शुक्रवार, 16 मार्च 2018

Vadvanal - 16




मुम्बई के जहाज़ों की ही भाँति नौसेना तल का वातावरण भी गरम हो रहा था । फोर्ट बैरेक्स में हमेशा की तरह साढ़े पाँच बजे हैंड्स कॉल   दिया गया । चाय से भरा हुआ एक बड़ा भगोना मेस के बाहर रख दिया गया ।
‘‘प्लीज,  चाय  मत  लेना ।  हम  तलवार  के  सैनिकों  का  साथ  देंगे । उनके कन्धे से कन्धा मिलाकर स्वतन्त्रता के लिए लड़ेंगे ।’’   फोर्ट बैरेक्स का लीडिंग टेलिग्राफिस्ट धरमपाल सिंह चाय के लिए आए हुए सैनिकों से विनती कर रहा था और सैनिक बिना चाय लिए दूर खड़े थे ।
''Friends, nobody will go for fallin. We shall join the Talwar.'' धरमपाल चिल्लाकर कह रहा था ।
सफ़ाई के लिए फॉलिन होने का बिगुल बजा मगर कोई भी बैरेक से बाहर निकला ही नहीं ।
What's wrong with these blackies?”  फॉलिन के लिए आया गोरा चीफ जेम्स अपने आप से बुदबुदाया,  और तो तलवार का संक्रमण यहाँ तक पहुँच गया!  सीमन डिवीजन के चीफ ने कहा ।
चीफ जेम्स ने ऑफिसर ऑफ दि डे को रिपोर्ट की और बेसके सैनिकों के विद्रोह में शामिल होने की खबर अंग्रेज़ अधिकारियों में फैल गई ।
''I feel we should leave the base.''  हाल ही में हिन्दुस्तान आया स.लेफ्टिनेन्ट गोम्स बोला ।
‘‘नहीं,  हमें  इन  सैनिकों  को  शान्त  करने  की  कोशिश  करनी  चाहिए । यह हमारा कर्तव्य है।’’ फर्स्ट लेफ्टिनेन्ट ले. कमाण्डर एलन ने उन्हें समझाया । ‘‘ले. खान तुम हिन्दुस्तानी हो । मेरा ख़याल है कि काले सैनिक तुम्हारी बात मानेंगे। तुम उन्हें समझाने की कोशिश क्यों नहीं करते ?’’   उसने विनती की ।
‘‘मैं इसे अपना सम्मान समझता हूँ । मैं कोशिश करता हूँ ।’’   खान ने जवाब दिया और वह हिन्दुस्तानी सैनिकों की बैरेक की ओर चल पड़ा ।
खान की कोशिश नाकामयाब रही ।
अगर  हम  यहाँ  से  बाहर  नहीं  निकले  तो  ये  गोरे  हमें  बन्द  कर  देंगे  इसलिए सैनिकों ने बेसछोड़कर तलवार    पर जाने का निर्णय लिया ।



कैसल बैरेक्स का कमांडिंग ऑफिसर कमांडर हिक्स रातभर जागता रहा । कल शाम को रियर एडमिरल रॉटरे ने तलवार  के विद्रोह की ख़बर दी थी और तलवारही के समान कैसेल बैरेक्स में भी कहीं कुछ हो न जाए इस बात के प्रति सावधानी बरतने को कहा था। पूरी रात वह हर घण्टे बेसमें घूम रहा था। एकदो बार बैरेक्स के चक्कर भी लगाये, यह देखने के लिए कि कहीं कुछ आपत्तिजनक तो नहीं है,  और चूँकि वैसा कुछ भी नज़र में नहीं आया इसलिए वह खुश था ।
कैसेल बैरेक्स में कम ही, यानी तीन सौ सैनिक थे। उनकी एकता अभेद्य थी। जब किसी काम को करने की ठान लेते तो पूरी जिद से उसमें लग जाते। राममूर्ति उनका नेता था। अत्यन्त शान्त स्वभाव का और अचूक निर्णय लेने के लिए विख्यात। सुबह छह बजे फॉलिन के लिए पहुँचे सैनिकों को उसने इकट्ठा किया ।
‘‘दोस्तो! कल रात के समाचारों और आज के अखबारों से स्पष्ट हो गया है कि तलवार   के हमारे भाईबन्धु स्वतन्त्रता के लिए विद्रोह का झण्डा लिये ज़िद से खड़े हैं । यह संघर्ष हम सबका है । यह समय ही ऐसा है कि हर सैनिक महत्त्वपूर्ण है । यदि हम एक हो गए तभी विजयश्री हमें वरमाला पहनायेगी, और यदि  यह  संघर्ष  असफल  हुआ  तो  अगले  कई  सालों  तक  हम  इस  अपमानास्पद, शर्मनाक  जीवन  की  गर्त  में  पड़े  रहेंगे ।  यही  समय  है - हमारे  एकजुट  होने  का  और अंग्रेज़ों के विरुद्ध खड़ा होने का । भले ही हम सिर्फ तीन सौ हों,   मगर   हममें से  हर  सैनिक  दसदस  पर  भारी  पड़ेगा ।  मेरा ख़याल  है  कि  हम  सबको  इस  संघर्ष में    शामिल हो जाना चाहिए ।’’   राममूर्ति ने आह्वान किया ।
राममूर्ति के आह्वान को ज़बर्दस्त प्रत्युत्तर मिला ।
‘‘हम मोर्चा लेकर तलवार पर जाएँगे। जाते समय नारे लगाएँगे जिससे तमाम जनता को हमारे संघर्ष के कारणों का पता चलेगा ।’’  गिल ने सुझाव दिया ।
‘‘गिल की सुझाव उचित है । हम इसे मान्य करें ।’’  राममूर्ति  ने  स्वीकृति दी और साथ ही सैनिकों ने भी ।
‘‘दोस्तों! याद रखो! हम सैनिक हैं । सैनिक को अनुशासित होना ही चाहिए। उसका पहला कर्तव्य होता है रक्षा करना;  इसलिए हमारा यह मोर्चा न होकर एक अनुशासित जुलूस होगा,  पूरी तरह अहिंसात्मक। इसमें मारामारी,   लूटपाट, आगजनी आदि के लिए कोई जगह नहीं होगी ।’’    राममूर्ति ने सुझाव दिया ।
सारे सैनिक अपनीअपनी बैरेक के हिसाब से तीनतीन की कतारों में फॉलिन हो  गए ।  उस  गड़बड़ी  में  भी कोई  तिरंगा  और  चाँदतारे  वाला  हरा  झण्डा  तैयार करके ले आया । ये झण्डे जुलूस के आगे फड़कने लगे ।
''Platoons, right turn!''
''Quick march, dress up from right!''
जुलूस शुरू हो गया ।
किसी ने नारा लगाया,    ‘‘भारत माता की...’’
‘‘जय!’’  गड़गड़ाहट  भरा  प्रत्युत्तर मिला और फिर नारों की गूँज के बीच जुलूस आगे सरकने लगा ।



सबेरे ही कैसेल बैरेक्स के कमांडिंग ऑफिसर के घर का फ़ोन बजा । हिक्स ने शीघ्रता से फ़ोन उठाया और बोला,    'Commander Hix speaking.'' उसकी आवाज़ में दहशत थी ।
''Good morning, sir,'' कैसेल बैरेक्स के ऑफिसर ऑफ दि डे की  आवाज़ में असहायता थी । ‘‘सर,  आज सुबह की फॉलिन के लिए सैनिक आए ही नहीं ।’’
''What? सैनिक आए नहीं तो तू क्या कर रहा था ?’’ गुस्से से हिक्स ने पूछा ।
‘‘जब मैं देखने गया तो सैनिक मोर्चा लेकर तलवारमें जाने की तैयारी कर रहे थे... ’’
‘‘और तू देखता रहा ?    You, fool! रोको उन्हें,  बाहर मत जाने दो!’’   हिक्स चीखा ।
‘‘मैं कोशिश करता हूँ,    सर,   मगर...’’
''You must stop them. I am coming there...'' हिक्स ने कहा ।
हिक्स अभी बेस  से आधा फर्लांग की दूरी पर ही था कि उसके कानों में नारों की आवाज़ पड़ी और वह समझ गया कि डोर उसके हाथ से निकल चुकी है । उसे एक बार तो ऐसा लगा कि वापस लौट जाए,  मगर कर्तव्यदक्ष मन ने   विरोध किया। वह मेन गेट के पास आया । मेन गेट के पहरेदारों ने उसे सैल्यूट तो मारा ही नहीं,  बल्कि उस पर एक जलता हुआ कटाक्ष फेंका। वह पल भर को वहीं जम गया ।
''Bastards, black coolies, पूछना चाहिए सालों को,   समझते क्या हैं अपने आप को!’’  वह बुदबुदाया ।
उसकी नज़र पहरेदारों के हाथों की बन्दूकों की ओर गई ।
‘‘चिढे़ हुए इन सैनिकों ने यदि गोलियाँ दागीं तो...’’ उसके मन में विचार कौंध गया । सामने से आती हुई सैनिकों की लहर उसे दिखाई दी और  'O God, save me!' कहते हुए वह बायीं ओर की इमारत में शरण लेने के लिए भागा ।
हिक्स  की  यह  भागादौड़ी  सैनिकों  ने  देखी,  मगर  उन्होंने  उस  पर  ध्यान  नहीं  दिया, क्योंकि वे तलवार  पर पहुँचने की जल्दी में थे ।
सैनिकों  का  यह  जुलूस  मेन  गेट  के  पास  पहुँचा ।  इन  सैनिकों  का  उत्साह देखकर  मेन  गेट  पर ड्यूटी  कर  रहे  सैनिकों  ने  अपनी  वेबिंग  इक्विपमेंट्स  उतार दीं और बन्दूकें लेकर वे जुलूस में शामिल हो    गए ।
‘‘यह  जुलूस  लोगों  को  डराने  के  लिए  नहीं  है,  यह  पूरी  तरह  अहिंसात्मक है । अगर तुम्हें जुलूस में शामिल होना है तो बन्दूकें रखकर आओ!’’   राममूर्ति ने कड़ाई से कहा ।
सैनिकों ने बन्दूकें गार्ड रूम में रख दीं और वे जुलूस में शामिल हो गए ।
सैनिकों का यह अनुशासित जुलूस मुम्बई के रास्ते पर आ गया ।
‘‘हिन्दूमुस्लिम   एक   हों!’’
‘‘भारत    माता    की    जय!’’
‘‘वन्दे  मातरम्!’’  इन  नारों  से  पूरा  वातावरण  गूँज  उठा ।  ये  सैनिक  मानो अंग्रेज़ी  हुकूमत  को मृत्युदण्ड  पढ़कर सुना रहे थे । तिरंगे  और  चाँदतारे  वाले  झण्डे के साथसाथ हँसियाहथौड़े वाला लाल झण्डा भी आ गया । आगेआगे फड़कने वाले वे तीनों ध्वज मानो कह रहे थे,   ‘‘एक हो जाओ,   आज़ादी दूर नहीं!’’
मुम्बई के रास्ते पर यह जुलूस आगे सरकने लगा और अन्य जहाज़ों से तलवार  पर जाने वाले सैनिक भी जुलूस में शामिल हो गए। फोर्ट बैरेक्स की कुछ गाड़ियाँ भी सैनिकों के पीछेपीछे चलने लगीं । मुम्बई की जनता ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए सैनिकों का इतना बड़ा जुलूस कभी नहीं देखा था । मुम्बई के इतिहास में यह एक अद्वितीय घटना थी । इस घटना के गवाह बनने के लिए लोग दरवाजोंखिड़कियों में,   छतों पर,   छज्जों पर,   जहाँ जगह मिली वहाँ तो खड़े ही थे,  पर पैदल फुटपाथ भी खचाखच भरे थे । आज नागरिकों को इन सैनिकों से डर   नहीं लग रहा था,   बल्कि उल्टे उनके चेहरों पर आश्चर्यमिश्रित प्रशंसा का भाव था । नागरिकों का यह ज़बर्दस्त समर्थन देखकर सैनिक और भी जोश से नारे लगा रहे थे और इन नारों में नागरिक भी फुर्ती से शामिल  हो  रहे थे । कुछ देर पश्चात् तो नागरिकों की एक बड़ी टुकड़ी ही सैनिकों के पीछे जुलूस में शामिल हो गई । सन् 1857 के विद्रोह के पश्चात् पहली बार नागरिक एवं सैनिक अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ एक हो गए थे।
कुछ सैनिक जुलूस से बाहर निकलकर अपनी अंग्रेज़ विरोधी भूमिका समझा रहे थे; उन पर किये जाने वाले अन्याय के बारे में बता रहे थे; दुकानदारों से समर्थन माँग रहे थे और इसके लिए अपनी दुकानें बन्द करने की विनती कर रहे थे। हिन्दुस्तानी दुकानदारों ने फ़ौरन अपनी दुकानें बन्द कर दीं,  मगर विदेशी, खासकर अंग्रेज़ दुकानदारों ने अपनी दुकानें बन्द करने से इनकार तो किया ही,  और पुलिस की धमकी भी देने लगे । सैनिक चिढ़ गए और उन्होंने मेयो,   इवाज़ फ्रेजर,  फॉवरलूबा  इत्यादि विदेशी कम्पनियों की दुकानें सख़्ती से बन्द करवा दीं ।
जुलूस आगे सरक रहा था । सब कुछ बड़ा शान्त और अनुशासित था,   कहीं भी किसी तरह की गड़बड़ी नहीं थी । कोडॅक कम्पनी की दुकान बन्द करवाकर कुछ सैनिक वापस लौट रहे थे,    तो चव्हाण ने दीवार से टिककर खड़े दो पुलिसवालों को देखा और वह पाटिल से बोला,  ‘‘देख,  देख वे गोरे सिपाही कैसे लावारिस कुत्तों जैसे दुम दबाये दयनीय चेहरे से खड़े हैं ।’’  सुनने वाले सभी ठहाका मार कर हँस पड़े ।
मुम्बई के एक सत्याग्रह का दृश्य चव्हाण की आँखों के सामने तैर गया । नि:शस्त्र सत्याग्रहियों पर टूट पड़े गोरे सिपाही...चल रहा लाठी मार... शान्ति से लाठियाँ खाने वाले सत्याग्रही... उसने अपना आपा खो दिया, वह ज़ोर से बोला,  ‘‘आज  हमें  मौका  मिला  है,  आज  हम  उन्हें  दिखा  दें  कि  जूतों  की  और  वह  भी नाल जड़े जूतों की,  लातें कैसी लगती हैं; लाठियों के शरीर पर बल कैसे पड़ते हैं और कितने दिन वे बदन पर रहते हैं ।’’
चव्हाण के इस आह्वान पर चव्हाण और पाटिल के साथसाथ और पाँचछह सैनिक उन गोरे सिपाहियों की ओर दौड़े । अब अपनी ख़ैर नहीं,   यह जानकर वे सिपाही भागने लगे और बगलवाली इमारत में घुस गए । सैनिकों ने उन्हें खींचकर बाहर निकाला और रास्ते पर लाकर लातघूँसे बरसाने शुरू कर दिये । राममूर्ति ने यह देखा और  वह सिपाहियों को छुड़ाने के लिए भागा ।
सैनिकों के मन में विदेशी लोगों,   विदेशी चीज़ों और विदेशी इमारतों के बारे में इतनी नरत उन रही थी कि विदेशी शासनकर्ता और अन्य विदेशियों के बीच का र्क भी वे भूल गए । जुलूस यू.एस..  लायब्रेरी के निकट आया। कुछ जोशीले सैनिकों ने अमेरिका का राष्ट्रीय ध्वज नीचे खींचा और उसे जला दिया ।
तलवार  तक  पहुँचतेपहुँचते  जुलूस  में  सैनिकों  की  संख्या  दो  हजार  से  भी ज्यादा   हो   चुकी   थी । तलवार के सैनिकों ने जुलूस के सैनिकों का नारे लगाते हुए स्वागत किया ।  दत्त,  मदन,  दास,  गुरु,  खान – सभी आए हुए सैनिकों की ज़बर्दस्त संख्या देखकर भावविभोर हो गए ।
‘‘ये  सैनिक एक लक्ष्य से प्रेरित हुए हैं ।  यह एक शक्ति है । इसे उचित मोड़ देना चाहिए । अगर ये बेकाबू हो गए तो अनर्थ हो जाएगा!’’  खान  ने  अपने सहकारियों को सावधान किया ।
‘‘अभी बात करते हुए कैसल बैरेक्स के राममूर्ति ने कहा कि कुछ सैनिकों ने दो गोरे सिपाहियों को मारा और अमेरिका का झण्डा जला दिया,    ये दोनों घटनाएँ वाकई में खेदजनक हैं,’’   गुरु  ने कहा ।
‘‘हमारा संघर्ष अहिंसक मार्ग पर ही चलना  चाहिए,   वरना गोरे शासनकर्ताओं और हम हिन्दुस्तानी सैनिकों के बीच   क्या फर्क रहा ?’’   दत्त ने अपना निषेध प्रकट किया । ‘‘हमारा संघर्ष किसी व्यक्ति के विरोध में नहीं है; बल्कि प्रवृत्ति के विरुद्ध है; अवैध मार्ग से हिन्दुस्तान में प्रस्थापित अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध है । यदि हमने शान्ति का मार्ग छोड़ दिया तो वह अंग्रेज़ों के हाथों में पलीता देने के समान होगा ।
सैनिकों की एकता को शस्त्रों के बल पर नेस्तनाबूद करने का अवसर उन्हें मिल जाएगा । इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि आए हुए सैनिकों के प्रतिनिधियों को यह बात समझा दी जाए और हमें अमेरिकी कोन्सुलेट से माफ़ी माँगनी चाहिए,’’ मदन ने सुझाव दिया ।
दास ने अमेरिकी कोन्सुलेट को फ़ोन करके नौसैनिकों की ओर से अमेरिकी राष्ट्रध्वज के अपमान के सन्दर्भ में माफ़ी माँगी ।



सरदार पटेल के कमरे में फ़ोन की घण्टी बजी । आज़ाद का फोन था । ‘‘मुम्बई के नौसैनिकों द्वारा किये गए विद्रोह के बारे में पता चला ना ?’’  सरदार  ने  पूछा ।
‘‘सुबह के अख़बार में इस बारे में पढ़ा । बी.बी.सी. के सुबह के समाचार भी सुने । आज सुबह परिस्थिति कैसी है ?’’ आज़ाद ने पूछा ।
‘‘अभी कुछ ही देर पहले सैनिकों का एक बड़ा मोर्चा फोर्ट भाग में निकला था । मोर्चे में दो हज़ार से ज़्यादा सैनिक थे । इस विद्रोह को लगभग सभी जहाज़ों और बेसेसने समर्थन दिया है । ये सैनिक गुटोंगुटों में फोर्ट बैरेक्स में इकट्ठे हो रहे हैं । यहाँ जमा हो चुके सैनिकों की संख्या करीब बीस हज़ार होगी ।’’  सरदार पटेल ने जानकारी दी ।
 मतलब,   परिस्थिति गम्भीर है । सैनिक किस हद तक हिंसक हुए हैं ?’’   आज़ाद ने पूछा ।
‘‘अभी तक तो सैनिक अहिंसक मार्ग पर ही चल रहे हैं मगर यदि उन्होंने हिंसक मार्ग का अनुसरण किया तो फिर हालात बिगड़ जाएँगे ।’’  सरदार पटेल ने स्पष्ट किया और पूछा,   ‘‘इस हालत में कांग्रेस का स्पष्ट सिद्धान्त क्या है? हमारी भूमिका कैसी होनी चाहिए ?’’
आज़ाद ने पलभर को सोचा और बोले, ‘‘फिलहाल तटस्थ रहिए । कल मैं कमाण्डर इन चीफ़ एचिनलेक से सम्पर्क करूँगा और कांग्रेस के  अन्य नेताओं से भी सम्पर्क करके कांग्रेस की भूमिका के बारे में आपको सूचित करूँगा ।
आज़ाद ने फ़ोन रख दिया और बेचैनी से वे चक्कर लगाने लगे ।
मुम्बई के सैनिक हिंसा पर उतारू हो जाएँ इससे पहले ही कुछ न कुछ करना ही होगा,  कोई रास्ता निकालना ही    चाहिए ।   वे    सोच    रहे    थे ।
सरकार की क्या भूमिका है इसका पता लगना चाहिए । इस संघर्ष को जनता का समर्थन मिलेगा?’   उन्होंने अपने आप से पूछा ।
बिलकुल मिलेगा’,  उनके दूसरे मन ने गवाही दी, ‘‘क्योंकि करीबकरीब नब्बे साल बाद सैनिक स्वतन्त्रता के लिए सुलग उठे हैं । उनका साथ देने से आज़ादी की आस अवश्य ही पूरी हो जाएगी । सामान्य जनता तो क्या,  बल्कि यदि कांग्रेस ने विरोध किया तो भी समाजवादी दल बिलकुल समर्थन देगा ।  इस विचार से वे अस्वस्थ हो गए । उन्होंने  फ़ौरन कमाण्डर इन चीफ़ के ऑफ़िस से फोन मिलाया ।
''Secretary to Commander in Chief speaking.'' सेक्रेटरी की आवाज़ आई ।
‘‘मैं मौलाना अबुल कलाम आज़ाद । मुझे कमाण्डर इन चीफ़ से मिलना है ।’’
‘‘किस बारे में ?’’
‘‘सैनिकों के विद्रोह के बारे में ।’’
‘‘ठीक है,   मैं कमाण्डर इन चीफ़ से पूछता हूँ ।’’
एचिनलेक को आज़ाद की इच्छा के बारे में पता लगा तो वे मन ही मन खुश हो गए। वे इसी की राह देख रहे थे ।
यदि कांग्रेस को दूर रखा जाए तो पूरी समस्या चुटकियों में हल हो जाएगी ।  वे पुटपुटाए । आज़ाद को थोड़ा लटकाकर रखेंगे । उन्होंने मन ही मन निश्चय किया और सेक्रेटरी से कहा,    ‘‘कल सुबह दस बजे का समय दो ।’’
आज़ाद  बेचैन हो गए ।



आज़ाद के घर का  फ़ोन खनखनाया,  पटेल बोल रहे थे।
‘‘यदि  सैनिकों ने समर्थन माँगा तो हमारी भूमिका क्या होगी ?’’  पटेल  पूछ रहे थे । ‘‘अरुणा आसफ अली उनसे मिलने वाली हैं । शायद वे नेतृत्व भी करें । यदि ऐसा हुआ तो...  नहीं,  उन्हें दूर रखना ही होगा ।’’  सरदार  पटेल  की  बेचैनी उनकी बातों में प्रकट हो रही थी ।
‘‘अरुणा आसफ अली से मैं बात करता हूँ । कल सुबह मैं लॉर्ड एचिनलेक से मिलकर चर्चा करने वाला हूँ । मेरा यह विचार है कि सैनिक काम पर लौट जाएँ,  कांग्रेस से बिना पूछे,  उस पर विश्वास न करते हुए,  यह विद्रोह किया गया है । आप भी यही भूमिका अपनाएँ,’’    आज़ाद ने सुझाव दिया ।
‘‘यदि सरकार सैनिकों को काम पर वापस न ले तो ?’’   सरदार पटेल ने सन्देह प्रकट किया ।
‘‘ऐसा नहीं होगा’’   आज़ाद ने आत्मविश्वास से कहा,   ‘‘यदि ऐसा कुछ हुआ तो हम उचित कदम उठाएँगे ।’’
‘‘मगर  अरुणा  आसफ  अली...’’  पटेल  का  सन्देह।
‘‘मैं सम्पर्क करता हूँ । मुझे यकीन है कि वे मेरी बात मान लेंगी ।’’ आज़ाद ने आश्वासन देते हुए फ़ोन रख    दिया ।



लन्डन में हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स की सभा हो रही थी । दोनों सभागृहों के सदस्यों को हिन्दुस्तान की घटनाओं की थोड़ीबहुत जानकारी मिल चुकी थी । उनके मन में एक ही सन्देह था,   क्या इंग्लैंड हिन्दुस्तान में अपनी सत्ता बनाए रख सकेगा ?’
दोनों सभागृहों में सदस्यों ने सरकार से कई प्रश्न पूछे इन सभी प्रश्नों का रुख एक ही ओर था,   ‘‘सरकार इस विद्रोह को दबाने के लिए क्या कार्रवाई करने जा रही है ?’’
सेक्रेटरी ऑफ स्टेट्स फॉर इण्डिया लॉर्ड पेथिक लॉरेन्स ने उपलब्ध जानकारी के आधार पर सभा को बताया, ‘‘सरकार परिस्थिति पर पूरी नज़र रखे हुए है । इस प्रकार के विद्रोह पहले भी हिन्दुस्तानी नौदलों में हो चुके हैं। जितने आत्मविश्वास से सरकार ने पहले के विद्रोहों को कुचल दिया था,  उतने ही आत्मविश्वास से यह विद्रोह भी दबा दिया जाएगा। सरकार हिन्दुस्तान की आज़ादी पर विचारविनिमय करने के लिए और सविस्तर चर्चा करने के लिए तीन मन्त्रियों का एक मण्डल भेजने वाली है । इस मण्डल को 'His Majesty The King' ने मान्यता दी है । सर स्टॅफर्ड क्रिप्स,  फर्स्ट लॉर्ड ए.बी.  अलेक्जांडर और मैं,   पेथिक लॉरेन्स,     इस मण्डल के सदस्य होंगे ।’’
हिन्दुस्तान को आज़ादी देने के बारे में विस्तृत योजना बनाने के लिए कैबिनेट मिशन हिन्दुस्तान आने वाला है, मिशन के सदस्यों की नियुक्तियाँ हो गई हैं – यह सूचना लॉर्ड एचिनलेक को प्राप्त हुई और वे खुश हो गए ।
अब कांग्रेस और मुस्लिम लीग को इस विद्रोह से दूर रखना मुश्किल नहीं है । उनके लिए यह मिशन एक लालचहै, ’  वे पुटपुटाए ।
फिर कम्युनिस्टों का क्या ?’’    उन्होंने अपने आप से पूछा ।
उनकी परवाह करने की ज़रूरत नहीं,’  उन्होंने अपने मन को समझाया ।
अगर इस मिशन की घोषणा दोचार दिन बाद,   विद्रोह के शान्त होने के बाद की जाती तो... अब तो इसका पूरा श्रेय सैनिकों के विद्रोह को जाएगा।  उनके मन में सन्देह उठा। मगर मेरा काम आसान हो गया है ।  उन्होंने  सोचा और शान्ति से सिगार सुलगाया ।



मुम्बई के जहाज़ों और नौसेना तलों के सैनिकों का प्रवाह तलवार की ओर जारी था । उनकी संख्या अब दस हज़ार के करीब हो गई थी । तलवार का परेड ग्राउण्ड सैनिकों  से खचाखच भरा था । तलवार की स्ट्राइककमेटी के सदस्य इस ज़बर्दस्त समर्थन से भावविभोर हो गए थे ।
‘‘एकत्रित सैनिकों को यहाँ एक साथ बोलने का मौका दिया जाए तो उनकी पीड़ा जनता तक पहुँचेगी और हमारी एकता अधिक मज़बूत होगी ।’’   दत्त ने सुझाव दिया ।
‘‘इतने ही से काम नहीं चलेगा। हर जहाज़ को और हर बेस   को यह महसूस होना चाहिए कि यह संघर्ष उन्हीं का है; और यदि लिए गए हर निर्णय में उनका सहभाग रहा तभी उन्हें ऐसा महसूस होगा । प्रत्येक जहाज़ और बेस के प्रतिनिधियों की एक केन्द्रीय समिति बनाएँ ।’’    गुरु ने सुझाव दिया ।
खान  ने  लाउडस्पीकर  से  घोषणा  की,  ‘‘सभी  सैनिक  परेड  ग्राउण्ड  पर  जमा हो जाएँ ।’’
बैरेक में बैठे हुए और इधरउधर टहल रहे सैनिक परेड ग्राउण्ड की ओर चल पड़े ।
खान, गुरु, दत्त, मदन, पाण्डे और तलवार की स्ट्राइककमेटी के सदस्य सैल्यूटिंग डायस पर आए। आज तक इस डायस का उपयोग नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी सैल्यूट स्वीकार करने के लिए करते थे। आज इसी डायस का उपयोग स्वतन्त्रता के मन्त्र से सैनिकों के मन में आत्मसम्मान की पवित्र अग्नि जलाने के लिए किया जाने वाला था ।
‘‘दोस्तो!  तलवार  के  सभी  सैनिकों  की  ओर  से  मैं  आपका  स्वागत  करता हूँ’’,  दत्त  ने  सबका  स्वागत  किया ।  दिसम्बर  से  लेकर  18  तारीख  की  रात  तक घटित घटनाओं के बारे में बताया,   तलवार के सैनिकों के निश्चय के बारे में बताया। एकत्रित सभी सैनिक शान्ति से सुन रहे थे । बीचबीच में 'Shame, Shame!' के नारे लग रहे थे ।
दत्त के पश्चात् खान बोलने के लिए आया ।
‘‘दोस्तो! इतनी भारी तादाद में आपको यहाँ देखकर हम सबको यकीन हो  गया  है  कि  इस  संघर्ष  में  तलवार  अकेला  नहीं  है ।  आज  हम,  जो  यहाँ  एकत्रित हुए हैं, न हिन्दू हैं, न मुस्लिम, न ही सिख । हम सभी हिन्दुस्तानी हैं;  हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता के लिए एक दिल से खड़े सैनिक हैं,   हमें अपनी जाति,  अपना धर्म, अपना प्रान्त,    अपनी ब्रैंच भूलकर  स्वतन्त्रता’ -  इस एक लक्ष्य से प्रेरित होकर संगठित  हुआ  देखकर  अंग्रेज़ों के दिल में दहशत पैदा हो गई होगी । हमारे विद्रोह की ख़बर सुनकर देश के अन्य नौदलों की बेस  के सैनिक और मुम्बई के बाहर के जहाज़ों के सैनिक इस संघर्ष में शामिल होंगे इसका मुझे और मेरे साथियों को यकीन है । सेना के अन्य दलों का समर्थन भी हमें मिलेगा । वे भी हमारे पीछेपीछे संघर्ष में शामिल होंगे ऐसी अपेक्षा है । आज हमने   जो लड़ाई आरम्भ की है उसका पूरा श्रेय सुभाष बाबू को है । बदकिस्मती से वे आज हमारे बीच नहीं हैं । यदि वे आज होते तो वे ही हमारा नेतृत्व करते उन्होंने ही हमारे आत्मसम्मान को जगाया है । उनका नेतृत्व नहीं है इसलिए हमें हताश होने की ज़रूरत नहीं है,  क्योंकि उनकी केवल याद ही हमारा नेतृत्व करेगी । उनके दिखाए मार्ग   पर चलकर हमारी विजय होगी यह ध्यान में रहे।
‘‘हमारा  संघर्ष  स्वतन्त्रतासंघर्ष  है ।  हमें स्वतन्त्रता इसलिए चाहिए कि वह हमारा अधिकार है! अंग्रेज़ों की मेहरबानी स्वरूप,   उनकी शर्तों पर दी गई आज़ादी हमें नहीं चाहिए । पिछली चार पीढ़ियों से हम स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहे हैं,  स्वतन्त्रता  की  राह  देख  रहे  हैं ।  अब  और  इन्तजार  नहीं  कर  सकते ।  हमारा  संघर्ष संकुचित स्वार्थ के लिए नहीं है । हमारे माँगपत्र में हालाँकि स्पष्ट रूप से स्वतन्त्रता की माँग नहीं की गई है,    फिर भी हमारी माँगों का निहितार्थ एक ही है । स्वतन्त्रता और पूर्ण स्वतन्त्रता!
‘‘दोस्तो! याद रखो,   अंग्रेज़ों के यहाँ से जाए बिना हमारी गुलामी ख़त्म होने वाली नहीं । कितने दिनों तक हम गुलामी का जुआ ढोते रहेंगे ?   मातृभूमि की गुलामी की जंज़ीरें काटने के लिए जो निर्भयतापूर्वक बलिदान कर रहे हैं,    उनका बलिदान हम कब तक पत्थर दिल बनकर देखते रहेंगे ?   ये सब ख़त्म करने के लिए हम इस लड़ाई में   उतरे हैं । शायद इसमें हमें अपने प्राण भी गँवाने पड़ें,  मगर गुलामी की,  लाचारी की जिन्दगी के मुकाबले गुलामी की  जंज़ीरें काटते हुए आई मौत कहीं बेहतर है । दोस्तो! भूलो मत! हमारा संघर्ष एक शक्तिशाली हुकूमत से है,  एक सुसंगठित व्यवस्था से है । यदि हम संगठित होंगे ,  एकजुट रहेंगे तभी हमारी जीत होगी । इसके लिए हमें अनुशासित रहना होगा । अनुशासन के बगैर यदि हम संगठित हुए तो वह संघर्ष करने वाली सेना न होगी,   बल्कि   भेड़बकरियों का हुजूम होगा । यदि हम युद्धकालीन अनुशासन का पालन करेंगे तभी जयमाला हमारे गले में पड़ेगी,   हमारा लक्ष्य पूरा होगा । चाहे हमने काम बन्द कर दिया हो फिर भी हमने अपना पेशा नहीं छोड़ा है ।   भूलो मत,   हम सैनिक हैं  और सैनिक ही रहेंगे ।’’
खान के भाषण से वहाँ एकत्रित सारे सैनिक भड़क उठे । उन्होंने उत्स्फूर्त नारे आरम्भ कर दिये:
‘‘हम सब एक हैं!’’
‘‘वन्दे मातरम्!’’
‘‘क्विट इंडिया!’’
‘‘दोस्तो! शान्त हो जाइये, शान्त हो जाइये!’’ गुरु सैनिकों से अपील कर रहा था ।
‘‘हमें अनेक काम करने हैं,  अपनी रणनीति निश्चित करनी है,   हमारा नेतृत्व सुनिश्चित करना है,   और हमारे पास    समय कम है,’’   गुरु की इस अपील से सैनिक शान्त हो गए ।
‘‘दोस्तो! हम एक सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी स्थापित करेंगे; इस कमेटी के सामान्य अधिकार और कार्यक्षेत्र निश्चित करेंगे,  कमेटी के सदस्य हर जहाज़ और बेसके प्रतिनिधि और  नेता  होंगे; कमेटी द्वारा लिया गया प्रत्येक निर्णय  सब पर लागू होगा; कमेटी के निर्णय चर्चा द्वारा लिये जाएँगे । इस सेन्ट्रल स्ट्राइक कमेटी के ही समान हर जहाज़    और बेस पर एकएक कमेटी बनाई जाएगी ।’’   गुरु ने सुझाव दिया ।
गुरु का सुझाव सबने मान लिया । खान को एकमत से सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी का अध्यक्ष और मदन को उपाध्यक्ष चुना गया; और फिर हर जहाज़ की समितियाँ बनाकर उनके प्रतिनिधियों को सेन्ट्रल स्ट्राइक कमेटी का सदस्य मनोनीत किया गया और सेन्ट्रल स्ट्राइक कमिटी की औपचारिक मीटिंग आरम्भ हो गई । खान ने अध्यक्ष पद के सूत्र सँभाल लिये!
‘‘दोस्तो! आज हम स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए ही अंग्रेज़ों के विरुद्ध खड़े हैं । एक ही इच्छा है – स्वतन्त्र हिन्दुस्तान के सागर तट की जीजान से रक्षा करने की । हमें राजपाट नहीं चाहिए,   शासन में हिस्सेदारी नहीं चाहिए । हमें चाहिए हिन्दुस्तान की आज़ादी,   अखण्ड हिन्दुस्तान की आज़ादी ।
‘‘अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमारा राष्ट्रीय पक्ष से सहयोग लेना आवश्यक है। हमारे सहकारी कराची में आज़ाद से मिले थे । हम,    तलवार के सैनिक,    भूमिगत क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में थे । हमने निश्चय किया है कि कल अपनी माँगें राष्ट्रीय नेता के माध्यम से पेश करेंगे, क्योंकि उनके इस तरह पेश करने पर ही सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित होगा कि इस स्वतन्त्रता संघर्ष में राष्ट्रीय पक्षों के साथसाथ सैनिक भी हैं । कल हमने अपना प्रतिनिधि मण्डल अरुणा आसफ अली के पास भेजा था । आज भी हमारे प्रतिनिधि उनसे मिलकर मध्यस्थता करने  और संघर्ष के सूत्र अपने हाथों में लेने की विनती करने गए हैं । यह ज्ञात हुआ है कि अरुणा आसफ अली ने मध्यस्थता करना स्वीकार कर लिया है ।’’  खान ने अपनी अपेक्षाओं को प्रस्तुत करते हुए जानकारी दी ।
अरुणा आसफ अली मध्यस्थता करेंगी यह खबर उत्साहजनक थी ।
‘‘शुरुआत तो अच्छी हुई है । अब हमारी विजय निश्चित रूप से होगी ।’’ कोई पुटपुटाया ।
सैनिकों का उत्साह और आनन्द नारों के रूप में प्रकट होने लगा ।
‘‘अरुणा आसफ अली, जिन्दाबाद!’’
‘‘हम सब एक हैं!’’
‘‘इन्कलाब,    जिन्दाबाद!’’    सैनिक नारे लगाते रहे ।



लॉर्ड एचिनलेक मुम्बई पोलिस कमिश्नर द्वारा भेजी गई रिपोर्ट पढ़ रहे थे । रिपोर्ट में लिखा था :  
‘‘नौसैनिक राष्ट्रीय नेताओं का समर्थन प्राप्त करने की कोशिश में हैं । उनके प्रतिनिधि कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से मिल रहे हैं । इनमें से कांग्रेस विद्रोह को समर्थन देने की मन:स्थिति में नहीं है, कांग्रेस फ़िलहाल शान्ति चाहती है । हिन्दू और मुस्लिम इकट्ठे होने के कारण लीग इसमें सहभागी नहीं होगी । कम्युनिस्ट पार्टी आज तक स्वतन्त्रता आन्दोलन से दूर थी । इस पार्टी का जनता पर खास प्रभाव नहीं है । इसलिए यदि यह पार्टी समर्थन देती है, तो भी विशेष फर्क पड़ने वाला नहीं है । कांग्रेस के  समाजवादी गुट के नेताओं,   विशेषत: अरुणा आसफ अली के समर्थन देने की  सम्भावना है ।’’
एचिनलेक ने आख़िरी वाक्य पढ़ा और वे बेचैन हो गए। सुबह के अखबार में भी अरुणा आसफ अली का ज़िक्र था । यह औरत एक तूफान है,’ वे अपने आप से पुटपुटाये । गोलियों की परवाह न करते हुए तिरंगा फ़हराने की उनकी ज़िद की याद आई । अगर इस औरत का साथ उन्हें मिल गया तो...   इस विचार से बेचैनी और बढ़ गई । उन्होंने   फ़ौरन मुम्बई के पुलिस कमिश्नर को  आपात सन्देश भेजा, ''Serve an order on Mrs. Aruna Asaf Ali debarring her from taking part in public meetings.''




सैनिकों के प्रतिनिधि अरुणा आसफ अली से मिलने पहुँचे तो दिन के ग्यारह बजे थे ।
‘‘आइये,     मैं आपकी राह ही देख रही थी ।’’   उन्होंने मुस्कराते हुए प्रतिनिधियों का स्वागत किया। ‘‘क्या कहता है विद्रोह ?’’   उन्होंने पूछा ।
‘‘विद्रोह को उम्मीद से बढ़कर समर्थन मिल रहा है। अभी,   इस वक्त करीब आठ से दस हज़ार सैनिक तलवार पर इकट्ठा  हुए हैं और आठदस हज़ार हमें समर्थन देने वाले जहाज़ और बेस   सँभाल रहे हैं ।’’   पाण्डे ने  जवाब दिया ।
‘‘तुम्हारा संघर्ष,    तुम पर होने वाले अन्याय,   तुम्हारे साथ किये जा रहे सौतेले व्यवहार,  कम वेतन,  अधूरा खाना इसी के लिए है ना ?’’  अरुणा आसफ़ अली ने पूछा ।
‘‘नहीं,  सिर्फ यही कारण नहीं है।’’   दोतीन प्रतिनिधि एकदम बोले। ‘‘हमारी ये माँगें देखिये, तब समझ में आएगा ।’’  पाण्डे ने माँगों का निवेदन उनके हाथों में दिया । अरुणा आसफ़ अली ने बारीकी से उन माँगों को पढ़ा । ‘’ इनमें   पहली और अन्तिम माँग कुछ हद तक स्वतन्त्रता से सम्बन्धित है।’’   उन्होंने कहा ।
‘‘सही है । मगर कल रात को हमने रॉटरे से कह दिया है कि हमें स्वतन्त्रता चाहिए । तुम यह देश छोड़कर चले जाओ!’’  प्रतिनिधि मण्डल के यादव ने जवाब दिया ।
‘‘और,  अन्य माँगें पढ़कर क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि हमारा आत्मसम्मान जागृत हो चुका है?’’   पाण्डे ने पूछा ।
उन्होंने गर्दन हिलाते हुए सम्मति ज़ाहिर की ।
‘‘किसी समाज का आत्मसमान जब जाग जाता है तो स्वतन्त्रता की लहर उफ़न उठती है । हमारा आत्मसम्मान जागृत हो गया है । हमें अब स्वतन्त्रता चाहिए ।’’    पाण्डे ने कहा ।
‘‘समझो, यदि सरकार ने तुम्हारी पहली और अन्तिम माँग ठुकराकर बची हुई माँगें मान लीं तो क्या संघर्ष वापस लेने के लिए आप लोग तैयार हैं ?’’   उन्होंने टटोलने की कोशिश की ।
‘‘कभी नहीं!’’    सारे  प्रतिनिधियों ने एक सुर में जवाब दिया ।
‘‘सारी माँगें मंज़ूर होनी ही चाहिए । यदि वैसा नहीं होता है तो हम आख़िर तक लड़ने के लिए तैयार हैं ।’’    यादव ने जवाब दिया ।
अरुणा आसफ अली मुस्करार्इं । सैनिकों की तैयारी देखकर उन्हें अच्छा लगा था ।
‘‘मुझसे आप किस तरह की मदद चाहते हैं ?’’   उन्होंने पूछा ।
‘‘आप हमारा प्रतिनिधित्व करके माँगें मनवा लें । यदि सरकार माँगें मंज़ूर नहीं करती है तो फिर आप हमारे विद्रोह का प्रतिनिधित्व करें ।’’  पाण्डे ने सहायता के स्वरूप के बारे में बताया ।
‘‘ठीक है । मैं सरकार से विचारविमर्श करूँगी और तुम लोगों से मिलकर ही निश्चित करूँगी कि मुझे तुम्हारा नेतृत्व करना है अथवा नहीं । आज ही दोपहर को चार बजे मैं तलवार में आकर तुम लोगों से मिलकर तुम्हारे विचार समझ लूँगी; अपने विचार तुम्हारे सामने रखूँगी इसके बाद ही निर्णय लूँगी ।’’   अरुणा आसफ़ अली ने सैनिकों का साथ देने का इरादा कर लिया ।



अरुणा आसफ  अली  शाम  चार  बजे  तलवार  पर  आकर  सैनिकों  का  मार्गदर्शन करेंगी  यह  ख़बर हवा  के  समान  फैल  गई ।  सैनिकों  के  बीच  उत्साह  का  वातावरण उत्पन्न हो गया । जहाज़ों और नाविक तलों पर रुके हुए सैनिक भी तलवार की ओर निकले । कई सैनिक अभी भी शहर में नारे लगाते घूम रहे थे,   उन्हें इस मुलाकात की जानकारी हो जाए इसलिए खान और मदन ने चार ट्रक्स लाउडस्पीकर्स लगाकर पूरी मुम्बई में घोषणा करने के लिए भेजे ।
अरुणा आसफ़ अली की मुलाकात के बारे में अख़बार वालों को पता लगते ही अख़बारों और समाचार एजेन्सियों के प्रतिनिधि तलवार की ओर भागे। सामान्य सैनिकों की भूमिका क्या है ?   अरुणा आसफ अली उन्हें क्या सलाह देने वाली हैं,  किस तरह का मार्गदर्शन करने वाली हैं ?  इसके  बारे  में  उन्हें  उत्सुकता  थी ।
‘‘आपका संघर्ष किसलिए है ?’’   एक पत्रकार ने पूछा ।
‘‘स्वतन्त्रता के लिए!’’  एक सैनिक ने जवाब दिया ।
‘‘सरकार तो यह कह रही है कि यह संघर्ष वेतनवृद्धि,   अच्छा खाना, सम्मानजनक व्यवहार आदि माँगों के लिए है । स्वतन्त्रता का इससे लेशमात्र भी सम्बन्ध नहीं है ।’’    दूसरे पत्रकार ने  एक अन्य सैनिक को छेड़ा ।
‘‘सरकार तो यही कहेगी । हमारी माँगें बेशक वेतनवृद्धि,   अच्छा खाना, सम्मानजनक व्यवहार के सम्बन्ध में हैं, मगर स्वतन्त्रता प्राप्त हुए बिना हमें न्याय मिलने वाला नहीं है इसका हमें यकीन है।  रा  तलवार  में  घूमकर देखो । यहाँ की दीवारें स्वतन्त्रता के नारों से सजी हैं । हम तो क्या, यहाँ का एकएक कण स्वतन्त्रता की इच्छा से   सम्मोहित है ।’’   दूसरे सैनिक ने गुस्से से जवाब दिया ।
‘‘क्या आपको यकीन है कि आपके इस संघर्ष से स्वतन्त्रता प्राप्त हो जाएगी ?’’    पत्रकार का प्रश्न था ।
‘‘क्यों नहीं होगी ?’’   सैनिक ने पलट कर पूछा ।
‘‘तुम लोग मुट्ठीभर हो,  कमज़ोर हो इसलिए––– ’’
‘‘सही है । हम मुट्ठीभर हैं, मगर कमज़ोर नहीं हैं । हम एक हैं । लड़ाइयाँ हमने भी देखी हैं । लड़ाई में कब कौनसे दाँवपेंचों का इस्तेमाल किया जाना है, यह हमें मालूम है । हमें यकीन है,  कि यदि राष्ट्रीय दलों और नेताओं ने हमारा साथ दिया तो जय हमारी ही होगी । स्वतन्त्रता अब दूर नहीं ।’’  सैनिक ने जवाब दिया ।
‘‘क्या तुम्हें यकीन है  कि राष्ट्रीय दल और नेता तुम्हारा साथ देंगे ?’’ पत्रकार ने पूछा ।
 ‘‘साथ क्यों नहीं देंगे ?   उनका हमारा उद्देश्य तो आख़िर एक ही है ना । अरुणा आसफ़ अली से मुलाकात किस ओर इशारा करती है ?’’   सैनिक ने स्पष्ट किया ।
‘‘तुम्हारा संघर्ष अहिंसक नहीं है ।’’
‘‘किसने कहा ?   हम अहिंसा के मार्ग पर ही चल रहे हैं । और चलते रहेंगे ।’’ अविश्वास के प्रति चिढ़कर सैनिक ने जवाब दिया ।
‘‘कल की अमेरिकन झण्डे... ’’
‘‘वह हमारी ग़लती थी,  हमने इसके लिए माफी माँगी है। याद रखिये,  हम सैनिक हैं । बन्दूक की ज़ुबान हम समझते हैं । अहिंसा  का  मार्ग  हमारे  लिए  नया है । एकाध बार पैर फ़िसल सकता है,   मगर इसका मतलब यह नहीं हुआ कि हम हिंसा पर उतारू हो गए हैं ।’’
पत्रकारों और संवाददाताओं को यह  बात समझ में आ गई कि सैनिक एक हो गए हैं । जागृत हो चुके आत्मसम्मान के बल पर ही उन्होंने संघर्ष आरम्भ किया है,  वे अहिंसा के मार्ग पर चल रहे हैं और उनमें ज़बर्दस्त आत्मविश्वास है ।



मुम्बई के रास्तों पर नारे लगाते घूम रहे सैनिकों को देखकर मुम्बई प्रान्त के गवर्नर सर जे.   कोलविल परेशान हो  गए ।
‘‘अब तक तो ये  सैनिक अहिंसक थे । यदि उन्होंने हिंसा का मार्ग अपनाया तो ?’’  इस सन्देह के मन में उत्पन्न होते ही वे बेचैन हो गए,  उनकी आँखों के सामने जलती हुई मुम्बई खड़ी हो गई,   बेचैनी बढ़ गई । बेचैन मन से वे उस विशाल हॉल में चक्कर लगाने लगे ।
‘‘यह  सब  रोकना  ही  होगा ।  किसी  भी  तरह  से  सैनिकों  को  काबू  में  करना ही होगा।’’  उन्होंने निश्चय  किया  और  वरिष्ठ  अधिकारियों  की  मीटिंग  बुलाने  का निर्णय    लिया ।
मुम्बई के गवर्नमेंट हाउस में भागदौड़ बढ़ गई थी । दिन के सवा दो बजे से  ही  वरिष्ठ  अधिकारी  पहुँचने शुरू  हो गए थे । आए हुए अधिकारी छोटेछोटे समूहों में इकट्ठा होकर मुम्बई की परिस्थिति और उसके फलस्वरूप निर्माण होने वाले प्रश्नों की धीमी आवाज़ में चर्चा कर रहे थे । दीवार घड़ी ने ढाई बजे का घण्टा बजाया और मुम्बई के गवर्नर ने गवर्नमेंट हाउस में प्रवेश किया । शानदार कदमों से वे सीधे मीटिंग हॉल में आए । उन्हें देखते     ही अधिकारियों की फुसफुसाहट थम गई । सभी अधिकारी अटेन्शन की मुद्रा में आ गए और उन्होंने गवर्नर को विश    किया, ''Good noon, Sir!''
‘‘मुम्बई में आज जो परिस्थिति है उसके बारे में आप सब जानते हैं । सबसे पहली ज़रूरत है इन सैनिकों पर काबू पाना। इसके लिए भूदल और हवाईदल का प्रयोग करने के लिए मैं तैयार हूँ । रियर एडमिरल रॉटरे, आपके पास जो नौदल अधिकारी और गोरे सैनिक हैं, क्या उनकी सहायता से आप हिन्दुस्तानी सैनिकों पर काबू पा सकेंगे ?’’ प्रस्तावना में समय न गँवाते हुए गवर्नर सीधे विषय पर आ गए ।
‘‘सर,    मुम्बई के नौसैनिकों की  संख्या करीब बीस हज़ार है । इनमें से अधिकांश सैनिक विद्रोह में शामिल हो गए हैं । अधिकारियों और गोरे सैनिकों की संख्या लगभग दो हजार है । माफ कीजिए, इतने छोटे सैनिक बल से में इन सैनिकों पर काबू नहीं कर पाऊँगा । सैनिकों ने अभी तक तो हिंसा का मार्ग अपनाया नहीं है । अधिकारियों की बात तो वे सुनेंगे ही नहीं, मगर यदि हिंसा पर उतारू हो गए तो... सभी...’’   रॉटरे ने  अपनी असमर्थता जतार्ई ।
‘‘यह आग कितनी दूर तक फैल चुकी है ?’’  गवर्नर ने पूछा । 
‘‘मुम्बई में बाईस जहाज़ और सभी नाविक तल विद्रोह में शामिल हो गए हैं । ऐसी मेरे पास जानकारी है । मुम्बई से बाहर के कुछ नाविक तलों के  भी शामिल होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता । ऐसा नहीं है कि इस विद्रोह में सिर्फ कनिष्ठ सैनिक ही शामिल हैं,   बल्कि कुछ हिन्दुस्तानी अधिकारी और ज़्यादातर पेट्टी ऑफिसर्स और चीफ पेट्टी ऑफिसर्स  भी सम्मिलित  हैं । कल  तलवार  पूरी  तरह सैनिकों के कब्जे में था । आज तलवार ही की तरह अन्य जहाज़ और नाविक तल सैनिकों के  नियन्त्रण में हैं,’’    रॉटरे ने जानकारी दी ।
‘‘मतलब,  परिस्थिति  गम्भीर  है ।  जनरल  बिअर्ड,  मेरा  ख़याल  है  कि  भूदल का इस्तेमाल करना होगा, आपकी क्या राय है ?’’   गवर्नर ने  एरिया कमाण्डर जनरल बिअर्ड से पूछा ।
‘‘आज मेरे अधीन लैंचेस्टर रेजिमेंट की आधी बटालियन और मराठा रेजिमेंट इस काम के लिए पर्याप्त नहीं है ऐसा मेरा विचार है । क्योंकि फोर्ट और कैसल बैरेक्स में गोलाबारूद और शस्त्रास्त्र हैं।  विद्रोह  में  शामिल  सैनिकों  के  शस्त्रों  का इस्तेमाल करने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता । ऐसी स्थिति में ज़रूरत  पड़ने पर  सशस्त्र  पुलिस  की  सहायता,  आवश्यकता  पड़ने  पर,  ली  जाए ।’’
बिअर्ड ने भूदल के इस्तेमाल के बारे में स्पष्टीकरण दिया ।
 ‘‘मुम्बई  में  विद्यमान  सेना  अपर्याप्त  क्यों  प्रतीत  होती  है ?  क्या  ऐसी  स्थिति में हवाईदल की मदद ली जा सकती है? बेशक, सशस्त्र पुलिसदल आपको दिया जाएगा ।’’    पुलिस कमिश्नर बटलर ने  पूछा ।
‘‘हमारी लैंचेस्टर रेजिमेंट  में  जो  सैनिक  हैं  वे  युद्ध  के  दौरान  भर्ती  किए  गए  किसान, मजदूर आदि हैं । वे अनुशासित और पूरी तरह से प्रशिक्षित हिन्दुस्तानी नौसैनिकों के सामने टिक नहीं सकेंगे । हवाईदल पर हम विश्वास नहीं कर सकते, क्योंकि कुछ ही दिन पहले दिल्ली के हवाईदल की बेस पर विद्रोह हुआ था । नौसैनिकों  की ही भाँति ये सैनिक भी सुशिक्षित हैं। उन पर विविध राजनीतिक दलों का प्रभाव है । ये सैनिक सरकार के प्रति कितने वफ़ादार रहेंगे इसमें सन्देह है ।’’   बिअर्ड ने जवाब दिया ।
‘‘मुझे याद है,  कि लार्ड वेवेल ने चीफ़ ऑफ दि स्टाफ़ को पत्र लिखकर आज की परिस्थिति जैसी नौबत आने पर कितने सैनिकों,  जहाजों,  विमानों  की आवश्यकता होगी इसकी एक पूरी फेहरिस्त ही भेजी थी । यह पत्र 22 दिसम्बर को,   अर्थात् करीब दो महीने पूर्व प्राप्त हुआ था । इसमें से कितनी डिप्लॉयमेंट प्राप्त हो चुकी है ?’’   गवर्नर के सलाहकार बिस्ट्रो ने पूछा ।
‘‘कुछ भी नहीं,’’   बिअर्ड ने जवाब दिया । ‘‘फोर्ट बैरेक्स और कैसेल बैरेक्स के गोलाबारूद और शस्त्रास्त्रों को पहले अपने नियन्त्रण में लेना चाहिए। समयानुसार इन नाविक तलों पर हमले करना भी ज़रूरी है ।’’
‘‘इन तलों के शस्त्रास्त्रों को कब्जे में लेना हालाँकि जरूरी है, मगर हमला करने की जल्दबाज़ी न करें। चिढ़े हुए बीस  हज़ार सैनिक मुम्बई में तांडव मचा देंगे; यदि हमारे इरादे की उन्हें ज़रा सी भी भनक पड़ गई तो वे बाहर निकल आएँगे और फिर हालात बेकाबू हो जाएँगे ।’’  बटलर ने चेतावनी दी ।
‘‘नाविक तलों पर भूदल की सहायता से नियन्त्रण किया जा सकता है,  मगर जहाज़ों का क्या ? इन पर कब्जा कैसे करेंगे ? इन जहाज़ों पर दूर तक मार करने वाली तोपें हैं । इन तोपों की मार से पूरी मुम्बई नष्ट हो सकती है तलों के साथसाथ जहाज़ों पर भी कब्ज़ा करना होगा ।’’   ब्रिस्टो को विस्तारपूर्वक जानकारी चाहिए थी ।
जहाज़ों पर कब्जा करने के लिए हवाईदल की मदद लेनी चाहिए। हिन्दुस्तानी हवाईदल विश्वास करने योग्य नहीं रह गया है अत: ब्रिटिश एअर फोर्स के कुछ बॉम्बर्स मँगवाने चाहिए। भूदल की सहायता के लिए भी आसपास के तलों से ब्रिटिश भूदल के सैनिक लाए जाएँ। सम्भव हो तो कुछ जहाज़ भी मँगवा लिये जाएँ। इन टुकड़ियों के पहुँचने तक सैनिकों को उनकी बैरेक्स में दबाकर रखा जाए। दरमियान के काल में बातचीत का नाटक करते रहेंगे ।    पर्याप्त सैनिक शक्ति प्राप्त होते ही इस विद्रोह को कुचल देंगे ।’’  रॉटरे ने व्यूह रचना प्रस्तुत की ।
जनरल बिअर्ड ने नौसैनिकों को बैरेक्स में दबाए रखने की और पर्याप्त सैनिक सहायता प्राप्त करने की ज़िम्मेदारी स्वीकार की ।
मीटिंग से जब ये सारे वरिष्ठ अधिकारी बाहर निकले,    तो वे अपनी रणनीति निश्चित कर चुके थे ।



सरदार पटेल ने मौलाना आज़ाद के सुझाव के अनुसार अरुणा आसफ़ अली से सम्पर्क स्थापित किया।
‘‘आज के अख़बारों में छपी ख़बर के अनुसार आप नौदल के विद्रोह का नेतृत्व करने वाली हैं  ऐसा ज्ञात हुआ है । क्या यह सच है ?’’   पटेल ने पूछा ।
‘‘कल और अभी कुछ घण्टे पहले सैनिकों के प्रतिनिधि मुझसे मिले थे । उनका संघर्ष केवल कुछ स्वार्थप्रेरित माँगों के लिए ही नहीं है । उन्हें आज़ादी चाहिए। आज करीब नब्बे सालों बाद सैनिक फिर एक बार स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहे हैं । वे जाति,  धर्म,  वंश... सब कुछ भूलकर एक हो गए हैं। मेरा ख़याल है कि यदि कांग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया तो उनका संघर्ष सफ़ल होगा। मैंने उनका साथ देने का निश्चय किया है ।’’   अरुणा आसफ अली ने अपनी राय बताई ।
‘‘कांग्रेस का स्वतन्त्रता प्राप्ति का मार्ग अहिंसक है,  और ये सैनिक हिंसा के मार्ग पर चलेंगे । कांग्रेस को इनका साथ नहीं देना चाहिए ऐसा मेरा मत है ।’’ अरुणा आसफ़ अली का निर्णय सुनकर परेशान हो गए सरदार पटेल ने दृढ़ता से कहा ।
‘‘ये सैनिक अब तक तो अहिंसा के मार्ग पर ही जा रहे हैं । अगर हमने इनका मार्गदर्शन नहीं किया,  उनका साथ नहीं दिया तो मुझे डर है कि सैनिक असहाय होकर कहीं हिंसा का मार्ग न अपना लें । यदि ऐसा हुआ तो परिस्थिति हाथ से बाहर निकल जाएगी ।’’  अरुणा आसफ़ अली ने स्पष्ट शब्दों में कहा ।
‘‘मुझे कुछ ही देर पहले ज्ञात हुआ है कि हिन्दुस्तान को स्वतन्त्रता देने बाबत चर्चा करने और योजना बनाने के लिए तीन मन्त्रियों के शिष्ट मण्डल की नियुक्ति की घोषणा भारतमन्त्री ने इंग्लैण्ड के दोनों सभागृहों में की है । नौका अब किनारे लगने के आसार नज़र आ रहे हैं ।  ऐसी स्थिति में...।’’
सरदार पटेल को बीच ही में रोकते हुए अरुणा आसफ़ अली ने पूछा,    ‘‘आज तक ऐसी कितनी समितियाँ नियुक्त की गर्इं ?   उनका परिणाम क्या निकला ?’’
‘‘इस  बार परिस्थिति अलग है । आज लेबर पार्टी सत्ता में है । चुनावों से पहले हिन्दुस्तानी नेताओं से हुई चर्चाओं में उन्होंने घोषणा की थी कि सत्ता में आने पर वे  हिन्दुस्तान को स्वतन्त्रता दे देंगे । आज देश के भीतर भी स्थिति ख़तरनाक हो चुकी  है । ऐसी हालत में शान्ति बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है । व्यापारी और उद्योग जगत् ने भी इस तरह की विनती की है ।’’  पटेल ने कहा।  अरुणा आसफ़ अली बेचैन हो गर्इं । सरदार का उद्देश्य वे समझ    गर्इं ।
‘‘विद्रोह करने से पहले सैनिकों ने कांग्रेस को विश्वास में नहीं लिया और न ही उससे सलाहमशविरा किया।‘’ सरदार ने दूसरा तर्क प्रस्तुत किया । यह तर्क लाजवाब नहीं है,   इसका सरदार पटेल को यकीन था ।
‘‘ऐसा नहीं कह सकते ।’’ वे उफन पड़ीं । ‘‘मौलाना आजाद से ये सैनिक कराची में मिले थे । उन्होंने क्या किया? उनकी शिकायतें दूर करने के कौनसे प्रयास किये ?  उन्होंने सैनिकों को अपने विश्वास में क्यों नहीं लिया?  नौदल में इससे पहले सातआठ विद्रोह हो चुके हैं,   दिसम्बर से तलवार के सैनिक स्वतन्त्रता के नारों से दीवारें रंग रहे हैं। कांग्रेस ने इसकी कोई दखल क्यों नहीं ली ? हमने आज तक इस शक्ति को नज़रअन्दाज ही किया है । आज ये सैनिक अंग्रेज़ों के विरुद्ध  खड़े  हैं ,  और हम उनकी सहायता न करें,  यह मुझे अच्छा नहीं लगता ।’’ वे तैश से बोलीं ।
‘‘वे सैनिक हैं,   ये बात आप मत भूलिये । सैनिकों को अनुशासन में ही रहना चाहिए । सेना में मनमानी किसी भी सरकार को रास नहीं आती । आज अगर हमने इन विद्रोहियों को समर्थन दिया और कल स्वतन्त्रता प्राप्त होने के बाद आपको रक्षा मन्त्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपी जाए और सैनिकों ने छोटेमोटे कारण से यदि विद्रोह कर दिया तो उसका विरोध कैसे करेंगी?   उस समय आपकी स्थिति क्या होगी इस पर विचार कीजिए ।’’   पटेल ने भविष्य की झलक दिखलार्ई ।
‘‘स्वतन्त्रता कोई छोटामोटा कारण नहीं है । भविष्य में यह कारण रहेगा ही नहीं और तब अन्य किसी कारण से विद्रोह हुआ तो मैं कार्रवाई करने में पीछे नहीं हटूँगी ।’’    अरुणा आसफ़ अली ने जवाब दिया ।
‘‘सैनिकों ने राजनीतिक माँगें और उनकी अपनी माँगें एक कर दी हैं। सैनिकों को राजनीति में दखल नहीं देना चाहिए। वे सिर्फ अपनी माँगों पर ध्यान दें ।’’  पटेल आसफ़ अली को परावृत्त करने के लिए एकएक तर्क दे रहे थे।                      
 ‘‘वे सैनिक हैं तो क्या हुआ?  सबसे पहले वे इस देश के नागरिक हैं । आज़ादी के लिए संघर्ष करना हर नागरिक का कर्तव्य है । सैनिक यही कर रहे हैं। यदि उन्होंने यह नहीं किया तो वे गद्दार कहलाएँगे ।’’  अरुणा आसफ़ अली का तर्क लाजवाब था ।
एक पल को पटेल खामोश हो गए । अब क्या तर्क दिया जाए इसका विचार कर रहे थे । दूसरी ओर से दुबारा हैलो   की आवाज़ आई तो वे वास्तविकता में वापस आए और उन्हें आज़ाद के फ़ोन की याद आई ।
‘’सुबह कांग्रेस अध्यक्ष,  आज़ाद का फ़ोन आया था । उन्होंने मुझे आपसे सम्पर्क करने के लिए कहा था । वर्तमान स्थिति में कांग्रेस तटस्थ रहे ऐसा उनका मत है। कल वे लॉर्ड एचिनलेक से मिलने वाले हैं । हम कांग्रेस के निष्ठावान सैनिक हैं। हमें कांग्रेस के आदर्शों का पालन करना चाहिए। अध्यक्ष की सलाह पर आप गम्भीरता से विचार करें।‘’ पटेल ने फ़ोन रख दिया ।
सैनिकों को दिया गया वचन भंग करना अरुणा आसफ अली को बहुत बुरा लग रहा था । वे कशमकश में पड़ गर्इं ।



जहाज़ों पर रुके हुए सैनिक,   रास्तों पर नारे लगाते घूम रहे सैनिक,   अरुणा आसफ़ अली तलवार    पर आने वाली हैं यह पता चलने पर वापस लौट रहे थे ।
‘‘हमने ये जो विद्रोह किया है उसके बारे में उनकी राय क्या होगी ?’’    नर्मदाका ब्रार गिल से पूछ रहा था ।
‘‘अरे,  वे जब यहाँ आ रही हैं,  इसका मतलब वे हमारी ओर ही होंगी!’’ गिल ने जवाब दिया। ‘‘उनकी राय हमारे बारे में अच्छी ही होगी ।’’
‘‘वे हमारा साथ देंगी इसका मतलब कांग्रेस का भी साथ मिलेगा और हमारा संघर्ष सफल होगा । हमें स्वतन्त्रता मिलेगी ।’’  ब्रार का चेहरा प्रसन्नता से दमक रहा था ।
ऐसे  ही  विचार  तलवार  में  आने  वाले  हर  सैनिक  के  मन  में  उठ  रहे  थे ।
बादलों से ढँका आसमान अब सूना हो गया था । चटकती धूप थी । सैनिकों के मन उत्साह से लबालब थे । उत्साह से भरे सैनिक तलवारके परेड ग्राउण्ड पर जमा हो रहे थे । जब भी किसी जहाज़  से सैनिक आते, उनका स्वागत नारों से  किया जाता;  वे एक दूसरे के गले लग रहे थे । पंजाबी सैनिकों का एक गुट मेरा रंग दे बसन्ती चोलाऊँची आवाज में गा रहा था;  मराठी सैनिकों का गुट क्रान्ति की जयजयकार कर रहा था । समूचा वातावरण चैतन्यमय हो उठा था,  और सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी को यह डर सता रहा था कि अनुशासन भंग न हो जाए ।
‘‘इन सैनिकों को खाली रखना ठीक नहीं । 'Empty mind is devil's workshop' यह बात झूठ नहीं है । सैनिक यदि बेकाबू हो गए तो परिस्थिति गम्भीर हो जाएगी ।’’    गुरु ने कहा ।
‘‘अब इन्हें दें तो क्या काम दें! भाषण सुनसुनकर  भी  ये  सैनिक  उकता जाएँगे...’’   बोस ने कहा।
‘‘इन्हें कहीं उलझाना ही चाहिए। यदि हमने अनुशासित जुलूस निकाला तो अपनी एकता और अनुशासन हम जनता को दिखा सकेंगे । साथ ही हमारे संघर्ष के कारणों का भी उन्हें पता चलेगा।’’   खान ने सुझाव दिया ।
‘‘इन सैनिकों को काबू में कैसे रखा जाए ?’’   पाण्डे ने पूछा ।
‘‘ ‘तलवार के सैनिकों पर हमारा पूरा नियन्त्रण है । हम इन सैनिकों को बीचबीच में लगा दें । हम - सेंट्रल कमेटी के सभी सदस्य और जहाजों के हमारे विश्वसनीय प्रतिनिधि - जुलूस वाले सैनिकों पर नज़र रखेंगे । यदि कोई गड़बड़ी करता हुआ या अनुशासन भंग करता हुआ दिखाई दे तो उसे नियन्त्रित किया जा सकता है; यदि एकाध सैनिक हंगामा मचाने की कोशिश करे तो उसे समय पर  ही  रोका  जा  सकता  है ।’’  मदन  का  सुझाव  सभी  ने  मान्य  कर  लिया ।  सैनिकों से अपील की गई कि वे अनुशासन में रहें ।
तीनतीन की कतारों में सबको फॉलिन किया गया । जहाज़ों और नौसेना तलों के हिसाब से सैनिकों की गिनती की गई,   और पन्द्रह हज़ार सैनिकों का जुलूस शुरू हो गया । आने वाले और रास्ते में मिलने वाले सैनिक शामिल हो ही रहे थे ।
सफ़ेद झक् यूनिफॉर्म में  नि:शस्त्र सैनिकों का यह जुलूस मुम्बई के रास्तों पर आगे सरक रहा था । सैनिकों के हाथ  में तिरंगा था,  चाँदतारे वाला हरा और क्रान्ति का प्रतीक,   हँसियाहथौड़े वाला लाल झण्डा था । नारों के कारण सारा वातावरण देशप्रेम की भावना से मन्त्रमुग्ध हो गया था ।
‘‘हिन्दूमुस्लिम एक हों ।’’   इस नारे की सहायता से वे सबको यह बता रहे थे कि यदि हिन्दूमुस्लिम एक हो गए, तभी सम्मानपूर्वक स्वतन्त्रता मिलेगी। जुलूस के पहले और अन्तिम सैनिक के बीच की दूरी करीबकरीब एक मील थी। कहीं भी गड़बड़ी नहीं थी, अनुशासनहीनता नहीं थी । सैनिक रास्ते के एक ओर से चल रहे थे। देखने वाले भी   उनके साथ अपने आप ही नारे लगा रहे थे । सैनिकों का यह अनुशासित जुलूस कुलाबाचौपाटी से फ़्लोरा फाउंटेन  तक जाकर उसी अनुशासन से तलवार    पर वापस आया ।
‘‘चलो, छूटे! जुलूस शान्तिपूर्वक गुज़र गया!’’   दास ने कहा ।
‘‘बीच  में  जब  म्यूज़ियम के पास वे गोरे सिपाही लाठियाँ पटकते हुए आगे आए तो मेरा दिल धक् से रह गया ।  ऐसा  लगा, कि यदि दोचार हिन्दुस्तानी सैनिक चिढ़कर बाहर निकल आए और हल्ला बोल दिया तो... यदि हमारे संघर्ष  को हिंसा का धब्बा लग गया तो...’’   पाण्डे के चेहरे पर राहत का भाव था।
‘‘जुलूस से यह तो यकीन हो गया कि सैनिक हमारे नियन्त्रण में रहेंगे,  अहिंसा का मार्ग आसानी से छोड़ेंगे नहीं।’’ दत्त ने कहा ।



अरुणा आसफ़ अली ने घड़ी की ओर देखा । साढ़े तीन बजे थे ।   ‘ ‘तलवार  पर जाने की तैयारी करनी चाहिए,    वे पुटपुटाईं
 यदि कांग्रेस के अध्यक्ष और सरदार पटेल जैसे नेता इस संघर्ष से दूर रहने का निश्चय कर चुके हैं,  तो क्या मेरा उन्हें समर्थन देना उचित होगा? ’’    विचारचक्र तेज़ी से घूमने लगा ।
‘‘कल,  यदि मैं अथवा आसफ़ अली,  सचमुच ही रक्षामन्त्री बनते हैं तो...मेरा न जाना ही ठीक रहेगा।’’
दूसरा  मन  पूछ  रहा  था,  सैनिकों  के  प्रतिनिधियों  को  मैंने  वचन  दिया  है,  उसे तोड़ दूँ...  कारण क्या  बताऊँ? सैनिकों को यदि मार्गदर्शन प्राप्त हुआ तो यश दूर नहीं, आज़ादी दूर नहीं,  मगर...’’
मन दुविधा में था ।
फ़ोन की घण्टी बजी । एक मिनट वे शान्त बैठी रहीं ।  क्या जवाब दूँ ?  ये सैनिकों के प्रतिनिधियों का ही है ।’’  फ़ोन बजे जा रहा था । उन्हें ऐसा लगा मानो फ़ोन उनका इम्तहान ही ले रहा है । कुछ नाराज़गी से ही  उन्होंने फ़ोन उठाया ।
''Police Commissioner Butler speaking.''
''Aruna Asaf Ali. here.''
‘‘मैडम, मैसेंजर के साथ मैंने आपको एक ख़त भेजा है,  जो आपको थोड़ी देर में मिल ही जाएगा । मगर चार बजे से पहले आपको सूचित किया जाए ऐसा आदेश प्राप्त होने के कारण ही मैंने फ़ोन किया ।’’    बटलर पलभर को रुका ।
‘‘पत्र किस बारे में है ? ’’   शान्तिपूर्वक उन्होंने पूछा ।
''Madam, you are debarred from taking part in Public meeting. आज चार बजे आप तलवार    के सैनिकों से  मिलने वाली हैं । आपकी इस मुलाकात पर पाबन्दी लगा दी गई है । यदि आपने उनसे मिलने की कोशिश की तो आपके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी ।’’  बटलर ने धमकीभरे सुर में कहा और फ़ोन बन्द कर दिया ।
अरुणा  आसफ  अली  बेचैन  मन  से  बैठी  रहीं ।  कुछ  भी  करने  को  उनका मन ही नहीं हो रहा था ।




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Vadvanal - 23

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