जहाज़ों पर गहमागहमी बढ़ गई थी। सभी जहाज़ किसी भी
क्षण बाहर निकलने की और तोपें दागने की तैयारी कर रहे थे। बॉयलर फ्लैशअप किए जा
रहे थे, चिमनियाँ काला धुआँ फेंक रही थीं।
फॉक्सल और क्वार्टर डेक की ऑनिंग निकाली जा रही थी, तोपों
से आवरण हटाकर उनकी क्षमता जाँची जा रही थी। कब क्या होगा यह कोई भी नहीं बता सकता
था और इसीलिए हर जहाज़ हर प्रसंग का सामना करने की तैयारी कर रहा था।
सैम्युअल ने एक प्लैटून कमाण्डर को डॉकयार्ड से
‘कैसल बैरेक्स’ पर हमला करने की योजना समझाई।
‘‘पाँच–पाँच
सैनिकों के दो गुट होंगे। गुट के हर सैनिक के पास L.M.G. होगी।
एक गुट डॉकयार्ड में प्रवेश करके दीवार के किनारे–किनारे, पेड़ों
की ओट लेते हुए आगे बढ़ेगा। दूसरा गुट निगरानी करते हुए पीछे ही रुका रहेगा। यदि जहाज़
हमला करने की कोशिश करेंगे तो यह गुट उन्हें व्यस्त रखेगा और पहले गुट को आगे जाने
देगा। यह पहला गुट ‘कैसल बैरेक्स’ और डॉकयार्ड की दीवार के पास पहुँचते ही
बैरेक्स के सैनिकों पर ज़बर्दस्त हमला बोलेगा। यह अटैक suicide attack हो
सकता है।’’
''Yeah, yeah, sir.'' प्लैटून कमाण्डर ने ऑर्डर समझ ली और उसे अमल में
लाने के लिए चल पड़ा।
जहाजों के सैनिक अपने काम में मग्न हैं यह
देखकर पाँच गोरे सैनिकों का एक गुट डॉकयार्ड की दीवार के ऊपर से अन्दर घुसा। दूसरा
गुट दीवार से ही जहाज़ों पर ध्यान दे रहा था। पहला गुट डॉकयार्ड के निकट की दीवार, वहाँ
पड़ी हुई भारी–भरकम चीज़ों और पेड़ों की ओट लेकर आगे
सरकने लगा। यह गुट काफ़ी आगे निकल गया है, यह देखकर दूसरा गुट पेड़ पर चढ़ गया और HMIS ‘सिन्ध’ पर काम में मग्न सैनिकों पर लाइट मशीन गन से गोलीबारी
करने लगा, ‘ फॉक्सल’ पर
काम कर रहे ‘सिंध’ के
चार सैनिक ज़ख्मी होकर नीचे गिरे। पास ही में खड़े ‘औध’ के सैनिकों का उनकी ओर ध्यान गया। उन्होंने
जहाज़ पर लगी बारह पौंड वाली तोप अभी–अभी
तैयार की थी। गन क्रू अभी जहाज़ पर ही था। उन्होंने फटाफट कार्रवाई की, और
क्या हो रहा है यह समझने से पहले ही तोप गरजी और पेड़ों पर चढ़े वे पाँचों सैनिक
चिंधी–चिंधी होकर फिंक गए। इस अचानक हुए हमले से
घबराकर ब्रिटिश सैनिकों ने डॉकयार्ड की ओर से हमला करने का विचार ही छोड़ दिया और
मेन गेट की ओर से हमला तेज़ कर दिया।
गेट वे ऑफ इण्डिया के सामने चार किलोमीटर की
दूरी पर खड़ा जहाज़ ‘पंजाब’ पूर्व
नियोजित कार्यक्रम के अनुसार गोला–बारूद
लेने के लिए 20 तारीख को एम्युनिशन जेट्टी पर लगने वाला
था। ‘पंजाब’ के
सैनिकों ने 20 तारीख की रात को उपलब्ध गोला–बारूद का जायज़ा लिया तो पता चला कि गोला–बारूद एकदम अपर्याप्त है। ज़रूरत पड़ने पर सिर्फ
एक–दो तोपें ही दागी जा सकती थीं।
‘‘इतना बड़ा जहाज़, मगर गोला–बारूद नहीं। अन्य जहाज़ ज़रूरत पड़ने पर फुल स्केल
अटैक करेंगे मगर हम...’’ मुल्ला
ने रोनी आवाज़ में कहा।
‘‘रोने से क्या होगा? कुछ
करना होगा।’’ सज्जन सिंह ने कहा।
‘‘क्या करेंगे? गोला–बारूद एम्युनिशन स्टोर यहाँ से दस किलोमीटर दूर
है।’’ मुल्ला
के स्वर में निराशा थी।
‘‘ख़ामोशी से इस बातचीत को सुन रहे गोपालन का ध्यान ‘पंजाब’ से पाँच
सौ फुट के अन्तर पर खड़े रॉयल नेवी के जहाज़ की ओर गया। ‘औध’ से छूटे गोले की आवाज़ गोपालन ने सुनी और एक
विचार उसके मन में कौंध गया।
‘‘इस जहाज़ पर उपस्थित गोरे सैनिकों में से
अधिकांश को सुबह ही फोर्ट ले जाया गया है। जहाज़ पर यदि हुए, तो सिर्फ
बीसेक सैनिक ही होंगे। उन पर काबू पाना मुश्किल नहीं है ।’’ वह
मन ही मन सोच रहा था कि ‘पंजाब’ के
सैनिक डेक पर फॉलिन हुए। गोपालन ने अपनी योजना समझाई। ‘पंजाब’ से नौकाएँ पानी में छोड़ी गर्इं। दस–दस सैनिकों का एक–एक गुट एक–एक नौका में बैठा। हरेक के पास बन्दूक या लाइट
मशीन गन थी। गन क्रू ने ‘पंजाब’ की चार इंची गन ‘मैन’ की और लोड करके ‘गेटवे’ की दिशा में घुमाई।
गोपालन ने इशारा किया और नौकाएँ ‘पंजाब’ से दूर गर्इं। ब्रिटेन के जहाज़ का ‘टोही’ इन
नौकाओं पर नज़र रखे था। नौकाएँ डॉकयार्ड की ओर जाती हुई दिखीं तो उसने अपनी नज़र फिर
से ‘गेटवे’ की ओर मोड़ी। गोपालन इसी की राह देख रहा था।
उसने दूर जा चुकी नौकाओं को इशारा किया और नौकाएँ पीछे मुड़ीं। वे ‘पंजाब’ की
दिशा में आ रही थीं। अब उनकी गति करीब चालीस नॉट थी। देखते–देखते नौकाएँ ‘पंजाब’ को
पार करके ब्रिटेन के जहाज़ के पीछे की ओर गर्इं। गोपालन ने गन क्रू को इशारा किया।
तोप चली। तोप का गोला उस जहाज़ से करीब बीस फुट दूर गिरा और उस हिस्से का पानी उफ़न
कर ऊपर उछला। ब्रिटेन के उस जहाज़ पर भगदड़ मच गई। सैनिक ‘पंजाब’ वाली दिशा में आए। इस गड़बड़ का लाभ उठाकर नौकाओं
वाले सैनिक जहाज़ में घुस गए, संगीनों के बल पर जहाज़ को कब्जे़ में ले लिया, और करीब डेढ़ घण्टे में उस ब्रिटेन के जहाज़ के
गोला–बारूद के भण्डार खाली हो गए और ‘पंजाब’ के भण्डार पूरे–पूरे भर गए।
‘कैसल बैरेक्स’ के मेन गेट पर हमला अब कुछ ढीला पड़ गया था।
सैनिकों का प्रतिकार भी कम हो गया था। खान के और सेंट्रल कमेटी के सदस्यों को
चिन्ता होने लगी।
‘‘कैसल बैरेक्स’ के सैनिकों का गोला–बारूद तो ख़त्म नहीं हो गया?’’ दत्त ने पूछा ।
‘‘अगर ऐसा है तो उन्हें गोला–बारूद पहुँचाना चाहिए।’’ खान
ने जवाब दिया।
‘‘और, यदि वे मायूस हो गए हों तो?’’ गुरु
ने सन्देह व्यक्त किया।
‘‘ओह! शायद वैसा न हो...’’ दत्त ने आशा व्यक्त की। ‘‘मेरा विचार है कि हम उन्हें सूचित करें कि
मुम्बई के सारे जहाज़ तुम्हारी मदद के लिए तैयार हैं। यदि गोला–बारूद खत्म हो गई हो तो सूचित करें, जिससे
सप्लाई की जा सके। किसी भी परिस्थिति में आत्मसमर्पण न करना।’’
‘कैसल बैरेक्स’ में सेंट्रल कमेटी का सन्देश मिलते ही सैनिकों
का उत्साह दुगुना हो गया, और उन्होंने अधिक जोश से हमले का जवाब देना
शुरू किया।
गॉडफ्रे और बिअर्ड ने ‘औध’ और ‘पंजाब’ से
दाग़ी गई तोपों की आवाज़ सुनी तो वे बेचैन हो गए। ‘‘जहाज़ों ने यदि दनादन तोपें दागनी शुरू कर दीं तो
शहरी भाग में इमारतों की और जान–माल
की खूब हानि होगी, और इस
सारे नुकसान के लिए हमें ही ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा।’’ गॉडफ्रे ने चिन्तायुक्त सुर में कहा।
‘‘लंडन में पार्लियामेंट का अधिवेशन चल रहा है।
यदि जहाज़ तोपों से मार करने लगे तो कल प्रधानमन्त्री और भारत मन्त्री को
पार्लियामेंट का सामना करना मुश्किल हो जाएगा, और
इस सबके लिए हमें ही ज़िम्मेदार माना जाएगा। हमें हर कदम फूँक–फूँककर तो रखना ही है; बल्कि
इस समय लिये गए निर्णयों पर पुनर्विचार भी करना होगा।’’ बिअर्ड
अस्वस्थ हो गया था।
‘‘मेरी राय है कि ‘कैसल बैरेक्स’ का
हमला अब कुछ धीमा कर देना चाहिए। यदि सैनिक चिढ़ गए तो विस्फोट हो जाएगा और मेहनत
से रची चालें बेकार हो जाएँगी।’’ गॉडफ्रे ने भय व्यक्त किया।
मेजर सैम्युअल को हमला धीमा करने का सन्देश
भेजा गया।
नौसैनिकों का विद्रोह हिंसक मोड़ ले रहा है, यह ध्यान में आते ही मुम्बई के अनेक प्रतिष्ठित
नागरिकों को मुम्बई के भविष्य की चिन्ता सताने लगी और वे बेचैन हो गए। सरकार पर
दबाव डालकर यह सब रोकना चाहिए ऐसा उनका मत था। ‘सरकार और
नौसैनिकों पर दबाव
डालने वाला व्यक्ति
कौन हो सकता है?’ उनके
सामने एक नाम तैर गया - सरदार वल्लभभाई पटेल।
नौसैनिकों के विद्रोह के आरम्भ से ही वे मुम्बई में बैठे हैं यह बात भी ये
प्रतिष्ठित नागारिक जानते थे। राष्ट्रीय समाचार–पत्रों के सम्पादकों ने, मुम्बई
के समाजसेवियों ने, प्रमुख व्यापारियों ने, उद्योगपतियों
ने और अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने सरदार पटेल से मुलाकात करने की कोशिश की, मगर उनसे मुलाकात न हो सकी। इन प्रतिष्ठित नागरिकों
के सामने दूसरा नाम आया मुख्यमन्त्री बाला साहेब खेर का। मगर पूछताछ करने से पता
चला कि वे मुम्बई से बाहर गए हैं। प्रतिष्ठित शान्ति प्रेमी नागरिक हाथ पर हाथ धरे
बैठे रहे।
‘कैसल बैरेक्स’ पर गोरे सैनिकों द्वारा की गई गोलीबारी और
नौसैनिकों द्वारा दिया गया करारा जवाब, इस हमले में मारे गए और ज़ख्मी हुए सैनिक - यह
सब सरदार पटेल को दोपहर में ही ज्ञात हो गया था। मगर वे सैनिकों को दी गई अपनी
सलाह ‘बिना शर्त समर्पण’ पर कायम थे। दोपहर को जहाज़ों द्वारा तोप दाग़ने
की ख़बर मिलते ही वे बेचैन हो गए।
‘मुम्बई की घटनाओं की गूँज यदि पूरे देश में फैल
गई तो...
दंगे, खून–खराबा, आगजनी...मुँह तक आई हुई स्वतन्त्रता फिसल गई तो?’ इस
ख़याल के आते ही वे कुर्सी से उठकर बेचैन मन से चक्कर लगाने लगे।
‘अगर मैं सैनिकों से मिलूँ तो? इस
समय वे चिढ़े हुए हैं। मेरी सलाह शायद ही मानें।
इसके बदले यदि मुम्बई के गवर्नर से
सम्पर्क करूँ तो...’’ इस
ख़याल से वे कुछ उत्साहित हुए और उन्होंने मुम्बई के गवर्नर सर कॉलविल को फ़ोन किया:
''May I speak to the Governor?
Sardar Patel on the line.''
''Please hold on the line.'' गवर्नर का पी.ए. बोला।
''Yes, Colwil speaking.'' थोड़ी देर में गवर्नर ने फ़ोन लिया।
‘‘सर, ‘कैसल बैरेक्स’ के बाहर जो कुछ हो रहा है क्या उसे रोका नहीं
जा सकता? क्या सिर्फ सैनिकों को दबाए रखने के लिए इस
गोलीबारी की आवश्यकता थी?’’ सरदार पटेल सवाल पर सवाल दागे जा रहे थे।
''Cool down, Mr. Patel. यह सब ज़रूरी था इसीलिए किया गया। ज़खम के
बिगड़ने से पहले की गई शस्त्र क्रिया है।‘’
शान्त स्वर में गवर्नर ने जवाब दिया।
‘‘क्या यह रोका नहीं जा सकता? क्या
आप कुछ नहीं कर सकेंगे?’’ पटेल ने पूछा।
‘‘नहीं, ये सारा मामला अब लॉर्ड एचिनलेक देख रहे हैं।
अब तक जो भी घटनाएँ हुईं उन्हें देखते हुए हमारे द्वारा की गई कार्रवाई उचित थी।
कल रात को भूखे सैनिकों के लिए मानवतावादी दृष्टिकोण से हमने खाद्य पदार्थ भेजे, सैनिकों ने उन्हें न केवल लेने से इनकार कर
दिया,
उल्टे
बाहर तैनात भूदल की सेना पर पत्थरों की बौछार की। आज सुबह ‘कैसल बैरेक्स’ के
सैनिक बेकाबू होकर नाविक तल के बाहर लगाए गए भूदल सैनिकों के घेरे को तोड़कर बाहर
निकलने की कोशिश कर रहे थे, तब मजबूर होकर गोलीबारी करनी पड़ी... इस गोलीबारी का एक ही उद्देश्य था - बेकाबू
सैनिकों को बैरेक में बन्द करना; उन
पर ज़ुल्म करना या उन्हें आतंकित करना नहीं था। आज दोपहर को करीब एक बजे ‘नर्मदा’ नामक जहाज़ से तोपों की मार करने का आह्वान किया गया।’’ गवर्नर रॉटरे द्वारा तैयार किए गए प्रेसनोट के आधार पर
जानकारी दे रहे थे। ‘‘ऐसी स्थिति में हमें मजबूरन हथियारों
का इस्तेमाल करना पड़ा। मगर सर, मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि हम इस समस्या को
शान्तिपूर्ण बातचीत के ज़रिये सुलझाने की कोशिश करेंगे।’’
‘‘ये सब इस तरह से हुआ है, यह
मुझे मालूम नहीं था। यह सारा मामला शान्ति और समझदारी से ख़त्म हो यही मेरी इच्छा
है। इसके लिए यदि मेरी मदद की ज़रूरत हो तो मैं तैयार हूँ।’’
पटेल सन्तुष्ट हो गए। उन्हें यकीन हो गया था कि
यह प्रश्न शान्ति से सुलझ जाएगा।
पे ऑफिस के सामने से जाते हुए धर्मवीर और मणी
को कोई आवाज़ सुनाई दी।
‘‘ये कैसी आवाज़ है रे ? ’’ धर्मवीर
ने पूछा।
‘‘शायद
चूहे हैं!’’ मणी ने जवाब दिया।
‘‘ चूहों की इतनी ऊँची आवाज! अरे, यह
चूहा है या हाथी ?’’ धर्मवीर की आवाज़ में अचरज था।
‘‘साले गोरे तो नहीं?’’ मणी
का शक बोला।
‘‘चल, देखें कौन है।’’ धर्मवीर
ने कहा।
हलके कदमों से मणी खिड़की में चढ़ा और शटर ऊपर
उठाकर भीतर झाँकने लगा। मेज़ के नीचे कुछ हलचल प्रतीत हुई।
‘‘अन्दर जो भी कोई है वो हाथ ऊपर उठाकर बाहर आए, वरना
मैं ये हैण्डग्रेनेड अन्दर फेंकूँगा, ’’ मणी
गरजा।
अन्दर की हलचल बन्द हो गई।
‘‘मैं पाँच तक गिनूँगा। इससे पहले आत्मसमर्पण कर
दो,
वरना हैंडग्रेनेड अन्दर फेंकूँगा।’’ मणी
ने धमकी दी और वह गिनने लगा। ‘‘एक...दो...तीन....।’’
डर से पीले पड़ गए तीन अधिकारी पे ऑफिस में से
बाहर आए।
जैसे ही खान को ‘कैसल बैरेक्स’ में ले. कमाण्डर
मार्टिन, ले. कमाण्डर दीवान, और
ले. विलियम्स
के पकड़े जाने के बारे में पता चला, उसने
फ़ौरन ‘कैसल बैरेक्स’ से
सम्पर्क किया और रामपाल को सूचित किया कि पकड़े गए तीनों अधिकारियों को नज़रकैद में
रखा जाए, उन्हें किसी भी तरह की तकलीफ़ न दी जाए। खान ने
गॉडफ्रे को फ़ोन किया। फ़ोन रॉटरे ने उठाया।
‘‘एडमिरल रॉटरे।’’
‘‘रॉटरे, मैं
खान बोल रहा हूँ।’’
दुबारा बिना रैंक के पुकारे जाने से रॉटरे को
मन ही मन गुस्सा आया था।
‘‘बोल, अब
सिर्फ एक ही पर्याय...
Unconditional Surrender.'' धृष्टता से रॉटरे ने जवाब दिया।
‘‘मेरी बात ध्यान से सुन।’’ शान्त
स्वर में खान ने जवाब दिया। ‘‘ले.
कमाण्डर मार्टिन, ले. कमाण्डर दिवान और ले. विलियम्स फ़िलहाल हमारे कब्ज़े
में हैं।’’
''What?'' रॉटरे
ज़ोर से चिल्लाया।
‘‘क्या हुआ ?’’ पास
बैठे गॉडफ्रे ने चौंककर पूछा।
‘‘सर, खान कह रहा है, कि ले. कमाण्डर
मार्टिन, दीवान और ले, विलियम्स
– ये तीनों उनके कब्ज़े में हैं।’’ रॉटरे ने जवाब दिया ।
रॉटरे के हाथ से फोन खींचते हुए गॉडफ्रे बोलने
लगा। ‘‘खान, मैं
गॉडफ्रे बोल रहा हूँ, तुम्हारे कब्ज़े में जो अधिकारी हैं, उनसे
सम्मानपूर्वक बर्ताव करना, भूलो मत कि वे अधिकारी हैं, प्लीज़।’’
‘प्लीज’, कहते हुए गॉडफ्रे की ज़ुबान लड़खड़ा रही थी ।
गॉडफ्रे की आवाज़ की लाचारी को खान ने महसूस किया।
‘‘हमारे कब्ज़े में जो तीन अधिकारी हैं, वे ‘कैसल बैरेक्स’ के
नहीं हैं। वे ‘कैसल बैरेक्स’ में क्यों घुसे? कैसे घुसे? उनका उद्देश्य क्या था? ये पूछताछ तो हम करेंगे ही। गॉडफ्रे, हिन्दुस्तान
के इतिहास में शरणागत को अभय देने के उदाहरण कदम–कदम पर मिल जाएँगे। यह हमारी संस्कृति है। इन
तीन अधिकारियों ने चाहे हम हिन्दुस्तानी सैनिकों को अनेक प्रकार से कष्ट पहुँचाया
हो, फिर
भी हम किसी भी प्रकार का कष्ट उन्हें नहीं पहुँचाएँगे। इसका इत्मीनान रखें।’’ खान
ने जवाब दिया।
गॉडफ्रे अस्वस्थ हो गया था। ‘‘अगर इन तीनों को सैनिकों ने बन्धक बना लिया तो?’’
वह अलग–अलग कोणों से परिस्थिति पर विचार करके परिणाम
खोजने लगा।
‘मुँह तक आया निवाला छोड़ना पड़ेगा।’
‘यदि इन अधिकारियों को छुड़ाया नहीं तो?’
‘अधिकारियों तथा गोरे सैनिकों का आत्मविश्वास
टूट जाएगा। मुझ पर से भी उनका विश्वास उठ जाएगा।’
गॉडफ्रे ने पाइप सुलगाया, दो
गहरे कश लगाए, धुआँ सीने में भर लिया।
अब उसे कुछ आराम महसूस हो रहा था। उसने दो मिनट
सोचा और निर्णय लेना शुरू कर दिया।
‘‘रॉटरे, सैम्युअल
से कहो कि ‘सीज़ फ़ायर’ कर
दे;
मगर घेरा न उठाए। ‘कैसल बैरेक्स’ से यदि हमला होता है तभी भूदल के सैनिक
गोलीबारी करेंगे। यही खान को भी बता दो । खान को इसके साथ–साथ यह भी बता दो कि हम दोनों बातचीत करने के
लिए चार बजे कैसल बैरेक्स में आ रहे हैं।’’
गॉडफ्रे को अधिकारियों को छुड़ाने की जल्दी पड़ी
थी। एक बार जहाँ ये अधिकारी छूटे तो फिर हमला तेज़ करके नौसैनिकों को कुचला जा सकता
है।
‘नर्मदा’ पर
सेंट्रल कमेटी की बैठक चल रही थी।
‘‘हम जब शान्ति के मार्ग से जा रहे थे, तो
अंग्रेज़ सरकार सैन्यबल का उपयोग करके हमारे विद्रोह को कुचलने की कोशिश कर रही है
। इसका जवाब हम दे रहे
हैं। मगर हमारी आज तक की भूमिका
सुरक्षात्मक थी, उसे छोड़कर हमें आक्रामक हो जाना चाहिए।’’ चट्टोपाध्याय
आवेश से कह रहा था।
‘‘यदि
हम आक्रामक हो
गए तो अंग्रेज़
सरकार को बहाना
मिल जाएगा और वह
कोई दया–माया न
दिखाते हुए, बिना अगला–पिछला विचार
किए पूरी ताकत से हमला कर देगी और
इसमें निरपराध नागरिकों की भी बलि चढ़ जाएगी।
जानमाल की ज़बर्दस्त हानि होगी। लोगों का जो समर्थन हमें मिल रहा है वह कम हो जाएगा और इतिहास में
हमारी गिनती होगी सिरफिरे, बेवकूफ
सैनिकों के रूप में।’’ गुरु समझा रहा था।
‘‘सालोंसाल इस अपमानभरी जिन्दगी
जीने की अपेक्षा
दो दिनों की, बल्कि दो पल की ही सही, सम्मानजनक
ज़िन्दगी हम चाहते हैं ।’’ गोंडवन के यादव ने कहा ।
‘‘आज हमारे हाथ में बीस जहाज़ हैं। नाविक तलों पर
और जहाज़ों पर प्रचुर मात्रा में गोलाबारूद है; फिर हम
चुप क्यों बैठें? जहाज़ों की दो तोपें दागते ही अंग्रेज़ न केवल
बातें करने आएँगे, बल्कि माँगें भी मान लेंगे।’’ कुट्टी ने अपना पक्ष रखा।
‘‘तीन अधिकारी हमारे कब्जे में हैं, यह
पता चलते ही गॉडफ्रे ने और बिअर्ड ने अपना फन नीचे डाल दिया, तुरन्त
सीज़ फायर का ऑर्डर दिया गया, बातचीत करने की इच्छा प्रदर्शित की। हमारे कब्ज़े
में जो अधिकारी हैं उन्हें बन्धक बनाकर हमें अंग्रेज़ों को घेरा उठाने पर मजबूर करना चाहिए।’’ चट्टोपाध्याय
अपनी बात पर अड़ा था।
‘‘दोस्तो! आपकी भावनाएँ मैं समझ गया हूँ।’’ खान
ने समझाना शुरू किया। ‘’अभी चिनगारी उत्पन्न हुए चौबीस घण्टे बीते नहीं
हैं,
जंगल में आग लगी नहीं है, दावानल
भड़का नहीं है, और अभी से तुम लोग आर–पार की बात करने लगे!’’ खान
पलभर को रुका। सब खामोश थे।
‘‘कल तक हम अकेले थे। राष्ट्रीय पक्ष और नेता
हमारा साथ देने के लिए तैयार नहीं थे। आज भी परिस्थिति वही है। ब्रिटिश सैनिकों की
बन्दूकें दिन के ग्यारह बजे से अब तक हम पर आग बरसा रही थीं। उसमें हमारे कुछ साथी
ज़ख़्मी हुए, एक साथी शहीद भी हो गया। मगर मुम्बई
में उपस्थित राष्ट्रीय नेताओं में से एक भी माँ का लाल हमारी ख़बर लेने नहीं आया ।
मुझे ज्ञात हुआ है कि सरदार पटेल ने पूछताछ की थी, मगर किससे? मुम्बई
के गवर्नर से। उसके सामने उन्होंने चिन्ता व्यक्त की और उसके द्वारा दिये गए सरासर
झूठे जवाब से वे सन्तुष्ट भी हो गए । दोस्तो! अब परिस्थिति धीरे–धीरे बदल रही है। 19 तारीख को सामान्य जनता ने हमें जितना समर्थन दिया
उसके मुकाबले में आज का समर्थन ज़ोरदार था। इन नागरिकों में सभी स्तरों के लोग थे।
अपने मुँह का निवाला निकालकर उन्होंने हमें दिया है इसकी वजह यही है कि हमारी
माँगों को वे मान्यता देते हैं। मेरा ख़याल है कि जनता का समर्थन ही हमारी ताकत है; इसी
ताकत के बल पर हम यशस्वी हो सकेंगे। यदि हमने हिंसा का मार्ग अपनाया तो आज तक
राष्ट्रीय पक्ष, जो तटस्थता का रुख अपनाए हुए हैं, हमारा
विरोध करने लगेंगे। भूलो मत, आज
भी इन पक्षों का और नेताओं का जनमानस पर गहरा प्रभाव है। यदि नेता ही विरोध करने
लगे,
तो जनता का समर्थन भी हम खो बैठेंगे। इसलिए मेरा
विचार है कि आक्रामक होने का समय अभी आया नहीं है।’’ खान
के समझाने का परिणाम वहाँ उपस्थित अनेक लोगों पर हो रहा था।
‘‘खान के विचारों से मैं सहमत हूँ। किसी भी लड़ाई
में यशस्वी होने के लिए यह ज़रूरी है कि उचित समय पर उचित
चाल चली जाए ।
मेरा ख़याल है कि यादव, कुट्टी
और चट्टोपाध्याय द्वारा सुझाई गई चालें चलने का समय अभी आया नहीं है। फ़िलहाल हम इस
व्यूह रचना को एक किनारे रखें।’’ दत्त ने सैनिकों को समझाया ।
‘‘ठीक है। हम कुछ समय के लिए इस मार्ग से जाने का
विचार स्थगित कर दें, मगर
हम क्या कर सकते हैं इसकी एक झलक दिखाने के लिए या फिर धमकाने के लिए एकाध सन्देश
भेजने में क्या हर्ज है? चट्टोपाध्याय की आवाज़ की आक्रामकता कुछ कम हो
गई थी।
थोड़ी–सी
चर्चा के उपरान्त नेवल हेडक्वार्टर को एक सन्देश भेजने का निश्चय किया गया:
- फास्ट
– 211330
– प्रेषक - सेंट्रल कमेटी – प्रति - नेवल
हेडक्वार्टर =
अपोलो बन्दर से बॅलार्ड पियर तक की सेना यदि
हटाई नहीं गई तो नौसैनिकों के कब्ज़े वाले जहाज़ों की तोपें आग उगलेंगी =
अभी भी दिल्ली में डेरा जमाए बैठे एचिनलेक को
मुम्बई से आया हुआ सन्देश मिला और वह गुस्से से आगबबूला हो गया।
‘‘बोले, तोपें
आग उगलेंगी। अच्छा हुआ जो पहले बता दिया। सभी कुछ नष्ट कर देना चाहिए...’’ वह अपने आप से पुटपुटा रहा था। उसने सदर्न
कमाण्ड के कमांडिंग ऑफिसर-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल लॉकहर्ट को बुलवाया। उन्हें पूरी
स्थिति से अवगत कराया।
‘‘मैं चौबीस घण्टों में इस विद्रोह को नेस्तनाबूद
हुआ देखना चाहता हूँ। कोई भी तरीका अपनाओ, मगर मुझे रिजल्ट्स चाहिए, और
वह भी चौबीस घण्टे में। तुम फ़ौरन मुम्बई चले जाओ। मुम्बई की पुलिस, आर्मी, एअरफोर्स
तुम्हारे अधिकार में होगी। ज़रूरत पड़े तो अन्य स्थानों से सेना मँगवाओ। हाँ, और
एक बात, कुछ ही देर पहले प्रधानमन्त्री एटली ने हाउस ऑफ
कॉमन्स में घोषणा की है कि कुछ लड़ाकू जहाज़ और हवाईदल के स्क्वाड्रन्स हिन्दुस्तान
भेज रहे हैं। रॉयल इण्डियन नेवी पूरी तरह बरबाद हो जाए तो भी कोई बात नहीं, मगर यह
विद्रोह कुचलना ही होगा।’’ एचिनलेक की आवाज़ में चिढ़ थी।
लॉकहर्ट एचिनलेक के दफ्तर से बाहर निकला और
मुम्बई पहुँचने की तैयारी में लग गया।
नौसैनिकों द्वारा दिल्ली भेजे गए सन्देश के
बारे में गॉडफ्रे को पता चला तो वह ज़्यादा ही बेचैन हो गया, तीन
अधिकारियों को छुड़ाने की ज़िम्मेदारी के साथ–साथ मुम्बई की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी उस पर
आ पड़ी थी। नौसैनिकों को स्वेच्छा से खाना पहुँचाने आए नागरिकों को वह देख चुका था।
‘‘क्या हमारा साथ देने वाले सैनिक नौसेना में हैं
ही नहीं ?’’ उसने रॉटरे से पूछा।
‘‘क्षणिक स्वार्थ के लिए हमारा साथ देने वाले लोग
जगह–जगह पर हैं, इसीलिए
तो हम यहाँ टिके हुए हैं। नौसेना भी इसके लिए अपवाद नहीं है।’’ रॉटरे
ने जवाब दिया।
‘‘फिर वे इस विद्रोह का विरोध क्यों नहीं करते ?’’ गॉडफ्रे
ने पूछा।
‘‘हमें उन तक पहुँचना चाहिए था, उनसे
अपील करनी चाहिए थी। अभी भी वक्त हाथ से गया नहीं है। हम उनसे अपील करेंगे। उन तक
पहुँचेंगे। ’’ रॉटरे ने सुझाव दिया।
‘‘मगर कैसे ? ’’ गॉडफ्रे
ने पूछा।
‘‘अख़बारों का कोई फ़ायदा नहीं। मेरा ख़याल है कि इस
काम के लिए रेडियो उचित रहेगा ।’’ रॉटरे ने सुझाव दिया और गॉडफ्रे ने सैनिकों से
अपील करने का निर्णय लिया।
दोपहर को ढाई बजे गॉडफ्रे की अपील आकाशवाणी से
प्रसारित की गई । इस अपील में कोई अपील थी नहीं, उल्टे
धमकी ही थी:
‘‘आज की अनुशासनहीन परिस्थिति में मैं नौसैनिकों
से बात करने के लिए इस सम्पर्क माध्यम का उपयोग कर रहा हूँ, क्योंकि
ज़्यादा से ज़्यादा सैनिकों तक पहुँचने का यह एकमात्र साधन है ।
‘’पहले यह कहूँगा कि तुम लोग इस बात को अच्छी तरह
समझ गए होगे कि हिन्दुस्तान सरकार किसी भी तरह की अनुशासनहीनता या अनुशासनहीन
बर्ताव को बर्दाश्त नहीं करेगी। यदि ज़रूरत पड़ी तो सरकार अनुशासन स्थापित करने के
लिए, सभी
प्रकार की उपलब्ध ताकत का इस्तेमाल करने से हिचकिचाएगी नहीं। सरकार के इस निर्धार
को ध्यान में रखो और अब जो कुछ भी मैं तुमसे कहने वाला हूँ उस पर विचार करो।
‘‘दिनांक 19 फरवरी को तुममें से जो सैनिक अपनी माँगें लेकर
फ्लैग ऑफिसर बॉम्बे रिअर एडमिरल रॉटरे से मिले थे, उन
माँगों के बारे में मैं तुम्हें आश्वासन देता हूँ कि तुम्हारी जो भी माँगें हैं, शिकायतें हैं उनकी पूरी जाँच की जाएगी। सैनिकों
को सेवामुक्त करते समय उन्हें सेवा एवं आयु के अनुसार ही मुक्त किया जाएगा।
सैनिकों को सेवामुक्त करने से सेना में प्रशिक्षित तथा अनुभवी सैनिकों की कमी हो
जाती है। कम्युनिकेशन सैनिकों के सम्बन्ध में यह बात ज़्यादा प्रमुखता से सही है।
‘‘तीनों सैन्य दलों के लिए नियुक्त समिति वेतन, यात्रा
और पारिवारिक भत्तों पर विचार करेगी। इस समिति ने कराची और जामनगर के नाविक तलों का
दौरा किया है।
‘‘आज सुबह मुम्बई के नाविक तलों और जहाज़ों की स्थिति
शोचनीय थी। यह स्थिति खुल्लम–खुल्ला
विद्रोह की थी। सैनिक अपने होशोहवास खो बैठे थे।
‘‘सैनिक अपनी–अपनी बैरेक्स में ही रहें और इससे पहले जो
दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ हुई हैं, उनकी दुबारा पुनरावृत्ति न हो इसीलिए कल रात को
‘तलवार’ और ‘कैसल
बैरेक्स’ के चारों ओर भूदल का घेरा डाला गया।
‘‘आज सुबह ‘कैसल बैरेक्स’ के
सैनिकों ने घेरा तोड़कर बाहर जाने की कोशिश की तो भूदल के सैनिकों को विवश होकर
गोलीबारी करनी पड़ी । इस गोलीबारी का नौसैनिकों ने बैरेक्स के भीतर से जवाब दिया । भूदल द्वारा की गई गोलीबारी का
एकमात्र कारण था इन नौसैनिकों को बैरेक्स
में ही सीमित रखना। ये फायरिंग सैनिकों को
क्षुब्ध करने के लिए नहीं की गई थी।
‘‘मैं
एक बार फिर से दोहराता हूँ, हिन्दुस्तान की सरकार हिंसा को बढ़ावा नहीं देगी।
यदि सरकार की सैन्य ताकत की ओर ध्यान दो तो तुम्हें समझ में आ जाएगा कि इस संघर्ष
को जारी रखना निहायत बेवकूफी है। सरकार उपलब्ध
सैनिक बल का प्रयोग पराकाष्ठा की सीमा तक करेगी, ऐसा
करते समय जिस नौसेना पर हमें गर्व है, उसका
विनाश भी हो जाए तो सरकार परवाह नहीं
करेगी।’’
गॉडफ्रे ने अपनी अपील समाप्त की।
‘‘ये साला गॉडफ्रे हिन्दुस्तानी नौसेना को अपने
बाप की जागीर समझता है क्या ? ’’ मदन
ने चिढ़कर कहा। ‘‘कहता है, नौसेना को नष्ट कर देगा। इस नौसेना पर हर
हिन्दुस्तानी नागरिक का अधिकार है। वह हमारी सम्पत्ति है। युद्ध के दौरान हिन्दुस्तान
ने अपना सुरक्षा व्यय दुगुना किया तभी तो ये नौसेना बनी है। सुरक्षा व्यय में हिन्दुस्तान
ने ब्रिटेन से अधिक बढ़ोतरी की थी। ये नौदल हमारा है। हम जी–जान से इसकी रक्षा करेंगे।’’
‘‘गॉडफ्रे घमण्डी है।’’ दत्त
ने कहा। ‘‘इन ब्रिटिशों के बोलने का एक अलग ही
तरीका होता है। जब देखते हैं कि कोई फालतू–सी घटना उनके लिए हितकारी है, तब
वह उस घटना को बढ़ा–चढ़ाकर बताते हैं; और यदि
उन्हें ऐसा लगता है कि कोई घटना उनके विरुद्ध जा रही है तो उसे अत्यन्त हीन बना
देते हैं। अब यही ले लो ना, आज तक गॉडफ्रे को हिन्दुस्तानी नौसेना का शौर्य
कभी नज़र ही नहीं आया, मगर आज उसे लोगों को यह बताना है कि वह कितना बड़ा
त्याग करने को तैयार है; हिन्दुस्तानी नौसैनिक कितने अनुशासनहीन हो गए
हैं यह सिद्ध करना है, इसीलिए हिन्दुस्तानी नौसेना के प्रति उसका पूतना–प्रेम उफ़न रहा है। हम तटस्थ दृष्टि से विचार करें।
दूसरे महायुद्ध में हिन्दुस्तानी नौसेना ने कौन–सा गौरवास्पद कारनामा किया? इस युद्ध में हज़ारों नौसैनिक मारे गए। अनेक
जहाज़ समन्दर की गोद में समा गए। इस सबमें हिन्दुस्तानी नौसेना का हिस्सा? हमारी भूमिका सिर्फ 'Also ran' इतनी
ही थी। महायुद्ध में जान गँवाने वाले नौसैनिकों की फ़ेहरिस्त सिर्फ आठ–दस पन्नों में सिमट जाएगी। ‘सिन्धु’ जहाज़
अकाबा बन्दरगाह से बाहर पानी की सुरंग से टकराकर टूट गया। सोफिया मारिया जैसे छोटे–छोटे जहाज़ पानी की सुरंगों से टकराकर डूब गए।
सोफिया मारिया अण्डमान–निकोबार के
निकट किस तरह
डूबा यह किसी को भी पता नहीं है। HMIS बंगाल
की कारगुज़ारी सबसे शानदार रही । ऑस्ट्रेलिया से वापस लौटते समय उसने अपने से काफी
बड़े जापानी जहाज़ को डुबो दिया। बस! ख़तम हो गए कारनामे। ऐसी नेवी पर उसे गर्व है। झूठा है वो!’’ दत्त
चिढ़ गया था।
‘‘मतलब यह कि यह नौदल नष्ट करने लायक ही है, यही ना? ’’ गुरु
ने पूछा।
‘‘नहीं, वैसी बात नहीं। ये नौदल हमारा है, उसकी
रक्षा तो हम करेंगे ही। गॉडफ्रे को इससे मोहब्बत हो, ऐसी कोई बात नहीं है। उसका हिन्दुस्तानी नौसेना
के प्रति गर्व स्वार्थ प्रेरित है।’’ दत्त ने जवाब दिया।
‘‘हमारी अगली नीति क्या होगी ?’’ मदन
ने पूछा।
‘‘गॉडफ्रे की धमकियों से न घबराते हुए संघर्ष
जारी रखना है। अब चार बजे हालाँकि मैं गॉडफ्रे से बात करने वाला हूँ, फिर
भी निर्णय सर्वसम्मति से ही होगा। बातचीत
के दौरान गोलीबारी नहीं होगी। हमारी सभ्यता के, तहज़ीब
के और संयम के प्रतीक के रूप में हम हमला नहीं करेंगे, मगर
यदि हम पर हमला हुआ तो करारा जवाब दिये बिना
नहीं रहेंगे।’’ खान की इस राय से सभी सहमत हो गए। खान ने सभी
जहाज़ों और नाविक तलों को सूचित किया।
‘‘गॉडफ्रे और रॉटरे से बातचीत करने के लिए हम ‘कैसल बैरेक्स’ जाने वाले हैं। आशा है, इस मुलाकात के दौरान आप अहिंसक रहेंगे!
मुलाकात का परिणाम आपको सूचित किया जाएगा।’’
इस सन्देश के सभी जहाज़ों पर पहुँचने से पहले ही
सफ़ेद झण्डा लिये एक गोरा सैनिक कैसल बैरेक्स की ओर आता दिखाई दिया और दोनों ओर की
बन्दूकें शान्त हो गर्इं। लुक आउट गेट के निकट गए, सन्देश
वाला कागज़ लिया और कैसेल बैरेक्स में गॉडफ्रे ख़ुद आने वाला है। यह ख़बर हवा की तरह
फैल गई।
‘‘अगर गॉडफ्रे ख़ुद हाथ में सफ़ेद झण्डा लेकर आये
तभी उससे बातचीत करेंगे!’’
‘‘बातचीत मेन गेट के बाहर होगी। हम गॉडफ्रे को
बैरेक्स में नहीं आने देंगे।’’
‘‘अगर उसे बैरेक्स में आना हो तो कैप और रैंक के
चिह्न उतारकर ही आए।’’
‘‘इसमें ज़रूर गॉडफ्रे की कोई चाल है, वरना
नौसेना नष्ट करने के लिए निकला गॉडफ्रे बातचीत के लिए क्यों आ रहा है? उससे
बातचीत करो ही मत।’’
‘‘यह हमारी विजय है। पहले भूदल सैनिकों का घेरा
उठाओ, तभी
बातचीत होगी।’’
हरेक सैनिक अपनी–अपनी राय दे रहा था। कुछ लोग तो मानो हल्दी की आधी
गाँठ से ही पीले हो गए थे।
नौसैनिकों के कब्ज़े में जो अधिकारी थे उनकी
सुरक्षा के बारे में जनरल हेडक्वार्टर चिन्तित था। हर आधे घण्टे बाद ‘कैसल बैरेक्स’ का फ़ोन खनखना रहा था और विनती की जा रही थी, ‘‘तीनों
अधिकारियों को मुक्त करो!’’
‘‘बाहर का घेरा उठाओ और बातचीत के लिए तैयार हो
जाओ। हम अधिकारियों को छोड़ देंगे।’’ सैनिक जवाब दे रहे थे।
एचिनलेक की आज्ञानुसार अपने मिशन पर निकला
लॉकहर्ट पाँच बजे ही मुम्बई पहुँच
गया। विद्रोह दबाने का काम लॉकहर्ट
को सौंपा गया है, यह पता चलने पर गॉडफ्रे बेचैन हो गया था। उसके नौसेना
प्रमुख होते हुए लॉकहर्ट की इस काम के लिए नियुक्ति उसे अपमानजनक लग रही थी। यह
एचिनलेक द्वारा उसकी कार्यक्षमता पर दिखाया गया अविश्वास ही था।
मुम्बई पहुँचते ही लॉकहर्ट ने बाहर से ही ‘कैसल बैरेक्स’ का इन्स्पेक्शन किया। मुम्बई के गवर्नर सर जे. कोलविल और बॉम्बे एरिया कमाण्डेन्ट ब्रिगेडियर साउथगेट
से चर्चा की। सारी घटनाओं को समझने के लिए उसने गॉडफ्रे को बुलवा लिया। ‘चौबीस घण्टे में विद्रोह को कुचलना है तो कठोर
कार्रवाई करनी ही होगी,’ उसने मन ही मन निश्चय किया। ‘दिल्ली से मुम्बई के सफ़र के दौरान तय की गई
योजना ही उचित है ।’ उसके दिल ने हामी भरी और उसने ब्रिगेडियर साउथगेट
को सूचनाएँ दीं।
‘‘मुम्बई में शान्ति स्थापित होकर स्थिति सामान्य
हो ही जानी चाहिए।’’ दिल्ली में बैठे आज़ाद वॉर सेक्रेटरी मैसन से कह
रहे थे, ‘‘मुम्बई
में यदि स्थिति सामान्य नहीं हुई तो पूरे देश में हिंसा
भड़क उठेगी, हज़ारों लोगों की जान जाएगी और तुम लोगों के लिए
राज करना मुश्किल हो जाएगा।’’
‘‘सर, हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि मुम्बई की
स्थिति दो–एक दिन में सामान्य हो जाएगी। आज सुबह
हमने जो कदम उठाए हैं, ‘तलवार’ और ‘कैसल बैरेक्स’ के
चारों ओर भूदल के सैनिकों का जो घेरा डलवाया, वह
सिर्फ सैनिकों और मुम्बई की सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक था इसीलिए।’’ मैसन
के शब्दों की मिठास और गहरी नीली आँखों की धार ही ऐसी थी कि सामने वाला इन्सान उसके
शब्दों पर विश्वास कर बैठता। आज़ाद के साथ भी यही हुआ।
‘‘आपसे
एक प्रार्थना है।’’ खुशामद करते हुए मैसन ने कहा।
‘‘बोलिये!’’ आज़ाद ने कहा।
‘‘कांग्रेस जिस तरह अब तक इन सैनिकों से दूर रही, उसी
तरह वह आगे भी रहे।’’ मैसन ने विनती की और आज़ाद ने उसे मान लिया।
मैसन ने इस बात की पूरी व्यवस्था कर ली कि कांग्रेस विद्रोह से पूरी तरह दूर
रहेगी। मगर लॉकहर्ट हवाई हमलों की योजना बना रहा है, इंग्लैंड
की कुछ युद्ध नौकाएँ और रॉयल एअरफोर्स के कुछ विमान इस विद्रोह को मिटाने के लिए आ
रहे हैं यह उसने आज़ाद को नहीं बताया।
साढ़े पाँच बज चुके थे। चार बजे आने वाला
गॉडफ्रे अभी तक कैसल बैरेक्स में आया नहीं था । दत्त, मदन और खान उसकी राह देखते–देखते बेजार हो चुके थे। खान को अभी भी उम्मीद
थी कि कुछ होगा, जिससे सब कुछ आपसी सामंजस्य से सुलझ जाएगा ।
‘‘कितनी देर राह देखेंगे? मिलने
का झाँसा देकर अपने को गाफ़िल रखने की चाल तो नहीं है गॉडफ्रे की?’’ मदन
ने सन्देह व्यक्त किया।
‘‘मेरा ख़याल है कि हम और पाँच मिनट रुक जाएँ।’’ खान
को अभी भी आशा थी।
वे वापस जाने के लिए मुड़े ही थे कि सफ़ेद झण्डा फ़हराती
नौसेना की एक जीप आती दिखाई दी। बैरेक्स के सैनिकों ने नारे लगाना शुरू कर दिया। खान
ने उन्हें शान्त किया।
जीप खट् से ब्रेक मारते हुए रुकी । खान और उसके
साथियों की अपेक्षा भंग हो गई। जीप में गॉडफ्रे और रॉटरे दिखाई
नहीं दे रहे थे। जीप में से स. लेफ्ट. एस. एस. चौधरी, लेफ्ट.
इंदर सिंह और मुम्बई के एक नागरिक हातिम दरबारी उतरे।
‘‘दो कनिष्ठ अधिकारियों और एक अपरिचित नागरिक को
बातचीत करने के लिए भेजकर गॉडफ्रे ने हमारा अपमान किया है !’’ मदन
पुटपुटाया।
‘‘वे क्या कह रहे हैं यह तो देखें, ठीक
लगा तो आगे बात करेंगे, वरना
हम अपना रास्ता चुनने के लिए स्वतन्त्र हैं। दत्त ने समझाया ।
‘‘आपके पास बातचीत करने के लिए अधिकार–पत्र है?’’ खान
ने पूछा।
इन्दर सिंह ने अधिकार–पत्र दिखाया।
‘‘गॉडफ्रे
ने हमें पर्याप्त सूचनाएँ देकर भेजा है, ’’
सब. लेफ्ट. चौधरी
ने अतिरिक्त जानकारी दी।
‘‘ठीक है।’’ पत्र
दत्त के हाथ में देते हुए खान ने कहा, ‘‘मैं सेन्ट्रल कमेटी का अध्यक्ष लीडिंग
टेलिग्राफिस्ट खान, ये हमारी कमेटी के सदस्य - लीडिंग
टेलिग्राफिस्ट मदन और गुरु, और दत्त - हमारा सलाहकार ।’’ खान
ने परिचय करवाया।
इन्दर सिंह ने भी चौधरी और दरबारी का परिचय दिया।
‘‘क्या हम बैरेक्स में बैठकर बातचीत करें ?’’ इन्दर सिंह ने पूछा।
‘‘नहीं, बातचीत
बाहर ही होगी। सैनिक गुस्से में हैं। हम कोई ख़तरा नहीं मोल लेना चाहते।’’ खान
ने स्पष्ट किया।
''It’s all right. हम यहीं चर्चा कर लेते हैं।’’ इन्दर
सिंह सम्मति दी।
‘‘सैनिकों की सद्भावना और बातचीत के ज़रिये समस्या
सुलझाने की तीव्र इच्छा है, यह प्रदर्शित करने के लिए अपने कब्ज़े में रखे
तीनों अधिकारियों को बिना शर्त मुक्त करें और... ।’’
‘‘और क्या ?’’ इन्दर
सिंह की बात काटते हुए दत्त ने पूछा।
‘‘सैनिक हथियार डाल दें।’’ इन्दर
सिंह ने अपनी बात पूरी की।
‘‘आप क्या हमें दूधपीते बच्चे समझ रहे हैं ?’’ खान
ने चिढ़कर पूछा।
‘‘हमारे हाथ के तुरुप कार्ड हम आसानी से फेंक
देंगे, यह
आपने समझ कैसे लिया ?’’ मदन ने चिढ़कर पूछा।
‘‘इन शर्तों पर बातचीत नहीं होगी।’’ गुरु
ने चिढ़कर कहा।
‘‘ठीक है । यदि हम आपकी दोनों शर्तें मान लेते
हैं तो अपनी सद्भावना व्यक्त करने के लिए आप क्या करेंगे ?’’ दत्त
ने शान्त स्वर में पूछा।
‘‘एडमिरल गॉडफ्रे ख़ुद तुमसे बातचीत करने के लिए
आएँगे।’’ चौधरी के चेहरे पर बड़ी उदारता का भाव था।
‘‘मेरा ख़याल है कि आप यहाँ से जा सकते हैं।’’ खान
ने शान्त सुर में कहा। ‘‘बातचीत
तो हम बिना किन्हीं पूर्व शर्तों के ही करेंगे।’’
‘‘मेरा ख़याल है कि यह आप लोगों की बेवकूफी होगी !’’ इन्दरसिंह
ने समझाने के सुर में कहा।
‘‘आज दोपहर को गॉडफ्रे ने जो चेतावनी दी है, क्या
उसे सुना नहीं है?’’ चौधरी ने कुछ गुस्से से कहा।
‘‘हमारी माँग आज़ादी की है। हम मौत की परवाह नहीं
करते। आज़ादी के लिए लड़ने वाले सिर पर कफ़न बाँधकर बाहर निकलते हैं, ये
तुम जैसे चापलूस क्या समझेंगे ? हमें क्यों मौत से डराते हो?’’ गुरु
ने गुस्से से पूछा।
‘‘ये सब बोलने ही की बातें हैं। वास्तविकता सामने
आते ही...’’ इन्दर सिंह ने सुनाया ।
‘‘यह सच है कि हम यहाँ बातचीत करने आए हैं, मगर
परिणामों की कल्पना देना भी हमारा उद्देश्य है।’’ चौधरी
ने असली बात उगल दी।
‘‘शायद तुम लोगों को मालूम न हो इसलिए बताता हूँ।
HMS ग्लैस्गो समेत कुछ जहाज़ और रॉयल एयरफोर्स के कुछ
स्क्वाड्रन्स कल शाम तक हिन्दुस्तान पहुँच जाएँगे और फिर गॉडफ्रे ने जैसा कहा है, नौदल
की बेस ज़मीनदोस्त हो जाएगी और जहाज़ समुद्र की गोद में समा जाएँगे।’’ इन्दर
सिंह परिणामों से अवगत करा रहा था । ‘‘इस सबके
लिए तुम लोग ज़िम्मेदार होगे। यदि इसे टालना चाहते हो तो हमारे कहे अनुसार
अधिकारियों को मुक्त करो और हथियार डाल दो ।’’
‘‘ठीक है। हम यह करते हैं; पहले
आप भूदल के सैनिकों का घेरा उठाइये।’’ खान ने अपनी शर्त बताई।
‘‘हमारे हथियार डाल देने के बाद हमारी सुरक्षा की
क्या गारंटी है ?’’ गुरु ने पूछा।
‘‘उसकी गारंटी हम देते हैं।’’ इन्दर सिंह ने उन्हें भरोसा देने का प्रयत्न किया।
‘‘देश के प्रति गद्दार लोग हमसे कैसे ईमानदारी
करेंगे ?’’ दत्त त्वेष से
चीखा ।
“ It's enough.'' इन्दर
सिंह गुस्से से चीखा । ‘‘समझते
क्या हो तुम अपने आप को ? अब भुगतो इसका नतीजा। मुझे अब आगे कोई बात नहीं
करनी है ।’’ और वह जीप की ओर बढ़ा। ''Let's go,'' अपने
साथियों की ओर देखते हुए उसने कहा।
‘‘एक मिनट, मुझे
आपसे कुछ कहना है ।’’ जीप की ओर जाने वाले इन्दर सिंह को रोकते हुए
हातिम दरबारी ने कहा।
‘‘इन्दर, इस तरह गुस्सा करने से काम नहीं चलेगा। गॉडफ्रे
का आदेश याद है ना ? बातचीत मत करना। अधिकारियों को छुड़वाकर लाना।’’
‘‘मैं नहीं समझता कि कुछ हाथ लगेगा।’’ इन्दर
सिंह निराश हो गया था।
‘‘मैं कोशिश करता हूँ । आप यहीं रुकिये ।’’ दरबारी
ने कहा और वे दत्त, मदन, गुरु
और खान के पास आए।
‘‘आज तक की तुम्हारी गतिविधियों को देखकर मुझे
ऐसा नहीं लगता कि तुम लोग उन तीनों को बन्धक बनाकर या जान से मारने की धमकी देकर
अपना हेतु पूर्ण करोगे ।’’ दरबारी ने कहा।
‘‘यह ख़याल तो हमारे दिलों में आया भी नहीं।’’ खान
ने जवाब दिया।
‘‘मैं जानता हूँ कि तुम उन्हें छोड़ दोगे। फिर अगर
उन्हें अभी, इसी समय छोड़ दो तो ? इसमें
तुम्हारा ही फ़ायदा है।“
‘‘हमारा क्या फ़ायदा है ?’’ गुरु
ने पूछा।
‘‘अगर आज तुमने उन्हें बिना शर्त छोड़ दिया तो
जनता के मन में तुम्हारे प्रति आदर बढ़ेगा। दूसरी बात यह कि तुम्हारे इस व्यवहार से
प्रभावित होकर और हमारी विनती सुनकर भूदल का घेरा उठा दिया गया, तो भी तुम्हारा ही फ़ायदा है। यदि ज़िद में आकर
तुमने अधिकारियों को नहीं छोड़ा, और गॉडफ्रे ने चिढ़कर हवाई हमला कर दिया तो कितने
सैनिकों की जान जाएगी, कितने नागरिकों का नुकसान होगा इसके बारे में
सोचो। मेरा ऐसा ख़याल है कि तुम लोग थोड़ा
पीछे हटो और बातचीत के लिए तैयार हो जाओ। मैं
रास्ता ढूँढ़ने की कोशिश करता हूँ ।’’ दरबारी ने समझाया।
‘‘हमें थोड़ा वक्त दीजिए; हम
विचार–विमर्श करते हैं,’’ खान
ने कहा।
खान ने दत्त, गुरु और मदन से सलाह करके ‘नर्मदा’, ‘ कैसल बैरेक्स’ और ‘तलवार’ के
प्रतिनिधियों की भी फ़ोन करके राय ली। लगभग सभी प्रतिनिधियों की इस बात पर एक राय
थी कि अधिकारियों को बन्धक न बनाया जाए।
मगर सभी हथियार डालने के विरुद्ध थे।
खान ने सेंट्रल कमेटी के सदस्यों से चर्चा करके
तय की गई नीति के अनुसार ले. कमाण्डर
मार्टिन और दीवान को ‘पीस पार्टी’ के
हवाले कर दिया। लेफ्ट. विलयम्स को गॉडफ्रे से बातचीत होने के बाद ही छोड़ा जाने
वाला था। भूदल सैनिक और नौसैनिक पूरी तरह से गोलीबारी रोकने वाले थे। इन्दर सिंह, चौधरी
और दरबारी बातचीत करवाने में सहायता करने वाले थे।
इस ‘पीस
पार्टी’ के साथ ही खान, दत्त, गुरु
और मदन गॉडफ्रे से मिलने के लिए निकले।
“मैंने जो हवाईदल की सहायता माँगी थी, उसका क्या हुआ? वह
सहायता अब तक क्यों नहीं पहुँची?’’ लॉकहर्ट साउथगेट से पूछ रहा था।
‘‘सर, पहले मैंने मुम्बई और पुणे के एअर फोर्स बेसेस
से सम्पर्क करके सहायता माँगी थी। मगर इन बेसेस के अधिकारियों और सैनिकों ने
अंग्रेज़ सरकार की सहायता करने से इनकार कर दिया है।’’ साउथगेट ने बताया।
''O, hell with these bloody
Indians.'' लॉकहर्ट चिढ़ गया था। “ फिर इसके
बाद तुमने क्या किया?’’ उसने साउथगेट से पूछा।
‘‘जोधपुर के हवाईदल के स्क्वाड्रन्स को मुम्बई के
नौसेना तल पर हमला करने का हुक्म दिया था। पायलट्स हवाई जहाज़ों में बैठ भी गए। मगर
सभी हवाई जहाज़ों में एक ही प्रकार का दोष निर्माण हो गया और हवाई जहाज़ उड ही नहीं
सके। मेरा ख़याल है कि हिन्दुस्तानी सैनिकों ने नौसैनिकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करने
का निश्चय कर लिया है, हमें उन पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।’’ साउथगेट
ने अपनी कोशिशों के बारे में बताकर अपनी राय दी।
‘‘ठीक है। रॉयल एअर फ़ोर्स के हवाई जहाज़ कल तक
यहाँ पहुँचेंगे। हिन्दुस्तानी नौसैनिकों को कल मैं अच्छा सबक सिखाऊँगा।’’ लॉकहर्ट
गुर्राया।
गॉडफ्रे सेन्ट्रल कमेटी के सदस्यों से मिलने के
लिए तैयार ही नहीं था। बाहर बैठे खान, दत्त
गुरु और मदन इन्दर सिंह की राह देख रहे थे।
‘‘गॉडफ्रे तुम लोगों से मिलने के लिए तैयार नहीं
है। उसके हाथ में अब कुछ भी नहीं है, यदि घेरा उठवाना हो या सरकार से बातचीत करनी हो
तो तुम लोग जनरल लॉकहर्ट से मिलो, मगर इससे पहले ब्रिगेडियर साउथगेट से मिल लो, ऐसी
सलाह वे दे रहे हैं।’’ इन्दर सिंह ने भावनाहीन चेहरे से कहा।
‘‘अगर यह हमें पहले ही बता दिया होता तो?’’ दत्त ने पूछा ‘‘हमने उन दोनों को छोड़कर और तुम्हारे साथ यहाँ
आकर गलती की है। यदि वे तीनों हमारे कब्ज़े में होते तो गॉडफ्रे झख मारकर हमसे बात
करता।’’ मदन
ने गुस्से से कहा।
''Forget it.
तुम साउथगेट से मिलो। मेरा ख़याल है कि
इससे फ़ायदा होगा। वह तुम्हें टाउन हॉल में मिलेगा। फ़िलहाल उसका ऑफ़िस वहीं है। ''Well, All
the best.'' इन्दर सिंह हँसते हुए निकल गया।
खान अपने सहयोगियों के साथ टाउन हॉल पहुँचा तो साउथगेट
अपने ऑफिस में ही था। पहरेदार ने सहयोगियों सहित खान के आने की सूचना दी और साउथगेट
ने अपने अन्य कामों को एक तरफ़ हटाकर उन्हें भीतर बुलाया । ''Come
in!" साउथगेट ने रूखी आवाज़ में उनका स्वागत
किया। असल में अपनी आवाज़ के इस रूखेपन को वह टालना चाहता था। मगर सेना की प्रदीर्घ
सेवा के कारण यह रूखापन उसमें इतना रच–बस
गया था कि आवाज़ में मुलायमियत लाना नामुमकिन
था।
बातचीत किस तरह शुरू की जाए यह सोचते हुए उसने
पाइप सुलगाया। दो–चार
गहरे–गहरे
कश लेकर सीने में धुआँ भर लिया और हौले–हौले नाक–मुँह से धुआँ बाहर निकालते हुए वह बोलने लगा।
‘‘तुमने सिर्फ दो अधिकारियों को आज़ाद किया है।
मगर सारे अस्त्र–शस्त्र, गोला–बारूद
और विलयम्स तुम्हारे ही कब्ज़े में है... ।’’
‘‘आप आख़िर चाहते क्या हैं ?’’ दत्त
ने पूछा।
‘‘सारे अस्त्र–शस्त्र और गोला–बारूद ताला बन्द करके चाबियाँ हमारे हवाले कर
दो और विलयम्स को फ़ौरन छोड़ दो।“ साउथगेट ने अपनी अपेक्षा स्पष्ट की ।
‘‘हमने बिना शर्त दो अधिकारियों को आज़ाद कर दिया
है, और
गोलीबारी भी बन्द कर दी है। अब इससे आगे आप हमसे किसी और बात की उम्मीद करते हैं
तो पहले सेना का घेरा उठाना होगा।’’ खान ने चिढ़कर कहा।
‘‘सेना का घेरा उठाने की पूर्व शर्त तुम्हें
मालूम है, - Unconditional
surrender.'' साउथगेट ने शान्ति से कहा।
सैनिक इस तरह से आत्मसमर्पण के लिए तैयार नहीं होंगे
इसका खान और उसके सहयोगियों को पूरा यकीन था।
‘‘नहीं, ये सम्भव नहीं है। पहले घेरा उठाइये, फिर हम
विचार करेंगे।’’ खान ने चिढ़कर जवाब दिया।
‘‘ठीक है, as you wish. अगर तुम लोग surrender
नहीं करना चाहते तो मुझे कुछ और सोचना पड़ेगा।’’ साउथगेट
की धमकाती आवाज़, उसके बोलने का तरीका, उसके
चेहरे के भाव देखकर खान समझ गया कि साउथगेट सरल मन का इन्सान नहीं है। वह पक्का... है। खान को यह भय सताने लगा कि कहीं वह हमें
यहाँ हिलगाए रखकर यह अफ़वाह न फ़ैला दे कि हमने आत्मसमर्पण कर दिया है । ‘यहाँ से बाहर निकलना ही चाहिए ।’ उसने
सोचा और शान्त सुर में साउथगेट से कहा, ‘‘बिना शर्त आत्मसमर्पण करने का निश्चय बहुत
महत्त्वपूर्ण निश्चय है और वह मैं अकेला इन तीनों साथियों के साथ नहीं ले सकता। इसके
लिए सेन्ट्रल कमेटी की मीटिंग बुलाना ज़रूरी है। हम चर्चा करने के बाद अपने निर्णय
की सूचना आपको देंगे।’’
‘‘ठीक
है,
मगर निर्णय जितनी जल्दी हो सके, लीजिए।
अगर हमने नौसेना को नष्ट करने का हुक्म दे दिया तो उसे वापस न ले सकेंगे, यह बात ध्यान में रखना। ” साउथगेट ने धमकाते हुए
कहा।
खान, दत्त, गुरु और मदन को एक ही बात का अफ़सोस हो रहा था: ‘हमने दो अधिकारियों को आज़ाद कर दिया और साउथगेट
से मिलने गए यह बहुत बड़ी गलती थी।‘
रॉटरे का ‘तलवार’ पर
जाने का मन नहीं था, परन्तु लॉकहर्ट ने अपने साथ आए कर्नल ग्रीफिथ
को ‘तलवार’ की स्थिति
का जायज़ा लेने के लिए कहा, और रॉटरे से कहा कि उसके साथ जाए। रॉटरे को
मजबूरन जाना पड़ा।
रॉटरे और ग्रीफिथ ‘तलवार’ पर
पहुँचे तो शाम के छह बज चुके थे। ‘तलवार’ के
सैनिक आज़ादी से घूम रहे थे, उन पर किसी का भी नियन्त्रण नहीं था।
“ ‘तलवार’ में निहत्थे प्रवेश करना ख़तरनाक तो नहीं है ना ?’’ ग्रीफिथ ने पूछा।
‘‘फिकर मत करो, वे
हम पर हमला नहीं करेंगे, क्योंकि उनके नेताओं ने उन्हें हथियार न उठाने
का आदेश दिया है। गाँधीजी के विचारों से प्रभावित नौसैनिक हमें छुएँगे तक नहीं। और
मान लो, अगर ऐसा कुछ हुआ तो पहरे पर तैनात अपने सैनिकों
को बुला लेंगे।’’
जैसे ही रॉटरे और ग्रीफिथ ‘तलवार’ पहुँचे, पन्द्रह–बीस सैनिक ‘रॉटरे, हाय
हाय!’
, ‘रॉटरे, गो बैक’ के
नारे लगाते हुए दौड़े। दास भागकर आगे आया। इस अनपेक्षित प्रसंग से रॉटरे और ग्रीफिथ
बेचैन हो गए।
‘‘दोस्तों! आज हम यहाँ आए हैं...’’ रॉटरे
कुछ कहने की कोशिश कर रहा था। मगर नारों के शोरगुल में उसकी आवाज़ दब गई।
सैनिकों की संख्या और उनका शोर बढ़ता ही जा रहा था।
किसी ने आगे जाकर मेन गेट बन्द कर दिया। दास परेशान हो गया। सैनिकों का घेरा तोड़ते
हुए वह रॉटरे के करीब पहुँचा।
‘‘रॉटरे, तुम
दोनों ने यहाँ आकर गलती की है। अब यहाँ रुकने की भयानक गलती न कर बैठना।’’ दास
ने सलाह दी ।
रॉटरे को दास की सलाह उचित लगी । वह घेरा तोड़ने
की कोशिश करने लगा। सैनिकों के नारों ने ज़ोर पकड़ लिया। चिढ़े हुए एक–दो सैनिक आगे बढ़े। दास तीर के समान आगे लपका।
रॉटरे पर पड़ने वाले दो हाथों को दास ने ऊपर ही रोक लिया।
‘‘युद्ध
और प्यार में सब कुछ माफ़ है - यह अंग्रेज़ी कहावत है। मगर हमारी संस्कृति यह है कि
युद्धों को नीति और नियमों से ही जीता जाए।’’ दास
समझा रहा था । ‘‘हालाँकि इस समय रॉटरे हमारा दुश्मन है, वह अत्याचारी है, फिर भी इस समय वह निहत्था है । वह लड़ने के लिए
नहीं आया है । सेन्ट्रल कमेटी की ओर से मैं आप लोगों से अपील करता हूँ कि इन दोनों
को सही–सलामत ‘तलवार’ से बाहर जाने दें!’’
नारे थम गए । कोई चिल्लाया, ‘‘ठीक है । हम इन्हें बाहर जाने देंगे, मगर इन दोनों को ‘तलवार’ से
बाहर निकलने तक अपनी कैप्स उतारनी होंगी ।’’
इस माँग का गड़गड़ाहट से समर्थन किया गया।
‘‘रॉटरे, मेरा ख़याल है कि इसके अलावा कोई चारा नहीं।’’ दास ने कहा
।
रॉटरे और ग्रीफिथ ने पलभर को सोचा और अपनी–अपनी कैप हाथ में लिये वे मेन गेट की ओर चलने
लगे। रॉटरे के मन में इस अपमान का बदला लेने की विभिन्न योजनाएँ बन रही थीं । उसने
मन ही मन ठान लिया कि जिन सैनिकों ने हमें कैप्स उतारने पर मजबूर किया है, चौराहे
पर उनके कच्छे उतरवाऊँगा।
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