गुरुवार, 22 मार्च 2018

Vadvanal - 22




दोपहर ग्यारह बजे रॉटरे ने गॉडफ्रे का एक सन्देश रेडियो पर प्रसारित किया:
‘‘कल मैंने तुमसे कहा था कि परिस्थिति सामान्य करने के लिए सरकार के पास प्रचुर सैनिक बल उपलब्ध है। His Excellency Commander in Chief लार्ड एचिनलेक ने दक्षिण विभाग के ऑफ़िसर कमांडिंग ले. जनरल लॉकहर्ट के हाथों में सारे सूत्र सौंप दिये हैं। आज जिस गड़बड़ी की परिस्थिति का निर्माण हो गया है उसे सामान्य करने के लिए उनकी नियुक्ति की गई है। आज जो परिस्थिति है उसे समाप्त करने के लिए सरकार के पास पर्याप्त सैन्यबल है यह सिद्ध करने के लिए जनरल लॉकहर्ट ने रॉयल एअर फोर्स के हवाई जहाज़ों को बन्दर विभाग में उड़ानें भरने का हुक्म दिया है। ये हवाई जहाज़ जहाजों पर चक्कर नहीं लगाएँगे और न ही कोई आक्रमण करेंगे। मगर यदि जहाज़ों अथवा नाविक तलों ने इन हवाई जहाज़ों के ख़िलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की तो फिर वे आगापीछा नहीं देखेंगे।
‘‘तुमने यदि मेरी चेतावनी के फलस्वरूप बिना शर्त आत्मसमर्पण करने का निर्णय ले लिया हो तो अपनेअपने जहाज़ों पर काला अथवा नीला झण्डा फहराओ। जहाज़ों के सारे सैनिक मुम्बई की ओर मुँह करके खड़े होंगे और अगली सूचना की राह देखेंगे।’’



कांग्रेस और लीग के नेता विद्रोही सैनिकों से दूर हट गए हैं इसका यकीन हो जाने पर गॉडफ्रे ने नौसैनिकों के चारों ओर पाश कसना आरम्भ कर दिया। आज रेडियो से प्रसारित सन्देश इसी व्यूह रचना का एक भाग था। गॉडफ्रे ने अब सिर्फ़ धमकी ही नहीं दी थी,  बल्कि अन्तिम चेतावनी भी दे दी थी और ज़रूरत पड़ने पर उसने नौदल को नेस्तनाबूद करने की तैयारी कर ली थी।
गॉडफ्रे की अन्तिम चेतावनी को नागरिकों ने सुना और वे बेकाबू हो गए। दोपहर के दो बजे से दमन की कार्रवाई तेज़ हो गई थी। अश्रुगैस,  लाठीचार्ज, गोलीबारी चल ही रही थी। नदी में जिस तरह बाढ़ आती है,  उसी तरह लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। लोगों ने जगहजगह बैरिकेड्स लगा दिए, छोटेबड़े पत्थर इकट्ठे कर लिये और रास्तों पर नारे लगाने लगे।
जॉन स्मिथ नामक कस्टम्स इंस्पेक्टर ने उस रात को अपनी डायरी में लिखा: ‘‘मुम्बई के परेल में मज़दूर बस्ती के सुपारीबाग रास्ते पर मैं जा रहा था। दोपहर के चार बजे थे। एल्फिन्स्टन रोड के नुक्कड़ पर काफ़ी लोग जमा थे। उसे भीड़ नहीं कह सकते, मगर वह लोगों का झुण्ड था। उस झुण्ड में किसी के भी पास हथियार तो क्या लाठी या पत्थर तक नहीं थे। कम्युनिस्ट पार्टी के आदेशानुसार वे नि:शस्त्र थे। इतने में बगैर किसी पूर्व सूचना के अचानक सशस्त्र गोरे सैनिकों से भरी एक लॉरी एल्फिन्स्टन रोड़ से आई। इन सैनिकों के हाथों में रायफ़ल्स और ब्रेनगन्स थीं। सैनिकों से भरी उस लॉरी को देखते ही रास्ते के सभी लोग,  मैं भी उनमें था,  घबराकर अपनेअपने घर की ओर भागने लगे। ब्रिटिश सैनिकों ने एक पल की भी देरी किए बिना लोगों की दिशा में फ़ायरिंग शुरू कर दी। इस फ़ायरिंग में बीस लोग घायल हो गए और चार लोगों की मृत्यु हो गई। इसके पीछे क्या कारण था?
‘‘मज़दूर संगठनों ने नौसैनिकों को समर्थन देने के लिए हड़ताल की अपील की थी। हड़ताल शतप्रतिशत कामयाब हो गई थी। सभी स्तरों के मज़दूरों ने हड़ताल में हिस्सा लिया था।
‘‘किसी वरिष्ठ अधिकारी को इस पर गुस्सा आ गया और उसने शायद इन्हें बढ़िया सबक सिखाने की ठान ली होगी। गश्ती ब्रिटिश सैनिक युद्ध जैसी तैयारी से आए थे। ट्रकों और लॉरियों में घूम रहे सैनिक भीड़भाड़ वाले ठिकानों पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ बरसा रहे थे। इससे पहले कि कोई उन पर फेंकने के लिए पत्थर उठाता, वे शीघ्रता से निकल जाते। घायलों को ले जाने के लिए एम्बुलेन्स भी उपलब्ध नहीं थी । लोग जैसे भी बनें, घायलों को निकट के अस्पताल में ले जा रहे थे।
‘‘मैंने डिलाइल रास्ते पर देखा,  गोरे सैनिक चाल में घुस रहे थे। अपने अपने घरों में शान्त बैठे हुए, अपने दैनंदिन कामों में व्यस्त लोगों पर गोलियाँ चला रहे थे।  इस कत्लेआम में चार लोगों की मृत्यु हो गई और सोलह ज़ख़्मी हो गए।
‘‘परेल के के.ई.एम.   हॉस्पिटल में इस दंगल में ज़ख़्मी पचास लोगों की मृत्य हो गई। इस भाग में जो छह सौ  लोग ज़ख़्मी हुए थे उसमें से दो सौ व्यक्ति यहाँ दाखिल हुए थे।
‘‘कई अख़बारों में गैर ज़िम्मेदाराना विद्रोह के बारे में लिखा,   मगर यह नहीं बताया कि विद्रोह में शामिल कैसल बैरेक्सके नौसैनिकों को ब्रिटिश पलटनों ने घेर लिया था, नौसैनिकों का खाना पीना बन्द करवा दिया था,  नौसैनिकों ने जब पानी लाने के लिए बाहर निकलने की कोशिश की तो वरिष्ठ अधिकारियों ने फ़ायरिंग का हुक्म दे दिया था।
‘‘वे भीड़ के हिंसक बर्ताव और गुण्डागर्दी के बारे में लिखेंगे,  मगर यह न बताएँगे कि अनुशासन से जाने वाले जुलूस के लोगों को तेज़ी से आ रहे ट्रक ने टक्कर मारी थी,  तभी भीड़ ने पत्थरबाजी की थी।
‘‘जहाजों पर एक ही रस्सी पर तथा जुलूस में सबसे आगे फ़हराते कांग्रेस के तिरंगे, लीग के हरे चाँदतारे वाले और कम्युनिस्टों के लाल झण्डों का एक ही सन्देश था - एक हो जाओ।
‘‘हम एक घर के दरवाज़े के पास छुपकर ख़ुद को बचाने की कोशिश कर रहे थे। गोलियों की बौछार जारी थी।     एक हिन्दुस्तानी युवक ने मुझसे कहा,   ‘‘देखा, ब्रिटिशों का समाजवाद किस तरह अमल में लाया जा रहा है?’’  मुझे अपनी लेबर पार्टी की सरकार के सम्मान की चिन्ता थी। इण्डोनेशिया छोड़ने के बाद सिर्फ़ चौबीस घण्टों में यह सरकार अपना समर्थन खो बैठी थी।
‘‘पुलिस इस काण्ड में पीछे ही थी। मुझे कोई भी हिन्दुस्तानी सैनिक रास्ते पर दिखा ही नहीं। मुझे बाद में बताया गया,  हिन्दुस्तानी सैनिकों में व्याप्त असन्तोष के बढ़ने से ब्रिटिश सरकार ने यही उचित समझा कि हिन्दुस्तानी सैनिकों को बाहर ही न निकलने दिया जाए।
‘‘विद्रोह और लोगों के समर्थन को दबाने आए ब्रिटिश सैनिक नियमित सैनिक अथवा सुरक्षा सैनिक नहीं थे, बल्कि सख़्ती से सेना में भर्ती किए गए सैनिक या स्वयंसेवक थे। सैनिकों के यूनिफॉर्म में ये इंग्लैंड के सामान्य मज़दूर थे। उन्हें मामूलीसा सैनिक प्रशिक्षण दिया गया था।
‘‘सशस्त्र ब्रिटिश सैनिक रास्तों पर पागल कुत्तों की तरह घूम रहे थे। किसी भी नागरिक को रास्ते पर देखते ही बन्दूकें गरजने लगतीं । दोचार चीखें सुनाई देतीं और फिर श्मशान जैसी ख़ामोशी छा जाती।‘’




गॉडफ्रे की धमकी सुनते ही सैनिक तिलमिला उठे। कुछ लोग गुस्से से लाल हो गए। ‘‘ये गॉडफ्रे,  साला, अपने आप को समझता क्या है?’’ अनेकों ने यह सवाल पूछा। गॉडफ्रे की धमकी मानो उनकी मर्दानगी को ललकार रही थी। अनेक लोग इस ललकार का करारा जवाब देना चाहते थे।
‘‘हम इस तरह हिजड़ों की तरह कब तक चुप बैठे रहेंगे?’’
‘‘सेंट्रल स्ट्राइक कमेटी तो हमने ही चुनी है। उसकी आज्ञाओं का पालन अब तक हम करते आए हैं। यदि गॉडफ्रे हथियार उठाने वाला है,  हमें नेस्तनाबूद करने वाला है तो हम चुप क्यों रहें?’’
गॉडफ्रे के हवाई जहाज़ ढाई बजे आने वाले हैं ना,  तो इससे पहले ही हम जहाज़ों की तोपें क्यों न दागें?
हर नाविक तल के और जहाज़ के सैनिक बेचैनी से सवाल पूछ रहे थे। सेंट्रल कमेटी के पास आ रहे सन्देशों की संख्या बढ़ती जा रही थी।
‘‘बिना शर्त आत्मसमर्पण हमें मंज़ूर नहीं। हम बलिदान के लिए तैयार हैं।’’ ‘कैसल बैरेक्सने सूचित किया था।
‘‘हमला कब करना है?  तोपें तैयार हैं। पंजाब   ने पूछा था।
‘‘सैनिक बेचैन: नियन्त्रण मुश्किल। अगला कदम क्या... ?’’  फोर्ट बैरेक्स  पूछ रहा था।
सेंट्रल कमेटी के सदस्य गॉडफ्रे की यह अन्तिम निर्णायक चेतावनी सुनकर सुन्न हो गए थे। गॉडफ्रे इतनी जल्दी अपनी धमकी को सही कर दिखाएगा ऐसा उन्होंने सोचा न था। उनकी यह उम्मीद कि सामान्य जनता का आज का समर्थन देखकर गॉडफ्रे हक्काबक्का रह जाएगा,  सैनिकों का घेरा उठवा देगा और बातचीत के लिए तैयार हो जाएगा धूल में मिल गई थी। सुन्न पड़ गए सेंट्रल कमेटी के सदस्यों ने कुछ ही देर में स्वयं को सँभाला। घड़ी ने बारह घण्टे बजाए। अभी अढ़ाई घण्टे हैं। कोई न कोई निर्णय तो लेना पड़ेगा,’  खान ने सोचा और कमेटी के सारे सदस्यों को तलवार के रिक्रिएशन हॉल में बुलाया।
‘‘दोस्तो!’’  खान ने शुरुआत की। खान की आवाज़ शान्त थी, ‘‘आज सुबह गॉडफ्रे ने हमें नेस्तनाबूद करने की निर्णायक चेतावनी दी है। इससे पता चलता है कि पिछले बारह घण्टों में ब्रिटिशों ने पर्याप्त सैन्यबल इकट्ठा करके नौसेना को नष्ट करने की पूरी तैयारी कर ली है। अब तक हम अनेक बार नेताओं से सम्पर्क स्थापित कर चुके हैं।  उनकी एक ही सलाह है,  बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दो। अंग्रेज़ों की ताकत को देखते हुए उनसे टक्कर लेना वैसा ही है जैसा पतंगे का लौ से टकराना। ऐसी हालत में हमें क्या निर्णय लेना है यही तय करने के लिए हम यहाँ एकत्रित हुए हैं। हमारे सामने दो पर्याय हैं: पहला,   अंग्रेज़ों को उन्हीं की ज़ुबान में जवाब दिया जाए और दूसरा,  बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दें।‘’ खान की बात पूरी होने से पहले ही तीनचार लोग चिल्लाए:
‘‘अंग्रेज़ों को उन्हीं की ज़ुबान में जवाब दिया जाए।’’
‘‘दोस्तो! मेरी राय साफ है - अब पीछे नहीं हटना है।’’  मदन अपनी राय दे रहा था।
‘‘इस पार या उस पार! पिछले पाँच दिनों से हमने जिस तरह एकजुट होकर संघर्ष  किया  है,  स्वतन्त्रता की आस में जो कुछ भी सहा है वह सब मिट्टी में मिल जाएगा। नौसैनिकों ने जिस विश्वास से हमारा साथ दिया,  वह विश्वास यदि टूट गया तो नौसैनिक फिर कभी भी अपने ऊपर हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ एक नहीं होंगे। उनका जाग उठा आत्मसम्मान,  स्वतन्त्रता के प्रति प्रेम जलकर खाक हो जाएगा। हमें समर्थन देने के लिए आज जो हज़ारों नागरिक रास्ते पर उतर आए हैं, वे हमें बुज़दिल कहेंगे,  फिर कभी हम पर विश्वास नहीं करेंगे। इसलिए मेरा विचार है कि अब हमारा एक ही निर्धार हो - जीतेंगे या मरेंगे!’’
‘‘हम सैनिक हैं। लड़तेलड़ते सीने पर गोलियाँ झेलेंगे मगर अपमान का जीवन नहीं जियेंगे।  अब बन्दूकों की गोलियाँ और तोपों की मार - यही हमारा जवाब है। ब्रिटिशों के हवाई जहाज़ों के आकाश में उड़ने से पहले ही हमारी तोप गड़गड़ाने दो। गुलामी में जीने के बदले स्वतन्त्रता के लिए मौत को गले लगाएँगे।’’ चट्टोपाध्याय ज़ोरज़ोर से कह रहा था और गुस्से से थरथरा रहा था।
सभा में थोड़ी गड़बड़ होने लगी। हर कोई अपनी भावनाएँ व्यक्त करने के लिए अधीर था। दोतीन लोग एक साथ बोलने लगे।
‘‘दोस्तो!  कृपया शान्त रहें।’’  खान विनती कर रहा था,  समझा रहा था,  ‘‘आपकी भावनाएँ मैं समझ रहा हूँ। मगर याद रखिए,  हम सैनिक हैं। हमें अनुशासित रहना ही होगा,  धीरज खोने से कुछ नहीं होगा। यदि यह प्रश्न हम तीसचालीस व्यक्तियों से ही सम्बन्धित होता तो हम फटाफट निर्णय ले सकते थे। मगर अब यह प्रश्न केवल मुम्बई के नौसैनिकों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि कलकत्ता,  मद्रास,  कराची,  जामनगर आदि विभिन्न नाविक तलों के सैनिक हमारे साथ हैं,  जहाज़ों के सैनिक हमारे साथ हैं और अब तो मुम्बई और कराची के नागरिक भी हमारे समर्थन में रास्ते पर उतर आए हैं। हमारे निर्णय का प्रभाव उन पर भी पड़ेगा यह न भूलें। याद रखिये,  हमारा एक भी ग़लत निर्णय हज़ारों की जान के लिए ख़तरा बन सकता है। यह सरकार नौदल को नष्ट करतेकरते पूरे शहर को भी नेस्तनाबूद करने से नहीं हिचकिचाएगी । हमें सभी पहलुओं पर विचार करके शान्ति से निर्णय लेना चाहिए।’’
‘‘हम एक कोशिश और कर लेते हैं। गॉडफ्रे से मिलें,  सरदार पटेल से बात करें। यदि इससे कोई मार्ग निकल आता है तो ठीक ही है, नहीं तो सारे जहाज़ों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा करके बहुमत से निर्णय लेंगे।’’  गुरु ने प्रस्ताव रखा।
गुरु के इस प्रस्ताव पर थोड़ी देर चर्चा हुई और एक राय से निर्णय लिया गया कि रात को नौ बजे तक इस दिशा में प्रयत्न किया जाए। रात को नौ बजे सभी प्रतिनिधियों की मीटिंग बुलाकर निर्णय लिया जाए।
खान,  गुरु,  दत्त और मदन गॉडफ्रे और सरदार पटेल से मिलने के लिए निकले।



‘‘सरदार पटेल की अपील देखी?’’  गुरुचरण ने यादव से पूछा।
‘‘हाँ, देखी और पढ़ी भी। संघर्ष में तटस्थता का बेहतरीन उदाहरण है।’’ यादव ने जवाब दिया,  ‘‘और यह अपील सरकार के पिट्ठू टाइम्स ऑफ इण्डिया ने लब्ज़ दर लब्ज़ प्रकाशित की है। कांग्रेस के नेताओं के वक्तव्यों को पूरी तरह अनदेखा करने वाले अख़बार ने यह किया है। इससे समझ में आता है कि पटेल की अपील कितनी खुशामदी है सरकार की।’’
‘‘अरे,  सरदार को तो हमारा विद्रोह स्वतन्त्रता संग्राम का विद्रोह ही प्रतीत नहीं होता,  इसे वह दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं। सरदार यह तो कह ही नहीं रहे हैं कि हमारा संघर्ष अहिंसक मार्ग से चल रहा था,  सरकार ने ही पहली शरारत की। हमारी माँगें क्या हैं इसका उल्लेख उन्होंने किया ही नहीं है।’’   गुरुचरण ने कहा।
‘‘उन्हें शायद यह डर होगा कि यह सब बताने से हमें जनता का असीम समर्थन मिलेगा और हमारा विद्रोह कामयाब होगा।’’ यादव की आवाज में चिढ़ थी।




गॉडफ्रे और रॉटरे खुश थे। इंग्लैंड से जो हवाई जहाज़ मँगवाए थे वे हिन्दुस्तान पहुँच गए थे। HMIS ग्लास्गो एकदो दिनों में पहुँचने वाला था। गॉडफ्रे द्वारा दी गई अन्तिम निर्णायक चेतावनी के बाद सैनिक शान्त थे। इसका मतलब उन्होंने यह लगाया कि सैनिक डर गए हैं।
‘‘रॉटरे, पुलिस कमिश्नर को फ़ोन करके शहर में सब जगह कर्फ्यू लगाने के लिए तैयार रहने को कहो।’’ गॉडफ्रे ने कहा।
‘‘सर,   अब इसकी क्या ज़रूरत है?’’   रॉटरे ने पूछा।
''Let us hope for the best and be prepared for the worst. मान लो,  नौसैनिकों ने कुछ गड़बड़ की और हमें हवाई हमला करना पड़ा तो नागरिक सैनिकों की ओर से खड़े होंगे। संगीनों के ज़ोर पर उन्हें घरों में बन्द रखने के लिए कर्फ्यू लगाना होगा।’’
‘‘एक बार ये सब ख़त्म हो जाए तो जान छूटे!’’  रॉटरे के चेहरे पर तनाव के लक्षण स्पष्ट थे।
‘‘ज़्यादा से ज़्यादा अठारह घण्टे, अठारह घण्टों में यदि स्थिति सामान्य न हो जाए तो कहना।’’ अनेक तूफ़ानों का मुकाबला कर चुके गॉडफ्रे ने हँसते हुए कहा,  ‘‘मेरे अनुमान से वे अभी,  कुछ ही देर में बातचीत के लिए आएँगे। यह सब हम पहले ही की तरह करेंगे। मगर मुझे ऐसा लग रहा है कि ब्रिटिशों के हिन्दुस्तान छोड़ने का वक्त अब आ गया है,’’ गॉडफ्रे ने गम्भीरता से कहा।
‘‘क्यों?  क्या महात्मा गाँधी कोई आन्दोलन छेड़ने वाले हैं?’’ रॉटरे ने पूछा।
‘‘सरकार महात्माजी के आन्दोलन को घास भी नहीं डालेगी। मगर अब साम्राज्य की नींव ही चरमरा रही है। जिस सेना के और पुलिस के बल पर हम अपनी हुकूमत टिकाए हुए थे वे ही सैनिक और पुलिस अब हमारे ख़िलाफ़ जा रहे हैं। आज यदि सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर भी दिया,  तो भी वे चोट खाए नाग की तरह हैं। फ़न निकाल कर कब दंश करेंगे इसका कोई भरोसा नहीं।
इस उपमहाद्वीप में अन्य उपनिवेशों से सेना लाकर हुकूमत टिकाना कठिन है,’’  गॉडफ्रे ने स्पष्ट किया।
वे काफ़ी देर तक अगले दिन के आत्मसमर्पण की योजना के बारे में बात कर रहे थे। पहरेदार सैनिक ने आकर सूचना दी कि सेन्ट्रल कमेटी के कुछ सदस्य मिलने आए हैं।
गॉडफ्रे ने उन्हें अन्दर भेजने को कहा।
खान,  मदन,  दत्त और गुरु अन्दर आए। उनके चेहरे उतरे हुए थे।
''What is your decision?''  गॉडफ्रे की आवा कठोर थी। उसने सैनिकों को बैठने के लिए भी नहीं कहा।
‘‘अगर आप कैसल बैरेक्स और अन्य नाविक तलों का घेरा उठा दें तो...’’
खान को बीच ही में रोककर गॉडफ्रे गरजा,  ''Nothing doing. हमारा निर्णय अटल है। बिना शर्त आत्मसमर्पण। कब कर रहे हो आत्मसमर्पण यह बताओ।’’  गॉडफ्रे का चेहरा निष्ठुर हो गया।
खान, दत्त, गुरु और मदन भले ही ऊपर से शान्त प्रतीत हो रहे थे,  मगर मन में बवंडर उठ रहा था। वे नि:शब्द हो गए थे।
''You may go now!'' उन चारों को ख़ामोश देखकर गॉडफ्रे ने उन्हें लगभग बाहर ही निकाल दिया।
गॉडफ्रे के बर्ताव से वे चिढ़ गए थे। ‘‘समझता क्या है अपने आप को?  कम से कम बैठने को भी नहीं कहा! दरवाज़े के कुत्ते को भी इससे ज़्यादा इज्ज़त दी जाती है।’’  मदन से अपमान बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
‘‘अगर कांग्रेस और लीग ने समर्थन दिया होता तो ऐसी दयनीय हालत न हुई होती ।’’   दत्त शान्त था।
‘‘क्या हमें एक बार फिर सरदार पटेल से मिलना चाहिए?’’  खान ने पूछा।
‘‘मैं नहीं समझता कि इससे कोई लाभ होगा।’’  दत्त ने कहा।
‘‘मिलने में क्या हर्ज है, नहीं तो...’’ मदन बोला।
‘‘ठीक है, देख लेते हैं मिलकर,’’  गुरु ने कहा ।
वे चारों फिर एक बार सरदार पटेल से प्रार्थना करने चले।



ठीक ढाई बजे कोस्टल बैटरी के सामने क्षितिज रेखा पर चार बिन्दु दिखाई दिये। ये बिन्दु धीरेधीरे बड़े होने लगे और नौसैनिक समझ गए कि गॉडफ्रे ने जिनकी धमकी दी थी, ये वे ही हवाई जहाज़ हैं। हवाई जहाज़ तेज़ी से आगे बढ़ रहे थे। पंजाब पर सुजान चीखते हुए अपनी एन्टी एअरक्राफ्ट गन की ओर दौड़ा, ‘‘अगर हम बरबाद हो रहे हैं तो तुम्हें भी नेस्तनाबूद कर देंगे।’’
‘‘सुजान, बेवकूफी न कर!’’  चैटर्जी उसके पीछे दौड़ा और उसे गनर्स सीट से खींचते हुए चिल्लाया, ‘‘तेरी बेवकूफ़ी से पूरी नौसेना ख़त्म हो जाएगी!’’ उसने विरोध करने वाले सुजान को दो थप्पड़ मारे। लड़खड़ाते सुजान ने ख़ुद को सँभाला और फूटफूटकर रोने लगा।
सुरक्षित ऊँचाई पर ये हवाई जहाज़ उड़ रहे थे और हिन्दुस्तानी जहाज़ों की तोपें शरणागत की भाँति सिर झुकाए खड़ी थीं।



रास्ते पर जगहजगह सैनिक खड़े थे। खान,  दत्त, गुरु और मदन यूनिफॉर्म में थे। उनके पास परिचयपत्र थे,  फिर भी उन्हें हर नाके पर रोका जा रहा था, उनकी छानबीन की जा रही थी,  सवाल पूछे जा रहे थे,  वरिष्ठ अधिकारियों के सामने खड़ा किया जा रहा था। सारी औपचारिकताएँ पूरी होने के बाद ही उन्हें आगे जाने दिया जा रहा था।
‘‘अपने ही घर में हम चोर हो गए हैं!’’  गुरु ने चिढ़कर कहा। औरों ने गहरी साँस छोड़ी।
रास्ते में एकदो जगहों पर जले हुए वाहनों के ढाँचों से धुआँ उठ रहा था,  जगहजगह खून बिखरा था,  जम गए खून पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं।
‘‘ब्रिटिश सैनिकों के सामने आज खुद क्रूरता ने भी गर्दन झुका दी होगी।’’ दत्त का स्वर भावविह्वल था।
‘‘इण्डोनेशिया में भी तो उन्होंने यही किया था! ब्रिटिश साम्राज्य की नींव ही गुलामों के रक्तमांस की है।’’   गुरु ने जवाब दिया।
‘‘सरदार से मिलकर हम अपना समय ही बरबाद करने वाले हैं।’’   दत्त ने कहा।
‘‘अन्तिम परिणाम चाहे जो हो,  हम  अन्तिम घड़ी तक कोशिश करेंगे। सैनिकों का घेरा उठाने और सम्मानपूर्वक बातचीत के लिए हर सम्भव पत्थर पलटकर देखेंगे। कहीं न कहीं आधार मिलेगा।’’  खान की आशाएँ धूमिल नहीं हुई थीं।



सरदार पटेल से चर्चा करने के बाद जब वे तलवार पर वापस लौटे तो रात के साढ़े आठ बज चुके थे। शहर में कर्फ्यू का ऐलान हो चुका था। मदन ने सभी जहाज़ों और नाविक तलों को सन्देश भेजकर प्रतिनिधियों को बुला लिया था। सन्देश मिलते ही ठेठ ठाणे से प्रतिनिधि तलवार की ओर चल पड़े। प्रतिनिधियों के पास परिचयपत्र होने के बावजूद कइयों को बीच में रोका गया। कुछ लोगों को आगे ही नहीं जाने दिया, कुछ को घण्टाडेढ़ घण्टा रोककर रखा गया। जब तक सारे प्रतिनिधि तलवार पर पहुँचे रात के बारह बज चुके थे।
हवा में अब काफ़ी ठण्डक हो गई थी। नौसैनिक भविष्य की चिन्ता के दबाव में थे। दोपहर को दो बजे तक जिन जहाज़ों पर उत्साह और ज़िद मचल रहे थे,  वहाँ अब नैराश्य का वातावरण था। रास्ते से ब्रिटिश सैनिकों के जूतों की अनुशासित खटखट के साथ बीचबीच में तेज़ी से गुज़रने वाले सैनिकट्रकों की आवाज़ मिल जाती थी। सरकार ने अगले दिन की कार्रवाई की शुरुआत कर दी थी।
चार दिनों से जागे हुए जहाज़ों और नाविक तलों के सैनिक अभी भी जाग रहे थे। हरेक के मन में एक ही जिज्ञासा थी,  क्या सेन्ट्रल कमेटी हथियार डालने को कहेगी या संघर्ष जारी रखेगी?  जहाज़ों और नाविक तलों पर एक डरावनी ख़ामोशी छाई थी और इस ख़ामोशी के बोझ तले हर कोई नि:शब्द हो गया था।
तलवार पर सेन्ट्रल कमेटी की बैठक में छत्तीस प्रतिनिधि उपस्थिति थे। बैठक से पहले सबने गम्भीरता से सारे जहाँ से अच्छा,  हिन्दोस्ताँ हमारा  गीत गाया।
‘‘दोस्तों, आज हम एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए जमा हुए हैं।’’  खान की आवाज़ में जोश नहीं था। खान ने सुबह से हुई घटनाओं की रिपोर्ट पेश की:
‘‘आज शाम को हम सरदार पटेल से मिले। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की ओर से एक सन्देश दिया है। मैं पढ़कर सुनाता हूँ।’’ खान ने सन्देश पढ़ना प्रारम्भ किया:
‘‘वर्तमान में निर्मित दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति में कांग्रेस रॉयल इंडियन नेवी के सैनिकों को यह सलाह देती है कि जैसा कहा गया है उस तरह से वे हथियार डालकर आत्मसमर्पण की औपचारिकताएँ पूरी करें। नौसैनिकों की बलि नहीं चढ़ेगी और उनकी न्यायोचित माँगें सरकार जल्दी से जल्दी मान्य करे इसके लिए कांग्रेस अपनी ओर से पूरी कोशिश करेगी।
‘‘सारे शहर में भयानक तनाव है,  जानमाल का भयंकर नुकसान हुआ है। नौसैनिक और सरकार दोनों पर ही दबाव है।
‘‘सैनिकों के उद्देश्य और उनके धैर्य की कांग्रेस प्रशंसा करती है। वर्तमान स्थिति में कांग्रेस की उनके प्रति सहानुभूति होते हुए भी कांग्रेस उन्हें यह सलाह देती है कि इस तनाव को समाप्त करें। यह सभी के हित में है।’’

खान ने सन्देश पढ़कर सुनाया। सभी सुन्न हो गए। पटेल के सन्देश में कोई भी नयी बात नहीं थी ।
‘‘दोस्तों! सरदार पटेल की राय में यदि हम अपना संघर्ष जारी रखते हैं तो यह शीघ्र ही आने वाली स्वतन्त्रता के लिए हानिकारक होगा। हम रॉटरे और गॉडफ्रे से मिले थे। उन्होंने तो सीधेसीधे धमकी ही दी है: चुपचाप आत्मसमर्पण करो,   वरना   नेस्तनाबूद कर देंगे। और अपनी धमकी सच करने की तैयारी भी उन्होंने शुरू कर दी है। शहर में आज कर्फ्यू लगा दिया गया है। 'Shoot at sight' ऑर्डर्स दे दिए गए हैं। हम लीग के नेताओं से भी मिले। वे जिन्ना से सम्पर्क करके सलाह देंगे।’’  खान परिस्थिति की कल्पना दे रहा था।
‘‘दोस्तों! हमारे पैरों तले ज़मीन पूरी तरह खिसक गई है। जिनकी तरफ़ हम बड़ी आशा से देख रहे थे,  उन्होंने ही अपने हाथ ऊपर उठा दिये हैं। हम आज फाँसी के तख्ते पर खड़े हैं और ये राजनीतिक पक्ष और सरकार हमारे पैरों के नीचे की पटरी खींचने की तैयारी में है। मेरा ख़याल है...’’  खान पलभर को रुका,  उसका गला भर आया था।
''Come on, do not lose your heart Khan, speak out.'' बगल में बैठा मदन पुटपुटाया।
‘‘दोस्तों! मेरा ख़याल है कि हम यह संघर्ष...’’ खान की आँखें डबडबा गई थीं। उसे शब्द नहीं सूझ रहे थे। पलभर को ऐसा लगा जैसे शक्तिपात हो गया हो,  धरती फट जाए और उसमें समा जाऊँ तो अच्छा होगा। पूरा हॉल नि:शब्द हो गया था। अनेकों के चेहरे पर उत्सुकता थी,  कुछ लोगों को परिस्थिति का धुँधलासा एहसास हो गया था। ''Come on Speak out, man.'' दत्त  की  आवाज़ सामने बैठे प्रतिनिधियों ने साफ़साफ़ सुनी।
‘‘मेरा ख़याल है कि हम यह संघर्ष यहीं रोक दें और...’’ खान शब्द समेट रहा था। उसकी आँखें डबडबाई हुई थीं,  शब्द सूझ नहीं रहे थे। कब्रिस्तान सी ख़ामोशी छाई थी। खान ने दत्त की ओर देखा,  धीरज बटोरते हुए वाक्य पूरा किया,  ‘‘बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दें!’’
ऐसा लगा मानो सब पर बिजली गिर गई है। सभी स्तब्ध रह गए। पलभर को निपट ख़ामोशी छाई रही। फ़िर, जैसे शान्त वातावरण में एकदम मूसलाधार बारिश होने लगे, वैसा ही हुआ। सभी लोग एकदम ही अपनीअपनी भावनाएँ व्यक्त करने लगे। कुछ लोग अपना आपा खोकर चीखते हुए आगे की ओर बढ़ने लगे।
‘‘राष्ट्रीय नेताओं की परवाह क्यों करें?  कराची, कोचीन, विशाखापट्टनम के नाविक तल और सारे जहाज़ हमारे साथ हैं। मुम्बई,  कराची की जनता हमारे साथ है। मुम्बई,  जबलपुर,  दिल्ली आदि स्थानों के तल हमारे साथ हैं। सामान्य जनता हमारी खातिर सड़कों पर उतर आई है,  हमारे लिए खून बहा रही है। ऐसी परिस्थिति में पीछे हटने का मतलब है हमें समर्थन देने वालों के प्रति गद्दारी। ये गद्दारी हम नहीं करेंगे। हम हँसतेहँसते मृत्यु को स्वीकार करेंगे, मगर आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।’’   चट्टोपाध्याय चीखते हुए कह रहा था।
‘‘हम लड़ेंगे,  बिलकुल आखिरी दम तक लड़ेंगे। हमारा साथ देने के लिए भूदल और हवाईदल अवश्य आगे आएँगे। क्या जान के डर से आत्मसमर्पण करके हम अमर हो जाएँगे?  आत्मसमर्पण के बाद की बेशर्म ज़िन्दगी हम नहीं चाहते। हमें वीरगति चाहिए।’’  यादव चिल्ला रहा था।
‘‘अरे,  ये नेता लोग अब थक चुके हैं। इन बूढ़े बैलों में हिम्मत ही नहीं है टक्कर देने की। हम लडेंगे,  हम लड़ेंगे। जनता के साथ मिलकर लड़ेंगे। ब्रिटिश साम्राज्य तो अब जर्जर हो चुका है,  अब ज़रूरत है सिर्फ एक ज़ोरदार धक्के की। वह धक्का हम देंगे और आज़ादी प्राप्त करेंगे।’’
आवाज़ें ऊँची होती जा रही थीं। पता ही नहीं चल रहा था कि कौन क्या कह रहा है। सभी एक साथ बोल रहे थे। कुछ लोग संघर्ष जारी रखने के पक्ष में थे तो कुछ लोगों की यह राय थी कि वे अकेले पड़ गए हैं, अत: संघर्ष यहीं रोक देना चाहिए। आज तक अनुशासित रहने वाले सैनिक अनुशासन भूल गए थे। सभा के सभी नियमों को वे ठुकरा रहे थे और इस हंगामे में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
मदन और खान सिर पकड़कर बैठे थे। उनके मन में तूफ़ान उठ रहा था। मदन स्वयँ भी आत्मसमर्पण के निर्णय के ख़िलाफ़ था।
हमने आगे बढ़कर इन सैनिकों का आत्मसम्मान जागृत किया, उनके मन में सोई पड़ी स्वतन्त्रता की आस को जगाया और आज हम ही उन्हें पीछे घसीट रहे हैं, ’  मदन अपने आप से बड़बड़ा रहा था।
विद्रोह करके जमे रहो। एकाकी संघर्ष के लिए तैयार हो जाओ,  अनेकों का साथ मिलेगा, ’  मन कह रहा था। 
तू इस समिति का एक अंश है। समिति का निर्णय मानना तेरी नैतिक ज़िम्मेदारी है, ’  दूसरा मन चेतावनी दे रहा था।
खान से यह सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। शरीर पर पड़ी भारीभरकम शिला को दूर हटाया जाए उस तरह से अपनी पूरी ताकत इकट्ठी करके खान खड़ा हो गया। उसके मुँह से शब्द नहीं फूट रहे थे,  दिल भर आया था,  गला अवरुद्ध हो गया था। एकदो मिनट तक वह गर्दन झुकाए खड़ा था।
‘‘दोस्तों! कृपया शान्त हो जाइये! आपकी भावनाओं को मैं समझ रहा हूँ।’’ खान की अपील की ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। खान बारबार शान्त रहने की विनती कर रहा था। दोचार मिनट बाद हंगामा कुछ कम हुआ। खान अब तक सँभल चुका था।
‘‘ऐसे हंगामे में हम कोई निर्णय नहीं ले सकते। मेरी भावनाएँ आप जैसी ही तीव्र हैं। मगर भावना के वश होकर लिए गए निर्णय अक्सर गलत साबित होते हैं। हमें वास्तविकता को ध्यान में रखना होगा। मैंने आत्मसमर्पण करने का निर्णय क्यों लिया इस पर विचार कीजिए।’’  बीचबीच में बेचैन सैनिक ज़ोरज़ोर से बोल रहे थे,   नारे लगा रहे थे। गुरु, दत्त, दास और तलवार  के उनके सहयोगी उन्हें शान्त करने की कोशिश कर रहे थे।
‘‘हम सरदार पटेल से मिले। उनके सामने पूरी परिस्थिति रखी और कांग्रेस का समर्थन माँगा। यह समर्थन हम आरम्भ से ही माँगते आ रहे हैं; और पटेल विद्रोह के पहले दिन से जो सलाह हमें देते आ रहे हैं, वही उन्होंने कल भी दी, ‘बिना शर्त आत्मसमर्पण करो।आज उन्होंने वादा किया कि कांग्रेस नौसैनिकों की समस्याएँ सुलझाने की कोशिश करेगी। इसके लिए सेन्ट्रल असेम्बली में स्थगन प्रस्ताव लाएगी।’’
‘‘इससे क्या होगा?’’ कोई चीखा। खान ने फिर एक बार शान्त रहने का आह्वान किया और आगे बोला, ‘‘कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि सैनिकों को उनके इस काम के लिए सज़ा नहीं दी जाएगी।’’
‘‘हमने कोई गलत काम तो किया नहीं है। हमने जो कुछ भी किया वह आज़ादी के लिए किया,  हमें उसका अभिमान है। हमारे इस काम के लिए जो भी दी जाएगी वह सज़ा भुगतने के लिए हम तैयार हैं। इस सज़ा को एक सम्मान पदक के रूप में प्रदर्शित करेंगे।’’   चट्टोपाध्याय शान्त नहीं हुआ था।  ‘‘हमें कांग्रेस  की सहायता की कोई ज़रूरत नहीं है।’’
खान दो मिनट चुप रहा।
‘‘मुस्लिम लीग के चुन्द्रीगर मुझसे मिले थे। उन्होंने भी संघर्ष वापस लेकर आत्मसमर्पण करने की सलाह दी है, ’’ खान समझाने लगा, ‘‘आज मैं रास्ते पर घूम रहा था तो पता है मैंने क्या देखा?  रास्ते पर जगहजगह खून के डबरे, उन पर भिनभिनाती मक्खियाँ, वाहनों के अधजले, सुलगते कंकाल। हमें समर्थन देते हुए अब तक करीब दो सौ नागरिकों की जानें गई हैं और ज़ख़्मियों की संख्या लगभग पन्द्रह सौ तक पहुँच गई है।’’ खान अपने कथन का परिणाम देखने के लिए एक मिनट रुका।
सारे प्रतिनिधि शान्त थे। अनेकों को इस वास्तविकता का ज्ञान नहीं था।
‘‘यह सच है कि लोगों का समर्थन हमें प्राप्त है। हम जब रास्तों से गुज़र रहे थे तो लोग भागभागकर आ रहे थे, हमसे हाथ मिला रहे थे,   हमें शुभकामनाएँ दे रहे थे और कह रहे थे - लड़ते रहो,  हम तुम्हारे साथ हैं। एक ने तो हमसे यह कहने के लिए आतेआते ही हँसतेहँसते अपने सीने पर गोली झेली और तड़पते हुए कहा,  तुम्हारा संघर्ष जारी रखना। मुम्बई के नागरिक कल हमारा साथ देंगे और आगे भी देते रहेंगे। मगर साथ ही सरकार भी गोलियाँ झाड़ेगी और आज के मुकाबले में कहीं ज़्यादा लोग मौत के मुँह में चले जाएँगे,  ज़ख़्मी हो जाएँगे। सरकार सुबह वाले चार बॉम्बर्स भेजकर हमें नेस्तनाबूद कर देगी।
हम यदि तोपों से मार करेंगे तो उनसे केवल हवाई जहाज़ ही नहीं,  बल्कि मुम्बई भी नष्ट हो जाएगी। यह सब करने का हमें क्या अधिकार है?  अपना संघर्ष आगे खींचते हुए निरपराध लोगों की जान से खेलने का हमें क्या अधिकार है?  इसीलिए मेरी यह राय है कि हम संघर्ष रोक दें और आत्मसमर्पण कर दें।’’  खान नीचे बैठ गया। अपने आँसू वह रोक नहीं सका।
‘‘ये,  ऐसा होना नहीं चाहिए था...’’  सिसकियाँ दबाते हुए खान ने मदन से कहा। मदन ने खान के कन्धे पर हाथ रखकर उसे ज़रासा अपने नज़दीक खींचा,  मानो वह खान से कहना चाहता हो, ‘‘हमने अपनी ओर से पूरी कोशिश की... हमारा दुर्भाग्य,  और क्या!’’
खान को मदन के स्पर्श में दोस्ती की गर्माहट महसूस हुई। उसके मज़बूत हाथ की पकड़ मानो उससे कह रही थी,  तू अकेला नहीं है। हम तेरे साथ हैं। खान को ढाढ़स बँधा।
 ‘‘मुझे कुछ कहना है। मैं कहूँगा।’’ प्रतिनिधियों को हाथ से दूर हटाते हुए और आगे जाने के लिए राह बनाते हुए चट्टोपाध्याय चिल्लाया, ‘‘हम संघर्ष क्यों वापस ले रहे हैं?  क्योंकि सरदार पटेल ऐसा कह रहे हैं! कौन है ये पटेल? हमें जो विद्रोह के प्रारम्भ से सलाह दे रहे थे कि बिना शर्त समर्पण करो,  कम्युनिस्ट पार्टी ने लोगों से बन्द और हड़ताल की अपील की थी तब लोगों से बन्द और हड़ताल में शामिल न होने की अपील करने वाले सरदार! आज अंग्रेज़ों ने जो फायरिंग की और जिसमें सैकड़ों जानें गईं उसके लिए सरदार भी सरकार जितने ही ज़िम्मेदार हैं! क्योंकि उनकी अपील ने ही सरकार को फ़ायरिंग करने के लिए नैतिक बल प्रदान किया। बारडोली के सत्याग्रह में जिस तरह ऊँची आवाज़ में सरदार ने पुलिस के अत्याचारों का निषेध किया था क्या उसी क्रोध से उन्होंने कल या आज अंग्रेज़ों द्वारा की गई गोलीबारी की थोड़ीसी भी निन्दा की?  खुद आकर परिस्थिति का मुआयना करना तो दूर की बात है,  उल्टे उन्होंने कांग्रेस के स्वयं सेवकों को पीस-पार्टी  के नाम से भेज दिया। मेरा सवाल है,  जिन्हें हमारे साथ सहानुभूति नहीं, उन पटेल की हम क्यों सुनें?  दोस्तों! सिर्फ एक ही पक्ष से विचार न करो। यदि पटेल के कहने पर हमने आत्मसमर्पण कर दिया तो कल क्या होगा?  ये नीच अंग्रेज़ हममें से हरेक को गिनगिनकर निकालेंगे, हम पर अमानवीय अत्याचार करेंगे,  शायद साम्राज्य द्रोही कहकर हमें गोलियाँ भी मार दें,  या दीर्घ काल तक यातनाएँ सहकर हमें मृत्यु का आलिंगन करना पड़े। दोस्तों! कल जब स्वतन्त्रता का सूरज क्षितिज पर उदित होगा, तब हमारा अन्त हो चुका होगा। मुझे यकीन है कि हममें से हर कोई मौत को गले लगाने के लिए तैयार है जिसने जन्म लिया है उसे एक न एक दिन मरना ही है;  मगर यह मौत कैसी होनी चाहिए?  मृत्यु और मरने वाले के लिए गौरवपूर्ण मृत्य होनी चाहिए। मौत भी वैसी ही शानदार हो,   जैसी ज़िन्दगी थी। जिस उद्देश्य के लिए जिये उसी उद्देश्य के लिए मौत का सामना करें। लड़तेलड़ते मौत को गले लगाएँ।’’
चट्टोपाध्याय भावुक हो गया था। उसे काफ़ी कुछ कहना था,  मगर दत्त ने उसे बीच ही में रोक दिया और खान से बोलने के लिए कहा। खान के हाथ में एक कागज़ था। खान के चेहरे की उदासी कुछ कम हो गई थी। मन का तूफ़ान धीरेधीरे शान्त हो रहा था। खान बोलने के लिए खड़ा हुआ। सैनिकों ने उसके भीतर के परिवर्तन को महसूस किया।
 ‘‘दोस्तों! फ्री प्रेस जर्नल के पास आया हुआ एक सन्देश अभीअभी मुझे मिला है। यह सन्देश जिन्ना ने हमें कलकत्ते से भेजा है।’’  खान ने जिन्ना का सन्देश पढ़ना शुरू किया,   ‘‘मुम्बई,   कराची,   कलकत्ता और हिन्दुस्तान के अन्य बन्दरगाहों पर परिस्थिति गम्भीर हो गई है। अख़बारों में छपी ख़बरों से ज्ञात होता है कि नौसेना के सैनिकों की कुछ न्यायोचित शिकायतें हैं और वे सही हैं। इन शिकायतों का निवारण करवाने के लिए नौसैनिकों ने हड़ताल कर दी है।’’
‘‘अरे, उस जिन्ना से कोई कहे कि हम हड़ताल पर नहीं हैं, हमने विद्रोह कर दिया है, विद्रोह! और यह विद्रोह मुट्ठीभर ज़्यादा अनाज के लिए नहीं है, न ही यह वेतन वृद्धि के लिए है। हमारा विद्रोह सिर्फ स्वतन्त्रता के लिए है।’’  चट्टोपाध्याय    चीखा ।
एक बार फिर हंगामा होने लगा। सैनिक ज़ोरज़ोर से आपस में बातें कर रहे थे, झगड़ रहे थे। दत्त और मदन उन्हें शान्त करने की कोशिश कर रहे थे।
‘‘दोस्तों! हमारे पास समय बहुत कम है और सुबह छह बजे से पहले हमें फ़ैसला कर लेना है, ’’  दत्त तिलमिलाकर कह रहा था। मदन ने खान से आगे पढ़ने को कहा। खान फिर से खड़ा हुआ और जिन्ना का सन्देश पढ़ने लगा। हंगामा धीरेधीरे कम होने लगा।
‘‘मुस्लिम सैनिकों से मैं अपील करता हूँ कि वे यह सब रोकें और परिस्थिति को और बिगड़ने न दें...।’’
सन्देश में निहित इस वाक्य ने आग में घी डालने का काम किया। आज़ाद हिन्द सेना के शाहनवाज़ खान को भेजे गए तार में उन्होंने जिस तरह से जातीयता का आह्वान किया था, वैसा ही नौसैनिकों को भेजे गए सन्देश में भी किया था। आगे बैठे हुए कुछ सैनिकों ने,  जो हंगामे के बीच भी ध्यान देकर सुन रहे थे,  इसे भाँप लिया और उनमें से एक सैनिक उठकर चिल्लाया, ‘‘ये गद्दारी है। ये धर्म के आधार पर सैनिकों में फूट डालने की कोशिश है। आज हमें इसका निषेध करना ही चाहिए! अब मैं समझ रहा हूँ कि खान पीछे हटने के लिए क्यों कह रहा है। उसे मुसलमानों को बचाना है,  क्योंकि वह ख़ुद ...’’
दत्त से यह आरोप बर्दाश्त नहीं हुआ। वह तड़ाक् से उठा। ‘‘मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि हम इतने निचले स्तर पर गिर जाएँगे। आज तक हम जाति, धर्म भूलकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ते रहे और आज एक जातीयवादी नेता द्वारा भेजे गए सन्देश में जाति का ज़िक्र सुनते ही हम अपनी एकता भूल गए। क्या इतनी कमज़ोर थी हमारी एकता? नहीं, दोस्तो! अगर हम एक रहेंगे तभी हमारी स्वतन्त्रता को कोई अर्थ प्राप्त होगा, वरना स्वतन्त्रता पाकर भी हम जातिभेद के जुए में फँसे रहेंगे और हमारी स्वतन्त्रता के कोई मायने ही नहीं रह जाएँगे।‘’  बेचैन दत्त नीचे बैठ गया।
‘‘दोस्तो!’’ खान शान्त था, ‘‘मैं न तो मुसलमान हूँ और न ही हिन्दू । मैं एक हिन्दुस्तानी हूँ। पूरी तरह हिन्दुस्तानी हूँ,  इसीलिए तुम सबका - हिन्दुओं का, मुसलमानों का, सिखों का नेतृत्व मैंने किया और एक सच्चा हिन्दुस्तानी होने के कारण ही तुम लोगों ने मेरा साथ दिया। आज मेरे एक मित्र ने मुझ पर जातीयवाद का आरोप किया, मगर विश्वास रखिए,  मैंने जो निर्णय लिया है,  पूरी तरह से सोचसमझकर ही लिया है,  वह हम सबके हित में है। मैं अपने निर्णय पर अभी भी कायम हूँ। देश के दो प्रमुख राष्ट्रीय पक्षों के नेताओं ने हथियार डालने की अपील की है। ये दोनों पक्ष और उनके नेता हमारी समस्याएँ सुलझाने का आश्वासन दे रहे हैं। इसलिए मैं सुझाव देता हूँ कि बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दें। आप सब इस निर्णय को मान्यता दें ऐसी गुज़ारिश है।’’
खान के शब्दों में विनती थी। खान की बातों के सच ने अनेकों के दिल को छू लिया था। खान की सलाह उनकी समझ में आ गई थी,  मगर अभी भी कुछ लोग संघर्ष जारी रखने के पक्ष में थे ।
‘‘खान के ऊपर जो आरोप लगाया गया, वह भावावेश में किया गया था। हममें से किसी को भी उसकी धर्मनिरपेक्षता पर सन्देह नहीं है। हम में से हरेक का उस पर पूरा विश्वास है। वह एक सच्चा हिन्दुस्तानी है। यह सब सच होते हुए पीछे हटना हमें मंज़ूर नहीं है। संघर्ष जारी रहे।’’
‘‘खान का सुझाव हमें मंज़ूर है। जानमाल की भीषण हानि को टालने का यही एक उपाय है।’’
‘‘हमें अपनेअपने जहाज़ों के सहकारियों से चर्चा करनी होगी। हम इसके बाद ही कोई निर्णय ले सकेंगे।’’
‘‘जहाज़ों पर जाकर चर्चा करने की ज़रूरत नहीं है,  क्योंकि उन्होंने हमें सभी अधिकार दिए हैं। हम यह निर्णय अपने किसी स्वार्थ की ख़ातिर नहीं ले रहे हैं, पूरी तरह विचार करने के बाद सबके हित में यह निर्णय ले रहे हैं।    इसलिए जहाज़ों के सहकारियों के विरोध का सवाल ही पैदा नहीं होता!’’
पिछले चार दिनों से एकजुट होकर लड़ रहे सैनिक आज पीछे हटने के निर्णय के कारण और मन में पैदा हुए धार्मिकता के ज़हरीले पौधे के कारण बँट गए थे। बड़ी देर तक कोई निर्णय हो ही नहीं पा रहा था। कैसल बैरेक्स’, ‘फोर्ट बैरेक्स और डॉकयार्ड के सामने के रास्तों से ब्रिटिश पलटनों की अनुशासनबद्ध परेड की आवाजें आ रही थीं। बीच में ही टैंक्स की खड़खड़ाहट शान्ति को भंग कर रही थी। कर्फ्यू ऑर्डर की परवाह न करते हुए रास्तों पर जमा हुए लोगों पर की जा रही गोलीबारी की आवाज़ें भी बीचबीच में सुनाई दे रही थीं। सैनिकों ने यदि आत्मसमर्पण नहीं किया तो 23 तारीख को कठोर कार्रवाई करने का निर्णय गॉडफ्रे,  लॉकहर्ट और अन्य अंग्रेज़ अधिकारियों ने ले लिया था,  और प्राप्त समयावधि का वे पूरापूरा उपयोग कर रहे थे। चर्चा और वादविवाद में व्यस्त सैनिकों को इस वास्तविकता का ज़रा भी गुमान नहीं था।
‘‘दोस्तों! ज़रा कान देकर सुनो और बाहर जाकर देखो। रास्तों पर ब्रिटिश सैनिकों की संख्या बढ़ गई है,  टैंकों की संख्या बढ़ गई है। मुझे यकीन है कि अगर सुबह छह बजे तक हमने संघर्ष पीछे लेने के निर्णय के बारे में गॉडफ्रे को सूचित नहीं किया तो पूरा मुम्बई शहर रणभूमि बन जाएगा। अपने पाशविक सैन्यबल पर अंग्रेज़ मुम्बई को श्मशान बना देंगे, और सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि पूरे देश को जिस मुम्बई पर गर्व है उस मुम्बई पर कल गिद्धों का साम्राज्य होगा। हम यह नहीं चाहते। अपनी ज़िद की ख़ातिर हमें मुम्बई की,  मुम्बई के निरपराध नागरिकों की बलि नहीं देनी है। इसलिए हम,  तलवार  के सैनिक,  इस विद्रोह से पीछे हट रहे हैं। तलवार   के सैनिक बिना शर्त आत्मसमर्पण कर रहे हैं।’’
वहाँ एकत्रित विभिन्न जहाज़ों के प्रतिनिधियों के लिए खान का निर्णय अनपेक्षित था। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि खान इस संघर्ष से इस तरह अपने आप को निकाल लेगा।
‘‘यह गद्दारी है। तलवारलड़ाई छोड़कर इस तरह भाग नहीं सकता... हमने साथ रहने की, अपनी एकता को अभेद्य रखने की कसम खाई है।’’ कुट्टी हाथ नचाते हुए चिल्ला रहा था।
खान से यह सब बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था। वह पास बैठे मदन के गले लगकर सिसकसिसककर रो पड़ा, ‘‘ऐसा होना नहीं चाहिए था, ऐसा नहीं होना चाहिए था। हम हार गए हैं। मैं इनके भीतर के सैनिकों को परिपूर्ण नेतृत्व नहीं दे सका...’’   खान ज़ोर से बड़बड़ा रहा था।
दत्त शान्त था। उसने खान की पीठ पर हाथ रखा। दत्त का वह स्पर्श खान से बहुत कुछ कह गया,  हम तुम्हारे साथ हैं।
 ‘‘अरे, यह तो लड़ाई है! एकाध बार हार तो हो ही जाती है! अन्याय के विरुद्ध जो भड़क नहीं उठता,  नामर्दों के समान चुपचाप अन्याय सहन करता रहता है उसी की असल में हार होती है। लड़ने वाले देखने में हार भी जाएँ फिर भी यह उनकी जीत ही होती है। हमने सरकार को दिखा दिया है कि अन्याय के विरुद्ध सैनिक एक हो सकते हैं - यह क्या छोटी बात है?   हमारी सामर्थ्य के अनुसार हम स्वतन्त्रता युद्ध में सहभागी हुए। चार ही दिन सही, अपने सर्वस्व की बाज़ी लगाकर लड़े - यह यश कोई छोटा नहीं है। सामान्य जनता ने जिस तरह हमारा साथ दिया उसी तरह यदि राष्ट्रीय पक्षों ने तथा उनके नेताओं ने दिया होता तो हम निश्चय ही स्वतन्त्रता के अपने उद्देश्य तक पहुँच जाते। यह हार हमारी नहीं हुई। यह हार हुई है उन दरिद्री राष्ट्रीय नेताओं की नीतियों की। हमने काफ़ी कुछ पाया है: लोगों का समर्थन,  सैनिकों की एकता और सबसे महत्त्वपूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य को हमने ज़बर्दस्त धक्का दिया है। हमारे विद्रोह से उन्हें इस बात का एहसास हो गया है कि हिन्दुस्तान में उनकी हुकूमत की नींव ही डगमगा रही है। हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता के इतिहास का यह शायद अन्तिम युद्ध हो। हमने अब तक क्या पाया और क्या खोया,  इसका अगर हिसाब करने बैठें, तो हमने पाया ही बहुत है। जो कुछ हमने पाया है उसके लिए अगर कुछ और भी खोना पड़े तो कोई हर्ज़ नहीं।’’
हंगामा हो ही रहा था। आज तक अनुशासन में रहे सैनिक क्षणिक पराजय के कारण अनुशासन को भूल गए थे। दत्त के समझाने पर खान का ढाढ़स बँधा था,  उसका आत्मविश्वास बढ़ गया था। उसने अपनी आँखें पोंछीं और वह आत्मविश्वास से खड़ा हो गया।
‘‘सायलेन्स,  प्लीज़।’’  खान की आवाज़ में आत्मविश्वास था,  ‘‘मेरा ख़याल है कि पर्याप्त चर्चा हो चुकी है,  अब हमें निर्णय लेना चाहिए। सुबह छह बजे से पहले हमें अपने निर्णय की सूचना गॉडफ्रे को देनी है। मैं दत्त को अपना प्रस्ताव पेश करने की इजाज़त देता हूँ।’’
दत्त ने मदन तथा अन्य सहकारियों की सहायता से तैयार किया गया प्रस्ताव पेश किया।
‘‘सरदार वल्लभभाई पटेल की सलाह के अनुसार, हम, विद्रोह में शामिल सभी सैनिक हिन्दुस्तानी जनता के सामने आत्मसमर्पण करने का निर्णय ले रहे हैं।

 ‘‘सरदार पटेल ने हमें यकीन दिलाया है कि विद्रोह में शामिल किसी भी सैनिक की बलि नहीं दी जाएगी।
‘‘जिस दृढ़ता और एकता से मुम्बई की जनता, विशेषत: मराठा रेजिमेंट के सैनिकों, डॉकयार्ड, कारख़ानों और मिलों में काम करने वाले मज़दूरों ने और विद्यार्थियों ने हमारा साथ दिया और हमारी मदद की उसके लिए हम उनके ऋणी हैं ।
‘‘अब तक हुई चर्चा से उभरी परिस्थिति पर ध्यान देते हुए इस प्रस्ताव का सभी सैनिक समर्थन करें, ऐसी मैं प्रार्थना करता हूँ।’’
दत्त द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव का दास और मदन ने अनुमोदन किया।
कुछ सैनिक इस प्रस्ताव पर कुछ और चर्चा करना चाहते थे,  मगर खान ने इसकी इजाज़त नहीं दी और कहा, ‘‘समय कम है,  चर्चा काफ़ी हो चुकी है। अब बहुमत से जो निर्णय लिया जाएगा उसे हम स्वीकार करेंगे।’’
प्रस्ताव पर मतदान किया गया। उपस्थित छत्तीस प्रतिनिधियों में से तीस ने प्रस्ताव के पक्ष में मत दिये। पंजाब’ , ‘जमुना’ , ‘आसाम’,  खैबर और माइन स्वीपर स्क्वाड्रन्स के प्रतिनिधियों ने आत्मसमर्पण का विरोध किया।
आत्मसमर्पण का प्रस्ताव पारित होते ही नर्मदा का वातावरण बदल गया। पिछले चार दिनों से असीमित धैर्य से संघर्ष कर रहे सैनिक भरभराकर गिर गए, अपना आत्मविश्वास खो बैठे। पिछले पाँच दिनों से चल रहा संघर्ष इतने आननफ़ानन में बिना कुछ पल्ले पड़े वापस ले लिया गया। जिस आज़ादी के लिए संघर्ष शुरू किया था वह मृगजल ही साबित हुई इसका अफ़सोस था। पिछले पाँच दिनों की दौड़धूप, रातरातभर जागना,  अचानक बन्द कर दिया गया संघर्ष - इस सबके कारण अनेकों ने अपना आपा खो दिया था। कुछ लोग एकदूसरे के गले लगकर रो रहे थे, कुछ लोग संघर्ष के पक्ष में खड़े न रहने वाले नेताओं के नाम से उँगलियाँ मोड़ रहे थे,  उन्हें गालियाँ दे रहे थे।
‘‘सरदार ने हमसे कहा है कि संघर्ष में शामिल किसी की भी बलि नहीं ली जाएगी इसका ध्यान कांग्रेस रखेगी। क्या वे अपने वचन का पालन करेंगे?’’ एक सैनिक ने अपना सन्देह व्यक्त किया।
‘‘मैं नहीं सोचता। क्या तुम ऐसा सोचते हो कि कांग्रेस और सरदार अपना वचन निभा पाएँगे? अरे, कल आत्मसमर्पण करने के बाद वे हमें पकड़कर हमारा क्या हाल बनाएँगे इसका कोई भरोसा नहीं। शायद पूछताछ किए बगैर विद्रोही करार देकर गोली मार दें, कालेपानी भेज दें या फिर कोर्टमार्शल करके फाँसी दे दें और पूछताछ करने वाले नेताओं से कहेंगे, ‘‘सेना में अनुशासन बनाए रखने के लिए सरकार उचित कार्रवाई कर रही है।’’  दूसरे ने जवाब दिया।
अनेकों के मन में सन्देह थे। वे मौत से नहीं डरते थे,  मगर जेल में सड़ना उन्हें मंज़ूर न था।
‘‘हमने किन परिस्थितियों में आत्मसमर्पण का निर्णय लिया यह मुम्बई के लोगों को मालूम होना चाहिए इसलिए हमें अपना निवेदन अख़बारों को भेजना चाहिए। नर्मदासे जहाजों और नाविक तलों को सन्देश भेजकर अपना निर्णय सूचित करना चाहिए।’’  दास ने खान को सुझाव दिया।
‘‘नौसैनिकों की सेन्ट्रल कमेटी हिन्दुस्तान की जनता को, ख़ासकर मुम्बई की जनता को सूचित करना चाहती है कि कमेटी ने अपना संघर्ष पीछे लेने का निर्णय लिया है। सरदार पटेल से हुई चर्चा के बाद कमेटी ने यह निर्णय लिया है। पटेल ने सैनिकों से यह वादा किया है कि सैनिकों के पीछे हटने के बाद संघर्ष में शामिल किसी भी सैनिक पर सरकार बदले की कार्रवाई नहीं करेगी, इसका ध्यान कांग्रेस रखेगी। साथ ही सैनिकों की न्यायोचित माँगों को वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रखा जाएगा। कांग्रेस सैनिकों का पक्ष लेगी इस विश्वास और बैरिस्टर जिन्ना के सैनिकों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण निवेदन को ध्यान में रखते हुए हम अपना संघर्ष पीछे ले रहे हैं।
‘‘हालाँकि हम अपना संघर्ष पीछे ले रहे हैं, फिर भी कमेटी वरिष्ठ नौदल अधिकारी,  सरकार,  सामान्य जनता और विभिन्न पक्षों के नेताओं,  विशेषत: सरदार वल्लभभाई पटेल और बैरिस्टर जिन्ना को चेतावनी देती है कि यदि सरकार ने अथवा अधिकारियों ने संघर्ष में शामिल एक भी सैनिक पर बदले की कार्रवाई की अथवा उनका दमन किया तो नौसैनिक बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे फिर से नये सिरे से अपना संघर्ष आरम्भ कर देंगे।
‘‘सेन्ट्रल कमेटी मुम्बई की जनता,  विशेषत: मज़दूरों,  विद्यार्थियों और नागरिकों के प्रति एक बार फिर से आभार प्रकट करती है। पिछले दो दिनों में हमारे प्रति सहानुभूति दर्शाते हुए आपने सफ़लतापूर्वक जो बन्द,  हड़ताल आदि किये इसके लिए बहुतबहुत धन्यवाद। नागरिकों के इस कदम से सैनिक समझ गए कि उनके संघर्ष के पीछे योग्य एवं न्यायोचित कारण हैं,  और सामान्य जनता ने इसे मान्यता दी है। आपके इस कार्य ने सैनिकों का मनोबल ऊँचा उठाया था।  
‘‘इस संघर्ष के दौरान जो सैकड़ों निरपराध नागरिक अपनी जान गँवा बैठे, उस शोक में मुम्बई की जनता के साथ कमेटी और नौसैनिक शामिल हैं। इन निरपराध लोगों पर जिन ब्रिटिश सैनिकों ने पाशविक और अमानवीय गोलीबारी की और पूरी मुम्बई को खून में नहला दिया उनका और सरकार का हम तीव्र निषेध करते हैं। यह पाशविक गोलीबारी हिन्दुस्तान के इतिहास में अभूतपूर्व थी।
‘‘और, अब हमारा साथ दे रही जनता के प्रति कृतज्ञता।
‘‘आप हमारे पक्ष में खड़े रहे। हम भूखे थे तब अपने मुँह का निवाला निकाल कर हमें दिया। अगर आपने हमें समर्थन न दिया होता,  जुलूस न निकाले होते तो हमारा संघर्ष,  हमारे संघर्ष का उद्देश्य हमारे ही खून की नदी में डूब जाता। सरकार और नौदल के अधिकारियों ने यदि हम पर बदले की भावना से कार्रवाई की और हमें सज़ा दी तो हम फिर से संघर्ष करेंगे। हमारी आपसे विनती है कि सरदार पटेल ने हृदयपूर्वक जो वचन हमें दिया है वह पूरा हो इसलिए आप भी हमारे कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ाई की तैयारी रखो।
‘‘हम सैनिक आपको और आपके द्वारा दिए गए समर्थन को कभी न भूलेंगे। हमें यकीन है कि आप भी हम सैनिकों को नहीं भूलेंगे।
‘‘हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान के लोग चिरायु हों। हिन्दुस्तान को जल्दी ही स्वतन्त्रता मिलेगी इसका हमें यकीन है। जय हिन्द!’’  
उन्होंने निवेदन पूरा किया। खान ने उसे और एक बार पढ़ा। उसके चेहरे पर समाधान था। निवेदन पर हस्ताक्षर करके उसने उसे भेजने सम्बन्धी सूचनाएँ दीं। खान ने घड़ी की ओर देखा। और पन्द्रह मिनट हाथ में थे। वह जल्दीजल्दी बाहर निकला। रास्ते पर एकएक हाथ की दूरी पर सशस्त्र ब्रिटिश सैनिक खड़े थे। रास्ते से गुज़रने वाले हर व्यक्ति से पूछताछ की जा रही थी। डॉकयार्ड से बाहर आते ही खान को एक ब्रिटिश सैनिक ने रोका, उसका परिचयपत्र देखा, पूछताछ की और इसके बाद ही आगे जाने दिया। डॉकयार्ड से कुछ ही अन्तर पर एक टैंक कभी भी हमला करने की तैयारी में खड़ा था। ऐसे ही टैंक्स कैसल बैरेक्स और फोर्ट बैरेक्सके प्रवेश द्वारों के सामने भी खड़े थे। अंग्रेज़ों का उद्देश्य स्पष्ट था। यदि छह बजे तक नौसैनिकों ने अपना संघर्ष पीछे नहीं लिया तो तोपों की मार से नौसैनिकों को हराना और सैनिकों को बन्दूकों के ज़ोर पर आत्मसमर्पण को मजबूर करना।
हमारा निर्णय योग्य है। वरना...  खान परिणामों की कल्पना से भी काँप रहा था।
फॉब हाउस में गॉडफ्रे और रॉटरे खान की राह देख रहे थे।
''So, what is your decision?'' रॉटरे के शब्दों से हेकड़ी की बू आ रही थी।
‘‘हमने बिना शर्त आत्मसमर्पण का निर्णय लिया है।’’ खान ने शान्त आवाज़ में कहा।
''That's good!'' गॉडफ्रे अपने चेहरे की खुशी छिपा नहीं सका।
‘‘हम आत्मसमर्पण तुम्हारी धमकियों से डरकर नहीं कर रहे हैं। तुम्हें करारा जवाब देने की हिम्मत अभी भी हममें है। हम आत्मसमर्पण कर रहे हैं राष्ट्रीय नेताओं की अपील के जवाब में,  और हम आत्मसमर्पण तुम्हारे सामने नहीं, बल्कि मुम्बई की जनता और हिन्दुस्तान की जनता के सम्मुख कर रहे हैं,  जिसने हमारा साथ दिया,  अनेकों ने बलिदान दिये। हमारा संघर्ष यदि चलता रहा तो हज़ारों निरपराध जानें जाएँगी। हम ऐसा नहीं चाहते इसलिये हमने आत्मसमर्पण करने का निर्णय लिया है।’’  खान तनी हुई गर्दन और गर्व से कह रहा था। उसकी आवाज़ में और उसके शब्दों में पछतावे का लेशमात्र भी पुट नहीं था।
आत्मसमर्पण के निर्णय का जो स्पष्टीकरण खान ने दिया उसे सुनकर दोनों अवाक् रह गए। उन्होंने सोचा था कि  उनकी धमकियों से डरकर सैनिक क्षमायाचना करते हुए पीछे हटेंगे। मगर वैसा कुछ भी नहीं हुआ था।
‘‘रस्सी जल गई,   मगर बल नहीं टूटा!’’  रॉटरे बड़बड़ाया।
‘‘ठीक है। हमारी नज़र में तुम्हारा आत्मसमर्पण महत्त्वपूर्ण है। जैसे कि तुम्हें पहले सूचना दी थी,  जहाज़ों और नाविक तलों पर काले अथवा नीले झण्डे चढ़ाओ और फॉलिन हो जाओ। जहाज़ों के सैनिक मुम्बई की ओर मुँह करके खड़े होंगे। इसके बाद आत्मसमर्पण की सारी औपचारिकताएँ पूरी की जाएँगी।’’  गॉडफ्रे ने सूचना दी और वह पलभर को रुका। ''You may go now.'' उसने खान को करीबकरीब वहाँ से भगा दिया। बाहर निकलते हुए खान पलभर को दरवाज़े के पास रुका। उसने पीछे मुड़कर देखा और दोनों को चेतावनी दी:
‘‘आत्मसमर्पण करने के बाद यदि सैनिकों के साथ बुरा सुलूक किया गया तो दुबारा संघर्ष करने का और विद्रोह करने का अधिकार हमने सुरक्षित रखा है।’’ और दनदन पैर रखते हुए वह बाहर निकल गया। उसकी हर भावभंगिमा में आत्मविश्वास झलक रहा था।


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Vadvanal - 23

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