''Come on, join there.'' गुरु
की जाँच होने
के बाद एक
गोरे सैनिक ने पन्द्रह–बीस
व्यक्तियों के गुट की ओर इशारा करते हुए कहा । गुरु को औरों के साथ
बैरेक में लाया
गया । एक गोरे
अधिकारी की देखरेख
में छह–सात गोरे सैनिकों का झुण्ड लॉकर्स की तलाशी ले रहा था ।
''Come on, hurry up! Open your
locker, I want to check it.' एक
गोरे सैनिक ने
उससे कहा ।
गुरु
ने उसे लॉकर
दिखाया और चाभी
निकालकर वह लॉकर
खोलने के लिए आगे
बढ़ा ।
‘‘चाभी मुझे
दे और तू वहीं खड़ा रह
। बीच–बीच में
न अड़मड़ा ।’’ गोरा सैनिक
उसे धमका रहा
था । ‘‘और देख, सिर्फ
पूछे हुए सवालों
के ही जवाब दे ।फालतू की बकबक
करेगा तो चीर
के रख दूँगा ।’’
गोरे
ने गुरु का
लॉकर खोला और
भीतर का सामान
बाहर फेंकने लगा ।
‘‘खान वाकई
में है दूरदर्शी ।
मुहिम पर जाते
समय उसने लॉकर
साफ करने को कहा
था । पोस्टर्स, आपत्तिजनक
काग़ज इकट्ठा करके
जलाने को कहा
था ।’’ गुरु
सोच रहा था ।
‘‘यदि लॉकर
में गलती
से कुछ रह
जाता तो...’’
मगर अब वह निडर हो
गया था । ‘मिलता तो
मिलता... क्या
होगा ? दो–चार
महीनों की कड़ी
सजा । जानकारी हासिल
करने के लिए
यातना...ज़्यादा से ज़्यादा नौसेना
से निकाल देंगे ।
फाँसी तो नहीं
ना देंगे ? दी
तो दी–––’ गुरु
के लॉकर की तलाशी समाप्त हुई ।
फर्श पर कपड़ों का ढेर पड़ा था । अन्य वस्तुएँ बिखरी पड़ी थीं ।
गोरे सैनिक ने लॉकर का
कोना–कोना
छान मारा, वहाँ
से निकला हुआ काग़ज का हर पुर्जा कब्जे
में ले लिया
और वह दूसरे
लॉकर की ओर
मुड़ा ।
गुरु मन ही मन यह सोचकर खुश हो रहा था कि उसे
डायरी लिखने की आदत नहीं है ।
‘‘साला आज
का दिन ही
मुसीबत भरा है ।
यह अलमारी ठीक–ठाक
करने के लिए कम से कम आधा घण्टा लग जाएगा, फिर
उसके बाद डिवीजन, बारह से
चार की ड्यूटी... यानी
नहाना–धोना
वगैरह...’’ अपने आप
से बड़बड़ाते हुए वह लॉकर ठीक करने
लगा ।
‘‘चाय ले ।’’ दास
चाय का मग
उसके सामने लाया । गुरु
तन और मन से
पूरी तरह पस्त
हो गया था ।
उसे वाकई में
चाय की
ज़रूरत थी । दास
को धन्यवाद देते हुए
उसने चाय का
मग हाथ में
लिया ।
‘‘दत्त पकड़ा
गया ।’’ दास बुदबुदाया ।
‘‘क्या
?’’ गुरु चीखा ।
उसके हाथ की
चाय छलक गई ।
‘‘चिल्ला
मत । मुसीबत आ
जाएगी ।’’ दास ने
उसे डाँटा ।
‘‘कब पकड़ा
गया ?’’ वास्तविकता को
भाँपकर गुरु फुसफुसाया ।’’
‘‘सुबह
करीब तीन–साढ़े
तीन बजे ।’’
‘‘मदन को मालूम
है ?’’
‘‘मदन ने
ही मुझे बताया ।
फ़ालतू में भावनावश
होकर लोगों का
ध्यान अपनी ओर न खींचो । जहाँ तक संभव हो, हम
इकट्ठा नहीं होंगे । दो दिन पूरी हलचल बन्द । बोस पर नजर रखना । यदि कोई
सन्देहास्पद बात नजर आए तो सब को सावधान करना । मदन ने ही तुझे कहलवाया है ।’’
दत्त
उस रात्र
ड्यूटी पर गया
तो बड़े बेचैन
मन से।
‘कल
कमाण्डर इन चीफ़ आ रहा है
और मैंने कुछ
भी नहीं किया ।
औरों की बातों
में आकर मैं
भी डर गया । चिपका देता कुछ और
पोस्टर्स, रंग देता डायस तो क्या बिगड़ता? ज़्यादा से
ज्यादा क्या होता... पकड़ लेते...’ खुद
की भीरुता उसके मन को कुतर रही थी ।
बारह
बजे तक वह
जाग ही रहा
था ।
‘अभी
भी देर नहीं हुई है । कम से कम पाँच घण्टे बाकी हैं । अब जो होना है, सो हो जाए। पोस्टर्स तो चिपकाऊँगा ही । फ़ुर्सत
मिलते ही बाहर निकलूँगा और दो–चार पोस्टर्स चिपका दूँगा ।’’ उसने
मन ही मन
निश्चय किया, ‘अच्छा हुआ कि कल शाम को खाने के बाद करौंदे की
जाली में छिपाये हुए पोस्टर्स ले आया ।’
ड्यूटी
पर जाते समय
उसने पेट पर
पोस्टर्स छिपा लिये ।
दत्त
अपनी वॉच का एक सीनियर
लीडिंग टेलिग्राफिस्ट था ।
आज तक के उसके व्यवहार से किसी को शक भी नहीं हुआ था
कि वह क्रान्तिकारी सैनिकों में से एक हो सकता है । इसी का फ़ायदा उठाने का निश्चय किया दत्त
ने ।
रात के डेढ़ बजे थे । ड्यूटी पर तैनात अनेक
सैनिक ऊँघ रहे थे । ट्रैफिक वैसे था ही
नहीं । चारों ओर
खामोशी थी । दत्त
ने मौके का
फायदा उठाने का निश्चय
किया । हालाँकि किंग
ने यह आदेश
दिया था कि
रात में कोई
भी सैनिक बैरेक से बाहर नहीं निकलेगा, परन्तु कम्युनिकेशन सेन्टर के सैनिकों की आवश्यकता
होने पर
बाहर जाने के लिए
विशेष ‘पास’ दिये
जाते थे । इनमें
से एक ‘पास’ ड्यूटी पर
आते ही दत्त
ने ले लिया
था । उसने एक
लिफाफा लेकर उसे
सीलबन्द किया और उस
पर ‘टॉप सीक्रेट’ का
ठप्पा लगाया । इसे
जेब में रखा ।
यदि किसी ने टोका तो ये दोनों
चीजें उसे बचाने के
लिए पर्याप्त थीं ।
जैसे
ही मौका मिलता, दत्त
बाहर निकल जाता ।
अँधेरे स्थान पर दो–चार
पोस्टर्स चिपकाकर वापस
आ जाता । उसका
ये पन्द्रह–बीस मिनटों
के लिए बाहर जाना
किसी को खटकता
भी नहीं ।
उसका चिपकाया हुआ हर पोस्टर सैनिकों को बगावत
करने पर उकसाने वाला था । एक पोस्टर पर लिखा था:
''Brothers, this is the time you must hate and
this is the time you must love. Recognize your enemy and hate him. Love your
mother, the Land, you are born.''
दूसरे
पोस्टर में लिखा
था: ‘‘दोस्तो, उठो, अंग्रेज़ों
को और अंग्रेज़ी
हुकूमत को
हिन्दुस्तान से भगाने
का यही वक्त
है । नेताजी के
सपने को साकार
करने का समय आ गया है । उठो । अंग्रेज़ों के
विरुद्ध खड़े रहो ।
“हम
पर किये जा
रहे अन्याय को
हम कितने दिनों
तक सहन करेंगे ? क्या हम
नपुंसक हैं ?
‘‘क्या
हमारा स्वाभिमान मर चुका है?’’
‘‘चलो, उठो!
अंग्रेज़ी हुकूमत को नेस्तनाबूद कर दो। जय हिन्द!”
‘‘सारे
जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा!’’
रात
के तीन बजे
तक दत्त ने
आठ–दस
पोस्टर्स चिपका दिये
थे । मगर उसकी प्यास अभी
बुझी नहीं थी ।
घड़ी
ने तीन के
घण्टे बजाये । कुर्सी
पर बैठकर ऊँघ
रहा दत्त चौंककर
उठ गया ।
‘और एक
घण्टा है मेरे
पास । एक पन्द्रह–बीस मिनट
का चक्कर, चार–पाँच पोस्टर्स तो
आराम से चिपक
जाएँगे,’ वह अपने
आप से बुदबुदाया और
निश्चयपूर्वक उठ गया । ठण्डे
पानी से चेहरा
मल–मलकर
धोया, गोंद की बोतल ली ।
बोतल हल्की लग रही
थी । बोतल खाली
हो गई थी ।
चिढ़कर उसने बोतल
डस्टबिन में फेंक दी ।
‘‘फिर कित्थे
चले, भाई
?’’ ग्यान सिंह
ने चिड़चिड़ाते दत्त
से पूछा ।
‘‘क्रिप्टो ऑफिस
जाकर आता हूँ,’’ कैप उठाते हुए
दत्त ने जवाब
दिया ।
‘‘आज बड़े
घूम रहे हो ।
क्या बात है ?’’
ग्यान का यह नाक घुसाना अच्छा नहीं लगा दत्त को
। उसकी ओर ध्यान न देते हुए
वह क्रिप्टो ऑफिस
गया । चुपचाप गोंद
की बोतल उठाई ।
''I need it leading tel.'' मेसेज
डीक्रिप्ट करते हुए
भट्टी ने कहा ।
''Don't worry, यार; I
will bring it back soon.'' दत्त बाहर
निकला ।
जहाँ जहाँ सम्भव हो रहा था, वहाँ वह पोस्टर्स चिपकाता जा रहा था । ‘अब यह आख़िरी पोस्टर चिपकाया कि बस...।’’ हर
पोस्टर चिपकाते हुए वह अपने आप से यही
कह रहा था ।
मगर काम का
अन्त हो ही
नहीं रहा था ।
‘‘हर चिपकाया
हुआ पोस्टर अंग्रेज़ी
हुकूमत पर एक
घाव है, चिपका
और एक पोस्टर, मार
एक और घाव!’’ पोस्टर
चिपकाने के बाद
वह स्वयं से
कहता ।
दूर
कहीं जूतों की
आवाज आई । दत्त
सतर्क हो गया ।
उसके कान खड़े हो
गए । आवाज़ से
लग रहा था
कि एक से
ज्यादा व्यक्ति हैं ।
आवाज़ निकट आ रही थी ।
‘शायद
ऑफिसर ऑफ दि डे की परेड होगी, यह
आखिरी पोस्टर... ।’’
जल्दी–जल्दी वह
पोस्टर चिपकाने लगा ।
जूतों की आवाज़
और नज़दीक आई ।
‘‘अब छुप
जाना चाहिए । वरना...’’
उसने
बचे हुए चार
पोस्टर्स सिंग्लेट में
छिपा लिये । बोतल
उठाई और सामने वाली मेहँदी की चार फुट ऊँची बाँगड़ की
ओर छलाँग लगा दी । वह बाँगड़ तो पार कर गया मगर हाथ की काँच की बोतल फिसल गई और खट
से टकराई ।
उस
नीरव खामोशी में
बोतल गिरने की
आवाज ध्यान आकर्षित
करने के लिए पर्याप्त
थी । सब लेफ्टिनेंट
और उसके साथ
के क्वार्टर मास्टर
एवं दो पहरेदार आवाज़
की दिशा में
दौड़े । बैटरियों के
प्रकाशपुंज शिकार को
ढूँढ़ रहे थे ।
दत्त को भागकर छुप
जाने का मौका
ही नहीं मिला ।
आसमान पर बादल गहरा रहे थे। उदास, फ़ीकी, पीली धूप चारों ओर फैली थी । मदन बेचैन था ।
कुछ भी करने का मन
नहीं हो रहा
था ।
‘‘तुझे
ऐसा नहीं लगता कि दत्त ने जल्दबाजी की ?’’ थोड़ी फ़ुरसत मिलने पर मदन ने खान से पूछा।
‘‘यह तो
कभी न कभी
होना ही था ।
अब समय गलत हो गया, या वह सही
था, इस पर माथापच्ची करते हुए, इस
घटना से हम कैसे लाभ उठा सकते हैं,
इस
पर विचार करना आवश्यक है । दत्त की गिरफ़्तारी का मतलब यह नहीं है कि सब कुछ ख़त्म
हो गया । अब हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई है । The
show must go on.'' खान ने
बढ़ी हुई जिम्मेदारी का एहसास दिलाया ।
‘‘शेरसिंह
से मिलकर उनकी सलाह लेनी चाहिए ।’’
गुरु ने सुझाव दिया ।
‘‘हाँ, मिलना
चाहिए । मगर सावधानीपूर्वक मिलना
होगा ।’’ खान ने
कहा ।
‘‘मतलब
?’’ मदन ने
पूछा ।
‘‘कहीं
कोई हमारा पीछा तो नहीं कर रहा है,
इस पर नज़र रखते हुए ही मिलना चाहिए ।
बोस से सावधान रहना होगा ।’’ खान ने
कहा ।
‘‘मेरा ख़याल
है कि हम
तीनों को एक
साथ बाहर निकलना
चाहिए । यदि बोस पीछा
कर रहा हो, तो
तीनों तीन दिशाओं
में जाएँगे । जिसके
पीछे बोस जाएगा,
वह
शेरसिंह के निवास स्थान से दूर जाएगा । बाकी दो शीघ्रातिशीघ्र शेरसिंह से
मिलकर वापस आ जाएँगे ।’’ गुरु का
सुझाव सबको पसन्द
आ गया । ‘‘परिस्थिति कैसी करवट
लेती है, यह
हम देखेंगे । इस
घटना का सैनिकों
पर क्या परिणाम हुआ
है, यह देखकर
ही हम शेरसिंह
से मिलेंगे ।’’
बैरेक में बेचैनी महसूस हो रही थी । कोई भी कुछ
कह नहीं रहा था । दत्त द्वारा दिखाए गए साहस से
उसके प्रति आदर बढ़
गया था ।
‘‘दत्त
का लॉकर कौन–सा है?’’ सब ले. रावत
के सवाल का
जवाब देने के लिए
कोई भी आगे
नहीं आया ।
सब ले. रावत
एक ज़मींदार का
इकलौता और लाडला
बेटा, रंग से
जितना काला था उतना
ही मन का
भी काला था ।
बाप–दादाओं
की अंग्रेज़ों के
प्रति निष्ठा के कारण
उसे नौसेना में
प्रवेश मिला था ।
राज करने वालों
के तलवे चाटना और
अपने स्वार्थ के
लिए कुछ भी
करना, ये दोनों
गुण उसे विरासत
में मिले थे ।
कल
रावत ही ‘ऑफिसर
ऑफ दि डे’ था ।
दत्त को उसी
ने पकड़ा था ।
असल
में दत्त तो
उसकी अपनी गलती
से पकड़ा गया
था, मगर रावत
इसे अपना पराक्रम समझ
रहा था और
इस पर खुश
हो रहा था । उसका
यह विचार था कि वॉर रेकॉर्ड न होने के कारण उसका प्रमोशन
रुका हुआ है । दत्त को पकड़ने से अब रास्ता साफ़ हो गया है । वह
अब दत्त
के विरुद्ध अधिकाधिक सुबूत
इकट्ठा कर रहा था ।
साथ ही और
किसे पकड़ सकता
है, यह भी
जाँच रहा था ।
सैनिक उसे भली–भाँति जानते
थे । सभी के
चेहरों पर एक
ही भाव था, ‘‘यह
मुसीबत यहाँ क्यों आई
है ? अब और
किसे पकड़ने वाला
है ?’’
''Bastard! तलवेचाटू कुत्ता, साला! साले को जूते से मारना चाहिए ।’’
यादव बड़बड़ाया
‘‘यह
वक्त नहीं है ।
हमें शान्त रहना
चाहिए ।’’ दास ने
समझाया ।
‘‘आर.के. का
बलिदान, रामदास की
गिरफ्तारी, दत्त की
कोशिश बेकार नहीं गई ।
आज यादव जैसा
इन्सान, जो आज
तक हमसे दूर था, कम
से कम विचारों से
तो पास आ
रहा है । दास
सोच रहा था, ‘सैनिकों
का आत्मसम्मान जागृत होकर यदि
सैनिक संगठित होने वाले हों, तो ऐसे दस दत्तों की बलि भी मंजूर है’ ।’’
सभी
को चुपचाप और
मौका मिलते ही एक–एक को
बाहर जाते देखकर रावत
आगबबूला हो उठा ।
बीच की डॉर्मेटरी
में खड़ा होकर
वह चीख रहा था, ‘‘मैं तुमसे
पूछ रहा हूँ, दत्त
का लॉकर कौन–सा
है ? अरे, भागते
क्यों हो! एक भी
हिम्मत वाला नहीं
है ? सभी
Gutless bastards!” किसी
को भी
आगे न आते देखकर वह फिर चिल्लाया, ‘‘भूलो
मत, मेरा नाम सर्वदमन है, टेढ़ी
उँगली से घी निकालना मैं जानता
हूँ!’’
‘‘मैं
किसी से नहीं डरता । मैं दिखाता हूँ दत्त का लॉकर ।’’ बोस
सहकार्य देने के लिए
तैयार हो गया ।
‘‘शाबाश मेरे
शेर!’’ रावत ने
प्रशंसा से बोस
की ओर देखा ।
दत्त का लॉकर तोड़ा
गया । उसमें रखे
छोटे से छोटे
पुर्जे को भी
दर्ज करके कब्जे
में लिया जा रहा था ।
बोस बड़े जोश
से मदद कर
रहा था ।
दत्त
के लॉकर में
काफी कुछ मिला ।
दो–चार
बड़े–बड़े
पोस्टर्स, हैंडबिल्स, दो डायरियाँ, अशोक
मेहता के हस्ताक्षर
वाली पुस्तक ‘इंडियन
म्यूटिनी 1857’ एवं साम्यवादी विचारधारा की दो किताबें, सुभाषचन्द्र बोस का फोटो उनके हस्ताक्षर सहित
और उनके भाषणों की प्रतियाँ भी मिलीं । मिलने वाली हर चीज़ के साथ रावत का
चेहरा चमक रहा था
। वह ज़ोर–ज़ोर
से स्वयं से ही बड़बड़ा रहा था, ‘साला
पक्का फँस गया!
म्यूटिनी करता है!
अरे, मैं तेरा
बाप हूँ, बाप, हरामी साला!
कर ले म्यूटिनी!
अब कम से
कम चार साल
के लिए चक्की
पीसेगा...।’
सुबह
ग्यारह बजे तक
सर एचिनलेक का
कार्यक्रम चल रहा था
। कमाण्डर इन चीफ के बाहर निकलने तक किंग की जान में जान
नहीं थी । सुबह इतना बड़ा हंगामा हुआ था, उसके
बावजूद सारे नियत कार्यक्रम: डिवीजन
इन्स्पेक्शन, विभिन्न
प्रश्नों के सन्दर्भ में चर्चा आदि निर्विघ्न पूरे हुए । सुबह की घटना के बारे में कमाण्डर इन चीफ
को कोई सन्देह
भी नहीं हुआ ।
किंग अपनी विजय
पर प्रसन्न था ।
किंग
ने कमाण्डर इन
चीफ सर एचिनलेक
की कार को
गेट से बाहर
निकलत देखा और वह
अपने चेम्बर में
घुसा, कैम्प निकालकर
हैंगर पर उछाल
दी और पैर ताने
कुर्सी पर पसर
गया । अब उसे
थोड़ा अच्छा लग
रहा था । उसे
याद आया, सुबह चार
बजे घर का
टेलिफोन बज उठा
था ।
‘‘गुड मॉर्निंग
सर...’’ सब लेफ्टिनेंट
रावत बोल रहा था
। नींद
के नशे में किंग
को एक मिनट
के लिए समझ
ही में नहीं
आया कि रावत
क्या कह रहा है, और
जब समझ में
आया तो वह
उछल पड़ा । उसका
मुँह सूख गया ।
‘‘मैं वहाँ
आ रहा हूँ ।
समूची बेस का
कोना–कोना
छान मारो । पूरे
‘तलवार’ की युद्ध
स्तर पर सफाई
करवाओ । अगर मुझे
कोई चीज़ नजर आई तो
देखना!’’
‘‘अब
तो सब कुछ सही–सलामत पार हो गया है । अब इन बास्टर्ड्स को अच्छा सबक
सिखाना पड़ेगा ।’’ उसे
याद आया, सुबह
ही तो रावत
ने किसी को रंगे
हाथों पकड़ा था । ‘‘उस साले
को भी अब
सबक सिखाता हूँ ।
ये साले रावत जैसे लोग हैं इसीलिए
तो हम यहाँ टिके हैं, वरना...रावत जैसों की थोड़ी पीठ थपथपाई, उन्हें
थोड़ा लालच दिया
कि वे कुछ
भी करने के
लिए तैयार हो जाएँगे ।
समय आने पर
अपने स्वार्थ के
लिए बाप को
भी ख़त्म कर
देंगे ।’’
‘‘बशीर, बशीर–––’’ किंग ने अपने कॉकसन को बुलाया । सफेद झक वर्दी में
बशीर भागकर हाज़िर हो गया ।
“Call sub Lt. Rawat.''
''May I come in, Sir?'' तीसरे ही मिनट में रावत हाज़िर हो गया । वह किंग
के बुलावे की राह ही देख रहा था ।
''Please, welcome Rawat, welcome! You have done
a splendid job! Well done!''
रावत
मन ही मन
खुश हो गया । तीन–तीन
बार दोहरे होते हुए उसने
आभार प्रदर्शित
किया और शेखी
बघारने लगा ।
‘‘मैंने तय
ही कर लिया
था, सर, कि
उस गद्दार को
पकड़कर ही रहूँगा । साम्राज्य से
गद्दारी ? नमक
का फर्ज अदा
नहीं करते ? हरामी, साला, भागने
की कोशिश कर
रहा था । मगर
मैं फुर्ती से
आगे बढ़ा और उस साले
का गिरेबान पकड़ लिया ।
दो–चार
लातें खाने के
बाद गिड़गिड़ाने लगा ।
अब बैठकर रो रहा
होगा ।’’
‘‘मुझे
तुम्हारी मर्दानगी के बारे में सुबह ही पता चल गया था । मैंने कमाण्डर इन चीफ
से इस बारे
में बात भी की
।’’ किंग रावत
को चने के
झाड़ पर चढ़ा रहा
था । ‘‘तुम्हारा रिकमेंडेशन
भेजने के लिए
कहा है । शायद
आठ–दस महीनों
में... अगला
प्रोमोशन ।’’
''Thank you, sir! very kind of
you, sir.'' बीच–बीच में
रावत बुदबुदा रहा था ।
‘‘दत्त को
तो तुमने पकड़ा ही है, फिर अब अगले काम का श्रेय औरों को
क्यों जाए ? अब
तुम ही सारी
खोजबीन करके इस
केस की जड़
तक पहुँचो । तुम यह
काम करोगे, इसका
मुझे यकीन है, क्योंकि
तुम अपनी ज़िद के पक्के हो । इतनी
कारगुजारी कर लोगे
तो शायद और
एकाध इनाम...’’ किंग
ने लालच दिखाया ।
''Thank you, Sir! It will be a great honour for
me to carry out your orders, sir!'' रावत
के शब्दों में चापलूसी और मुख पर बाज़ी जीतने की प्रसन्नता थी ।
दत्त
को सुबह पकड़ते
ही रावत ने
अपने साथ वाले
पहरेदारों को हुक्म दिया, "Put him behind the
bars.''
गार्डरूम
के निकट वाली
जेल में दत्त
सींखचों के पीछे
डाल दिया गया और
संगीनधारी सैनिकों का
उस पर पहरा
बिठा दिया गया ।
‘पोस्टर्स चिपकाने
के काम मे
इतनी बेसब्री से
काम नहीं लेना
था ।’ दत्त सोच रहा
था । ‘अब चारेक
घण्टे की अच्छी
नींद मिलनी चाहिए ।
रावत ने अगर
अभी ही सवालों की
बौछार कर दी, तो
मुश्किल हो जाएगी... शायद अनचाही
बात मुँह से निकल
जाए...’ पिछले चार
दिनों की मानसिक, शारीरिक
और दिमागी मेहनत से
दत्त बेहद थक
चुका था। उसकी
सोचने की ताकत
ही समाप्त हो गई थी
। उसने
फर्श पर स्वयं
को झोंक दिया
और उसकी आँख कब लग
गई यह पता ही
नहीं चला ।
दत्त
की आँख खुली
तो दोपहर का
एक बज रहा था
। क्वार्टर मास्टर
द्वारा बजाए घण्टे की आवाज से ही उसकी नींद खुली थी ।
पलभर को तो उसे समझ में ही नहीं
आया कि वह
कहाँ है । उसने
चारों ओर नजर
दौड़ाई । करीब नौ बाइ
छह की
वह कोठरी बड़ी
तंग थी । आठ
फुट की ऊँचाई
पर लोहे की
सलाख और जाली लगा
एक झरोखा था ।
रोशनी आने का
बस वही एक
मार्ग था । मोटी–मोटी सलाखों वाले दरवाजों ने बाहर की दुनिया से
उसका सम्पर्क तोड़ दिया था । वह उठकर बैठ गया और उसका सिर चकराने लगा । उसे ध्यान
आया कि बड़ी तेज भूख लगी है । दरवाजे के निकट भोजन की थाली नजर आई और वह खाने पर
टूट पड़ा । पेट
में चार निवाले
जाने के बाद
उसे कुछ आराम
महसूस हुआ ।
‘ये चार
संगीनधारी सन्तरी किसलिए ?’ उसने
अपने आप से
पूछा ।
‘मुझसे सरकार
को खतरा ? मैं
कब से इतना
शक्तिशाली हो गया ?’ उसने स्वयं
से पूछा ।
‘अब आने
दो रावत को
और पूछने दो
सवाल । बिछा ही
देता हूँ साले को,’ वह
बुदबुदाया और रावत
की राह देखने
लगा ।
सब ले. रावत
को काफी काम
निपटाने थे । दत्त
के साथ ड्यूटी
कर रहे सैनिकों को उसने सबसे पहले
बुलाया और उनके बयान लिये । दोपहर तक यह बयानबाजी
चलती रही । शाम
के बाद उसने
दत्त की अलमारी
से मिले कागजात, डायरियों, नोटबुकों
आदि की जाँच
आरम्भ की ।
‘‘क्या हाल
है दत्त का ?’’ दूसरे
दिन सुबह आठ
बजे से बारह
बजे तक ड्यूटी करके
लौटे यादव से
मदन पूछ रहा
था ।
‘‘अरे, सन्तरी!
ड्यूटी पर दो
हिन्दुस्तानी और दो
गोरे सैनिक रखे
गए हैं । दत्त से बात करना तो दूर, उसके
पास भी नहीं जाने देते ।’’ यादव फुसफुसाया ।
‘‘क्या आज
उसे जाँच–पड़ताल के
लिए सेल से
बाहर निकाला गया था
?’’ मदन
ने पूछा ।
‘‘नहीं
रे, सुबह से उस तरफ किसी ने झाँका भी नहीं । दत्त
को गिरफ्तार किया है, शायद
यह बात भी वे भूल गए हैं । सुबह की चाय
और नाश्ता भी उसे नहीं दिया गया
। ड्यूटी
से वापस आते
हुए उसे खाना
देकर आए हैं सुबह से बस पड़ा था । खाना देते समय उसे
करीब से देखा, चेहरा एकदम उतर गया है । हमेशा की
हँसी बुझ गई
है।” यादव
‘‘इस
अकेलेपन के कारण शायद वह अपना आत्मविश्वास खो बैठे । यदि उसके मन को यह बात सताने
लगे कि वह अकेला
है, तो वह
तो टूट ही
जाएगा, मगर अपना प्लान भी खत्म हो जाएगा ।’’ मदन
सोच रहा था । ‘‘कुछ तो करना ही होगा ।’’ और
उसने शेरसिंह की
सलाह लेने की
सोची ।
दोपहर को जब ये तीनों बाहर जाने के लिए रेग्यूलेटिंग
ऑफिस के पास फॉलिन हुए तो बोस को वहाँ न देखकर
उन्होंने राहत की
साँस ली ।
‘‘बैरेक
में मैंने बोस
को देखा था ।
मुझे लगा कि
शायद वह हमारे
पीछे–पीछे आएगा ।’’ तलवार
से बाहर निकलकर
गुरु ने बताया
।
‘‘फिलहाल शेरसिंह
का ठिकाना परेल
में है । तुझे
कॉमरेड जोशी का घर तो
मालूम है ना, वहीं
से हमें पता मिलेगा ।’’
मदन
ने जानकारी दी ।
‘‘हम
लालबाग तक बस में जाएँगे । बस स्टॉप के पास ही जोशी का घर है । संकेत–वाक्य है : हम 64
नम्बर की बस से
आए हैं और 46 नम्बर
से वापस जाएँगे ।’’
मदन
ने कहा, ‘‘अरे, देख, वह
बोस!’’ पीछे मुड़कर
देख रहे गुरु
को बोस नज़र आया था ।
‘‘पीछे मुड़कर
न देखो, चलते रहो । बस से लालबाग जाना है । हरेक अपना– अपना टिकट
खरीदेगा, अलग–अलग स्टॉप
पर उतरेगा । हरेक
के उतरने में दो–दो स्टॉप की
दूरी रहेगी । टिकट
दादर तक का
लेना । बोस जिसके
पीछे होगा, वह उसे चकमा देता रहेगा, बाकी दोनों अलग–अलग
कॉमरेड जोशी से मिलकर शेरसिंह का पता
प्राप्त करेंगे । जो
सबसे पहले पता
लेगा वह शेरसिंह
से मिलेगा, दूसरा नजर
रखेगा ।’’ खान ने
हल्की आवाज में
सूचनाएँ दीं । दादर वाली बस सामने से आती
दिखाई दी । तीनों
ने दौड़कर बस
पकड़ी । बोस ने जब तीनों
को बस में चढ़ते
देखा, तो लपककर
चलती बस में
चढ़ गया और चढ़ते–चढ़ते
बुदबुदाया, ‘‘मुझे
धोखा देकर खिसक
रहे थे क्या ? मैं
तुम्हें छोडूँगा नहीं । मेरी कम्बल–परेड
की थी ना, देखते
रहो उसका बदला मैं कैसे लेता हूँ ।
‘‘तीनों का
पीछा करूँगा, वे
किससे मिलते हैं
यह पता करूँगा
और उन्हें सबक सिखाऊँगा, यह
सोचकर निकला था, मगर ये दोनों बीच में ही क्यों उतर गए ? अब
मैं किसका पीछा
करूँ ?’’ बोस सोच
रहा था । ‘‘ये
तीनों फिर से कही
न कहीं
मिलेंगे जरूर । अब
इस खान को
नहीं छोड़ना चाहिए, उसी
के पीछे रहना है; ’’ उसने
निश्चय किया ।
बॉम्बे सेंट्रल के निकट उतरकर सबसे पहले मदन
लालबाग की मजदूरों की बस्ती में पहुँचा । कॉमरेड जोशी अपने कमरे में ही थे । यह
कमरा ही उनका दफ़्तर था । मदन उनसे पहली बार मिल रहा था।
‘‘कौन
चाहिए ?’’ कड़े
शब्दों में मदन का स्वागत किया गया ।
‘‘कॉमरेड
जोशी ।’’
‘‘मैं ही
हूँ । क्या काम
है ?’’
मदन
ने काम के
बारे में जानकारी
दी और शेरसिंह
का पता पूछा ।
उसका संकेत–वाक्य बतलाया । जोशी को विश्वास नहीं हो रहा था
। मदन ने दो–चार बार विनती की, तब
शेरसिंह के पास किसी आदमी को भेजकर निर्णय लेने का उन्होंने निश्चय किया । जब मदन
शेरसिंह के पास जाने के लिए निकला तो कॉमरेड जोशी ने
उसके कन्धे पर
हाथ रखकर समझाते
हुए कहा, ‘‘गुस्सा
मत करो । पार्टी के और हाथ में लिये काम के हित की दृष्टि से यह पूछताछ, यह अविश्वास...करना पड़ता है ।... जाने
से पहले एक
सूचना दे रहा
हूँ । ‘जमना’ के
टेलिग्राफिस्ट राठौर और ‘नर्मदा’ के
कुट्टी से मिल
लो । वे तुम्हारी ही
राह के मुसाफिर
हैं । यदि तुम लोग
इकट्ठे हो गए
तो फायदा ही
होगा ।’’
‘‘दत्त
द्वारा उठाया गया कदम बिलकुल योग्य एवं समयोचित था ।’’ मदन
की बात
सुनने के पश्चात्
शेरसिंह शान्ति से
अपनी राय दे
रहे थे । ‘‘बगावत
के लिए, ऐसा
कुछ होना जरूरी
था । इसके परिणाम दो–चार
दिनों में स्पष्ट
होंगे । किंग तथा अन्य
अधिकारी दत्त से
अधिकाधिक जानकारी प्राप्त
करने की, उसके साथियों
को पकड़ने की
कोशिश करेंगे । दत्त
के ऊपर थर्ड
डिग्री का इस्तेमाल किया जाएगा
। दूसरी
ओर से दत्त
को भी इन
सबका बगावत के
लिए उपयोग करने का मौका मिलेगा ।’’
‘‘वह कैसे ?’’ मदन
ने पूछा ।
‘‘दत्त
अपना गुनाह मान ले ।
सारी जिम्मेदारी खुद
पर ले ले ।
नौसेना के कानूनों के
अनुसार दत्त पर
देशद्रोह का, सरकार
का तख़्ता पलटने
का और इसी प्रकार
के दो–चार आरोप
लगाए जाएँगे । पूछताछ
समिति या एकदम
कोर्ट–मार्शल भी
हो सकता है ।
दत्त को इस
सबके लिए तैयार
रहना होगा । वह
दृढ़ निश्चय करे कि न तो कुछ बोलेगा, न ही कोई जानकारी देगा । पूछताछ करने वाले अधिकारियों के
सामने बार–बार उलझनें पैदा
करके उन्हें संभ्रमित
करना चाहिए । इन उलझनों
को सुलझाने में
उनका समय बरबाद
होगा और तुम
लोगों को तैयारी करने
का वक्त मिल
जाएगा । दत्त इस
बात की माँग
करे कि उसे
राजनीतिक कैदियों को मिलने वाली सुविधाएँ दी जाएँ, वह ये ज़ाहिर करे कि वह एक राजनीतिक कैदी है ।’’
शेरसिंह ने
मोटे तौर से
व्यूह रचना की कल्पना दी ।
मदन
के सामने अब
एक ही प्रश्न
था कि शेरसिंह
का सन्देश दत्त
तक किस तरह पहुँचाया जाए ।
‘‘क्या
आज तेरी सेल–सेंट्री
की ड्यूटी है ?’’ मदन
ने यादव से
पूछा । दत्त तक सन्देश पहुँचाने के
लिए विश्वासपात्र व्यक्ति की ज़रूरत थी ।
‘‘मैं कह
नहीं सकता, क्योंकि
ड्यूटी से सिर्फ
दस मिनट पहले
सूचना दी जाती है । बारह
बजे दोपहर से
चार बजे शाम
की ड्यूटी करने
के बाद सुबह चार से आठ वाली ड्यूटी पर मुझे भेजेंगे
ही, इसका कोई भरोसा नहीं ।’’ यादव
ने स्पष्ट किया ।
सन्धि
की राह देखने
के अलावा मदन
के पास और
कोई चारा न था
।
‘‘सर, मैंने
काफी ठोस सबूत
इकट्ठे कर लिये हैं।
क्या आज दत्त को आपके सामने लाया जा सकता है ?’’ रावत कमाण्डर किंग से पूछ रहा था ।
‘‘तुम
इकट्ठा किये गए सबूत मेरे पास ले आओ । मैं उन पर एक नज़र डालकर निर्णय लूँगा ।’’
किंग ने
कहा ।
रावत
के जाने के
बाद किंग बेचैनी
से अपने चेम्बर
में चक्कर लगा
रहा था ।
‘क्या दत्त
के केस का
निर्णय मुझे लेना
चाहिए, या इस ज़िम्मेदारी
को अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सौंप दूँ? क्या
एडमिरल रॉटरे को इस बारे में सूचित करना चाहिए ?’’ किंग
सोच रहा था ।
‘इस सबके
पीछे दत्त अकेला नहीं है । नि:सन्देह एक गुट इस बेस में विद्यमान होगा । इस
गुट को बाहर
के क्रान्तिकारियों का
समर्थन प्राप्त हो रहा होगा, वरना इतने
बड़े पैमाने पर
इन पोस्टर्स को
बेस में तैयार
करना सम्भव नहीं
है । इन पोस्टर्स की
भाषा––– इन्हें जरूर
बाहर से समर्थन
मिल रहा है ।
जल्दबाजी करने से कोई फ़ायदा नहीं
है ।’
वह कुर्सी पर बैठ गया । अचूक कौन–सी
कार्रवाई करनी चाहिए, उसकी समझ
में नहीं आ
रहा था । पानी
का पूरा गिलास
पीकर उसने बची–खुची
चार बूँदें अपनी आँखों पर लगाईं, कुछ आराम महसूस हुआ । वह कुछ देर उसी
तरह कुर्सी पर बैठा रहा ।
‘‘बशीरऽ, बशीरऽ’’ उसने
कॉक्सन को बुलाया ।
बशीर अदब से
भीतर आया ।
''Call the chauffeur with
car.''
बशीर बाहर निकला और पाँच मिनट में स्टाफ कार
किंग के ऑफिस के सामने खड़ी थी । किंग ने खुद ही कार चलाते हुए रॉटरे के पास जाने का निश्चय किया ।
सर एचिनलेक के आगमन के समय घटित घटनाओं का
विवरण किंग ने रॉटरे के सम्मुख प्रस्तुत किया । रॉटरे कुछ पल सोचता रहा ।
‘‘दत्त पकड़ा
गया, यह तो
उपलब्धि है । अब
इस दत्त से ही बेस
में उसके साथियों के
बारे में पता
करना होगा। उनकी
सहायता करने वाले
बाहर के लोगों को ढूँढ़ना होगा, इसलिए
उसके सहकारियों पर
नजर रखनी पड़ेगी ।’’ रॉटरे
किंग को सुझाव दे रहा था ।
‘‘सर, उसे
सेल में रखा है
। अत्याचार करके
उससे जानकारी हासिल हो
सके इस
उद्देश्य से मैंने
रॉयल नेवी के
सैनिकों को पहरे
पर रखा है ।
अगर आप कहें तो...’’
‘‘नहीं
। ऐसी जल्दबाजी और बेवकूफी मत करो । दत्त को मारे गए कोड़ों के निशान
हमारी पीठ पर
नजर आएँगे । ये
सारा मामला हमें
बड़ा महँगा पड़ेगा । यदि
सैनिकों को पता
चल गया कि
दत्त के साथ
मारपीट की गई है, तो
बगावत की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता ।’’ रॉटरे
ने किंग को
ख़तरे से आगाह किया ।
‘‘फिर, आपकी
राय में अब
मुझे क्या करना
चाहिए ?’’ किंग ने
पूछा ।
‘‘कुछ नहीं ।
तुम मामूली तौर
पर पूछताछ करो ।
तब तक मैं
एक जाँच कमेटी नियुक्त करता हूँ ।
ये कमेटी गहराई से जाँच करेगी । इसके लिए मैं चार अधिकारी नियुक्त
करता हूँ, मगर
तब तक दत्त
पर कड़ी नजर
रखो । हो सके तो उसके साथियों का पता लगाओ ।’’ रॉटरे
ने आदेशात्मक आवाज में सलाह दी ।
‘‘सर, जाँच
कमेटी का विचार अच्छा है । मगर इस कमेटी में कम से कम एक हिन्दुस्तानी अफ़सर को
रखिये, जिससे कोई यह न कहे कि निर्णय एकतरफ़ा और बदले
की भावना से लिया गया ।’’ किंग
ने सुझाव दिया ।
‘‘तुम्हारे सुझाव
पर मैं अवश्य
विचार करूँगा ।’’ रॉटरे
ने उसे आश्वासन दिया । किंग सन्तोष से रॉटरे के दफ़्तर
से बाहर निकला ।
''Hey, you bastard, come on,
get up!'' गोरा पेट्टी ऑफिसर दत्त को उठा रहा था
। दत्त आधी नींद में ही था ।
''Come on, get me a cup of
tea.'' दत्त ने करवट बदलते हुए माँग की ।
चिढ़कर
पेट्टी ऑफिसर ने
गर्दन पकड़कर उसे
बैठाया और बाज़ू में रखे
मग का पानी उसके मुँह पर मारा।
पानी की मार से दत्त हड़बड़ाकर जाग गया। उसे वास्तविकता का आभास हुआ । उसने गोरे
पेट्टी ऑफिसर की ओर
इस तरह देखा कि वह दत्त की नज़रों
में तुच्छता के भाव को जान गया और दत्त पर चिल्लाया, "Come
on, bastard. Get up and get ready."
‘शेर
कहूँ तो भी खाएगा और शेर की औलाद कहूँ तो भी खाएगा; फिर शेर
की औलाद ही
क्यों न कहूँ ?’ दत्त ने
सोचा और वह
गोरे पेट्टी ऑफिसर पर चिल्लाया, ''you bloody white pig, can
you prove that you are not a bastard? Don't dare to abuse me now.''
दत्त
का अवतार देखकर
पेट्टी ऑफिसर घबरा
गया । हिन्दुस्तानी पहरेदारों की नजरों में
दत्त के प्रति
आदर छलक रहा
था ।
‘अब
मुझे बिना डरे धीरज से काम लेना चाहिए, तभी सैनिक भी ढीठ होंगे । मेरे बाहर के मित्रों
का बगावत करने के प्रति जोश बढ़ेगा ।’ दत्त मन ही मन विचार कर रहा था । ‘किंग, साला हरामी है । उसे मेरे साथियों के नाम चाहिए, शायद
। इसके लिए वह धरती–आकाश
एक कर देगा; साम, दाम, दण्ड और भेद - सभी अपनाएगा, मगर
उसे घास नहीं डालूँगा ।’ उसने निश्चय किया । उसे स्वातत्र्यवीर सावरकर
की याद आई, अंदमान के कोल्हू की याद आई फाँसी के फ़न्दे उसकी आँखों के सामने नाचने लगे और वह
अचानक चिल्लाया, ‘‘वन्दे मातरम्!’’
गोरा चीफ
उसकी ओर देखता
रह गया ।
रॉटरे से मिलकर किंग सीधा अपने चेम्बर में आया। चेम्बर के बाहर सब लेफ्टिनेंट रावत इकट्ठा
किए गए काग़जों का ढेर लेकर खड़ा था ।
‘‘सर, मैं सारे सबूत ले आया हूँ । हर काग़ज दत्त के
विरोध में जा रहा है । उसे नौसेना से तो
भगा ही दिया
जाएगा, मगर साथ
ही कम से
कम चार सालों का
सश्रम कठोर कारावास
भी दिया जा
सकता है ।’’ रावत
बड़े उत्साह से बता
रहा था ।
‘‘निर्णय मैं
लेने वाला हूँ ।
तुम्हारा काम सिर्फ
सबूत पेश करना
है ।’’ किंग ने रावत
को डाँटा ।
‘‘सॉरी,
सर!’’ रावत
का चेहरा उतर
गया ।
''Now go and bring the accused.'' किंग
ने उसे हुक्म
दिया ।
रावत चेम्बर
से बाहर आया । उसने रेग्यूलेटिंग ऑफिसर को ऑर्डर दिया, ''March on the accused.''
दो पहरेदारों
से घिरा दत्त धीमे कदमों से किंग के चेम्बर में प्रविष्ट हुआ । उसके पीछे रावत भी
था ।
दत्त शान्त
था । उसके चेहरे पर किसी तरह का तनाव नहीं था । चेहरे पर अपराधीपन की छटा भी नहीं
थी । वह किंग की
नजरों से नजरें
मिलाते हुए उसक सामने
खड़ा हो गया ।
किंग मन ही
मन दत्त पर
गुस्सा कर रहा था
। अपने
गुस्से पर नियन्त्रण रखते हुए उसने यथासम्भव शान्ति से पूछा, ‘‘तो तू ही वह क्रान्तिकारी है ?’’
‘‘हाँ, मैं
ही हूँ वह स्वतन्त्रता प्रेमी
आज़ाद हिन्दुस्तानी और
मुझे इसका गर्व है ।’’
दत्त से इस
शान्ति की और
स्वीकारोक्ति की किंग
ने अपेक्षा नहीं
की थी । उसका अनुमान
था कि दत्त आरोप
को अस्वीकार करेगा;
सबूत पेश करने पर गिड़गिड़ाएगा । मगर यहाँ
तो बड़ी विचित्र–सी बात
हो रही थी ।
रावत बेचैन हो गया ।
‘‘कितनी सफाई
से मैंने सबूत
इकट्ठे किए थे
और ये...’’ रावत
मन में सोच रहा था ।
“इससे कुछ
नहीं होगा । अपने साथियों के नाम बताओ । सबूत हैं मेरे पास....’’ रावत गरजा ।
‘‘रावत, will you please wait outside? I wish to speak to him.'' रावत को
बीच ही में
रोकते हुए किंग
ने उसे बाहर
निकाला । रावत के
पीछे दत्त के साथ
आए पहरेदार भी
बाहर निकल गए ।
‘‘तुम्हें इसका
परिणाम मालूम है ?’’ किंग
ने पाइप सुलगाते
हुए पूछा ।
‘‘हाँ, मुझे
परिणामों की पूरी कल्पना है । फिर भी मैंने यह सब किया है । इसमें मुझे कोई भी गलत
बात नजर नहीं आती । मैं स्वतन्त्रता प्रेमी सैनिक हूँ । हिन्दुस्तान की
स्वतन्त्रता के लिए
मैं अपने सर्वस्व
का बलिदान करने
वाला हूँ ।’’ दत्त शान्ति
से और निडरता से कह रहा था ।
दत्त के
जवाब से अवाक्
हुआ किंग उसकी
ओर देखता ही रहा
। दत्त
से आगे क्या पूछना
चाहिए यह सोचते
हुए वह पलभर
को चुप हो
गया । दत्त ने किंग की इस मनोदशा का लाभ उठाने का निर्णय
किया और सामने पड़ी कुर्सी खींचकर उस पर बैठ गया ।
‘‘साले, आज
तक मैंने ऐसी
हिम्मत नहीं की
और तू...’’ दरवाजा
थोड़ा–सा खोलकर देख रहा रावत बुदबुदाया । ‘‘अरे, वो
बेस कमाण्डर है ।
उसकी इजाज़त के
बगैर... कितनी मगरूरी! कितनी
मुँहजोरी!’’
रावत से
रहा नहीं गया
और वह गुस्से
से चेम्बर में आ गया,
चिल्लाकर
दत्त से बोला, ''Hey, yon bastard, come on, stand up. बगैर इजाज़त
लिये किसके सामने बैठा है ? होश में तो है ?’’
दत्त ने
अंगारभरी नजरों से
रावत की ओर
देखा । रावत थोड़ा
बौखला गया ।
'You, bloody shoe-licker! ये
तेरा रसोईघर नहीं
है, जैसा चाहे
चीखने के लिए ।’’
किंग को इसकी
उम्मीद नहीं थी । वह उठकर खड़ा हो गया और मेज पर हाथ मारते हुए चिल्लाया, ''Both of you shut up, and Rawat, you get
lost.''
दत्त हँस
रहा था ।
किंग का
गुस्सा बेकाबू हो
रहा था । किंग
की नज़रों से नज़र मिलाकर
बात करने की काले तो
क्या गोरे अधिकारियों
की भी हिम्मत
नहीं थी । और आज
ये नयी–नयी मूँछवाला छोकरा न
सिर्फ नजर मिलाकर
बोल रहा है,
बल्कि बिना इजाज़त कुर्सी पर बैठता है ? सामान्य
परिस्थिति होती तो इस उद्दाम व्यवहार के लिए
दत्त को कड़ी
सजा देता ।
दत्त का
ख़याल था कि
किंग चिल्लाएगा । उसे
कुर्सी से उठा
देगा । खड़े रहने की ताकीद देगा, मगर
ऐसा कुछ भी
नहीं हुआ था ।
‘‘किंग चालाक
सियार है । सावधान रहना होगा,’’ दत्त ने अपने आप को सावधान किया ।
‘‘यह मामला
सीधा–सादा नहीं है ।
यह देखने में
दुबला–पतला है, मगर मन
से मजबूत है ।’’ किंग सोच
रहा था ।
दोनों एक–दूसरे को
परख रहे थे ।
‘यहाँ डाँटने–फटकारने से
काम नहीं होगा ।
अपनी चाल बदलनी
होगी । शायद प्यार और अपनापन दिखाने से कुछ मिला तो मिलेगा ।’ किंग ने मन
ही मन निश्चय किया और आवाज़ में
संयम लाते हुए
पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम
क्या है ?’’
‘‘दत्त, लीडिंग
टेलिग्राफिस्ट । ऑफिशियल नं–
6018 ।’’
‘‘उम्र ?’’
‘‘बाईस
वर्ष ।’’
‘‘मतलब, मेरे
बेटे जितने हो!
देखो, तुम वाकई
में मेरे लिए
बेटे के समान ही हो ।’’ किंग
ने हँसते हुए कहा ।
''Don’t insult my father.'' किंग स्वयं की तुलना उसके पिता से करे, यह दत्त
को अच्छा नहीं
लगा था ।
किंग को
दत्त पर क्रोध
तो आया, मगर
मन ही मन
वह उसकी हिम्मत की
दाद दे रहा था ।
‘‘विश्वास करो ।
अपने पुत्र के
प्रति मेरे मन
में जो भावना
है, वैसी ही भावना
से मैं तुम्हें देख
रहा हूँ,’’ किंग
ने दत्त के
दिल में उतरने
की कोशिश जारी रखी,
‘‘मैंने तुम्हारा
सर्विस डॉक्यूमेन्ट देखा
है । एक भी जगह लाल
निशान नहीं है । तुम
एक मेहनती, ईमानदार
और आज्ञाकारी सैनिक
हो । आज के इस अपराध
को यदि नजरअन्दाज कर दिया जाए तो तुम्हारे हाथ से एक भी गलती नहीं हुई
है । मेरा ख़याल
है कि ये
जो कुछ भी
तुम्हारे हाथों से
हुआ है, वह
किसी दबाव के कारण
हुआ है । तुमने
किसी के कहने
पर यह किया
होगा । मेरे मन में तुम्हारे लिए पूरी–पूरी
सहानुभूति है।”
‘‘तुम फिर मेरा
अपमान कर रहे हो’’, दत्त
चिल्लाया । ‘‘मुझे तुम्हारी सहानुभूति की कोई
जरूरत
नहीं है । मैंने जो
कुछ भी किया
है, वह भली–भाँति समझ–बूझकर और
अपनी ख़ुद की जिम्मेदारी पर देश की स्वतन्त्रता के लिए किया है, और
स्वतन्त्रता की खातिर की गई हर बात पर मुझे गर्व है,’’ दत्त बहुत ज़ोर
देकर कह रहा
था । उसकी आवाज
ऊँची हो
गई थी ।
चालाक किंग
ने दत्त की
बातों पर कोई
ध्यान नहीं दिया ।
''Don't get excited, my boy! cool down, cool down!'' किंग शान्त आवाज में
दत्त को समझा
रहा था, ‘‘देखो
इन्सान के हाथों
से ग़लतियाँ हो ही जाती हैं ।
तुम भी इन्सान
हो । हो गई
होगी गलती; मगर यह ग़लती करने के लिए
तुम्हें किसने उकसाया ? उसका
नाम बताओ, मैं
वचन देता हूँ
कि तुम पर कोई
भी कार्रवाई नहीं करूँगा ।‘’
दत्त चुपचाप
ही रहा ।
‘‘देखो, मुझे सही–सही जानकारी
दो, सबके
नाम बताओ, जब
मुझे यकीन हो जाएगा कि तुम सम्राज्ञी के प्रति वफ़ादार हो तो तुम्हें अगला प्रोमोशन दे सकूँगा ।
तुम्हारा नाम कमीशन के लिए रिकमेंड कर सकूँगा ।’’ शहद
की उँगली चटाने से दत्त का मुँह खुल जाएगा, किंग का यह
अनुमान भी ग़लत निकला ।
‘‘मिस्टर किंग,’’ अपने नाम के साथ ‘मिस्टर’ का सम्बोधन सुनकर किंग के चेहरे पर चिड़चिड़ाहट
के लक्षण दिखाई दिये, मगर
इसकी परवाह न
करते हुए दत्त किंग को सुनाए जा रहा था ।
‘‘मुझे क्या
दुधमुँहा बच्चा समझ
रखा है ? मैं
देश के प्रति, अपने
आन्दोलन के प्रति गद्दारी नहीं कर सकता । दिसम्बर से इस बेस में जो कुछ भी
हुआ, जो नारे लिखे गए, उसके
पीछे मैं और सिर्फ मैं हूँ । आर.के.
मेरा साथी था । उसके असहयोग के प्रयोग
के पीछे भी मैं ही था । मैंने जो कुछ भी किया उस पर मुझे गर्व है । मौका मिला तो
मैं फिर से वैसा ही करूँगा ।’’
दत्त पलभर को रुका। किंग अपनी बेचैनी छिपा नहीं
सका। वह समझ गया कि यह लड़का थाह नहीं लगने देगा ।
‘‘मुझे आपका
प्रमोशन नहीं चाहिए ।
मुझे चाहिए मेरे
देश की आजादी, दोगे आजादी ? आपके
कन्धों पर जो
ओहदे दर्शाते हुए
फीते हैं, कैप
पर जो फूलों की
जंजीर है, वह मेरे
देश की परतन्त्रता
की बेड़ियाँ हैं ।
उतार फेंको उन्हें । मैं उन्हें कुत्ते के गले में पड़े हुए
पट्टे से ज्यादा महत्त्व नहीं देता...
।’’
'It's enough now. Get up from
the chair and keep your dirty mouth shut.''किंग का गुस्सा बेकाबू हो रहा था ।
‘‘मेरा
उद्देश्य पूरा हुआ । बाहर खड़े पहरेदारों और सैनिकों को मैंने दिखा दिया है
कि यदि हमारी
अस्मिता जागृत हो तो हम
गर्दन तानकर खड़े
रह सकते हैं, फिर चाहे उच्च पदस्थ अधिकारी के सामने ही
क्यों न हो ।’’ दत्त
के चेहरे पर समाधान
था ।
‘‘मेरा ख़याल
है कि सब
समाप्त हो गया है,’’ दत्त
ने हँसते हुए
कहा और बाहर जाने के लिए उठ खड़ा हुआ ।
‘‘समाप्त
नहीं हुआ । अब तो असली शुरुआत हुई है! मैं तुम्हें कल सुबह तक का
समय देता हूँ ।’’ किंग
की आवाज़ में चिढ़ थी । वह पलभर के लिए भी दत्त को अपने सामने बर्दाश्त नहीं
कर पा रहा था ।
‘‘मुझे समय
नहीं चाहिए । मेरा
जवाब वही है ।
तुम चाहे कुछ
भी कर लो, वह
बदलने वाला नहीं
है । तुम अपनी
कार्रवाई शुरू करो । You
are at liberty to take any action.'' दत्त ने
कहा ।
'' I do not need any
permission to take any action. Now I will teach you a good lesson.'' किंग
का धीरज खत्म
हो गया था ।
''March off the accused!'' किंग चीखा ।
‘‘इसे
आज सनसेट तक
धूप में ही
खड़ा रखो । पानी
के अलावा कुछ और
मत देना ।’’ दत्त
को ले जा
रहे सैनिकों को
किंग ने सूचनाएँ
दीं । पूरी दोपहर दत्त
धूप में खड़ा
रहा ।
दत्त
को जब वापस
सेल में धकेला
गया तो सूर्यास्त
हो चुका था ।
छह–सात
घण्टे लगातार खड़े रहने से पैरों में गोले आ गए थे । डगमगाते पैरों से ही वह
सेल में गया । सेल
के दरवाजे चरमराते
हुए बन्द हो गए
। सेन्ट्री ने
सेल के दरवाज़े पर
ताला मारा और
बार–बार
खींचकर यह यकीन
कर लिया कि वह ठीक से बन्द हो गया है ।
धीरे–धीरे अँधेरा घिर आया । दीवार पर लगा
बिजली का स्विच ऑन था, मगर बल्ब नहीं जल रहा था । उसका ध्यान छत
की ओर गया ।
वहाँ एक सन्दर्भहीन तार लटक
रहा था ।
‘‘मतलब, आज
की रात अँधेरे
में गुज़ारनी होगी!’’ वह
अपने आप से बुदबुदाया ।
‘‘यह किंग
की ही चाल
होगी । रात के
अँधेरे में अकेलापन... दबाव बढ़ाने वाला... उसे
क्या लगता है, कि
मैं घुटने टेक
दूँगा ? शरण जाऊँगा ? ख़्वाब
है, ख़्वाब...’’
खाने की थाली आई । उसका खाने का मन ही नहीं था, बैठने
से उकता रहा था इसलिए फर्श पर लेट गया ।
‘‘यह तो
ठीक है कि
ठण्ड नहीं है;
वरना हड्डियाँ जम जातीं ।’’ उसने सोने की
कोशिश की । आँखें
बन्द कर लीं, करवट
बदली, मगर नींद
आने का नाम नहीं
ले रही थी ।
दिमाग में विचारों
का ताण्डव हो
रहा था । सवालों
के छोटे–छोटे
अंकुर मन में उग आए थे ।
‘‘मदन, गुरु, खान, दास
क्या कर रहे
होंगे ? क्या उन्होंने
कार्रवाई शुरू कर दी
होगी! क्या करने
का विचार किया
होगा ? या हाथ–पैर
डाले बैठे होंगे ? यदि उन्होंने
कोई भी कार्रवाई
नहीं की तो...मेरी लड़ाई एकाकी ही... उनकी
मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मैंने
आचरण किया इसलिए
मुझे अपने से
दूर तो नहीं
कर देंगे ?’’
इस ख़याल से उसे शर्म आई । ‘मार्ग
भिन्न हुआ तो भी ध्येय तो एक ही है । वे मुझे
दूर नहीं धकेलेंगे ।’ उसके
दिल ने गवाही
दी । ‘यदि मेरे
इस कारनामे का घर
में पता चला तो
? यदि नौसेना
से निकाल दिया
तो गाँव में
जाकर करूँगा क्या ? वहाँ
का बदरंग, जर्जर
जीवन फिर से...’ सिर्फ
इस ख़याल से ही
वह सिहर उठा ।
‘‘अब जिधर
भी जाऊँगा,
वहाँ के
जीवन में तूफान
लाऊँगा, दावानल
जलाऊँगा, यह असिधारा
व्रत अब छोडूँगा नहीं । लड़ता ही
रहूँगा, बिलकुल अन्त तक, आज़ादी मिलने तक ‘करेंगे या
मरेंगे’ ।’’
कितनी ही देर तक वह विचार करता रहा । पहरेदारों
की ड्यूटी बदल गई और उसे समझ
में आया कि
सुबह के चार
बजे हैं ।
‘‘क्या चाहिए, पानी ?’’
दास
की आवाज पहचान
गया दत्त और बोला, ‘‘हाँ
भाई, बड़ी प्यास
लगी है । एक गिलास पानी पिला दो!’’
दास
दरवाजे के पास
रखे एक घड़े
से पानी लेकर
दत्त के पास
गया, ‘‘इतनी
रात को पानी क्यों पी रहे हो ?’’
चिड़चिड़ाते हुए उसने सलाखों वाले दरवाज़े
से मग आगे कर दिया और साथ
में एक छोटी–सी
चिट्ठी दत्त के हाथ में
थमा दी ।
शेरसिंह
द्वारा दी गई
सूचनाएँ दत्त तक
पहुँच गर्इं । दत्त
समझ गया कि
वह अकेला नहीं है ।
सब उसके साथ
हैं और इसी
राहत की भावना
के वश उसे
कब नींद आ गई, पता
ही नहीं चला ।
सुबह गुरु, खान
और मदन ‘फॉलिन’ के
लिए निकलने ही वाले थे कि स्टोर–असिस्टेंट जोरावर सिंह ने गुरु को आवाज़ दी ।
‘‘की गल ?’’ गुरु
ने पूछा ।
जोरावर
गुरु के निकट
आया । इधर–उधर देखते
हुए पेट के
पास छिपाकर रखा हुआ
अखबार निकालते हुए
वह गुरु के
कान में फुसफुसाते
हुए बोला,
‘‘सुबह फ्रेश राशन
लाने के लिए
कुर्ला डिपो गया था
। वहाँ
आज का अखबार
देखा और तेरे लिए
ले आया ।’’
‘‘क्यों, ऐसा
क्या है इस
अख़बार में ?’’
गुरु
ने पूछा ।
‘‘अरे, दत्त की गिरफ़्तारी की खबर, फोटो समेत, आई
है ।’’
ख़बर विस्तार
से थी । दत्त
को किसने पकड़ा, कौन–कौन
से नारे लिखे
गए थे, पोस्टर्स पर क्या लिखा था - यह सब
विस्तारपूर्वक दिया गया था । इस ख़बर को पढ़कर तीनों को अच्छा लगा था।
‘‘ख़बर
छप गई यह अच्छा हुआ ।
कोई सिविलियन अवश्य
ही हमारे साथ है ।’’ गुरु
ने समाधानपूर्वक कहा ।
‘‘सेना
के बाहर के लोगों की यह गलतफ़हमी कि सेना में सब कुछ ठीक–ठाक
है, दूर
हो जाएगी’’, मदन ने
कहा ।
‘‘आज का
यह अख़बार पूरे
देश में जाएगा
और यह ख़बर
नेताओं की नज़र में ज़रूर आएगी
और फिर वे
भी हमें समर्थन
देंगे । राष्ट्रवादी ताकतों को हमारे पीछे खड़ा करेंगे। लोगों का समर्थन मिलेगा और हमारा विद्रोह ज़रूर
सफल होगा ।’’ खान अपनी
खुशी छिपा नहीं
पा रहा था ।
‘‘अब हमें
अन्य जहाजों के
सैनिकों से सम्पर्क
स्थापित करना चाहिए ।
आज ही मैं सभी
जहाजों और बेसों
को दत्त की
गिरफ्तारी के बारे
में सूचित करता हूँ ।’’ मदन
ने कहा ।
दोपहर
को ‘नर्मदा’ से
कुट्टी गुरु से
मिलने आया था । दोनों एक–दूसरे को
सिर्फ पहचानते थे ।
गुरु को इस
बात की कोई
कल्पना नहीं थी
कि कुट्टी किस विचारधारा
का है । मगर
कुट्टी को आज़ाद हिन्दुस्तानी
और गुरु के
बारे में मालूम था ।
‘‘आज की
ख़बर पढ़ी ? दत्त
ने वाकई में
कमाल कर दिया!’’ गुरु
को एक ओर ले
जाकर कुट्टी ने
कहा ।
‘‘दत्त
पागल था । मेरा उससे क्या लेना–देना ?’’ गुरु
ने उसे झटक दिया ।
‘‘तेरा
क्या लेना–देना? अच्छे दोस्त
हो! मुसीबत में
भाग जाने वाले! अरे, वहाँ वह
देश की आज़ादी के लिए
फाँसी पर लटकने
की तैयारी कर
रहा है और तुम लोग उसे दूर हटा रहे हो ?’’
कुट्टी को
गुस्सा आ गया ।
‘‘अरे, वह
अकेला क्या कर
सकता है । मुँह
फूटने तक मार
जरूर खायेगा, क्या फायदा
होगा इससे ?’’
गुरु कुट्टी
को परख रहा
था ।
‘‘मुर्दार
हो! अकेला है वो! अरे, अकेला
कैसे है ? समय
आया ना, तो ‘नर्मदा’ के
पचासेक सैनिक उसके साथ खड़े हो जाएँगे ।’’
‘‘उसे वहाँ
मरने दो और
तुम उचित समय
की राह देखते
रहो!’’ गुरु ने हँसते
हुए कहा ।
‘‘तू
है पक्का! तेरे बारे में जो सुना था वह सही था । इस मामले में तू बाप पर
भी भरोसा नहीं
करता । मुझ पर
तुझे यकीन नहीं, इसीलिए
तू मुझे टाल रहा है । तुझे क्या लगता है, क्या
हमारे दिल में परिस्थिति के बारे में गुस्सा नहीं है ? देश
के बारे में, आजादी
के बारे में
कोई आस्था नहीं
है ? तुझे मालूम
है, ‘नर्मदा’ में
भी पोस्टर्स चिपकाए
गए थे । उसका बोलबाला नहीं
हुआ । ये पोस्टर्स मैंने चिपकाए थे ।’’ कुट्टी की
आवाज ऊँची हो
गई थी ।
‘‘शान्त
हो जाओ, पूरा यकीन जब तक न हो जाए, तब
तक दत्त के बारे में किसी से भी, कुछ
भी नहीं कहेंगे, ऐसा
निर्णय हमने लिया
है ।’’ गुरु ने कहा
।
‘‘ठीक
है तुम्हारी बात, मगर
हमें एक होना चाहिए और इसके लिए एक–दूसरे को खोज निकालना चाहिए...’’ कुट्टी
कह रहा था ।
वे बड़ी देर
तक ‘नर्मदा’ के तथा
अन्य जहाजों के
साथियों के बारे
में बातें करते
रहे ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें