क्रान्तिकारी
सैनिकों की संख्या
पचास तक पहुँच
गई थी । सुभाषचन्द्र
बोस का स्मरण सदा होता रहे इसलिए
वे स्वयं को ‘आज़ाद हिन्दुस्तानी’ कहते
थे । खान, मदन
और गुरु उनके
नेता थे । आजाद
हिन्दुस्तानी एकत्रित होने
की जोखिम नही उठाते
थे। यदि कोई
निर्णय लेने की
या काम की जिम्मेदारी
सौंपनी होती तो मदन, खान
और गुप्त हरेक
से अलग–अलग मिलकर
चर्चा करते और
फिर निर्णय लेते । उनके
द्वारा इस प्रकार
लिये गए निर्णय
का कोई विरोध
भी नहीं करता ।
दूसरे दिन खान अकेला ही शेरसिंह से मिलने गया ।
आर. के. का निर्णय और आजाद हिन्दुस्तानी द्वारा
उसे दी गई इजाजत के बारे में उसने शेरसिंह को बताया ।
‘‘मेरे विचार
से तुम लोगों
द्वारा लिया गया
निर्णय योग्य नहीं
है ।’’ शेरसिंह
ने फौरन कहा, ‘‘आज तक लाखों लोगों ने इस मार्ग पर चलकर ब्रिटिश
हुकूमत का विरोध किया ।
परन्तु परिणाम कुछ
भी नहीं निकला ।
आर. के. के
विरोध से हुकूमत का
तो कुछ नहीं
बिगड़ेगा, मगर बेचारा आर. के. बेकार
में मारा जाएगा ।’’
‘‘यदि
आर. के. से
प्रेरणा लेकर हजारों
सैनिक इसी राह
पर चल पड़ें
तो ?’’ खान
ने पूछा ।
‘‘उन सबको
नौसेना से निकाल
देंगे । आज देश
में गरीबी को
देखते हुए निकाल बाहर
किए गए सैनिकों
की जगह लेने
अनेक नौजवान आगे
आएँगे । इन नये सैनिकों
के बलबूते पर
सरकार अपनी हुकूमत
अबाधित रखेगी ।’’ शेरसिंह ने
अपनी बात स्पष्ट
की ।
‘‘मतलब,
आपकी राय में आर. के. को
यह कदम उठाने
से रोकना चाहिए।’’
‘‘यदि
उसने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया है तो उसे इस राह पर जाने दो ।
इससे अहिंसात्मक मार्ग
का खोखलापन जाहिर
हो जाएगा । मगर
तुम लोग इस सबसे
दूर रहो । यदि
अधिकारियों को तुम
लोगों पर सन्देह
हो गया तो तुम
लोग पकड़े जाओगे
और कार्य अधूरा
रह जाएगा ।’’
आर. के. सुबह
6–30
की फॉलिन पर
गया नहीं । दोपहर
12
से 4 उसकी कम्युनिकेशन सेंटर
में ड्यूटी थी ।
चाहे फॉलिन पर आर. के. की
गैरहाजिरी को किसी
ने अनदेखा कर
दिया हो, मगर
कम्युनिकेशन सेन्टर में
उसकी गैरहाजिरी को चीफ टेल ने ‘नोट’ कर
लिया और आर. के. को फौरन कम्युनिकेशन सेन्टर में बुलाया
गया । उसने निश्चय कर लिया था कि चीफ के किसी भी सवाल का जवाब नहीं
देगा । वह चीफ
से एक ही
बात कह रहा
था, ‘‘मुझे सीनियर कम्युनिकेशन ऑफिसर
के सामने खड़ा
करो । मैं तुम्हारे किसी
भी सवाल का
जवाब नहीं दूँगा ।’’
गोरा
चीफ गुस्से से
लाल हो गया ।
''Bastard, I will see that you get maximum
Punishment.''
''Chief, Please, don't use bad
language,'' आर. के. शान्ति
से कह रहा था ।
चीफ
ने गुस्से से
तिलमिलाते हुए सीनियर
कम्युनिकेशन ऑफिसर को रिपोर्ट कर
दी और उसका
गुस्सा एकदम चढ़ गया
। ‘‘एक काला
नेटिव इतना मगरूर हो
सकता है ? ड्यूटी
पर न आकर
बैरेक में बैठा
रहता है और
ऊपर से अकड कर
कहता है कि
मुझे एस.सी.ओ. से
मिलना है!’’
''Where's that bloody son of a
bitch?'' वह
चीखा ।
‘‘आप जैसे
सीनियर अधिकारी
के मुँह से
ऐसे शब्द शोभा
नहीं देते!’’
आर. के. इत्मीनान
से अन्दर आया ।
सीनियर
कम्युनिकेशन ऑफिसर के
गुस्से में मानो
तेल पड़ गया ।
‘‘तू अपने
आप को समझता
क्या है ? यह
क्या तेरे बाप
के घर की
नौकरी है जो तू
मनमानी कर लेगा ? तुम
काले, मस्त हो
रहे हो । But don't forget I Know the
ways and means to f**** you bastards!'' आर. के. शान्त
रहा । उसने एक
ख़त उसके सामने
फेंका ।
''what's this?''
"Please read it and
forward it."
एस.सी.ओ. ने
गुस्से में ही
ख़त उठाया
और पढ़ने लगा:
''To
Commanding Officer
HMIS. Talwar
Mumbai.
महोदय,
हिन्दुस्तान
में आज जिस
सरकार का अस्तित्व
है उसे हिन्दुस्तानी
लोगों का समर्थन नहीं
है । यह भी
सत्य है कि
यह सरकार हिन्दुस्तानी
लोगों द्वारा मान्य और
उनके द्वारा बनाए
गए कानून के
अनुसार नहीं बनी है
। इसके
फलस्वरूप इस सरकार को
सत्ता पर बने
रहने का कोई
भी नैतिक अधिकार
नहीं है ।
यह
सरकार वैधता की
दृष्टि से तो
अधूरी है ही, साथ
ही कर्तव्य पूर्ति के मामले में भी अधूरी है । यदि बंगाल
के अकाल में मौत के मुँह में समा गए लोगों
की, सन् 1942
के आन्दोलन में
मारे गए लोगों
की और बिना
कारण जेल में ठूँसे
गए अनगिनत देशभक्तों
की संख्या पर
गौर किया जाए
तो यही प्रतीत होगा
कि सरकार अपने
कर्तव्य का पालन
नहीं कर रही
है । इस नालायक
सरकार के कार्यकाल में
पूरा देश ही
एक जेल बन
गया है । आज लोगों की गरीबी बढ़ रही
है। उनके दुख बढ़
रहे हैं, जातीय
दंगों की तो
कोई गिनती ही
नहीं । इस परिस्थिति को सींचने
के अलावा यह
सरकार और क्या
कर रही है ? इस
देश को दयनीय स्थिति
में लाने वाली
सरकार को सत्ता
पर बने रहने
का कोई अधिकार
नहीं ।
इस सरकार के लिए यही उचित है कि सत्ता के सभी
सूत्रों को महात्माजी एवं अन्य नेताओं
के हाथों सौंपकर
यह देश छोड़कर
निकल जाए ।
वर्तमान
सरकार को मैं
नहीं मानता । इसीलिए
इस सरकार की
आज्ञाओं का पालन करने
से मैं इनकार
करता हूँ ।
जय
हिन्द!
आर.के. सिंह ।’’
एस.सी.ओ. की
नजरों में आग
भड़क रही थी ।
उसने एक कदम आगे बढ़कर आर. के. की
कनपटी पर एक
ज़ोरदार झापड़ कस
दिया ।
‘‘लूत भरे
काले कुत्ते, तू
अपने आप को
समझता क्या है ? साम्राज्य
को चुनौती ?’’
लड़खड़ाते
आर. के. ने स्वयं
को सँभाला । एस.सी.ओ. की
आँखों में आँखें डालते
हुए उसने शान्तिपूर्वक कहा, ''You forward this letter to
Kohl.''
लेफ्टिनेन्ट
कमाण्डर कोल को
जब उसने सिर्फ
‘कोल
कहकर सम्बोधित किया, तो एस.सी.ओ.
के गुस्से का
पारा और भी
चढ़ गया । गुस्से
से मुट्ठियाँ भींचते हुए उसने आर. के. के
पेट में मुक्के मारना आरम्भ किया । दो–चार घूँसों में आर. के. नीचे
गिर गया, तब एस.सी.ओ. जूते
से लात मारते
हुए चिल्लाया, ''You
Fool, respect your seniors. Say Lieutenant commander Kohl. Come on say.''
कम्युनिकेशन
सेन्टर में ड्यूटी
पर तैनात अनेक
हिन्दुस्तानी सैनिक आर. के. के साथ हो रही
मारपीट को देखकर
बेचैन हो रहे थे
। मदन
परिस्थिति एव सम्भावित परिणामों का
निरीक्षण कर रहा था । गुरु के लिए यह सब असहनीय हो गया
और वह रोष
में भरकर आगे
बढ़ने को तत्पर
हुआ मगर मदन
ने फ़ौरन उसे पीछे
खींच लिया और
धीरे से बोला, ''Control Yourself.''
गोरा लीडिंग सिग्नलमेन पुटपुटाया, ‘‘इन
कालों को उनकी जगह दिखानी ही चाहिए!’’
‘‘साला, मादर..., इस
गोरे की अच्छी
धुलाई करनी चाहिए ।’’ पीछे
खड़ा हुआ सलीम पुटपुटाया ।
‘‘इन्कलाब
जिन्दाबाद, वन्दे मातरम्, जय
हिन्द...’’ अपने ऊपर पड़ती हर लात का
जवाब आर. के. नारों
से दे रहा
था । आर. के. के
होंठों से खून
निकलते देख गोरा चीफ
बीच–बचाव
करने के लिए
आगे आया ।
''It's enough, Sir...'' कम्युनिकेशन ऑफिसर को पीछे खींचते हुए चीफ़ ने
समझाया ।
''Kohl is not my senior. He is
only Kohl!'' आर. के. ने
होंठों पर आया खून पोंछते हुए फिर से
दुहराया ।
''Chief, take that bastard
away otherwise I shall kill him.'' एस.
सी.ओ. चीखा
।
आर. के. को
कैद करके क्लोज़ कस्टडी
में रखा गया ।
वरिष्ठ अधिकारियों का अपमान, आज्ञा
का उल्लंघन करना, साम्राज्य
से गद्दारी इत्यादि
छोटे–छोटे
आठ दस आरोप उस
पर लगाये गए ।
मदन, गुरु, दास, खान - इन
आज़ाद हिन्दुस्तानियों को उसके
भविष्य की कल्पना थी । दुख
एक ही बात
का था। आर.के. का
बरबाद होता हुआ जीवन
उन्हें अपनी आँखों
से देखना पड़
रहा था । वे
कुछ भी नही कर
सकते थे ।
शनिवार को आर. के. को
कमांडिंग ऑफिसर के सामने पेश किया गया ।
आर. के. का
चेहरा सूजा हुआ
था । पिछले दो
दिन नौसेना की
पुलिस शायद उसकी खूब
पिटाई करती रही
होगी ।
रेग्यूलेटिंग पेट्टी ऑफिसर ने आर. के. पर
लगाए गए आरोपों को पढ़ना आरम्भ किया । हर आरोप के बाद आर. के. नारे
लगाता और सामने खड़े एस.सी.ओ. की ओर
देखकर हँसता रहता ।
''Keep your mouth shut!'' गुस्साया हुआ एस.सी.ओ. चिल्लाया ।
''Mr Kohl, ask him to keep his
mouth shut.'' आर. के. ने कहा
। उसने ठान लिया
था कि आज
इन गोरों को
चिढ़ाता रहेगा ।
''Say Sir'' रेग्यूलेटिंग पेट्टी
ऑफिसर चिल्लाया ।
''Now all of you keep your mouth shut and you
answer my qnestion.” कोल चिल्लाया ।
पलभर
के लिए खामोशी
छा गई । कोल
ने शान्त स्वर
में पूछा, ‘‘ये ख़त तुमने लिखा
है ।’’
‘‘हाँ, मैंने
लिखा है ।’’
आर. के. ने निश्चयात्मक सुर में जवाब
दिया ।
''Say 'Yes, Sir' '' एस.सी.ओ. ने
हौले से सलाह
दी । कोल ने
कठोरता से उसकी ओर
देखा तो एस.सी.ओ. ने
गर्दन झुका ली ।
एस.सी.ओ. तथा
अन्य गोरे अधिकारियों
की हम कौड़ी
जितनी भी कीमत नही करते ये प्रदर्शित करने की सन्धि का लाभ
आर.के. ने उठाया । एस.सी.ओ. की ओर
देखकर हँसते हुए वह बोला, ''Yes, Kohl, मैंने ही लिखा है वह ख़त और मुझे इसका
गर्व है ।’’
उसकी आवाज
में निर्भयता
थी ।
''It will be better if you pay
proper respect to your seniors.'' कोल
ने सलाह दी ।
कोल
ने उसके पेट
में घुसकर जानकारी
प्राप्त करने का
निश्चय किया । वह अभी भी
शान्त था ।
‘‘तुम्हें इस
पत्र को लिखने
पर वाकई में
पछतावा रहा हो
और यदि तुम यह
बात लिखकर दे दो;
तुम्हें ख़त को
लिखने के लिए
किसने उकसाया उनके नाम
बता दो;
तो मैं सहानुभूति
से तुम्हारे बारे
में विचार करूँगा ।’’
‘‘मुझे
सचमुच में बुरा लग रहा है और पछतावा भी
हो रहा है
कोल...’’ आर.के. एक
पल को रुका ।
एस.सी.ओ. के
चेहरे पर विजय
की मुस्कराहट फैल
गई ।
कोल
सतर्क हो गया ।
‘‘ख़त
लिखने पर नहीं, बल्कि ख़त लिखने में इतनी देर कर दी इसलिए । शिकारी
के जाल में फँसा पंछी अपने को छुड़ाने की कोशिश खुद ही करता है । उसे कोई
पढ़ाता–सिखाता
नहीं है । गुलामी
से मुक्त होने
और स्वतन्त्रता प्राप्त करने का
अधिकार हर प्राणी
को है और
उसी का प्रयोग
मैं कर रहा
हूँ । जय हिन्द ।’’
''All right. मतलब
तुम गद्दार हो!’’ भीतर
का क्रोध चेहरे
पर न लाते हुए उसने डिफॉल्टर रजिस्टर
में सज़ा लिखी
और रेग्यूलेटिंग पेट्टी
ऑफिसर ने उसे पढ़कर
सुनाया ।’’
‘‘एक साल
की बामशक्कत कैद
और नौसेना से
बर्खास्तगी ।’’
''Thank you, Kohl,'' आर.के. के
मुख पर जीत
का भाव था ।
हाथ में ली
हुई टोपी को
उसने पैर से
दूर उछाल दिया ।
‘‘वन्दे मातरम्!
जय
हिन्द!!
क्विट
इंडिया!!! ‘’ आर.के. नारे लगाता
रहा ।
आज पहली बार ‘तलवार’ की
मिट्टी का प्रत्येक कण देशप्रेम की उत्कट भावना
से ओतप्रोत होकर
पुलकित हो उठा
था ।
आर.के. का
हर नारा ब्रिटिश
अधिकारियों और सैनिकों
को चिन्ताग्रस्त कर रहा
था ।
आर.के. के
साथ क्या होता है, उसे
कितनी सजा मिलती
है यह जानने के
उद्देश्य से रेग्यूलेटिंग
ऑफिस के चारों
ओर मँडराने वाला
हर सैनिक रोमांचित हो रहा था । उनमें से अनेक सैनिकों का
मन हो रहा था कि जोर से चिल्लाकर नारा लगाएँ, ‘जय हिन्द!’ मगर
हिम्मत ही नहीं
हो रही थी ।
कोल की अनुभवी नजरों ने सैनिकों में हुए इस
परिवर्तन को ताड़ लिया ।
‘‘चाहे जो
करना पड़े, मगर
इस आँधी को
यहीं रोकना होगा, वरना...’’ वह
अपने आप से पुटपुटाया । उसने रेग्यूलेटिंग पेट्टी ऑफिसर को बुला भेजा ।
‘‘आर.के. को
मुल्की (स्थानीय) पुलिस के हवाले करने की जल्दी न करना
।’’
कोल
सूचना दे रहा
था, ‘‘सारे थर्ड
डिग्री मेथड्स आजमाकर
इसके साथियों के नाम
उगलवा लो!’’
आर.के. की यमयातनाएँ आरम्भ हो गर्इं । सेल में
उसे छह–छह घण्टे खड़ा रखा गया, तलवों
पर डण्डे मारे
गए, उल्टा टाँगकर
रखा गया, दो
रात और दो दिन
उसे सोने नहीं
दिया गया और
पूरे शरीर पर
मार तो रोज़
ही पड़ती थी । हर बार उससे एक ही सवाल पूछा जाता,
‘‘तेरे साथी
कौन हैं ?’’
और
उसका जवाब एक ही
होता, ‘‘कोई नहीं ।’’
जब यह सब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो उसने अनशन
शुरू कर दिया ।
उसके
अनशन के निर्णय
से चिन्ताग्रस्त हो
गए कोल ने
उसे मुल्की पुलिस को
सौंप दिया और
राहत की साँस
ली ।
गुरु
और मदन ने आर.के. पर किये
गए अत्याचार की
खबरें नमक–मिर्च
लगाकर सैनिकों तक
पहुँचाईं ।
आस्तीन
के साँप ही
विश्वासघात करेंगे । यह
ध्यान में रखकर
शेरसिंह अपना बसेरा गिरगाव से
दादर ले गए । एक भूमिगत कार्यकर्ता के माध्यम से इस नयी जगह का पता खान और मदन तक
पहुँचाया गया था । पहरेदार बदल दिये गए थे ।
शेरसिंह ने बाहर
निकलना पूरी तरह
बन्द कर दिया
था । जो कार्यकर्ता
बाहर से उनसे मिलने
आते उनकी कसकर
तलाशी ली जाती ।
पुराने सांकेतिक शब्द बदल
दिये गए ।
दरवाजे
के बाहर ही
एक बंगाली नौजवान
ने मदन और
खान को रोका ।
‘‘आज यह
सूरज कहाँ से
निकला है ?’’
उसने पूछा ।
‘‘समुद्र पर
पाँच बजे ।’’
‘‘यहीं ठहरो ।’’
और
वह नौजवान घर
के पिछवाड़े की
ओर गया तथा
कुछ देर बाद
वापस आया ।
‘‘चलो
।’’ उसने उन
दोनों को इशारा
किया और उन्हें
अन्दर ले गया ।
‘‘यहाँ
आते समय बहुत सावधानी बरतना,
सरकार ने मुझे एवं अन्य क्रान्तिकारियों को
पकड़वाने के लिए
इनाम रखा है ।
अर्थात्, इस बारे
में पर्चे बंगाल में
निकले हैं, मगर
हमें सावधान रहना
होगा । आर.के. की
एकल लड़ाई का क्या
हुआ ?’’ शेरसिंह ने
पूछा ।
मदन ने आर.के. से
सम्बन्धित सारी घटनाओं की तथा बैरेक्स में उन पर हो रही प्रतिक्रियाओं की जानकारी
दी ।
“आर.के. की
बलि चढ़ गई, मगर
फिर भी सैनिकों
के बीच अस्वस्थता
पैदा करने का महत्त्वपूर्ण काम
उसने कर दिया
है । इस अस्वस्थता
को फैलाने का
काम शीघ्र ही शुरू
करो । हवाई दल
के सैनिक भी
अस्वस्थ हैं । दोनों
दल यदि एक साथ
बगावत कर दें
तो सरकार हिल
जाएगी ।’’
‘‘सैनिक दलों
की यदि बगावत
हुई तो थोड़ी–बहुत हिंसा
जरूर होगी । अपने भाई–बन्दों के
साथ हो रही
मारपीट को सैनिक
शान्ति से बर्दाश्त
नहीं करेंगे ।’’ खान
ने
कहा ।
‘‘यदि हिंसा होती है तो काँग्रेस हमारे आन्दोलन
का समर्थन नहीं करेगी । अभी हाल ही
में हिन्दुस्तानी व्यापारियों
के संगठन ने
कांग्रेसी नेताओं को
पत्र भेजा है । उस पत्र में उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि वर्तमान में
हिन्दुस्तान असन्तोष के ज्वालामुखी पर
खड़ा है । इसका
विस्फोट कब होगा, इसका
कोई भरोसा नहीं । इस
परिस्थिति में यदि
क्रान्तिकारियों ने विद्रोह
कर दिया तो
क्रान्ति होने की और रूस
के समान समाजवाद स्थापित होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता और
तब व्यापारियों
के लिए काँग्रेस
को मदद देना
असम्भव होगा ।’’
‘‘काँग्रेस
व्यापारियों का विरोध नहीं करेगी । क्योंकि काँग्रेस को उन्हीं का आधार है ।’’ मदन
ने अपनी राय
दी ।
‘‘अंग्रेज़ी व्यापारियों की
ये माँग है
कि हिन्दुस्तान को आज़ादी देते
समय इस बात का
ध्यान रखा जाए
कि उन्हें मिलने
वाली सुविधाओं पर
कोई आँच न आए ।’’ शेरसिंह
ने अंग्रेज़ी व्यापारियों की
माँग स्पष्ट करते
हुए कहा ।
‘‘इसका मतलब
हिंसा के
एवं सेना का
शासन स्थापित होने
के डर से कांग्रेस समर्थन नहीं
देगी और इस
बात की सम्भावना
है कि अंग्रेज़
अत्यन्त क्रूरता से इस विद्रोह को दबा देंगे, क्योंकि
जब तक उनका पक्ष मजबूत नहीं हो जाता वे स्वतन्त्रता के
बारे में विचार
करने के लिए
तैयार नहीं हैं ।’’ खान
ने सम्भावना व्यक्त की ।
‘‘मतलब, हमारा
आन्दोलन भी हमारे
अकेले का ही
होगा ।’’ मदन बोला ।
‘‘तुम लोग
अकेले नहीं होंगे । मैं
तुम्हारे साथ हूँ, जनता
साथ देगी,
क्रान्तिकारी संगठन साथ
देंगे । कर्तव्य करते
समय परिणाम एवं
समर्थन का विचार
नहीं करना चाहिए । जो
होगा उसका निडरता
से सामना करना
होगा,’’ शेरसिंह बोले ।
‘‘आर.के. ने
हमारे सामने आदर्श
रखा ही है ।
मगर अब आगे
करना क्या होगा ?’’
मदन
ने पूछा ।
अंग्रेज़ों
को सताने के
लिए और सैनिकों
को उकसाने के
लिए पूरी बेस में
घोषणाएँ लिखो, परचे
चिपकाओ । परचे तुम
तक पहुँचे
इसकी जिम्मेदारी मेरी ।’’
शेरसिंह
ने उन्हें आश्वासन
दिया ।
अगली
मुलाकात का समय
और सांकेतिक शब्द
लेकर मदन और
खान बाहर निकले । शेरसिंह के हृदय में क्रान्ति और
स्वतन्त्रता की आशाओं का गुलमुहर फूल रहा था।
आर.के. द्वारा किये गए सत्याग्रह एवं उसे दी
गई सजा का विवरण कराची, विशाखापट्टनम, कोचीन
इत्यादि स्थानों के तटीय बेस पर और मुम्बई में मौजूद जहाज़ों पर पहुँचा ।
अनेक सैनिकों के मन में आर.के. के
प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो
गई थी । जहाजों
के कुछ मित्र
मदन और गुरु
से पूछते, ‘‘जब आर.के. के साथ मारपीट की जा रही थी तो तुम लोग चुप क्यों
रहे ?’’ एक सैनिक उस पर हो रहे
अत्याचार, मारपीट इतनी
शान्ति से कैसे
बर्दाश्त कर सकता
है, यह सवाल उन्हें
सताता । आर.के. का
मार्ग गलत प्रतीत
होते हुए भी
उसके साहस की सभी
प्रशंसा कर रहे थे
। एच. एम. आई. एस. (HMIS) ‘जमुना’ के
राठौर ने मदन से
कहा था, ‘‘मुझे
अपने आप पर
शर्म आ रही
है । हम ये
अन्याय किसलिए बर्दाश्त कर
रहे हैं ? आर. के. का मार्ग गलत प्रतीत हो रहा है, मगर उसकी हिम्मत की दाद
तो देनी ही
पड़ेगी । ये हिम्मत
हम क्यों नहीं
दिखा सकते ? हम
इतने नपुंसक क्यों हो
गए हैं ?’’
राठौर
ने अधिकांश सैनिकों
की भावना ही
व्यक्त की थी ।
दत्त
का ‘तलवार’ में तबादला
सबको आश्चर्यचकित कर
गया । सैनिकों के
तबादलों का सत्र
आरम्भ होने में अभी
चार महीने बाकी
थे ।
‘‘अरे, तू
बीच में ही
यहाँ कैसे ? क्या
किसी काम से
आया है ? कितने दिन
रुकेगा ?’’ मदन ने
सवालों की झड़ी
लगा दी ।
‘‘अरे, हाँ!
एकेक सवाल पूछ ।
मेरा यहाँ तबादला
हो गया है ।
किसी अन्य नौसेना बेस
के मुकाबले में
मुम्बई के नौसेना
बेस का वातावरण
अधिक विस्फोटक हो गया
है और यदि
शुरुआत करनी हो
तो हमें यहीं
से करनी होगी ।
बीच में छुट्टियों के
दौरान कराची और
विशाखापट्ट्नम जाकर आया, वहाँ
के सैनिक भी बेचैन हैं । आगे बढ़कर
विद्रोह करने वाले सैनिक तो वहाँ नहीं हैं, मगर
यदि किसी अन्य स्थान
पर विस्फोट हुआ
तो इन नौसेना
बेस पर और
कराची बेस पर भी
विस्फोट होगा और
यह अंग्रेज़ों के
लिए जबर्दस्त धक्का
होगा । यह सोचकर मैंने
अलग–अलग
मार्गों से कोशिश
की । ड्राफ्टिंग ऑफिस
में हमारे कुछ
सैनिक और एक अधिकारी
है । उन्हीं के
कारण मैं यहाँ
आ सका ।’’ दत्त
ने स्पष्ट किया ।
‘‘दत्त यहाँ
आ गया यह
बड़ा अच्छा हुआ ।
अब हम फ़ौरन
योजना बनाकर उस पर त्वरित
कार्रवाई कर सकेंगे ।
आगे क्या करना
है ये तय
करने के लिए, मैं सोचता हूँ, हमें
रात को पाइप
डाउन के बाद
संकेत स्थल पर
जमा होना चाहिए ।’’
गुरु
ने सुझाव दिया ।
इन
क्रान्तिकारियों का रात
की सभा का
स्थान था बैरेक
से एक फर्लांग दूर
एक विशाल बरगद
का पेड़ । इस
तरफ रात को तो क्या
दिन में भी
कोई नहीं आता था ।
इस प्राचीन वटवृक्ष
का तना इतना
चौड़ा था कि उसके पीछे आराम से
तीन–चार
व्यक्ति छिप सकते
थे । ज़मीन तक
पहुँचती जटाओं के
कारण तो रात में
पेड़ के नीचे
अँधेरा ही रहता था ।
पाँच–दस
फुट करीब आने
पर ही दिखाई देता
था कि उसके
नीचे कोई बैठा
है या नहीं ।
आजकल वे रात
को इसी पेड़ के नीचे इकट्ठे होकर
विचार–विनिमय किया करते थे । उनमें से हरेक नीली यूनिफॉर्म पहनकर
अलग–अलग
रास्ते से वहाँ
पहुँचता ।
‘‘हमें अलग–अलग नौसेना
बेस से वहाँ
की गतिविधियों के
बारे में जानकारी भेजी जाती है, हम
भी वैसा ही करते हैं । पर यह सब पत्रों के माध्यम से होता है । इसमें
पहली बात, समय
ज्यादा लगता है
और दूसरी बात, हमेशा
यही डर लगा रहता
है कि यदि
पत्र किसी अवांछित
व्यक्ति के हाथों
में पड़ गया
तो क्या होगा ? इस पर कोई उपाय सोचना ही पड़ेगा ।’’
मदन
ने परेशानी बताई ।
वहाँ जमा हुए मदन, गुरु, खान, दत्त
सभी कम्युनिकेशन ब्रांच के होने के कारण उन्हें पर्याय का ज्ञान था ।
‘‘अरे, अपने
हाथों में इतनी
बड़ी यन्त्रणा है ।
हम वायरलेस सन्देश
भेजेंगे!’’
दास
ने कहा ।
‘‘बड़े
सयाने हो! अगर उस समय अपना ऑपरेटर न हुआ तो ?’’ गुरु
ने कहा ।
‘‘इस बारे
में तो मैंने
सोचा ही नहीं ।’’ दास
ने स्वीकार किया ।
‘‘यदि हम
ए के स्थान
पर जेड, बी
के बदले वाई
इस प्रकार ट्रान्समिट करें तो ?’’ सलीम
ने सुझाव दिया ।
‘‘हर्ज नहीं । मगर
दो–चार
सन्देशों का विश्लेषण करने
के बाद हमारी
चालाकी पकड़ी जाएगी ।’’ मदन
ने कहा ।
''Have manners. No discussion
in uncipherable languge.'' दत्त
आपस में बंगाली में बात कर रहे दास और सलीम
पर उखड़ा ।
‘‘अरे, यही
तो उपाय है, हम
रोमन मलयालम में
सन्देश भेजेंगे, उसके
लिए पाँच टेलर्स का ग्रुप बनाएँगे । मेरा ख़याल है कि हमारी सभी बेस के
सहकारियों में एकाध मलयाली
तो होगा ही ।
यदि हमारे सहकारी
के स्थान पर
कोई और ड्यूटी पर
होगा तो वह
डिस्क्रिप्ट करने की
कोशिश करेगा, मगर
उसे कुछ भी समझ
में नहीं आएगा, क्योंकि
वो रोमन मलयालम
में होगा । अधिक
सुरक्षा के लिए हम
टायपेक्स का इस्तेमाल
करेंगे ।’’ गुरु का
सुझाव सबने मान
लिया ।
‘‘अब
समय गँवाने में
कोई लाभ नहीं
ऐसी शेरसिंह की
भी राय है ।
आर.के. ने अंग्रेज़ों को उकसाया है । मगर हमें इसकी
बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है । आर.के.
जैसे सहयोगी को खोना पड़ा है । हमें अब
दूसरे मार्ग को अपनाना चाहिए और अंग्रेज़ों
को चिढ़ाते हुए, सैनिकों
का आत्मसम्मान जागृत
हो चुका है, यह
दिखाने के लिए, इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा कि हममें से कोई
पकड़ा न
जाए ।’’ मदन ने
सुझाव दिया ।
‘‘शेरसिंह ने
पर्चे देने का
वादा किया है ।
हम रात को
उन्हें चिपका सकेंगे ।’’ खान ने
सुझाव दिया ।
‘‘इसके बदले
यदि नारे लिख
दिये जाएँ तो ?’’ गुरु
ने सवाल किया ।
‘‘मगर कब
लिखेंगे नारे ?’’
दास
ने पूछा ।
‘आज रात
को ही लिख
देंगे ।’’ सलीम ने
कहा।
‘‘यदि 1
दिसम्बर की पूर्व
संध्या को यह
काम किया जाए तो
?’’ दत्त ने सोचकर सवाल पूछा ।
‘‘ऐसी क्या
खास बात है
उस दिन में ?’’ सलीम
ने पूछा ।
‘‘भूल गए ? 1
दिसम्बर को नौसेना
दिवस मनाया जाने
वाला है । उस दिन
अपने नौसैनिक सामर्थ्य का प्रदर्शन करने के लिए हिन्दुस्तानी जनता को जहाज़ पर और
बेस पर बेरोक–टोक प्रवेश
दिया जाने वाला
है । ‘तलवार’ को
देखने आई जनता को जब ‘तलवार’ स्वतन्त्रता
के नारों से रँगा हुआ दिखेगा तो अंग्रेज़ों की तो
फजीहत होगी ही, मगर
साथ ही हिन्दुस्तान
की जनता यह
भी समझ जाएगी कि
सैनिक शान्त नहीं
हैं । उनके मन
में भी एक
तूफान उमड़ रहा है
। वे
अंग्रेज़ों के साथ नहीं
हैं । स्वतन्त्रता आन्दोलन
में यदि उन्हें
अपने साथ लिया
जाए तो स्वतन्त्रता प्राप्त करने
में आसानी होगी ।’’ दत्त ने 1
दिसम्बर के दिन के महत्त्व को
स्पष्ट करते हुए
कहा ।
‘‘मेरा ख़याल
है कि
हम सभी को
इस काम में
एक साथ नहीं
लगना चाहिए । सावधानी बरतने पर
भी यदि पकड़े गए तो अपना कार्य ही रुक जाएगा । अत: इस काम
की रूपरेखा दत्त
बनाएगा और मैं
तथा गुरु उसकी
सहायता करेंगे,” मदन
ने
यह सुझाव दिया
और अन्य लोगों
ने कुछ नाराज़गी
से ही इसे
सम्मति दी ।’’
‘तलवार’ पर 1 दिसम्बर की ज़ोरदार तैयारियाँ चल रही थीं । बेस की सभी इमारतों को
पेंट किया गया
था । बेस के रास्ते, परेड
ग्राउण्ड रोज पानी
से धोए जाते थे ।
रास्ते के किनारे
पर मार्गदर्शक चिह्नों
वाले बोर्ड लग
गए थे । परेड
ग्राउण्ड पर कवायद के
लिए विभिन्न प्रकार
के निशान ऑयल
पेंट से बनाए
गए थे । झण्डे वाला मास्ट और उसके
नीचे वाला चार फुट ऊँचा, तीस बाई तीस का विशाल चबूतरा आईने
की तरह चमक
रहा था । सैल्यूटिंग
डायस की पीतल की जंज़ीर
ब्रासो लगाकर रोज चमकाई जाती थीं । जैसे–जैसे 1
दिसम्बर निकट आ रहा था, ‘तलवार’ पर
गहमा–गहमी
बढ़ती जा रही
थी ।
‘‘लेफ्टिनेंट कमाण्डर स्नो, पूरी तैयारी हो गई ?’’ 30 नवंबर को कोल ‘तलवार’ के
फर्स्ट लेफ्टिनेंट से पूछ रहा था । मुझे लोगों को और खासकर ‘अब आज़ादी
दूर नहीं, हम दो सालों में आजादी प्राप्त करेंगे और वह भी
अंग्रेज़ों की मेहरबानी से नहीं
बल्कि हमारे हक
के रूप में’ इस
तरह की बकवास
करने वाले नेहरू,
पटेल जैसे कांग्रेस
के नेताओं को
दिखाना है कि
हिन्दुस्तानी सैनिक एकजुट होकर सरकार के पीछे खड़े हैं, वे ‘आज़ादी’ और ‘आन्दोलन’ इन
शब्दों को भी नहीं जानते ।’’
‘‘मुझे ताज्जुब
होता है, सर, नेहरू,
पटेल किसके भरोसे
आज़ादी के ख्वाब देख
रहे हैं?
हमें यह देश
छोड़ना पड़ेगा, यह
बात सच भी
हो, तो
अभी नहीं छोड़ना है और जब तक
हिन्दुस्तानी सैनिक और पुलिस हमारे प्रति ईमानदार हैं. तब तक
तो बिलकुल भी
नहीं ।’’
‘‘मेरा ख़याल
है कि कांग्रेस
के नेता यह
सोच रहे हैं
कि आज़ाद हिन्द सेना
के सैनिकों का
उपयोग करके आज़ादी
प्राप्त की जा
सकेगी । शायद उनका यह भी अनुमान हो कि आज़ाद हिन्द सैनिकों का
साथ देने के लिए हिन्दुस्तानी सैनिक
आगे आएँगे ।’’
कोल
ने अपना अनुमान
स्पष्ट किया ।
‘‘मगर, सर, आज़ाद
हिन्द सेना के अधिकांश सैनिक मजबूरी में सुभाषचन्द्र का साथ
दे रहे हैं ।
जर्मनी ने युद्ध
कैदी बनाकर उनके
साथ जैसा क्रूरता
का व्यवहार किया,
उससे बचने के
लिए वे अंग्रेज़ों
के विरुद्ध लड़ने
के लिए तैयार हुए
हैं । कुछ–कुछ लोगों
को तो हाथ
में बन्दूक देकर
सख़्ती से हमारे खिलाफ खड़ा
किया गया और
मजबूरी में उन्हें
अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ना
ही पड़ा। ऐसे दिखावटी
सैनिकों पर विश्वास
करके यदि पटेल
और नेहरू ख्वाब
देख रहे हों तो
देखते रहें । मेरा
ख़याल है कि
उसका कोई असर
ब्रिटिश हुकूमत पर
होने वाला नहीं है ।’’ स्नो
ने अपना विचार
व्यक्त किया ।
''Forget about it, मुझे
सैनिकों की कोई
झंझट नहीं चाहिए ।
साथ ही ‘तलवार’
को देखने आने वाले नगारिकों को भी कोई झंझट
नहीं चाहिए । Maintain
Strict discipline किसी भी
सिविलियन को सैनिकों के
सम्पर्क म न आने
देना. उन्हें एक निश्चित
मार्ग से ही
जाने–आने दो
- कोल ने
सूचनाएँ दीं ।
मगर
रात के गर्भ
में क्या छिपा
हुआ है ये
न तो कोल
को मालूम था और
न ही स्नो
को ।
जब पौ फटी तो मास्ट पर अधजला यूनियन जैक था ।
हवा न चलने के कारण वह सिमट गया । झण्डा ऐसा लग रहा था, मानो
सिर झुकाए खड़ा हो । यूनियन जैक की दायीं
ओर वाली रस्सी पर एक
फूटी हुई बाल्टी
में झाडू और
पोंछने का कपड़ा रखकर
उसे यूनियन जैक
से एक फुट
ऊँचाई पर ले
जाया गया था ।
सैनिक मानो यह सूचित
करना चाहते थे
कि उनकी नजर
में यूनियन जैक
की कीमत झाडू–बाल्टी जितनी
ही है । सैल्यूटिंग
डायस और परेड
ग्राउण्ड पर हर
जगह ''Quit India', 'Revolt Now,'
'Down with Imperialism' आदि जैसे
नारे बड़े–बड़े अक्षरों में लिखे थे । एक रात में यह सब
कैसे हो गया इसका अन्दाज़ा कोई भी लगा
नहीं पा रहा
था ।
सुबह
की सैर को
निकले अधिकारियों ने
इस परिवर्तन को
देखा और वे अवाक्
रह गए । बाहर
चल रहा स्वतन्त्रता
आन्दोलन ‘तलवार’ के
भीतर भी पहुँच चुका
है इस पर
वे अभी भी
विश्वास नहीं कर
रहे थे । उनमें
से किसी ने
ऑफिसर ऑफ दे डे
सब लेफ्टिनेंट डेनियल
से सम्पर्क स्थापित
किया । किसी और
ने कोल का फोन नम्बर घुमाया । कोल
ने आधी नींद में फोन उठाया । पूरी बात सुनकर उसकी नींद
रफूचक्कर हो गर्ई ।
कोल
जल्दी–जल्दी
में नाइट ड्रेस
में ही परेड
ग्राउण्ड पर आया ।
परेड ग्राउण्ड का दृश्य
देखकर वह बेचैन
हो गया ।
‘‘इन bloody bastard Indians को सबक सिखाना ही होगा!’’
वह अपने आप से पुटपुटाया । ''What the hell you are
looking at my face?'' सामने खड़े डेनियल
पर वह चिल्लाया । ''where is Lt. Commander Snow? Come on, send for
him. I want him here within no time.''
ल की
नजर मास्ट की
ओर गई । यूनियन
जैक की बगल
में बाल्टी, और
वह भी एक फुट ज्यादा ऊँचाई पर ‘झण्डे का ऐसा अपमान!’ उसके
भीतर का देशभक्त अंग्रेज़ जाग उठा । ‘‘डेनियल’’ - वह चिल्लाया ।
करीब
पच्चीस बरस का
डेनियल दौड़कर आगे
आया, ''Yes, Sir.'
‘‘देख रहे
हो अधजला यूनियन
जैक ? भड़वे, फिर
उसे नीचे कौन
उतारेगा ? तेरा
बाप ? अरे, राष्ट्र
ध्वज की प्रतिष्ठा
की खातिर अपनी
जान की बाजी
लगाने वालों का गोबर
खा! मेरे मुँह
की तरफ क्या
देख रहे हो ? जाओ, सम्मानपूर्वक उस ध्वज को नीचे उतारो!’’ डेनियल
मास्ट की ओर दौड़ा उसने रस्सियाँ खोली और
अपमानित यूनियन जैक
को नीचे उतारने
लगा ।
बेचैन
कोल अपने ध्वज
को सम्मानपूर्वक सैल्यूट करते
हुए मन ही
मन क्षमा याचना कर
रहा था ।
ढाई
घण्टे बाद, अर्थात्
आठ बजे से
मुम्बई के नागरिक
आने लगेंगे । अगर उन्होंने यह सब देख लिया
तो ? कोल के
दिल की धड़कन
मानो रुक गई ।
‘‘अगर हेडक्वार्टर
या वरिष्ठ अधिकारियों
तक यह बात
पहुँच गई तो...अगला प्रोमोशन... आज
तक हासिल की
गई प्रतिष्ठा और
नाम...’’
और
वह चिल्लाया, ''Where is Snow?'' ले. कमाण्डर स्नो आगे बढ़ा ।
‘‘कल तुमसे
कहा था । तू क्या हजामत
बना रहा था ? इतनी
सारी रामायण हो गई... ।’’
''Cool down, Sir!'' गुस्साया
हुआ स्नो शान्त
रहने की कोशिश
करते हुए समझा रहा था ।
‘‘आठ के
अन्दर यह सब
साफ हो जाना
चाहिए ।
'Yes, Sir!'' स्नो ने जवाब दिया ।
''Hands Call, Hands call, Clear lower decks,
Fallin on the parade Ground.'' क्वार्टर मास्टर
बार–बार
घोषणा कर रहा
था ।
‘तलवार’ के
सारे सैनिक परेड
ग्राउण्ड पर इकट्ठे
हो गए । किसी को भी पता नहीं था
कि समय से पहले उठाकर उन्हें इकट्ठा क्यों किया
गया है ? बैरेक
से आते हुए उन्होंने चारों ओर लिखे नारों को देखा, परेड
ग्राउण्ड पर लिखे
नारे पढ़े और
उनके मन में
एक ही सवाल
उठा, ‘‘ये नारे
किसने लिखे होंगे ?’’ अनेक
सैनिकों के मन
में नारे लिखने
वालों के प्रति
आश्चर्ययुक्त आदर की भावना
जाग उठी ।
काम
का बँटवारा हुआ ।
सैनिकों के गुट
बनाकर उन्हें विभिन्न
अधिकारियों के पास भेजा
गया और ‘तलवार’ की साफ–सफाई करने
का, सैनिकों के दिलों
में पनप रहे
देशप्रेम के पौधे
को उखाड़ फेंकने
का काम आरम्भ
हुआ । मगर अंग्रेज़ अधिकारियों को
इस बात की
कल्पना नहीं थी
कि उनकी इसी
हरकत की वजह से
वह पौधा जड़
पकड़कर उत्साहपूर्वक बढ़ेगा ।
कोल काफी
बेचैन था ।
उसने अपनी निगरानी में
पूरी बेस की, विशेषत:
परेड ग्राउण्ड की सफ़ाई करवाने
का निश्चय किया और
वह परेड ग्राउण्ड
पर पहुँचा ।
''Come on, Scrub it properly,
Wash of that bloody India.'' इण्डिया इस
शब्द पर थूकते
हुए वह चीखा, ‘‘साला, मेरे
देश पर थूकता
है क्या? साले की
आँतें ही बाहर निकालता
हूँ ।’’ गुस्साया हुआ
मदन मुट्ठियाँ तानते
हुए पुटपुटाया और आगे
बढ़ा । दत्त ने
उसे पीछे खींचते
हुए समझाया, ‘‘भावनावश मत हो, अभी हमें लम्बी दूरी पार करनी है ।’’
'You, bloody cowards, black pigs, if yon have
guts write all this nonsense in front of me and I shall teach you a good
lesson!'' कोल
का चिल्लाना जारी
था । ‘‘मस्ती चढ़
रही है सालों
पर, तुम्हारी मस्ती
मैं उतारूँगा । ‘तलवार’ में
घुस आए इस क्रान्तिकारी को
मैं ढूँढ निकालूँगा
और आज मैं
तुम्हें बताए देता
हूँ कि जैसे
ही वह मुझे मिलेगा, मैं
उसे चीर के
रख दूँगा! By God, I shall not spare
him.'' कोल
चिल्ला–चोट
मचा रहा था ।
बीच–बीच
में अधिकारियों की
भी खबर ले
लेता ।
करीब
पौने आठ बजे
कोल ने बेस
का राउण्ड लगाया
और एक–एक दीवार का, दीवार
के एक–एक कोने
का मुआयना किया ।
इस बात का
इत्मीनान कर लिया कि कहीं भी कुछ
भी लिखा हुआ नहीं है, सब कुछ साफ हो गया है और वह घर वापस आया ।
आठ
के घण्टे और ‘Long
live the king’ की ताल
पर शाही ठाठ
में, धीमी गति से रॉयल नेवल एनसाइन मास्ट पर फहराने
लगा । ‘तलवार’ पर
सब कुछ ठीक है यह ज़ाहिर करने में अंग्रेज़ अधिकारी कामयाब
हो गए थे; मगर कोल बेहद बेचैन हो गया था । ‘तलवार’
का प्रमुख होने के कारण इन सारी घटनाओं
का ज़िम्मेदार उसी को बनाया जाने
वाला था ।
कोल
अस्वस्थ मन से
अपने चेम्बर में
बैठा था । पिछले
महीने भर को
घटनाएँ फिल्म की रील
की तरह उसकी
नजरों के सामने
से गुजर रही
थीं । सब लेफ्टिनेंट रामदास के पास पर्चे मिले,
इसके करीब
आठ–दस
दिन बाद आर.के. का
अहिंसात्मक संघर्ष और फिर
आज की घटना ।
‘यह
सब मेरे कैरियर
को बरबाद कर
देगा और प्रमोशन पर
भी असर डालेगा, इसमें
कोई शक नहीं ।’ इस
ख़याल से यह बेचैन हो गया। उसे
अपने आप पर
ही गुस्सा आया ।
उसने पाइप सुलगाया ।
दो
गहरे–गहरे
कश लगाकर सीने
में धुआँ भर
लिया और संयमपूर्वक
धीरे–धीरे उसे
बाहर छोड़ा, मगर
मन की बेचैनी
कम न हुई ।
अपने आप पर
वह गुस्सा हो गया ।
‘‘मुझे हर
घटना को गम्भीरता
से लेकर कड़ी
कार्रवाई करनी चाहिए
थी ।’’ वह
अपने आप से
बड़बड़ाया ।
‘‘इन सारी
घटनाओं के पीछे
बड़ा अनुशासनयुक्त नियोजन
है ।’’ वह सोच रहा था, ‘‘कौन कर सकता है यह नियोजन ? कोई भूमिगत क्रान्तिकारी या ‘रिवोल्यूशनरी पार्टी’ जैसा
कोई संगठन...’’ सोच–सोचकर
दिमाग चकराने लगा, मगर
कोई सुराग नहीं
मिल रहा था ।
‘‘इसके पीछे
कौन है, यह ढूँढ़ने
के लिए मैं
आकाश–पाताल
एक कर दूँगा । अपराधियों को कड़ी
सज़ा दूँगा ।’’
वह
स्वयं से पुटपुटाया ।
पूरे
दिन बेस में
घूमता रहूँगा और
कुछ और नहीं
होने दूँगा यह
निश्चय करके वह अपने
चेम्बर से बाहर
निकला ।
‘‘किसने लिखे
होंगे ये नारे ?’’ फुसफुसाकर
रवीन्द्रन राघवन से
पूछ रहा था ।
‘‘किसने लिखे
यह तो पता
नहीं, मगर ये
काम रात को
ही निपटा लिया गया
होगा ।’’
‘‘कुछ
भी कहो, मगर है वह हिम्मत वाला! मैं नहीं समझता कि गोरे
कितना भी क्यों न घिसें, उन्हें वो मिलेंगे ।’’
‘‘मगर यदि
मिल गए तो
फिर...’’
‘‘अरे
छोड़! एक तो मिलेंगे ही नहीं और यदि मिल भी गए तो वे डगमगाएँगे नहीं । आर.के. ने
क्या किया, मालूम
है ना ? ये
उसी के साथी
होंगे ।’’
बैरेक
की मेस में
ऐसी ही फुसफुसाहट
चल रही थी ।
मगर दत्त, मदन और
गुरु शान्त थे ।
शेरसिंह
ने फिर से
अपना ठिकाना बदल
दिया था । दत्त
और गुरु को
कितनी ही बार लटकाये रखा था । बदन को टटोलकर
तलाशी ली थी । सांकेतिक शब्दों की बार–बार जाँच की गई थी । दत्त
ने देखा,
आसपास तीन–चार बन्दूकधारी छिपकर बैठे थे ।
मौका पड़े तो
हमला करके भी
शेरसिंह को बचायेंगे - इस निश्चय
के साथ ।
‘‘आओ, आओ, मुबारक
हो! अच्छा काम
किया है!’’ शेरसिंह
ने हँसते हुए उनका
स्वागत किया । गुरु
और दत्त को
ऐसा लगा कि
उनकी हिम्मत सार्थक हो
गई है ।
‘‘आओ, बैठो, मेरी
जानकारी के अनुसार
सैनिकों में काफ़ी
भगदड़ मच गई है ।
मुझे तो अचरज है
कि तुम यह
सब कर कैसे
सके ।’’
‘‘वैसे इसमें
कोई खास बात
नहीं थी । रात
की ड्यूटी पर
हमने नजर रखी ।
रात की चार–चार
घण्टों की ड्यूटियाँ आठ बजे से शुरू होती हैं । आठ से बारह के बीच
में सभी पहरेदार
सतर्क रहते हैं ।
इसलिए यह समय
हमारे काम के लिए
योग्य नहीं था । बारह से चार बजे की ड्यूटी सबसे बुरी है । आधी नींद में काम पर आना
पड़ता है और
चार बजे के
बाद भी नींद
पूरी नहीं होती ।
सभी इस ड्यूटी से बचना चाहते हंै
। हम पाँच–छह लोगों ने दो–दो
दिन पहले ही औरों के साथ इस तरह ड्यूटियाँ बदल लीं कि 30
नवम्बर को मुझे और गुरु को छोड़कर सभी
बारह से चार
की ड्यूटी पर
थे । हम लोगों
में से सैनिकों
के अलावा जो अन्य
सैनिक ड्यूटी पर थे, उन्हें
हमारे साथियों ने
दो बजे के
बाद बातों में
उलझाये रखा और हमने, यानी
मैंने और गुरु
ने इस मौके
का पूरा–पूरा फायदा
उठाया । चार से आठ वाली ड्यूटी के पहरेदारों के आने से पहले ही हम बैरेक
में जाकर सो गए ।’’
‘‘तुम्हारी यह
योजना अच्छी ही
थी । इस प्रकार
के मौके का
फायदा उठाकर गड़बड़ी पैदा
करो । मगर एक
बात याद रखो, जिस
पर पूरी तरह
से विश्वास न हो ऐसे सैनिक को साथ में मत लेना । वरना गोते
में आ जाओगे । कोल अब साम, दाम, दण्ड
और भेद का
प्रयोग करके तुम्हें
पकड़ने की कोशिश
करेगा । सावधान रहना होगा ।’’ शेरसिंह
ने सलाह दी ।
‘‘हम पूरी
तरह से सावधान
हैं । एक–दूसरे पर
नजर रखे हुए
हैं ।’’
‘‘हम वायुसेना
और नौसेना - इन दो
सैन्यदलों पर निर्भर
हैं। स्वतन्त्रता, अस्मिता का
मूल्य इन्हीं सेना
दलों के सैनिकों
को मालूम है, क्योंकि
वे सुशिक्षित हैं । भूदल के सैनिक
वंश परम्परा से सेना में आते हैं । अब वह उनका पेशा बन गया है ।
अपने स्वामी के
प्रति वफ़ादारी की
भावना उनके खून
की एक–एक बूँद में
समा चुकी है ।
इसका मतलब यह
नहीं कि भूदल
में स्वाभिमानी, अस्मिता
वाले सैनिक हैं ही
नहीं । मगर ऐसे
सैनिकों की संख्या
ज्यादा नहीं है
जिनका आत्मसम्मान जाग उठा
है । इसलिए हम
अन्य दो सेनाओं
पर निर्भर हैं ।
तुम नौसैनिकों में
जैसी बेचैनी है,
वैसी ही
वायुदल के सैनिकों में भी है
। ये सैनिक भी बगावत की मन:स्थिति में हैं ।
‘‘मगर
इन सैनिकों में
अभी आत्मविश्वास नहीं
है । वे एक
नहीं हुए हैं । मगर
विश्वास रखो, तुम
अकेले नहीं हो ।
जब तुम बगावत
के लिए खड़े
रहोगे तब वायुसेना के
सैनिक भी तुम्हारे
साथ होंगे ।’’ शेरसिंह
ने विश्वास दिलाया ।
और
फिर वर्तमान परिस्थिति पर
कुछ देर बात
करके गुरु और
दत्त ने शेरसिंह से बिदा
ली ।
गोरे अधिकारी और नौसेना की पुलिस पूरी बेस में
घूम–घूमकर कहीं कोई सुराग पाने की
कोशिश कर रहे थे
। 30 नवम्बर
की रात को
जो सैनिक ड्यूटी
पर थे उनकी फ़ेहरिस्त बनाई गई और
फिर एक–एक को रेग्यूलेटिंग ऑफिस में बुलाया गया ।
पहला नम्बर लगा
सलीम का । सवालों
की बरसात हुई ।
मगर सलीम शान्त था । वह एक ही जवाब दे रहा था, ‘‘जब
मैं ड्यूटी पर था, उस दौरान यह नहीं हुआ । मुझे
इस बारे में
कुछ भी पता
नहीं है ।’’
2
दिसम्बर की रात को परिस्थिति पर विचार करने के लिए आज़ाद हिन्दुस्तानी हमेशा के
संकेत स्थल पर
इकट्ठा हुए थे ।
‘‘क्यों, सलीम, आज
धुलाई हुई कि
नहीं ? या सिर्फ
सवालों पर ही
मामला निपट गया ?’’
गुरु ने
हँसते हुए पूछा ।
‘‘आज तो
धुलाई से बच
गया, मगर अगली
बार बच पाऊँगा
इसकी गारंटी नहीं ।’’
सलीम ने
कहा ।
‘‘क्या–क्या पूछा
रे दत्त ?’’
‘‘अरे, जो
मर्जी आए वो ।
खाना खाया क्या ? तेरे
भाई कितने हैं ? बाहर कब
गए थे ? ऐसे
बेसिर–पैर
के सवालों के
बीच अचानक पूछ
लेते, नारे किसने लिखे
थे ? बीच ही में, डराने
के लिए कहते, ‘नारे
लिखते हुए तुझे
किसी ने देखा है ? तू
जब पहरा दे
रहा था तो
तुझसे कौन मिला
था ? तुझसे कौन
बात कर रहा था ?’ सभी
सवालों का मेरे
पास एक ही
जवाब था, ‘मुझे
मालूम नहीं ।’ करीब घण्टाभर सताया सालों ने!’’ सलीम
के चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था । आखिर में
उस गोरे एल.पी.एम. जेकब ने कहा, ‘‘तुझे
48 घण्टों की मोहलत दे रहे हैं । सोच–विचार करके
सच उगल दे ।
वरना तुझे फँसा
देंगे ।’’
‘‘फिर क्या
सोचा है?” मदन
ने पूछा।
‘‘सोचना क्या
है ? मेरा जवाब
वही है, ‘मुझे
मालूम नहीं ।’ मगर...’’ सलीम ने आधा ही वाक्य
कहा ।
‘‘मगर
क्या ?” गुरु का सवाल।
‘‘मैं मार
से नहीं डरता ।
यदि वे मेरी
चमड़ी भी उधेड़
दें तो भी मैं
डगमगाऊँगा नहीं । मगर यदि
उन्होंने मेरे पिता
और भाई को
पकड़ने का फैसला
किया तो... ।’’
‘‘अरे मगर
क्यों पकड़ेंगे और
ये तुझसे किसने
कहा?” मदन
‘‘आज बोस
मिला था... ।’’
‘‘कौन बोस?” दत्त
‘‘अरे वो
माता के दाग़ वाला, काला–कलूटा, नकटी
नाकवाला, हम लोग उसे
हब्शी कहकर चिढ़ाते
हैं ना, वही
। आजकल
वह डे ड्यूटी
कर रहा है ।’’ गुरु ने
जानकारी दी ।
‘‘वह मेरे
ही गाँव का है
। वह
और एल.पी.एम. जेकब दोस्त हैं ।
वह आज मिला था
और कह रहा था, तू
जब पहरे पर
था उस समय
जो कुछ भी हुआ
वह सच–सच जेकब को बता दे, वरना
मैं उनसे कह दूँगा कि तेरे पिता के और भाई
के क्रान्तिकारियों से
सम्बन्ध हैं । इसका
खामियाजा तेरे घरवालों
को भुगतना पड़ेगा । इसलिए
सँभल जा और
सब कुछ सच–सच
बता दे ।’’
चिन्ता के
स्वर में सलीम ने
बतलाया ।
‘‘मगर तू
क्यों डर रहा
है? ” गुरु
‘‘बोस
सिर्फ मेरे गाँव का ही नहीं, बल्कि
मेरे घर में उसका हमेशा आना–जाना होता है । मेरे पिता और भाई क्रान्तिकारी नहीं
हैं, मगर वे
क्रान्तिकारियों की सहायता करते हैं ।
मेरा एक मामा
भूमिगत हो गया
है । उसके ऊपर
हजार रुपये का
इनाम भी लगा है । वह कभी–कभी हमारे घर आता है, और
बोस को यह बात मालूम है,
इसीलिए मुझे दोनों
ओर से खतरा
है ।’’
‘‘तू चिन्ता
मत कर । बोस
का इन्तज़ाम हम
कर देंगे,” खान ने
सलीम से वादा किया । हममें से यदि एक भी घबरा गया और सच उगल गया तो हम सब नेस्तनाबूद
हो जाएँगे । सैनिकों
को अपने साथ
लेते समय हमें
सावधान रहना चाहिए । जब
तक पूरा यकीन
न हो जाए, उन्हें
दूर रखना ही
अच्छा है । यदि किसी
के बारे में
थोड़ा–सा
भी सन्देह हो, तो
औरों को सतर्क
करना चाहिए । बोस का
बन्दोबस्त कैसे करना
है, यह मैं, गुरु
और मदन तय
करके बताएँगे । अर्थात् तुम्हारी
मदद की जरूरत
पड़ेगी ।’’ दत्त ने
दिलासा दिया ।
''Now you may go in.''
मुम्बई
के फ्लैग ऑफिसर
के दफ्तर के
बाहर करीब–करीब घण्टेभर
से बैठे हुए कोल
से रिअर एडमिरल
रॉटरे के सचिव
ने कहा । कोल
ने इत्मीनान की
साँस ली । इन्तजार खत्म
हो गया था ।
रॉटरे ने जबसे
मिलने के लिए
उसे बुलाया था, तब
से कोल परेशान
था ।
''May I come in, Sir?'' कोल
ने पूछा ।
''Yes, Come in.'' रॉटरे
की कड़ी आवाज
आई ।
कोल भीतर आया । रॉटरे ने सिर से पैर तक कोल को
देखा और उसकी नज़र से नज़र मिलाकर पूछा, ‘‘‘तलवार’ पर
क्या हो रहा
है ?’’
‘‘मैं पता
लगाने की कोशिश
कर रहा हूँ, सर ।’’ नजरें
झुकाते हुए कोल ने
जवाब दिया ।
‘‘मगर यह
हुआ ही क्यों ? तू
कमांडिंग ऑफिसर है, क्या
तू यह नहीं
सोचता कि ऐसा न
होने पाये, इसका
ध्यान रखना जरूरी
था ?’’
कोल
के पास रॉटरे
के सवाल का
कोई जवाब नहीं
था । "I am sorry, Sir!" कोल
अपने आप में
बुदबुदाया ।
‘‘कमांडर–इन–चीफ का
ख़त मिला था
तुझे ?’’ कोल ने
गर्दन हिला दी ।
‘‘ख़त में
सभी कमांडिंग ऑफिसर्स
को सावधान किया
गया था । यह आशंका व्यक्त की
गई थी कि
नौसेना एवं वायुसेना
के सैनिक भूदल
के सैनिकों की अपेक्षा ज्यादा
सुशिक्षित हैं और
विभिन्न राजनीतिक पक्षों
का प्रभाव होने के कारण उनके गड़बड़
करने की सम्भावना
है । युद्ध काल
में इन सभी
सैनिकों को ठीक से
देखा–परखा
नहीं गया था
इसलिए सब कमांडिंग
ऑफिसर्स सतर्क रहें
और उनके जहाज़ के
सैनिक गड़बड़ न
करें इसका ध्यान
रखें, ऐसी सूचना
देने पर भी तू… ।’’
''I am sorry, Sir!'' कोल
ने बुझे हुए
चेहरे से क्षमायाचना
की ।
''No use of sorry now. मुझे
ये क्रान्तिकारी सैनिक
चाहिए । मैं तुझे
एक महीने की मोहलत
देता हूँ । महीने
भर में यदि
इन सैनिकों को
ढूँढकर न निकाला तो...’’ रॉटरे
ने कोल को
धमकाया ।
''I shall try my level best.'' कोल
बुदबुदाया ।
'' You may go now.''
कोल उतरे
हुए चेहरे से
फ्लैग ऑफिसर के
चेम्बर से बाहर
आया । उसे समझ में
ही नहीं आ
रहा था कि क्या किया
जाए । वह उलझन
में पड़ गया
था । अपनी ओर से
वह कोशिश तो
कर रहा था, मगर
हाथ कुछ भी
नहीं आ रहा
था ।
‘‘तलवार’ पहुँचते
ही कोल ने
ले. कमाण्डर स्नो
को बुलवाया ।
''May I come in, Sir?''
''Yes, Come in''
स्नो भीतर आया । कोल ने इशारे से उसे बैठने के
लिए कहा । स्नो कुर्सी पर बैठ गया ।
‘‘तलाश का
काम कहाँ तक
आया है ? मुझे
कल्प्रिट्स चाहिए ।’’
‘‘सर,
30
नवम्बर को रात
को ड्यूटी पर तैनात सैनिकों
के बयान लेने का
काम चल रहा
है ।’’
‘‘सिर्फ बयान
लेने से क्या
होगा ? ये लोग
ऐसे थोड़े स्वीकार
कर लेंगे । इन ब्लडी
इंडियन्स को तो
डंडा ही दिखाना
चाहिए । मेरा ख़याल
है कि तुम उनसे बहुत नरमाई से पेश आ रहे हो । चौदहवाँ रत्न
दिखाए बगैर वे मानेंगे नहीं । कोई सुराग
भी नहीं मिलने
देंगे ।’’ कोल उतावला
हो रहा था ।
“नहीं, सर, इस
तरह चरम सीमा
पर पहुँचना ठीक
नहीं । पहले ही सैनिक विभिन्न कारणों से बेचैन हैं । उस पर
जानकारी हासिल करने के लिए यदि एक भी
सैनिक के साथ
मारपीट की गई
तो सारे सैनिकों
में खलबली मच
जाएगी और हालात एकदम
दूसरी ही दिशा
में मुड़ जाएँगे।’’
कोल
को स्नो की
यह राय सही
लग रही थी
मगर वह इन
क्रान्तिकारी सैनिकों को पकड़ने
के लिए बेताब
हो रहा था ।
रॉटरे ने उसे
बुलाकर चेतावनी दी इससे
वह और भी
व्यग्र हो गया
था ।
‘‘मैं
कोई वजह नहीं सुनना चहता । पन्द्रह दिनों के अन्दर अपराधियों को मेरे सामने
पेश करो ।’’
‘‘मेरी कोशिश
जारी है और, मेरे
ख़याल से, मैं
उचित मार्ग पर हूँ
। मेरा ऐसा विश्वास
है कि अपराधियों
को हम इसी
मार्ग से पकड़
सकेंगे ।’’ स्नो ने कहा ।
‘‘कोई भी
मार्ग पकड़ो;
मगर पन्द्रह दिनों
में कल्प्रिट्स को
मेरे सामने खड़ा करो ।’’ कोल
ने निर्णायक सुर
में कहा । उसके
क्रोध का पारा
नीचे आ गया था
।
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