट बैरेक्स  के,  डॉकयार्ड  के, ‘तलवार   के और अन्य जहाजों के सीमेन,   इलेक्ट्रिशियन,   इंजीनियरिंग,   स्टीवर्ड से;  बल्कि मेहतरों का काम करने वाले टोप्स से भी मिले हैं ।   उनकी   समस्याएँ समझ ली हैं । हम संघर्ष करेंगे इन सबकी   समस्याएँ   दूर   करने   के   लिए,   अपने स्वाभिमान  को  बरकरार  रखने  के  लिए। हमें मालूम है कि हमारा स्वाभिमान तभी कायम रहेगा जब अंग्रेज़ इस देश से चले जाएँगे, हमारी समस्याएँ सुलझ जाएँगी और   सही   अर्थ   में   सारे   जहाँ   से   अच्छा   हिन्दोस्ताँ   हमारा   बनेगा ।   खान   सुलग   उठा था । उस अपर्याप्त रोशनी में भी उसकी आँखों के    अंगारे    झुलसा    रहे    थे ।



शनिवार   को   दस   बजे   की Ex.O. की रिक्वेस्ट्स और डिफॉल्टर्स फॉलिन हो चुके थे । ठीक सवा दस बजे लेफ्ट.   कमाण्डर स्नो खट्खट् जूते बजाता रोब से आया ।
लेफ्ट. कमाण्डर स्नो रॉयल इंडियन नेवी का एक समझदार अधिकारी था,   गोराचिट्टा, दुबलापतला । परिस्थिति का   आकलन   करके   व्यूह   रचना   करने   में   स्नो   माहिर   था । आज    भी    वह    मन    ही मन  कुछ हिसाब करके ही आया था ।
स्नो ने आठ लोगों की रिक्वेस्ट्स पर नजर डाली । डिवीजन ऑफिसर स. लेफ्ट.  जेम्स के साथ  फुसफुसाकर  कुछ चर्चा  की  और  आठों  को  एक  साथ  अपने सामने बुलाया ।
‘‘हूँ,   तो कमाण्डर किंग ने तुम्हें गालियाँ दीं । बुरी भाषा  का इस्तेमाल किया ।’’ उसने   पूछा ।
उन    आठों    ने    हाँ    कहते    हुए    सिर    हिला    दिये ।
‘‘किस   परिस्थिति   में,   बैरेक   के   बाहर   महिलासैनिकों   को   कोई छेड़ रहा है,   यह देखकर ही ना ?’’    स्नो    उन्हें    लपेटने    की    कोशिश    कर    रहा    था ।
‘‘बैरेक से बाहर क्या हुआ यह मुझे मालूम नहीं,   मगर उन्होंने बैरेक के भीतर आकर ओछी गालियाँ दीं ।’’    मदन    ने    कहा ।
‘‘क्या    उन्होंने    तुम्हारा    नाम    लेकर    गालियाँ    दीं ?’’    स्नो    ने    पूछा ।
 ‘‘मैं   सामने   था ।   फिर   बगैर   नाम   लिये   ही   सही,   यदि   गालियाँ   दीं   थीं   तो वह दीवार को    तो    नहीं        दी    थीं ।’’    गुरु    ने    जवाब    दिया ।
क्या   तुम   सबका   यही   जवाब   है ?’’   स्नो   ने   शिकारी   बाज   की   तरह   सब पर    नजर    डाली ।    उस    नजर    ने    सबको    सतर्क    कर    दिया ।
‘‘किंग    मेरी    ओर    देख    रहा    था ।’’    मदन    बोला ।
‘‘किंग    मुझ    पर    दौड़ा,’’    खान    ने    जोड़ा ।
स्नो   समझ   गया,   शिकार   हाथ   में   आने   वाला   नहीं ।   उसने   दूसरा   सवाल   पूछा, ‘‘कमाण्डर   किंग   अंग्रेज़   अधिकारी   है,   इसीलिए   तुम   यह   आरोप   लगा   रहे   हो   ना ?’’
‘‘किंग हिन्दुस्तानी अधिकारी भी होता - न केवल जन्म से, बल्कि खून से भी - तो भी हम यही आरोप लगाकर न्याय माँगते!’’    मदन    ने    कहा ।
‘‘हमारे स्वाभिमान को ठेस पहुँचाने वाले की हम शिकायत करते ही करते, उसकी  जाति  का,  धर्म  का  और  रंग  का  विचार    करते  हुए ।’’  गुरु  ने  ज़ोर देकर कहा ।
‘‘ठीक   है। तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस पहुँची है इसलिए तुमने यह शिकायत की है । ठीक है । मेरा एक सुझाव है कि इस तरह से अलगअलग रिक्वेस्ट देने के बदले तुम सब मिलकर एक ही रिक्वेस्ट दो,   जिससे   हमें   निर्णय   लेने   में   आसानी होगी ।’’    स्नो    ने    बड़प्पन    से    कहा ।    स्नो    के    सुझाव    में    जो    खतरा    छिपा    था    वह    सबकी समझ    में        गया ।
‘‘सर,  हमारी  रिक्वेस्ट्स  अलगअलग  हैं,  और  मेरी  आपसे  दरख्वास्त  है  कि आप    हर    अर्जी    पर    अलगअलग    विचार    करें, ‘’   मदन    ने    विनती    की ।
नाक  पर  खिसके  चश्मे  को  ठीक  किये  बिना  ही  उसने  आठों  पर  एक  नज़र डाली   और   अपने   आप   से   बुदबुदाया,   किंग   के   खिलाफ   ये   अर्जियाँ - एक षड्यन्त्र हो सकता है । सेना में सुलगते असन्तोष को देखते हुए इन अर्ज़ियों पर लिये गए निर्णय र्इंधन का  काम करेंगे...  अर्ज़ियों पर टिप्पणी लिखते हुए पलभर को रुका; मगर फिर एक निश्चय से उसने टिप्पणी लिख दी । ‘‘कैप्टेन की ओर निर्णय के लिए प्रेषित’’    और    स्नो    ने    राहत    की    साँस    ली ।
''May I come in, sir?'' किंग ने स्नो की आवाज़ पहचानी,   अख़बार से नज़र हटाए बिना उसने स्नो  को  भीतर  बुलाया,   ''good morning, Snow! Come on, have a seat.''  और वह फिर से अखबार पढ़ने में मगन हो गया ।      
''Sir,  मुझे आपसे  एक  अत्यन्त  महत्त्वपूर्ण  विषय  पर  बात  करनी  है!’’ स्नो की  आवाज  में  गुस्से  के  पुट  को  किंग  ने  महसूस  किया ।  अखबार  को  समेटते  हुए वह  बोला,    ‘‘हुँ,    बोलो!’’
किंग   द्वारा   दिखाई   गई   बेरुखी   से   स्नो   चिढ़   गया   था ।   मगर   अपने   क्रोध पर  काबू करते  हुए  स्नो  ने  सीधे  विषय  पर  आते  हुए  कहा,  ‘‘सर,  आज  मेरे पास आठ रिक्वेस्ट्स आई थीं!’’
‘‘हर   हफ्ते   तुम्हारे   पास   रिक्वेस्ट्स   आती   ही   हैं,   और   तुम्हें   ही   उन   पर   निर्णय लेने    का    अधिकार    है ।’’    किंग    ने    हँसते    हुए    कहा    और    अखबार    एक    ओर    रख दिया ।
‘‘सर,    प्लीज़,  मेरी बात को मज़ाक में न टालिए । आज की रिक्वेस्ट्स हमेशा की  रूटीन  रिक्वेस्ट्स  की  तरह  नहीं  थी ।  वे  आपके  ख़िलाफ  थीं ।  8  तारीख  को  सुबह कम्युनिकेशन सेंटर की बैरेक में आपने जिस भाषा का इस्तेमाल किया था उसके    बारे    में    थी ।’’    स्नो    ने    शान्ति    से    कहा ।
‘‘क्या   कहा ?   शिकायतें,   और   मेरे   खिलाफ ?’’   किंग   गुस्सा   हो   गया ।   ‘‘ये बास्टर्ड्स इंडियन्स अपने     आप     को     समझते     क्या     हैं ?’’     और     उसने     गालियों     की     बौछार शुरू    कर    दी ।
''Sir, we should not lose our temper.'' स्नो किंग को शान्त करने का प्रयत्न कर रहा था । ‘‘मेरा ख़याल है कि हमें ठण्डे दिमाग से इस पर विचार करना चाहिए ।’’
‘‘ठीक  है ।  सारी  रिक्वेस्ट्स  मेरे  पास  भेजो ।  मैं  देख  लूँगा, सालों को । By God, I tell you, I will...them.'' किंग    की    आवा ऊँची हो  गई थी ।
‘‘मैंने   रिक्वेस्ट्स   फॉरवर्ड   कर   दी   है । मेरा ख़याल है कि उन पर निर्णय शीघ्र ही लिया जाए । इसके   लिए   हम   ख़ास  'Requests and Defaulters'  के तहत कार्रवाई  करें ।  यह  सब  पहले  सूझबूझ  से  मिटाएँ ।  परले  सिरे  की  भूमिका न   अपनाएँ ।   इसके   परिणामों   पर   ध्यान   दें,   सर’’   स्नो   ने   किंग   को   सावधान   किया ।
‘‘नहीं ।    मैं    इसके    लिए    विशेष    कुछ    भी    नहीं    करूँगा ।    जो    भी    होगा    रूटीन    के    अनुसार ही  होगा ।  रूटीन  से  बाहर  जाकर  मैं  उन्हें  बेकार  का  महत्त्व  नहीं  दूँगा ।  किंग  ने स्पष्ट    किया ।
‘‘सर, पूरे देश का और सेना का वातावरण बदल रहा है । सुभाषचन्द्र के कर्तृत्व ने और आई.एन.ए.  ने  उनके  मन  में  देशप्रेम  की  भावना  को  और  उनके स्वाभिमान  को  जगा  दिया  है ।  ये  सुलगते  हुए  सैनिक  इकट्ठा  हो  रहे  हैं ।’’  स्नो परिस्थिति को स्पष्ट कर रहा था ।
''Might be elsewhere but not on board Talwar,'' किंग ने घमण्ड से कहा उसके नियन्त्रण वाले जहाज़ पर ऐसा      कुछ नहीं होगा यह झूठा आत्मविश्वास उसे भटका रहा था ।
‘‘सर,   तलवार   पर   भी   नारे...’’   स्नो   ने   वास्तविकता   से   परिचित   कराया ।
‘‘मेरे  समय  में  यदि  नारे  लिखे  भी  गए  हों  तो  आरोपी  पकड़ा  जा  चुका  है यह  मत  भूलो ।’’  स्नो  के वास्तविकता  को  सामने  लाने  से  किंग  चिढ़  गया  था ।
उसकी   आवाज   बुलन्द   हो   गई   थी ।   ‘‘और   परसों,   ट्रान्सपोर्ट   सेन्टर में जो कुछ भी हुआ   उससे   सम्बन्धित   आरोपी   भी   पकड़े   जाएँगे   और   उन्हें   सजा  भी मिलेगी ।’’
स्नो  समझ  गया  कि  किंग  को  गुस्सा    गया  है ।  क्रोधित  किंग  कुछ  भी सुनने,  समझने  को  तैयार  नहीं  होता  यह  बात  वह  अच्छी  तरह  जानता  था ।  उसने कैप पहन ली और उठकर सीधे  दरवाज़े की ओर गया । दरवाज़े पर वह रुका और  किंग से बोला,   ‘‘सर ऐसा न हो  कि मैंने आपको आगाह नहीं किया,    इसीलिए बताने   चला   आया ।   किसी   एक   आर.के.   को   नौसेना   से   निकाल   देना   या   किसी एक    दत्त    को    गिरफ्तार    करना    पर्याप्त    नहीं    है ।    सर,    रात    ख़तरे    की    है!’’
''Thank you very much,'' किंग ने धूर्तता से कहा । मगर  एक  बात ध्यान में रखो, कैप्टेन्स रिक्वेस्ट्स एण्ड डिफॉल्टर्स रूटीन के अनुसार ही सुलझाई जाएँगी ।’’
स्नो  तिलमिलाता  हुआ  किंग  के  दफ्तर  से  बाहर  निकला, ‘मरने दो साले को। ये बुरा फँसेगा,   फँसने दो साले को!’’



‘‘हमारी   रिक्वेस्ट्स   तो   आगे   चली   गई   है ।   अब   देखें   कि   आगे   क्या   होता   है!’’ मदन के  चेहरे  पर  समाधान  था ।  ले.  कमाण्डर स्नो ने उनकी रिक्वेस्ट्स कमाण्डर किंग को भेज दी हैं, इस  बात  का  पता  चलते  ही  उन्हें  ऐसा  लगा  मानो  आधी लड़ाई जीत ली हो ।
‘‘तुम लोग शायद यह सोच रहे हो कि हमने आधी लड़ाई जीत ली है, मगर असल में तो अब लड़ाई की शुरुआत हुई   है!’’   खान   उनको   जमीन   पर   लाने की  कोशिश  कर  रहा  था ।  ‘‘किंग  शायद  हमारी  रिक्वेस्ट्स  पर  ध्यान  ही    दे । शायद  हम  पर  कोई  आरोप  लगाकर  हमें सज़ा दे दे,  उलटेसीधे सवाल पूछे; इसलिए जब  तक  हमें  उसके  सामने    खड़ा  किया  जाए,  तब  तक  यह    समझना  चाहिए कि हमने कुछ हासिल किया है ।‘’
  ‘‘हमें    सोमवार    को    किंग    के    सामने    पेश    नहीं    करेंगे,’’    गुरु    ख़बर    लाया ।
‘‘ऐसा    किस    आधार    पर    कह    रहे    हो ?’’    मदन    ने    पूछा ।
‘‘ये   देखो,   सोमवार   की   डेली   ऑर्डर,   कैप्टेन्स   रिक्वेस्ट्स में हमारे नम्बर   नहीं हैं ।’’   गुरु ने स्पष्ट   किया ।
‘‘इसका    मतलब,    किंग    हमारी    रिक्वेस्ट्स    को,    हमारी    भावनाओं    को    और हमारे स्वाभिमान    को    कौड़ी    के    मौल    तौलता    है ।    उसकी    नजर    में    इसका    कोई    महत्त्व नहीं    है ।    मैं    उस    समय    तुम    लोगों    से    यही    कह    रहा    था ।’’    खान    ने    कहा ।
‘‘फिर    अब    क्या    करें ?’’    दास    ने    पूछा ।
‘‘अब   हम   क्या   कर   सकते   हैं!   गेंद   उनके   पाले   में   है ।’’   खान   ने   कहा ।
‘‘सोमवार को हमें किंग के सामने पेश नहीं किया जाएगा, इसका मतलब है  कि  शुक्रवार  तक  का  समय  हमारे  पास  है,  और  इतने  समय  में  हम  काफी  कुछ कर    सकते    हैं ।’’    मदन    के    चेहरे    पर    मुस्कराहट    थी ।
‘‘ठीक   कहते   हो ।   अगले   सात   दिनों   में   और   चौदह   लोग   हमारी   ही तरह रिक्वेस्ट्स  दें ।  हमारी  रिक्वेस्ट्स  तो  जेम्स  और  स्नो  ने  आगे  बढ़ा  दी  हैं,  इसका मतलब,  इन  चौदह  रिक्वेस्ट्स  को भी  उन्हें  आगे  भेजना  पड़ेगा ।  इससे  किंग  के ऊपर    दबाव    बढ़ेगा ।’’    खान    ने    व्यूह    रचना    स्पष्ट    की ।
‘‘इतना  ही  नहीं,  बल्कि  इस  समयावधि  में  हम  मुम्बई  और  मुम्बई  के  बाहर के   नौसेना   के जहाज़ों और बेस के सैनिकों से सम्पर्क स्थापित करके उन्हें इकट्ठा कर  सकेंगे ।  मुम्बई  के  जहाज़ों  पर  भी  सैनिकों  के  आत्मसम्मान  को  ठेस  पहुँचाने वाली  और  उनके  साथ  सौतेला  बर्ताव  करने  की  घटनाएँ  हुई  हैं । हमें  ऐसे  सैनिकों से मिलकर उन्हें एकजुट होने की अपील करनी चाहिए ।’’ गुरु ने सुझाव दिया ।
गुरु   के   इस   सुझाव   को   सबने   मान   लिया   और   यह   तय   किया   कि   उनमें से  दो  लोग  बैरेक  में  रुकेंगे  और  बाकी  लोग  दोदो  के  गुटों  में  एकएक  जहाज़  पर जाकर सैनिकों से सम्पर्क स्थापित    करेंगे ।
‘‘अभी  कुछ  ही  देर  पहले  पंजाब  का  रणधावा  मिला  था ।  कल  पंजाबमें  इलेक्ट्रिशियन  दबिर  ने  उन्हें  दिए  जाने  वाले  खराब  भोजन  के  बारे  में  मेस  में ही ऑफिसर ऑफ दि डे से शिकायत की । शिकायत   दूर   करने   के   बदले   ऑफिसर दबिर     को     ही     डाँटने     लगा,     इस     पर     भूखे     दबिर     का     दिमाग     घूम     गया     और     वह     ऑफिसर पर  दौड़  पड़ा ।  उसे  गिरफ्तार  करके  सेल  में  डाल  दिया  गया  है ।  मेरा  ख़याल  है कि   हमें   वहाँ   के   सैनिकों   से   मिलकर   समर्थन   देना   चाहिए,’’   गुरु   ने   अपनी   राय दी ।
 ‘‘अरे,  हम  इन  सबसे  मिलने  के  बारे  में  सोच  रहे  हैं ।  क्यों  ना  शेरसिंह  से भी मिल लें ?’’    दास    ने    सुझाव    दिया ।
‘‘वे मुम्बई में नहीं हैं ।’’ खान ने जानकारी दी । 

जब से मदन, खान, गुरु, दास  वगैरह  ने  फ्लैग  ऑफिसर,  बॉम्बे  से  मिलने  के  बारे  में  अर्जियाँ  दी  थीं,  तब से  कम्युनिकेशन  बैरेक्स  के  भीतर  का  वातावरण  ही  बदल  गया  था ।  सैनिकों  के मन का डर भाग गया था । वे समझ गए थे कि वे गुलाम नहीं हैं, और अन्याय का   विरोध   करना   उनका   अधिकार   है । आज़ाद हिन्दुस्तानी ऐसा कर रहे हैं इसलिए न  केवल  मन  में  उनके  प्रति  तारीफ  की  भावना  थी,  बल्कि  उनका  साथ  देने  की भी मन ही मन तैयारी हो चुकी थी ।      हाँ,      बोस      जैसे      एकदो      व्यक्ति      इसका      अपवाद         थे ।



‘‘हमें तुम्हारी कोरी सहानुभूति की जरूरत नहीं है,’’ गुरु नर्मदासे मिलने आए सैनिकों से कह रहा था । ‘‘हमें ऐसी भलमनसाहत की जरूरत नहीं है कि किसी को तो हमारी कठिनाइयों   के   बारे   में,   हमारे   साथ   किये   जा   रहे   बर्ताव   के   बारे में    आवाज    उठानी    चाहिए    थी,    चलो    हम    ही    यह    कर    देते    हैं ।’’
‘‘अरे,  ये  हमारी  कोरी  सहानुभूति  नहीं  है ।’’  नर्मदा  के  असलम  खान  ने कहा । ‘‘शायद तुम्हें मालूम नहीं है । नर्मदाके हम कुछ सैनिक नारे लिखते हैं, पोस्टर्स चिपकाते हैं; मगर जैसे ही उन्हें पता चलता है - नारे मिटा दिए जाते हैं, पोस्टर्स   फाड़   दिए   जाते   हैं । वहाँ के अफ़सर गुस्सा ही नहीं होते । जो कुछ भी तुम लोग    कर    रहे    हो,    उसमें    हम    पूरी    तरह    तुम्हारे    साथ    हैं ।’’
‘‘हमें  तुम  सभी  का  साथ  चाहिए  और  उसी  विश्वास  के  बलबूते  पर  ही  हम अंग्रेज़ों के खिलाफ ताल ठोकते हुए खड़े रहने की कोशिश कर रहे हैं । यदि सारे नौदल भी अंग्रेज़ों के खिलाफ खड़े हो जाएँ तो अंग्रेज़ पलभर भी यहाँ ठहर नहीं पाएँगे । मुट्ठी भर लोगों का विद्रोह वे  आसानी से दबा देंगे । इसलिए हमें तुम सबका साथ    चाहिए, ’’    गुरु    ने    कहा ।
‘‘अंग्रेज़  अधिकारी  हमसे  भी  बड़ी  मगरूरी  से  पेश  आते  हैं ।  हमेशा  गालियाँ देते हैं, अपमान करते हैं । हमें भी तुम लोगों की तरह रिक्वेस्ट्स करनी हैं, मगर पहले  यह  देखने  वाले  हैं  कि  तुम  लोगों  की  रिक्वेस्ट्स  का  क्या  हश्र  होता  है ।’’ असलम    ने    जानकारी    दी ।
मदन पंजाबके सैनिकों से मिलने पहुँचा । वह सीधे इलेक्ट्रिशियन ब्रान्च की मेस में पहुँचा । मुल्ला सामने ही बैठा    था ।
 ‘‘दबिर कैसा है?’’  मदन    के    इस    प्रश्न    को    सुनते    ही    मेस    में    उपस्थित    पाँचछह लोग    मदन    के    पास    आए ।
‘‘अभी  सेल  में  है ।  अभी  कैप्टेन  के  सामने  पेश  होना  बाकी  है,  मगर  निर्णय हो   चुका   है ।   दोचार   महीनों   का   सश्रम   कारावास   और   नौसेना   से   निष्कासन ।’’
मुल्ला की आवाज़ में निराशा थी ।
‘‘एकदो   लोगों   को   नौसेना   से   निकाल   देने   से   समस्या   हल   नहीं   होगी,   बल्कि और    बढ़ती जाएगी ।’’    मदन    का    अनुमान    था ।
‘‘तुम ठीक कह रहे हो । आज हममें से हर कोई बेचैन है । उनके मन में एक ही सवाल उठ रहा है: क्या हम गुलाम हैं, या बेगार हैं ?’’ मुल्ला के शब्दों से चिढ़ प्रकट हो रही थी । ‘‘हमारे यहाँ हर सैनिक सरकार का विरोध करने के लिए तैयार   है ।   ज्यादा   से   ज्यादा   क्या   करेंगे ?   विद्रोही   कहकर   गोलियों   से   भून देंगे ? भूनने दो गोलियों से! इस लाचार ज़िन्दगी से तो सम्मान की मौत अच्छी है । जन्म लेकर मातृभूमि की स्वतन्त्रता    के    लिए    कुछ    कर    गुजरने    की    तसल्ली    तो मिलेगी ।’’
‘‘अरे,   खानेपीने   की   चीजों   की   यदि   कमी   है तो  इसमें   हमारा   क्या   दोष है ?  तुम  राज  कर  रहे  हो  तो  बाँटो  दानापानी!  मँगाओ  विदेशों  से,’’  पास  ही  बैठा महेन्द्रनाथ बोला,    ‘‘इन गोरे अधिकारियों और सैनिकों के राशन में तो कोई कटौती नहीं  है,  कटौती  है  तो  सिर्फ  हम  हिन्दुस्तानी  सैनिकों  के  राशन  में ।  खाना  पूरा  देते नहीं,  उससे  ठीक  से  पेट  भी  नहीं  भरता,  और  यदि  इस  बात  की  शिकायत  करो तो   जवाब   मिलता   है,   ऑपरेशन   करवा   के   अपनी   आँत   छोटी   करवा   लो   जिससे पेट भर जाएगा ।’’    महेन्द्रनाथ तिलमिलाकर बोल रहा था ।
‘‘तुम्हारे गुस्से को मैं समझ रहा हूँ । हमें इसके विरुद्ध खड़ा होना ही चाहिए । हम तलवार  के  सैनिक  तुम्हारे  साथ  हैं ।  हम  अगर  एकजुट  होकर  इस  सरकार का    विरोध    करेंगे    तभी    कुछ    फायदा    होगा ।    मुट्ठीभर    लोगों    का    विद्रोह    सरकार    फौरन दबा   देगी,’’   मदन   ने   कहा ।   ‘‘कल   हम   सभी   जहाजों   के   सभी   क्रोधित   सैनिकों की  मीटिंग  आयोजित  कर  रहे  हंै ।  वहाँ  इन  विभिन्न  घटनाओं  पर  विचार  करके अगला   कार्यक्रम   निश्चित   होगा ।   समय   और   स्थान   के   बारे   में   हम   कल   सूचना देंगे ।’’
‘‘हम    इस    मीटिंग    में    जरूर    आएँगे,’’    मुल्ला    ने    वादा    किया ।




शनिवार   रात   को   मदन,   गुरु,   खान,   दास   एवं   अन्य   ज़ा   हिन्दुस्तानी   सैनिक हमेशा    के    संकेत    स्थल    पर    इकट्ठा    हुए    थे ।    विभिन्न    जहाज़ों    पर    होकर    आए    सैनिकों ने   अपने   अनुभवों   के   बारे   में   बताया,   अपनी   राय   दी ।   गुरु   ने   उससे   मिलने   के लिए    आये    हुए    सैनिकों    के    बारे    में    अपनी    राय    दी ।
‘‘इन  अलगअलग  अनुभवों  के  बारे  में  सुनने  के  बाद  मुझे  ऐसा  लग  रहा है   कि   वातावरण   खूब तप   रहा   है ।   यदि   हम   एकजुट   हो   गए   तो   विद्रोह   सफ़ल होगा ।  हम  सबको  संगठित होना  होगा ।  मैं  यह  सुझाव  देता  हूँ  कि  अलगअलग जहाजों  के  प्रतिनिधियों  की  कल  एक  मीटिंग  बुलाई  जाए ।’’  खान  की  इस  राय से सब    सहमत    हो    गए ।



सुबह      के      आठ      बजे      थे ।      फोरनूनवॉच      वाले      सैनिक      कम्युनिकेशन      सेंटर      में      अपनीअपनी ड्यूटी    पर        चुके    थे ।
''Any thing Pending, George?" खान ने  मॉर्निंगवॉच के क्रिप्टो लीडिंग से चार्ज लेते हुए पूछा ।
''You, bloody Indian, address me as leading signalman George, and not just George. I am not your domestic servant, understand?'' जॉर्ज    गुर्राया ।
खान  को  जॉर्ज  पर  गुस्सा    गया ।  वह  और  जॉर्ज  करीबकरीब  एक  ही उम्र के थे,   उनकी   रैंक्स   भी   एक   ही   थी - लीडिंग   सिग्नलमैन   खान   जॉर्ज   से   दोचार महीने   सीनियर   ही   था ।   मगर   गोरे   जॉर्ज   को   इस   सबसे   कुछ   लेनादेना   ही   नहीं था । उसे बस एक ही बात मालूम थी - वह    शासक    वर्ग    का    है ।
खान     ने     अपने     गुस्से     को     रोकते     हुए     फिर     से     हँसकर     पूछा,                       ''Leading signalman, George, is there anything pending?''
''That's better,'' जॉर्ज खुश हो गया । ‘‘डेढ़ सौ ग्रुप का एक typex message decode करना है । मैंने  handing  over में दर्ज कर दिया है,’’ और जवाब    की    राह        देखते    हुए    जॉर्ज    निकल    गया ।
खान  ने  पहले  छोटेछोटे  रूटीन  मेसेज  डीकोड  किये ।  बाहर  भेजे  जाने  वाले मेसेज  अनकोड  करके  रूट  कर  दिये ।  दस  बज  गए  थे ।  ट्रैफिक  कम  हो  गया  था ।
‘‘खान,    तू  जाने    से    पहले    वह    बड़ा    मेसेज    डीकोड    करके    देना ।’’    ड्यूटी    योमन स्मिथ बाहर से ही चिल्लाया ।
''Yes, yeo I shall.'' खान   ने   जवाब   दिया   और   वह   उस   मेसेज   को   डीकोड करने    लगा ।
उसने  टाइपेक्स  मशीन  को  सेट  किया  और  उस  मेसेज  के  ग्रुप्स  टाइप  करने लगा ।   दस   ग्रुप्स टाइप करने के बाद उसने मेसेज देखा । पहले दो अक्षर थे - आर.एम. -  खान समझ गया कि मेसेज रोमन-मलयालम में है,   मतलब आज़ाद हिन्दुस्तानी का है। उसने नायर को बुलाया ।
‘‘मैं  मेसेज  डीकोड  करता  हूँ ।  तू  झट  से  उसका  तर्जुमा  करके  लिख  ले ।’’
पन्द्रहबीस    मिनट    में    मेसेज    डीकोड    हो    गया ।
‘‘योमन  स्मिथ,  मेसेज  करप्ट  है ।  पाँचछह  बार  कोशिश  की  मगर  सब  कुछ लैटिनग्रीक    ही        रहा    है ।’’
योमन  स्मिथ  क्रिप्टो  ऑफिस  में  आया ।  उसने  डिक्रिप्ट  किया  हुआ  मेसेज देखा ।   उसकी   समझ में   कुछ   भी   नहीं   आया ।   उसने   टाइपेक्स   मशीन   की   जाँच की और पन्द्रहबीस मिनट बाद खान से कहा, ''All right, send a message to Hugli that your 091545 is undecipherable.''
‘‘आल   राइट,   योमन ।’’   खान   ने   चिल्लाकर   जवाब   दिया   और Hugli के लिए    मेसेज    तैयार    कर    दिया ।
नायर  के  लिखे  हुए  सन्देश  को  उसने  दोचार  बार  एकाग्रता  से  पढ़ा  और काग़ज    के    बारीकबारीक    टुकड़े    करके    डस्टबिन    में    डाल    दिये ।
''What is this, Khan?'' नायर   ने   पूछा ।
‘‘अरे कोई भी सुबूत पीछे नहीं छोड़ना चाहिए । मेसेज तीनचार बार पढ़ा तो  याद  हो  गया ।  अब  उस  काग़ज  की  क्या  जरूरत ?’’  खान  ने  हँसते  हुए  जवाब दिया ।
‘‘हुगली    के    सैनिक    बिफर    गए    हैं ।’’    खान    उस    रात    को    ज़ाद हिन्दुस्तानियों को  बता  रहा  था ।  ‘‘ख़राब  खाने  के  बारे  में  एबल  सीमन  राजपाल  ने  ऑफिसर ऑफ   दि   डे   से   शिकायत   की ।   शिकायत   सुनकर   कार्रवाई   करने   के   बदले   उसने राजपाल   को   ही   डाँटा   और   उसे   गालियाँ   दीं ।   गरम   दिमाग   वाले   राजपाल   से ये गालीगलौज  बर्दाश्त  नहीं  हुई  और  वह  ऑफिसर  ऑफ  दि  डे  से  हाथापाई  करने लगा ।   नतीजा   वही   हुआ   जो   होना   चाहिए ।   उसे   कैप्टेन   के   सामने   खड़ा   किया   गया और सज़ा सुना दी गई ।’’
‘‘इसमें खास बात क्या है?    वह तो होनी ही थी!’’   मदन ने कहा ।
‘‘राजपाल   ने   सजा   तो   मंजूर   कर   ली,   मगर उसने यह माँग की कि उसे दी जाने वाली शारीरिक सज़ा सिविलियन्स के सामने न दी जाए,’’ खान समझा रहा   था,   ‘‘तुम्हें   मालूम   है,   हुगली   के   परेड   ग्राउण्ड   के   पास   फैमिली   क्वार्टर्स   हैं । वहाँ   रहने   वालों   को   परेड   ग्राउण्ड   के   पास   से   ही   आनाजाना पड़ता है । दोपहर  को  चार  बजे  से  छह  बजे  तक  जब  राजपाल  शारीरिक  शिक्षा  भुगत  रहा था  तो  सैनिकों  के  परिवार  वाले  देखते  और  राजपाल  को  यह  अपमानजनक  प्रतीत हो  रहा  था ।  इसलिए  उसने  प्रार्थना  की  कि  इस  सजा  की  जगह  बदल  दी  जाए, मगर   उसे   खारिज   कर   दिया   गया ।   उसे   सख्ती   से   परेड   ग्राउण्ड   पर   लाया   गया और फ्रॉगजम्प का,    क्रॉलिंग    का    और    डबल    मार्च    का    हुक्म    दिया    गया ।    मगर उसने   एक   भी   ऑर्डर   का   पालन   नहीं   किया ।   तब   गोरे   सैनिकों   ने   उसे   बेहोश   होकर ज़मीन पर गिर जाने तक मारा ।’’
खान    के    स्पष्टीकरण    से    सभी    सन्न    हो    गए ।
‘‘हुगली   के   सारे   सैनिक   चिढ़   गए   हैं ।   उन्होंने   माँग   की   थी   कि   राजपाल के   साथ   मारपीट   करने   वाले   नेवलपुलिस   को   सज़ा दी जाए,   मगर उनकी माँग ठुकरा दी गई । उन्होंने हमसे मदद और हमारी राय माँगी    है ।’’
‘‘हम यहाँ से उनकी कैसी और किस तरह से मदद कर सकते हैं ?’’ गुरु ने   पूछा ।
‘‘हम   तुम्हारे   साथ   हैं,   ये   कहना   ही   उनके   लिए   सबसे   बड़ी   मदद   होगी । उन्हें यह बात जान लेनी चाहिए कि वे अकेले नहीं हैं ।’’ मदन ने सुझाव दिया ।
‘‘उन्हें दत्त की गिरफ्तारी के बारे में भी पता चल ही गया होगा और इसीलिए हमारी ओर से क्या कार्रवाई होगी इस दृष्टि से हमारी सलाह पूछी होगी । हमारी कार्रवाई उनकी कार्रवाई की पूरक होनी चाहिए ।’’    गुरु    ने    कहा ।
‘‘सिर्फ   तलवार   के   ही   सैनिक   बेचैन   नहीं   हैं,   बल्कि   पूरे   देश   के   सैनिक गुस्से  में  हैं । अब  हमें  इस  बात  पर  विचार  करना  चाहिए  कि  हमारी  कार्रवाईयों में एकसूत्रता किस प्रकार लाई जाए । यदि हम   एकजुट   हो   गए,   सबने   एकदम पूरे   देशभर   में   बग़ावत कर   दी   तो   अंग्रेज़ों   को   छिपने   के   लिए   जगह   भी   नहीं   मिलेगी और  उन्हें  फ़ौरन  देश  छोड़ना  पड़ेगा ।’’  जी.  सिंह  ने फ़ौरन कार्रवाई करने  पर  ज़ोर दिया ।
‘‘मगर  हमने  अभी  यह  कहाँ  तय  किया  है  कि  कार्रवाई  अथवा  विद्रोह  कब करना है ?   ये कब तय करने वाले हैं?’’    दास    ने    पूछा ।
‘‘मेरा   ख़याल है कि परिस्थिति की मार से यह सब अपने आप हो जाएगा । इस   प्रकार   की   स्वयंप्रेरित   कार्रवाई   ही   सफल   होगी,   क्योंकि   वह   पूरे   दिल   से  हो रही   होगी । हमें परिस्थिति की कठोरता को बढ़ाने का काम करना चाहिए ।’’   खान ने   स्पष्ट   किया ।
‘‘फिर    हुगली    के    सैनिकों    से    क्या    कहना    चाहिए ?’’    गुरु    ने    पूछा ।
‘‘मेरा  ख़याल  है  कि  हम  तुम्हारे  पीछे  हैं ।  कार्रवाई  के  लिए  हमारे  सन्देश की  प्रतीक्षा  करो  इतना  ही  कहा  जाए ।’’  मदन  ने  सुझाव  दिया  जो  सबको  पसन्द आ  गया।
सुबह  चार  से  आठ  वाली  ड्यूटी  के  दौरान  इस  सन्देश  को  भेजने  की ज़िम्मेदारी भी मदन ने ही स्वयं पर ले ली ।



11 तारीख को मुम्बई में उपस्थित जहाज़ों और बेसेस पर शाम की सभा की सूचना भेज दी गई; और शाम को   पाँच   बजे   कुलाबा   के   निकट   के   किनारे   से लगी एक कपार में हर जहाज़  और हर बेस के सैनिक    अलगअलग मार्गों से आकर इकट्ठा हो गए ।
‘‘दोस्तो,   हमारी   समस्याएँ   अलगअलग   होते   हुए   भी   उन्हें   सुलझाने   का   मार्ग तथा उद्देश्य   एक   ही   है ।   मार्ग   है - विद्रोह का; और उद्देश्य - सम्पूर्ण स्वतन्त्रता का । आज   तक   हम   लड़ते   रहे   अंग्रेज़ों   के   लिए,   उनके   साम्राज्य   को   कायम   रखने के लिए ।  मगर  आज  हमें  लड़ना  है हिन्दुस्तान  की  स्वतन्त्रता  के  लिए ।  हमारे  ही  बल पर  अंग्रेज़  इस  देश  पर  राज  कर  रहे  हैं ।  उनका  यह  आधार  ही  हमें  उखाड़  फेंकना है । हमें अंग्रेज़ों के ख़िलाफ,  अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ विद्रोह    करना    है ।’’
खान की बात से वहाँ एकत्रित सैनिकों के मन में उफ़न रहे तूफ़ान ने ज़ोर पकड़ लिया ।
‘‘    तलवार   के   सैनिकों   ने   पिछले   तीन   महीनों   से   अंग्रेज़ी   सरकार   के   विरुद्ध आन्दोलन    छेड़    दिया    है ।    इसके    लिए    हम    विभिन्न    मार्ग    अपना    रहे    हैं,    इस    आन्दोलन में   हमें   आपका   साथ   चाहिए,   क्योंकि   कामयाबी   की   ओर   ले   जाने   वाला   रास्ता आपके  सहयोग  से  ही  होकर  गुज़रता  है।  ये  अंग्रेज़ी  सरकार  हमारे  साथ  गुलामों की तरह बर्ताव करती है । हमारे साथ किया जा रहा बर्ताव,   हमें मिलने वाला खानासभी  निकृष्ट  एवं  हल्के  दर्जे  का  है ।  युद्धकाल  में  लड़ते  समय  भी  हमारा यही  अनुभव  था ।  रंगभेद  के  दुख  को  हमने  झेला  है ।  रणभूमि  पर  अगर  गोरों  का खून बह रहा था, तो हम हिन्दुस्तानी सैनिकों का क्या पानी था ? अरे, इस युद्ध में विक्टोरिया क्रॉस और अन्य सम्मान प्राप्त सैनिकों की लिस्ट तो देखो । इसमें हिन्दुस्तानी सैनिकों की संख्या  अंग्रेज़ी सैनिकों   की   अपेक्षा   अधिक   है ।   ये   गोरे   किस दृष्टि से हमसे श्रेष्ठ हैं जो हमसे घटिया दर्जे का बर्ताव किया जाता है ?’’
‘‘हमारे नसीब में लिखे ये ब्रेड के टुकड़े!’’   खान ने काग़ज़ में बँधे ब्रेड के  टुकड़े  सबको  दिखाए  जिन्हें  वह  अपने  साथ  लाया  था । ‘’ये  टुकड़े  हमें  सुबह नाश्ते में मिले थे, तुम लोगों को भी मिले होंगे । हमने आज इन टुकड़ों के कीड़े गिने, यूँ ही, मजाक के तौर पर । मालूम है, कितने निकले?  गिनकर पूरे पचास, सर्वाधिक  कीड़ों  की  संख्या  भी  पचहत्तर ।  कितने  दिन  हम  ये  कीड़ों  वाले  ब्रेड  के टुकड़े मुँह में चबाते रहेंगे?    हमारे ही देश    में आकर ये पराए हम पर अन्याय करें ?   और   कितने   दिनों   तक   हम   बर्दाश्त करें ?   और क्यों   बर्दाश्त   करें ?   और   कितने दिनों तक हम नामर्दों की  तरह चुप बैठे रहें ?  हमें    इसका    विरोध    करना    ही चाहिए । वो हम कर रहे हैं । थोड़ेबहुत पैमाने पर कुछ और जहाज़ों पर भी किया जा रहा है । दोस्तों,  ये विरोध करते समय एक  बात  महसूस  हुई  कि  हम  पर  होने  वाले  अन्याय  को  दूर  करने  का  एकमात्र उपाय है अंग्रेज़ों को इस देश से भगा देना। हमें मालूम है कि अंग्रेज़ हमसे ताकतवर हैं,   मगर हम यह भी जानते हैं   कि आज़ादी के प्रेम से सुलग उठे ये मुट्ठीभर दिल भी सिंहासन उलट सकते हैं । स्वतन्त्रता   प्रेम   का   बड़वानल   गुलामी   लादने   वाली   हुकूमत   को   भस्म   कर देगा ।   हमें   एक   होकर   गुलामी लादने   वाली   अंग्रेज़ी   सत्ता   का   विरोध   करना   चाहिए । हमें तुम्हारा     साथ     चाहिए ।     छोटेछोटे     गुटों     में,     अलगअलग     किया   गया विरोध     पर्याप्त नहीं है । इससे हमारे हाथ कुछ भी नहीं लगेगा, ऐसा होगा, मानो पत्थर पर सिर पटक   रहे   हों ।   आजादी   हासिल   करना   और   इज़्ज़त की ज़िन्दगी जीना तो दूर, उल्टे सतर्क हो चुका दुश्मन छोटेछोटे गुटों के आन्दोलन मसल देगा और किस्मत में लिखी होंगी जेल की दीवारें, और अधिक अपमान, और अधिक अत्याचार! इस आग  को  जलाने  के  लिए  हम  एक  हो  जाएँ ।  हमारी  नाल  एक  है,  हमारी  मातृभूमि एक है, माँ के प्रति कर्ज़ भी एक है और उसे चुकाने का एक ही उपाय है और वह है स्वतन्त्रता संग्राम का । चलो,   हम   एक   हो   जाएँ   और   इस   ज़ुल्मी सरकार का तख्ता उलट दें !’’
खान  के  इस  आह्वान  का  परिणाम  बहुत  अच्छा  हुआ ।  वहाँ  एकत्रित  सभी  के  मन  की  भावनाएँ मानो उसने कही थीं ।  दिलों  में  व्याप्त  अकेलेपन  की  भावना को दूर कर दिया था । एक आत्मविश्वास का    निर्माण    किया    था ।
‘‘क्या    करना    है    और    कब    करना    है,    ये    बताइये’’,    कोई    चिल्लाया ।
 ‘‘इस   विद्रोह   में   सबका   सहकार्य   जिस   तरह   महत्त्वपूर्ण   है,   उसी   तरह  यह भी महत्त्वपूर्ण है  कि विद्रोह हर जगह पर हो । कोचीन,  कलकत्ता,  कराची, विशाखापट्टनम आदि बेसेस   से हम सम्पर्क बनाए हुए हैं ।   किंग   के   विरुद्ध   हमने जो    रिक्वेस्ट्स    दी    थी    उनका    परिणाम    आना    अभी    बाकी    है,    दत्त    की    केस  का फ़ैसला होना  भी  बाकी  है ।  इन  दोनों  फ़ैसलों  को  ध्यान  में  रखते  हुए  ही  निश्चित  करेंगे कि विद्रोह कब करना है ।’’    मदन    ने    जवाब    दिया ।
‘‘यदि फैसला एक महीने बाद आया तो?’’   किसी ने पूछा ।
‘‘हम ज्यादा से ज्यादा दस दिन रुकेंगे । इस दौरान हम बारूद जमा करते रहेंगे  और  20  तारीख  के  आसपास  ऐसा  धमाका  करेंगे  कि  शत्रु  के  परखचे  उड़ जाएँ । हमारे संकेत की राह देखो। तो,  हम  यह  मानकर  चलें  कि  आपका  साथ हमें प्राप्त है ?’’  मदन    ने    पूछा ।
‘‘जय हिन्द!’’  मदन के सवाल का जवाब इस नारे से दिया गया ।
मीटिंग को प्राप्त हुई सफ़लता से सभी आज़ाद हिन्दुस्तानी खुश थे ।



सोमवार   को   सुबह   सवा   आठ   बजे   इन्क्वायरी   कमेटी   के   सदस्य   इन्क्वायरी   रूम में  अपनी जगह  पर  बैठ  गए  तो  स. लेफ्टिनेंट  नन्दा  ने  एडमिरल  कोलिन्स  के  हाथ में एक सील बन्द लिफाफा देते हुए कहा, ‘‘सर, आज सुबह ही कूरियर से यह लिफ़ाफ़ा दिल्ली से आया है ।’’
कोलिन्स ने लिफ़ाफ़ा खोला और भीतर रखे खत को पढ़ा,    ''well, friends!  दिल्ली से लॉर्ड ववेल का सन्देश आया है, दत्त के प्रकरण को हमें शनिवार तक ख़त्म   करना   है ।’’
‘‘मगर, सर, अभीअभी तो पूछताछ शुरू ही हुई है और इसे पूरा होने में कम से कम पन्द्रहबीस दिन तो लग ही जाएँगे ।’’    यादव    ने    कहा ।
‘‘इसमें  हेडक्वार्टर  का  कोई  खास  उद्देश्य  होगा ।’’  पार्कर  ने  टिप्पणी  की ।
‘‘सही है । दत्त के केस को लम्बे समय तक खींचकर सैनिकों के बीच बेचैनी बढ़ने नहीं देना है । चारपाँच दिनों में यह भी बतला दिया जाएगा कि उसे क्या सज़ा दी जानी है ।‘’ कोलिन्स ने बतलाया ।
''March on the accused!'' खन्ना ने सन्तरियों को हुक्म दिया । दत्त इन्क्वायरी रूम में आया और रोब से कुर्सी    पर बैठ गया ।
यादव ने सवाल पूछना आरम्भ किया, ‘‘बर्मा में 15 मार्च ’44 में आज़ाद हिन्द सेना के किस सैनिक से मिले थे ?’’
‘‘किसी से नहीं ।’’
‘‘फिर तुमने डायरी में ये नाम किसके लिखे हैं?’’    पार्कर ने पूछा ।
‘‘याद नहीं ।’’
‘‘दिमाग पर थोड़ा ज़ोर डालो! यादव ने फरमाया । 
‘‘मेरा दिमाग कोई मशीन नहीं है । जो मुझे याद आएगा,   वही मैं   बताऊँगा ।’’    दत्त    ने    चिढ़कर    कहा ।
चाय    के    लिए    अवकाश    के    समय    दत्त    को    बाहर    गया    देखकर    पार्कर    ने    सुझाव दिया,  ‘‘यदि  उसे  क्या  सजा  दी  जाए  इस  बारे  में  हमें  सूचित  किया  जाने वाला हो तो हम क्यों बेकार में मगजमारी करें ? आसानी से जो मिल जाए वही जानकारी इकट्ठा कर लें ।’’
पार्कर के सुझाव से सभी सहमत हो गए और पूछताछ का नाटक आगे चलता रहा ।


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Vadvanal - 23

  ‘‘ कल की मीटिंग में अनेक जहाज़ों और नाविक तलों के प्रतिनिधि उपस्थित नहीं थे। उनकी जानकारी के लिए ; और कोचीन , कलकत्ता , कराची , ...