शनिवार, 10 मार्च 2018

Vadvanal - 10




‘‘हमें शेरसिंह के कथनानुसार काम करना चाहिए,   सैनिकों का मनोबल बढ़ाना होगा । किंग का घमण्ड चूर करना    होगा ।’’    मदन    ने    कहा ।
‘‘फ़िलहाल किंग जीत के नशे में घूम रहा है और इसी नशे में उसने बैरेक्स के सामने वाले तीव्र प्रकाश वाले बल्बों की संख्या कम कर दी है । पहरेदारों की संख्या भी घटा दी है । गोरे अधिकारी थोड़े निश्चिन्त हो गए हैं,    उनकी    नींद    उड़ानी ही   होगी ।’’   गुरु   ने   कहा ।
‘‘हमें गोरों को छेड़ते रहना होगा जिससे वे चिढ़ जाएँगे । क्रोध में आदमी का सन्तुलन बिगड़ जाता है और उसके हाथ से गलतियाँ होने लगती हैं । इन्ही गलतियों का फ़ायदा हमें उठाना है ।’’    मदन ने सुझाव दिया ।
‘‘करना क्या होगा?’’  दास ने पूछा ।
‘‘यही  निश्चित  करना  है’’,  मदन  कहता  रहा,  ‘‘क्या  करना  चाहिए  यह  तय करने  के  लिए  हमें  बेस  की  स्थिति  का  जायजा  लेना  होगा ।  यह  देखना  है  कि किस   स्थान   पर   पहरा   कमजोर   है   और   वहीं   हम   नारे   लिखेंगे,   पोस्टर्स चिपकाएँगे ।’’
मदन का यह विचार सबको पसन्द आ गया । यह तय किया गया कि कल पूरे दिन बेस का निरीक्षण किया जाए और रात को इकट्ठे होकर चर्चा की जाए ।
‘‘मेरा  ख़याल  है  कि  वेहिकल  डिपो  को  हम  अपना  निशाना  बनाएँ,  क्योंकि वेहिकल डिपो एक ओर,   कोने में है। सनसेट के बाद वहाँ केवल एक सन्तरी के अलावा कोई पंछी भी नहीं आता । रात बारह बजे के बाद अधिकांश सन्तरी किसी ट्रक में लम्बी तानकर सो जाते हैं । इन ट्रकों को हम अपना लक्ष्य बनाएँगे ।’’
‘‘यदि ट्रकों पर नारे लिख दिये जाएँ और ये ट्रक भली सुबह बाहर निकल पड़ें तो हंगामा हो जाएगा।!’’    मदन    खुशी    से    चहका ।
मदन, गुरु और दास ने ट्रकों पर नारे लिखने की जिम्मेदारी ली। रात के करीब एक बजे तीनों वेहिकल डिपो गये। डिपो   में   चार   ट्रक   और   एक   स्टाफ कार  खड़ी  थी ।  डिपो  के  परिसर  में  खास  रोशनी  नहीं  थी ।  रात  वाला  सन्तरी  एक ट्रक में मीठी नींद ले रहा था । पन्द्रह मिनट में ही सभी वाहनों पर नारे लिखकर ये तीनों बाहर आ गए।



इन   नारे   लिखे   ट्रकों   में   से   एक   ट्रक   सुबह   चार   बजे   फ्रेश   राशन   लाने  के लिए बाहर  निकला,  अपने  ऊपर  लिखे  देशप्रेम  के  नारों  को  प्रदर्शित  करते  हुए ।  सैनिकों के दिलों में व्याप्त    देशभक्ति और गुलामी के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए वह ट्रक कुलाबा से होकर कुर्ला  आ गया । कुर्ला के डिपो में पहुँचने पर स्टोरअसिस्टेन्ट और ड्राइवर के ध्यान में यह बात आ गई कि ट्रक पर नारे लिखे हैं,   मगर वे वहाँ    पर    कुछ    नहीं    कर    सकते    थे ।



''Commander King speaking!'' कमाण्डर  किंग  गुस्से  में  टेलिफोन  पर  चीख रहा  था ।  सुबह  साढ़े  सात  बजे  दरवाजे  के  सामने  पहुँचने  वाली  स्टाफ  कार  का आज  पौने  आठ  बजने  पर  भी  कहीं  अतापता  नहीं  था ।  समय  के  पाबन्द  किंग को    गुस्सा    आना    लाजमी    था ।
‘‘मैं    ट्रान्सपोर्ट    ऑफिसर... ’’
''Oh, hell with you! स्टाफ   कार   को   देर   क्यों   हो   गई ?’’
‘‘सर,    स्टाफ    कार    में    थोड़ी    प्रॉब्लम    है ।’’
‘‘क्या हुआ ?   कल रात नौ बजे तक तो बिलकुल ठीक थी और यदि बिगड़ गई  है तो क्या तुम सुबह ही चेक करके  उसे  ठीक  नहीं  कर  सकते  थे ?’’  क्रोधित किंग सवाल दागे जा रहा था ।
‘‘सर,    वैसे    तो    कार    ठीक    है ।    थोड़ासा    रंग    देना... ’’
‘‘मैंने तुम्हें स्टाफ कार को रंग देने के लिए नहीं कहा था,  फिर इतने आननफानन में यह काम क्यों निकाला ?’’
‘‘सर...’’  जवाब  देने  वाला  घबरा  रहा  था ।  किसी  तरह  हिम्मत  करके  उसने कह दिया,   ‘‘रात को किसी     ने कार पर नारे लिख दिये  थे,   उन्हें मिटाने के  लिए... ’’
''Bastards are challenging me!'' वह क्रोध से चीखा । ‘‘कमाण्डर किंग क्या चीज़ है,  ये उन्हें मालूम नहीं है । मैं उन्हें अच्छा सबक सिखाऊँगा । रात के  सन्तरियों  की  लिस्ट  भेजो  मेरे  पास ।’’  किंग कुड़बुड़ाते  हुए  पैदल  ही  ऑफिस के लिए  निकल ही रहा था कि उसका फोन फिर बजने लगा ।
‘‘कमाण्डर    किंग ।’’
‘‘सर,   ऑफिसर   ऑफ   दि   डे   स्पीकिंग,   सर,   थोड़ीसी   गड़बड़   हो   गई   है । आज     सुबह     फ्रेश     राशन     लाने     के     लिए     जो     ट्रक     बाहर     गया     था,   उस     पर     आन्दोलनकारी सैनिकों    ने    नारे    लिख    डाले    थे ।’’    घबराते    हुए    ऑफिसर    ऑफ    दि    डे    ने    कहा ।
‘‘जब   ट्रक   बाहर   निकला,   तब   तुम   सारे   के   सारे   क्या   सो   रहे थे ?   ड्यूटी पर   तैनात सभी   सैनिकों   की   लिस्ट   मुझे   चाहिए   और   आज   ही   उन्हें   मेरे   सामने पेश    करो ।’’    गुस्से    से    पागल    किंग    ने    ऑफिसर    ऑफ    दि    डे    को    धमकाया ।
यह किंग के लिए आह्वान था । सुबहसुबह ही वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठा था । उसका अनुमान गलत   साबित   हुआ   था ।   दत्त   अकेला   नहीं   था ।
कौन हो सकता है उसके साथ?  क्वार्टर मास्टर,  मेन गेट का सन्तरी,   स्टोरअसिस्टेन्ट या कोई और?’  इस सवाल का जवाब ढूँढ़ने की वह कोशिश कर रहा था । अँधेरे में इस तरह टटोलना उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था । रात वाले तीन ट्रान्सपोर्ट सन्तरी,   सुबह ड्यूटी वाला क्वार्टर मास्टर,   मेन गेट सन्तरी,   ट्रक के साथ गया स्टोरअसिस्टेन्ट,  ड्राइवर  सभी  को  सजा  देनी  होगी ।  उसने  मन  ही  मन  निश्चय किया ।
किंग  अपने  ऑफिस  पहुँचा  तो  टेलिफोन  ऑपरेटर  ने  उसे  सूचित  किया  कि एडमिरल रॉटरे उससे बात  करना चाहते हैं ।
''Good morning, Sir! Commander King here.'' किंग की न केवल आवाज़,  बल्कि उसका चेहरा भी गिर गया था।
''Good morning, Commander King. तलवार  पर जो कुछ भी हो रहा है, वह ठीक नहीं है । अगर तुम बेसपर कंट्रोल नहीं रख सकते तो मुझस कहो । मैं किसी और को...’’ रॉटरे मीठे शब्दों में किंग की खिंचाई कर रहा था ।
‘‘नहीं,  नहीं  सर,  हालत  पूरी  तरह  मेरे  नियन्त्रण  में  है ।  मैंने  कल्प्रिटस  को ढूँढ़ने  की  कोशिश  शुरू कर  दी  है  और  मुझे  पूरा  विश्वास  है  कि  आठदस  दिनों  में उन्हें    जरूर    पकड़    लूँगा ।’’    कमाण्डर किंग रॉटरे को आश्वासन दे रहा था ।
''Now no more chance for you. अगर 16 तारीख तक तुमने गुनहगारों को गिरफ़्तार नहीं किया तो...’’  रॉटरे ने    धमकी दी ।
किंग   ने   रिसीवर   नीचे   रखा ।   उसका   गला   सूख   गया   था ।   एक   गिलास   पानी गटगट पी   जाने   के   बाद   वह   कुछ   सँभला   उसने   पाइप   सुलगाया,   दोचार   गहरेगहरे कश  लिये  और  भस्स,  करके  धुआँ  बाहर  छोड़ा,  उसे  कुछ  आराम  महसूस  हुआ । आँखें    मींचकर    वह    ख़ामोश    कुर्सी    पर    बैठा    रहा ।
‘‘नहीं,   गुस्सा   करने   से,   चिड़चिड़ाहट   से   कुछ   भी   हासिल   होने   वाला   नहीं है ।  सब्र  से  काम लेना  होगा ।  दत्त  के  पेट  में  घुसना  होगा ।  वो  शायद...’’  किंग के भीतर छिपे धूर्त सियार ने अपना सिर    बाहर निकाला ।



''March on the accused.'' 5 तारीख   को   सुबह   साढ़े   आठ   के   घंटे   पर   कोलिन्स ने सन्तरियों को    आज्ञा    दी    और    दत्त    को    इन्क्वायरी    रूम    में    लाया    गया ।
‘‘तुमने जिन सुविधाओं की माँग की थी वे तुम्हें दी जा रही हैं ना ?’’     पूछताछ आरम्भ करने से पहले कोलिन्स ने दत्त से पूछा । उसका ख़याल था कि दत्त उसे धन्यवाद  देगा ।  मगर  दत्त  ने  उसकी  अपेक्षा  पर  पानी  फेर  दिया,‘‘सारी  सुविधाएँ नहीं मिली हैं; शाम को एक घण्टा बाहर नहीं घूमने दिया जाता ।’’  दत्त ने शिकायती सुर  में  कहा,  ‘‘और  चाय  एकदम  ठण्डीबर्फ  होती  है,  मुझे  गरमागरम  चाय  मिलनी चाहिए ।’’
कोलिन्स   को   दत्त   पर   गुस्सा      रहा   था ।   मगर   काम   निकालने   के   लिए उसने    अपने    गुस्से    को    रोका    और    हँसते    हुए    कमाण्डर    यादव    को    सूचना    दी ।
‘‘ये छोटीमोटी बातें हैं,  तुम इनका ध्यान रखो!’’
‘‘हमने  अपना  वादा  पूरा  किया  है,  अब  तुम  अपना  वादा  निभाओ ।’’  उसने दत्त को ताकीद दी ।
‘‘मैं अंग्रेज़ नहीं,   बल्कि हिन्दुस्तानी हूँ । तुम्हारे जैसी चालाकी मेरे पास नहीं । मेरे  देश  में  तो  सपने  में  किए गए  वादे  को  पूरा  करने  के  लिए  राजपाट  त्यागने वाले  राजामहाराजा  हो  गए  हैं ।  मैंने  तो  जागृतावस्था  में  जुबान  दी  है,  उसे  निभाने की मैं  पूरी कोशिश करूँगा ।’’    दत्त ने सावधानी से उत्तर दिया ।
पूछताछ    आरम्भ    हुई ।
पार्कर ने दत्त से नवम्बर से फरवरी के बीच हुई घटनाओं को दोहराने के लिए कहा ।
‘‘मेरा  ख़याल  है  कि  हमने  एकदूसरे  पर  विश्वास  रखने  का  निर्णय  लिया है,   और   मुझे   जितना भी मालूम है उसे सहीसही बताना है । मैं इस समय तो बतलाता  हूँ,  मगर  प्लीज,  यही  सवाल  मुझसे  फिर  से    पूछना ।’’  दत्त  ने  जवाब दिया और घटनाओं का क्रम सामने रख दिया ।
‘‘जब   तुम   सिंगापुर   में   थे   तो   क्या   आज़ाद   हिन्द   फौज   के   सिपाही   तुमसे मिले    थे ?’’    पार्कर    ने    पूछा ।
‘‘तुमसे युद्ध करने के बदले वे मुझसे मिलने क्यों आएँगे ?’’ दत्त ने प्रतिप्रश्न    किया ।
‘‘15 जनवरी  1945 को एन.टी.सी. और जी.आर.टी. के साथ बाहर गया था ऐसा लिखा है । ये दोनों कौन हैं और तुम कहाँ गए थे ?  किससे मिले थे ?’’ पार्कर ने पूछा ।
 ‘‘अगर मैंने तुमसे पूछा कि 15 अक्टूबर, 1945 को शाम छ: बजे किसके साथ और कहाँ थे, तो जवाब दे सकोगे ? नहीं दे सकोगे । क्योंकि ये बात इतनी महत्त्वपूर्ण  नहीं  कि  उसे  याद  रखा  जाए ।  यदि  तुम  जवाब  दोगे  भी  तो  वह  निरी गप होगी,    क्या तुम चाहते हो कि मैं ऐसी ही गप मारूँ ?’’   दत्त ने चेहरे पर गम्भीरता बनाए    रखी ।
‘‘तुमने   हमें   सहयोग   देने   का   वचन   दिया   हैै ।’’   पार्कर   ने   याद   दिलाई ।
‘‘बिलकुल ठीक । इसीलिए मैं तुमसे कह रहा हूँ कि ऐसे सवाल मत पूछो ।’’ दत्त    ने    जवाब    दिया ।
दत्त   बिलकुल   नपेतुले   जवाब   दे   रहा   था ।   यदि   कोई   ऐसा   सवाल   पूछा   जाता जो उसे मुश्किल में डाल देता तो वह कह देता, ‘‘याद नहीं” कभीकभी निडरता से  जवाब  फेंक  रहा  था ।  उसे  यकीन  था  कि  उसके  बारे  में सजा का निर्णय  हो चुका    होगा ।
कोलिन्स  तथा  अन्य  अधिकारियों  को  भी  यकीन  हो  गया  था  कि  दत्त  उन्हें झुला  रहा  है ।  मगर कोई  चारा  ही  नहीं  था ।  पानी  को  मथने  से  तो  मक्खन  मिलने से    रहा ।
दत्त को बैठने के लिए कुर्सी दी गई थी । सुबह से तीनचार बार चाय दी गई  थी ।  दोदो  घंटे  बाद  पन्द्रह  मिनट  का  अवकाश  और  उस  दौरान  सिगरेट  पीने की इजाज़त भी दी गई थी । टाइप   किए   गए प्रश्नोत्तरों   की   एक   प्रति   भी   उसे दी जा रही थी । पहरेदारों की संख्या घटाकर दो कर दी गई थी । ये पहरेदार भी  हिन्दुस्तानी  ही  होते  थे ।  अब  उसे  सेल  में  अकेलापन  महसूस  नहीं  होता  था, क्योंकि  पहरेदार  उससे  दिल  खोलकर  बातें  करते ।  वे  समझ  गए  थे  कि  दत्त  की बात ही और है । इसलिए उनके मन में दत्त के प्रति आदर और अपनापन पैदा हो  गया  था ।  पूछताछ  का  यह  नाटक  कितने  दिन  चलेगा ?’  वह  अपने  आप  में विचार कर रहा था, ‘ये सब जल्दी ख़त्म हो जाना चाहिए । मगर, नहीं । पूछताछ लम्बी खिंचती जाए; यदि तब तक विद्रोह हो गया तो... सैनिक तो आजाद हो जाएँगे और फिर...   कमाण्डर किंग, एडमिरल कोलिन्स,    खन्ना,    यादव,    रावत...  सभी अपराधी...  देशद्रोह,  बुरा  व्यवहार,  स्वाभिमानी  सैनिकों  पर  अत्याचार... हर  आरोप फाँसी के तख्ते तक ले जाने वाला... स्टूल पर बैठे होंगे वे... पूछताछ अधिकारी के  सामने - मेरे सामने...  अब तुम्हारे  साथ  कैसा  बर्ताव  करूँ ?’  वह  सपने  देखता।



 बरामदे   में   जूतों   की   आहट   सुनाई   दी ।   सन्तरी   सावधान   हो   गए ।   ये   किंग   था । सन्तरियों    ने    सैल्यूट    मारा ।
‘‘सेल खोलो । मुझे दत्त से बात करनी है । तुम दोनों उधर दूर  जाकर ठहरो ।’’ किंग   ने   कहा ।
सेल    का    दरवाजा    खोलकर    सन्तरी    दूर    चले    गए ।
''Good evening, how are you sonny.'' जितना सम्भव था उतने अपनेपन से किंग ने पूछा ।
''Oh, fine! Thank you!'' दत्त   ने   जवाब   दिया ।   किंग   को   अचानक   आया देखकर वह कुछ परेशान    हो गया ।
अब यह यहाँ क्यों आया है ? शायद जानकारी लेने के लिए । सुबह की घटना के बारे में पूछताछ... सियार से पाला   पड़ा है । सावधान रहना होगा।उसने   तर्क   किया ।
‘‘ताज्जुब    हो    रहा    होगा    तुम्हें ।    तुम्हारा    अभिनन्दन  करने    आया    हूँ ।’’
‘‘मेरा    अभिनन्दन ?    वो    किसलिए ?’’
‘‘मैं  अंग्रेज़  हूँ  यहाँ  की  अंग्रेज़ी  हुकूमत  का  एक  हिस्सा  हूँ,  ऐसा  होते  हुए भी   तुम्हारा   बर्ताव,  अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ खड़े होने की तुम्हारी हिम्मत...इसके लिए हृदयपूर्वक बधाई देने आया हूँ । तुम्हें आश्चर्य हो रहा   होगा,   मगर यह   सच   है ।’’
दत्त    किंग    की    ओर    देखता    ही    रहा ।
‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मेरी ओर?  मैं यह बात दिल से कह रहा हूँ । चाहे मैं अंग्रेज़  हूँ  तुम्हारा  शत्रु  हूँ,  मगर सबसे  पहले  मैं  एक  सैनिक  हूँ ।  युद्धभूमि  पर शत्रु  का  डटकर  मुकाबला  करने  और  युद्धभूमि  के  बाहर  उसके  शौर्य  की  प्रशंसा करने  की  उदारता  हर  सैनिक  में  होनी  चाहिए  ऐसी  मेरी  राय  है ।  यह  उदारता  मेरे पास    है ।’’
''Thank you, Commander King!" गिरफ्तार  होने  के  बाद  आज  वह पहली बार कमाण्डर किंग को आदर से सम्बोधित कर रहा था । ‘‘आज आपके व्यक्तित्व   का   एक   नया   पहलू   देखने   को   मिला,’’   दत्त   किंग के उद्देश्य के प्रति आशंकित    था ।
‘‘मगर  एक  बात  मैं  समझ  नहीं  पा  रहा  हूँ,  यदि  तुम्हें  स्वतन्त्रता  के  लिए लड़ना है तो फौज में क्यों रहते हो ? हम पर दबाव क्यों डालते हो ?’’ किंग दत्त से पूछ रहा था,    ‘‘अरे,    हम    तो    हुक्म    के    गुलाम हैं,    यदि तुम लोगों को दबाव डालना ही है तो वॉइसराय पर डालो,    भारत के मन्त्रियों पर डालो या इंग्लैंड के प्रधानमन्त्री पर डालो । हमें क्यों तंग करते हो ?’’
दत्त   हँसा,   ‘‘यदि   फौज   में   भरती      हुआ   होता   तो   हथियार   चलाने   की   शिक्षा कहाँ  मिलती ?  हमारा  विचार  है  कि  सत्याग्रह,  कानून  तोड़ो  इत्यादि  आन्दोलन  अब किसी काम के नहीं हैं । हमें हथियार उठाना ही होगा । और, सेना ही के कारण तो हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ों की हुकूमत टिकी हुई है, यदि सेना का सहारा निकाल लिया    जाए    तो    साम्राज्य    अपने    आप    ही    धराशायी    हो    जाएगा ।’’
दत्त    के    इस    जवाब    से    किंग    चौंक    गया ।
‘‘ठीक है । ये सब तुम बाहर जाकर करो ना । मैं तुम्हें सम्मानपूर्वक बाहर भेजने के लिए तैयार हूँ । बोलो, किसकिस को बाहर जाना है ?’’ किंग के इरादे को    दत्त    भाँप    गया ।
‘‘मैं   तो   बाहर   जाने   ही   वाला   हूँ ।   इसलिए   मेरी   समस्या   तो   सुलझ   गई!’’
दत्त    ने    सीधेसीधे    जवाब    दिया ।
‘‘मैं  तुम्हारे  बारे  में  नहीं  कह  रहा  हूँ ।  औरों  के  बारे  में  बात  कर  रहा  हूँ । यदि  तुम्हें  बाहर  जाकर  कुछ  करना  हो  तो  साथियों  की  जरूरत  तो  पड़ेगी  ही  ना!’’
किंग    ने    फिर    से    एक    कंकड़    फेंका ।
‘‘आर.   के.   जा चुका है,   रामदास भी मिल ही  जाएगा,   और रोज़ बाहर जाने वाले सैनिक तो हैं ही। तुमने मेरे जैसे कुछ आन्दोलनकारियों को यदि पकड़ा तो उन्हें भी भगा दो,   वे मुझसे मिल जाएँगे।’’
‘‘वो  तो  मैं  करूँगा  ही  मगर...’’  किंग  समझ  गया  कि  उसकी  चाल  उल्टी पड़ी है । हाथ कुछ लगने वाला    नहीं ।
‘‘वह  जाने  दो ।  उसके  बारे  में  बाद  में  सोचेंगे ।  अभी  की  बात  करो,  यदि तुम्हें   कोई   तकलीफ   हो,   किसी   बात   की   जरूरत   हो   तो   मुझसे   कहो ।   मेरा   हाथ मदद    करने    के    लिए    हमेशा    आगे    आएगा ।’’
‘‘किंग, मेरी तकलीफें सुलझाने और मनचाही चीज़ पाने के लिए मैं सक्षम हूँ,   ये तुम समझ ही चुके हो । मुझे किसी की भी,  और खासकर तुम्हारी मदद की कोई ज़रूरत नहीं है ।’’    दत्त ने किंग को झिड़का ।
चिढ़ा हुआ किंग मन ही मन दत्त पर गालियों की बौछार करते हुए बाहर निकल गया ।



आज़ादीपूर्व  के  काल  में  रॉयल  इंडियन  नेवी  में  महिला  सैनिक भी  होते  थे । इन महिलाओं  को  मरीजों की  सेवा,  टेलिफोन्स  इत्यादि  जैसी  जिम्मेदारियाँ  सौंपी जाती थीं । सोलह वर्ष से अधिक की महिलाओं को प्रवेश दिया जाता था । महिलासैनिकों की बैरेक्स अलग होती थी । उनके लिए अलग मेस की व्यवस्था थी । उनकी  बैरेक  में  पुरुषसैनिकों  को  प्रवेश  नहीं  मिलता  था ।  फिर  भी  कुछकुछ प्यासे भौंंरे उनके आसपास   घूमते   रहते   थे ।   इन   भौंरों   में   गोरे   भी   होते   थे   और हिन्दुस्तानी भी होते थे ।    कई बार ये लड़कियाँ बहकावे में आ जाती थीं और फिर सैनिकों के बीच गरमागरमी हो जाया करती थी । कभीकभी तो हाथापाई तक की नौबत आ जाती थी ।
सुमंगल  सिंह,  सुजान  सिंह,  यादव,  पाण्डे  और  चोपड़ा  का  गुट  ऐसे  ही  प्यार के   मारे   दीवानों   का   गुट   था ।   महिलासैनिकों   को   छेड़ना,   सम्भव   हो   तो   उनसे   प्यार के   खेल   खेलना,   यह   उनका   प्रमुख   काम   था ।
गुरुवार, 8 फरवरी। हर दिन के समान सूरज निकला । मगर किसी को भी इस   बात   का   अन्दाजा   नहीं   था   कि   उस दिन का सूरज एक भयानक तूफ़ान अपने साथ लाया है । सुजान, सुमंगल ड्यूटी पर जाने की,   और     पाण्डे     तथा     चोपड़ा     डिवीजन की   तैयारी   कर   रहे   थे ।   मगर   खिड़की   के   पास   खड़े   होकर   जूतों   को   पॉलिश कर रहे सुजान सिंह  की  नज़र  किसी  को  ढूँढ़  रही  थी ।  उसे  बहुत  देर इन्तज़ार नहीं करना पड़ा ।  लक्ष्मी,  मीनाक्षी  और  विजया  बाहर  निकलती  दिखाई  दीं  और  उसने  अपने दोस्तों से कहा,    ‘‘देखो,    वे साली,    तीनों बाहर आई हैं । उनके यार भी आए होंगे ।’’
सुमंगल, पाण्डे और चोपड़ा अपने हाथ का काम छोड़कर खिड़की के पास आए,   ‘‘चलो,   बाहर   चलकर   देखते   हैं कौन   हैं उनके   यार ?’’   सुमंगल   ने   कहा ।
‘‘अरे,   वे   ही   कल   वाले   तीनों   गोरे   बन्दर   होंगे ।’’   पाण्डे   ने   कहा ।   ‘‘चल, थोड़ी शरारत करते हैं,’’ चोपड़ा ने कहा और पाण्डे एवं सुमंगल का हाथ पकड़, खींचते हुए उन्हें रास्ते पर ले गया ।
‘‘देख,  वे  ही  तीनों  हैं ।  कल शाम को  चौपाटी  पर  तीनों  को  बगल  में  दबाए बैठे थे ।’’    पाण्डे    बुदबुदाया ।
‘‘हमसे   खेल   करती   रहीं   और   उन   गोरों   की   बाँहों   में   चली   गर्इं,   राँड़   साली!’’ चोपड़ा    को    गुस्सा        रहा    था ।
सुजान    ने    एक    ज़ोर    की    सीटी    बजाई,    तीनों    ने    मुड़कर    देखा ।
‘‘,    राँड़ो,    हम    हिन्दुस्तानी    क्या    मर    गए    हैं ?’’    पाण्डे    ने    फिकरा    कसा ।
‘‘आओ,    मेरी    जान,    मेरी  बाँहों में आ जाओ ।’’    चोपड़ा    चिल्लाया ।
‘‘तुम   तीनों   की   खुजली   मिटाने   के   लिए   मैं   अकेला   ही   बस   हूँ ।   उन   गोरे बन्दरों को क्यों गले लगाती    हो ?’’
वे  तीनों  कुछ  डर  गर्इं,  मगर  उसी  तरह  खिलखिलाते  हुए  खड़ी  रहीं ।  उन्हें खिलखिलाते  देखकर  सुजान  और  पाण्डे  ने  अश्लील  हावभाव  किये ।  सुजान  का ध्यान दायीं ओर गया और वह चिल्लाया, ‘‘अरे भागो, देखो, वह किंग आ रहा है ।’’
और    वे    चारों    भागकर    बैरेक    में    आए ।
आज इन्हें छोडूँगा नहीं । अच्छी तरह   रगड़   दूँगा । लड़कियों को सताते हैं क्या! किंग  को  उनकी  चिल्लाहट  तो  सुनाई  नहीं  दी  थी,  मगर  उनके  अश्लील हावभावों पर  उसकी नज़र पड़ गई थी ।
दन्दन्   करते   हुए   वह   बैरेक   में   आया ।   पूरी   बैरेक   पर   उसने   कड़ी   नज़र डाली ।  हर कोई  अपने  काम  में  मशगूल  था ।  ‘‘अभी  लड़कियों  को  रास्ते  पर  कौन छेड़ रहा था ?’’ वह चिल्लाया । इन चारों के अलावा बाहर क्या हुआ था, इसकी किसी  को  ख़बर  नहीं  थी ।  और  वे  चारों  किंग  को  बैरेक  में  आता  देख  बैरेक  से बाहर निकल कर  शौचालय में छिप गये ।
''Come on, tell me Who were on the road?'' किंग चीख रहा था ।
किंग   की   चिल्लाहट   पर   ध्यान      देते   हुए   हर   कोई   अपनेअपने   काम   में व्यस्त  होने का  नाटक  कर  रहा  था ।  किंग  को  यह  सब  बड़ा  अपमानजनक  लगा ।
''you, sons of bitches! sons of coolies, sons of junglees! अगर एक बाप के हो तो आगे आओ और बताओ कि लड़कियों को छेड़ने वाले चार लोग कौन थे ?’’ वह चीख़े जा रहा था और पूरी बैरेक में उन चारों को ढूँढ़ रहा था ।
जब  सुजान  और  उसके  साथी  उसे  नहीं  मिले  तो  वह  सभी  को  फटकारने लगा,    ''you, bastards, I will not spare you. I shall f....you openly. No liberty for you. I shall see you bastards!''  किंग  गुस्से  में  बैरेक से  बाहर चला गया । बाहर निकलते हुए उसने निश्चय कर लिया,   ‘‘मस्ती चढ़   गई   है   सालों को! इन्हें छोड़ूँगा नहीं । किसी न किसी बहाने सज़ा दूँगा ही दूँगा ।
‘‘उस हरामखोर   से   पूछना   चाहिए था: तू एक बाप का है इसका कोई सबूत है तेरे पास ?’’    दास चिढ़कर    पूछ    रहा    था ।
‘‘अब  क्यों  चिल्ला  रहा  है ?  क्या  फायदा  है  तेरे  चिल्लाने  का!’’  गुरु  दास को चिढ़ा रहा था । ‘‘दत्त को होना चाहिए था!’’
‘‘अरे,  क्या  मैं  डरता  हूँ ?  अभी  जाता  हूँ  और  पूछता  हूँ ।’’  दास  ने  कहा ।
‘‘मुँह  देखो,  कह  रहा  है  जाकर  पूछता  हूँ’’  गुरु  ने  उसे  और  चिढ़ाया ।
दास   अपने   लॉकर   की   ओर   दौड़ा   और   कपड़े   निकालते   हुए   बोला,   ‘‘तुम समझते    क्या    हो ?    अगर    उससे    जाकर    नहीं    पूछा    तो    अपने    बाप    का    नाम    नहीं बताऊँगा ।’’
मज़ाकमज़ाक  में  कही  गई  बात  का  यह  परिणाम  देखकर  मदन  बेचैन  हो गया ।
‘‘अरे,  गुरु  मजाक  कर  रहा  था ।  क्या  हम  तेरे  गट्स  नहीं  जानते ?  बेकार ही में जल्दबाज़ी मत करो ।’’    मदन    ने    समझाया    तो    दास    कुछ    शान्त    हुआ ।
खान और हाल ही में तबादला होकर आए जी. सिंह ने मौके का फ़ायदा उठाने का निश्चय किया । पिछले चारपाँच   दिनों   की   घटनाओं   और   किंग   के   आज के   व्यवहार   से   सभी   बेचैन   थे ।  कुछ   लोग   तो   खुल्लमखुल्ला   किंग   को   गालियाँ दे   रहे   थे ।
‘‘हमारे   साथ   कम   से   कम   पन्द्रहबीस   लोग   तो   ज़रूर   आएँगे ।   उनसे   हम बात करेंगे ।’’    खान    ने    सुझाव    दिया ।
‘‘यह    कमाण्डर    किंग    अपने    आप    को    समझता    क्या    है ?’’
‘‘अगर बाहर होता तो अब तक क्रान्तिकारी उसका काम तमाम कर डालते!’’
‘‘महिला  सैनिकों  को  छेड़ा  गया,  यह  तो  गलत  ही  है ।  जिन्होंने  गलती  की उन्हें सजा मिलनी चाहिए । मगर उसके बदले में तुम सबको गालियाँ दो ? उनके माँबाप निकाले! इसका विरोध कहीं न कहीं होना ही  चाहिए!’’
‘‘ये  गोरे  बन्दर  हमारे  सामने  महिला  सैनिकों  के  साथ  चूमाचाटी  करते  हैं और हम खामोश बैठे रहें ?    क्या    हम    नपुंसक    हैं ?    या    हिजड़े    हैं ?’’
‘‘बहुत बर्दाश्त कर लिया!  और कब तक चुप रहेंगे ?    कोई हद है कि नहीं? ’’
मदन,    गुरु,    दास,    जी.    सिंह सभी आपस में और सहानुभूति रखने वाले मित्रों के साथ चर्चा करते हुए सवाल पूछते । सैनिक गुस्से में थे, मगर करें क्या ? यह सवाल उनके सामने था ।
‘‘हम    काम    का    बहिष्कार    करें,’’    मदन    ने    सुझाव    दिया ।
‘‘इससे   बेहतर,   हम   भूखहड़ताल   करें,’’   जी.  सिंह   ने   सलाह   दी ।
‘‘ये सारे उपाय सामुदायिक स्तर के हैं ।’’    खान समझा रहा था ।  ‘‘इस प्रकार के सामुदायिक कृत्यों को विद्रोहकी     श्रेणी में रखा जाता है । यदि विद्रोह सर्वव्यापी न हुआ तो विद्रोहियों को मिटाना आसान  होता   है । विद्रोहियों को सलाखों के पीछे डाला जाएगा,    इससे हमारी ताकत कम हो जाएगी ।’’
 ‘‘खान  ठीक  कह  रहा  है ।’’  गुरु  खान  की  राय  से  सहमत  था,  ‘‘यह  ख़तरा मोल   लेने   में   कोई   मतलब   नहीं ।   अस्सी   से   नब्बे   प्रतिशत   सैनिक   शामिल   होंगे; इस  बात  का  जब  तक  यकीन  हो  जाए  तब  तक  सामुदायिक  आन्दोलन  से  कोई लाभ नहीं है।‘’  
‘‘भूखहड़ताल   करना   नहीं; काम का बहिष्कार करना नहीं;  फिर करना क्या है ?   या ये सब कुछ इसी तरह बर्दाश्त करते रहना है ?’’   दास   चिढ़   गया   था ।
‘‘गुस्सा    करो,  हमें  सोचविचार  करके  ही  कदम  उठाना  चाहिए ।  हमारी कृति  इस  तरह  की  होनी चाहिए  कि  जिससे  हम  सबको  इकट्ठा  कर  सकें;  और ऐसा  करते  हुए  हम  यह  भी  सिद्ध  कर  सकेंगे  कि  यह  कृति  कानून  की  दृष्टि  से स्वतन्त्र है; इससे हम पर बगावत का इल्जाम भी नहीं लगेगा ।’’ खान ने सबको समझाते हुए विचारों को एक दिशा दी ।
‘‘ऐसी    कौनसी    कृति    होगी ?’’    मदन    ने    पूछा ।
‘‘हम    ये    रिक्वेस्ट    करेंगे    कि    हमें    न्याय    दिया    जाए ।’’    खान    ने    कहा ।
‘‘किंग  तो  इस  बेस  का  सर्वेसर्वा  है,  उसके  ख़िलाफ  हम  किससे  शिकायत करेंगे ?’’    दास ने पूछा ।
‘‘किंग  इस  बेस  का  सर्वेसर्वा  हुआ  भी  तो  उसका  कोई  बाप  तो  ऊपर  बैठा है ना ?’’   गुरु ने कहा ।
‘‘बिलकुल    ठीक ।    हम    किंग    से    ही    रिक्वेस्ट    करेंगे    कि    हमें    वरिष्ठ अधिकारियों से    मिलना    है ।’’    खान    ने    कहा ।
‘‘मगर,    यदि    किंग    पूछेगा    कि    क्यों    मिलना    है,    तो...’’    दास    ने    पूछा ।
‘‘तो क्या ? हमारी रिक्वेस्ट में साफसाफ लिखा होगा ।’’ खान ने रिक्वेस्ट का मसौदा ही बता दिया।  ''Request permission to see the flag officer Bombay through proper channel regarding obscene and insulting language used by commander King on eighth February 1946. रिक्वेस्ट देते समय हर व्यक्ति वाक्य रचना बदलबदलकर लिखेगा,     कुछ लोग  Rear admiral Rautre  कहेंगे कुछ  लोग किंग का नाम न लिखते हुए कमांडिंग ऑफिसर तलवार     लिखेंगे;  कुछ Bad language लिखेंगे तो कुछ सिर्फ Language लिखेंगे ?

खान   की   यह   व्यूह   रचना   अनेक   लोगों   को   पसन्द      गई   और   पच्चीसतीस लोग रिक्वेस्ट  करने  के  लिए  तैयार  हो  गए  मगर  पहले  सिर्फ  आठ  लोग  दरख्वास्त देंगे  और  उसके  बाद  हर  चार  दिन  बाद  आठआठ  लोग  दरख्वास्त  देंगे  यह  तय किया    गया ।    पहले    आठ    व्यक्तियों    के    नाम    भी    निश्चित    हो    गए।
‘‘आज गुरुवार है । आज रिक्वेस्ट फॉर्म लेकर डिवीजन ऑफिसर के पास जाना चाहिए ।’’    मदन ने सुझाव दिया ।
‘‘डिवीजन ऑफ़िसर और एक्जिक्यूटिव ऑफ़िसर इन दो रुकावटों को हमें पार करना होगा। शनिवार को एक्जिक्यूटिव आफ़िसर्स रिक्वेस्ट   होगी । आज यदि दरख्वास्त दी गई तो हमें डिवीजन ऑफ़िसर के सामने    खड़ा करके हमारी दरख्वास्त आगे,   एक्जिक्यूटिव ऑफ़िसर को,   भेजी जाएगी और वह उसे आगे,   किंग को, भेजेगा।’’    खान    ने    कार्रवाई    के    बारे    में    जानकारी    दी ।
‘‘यदि डिवीजन ऑफ़िसर या एक्जिक्यूटिव ऑफ़िसर ने हमारी रिक्वेस्ट फ़ॉरवार्ड नहीं की तो ?’’ गुरु ने सन्देह व्यक्त    किया ।
‘‘तो दूसरी रिक्वेस्ट किंग ही से मिलने के लिए । मगर एक बात ध्यान में  रखो ।  डिवीजन  ऑफ़िसर  और  एक्जिक्यूटिव  ऑफ़िसर  इस  बारे  में  निर्णय  नहीं ले सकते । उन्हें हमारी अर्जियाँ आगे भेजनी ही पड़ेंगी । हमारी रिक्वेस्ट किंग के बर्ताव   से   सम्बन्धित   है   और   उस   पर   किंग   के   मातहत   अधिकारी   निर्णय ले ही नहीं सकते ।’’    खान    का    यह    तर्क    सबको    ठीक    लगा ।
खान,   गुरु,   मदन,   दास,   जी.  सिंह,   सुजान   सिंह,   सुमंगल   और   पाण्डे ने रिक्वेस्ट फॉर्म लाकर उन्हें भर    दिया ।
‘‘सत् श्री अकाल, चीफ साब ।’’ मदन ने डिवीजन चीफ चड्ढा से कहा ।
‘‘सत् श्री अकाल,  पाशाओं,  बोल की गल ?’’    चीफ़ ने पूछा ।
‘‘कुछ    नहीं    जी,    एक    रिक्वेस्ट    थी ।’’    पाण्डे    ने    कहा ।
‘‘ठीक    है,    बोलो    जी ।’’
चीफ के हाथ में मदन ने तीन फॉर्म दिये। उसने उन्हें पढ़ा और तड़ाक् से उठ गया । उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था ।
‘‘अरे,   आज तक नौसेना में ऐसी अर्जियाँ किसी ने दी नहीं,   यह तो मैं पहली बार देख रहा  हूँ ।  क्या,  कर क्या रहे  हो ?  कमाण्डिंग  ऑफिसर  के  खिलाफ शिकायत ?    इसके नतीजे के बारे में सोचा है ?’’    चीफ चिल्ला ही    पड़ा ।
‘‘चीफ साब,  नतीजे की बात छोड़ो,   उसके मुकाबले आज जो कुछ भी बर्दाश्त कर रहे हैं,  वह असहनीय है!’’     मदन के शब्दों में गुस्सा था । ‘‘माँबहन की गालियाँ, दूसरे दर्जे का बर्ताव,   कदमकदम पर अपमान, यह सब कितने दिन बर्दाश्त करेंगे ? यह सब रुकना चाहिए,   हम गुलाम नहीं हैं,   इस बात को गोरे समझ लें! उन्हें ठोंकपीटकर कहना पड़ेगा । ये अपमान आगे  से हम बर्दाश्त नहीं करेंगे ।’’
 ‘‘तुम क्या समझते हो, तुम्हारी अर्जियों से यह सब रुक जाएगा ?’’ चीफ के शब्दों से निराशा झाँक रही थी ।
‘‘चीफ  साब,  आपकी  बात  बिलकुल  सही  है ।  हमारी  रिक्वेस्ट  से  कोई  फर्क नहीं पड़ने वाला है । जब अंग्रेज़ यह देश छोड़कर चले जाएँगे,   हिन्दुस्तान को आज़ादी मिल  जाएगी,  तभी  परिस्थिति  बदलेगी ।  हमारी  रिक्वेस्ट  उन्हें  दी  जा  रही  सूचना है  कि  आज  तक  जिनके  बल  पर  तुम  राज  कर  रहे  थे,  वे  सैनिक  अब  यह  सब बर्दाश्त  नहीं  करेंगे ।’’  गुरु  भड़क  उठा  था ।  उसके  शब्दों  में  आवेश  था,  चिढ़  थी ।
‘‘धीरे  बोल,  आवाज  नीची  कर ।’’  चड्ढा  ने  कहा ।  ‘‘तुम  क्या  समझते  हो, मैंने  यह  अपमानभरी  जिन्दगी  नहीं  जी  है ?  इस  बर्ताव  का  मुझे  कितनी  ही  बार गुस्सा आया । सोचा,   बग़ावत कर डालूँ । मगर डरपोक   मन   ने   साथ   ही   नहीं   दिया । सच  कहूँ,  आर.के.  ने  जब  बहिष्कार  किया,  दत्त  को  जब  पकड़ा  गया,  तब  मुझे उन  पर  फख़्र  हुआ  और  अपनी  कायरता  पर  शर्म  आई ।’’  चीफ  पलभर  को  रुका । “तुम सोचते होंगे कि मेरे चीफ बन जाने पर यह सब रुक गया होगा, मगर ऐसी बात नहीं है । आज भी मेरे   किसी निर्णय पर जब ताने दिये जाते हैं कि ऐसे निर्णय बेवकूफों को ही शोभा देते हैं’, ‘किस बेवकूफ ने तुम्हें चीफ बना दिया ?’ तो  दिल  में  आग  लग  जाती  है ।  ऐसा  लगता  है  कि  कर  दूँ  विरोध,  मगर  हिम्मत नहीं   होती   और   इसीलिए   तुम्हें   बधाई   देने   से   अपने   आप   को   रोक   नहीं   सकता, यदि  मौका    ही  जाए  तो  मैं  भी  तुम  लोगों  के  साथ  ही  हूँ ।  आल  दि  बेस्ट ।’’
वे    तीन    अर्जियाँ    लेकर    चीफ  डिवीजन    ऑफिसर    के    दफ्तर    में    गया ।
''Yes, chief?'' चीफ़ की ओर देखते हुए स. लेफ्ट.   जेम्स ने पूछा ।
‘‘तीन    रिक्वेस्ट्स    हैं,’’    चीफ    ने    रिक्वेस्ट    फॉर्म्स    जेम्स    के    हाथ    में    दिए ।
जेम्स   ने   जैसे   ही   रिक्वेस्ट   फॉर्म्स   पर   नजर   डाली   वह   आश्चर्य   से   उठकर खड़ा   हो गया ।
''My God! कमांडिंग ऑफिसर के खिलाफ़ शिकायत! Horrible!'' वह एक मिनट तक विचार करता रहा,    मगर उसे    कुछ    भी    सूझ    नहीं    रहा    था ।
चीफ  की  ओर  देखकर  उसने  पूछा,  ‘‘इनका  क्या  करें ?’’ 
‘‘मेरा ख़याल है कि आप ये रिक्वेस्ट्स सीधेसीधे फॉरवर्ड कर दें । एक्जिक्यूटिव ऑफिसर को ही फैसला करने दो ना!’’   चीफ   ने   कहा ।
‘‘अगर   मैं   इन   रिक्वेस्ट्स   को   रिजेक्ट   कर   दूँ   या   इन्हें   पेंडिंग   में   रख   दूँ   तो ?’’
जेम्स    ने    एक    पर्याय    सुझाया ।
‘‘तो  वे  आपके  खिलाफ  कमांडिंग  ऑफिसर  से  मिलने  की  इजाज़त  माँगेंगे और  फिर  शायद  कमांडिग  ऑफिसर  आपसे  कारण  पूछेंगे  कि  रिक्वेस्ट्स  फॉरवर्ड क्यों   नहीं   की   गई ?’’   चीफ   ने   परिणामों   की   कल्पना   दी ।   ‘‘मेरा   ख़याल   है   कि   आप यह   ख़तरा      मोल   लें ।’’   चीफ   ने   समझाया ।
''All right, I shall forward the requests.'' पलभर सोचकर जेम्स  ने अपना निर्णय सुनाया । उन तीनों को अन्दर    बुलाओ ।
मदन,    गुरु    और    पाण्डे    भीतर    आए ।
‘‘तुम    फ्लैग    ऑफिसर    से    क्यों    मिलना    चाहते    हो ?’’    जेम्स    ने    पूछा ।
‘‘रिक्वेस्ट    में    कारण    बताया    है ।’’    मदन    ने    जवाब    दिया ।
‘‘किंग   ने   बुरी   जुबान   का   इस्तेमाल   किया,   मतलब   उन्होंने   कहा   क्या ?’’
जेम्स    ने    जानकारी    हासिल    करने    के    इरादे    से    पूछा ।
सॉरी सर,   वह हम एडमिरल रॉटरे को ही बताएँगे ।’’  मदन ने ज़्यादा जानकारी देने  से  इनकार  कर  दिया । ‘’आपसे  प्रार्थना  है  कि  हमारी  रिक्वेस्ट्स  आगे  भेजें ।’’
जेम्स  ने  चीफ  की  ओर  देखा,  चीफ  ने  नज़र से  इशारा  किया  और  जेम्स ने रिक्वेस्ट फॉर्म पर लिखा,                      ''Forworded to Ex,-o.''
तीनों   बैरेक   में   गए   तो   उनके   चेहरे   पर   समाधान   था ।   दोपहर   तक   कुल   आठ अर्जियाँ एक्स. ओ.   की ओर भेजी गई थीं ।
यूँ ही चली गई यह चाल वड़वानल का रूप धारण कर लेगी, ऐसा किसी ने भी नहीं सोचा था ।

एँटेरूम  के  भीतर  का  वातावरण  हमेशा  की  तरह  मदहोश  था ।  अलगअलग तरह की ऊँची शराबों की गन्ध की एक अलग ही तरह की मदहोशी बढ़ाने वाली सम्मिश्र खुशबू फैल रही थी । युद्ध के पश्चात् सैन्य अधिकारियों को फिर से सस्ती शराब  मिलने  लगी  थी; और  गोरे  अधिकारी  इसका  पूरापूरा  फ़ायदा  उठा  रहे  थे ।
तलवार  का  एक्जिक्यूटिव  ऑफिसर  लेफ्ट.कमाण्डर स्नो शराब  के  पेग  पर  पेग पिये जा रहा था । स्नो की यह आदत ही थी । दिनभर के काम निपटाने के बाद वह   ठण्डे   पानी   से   बढ़िया   नहाता   और   प्रसन्न   चित्त   से,   चेहरे   पर   खुशी   लिये   एँटेरूम में बैठता,  रात के साढ़े दस बजे तक । इस समय भी वह तीन पेग पी चुका था और  पेट  में  पहुँची  शराब  का  सुरूर  धीरेधीरे  आँखों  में  छा  रहा  था ।  उसने  जैसे ही     स. लेफ्ट. जेम्स को आते देखा, वह फौरन चिल्लाया, ''Oh, come on Jimmy! How is the life?''
''Oh, fine! Thank you, sir.''  उसने  दोपहर  वाली  रिक्वेस्ट्स  के  सिलसिले  में  स्नो  से  मिलने  का  निश्चय किया  ही  था ।  अचानक प्राप्त  हुए  इस  मौके  का  फायदा  उठाते  हुए  उसने  खुलेपन से बात    करने    की    ठान    ली ।
''Oh, come on sit down. Be informal James,''  जेम्स   को   बैठाते   हुए स्नो   ने   कहा ।
''One large whisky.'' उसने चीफ़ स्टीवर्ड को आदेश दिया ।
‘‘बोल,     क्या हाल है ?’’  उसने जेम्स से पूछा । स्नो अपने मातहत अधिकारियों को  यथोचित सम्मान  देता  था ।  उसका  यह  मत  था  कि  सेना  को  सिर्फ  अनुशासन से  नहीं  चलाया  जा  सकता;  बल्कि  टीम  वर्क  बड़ा  जरूरी  होता  है  और  यह  टीम वर्क    तभी  सम्भव है जब अपनापन हो,    प्यार    हो ।
‘‘सर, मैं आज आपसे मिलने ही वाला था,’’ जेम्स ने बात शुरू करते हुए मदन,    गुरु,    पाण्डे    आदि    की    रिक्वेस्ट्स    के    बारे    में    बताया ।
‘‘तुमने सारी रिक्वेस्ट्स मेरे पास भेज दी हैं ना ? ठीक है । मैं देख लूँगा,’’
स्नो    ने    कहा ।    अब    उस    पर    नशा    चढ़    रहा    था ।
‘‘जेम्स, बेस का वातावरण बदल रहा है । हिन्दुस्तानी सैनिक जाग उठे हैं, उनका आत्मसम्मान हिलोरें ले रहा है । उनसे संयमपूर्वक पेश आना होगा, वरना दुबारा  1857  की  पुनरावृत्ति  हो  जाएगी ।  यदि  वैसा  हुआ  तो  हमें  यहाँ  से  भागने में  भी  मुश्किल  हो  जाएगी ।  हमें  सतर्क  रहना  होगा ।’’  स्नो  जेम्स  को  परिस्थिति से अवगत करा रहा था ।



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