बुधवार, 14 मार्च 2018

Vadvanal - 14




''Marker fall in." चीफ  चिल्लाया,  आठदस  सैनिक - सभी गोरेदौड़कर आगे आए ।
ये सब काले गए कहाँ ?   ये सारे मार्कर्स तो गोरे ही हैं ।   चीफ़ मन ही मन सोच रहा था । साले,    कालों की डिवीजन के मार्कर्स नहीं हैं,    मतलब...
''Marker from communication Branch.''

''Marker from seaman branch...''
चीफ़ पुकार रहा था मगर कोई भी आगे नहीं आया ।
‘‘अबे, आज फॉलिन के लिए कोई भी नहीं आया । चल, हम भी खिसक लें ।’’    सीमन ब्रान्च का एक सैनिक दूसरे से कह रहा था ।
‘‘और अगर कोई पकड़ ले तो ?’’
‘‘अरे   अब   कौन   पकड़ने   वाला   है ?   हिम्मत   है   क्या   गोरों   की ?’’   और   वे   दोनों पीछे के पीछे लौट गए,    उनका अनुकरण अनेकों ने किया ।
''Marker from Communication Branch... Any body from the Communicators. Come on, hurry up...''  चीफ़    चीखे जा रहा था ।
मगर    कोई    भी    आगे    नहीं    आया ।
''Markers attention...'' चिढ़े हुए चीफ ने मार्कर्स को ड्रेसिंग दी । अपनीअपनी जगह पर खड़ा किया ।
''At the order Carry on divisions will fall in on their respective markers.'' चीफ़ पलभर को रुका। उसने दायें-बायें  देखा ।  हिन्दुस्तानी  सैनिकों की संख्या बढ़ने के स्थान पर और भी कम हो गई थी । विवश होकर    उसने    अगला आदेश दिया,  ''Carry on.''
रोज़   इस   आदेश   के   मिलते   ही   परेड   ग्राउण्ड   सैनिकों   की   भागदौड़   से   जीवित हो उठता ।   आज   यह   भागदौड़   नहीं   थी ।   गोरे   सैनिक,   हिन्दुस्तानी   पेट्टी   ऑफिसर्स और  चीफ़ पेट्टी ऑफिसर्स  को  छोड़कर  बाकी  सारे  हिन्दुस्तानी  सैनिक  बैरेक  में वापस लौट गए थे ।
रोज़मर्रा के रूटीन के अनुसार लाइन ड्रेसिंग हुई,     कॉलम ड्रेसिंग हुई । डिवीजन ऑफिसर्स ने अपनीअपनी डिवीजन्स का निरीक्षण किया और वे कमाण्डर किंग की राह देखने लगे । 
 ''C.O. Talwar arriving, sir.'' किंग  की  स्टाफ  कार  के  नज़र आते ही लुक आउट चिल्लाया ।
'Very good!'' परेड कमाण्डर स्नो ने जवाब दिया ।
''Parade attention.''
जैसे  ही  किंग  की  कार  आकर  रुकी L.P.M. दौड़कर आगे बढ़ा और उसने अदब  से  कार  का  दरवाजा  खोला ।  किंग  की  हर  भावभंगिमा  में  एक  गुरूर  था । उसकी हर हरकत यही प्रदर्शित करती थी कि वह इस बेस का सर्वेसर्वा है ।
वह सैल्यूटिंग डायस पर खड़ा हो गया । उसने परेड पर नज़र डाली । आज परेड ग्राउण्ड खाली क्यों है... इन ब्लडी इण्डियन्स को सबक सिखाना ही होगा । आज  तक  ऐसा  नहीं  हुआ  था; फिर आज ही...  इन कालों ने...  सन्देह  मात्र  से ही  वह  बेचैन  हो  गया ।  परेड  कमाण्डर  द्वारा  दिये  गए  सैल्यूट  को  उसने  यन्त्रवत् स्वीकार    किया ।
‘‘आज    सैनिक    कम    क्यों    हैं ?’’    किंग    का    सवाल ।
परेड  कमाण्डर  के  पास  जवाब  तैयार  था ।  वह  हर  डिवीजन  के  सैनिकों  की हाज़िरी,    गैरहाज़िरी के बारे    में बताने लगा ।
''I don't want details. I want reasons. The real reasons. Why Indian ratings are absent.'' किंग की चीखपुकार   साफ   सुनाई   दे   रही   थी ।
''Sir, I think...''
''I don't want your rough guess. Tell me the facts!''  किंग  चीख रहा था । मगर स्नो गर्दन झुकाए चुपचाप खड़ा था । किंग समझ ही नहीं पा रहा था कि करना क्या चाहिए । उसे सोचने के लिए समय चाहिए था ।
''Dismiss the Parade and get lost from here.'' किंग    स्नो    पर    बरसा ।
दन्-दन् करते हुए किंग डायस से नीचे उतरा । उसकी हर गतिविधि से मन  की  बेचैनी  झलक  रही  थी । किंग  के  मन  का  तूफान  उमड़ने  लगा,  वह  यह अन्दाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था कि असल में हुआ क्या    होगा ।
''I shall **** the bastards.'' वह अपने आप से पुटपुटा रहा था । हिन्दुस्तानी सैनिकों के प्रति घृणा उसके चेहरे पर    साफ़ नज़र आ रही थी ।
स्नो  भी  समझ  नहीं  पा  रहा  था  कि  करना  क्या  है ।  परेड  डिसमिस  करने का आदेश मिलने पर भी    वह परेड के सामने स्तब्ध खड़ा था ।
 ‘‘अरे,   तू सोच रहा था ना कि परेड के लिए नहीं गए इसलिए हमें रेग्यूलेटिंग ऑफिस  में  बुलाएँगे  और  सजा  देंगे,  मगर  किंग  ही  साला  परेड  छोड़कर  भाग  गया और लेफ्ट.  कमाण्डर स्नो पागल जैसा खड़ा है ।’’   पाण्डे  खुशी से सुमंगल सिंह से कह रहा था ।
‘‘अरे,   आख़िर   में   जीत   हमारी   ही   होगी ।   आज   तो   किंग   परेड   छोड़कर   भागा है ।  कल जब  हमारा  दबाव  बढ़ेगा  तो  साला  देश  छोड़कर  भाग  जाएगा ।’’  सुमंगल ने कहा ।
‘‘भारत माता की जय! वन्दे मातरम्!’’   दास नारे लगाता हुआ बैरेक में घुसा ।
‘‘सारे  जहाँ  से  अच्छा...’’  नारे लगाते  हुए  दास  को  देखकर  यादव  ने  अपनी सुरीली आवाज में गाना शुरू   कर दिया और देखतेदेखते पच्चीसतीस सैनिकों ने उसकी आवाज़ में आवाज़ मिला दी ।
‘‘हमें सतर्क रहना होगा । अंग्रेज़ शायद हम पर हमला करके हमें  गिरफ्तार कर लेंगे और हमारा विद्रोह यहीं ख़त्म हो जाएगा। इस बात को ये लोग क्या नहीं समझते ?’’   दत्त ने पूछा ।
‘‘महात्माजी पिछले कई सालों से उनके अपने मार्ग से स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष  कर  रहे  हैं । जब अंग्रेज़ों  ने उन्हें  घास  नहीं  डाली  तो  हमारे  बहिष्कार  की वे क्या परवाह करेंगे ?’’    गुरु ने वास्तविकता सामने रखी । 
‘‘शक्तिशाली  अंग्रेज़ों  से  यदि  टक्कर  लेनी  है  तो  हमें  एक  होना  पड़ेगा ।’’ मदन ने संघर्ष की दिशा  बताई ।
‘‘हमने  चाहे No food, No work यह नारा दिया हो,   मगर खाने का प्रश्न महत्वपूर्ण नहीं  है,  प्रश्न  है  स्वतन्त्रता  का; अंग्रेज़ों  के  यहाँ  से  जाने  का ।  हम इसी के लिए संघर्ष करने वाले हैं । स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल कुछ लोगों ने हमारे बारे में यह कहा है कि हम अंग्रेज़ों के फेंके हुए टुकड़े निगलकर परतन्त्रता की नींव मजबूत  करने वाले हैं । इस कलंक को धोने का मौका हमें मिला है और हमें उसका लाभ उठाना चाहिए ।’’   खान ने कहा ।
‘‘भले ही हमने हड़ताल कर दी हो,  No food, No work   का नारा दिया हो, परेड के लिए फ़ॉलिन न हुए हों, मगर फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम आख़िरकार सैनिक हैं । हमें अनुशासित रहना ही होगा । लड़ाई कोई भी हो,  चाहे  वह  स्वतन्त्रतासंग्राम  ही  क्यों    हो,  फिर  भी  सैनिकों  को अनुशासित रहना    चाहिए ।    हमें    यह    बात    उन्हें    समझानी    होगी ।’’

दत्त    का    सुझाव    दास,    गुरु,    यादव,    मदन    और    खान    को    पसन्द        गया और    वे    सैनिकों    को    इकट्ठा    करने    के    लिए    बैरेकबैरेक    घूमने    लगे ।
‘‘दिल्ली की हवाईदल की दो यूनिट्स में हुआ विद्रोह और इसके दो ही दिन बाद  तलवार  के  सैनिकों  का  यह  अनुशासनहीन  व्यवहार...  कहीं  षड्यन्त्र तो   नहीं ?’   परेड ग्राउण्ड से बेचैन मन से लौटा किंग सोच रहा था ।   परसों हवाई दल में हुआ,  आज नौसेना में,  कल भूदल में...  क्रमानुसार...फिर से एक बार 1857….बेसुध सैनिक,      गोरों के निरंकुश बर्ताव का हिन्दुस्तानी सैनिकों द्वारा गोरे अधिकारियों, उनकी मैडमों और बच्चों पर गोलीबारी करके लिया गया बदला... शायद इस समय भी वैसा ही...’’   विद्रोह की यादों से वह सिहर गया । ख़तरा मोल लेने का कोई मतलब नहीं,    रॉटरे को सूचित करना ही होगा ।
ड्राइवर की राह न देखकर वह खुद ही गाड़ी चलाने लगा और तूफ़ानी गति से उसने स्टाफ कार  तलवार   से बाहर   निकाली ।   ट्रैफिक   की   परवाह      करते हुए वह फ्लैग ऑफिस बॉम्बे के कार्यालय की ओर निकला ।
कल तो सब  कुछ  शान्त  था,  फिर  अचानक  ये  सब  कैसे  टपक  पड़ा?  रॉटरे  से  क्या  कहना  है ?  खाने  की  वजह  सेरिक्वेस्ट्स  की  वजह  से…. या  कोऔर कारण ?’    उसने कसकर कार को  ब्रेक लगाया । सामने से        रहा    ट्रक...थोड़े में  ही  बचा  वरना... ?’’  सिर्फ  इस  ख़याल  से  ही  उसके  पसीने  छूटने  लगे ।  अब विचार नहीं करना है ।  उसने निश्चय किया ।
ग़लती ही हो गई मुझसे! दत्त को छोड़ना नहीं चाहिए था और रिक्वेस्ट्स लेकर आए हुए सैनिकों को सलाखों के पीछे कर देना था। बहुत बड़ी ग़लती हो गई... रॉटरे क्या कहेगा?  परिस्थिति का सामना करना ही होगा ।ज़िद्दी मन घटित  हुई  घटनाओं  से  बाहर  आने  को  तैयार  ही  नहीं  था ।  विचारचक्र  घूम  ही रहा था ।


‘’हिन्दुस्तानी सैनिक बेचैन हैं । उन्हें दिया जा रहा खाना,   उनका वेतन,   उन्हें दी जा रही सहूलियतें और उनके साथ किया जा रहा सौतेला बर्ताव - ये सब सतही कारण हैं। उन्होंने भूमिगत क्रान्तिकारियों से सम्पर्क स्थापित कर लिया है । कम्युनिस्टों जैसे ख़तरनाक पक्ष का समर्थन उन्हें प्राप्त है । हवाईदल और नौदल इन दोनों सैनिक  शाखाओं  में  विद्रोह  होने  की  सम्भावना  प्रबल  है  जब  ऐसी  सूचना सभी कमांडिंग ऑफिसर्स को दी गई थी, तो फिर भी तुमने सैनिकों को गालियाँ दीं, जो जी में आया वह कह डाला;  दत्त का इतिहास मालूम होते हुए भी तुमन उसे सेल में न रखते हुए बैरेक में... ’’
‘‘सर, मेरा ख़याल था कि दत्त पर नज़र रखकर उसके साथियों को पकड़ सकूँगा ।’’  पूरा  घटनाक्रम  सुनने के  बाद  क्रोधित हुए रॉटरे को बीच ही में ही रोककर किंग अपनी सफ़ाई पेश करने लगा ।
''Shut up! मुझे तुम्हारी सफ़ाई नहीं चाहिए।’’   रॉटरे को और ज़्यादा गुस्सा आ गया,  ‘‘वे  रिक्वेस्ट्स  तुम्हें  मेरे  पास  फौरन  भेज  देनी  चाहिए  थी। एकाध  छोटा सा मेमो देकर मैं उनका समाधान कर देता । वर्तमान परिस्थिति में यही सबसे ज़रूरी था। आज  जब  सारी  परिस्थिति  हाथ  से  निकल  चुकी  है  तब  मेरे  पास आए हो ।  मेरा  ख़याल  है  कि  अब  तुम्हारी  मदद  करना  मुश्किल  है ।’’  रॉटरे  के  दिमाग़ में  गुस्सा  भर  गया  था ।  वह  क्रोध  से  लाल  हो  रहा  था ।  बोलतेबोलते  उसने  किंग की ओर पीठ फेर ली और गुस्साए सुर में बोला,   ‘‘इस समय दस बजे हैं,   मैं तुम्हें  दो  घण्टे  की  मोहलत  देता  हूँ ।  यदि  बारह  बजे तक  सैनिकों  को  शान्त  करके परिस्थिति सामान्य न कर सके तो मुझे तुम पर कार्रवाई करनी पड़ेगी । समझ में आया ?    Now get lost from here.''
रॉटरे की धमकी से किंग का चेहरा एकदम उतर गया था। वह बहुत घबरा गया था ।



‘‘बशीर... बशीर ।’’   अपने   चेम्बर   में   घुसते   हुए   वह   चीखा ।   रोज   सुबह   गहमागहमी वाली उस    इमारत    में    आज    वीरानी    थी ।
‘‘बशीऽर... ’’    उसने    फिर    पुकारा    मगर    जवाब    नहीं    आया ।
''Bastard, शायद यह भी उनमें शामिल हो गया है ।’’     वह बशीर को गालियाँ देते हुए बुदबुदाया ।
किंग की चिल्लाचोट सुनकर ऑफ़िसर ऑफ दि डे स.  लेफ्टि.   कोहली भागकर उसके चेम्बर में आया।
‘‘आज    सुबह    बेस    पर    क्या    कोई    खास    बात    हुई    थी ?’’
‘‘नहीं   सर ।’’
‘‘फिर    ये    लपटें    एकदम    कैसी    उठीं ?’’
‘‘कल    रात    को    और    आज    सुबह    मेस    में    कुछ...’’
‘‘कल    ऑफिसर    ऑफ    दि    डे    कौन    था ?’’
‘‘स. लेफ्टि.   रॉड्रिक्स।’’
‘‘उसे फ़ौरन मेरे सामने पेश करो ।’’
किंग  ने  कोहली  से  कहा  और  भागदौड़  शुरू  हो  गई ।  दो  ही  चार  मिनटों में रॉड्रिक्स किंग के सामने हाज़िर हो गया ।
‘‘कल मेस में जो कुछ हुआ उसकी सूचना मुझे क्यों नहीं दी ?’’   किंग रॉड्रिक्स पर बरसा ।
‘‘मुझे आपका इतवार नहीं खराब करना था,  सर; सैनिकों की खाने के बारे में शिकायत,  इस बात को लेकर उनका दिमाग गरम हो जाना - ये सब हमेशा की ही समस्या है,   इसलिए मुझे वह महत्त्वपूर्ण नहीं लगा ।’’   रॉड्रिक्स ने जवाब दिया ।
''You, bloody idiot, I am captain of the ship. who are you to decide?' किंग चीख रहा था । ‘‘मेरा इतवार बचाया, मगर मेरा भविष्य बरबाद करने का वक्त  ले आया,  now get lost from here.'' उसने रॉड्रिक्स को करीबकरीब भगा दिया ।
किंग  ने  घड़ी  की  ओर  देखा ।  साढ़े  दस  बज  रहे  थे ।  मुट्ठी  में  बन्द  बालू की तरह समय हाथ से    फिसल रहा था । कुछ    करना    चाहिए ।    ये    सब    टंटा    मिटाना ही होगा, वरना मेरा भविष्य...उससे यह कल्पना बर्दाश्त ही नहीं हो रही थी ।
ये टंटा मिटाऊँ तो कैसे ?’ वह समझ ही नहीं पा रहा था । उसने पाइप सुलगाया ।
इस परिस्थिति में कौन मेरी सहायता करेगा ?   ये लपटें कौन बुझा सकेगा ?’  उसका विचारचक्र घूम ही रहा था ।
उसकी  आँखों  के  सामने  से  एकएक  नाम  सरक  रहा  था और थोड़ा विचार करने के बाद वह  उस नाम को खारिज भी कर देता था । सारे अंग्रेज़ अधिकारियों के नाम उसने खारिज कर दिये।
यदि कोई ऐसा है जो कुछ कर पायेगा तो वो हिन्दुस्तानी अधिकारी ही हैं,’  उसने  स्वयं  से  कहा ।  नन्दा,  कोहली  इन  दोनों  नामों  पर  वह  थोड़ासा  रुका ये दो हिन्दुस्तानी अधिकारी वैसे तो सैनिकों में प्रिय नहीं थे, मगर पत्थर के मुकाबले र्इंट कुछ नरम ही  होती है ।
दोनों हिन्दुस्तानी हैं,  गद्दार तो नहीं हो जाएँगे ?’    मन में सन्देह उठा । जिसके मन में फिसलने का डर होता है उसे हर पत्थर चिकना ही प्रतीत होता है । शायद आज की गद्दारी कल का विशेष गुण साबित हो ।
कहीं मैं इन हिन्दुस्तानी अधिकारियों को उनका श्रेष्ठत्व सिद्ध करने का मौका तो नहीं दे रहा ?’    मन के सन्देह ने फिर फन उठाया ।
यदि मैं ही सैनिकों के पास जाऊँ तो ?’ इस विचार को उसने तिलचट्टे के  समान  झटक दिया ।  मैं...  जाऊँ...  उनके  पास ...मैं,  सम्राज्ञी का प्रतिनिधि,  और गुलामों के  पास जाऊँ ?   ये तो रानी का  अपमान होगा!   विचारचक्र उलटासीधा    घूम    रहा    था ।
''Good morning, sir!'' नन्दा ने चेम्बर में प्रवेश करते हुए कहा ।
''what's good in this bloody morning?'' किंग गरजा ।
‘‘चिन्ता    करें,  सर,  आपको  जो  भी  मदद  चाहिए  वो  करने  के  लिए  हम तैयार  हैं । साम्राज्य के ऊपर  आए संकट को हम अपने ऊपर आया संकट मानते हैं। हमने साम्राज्य का नमक खाया है । उस नमक का कर्ज़ हम  चुकाएँगे!’’  नन्दा के इस जवाब से किंग कुछ आश्वस्त हुआ ।
किंग ने नन्दा और कोहली को उनके काम के बारे में समझाया ।
‘‘सर,  यदि  हम  इन  सैनिकों  की  मिन्नत  करें  तो... यदि  आसानी  से  उनकी माँगें मान लें तो...’’    कोहली    ने शंका व्यक्त की ।
‘‘मैं   समझ   रहा   हूँ; मगर   अब   इस   परिस्थिति   में   उन्हें   शान्त   करना   आवश्यक है । वे एक   बार   शान्त   हो   जाएँ   तो   फिर   उन्हें   कैसे   सीधा   किया   जाए   यह   बाद में देखेंगे!’’    किंग    ने    एक    कदम    पीछे    हटने    का    कारण    समझाया ।



‘‘दोस्तो! यदि हमारी एकता अटूट होगी तभी हम शक्तिशाली अंग्रेज़ों के विरुद्ध खड़े  रह  पाएँगे  और  उन  पर विजय  प्राप्त  कर  सकेंगे ।’’  कम्युनिकेशन  बैरेक  के बाहर तलवारके सारे के सारे सैनिक जमा हो गए थे । खान उन्हें व्यूह रचना समझा रहा था और अंग्रेज़ों से सावधान रहने की सलाह भी दे रहा    था ।
‘‘भूलो  मत,  अंग्रेज़  तोड़ो  और  फोड़ो  की  नीति  का  प्रयोग  करेंगे;  हममें  से कुछ  लोगों  को  पुचकारेंगे, लालच  देंगे; मगर याद  रखो,  साँप  सिर्फ  ज़हर  ही  उगल सकता है और अंग्रेज़ भयंकर विषैला साँप है... ’’
''Good morning everybody.'' नन्दा ने विशकिया। खान पलभर को रुका और उन दोनों  की  ओर  ध्यान  न देते हुए वह सैनिकों से कहता रहा,  ‘‘हम अंग्रेज़ों को दिखा देंगे कि हमने मरी माँ का दूध नहीं पिया है,   या हाथों में चूड़ियाँ नहीं पहनी हैं... ’’
नन्दा और कोहली समझ गए कि उन्हें सौंपा गया काम आसान नहीं है ।
''Friends, we wish to speak to you'' नन्दा   ने   कहा ।
 ‘‘नन्दा कोहली हाय,  हाय!’’
‘‘चोर हैं,  चोर हैं,    नन्दा कोहली चोर हैं ।’’
‘‘नन्दा    कोहली    कौन    है ?
‘‘किंग    के    गुलाम    हैं!’’
करीब  पाँच  मिनट  नारे  लगते  रहे ।  नन्दा  को  कोई  बोलने  ही  नहीं  दे  रहा था । आखिर में  दत्त ने बीचबचाव करते हुए कहा,   ''Silence, please, Silence!'' सब शान्त हो गए । ‘‘मेरा ख़याल है कि हम उनकी बात सुन तो लें; और एक बात याद रखो,   हड़ताल पर होते हुए भी हम सैनिक हैं  और हमें अनुशासित रहना चाहिए।"
‘‘दोस्तो!   तुम   लोग   ये   क्या   कर   रहे   हो ?   हम   मानते   हैं   कि   तुम्हारी   कुछ समस्याएँ हैं;   कुछ   सवाल   हैं,   मगर इन समस्याओं,   इन प्रश्नों को सुलझाने का ये मार्ग नहीं है । ये सब कुछ मिलबैठकर हल हो सकता है । हम तुम्हारी सहायता करेंगे ।’’   नन्दा ने समझाने की कोशिश की ।
‘‘जब  तक  अंग्रेज़  इस  देश  से  चले  नहीं  जाते,  हमारी  समस्याएँ  हल  नहीं होंगी!’’
‘‘ये   किंग   की   और   तुम   दोनों   की   सामर्थ्य   से   बाहर   है ।’’   पाँचछह   लोगों का एक गुट चिल्ला    रहा    था ।
‘‘दोस्तो!    शान्त    हो    जाओ ।    हमारी    बात    पूरी    तो    होने    दो ।’’    कोहली    ने अपील की ।
‘‘अरे,   हम सैनिक हैं । रानी का नमक खाया है हमने...  उसका कर्ज़ तो उतारना ही होगा । आज़ादी से हमें क्या लेनादेना... हम अच्छा खाना माँगेंगे, तनख़्वाह बढ़ाने की माँग करेंगे...’’    कोहली समझा रहा था ।
‘‘नन्दाकोहली,    हायहाय!’’
‘‘चोर    हैं,    चोर    हैं,    नन्दाकोहली    चोर    हैं!’’
नारे    जारी    थे ।
''I think! It's enough!'' दत्त ने आगे आकर कोहली से चुप हो जाने को कहा । ‘‘अपने विरुद्ध ये जो नारे आप सुन रहे हैं, वे तहे-दिल से निकल रहे हैं,  इस  बात  पर  ध्यान  दीजिए ।  हम  पहले  हिन्दुस्तानी  हैं,  और  बाद  में  सैनिक। हिन्दुस्तानी  नागरिक  होने  के  कारण  इस  देश  की  स्वतन्त्रता  के  लिए  संघर्ष  करना हमारा  पहला कर्तव्य है और वही हम कर रहे हैं। तुम नौदल में अधिकारी हो, परन्तु  यह  मत  भूलो  कि  पहले  तुम  हिन्दुस्तानी  हो ।  तुम  भी  हमारा  साथ  दो ।’’
दत्त    ने    आह्वान    किया ।



नन्दा  और  कोहली  के  उतरे  हुए  चेहरे  किंग  ने  देखे  और  वह  समझ  गया  कि  वे नाकाम होकर लौटे    हैं ।
‘‘मैंने   रॉटरे   को   सूचित   कर   दिया,   यह   ठीक   किया,   वरना...’’   उसे   कुछ   राहत महसूस  हुई ।  उस  निपट  खामोशी  में  घड़ी  की  टिकटिक  भी  उससे  बर्दाश्त  नही हुई । साढ़े ग्यारह का एक घण्टा बजा और उसे लगा जैसे दिल की धड़कन बन्द हो   गई   हो ।
''Bastards!'' मेज़ पर मुक्का मारते हुए किंग चीखा ।  ‘‘अब  सिर्फ  आधा घण्टा...’’   वह अपने आप से बुदबुदाया ।   शायद तबादला,   शायद   कोर्ट   मार्शल...कल्पना   मात्र   से   वह   बेचैन   हो   गया ।   उसने   पाइप   सुलगाया   और   दोचार   गहरेगहरे कश लिये । तम्बाकू का  धुआँ दिमाग में पहुँचा और उसे कुछ आराम महसूस    हुआ ।
कुछ तो करना ही होगा!’’    उसने अपने आप को सतर्क किया ।
दत्त की इन्क्वायरीकमेटी ने मुझे दोषी नहीं माना था,   या दत्त ने भी मेरे ख़िलाफ़ एक भी लब्ज नहीं कहा था... ’’
इस  ख़याल  के  आते  ही  किंग  ठिठक  गया,  इस  सबके  पीछे  कहीं  दत्त  का हाथ...
‘‘ये   कैसे   सम्भव   है ?’’   दूसरे   मन   ने   अविश्वास   व्यक्त   किया ।   असम्भव कुछ  भी  नहीं ।  उसे  समझाकर  तो  देखूँ... कोशिश  करूँ...  मन  में  निश्चय  करते हुए उसने ड्यूटी पेट्टी ऑफिसर को  बुलाया ।
ड्यूटी  पेट्टी  ऑफिसर  ऐन्ड्रयूज  कम्युनिकेशन  बैरेक  में  दत्त  को  ढूँढ़ते  हुए आया । वहाँ  इकट्ठा  हुए सैनिकों को और उनके बर्ताव को देखकर वह हकबका गया । उसने इशारे से ही दत्त को बाहर बुलाया और किंग   का   सन्देश   दिया ।
अरे,  आज तो मुझे नौसेना से मुक्त करने वाले हैं ना ?’    बैरेक के वातावरण में खो गए दत्त को याद आर्ई ।
आज  सुबह  से  तो  तलवार  का  प्रशासन  ठप  पड़ा  है ।  एक  भी  कार्यालय खोला  नहीं  गया  है ।  फिर  कागजात  कैसे  पूरे  होंगे ?’  दत्त  के  मन  में  सन्देह  उठा ।
शायद गोरे सैनिकों को बिठाया होगा काग़ज़ात पूरे करने के लिए ।’’    दूसरे मन ने जवाब दिया ।
यह असम्भव है । फिर   किंग   ने   क्यों बुलाया है ?   शायद वापस सेल  में डालने के लिए ।   मन   में   फिर   सन्देह   उठा ।
‘‘हाँ,   यह   असम्भव   नहीं!   हमेशा   विरोध   करने   वाले   मन   ने   सहमति जताई ।
‘‘अब  यदि  सलाखों  के  पीछे  डाल  दें  तो  भी  परवाह  नहीं ।  चिनगारी  पैदा हो   चुकी   है ।   वड़वानल   भड़केगा ।’’   उसे   यकीन   था ।
‘‘मैं  किंग  से  मिलकर  आता  हूँ,  उसने  बुलाया  है ।’’  दत्त  ने  खान  और  मदन से कहा ।



‘‘देखो,    बेस में ये जो कुछ भी हो रहा है उसे रोकने में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए ।’’ एन्ड्रयूज़ के साथ आए दत्त को    देखते    ही    किंग    सीधे    विषय    पर    ही    आया ।
''Petty officer Andrews, you may...''  एन्ड्रयूज़ इशारा समझ गया और वह चेम्बर से बाहर निकल गया।
‘‘अरे    बैठो ।’’    किंग    ने    लगभग    खींचते    हुए    दत्त    को    कुर्सी    पर    बैठाया ।
‘‘रिलैक्स,    सिगरेट ?’’     एक सिगरेट अपने  होठों में झुलाते हुए  उसने पूछा  और सिगरेट का पैकेट बढ़ा दिया ।     ‘‘ये लो,     अरे लो,     शर्माओ मत!’’    उसने आग्रह किया ।
दत्त ने किंग की नजरों से नजरें मिलाते हुए सिगरेट ले ली । अरे, अभी क्या हुआ  है!  ज़रा इस विद्रोह को भड़कने  दें; फिर नाचेगा! सही  में  नाचेगा!  वह    पुटपुटाया ।
‘‘देेखो,  जब  तुम्हें  सरकार  विरोधी  काम  करते  हुए पकड़ा गया तो मैंने  तुम्हें बचाया था । वरना आज तुम कम से कम छह साल के लिए गिट्टी फोड़ने गए होते । सिर्फ मेरे कारण सेवामुक्ति पर रफ़ादफ़ा हो रहा है ।’’      किये   गए   उपकार का बोझ दत्त पर लादने की कोशिश कर रहा था किंग ।
‘‘मुझे यकीन है कि तलवारमें सुबह से जो हंगामा चल रहा है उसे तुम और सिर्फ तुम ही रोक सकते हो । मेरी ख़ातिर,   सिर्फ   मेरी   ख़ातिर,   अगर   तुम इतना    करोगे,    तो    मैं    तुम्हारे    लिए    काफी    कुछ    करूँगा ।’’
किंग  की  बुद्धि सामर्थ्य  और  परिस्थिति  के  बारे  में  उसके  ज्ञान  पर  दत्त  को दया आ रही थी ।
सरकार  विरोधी  नारे  मैंने  लिखे,  इन्क्वायरी  के  चलते  भी  मैंने  नारे  लगाए;  मुझ पर गोलियों की भी बौछार करो तो भी मैं कुछ बताने वाला  नहीं - ऐसा कहने वाला  सैनिक  बिक  जाएगा  ये  इसने  सोचा  कैसे ?’  दत्त  मन  ही  मन  सोच  रहा  था ।
ये इसकी चाल तो नहीं... शायद नहीं है...  पानी गलेगले तक आ गया है इसलिए ये मिन्नतें । एक बार पानी नीचे    उतर    गया    तो    ये    दुबारा    शेर    हो    जाएगा ।
 ‘‘यह विस्फोट तुम्हारे आज तक के बर्ताव की परिणति है ।’’  किंग की नज़र से नज़र मिलाकर दत्त कह रहा था । ‘‘इस विस्फोट को रोकने की ताकत किसी में भी नहीं। असल में तो,   मेरे लिए ये सम्भव नहीं है और यदि सम्भव होता, तो भी मैं यह करूँगा नहीं । आन्दोलन से गद्दारी नहीं करूँगा।’’
‘‘तुम  अपने  आप  को  समझते  क्या  हो ?  मैं  तुम्हें  अभी  भी  गिरफ्तार  कर सकता    हूँ,’’    गुस्से    से    आँखें    गोलगोल    घुमाते    हुए    किंग    ने    धमकाया ।
‘‘कल तक यह सम्भव था । आज असम्भव है । ज़रा बाहर जाकर हालात का जायज़ा तो लो!’’  दत्त ने हँसतेहँसते    जवाब दिया ।
‘‘तू मुझे अकल न सिखा । हिन्दुस्तानी नौसैनिकों ने विरोध...’’
‘‘मि.   किंग,’’   किंग   को   बीच   ही   में   टोकते   हुए   दत्त   कहने   लगा,   ‘‘आज सुबह  से  जो  कुछ हो  रहा  है  वह  विरोध  नहीं  है ।  वो  आजादी  के  लिए  किया  गया विद्रोह  है । Please, Correct your language.''
‘‘ठीक है। मैं गोरे सैनिकों  द्वारा  तुम्हें  गिरफ्तार  करवा  सकता  हूँ ।’’  किंग की आवाज़ में लापरवाही थी ।
‘‘हिम्मत हो तो करके देखो ।’’   दत्त का आह्वानात्मक सुर । ‘‘मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया है यह समझने की ही   देर है,   गुस्साए हुए सैनिक तुम्हारे साथ तुम्हारे ऑफिस को भी नष्ट कर देंगे ।’’
‘‘दत्त    को    आजाद  करो!’’
‘‘किंग को माफी - माँगनी पड़ेगी!’’
‘‘किंग को सज़ा - मिलनी ही चाहिए!’’
दूर   से   दिये   जा   रहे   नारे   अब   स्पष्ट   सुनाई   दे   रहे   थे ।   दत्त   को   किंग   ने बुलाया है और उसकी गिरफ्तारी की सम्भावना है इस बात पर गौर करते ही  सैनिक नारे लगाते हुए जुलूस में किंग के दफ़्तर की ओर निकले ।
नारे  कान पर पड़ते ही किंग सतर्क हो गया ।
‘‘मुझे   हालात   बिगाड़ने   नहीं   हैं,   तुम   जा   सकते   हो,’’   किंग   ने   पीछे   हटने का   निर्णय लिया।
‘‘तुम   कह   रहे   थे   कि   ये   सैनिक   तुम्हारी   बात   नहीं   सुनेंगे ।   मगर   तुम्हारी गिरफ़्तारी के सिर्फ सन्देह मात्र से वे यहाँ आए हैं । तुम समझाओ उन्हें । उनकी माँगें क्या हैं ये समझ लो और मुझे बताओ; मैं   आज   के   आज   उन्हें   पूरा   करूँगा ।’’
किंग के आश्वासन से दत्त को हँसी आ गई ।
दत्त  को  किंग  के  ऑफिस  से  बाहर  आते  देख  सारा  वातावरण  नारों  से  गूँज उठा । घड़ी ने एक का घण्टा बजाया । बेचैन किंग धम् से नीचे बैठ गया । ‘‘सब ख़त्म हो गया,   रॉटरे की दी हुई मोहलत ख़त्म हो गई!’’   वह   अपने   आप   से   बुदबुदा रहा था,    ‘‘अब सारा भविष्य रॉटरे के निर्णय पर... ’’
एक  बजकर  पाँच  मिनट  हुए  और  रॉटरे  की  स्टाफ  कार  रियर  एडमिरल  का झण्डा और स्टार प्लेट दिखलाते हुए तलवार    के मेन गेट से अन्दर आई ।
''Look Jones, there are no sentries at the main gate.'' रॉटरे उसके साथ आए हुए कैप्टेन इनिगो जोन्स से कह रहा था ।
''Look at those shabby sailors wandering like stray dogs.''  यूँ ही घूम रहे सैनिकों की ओर देखते हुए इनिगो    जोन्स    ने    कहा ।
‘‘इस  किंग  ने  सैनिकों  को  गालियाँ  देकर  बेकार  में  मुसीबत  मोल  ली  है । अब यह सब हमें ही सुलझाना होगा । ये उतना आसान नहीं है, जितना दिखाई देता है ।’’    रॉटरे ने क्रोध से कहा।
''Go back Rautre."
''Fulfill our demands!''  रॉटरे की कार देखकर सैनिक नारे लगा रहे थे । कार के सामने आ रहे थे ।
अरे भडुवों,   रॉटरे वापस जा कहते हो क्या ?   चार दिनों में तुम्हें सीधा नहीं  किया  तो  अपना  नाम  बदल दूँगा!  अनुशासित  जीवन  के  अभ्यस्त  रॉटरे  को इस अनुशासनहीनता  पर बड़ा क्रोध आ रहा था ।
एक  शानदार  मोड़  लेकर  रॉटरे  की  कार  किंग  के  ऑफिस  के  सामने  रुकी ।
किंग  ने  शीघ्रता  से  बाहर  आकर  कार  का  दरवाजा  खोला ।  रॉटरे  के  साथ  आया कैप्टेन इनिगो    जोन्स    भी    नीचे    उतरा ।
''Where are the ratings?'' किंग के अभिवादन को अनदेखा करते हुए रॉटरे ने पूछा ।
''In the barracks, sir.''  किंग   ने   जवाब   दिया ।
''Did you see them personally?'' रॉटरे ने पूछा ।
''No sir, but I detailed some officers...''  किंग ने थरथराती आवाज़ में जवाब दिया ।
''Oh, hell with you.'' रॉटरे की  आवाज़ में अब चिढ़ थी । ‘‘तुम खुद बैरेक में क्यों नहीं गए ?    समय का महत्त्व तुम कैसे नहीं समझते ?’’
किंग  पर  बिफ़रते  हुए  ही  रॉटरे  कार  में  बैठा । ''Wait here till I return."  किंग  को  उसने  आदेश  दिया और वह बैरेक  की  ओर  गया ।  रॉटरे  को  अचानक बैरेक  में  आया  देखकर  सैनिकों  को  आश्चर्य  हुआ ।  एकएक  करके  अनेक  लोग रॉटरे के आसपास जमा हो गए ।
‘‘क्या    रॉटरे    हमारी    माँगें    पूरी    करेगा ?’’
‘‘वह   क्या   कहना   चाहता   है ?’’
‘‘सबको    एक    साथ    गिरफ्तार    करने    तो    नहीं    आया ?’’
हरेक    के    मन    में    कारण    जानने    की    इच्छा    थी ।
''Friends...''
रॉटरे  ने  कहना  शुरू  किया ।  धूर्त  रॉटरे  अच्छी  तरह  जानता  था  कि  अगर यह सारा हंगामा जल्दी से ख़त्म करना है तो अपना ओहदा,   अधिकार...सब कुछ भूल कर सैनिकों से निकटता स्थापित करनी होगी ।
''I understand you are facing number of Problems.'  उसकी बातों की कोई दखल ही नहीं ले रहा था ।
"Bastards! समझते क्या हैं अपने आप को, bloody slaves."  इनिगो जोन्स अपने आप से बुदबुदाया । उसका यह बुदबुदाना रॉटरे के  ध्यान में आ गया ।
''Cool down Captain! यह गुस्सा करने का वक्त नहीं है । मुझे भी गुस्सा आया है । हमारे तांडव का कोई भी फ़ायदा नहीं होने वाला,   इसलिए वर्तमान परिस्थिति में उसे मन ही मन दबा देना ठीक रहेगा ।’’
‘‘दोस्तो!  मैं  तुम्हें  वचन  देता  हूँ–––’’  वह  एक  बार  फिर  सैनिकों  को  समझाने की  कोशिश  करने  लगा, ‘‘मेरे  अधिकार  में  जो  हैं,  वे  समस्याएँ  मैं  फौरन  सुलझा देता हूँ; मगर पहले तुम लोग काम पर वापस आओ!’’
रॉटरे   ने   अपनी   आवाज   को   यथासम्भव   मुलायम   बनाने   की   कोशिश   की; मगर आवाज़ की कठोरता और शासक होने के एहसास को वह छिपा नहीं सका ।
वह पलभर को रुका। उसने एक नज़र सैनिकों पर डाली । सैनिकों की नज़रों में निश्चय और दृढ़ता थी जिसे उसने महसूस किया । वह समझ गया कि उसके आह्वान का कोई उपयोग नहीं होगा ।
''Well,  मैंने अपनी शर्त तुम्हें बता दी, अब अपनी समस्याएँ सुलझाना या न सुलझाना तुम्हारे हाथ में है । मैंने तुम्हारी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, इस अपेक्षा से कि आप मेरी पेशकश स्वीकार करेंगे! ईश्वर आपको  सद्बुद्धि    दे!’’
रॉटरे  को  परिस्थिति  का  अध्ययन  करने  तथा  अगली  चालें  निश्चित  करने के  लिए  समय  चाहिए  था  और  इसीलिए  सैनिक  यदि  काम  पर  वापस  नहीं  लौटे तो इसके क्या परिणाम होंगे इस बारे में उसने कुछ भी नहीं कहा ।
रॉटरे कमाण्डर किंग,  ले.  कमाण्डर स्नो,  सब लेफ्टिनेंट नन्दा,   कोहली,  रॉड्रिक्स से मिला। दिसम्बर से घटित हुई    घटनाओं को समझते हुए उसे यह स्पष्टत: महसूस हो गया कि तलवार     के सैनिकों का विरोध केवल सैनिकों के असन्तोष का परिणाम नहीं  है,  बल्कि  राष्ट्रीय  आन्दोलन,  आन्दोलन  के  नेता,  भूमिगत  क्रान्तिकारी – इन सबके सहयोग का परिणाम है । वरना बहिष्कार,   सत्याग्रह   आदि शब्द,   जो सैनिकों को ज्ञात ही नहीं थे,   अंग्रेज़   विरोधी नारे वगैरह आते ही नहीं । मन में उठ रहे सन्देहों से रॉटरे सतर्क हो गया । उसने मन ही मन निश्चय किया   कि   राष्ट्रीय पक्षों   तथा   भूमिगत   कार्यकर्ताओं   के   सहयोग   को   सबसे   पहले   रोकना   ही   होगा ।
उसकी कंजी आँखों में एक अजीब चमक आ गई । रॉटरे तलवार   से बाहर निकलते हुए अगली कार्रवाई की दिशा निश्चित कर चुका था ।
रॉटरे  के  तलवार  से  जाते  ही  किंग  ने  राहत  की  साँस  ली ।  कम  से  कम अब तक तो रॉटरे ने किंग को दोष नहीं दिया था। किंग ने बेसके गोरे और हिन्दुस्तानी  अधिकारियों  को  एंटेरूम  में  इकट्ठा  किया। रोज मदहोश  करने  वाले मयखाने के आज खुद ही होश उड़े हुए थे ।
परिस्थिति  को  सामान्य  कैसे  किया  जाए  यही  चर्चा  का  विषय  था ।  नयेनये उपाय  सुझाए  जाते,  उनमें  निहित  कठिनाइयों  पर  ध्यान  जाता  और  उन्हें  नामंज़ूर कर  दिया  जाता ।  गोरे  अधिकारी  दिल से  इस  चर्चा  में  भाग  नहीं  ले  रहे  थे ।  उनमें से अनेकों ने समयसमय पर किंग को परिस्थिति से अवगत कराया था, मगर हर  बार  अपने  ही  घमण्ड  में  चूर  किंग  कहता,  ‘‘परिस्थिति  पर  मेरा  नियन्त्रण है, ''My ship, my command" रॉटरे   की   विनती   ठुकराने   वाले   सैनिक   हमें   घास नहीं डालेंगे,  हमारी    बात    नहीं    सुनेंगे,    यह    इन    अधिकारियों    को    मालूम    था ।



तलवार  से  निकलकर  रॉटरे  सीधा  अपने  ऑफिस  पहुँचा ।  उसने  घड़ी  की  ओर देखा - दोपहर का डेढ़ बज रहा था। सूर्यास्त तक, मतलब साढ़े छ: बजे तक पूरे पाँच घण्टे उसके हाथ में थे। उसने फ्लैग ऑफिसर कमाण्डिंग रॉयल इण्डियन नेवी एडमिरल गॉडफ्रे से सम्पर्क स्थापित किया। गॉडफ्रे रॉटरे के सन्देश की राह ही    देख    रहा    था ।
‘‘मैंने  दोपहर  एक  बजे  तलवार  के  सैनिकों  से  सम्पर्क  स्थापित  किया ।’’ रॉटरे अपने प्रयत्नों के  बारे में    बता रहा था । ‘‘सैनिक तिलभर भी  पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।’’
‘‘उनकी    माँगें    क्या हैं ?’’    गॉडफ्रे    ने    पूछा ।
‘‘बारबार पूछने के बाद भी उन्होंने अपनी माँगें नहीं बताईं । मगर एक बात  स्पष्ट  है  कि  चाहे  किंग  की  गालीगलौज  से  सैनिक  क्रोधित  हो  गए  हों,  चाहे वे सेवा सम्बन्धी परिस्थितियों के    कारण असन्तुष्ट हों,    फिर भी इसके पीछे भूमिगत क्रान्तिकारियों और कट्टर कार्यकर्ताओं का हाथ है । मुझे शक है कि यह विद्रोह सिर्फ मुट्ठीभर ज़्यादा खाने के लिए नहीं है ।’’    रॉटरे ने स्पष्ट किया ।
‘‘ये  सब  फौरन  ख़त्म  करो,  किंग  का  तबादला  कर  दो,  सैनिकों  की  माँग समझ लो । जितनी सम्भव हों उतनी मान लो । कुछ माँगों के लिए चर्चा का नाटक जारी रखो । ये संक्रमण और जगहों पर न फैलने पाए। इसलिए मौके को देखकर झुक जाओ । अगर ज़रूरत पड़े तो आर्मी की मदद लो । By hook or crook you must squash up the problem. And send me four hourly report.'' गॉडफ्रे    ने    सूचनाएँ    दीं ।
‘‘सर,  मैं  शाम  को  एक  बार  फिर  कोशिश  करने  वाला  हूँ ।  सर,  मेरा  ख़याल है कि  हमें  राजनीतिक  पक्ष  और  राष्ट्रीय  नेताओं  को  इससे  दूर  रखना  चाहिए।’’ रॉटरे    ने    कहा ।
‘‘ठीक है । यह  हमारा  अन्तर्गत  मामला  एवं  सेना  के  अनुशासन  का  प्रश्न है । इसे हमें ही सुलझाने दें ।   कृपया   आप   इसमें   हस्तक्षेप      करें ।   ऐसी   प्रार्थना हम   राष्ट्रीय   पक्षों   से   और   नेताओं   से   कर   सकते   हैं ।’’   गॉडफ्रे   ने   सुझाव   दिया ।
‘‘आप   सोचते   हैं   कि   वे   इसे   मान   लेंगे ?’’   रॉटरे   ने   सन्देह   व्यक्त   किया ।
‘‘कांग्रेस  के  नेता  अब  थक  चुके  हैं ।  उन्हें  आज़ादी  की  जल्दी  मची  हुई  है । यदि  उन्हें  यह  सुझाव  दिया  जाए  कि  सैनिकों  का  पक्ष  लेने  अथवा  उन्हें  समर्थन देने का प्रयत्न करने से स्वतन्त्रता सम्बन्धी वार्तालाप में रोड़ा आ सकता है, तो वे इस सबसे दूर रहेंगे ।’’    गॉडफ्रे ने व्यूह रचना बतलाई ।
‘‘यदि ऐसा हुआ तो हमारा काम आसान हो जाएगा । आज तक के विद्रोहों की भाँति इस विद्रोह को भी हम कुचल देंगे।   मैं   हर   चार   घण्टे   बाद   आपको   रिपोर्ट भेजता    हूँ ।’’    रॉटरे    ने    रिसीवर    नीचे    रखा ।



रियर   एडमिरल   रॉटरे   की   स्टाफ   कार   तलवार   के   परिसर   में   प्रविष्ट   हुई ।   तब   साढ़े छह बजे थे । गेट पर पहरा नहीं था । सैनिक बेरोकटोक तलवारमें आवाजाही कर   रहे   थे ।   रॉटरे   की   चाणाक्ष   नजरों   ने   ताड़   लिया   कि   परिस्थिति   में   कोई   परिवर्तन नहीं  हुआ  है ।  स्टाफ  कार  बैरेक  के  सामने  रुकी ।  सफेद  झक  पोशाक  वाले  ड्राइवर ने   नीचे   उतरकर   अदब   से   कार   का   दरवाज़ा खोला । शासनकर्ता के रोब में ही रॉटरे बैरेक में घुसा। बैरेक में चारों ओर अनुशासनहीनता दिखाई दे रही   थी ।
बिस्तर   वैसे   ही   पड़े   थे। जगहजगह सिगरेट के टुकड़े,   कागज़ों   के   गोले   बिखर थे ।  लगता  था  कि  सुबह  से  बैरेक  में  झाडू  भी  नहीं  मारी  गई  है ।  एक  कोने  में छह व्यक्तियों का गुट ताश खेलने में मशगूल था। कुछ लोग लेटे थे । जगहजगह गप्पें  मारी  जा  रही  थीं ।  बैरेक  में  आए  हुए  रॉटरे  की  ओर  किसी  का  भी  ध्यान नहीं था ।
''Good evening, Friends.'' रॉटरे ने सबका अभिवादन किया। यह उसके खून में रसा हुआ शिष्टाचार था । सैनिकों के मन में अपनापन निर्माण करने की एक चाल थी ।
‘‘,    तुरुप चल ।’’   पाण्डे सुरजीत सिंह से कह रहा था ।
‘‘अबे, तीन तुरुप तो चल चुका, अब कहाँ का तुरुप ?’’ सुरजीत पूछ रहा था ।
वे  लोग  जानबूझकर  रॉटरे  को  अनदेखा  कर  रहे  थे ।  ये  बात  रॉटरे  के  ध्यान में आ चुकी थी; मगर उसने कोशिश जारी रखने का निश्चय कर लिया था ।
‘‘फ्रेन्ड्स, मैं फिर एक बार तुम्हारे पास आया हूँ । आज सुबह मैंने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया था,   तुमसे काम पर वापस लौटने की अपील की थी,   तुम्हारी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिली इसलिए दुबारा यहाँ आया हूँ,’’  रॉटरे अकेला ही बड़बड़ा रहा था। कोई भी उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा था ।
‘‘मैं एक बार फिर तुम्हें आश्वासन देता हूँ कि तुम्हारी समस्याएँ सुलझाने की मैं पूरीपूरी कोशिश   करूँगा ।   तुम्हारे   लिए   मेरे   मन   में   किसी   भी   प्रकार   की द्वेषभावना   नहीं   है ।’’   रॉटरे   पलभर   को   रुका ।   उसने   चारों   ओर   नजर   दौड़ाई । आज    जितना    अपमानित    वह    पहले    कभी    नहीं    हुआ    था । 'Bastards!  ये    सब    शान्त हो  जाने  दो, फिर  देख  लूँगा  एकएक  को ।  वह मन  ही  मन  तिलमिला  रहा  था । मन    के    भाव    चेहरे    पर        लाते    हुए    वह    उन्हें    समझाने    लगा ।
‘‘मेरी    बस    एक    ही    प्रार्थना    है,    तुम    लोग    काम    पर    वापस        जाओ!’’
रॉटरे    की    बातों    में    छिपी    धूर्तता    को    दत्त,    गुरु    और    खान    भाँप    गए    थे ।
‘‘मतलब,  पहले  सैनिक  काम  पर  आएँ’’  दत्त  ने  आगे  बढ़कर  रॉटरे  से  पूछा, ‘‘और   इसके   बाद   जितनी   सम्भव   होंगी,   आपके   अधिकार   क्षेत्र   में   होंगी   वे   समस्याएँ आप    सुलझाएँगे,    यही    कह    रहे    हैं    ना ?’’
रॉटरे    ने    गर्दन    हिलाई ।
‘‘क्या    आप    हमें    बेवकूफ    समझते    हैं ?’’    दत्त    ने    पूछा ।
‘‘कोई भी ठोस उपलब्धि हुए बिना हम अपना आन्दोलन वापस ले लें ?’’
‘‘वैसी  बात  नहीं,  दोस्तो!  मुझसे  जितना  सम्भव  होगा  उतनी  समस्याएँ  मैं सुलझाऊँगा । मुझ पर भरोसा    रखो!’’    रॉटरे    ने    समझाने    की    कोशिश    की ।
‘‘ठीक  है ।  मैं  और  एक  कदम  आगे  बढ़ता  हूँ ।  दोस्ती  का  हाथ  बढ़ाता  हूँ । तुम्हारी मुख्य शिकायतें कमाण्डर किंग के बारे में हैं । हम अपने परस्पर सहयोग का पहला कदम मैं बढ़ाता हूँ - कमाण्डर किंग को इसी    क्षण से तलवार    के कैप्टन के पद से हटाता हूँ । तलवार   के सारे सूत्र कैप्टन इनिगो जोन्स के हाथों में सौंप   रहा   हूँ ।’’
रॉटरे  का  यह  अन्दाजा  कि  सैनिक  उसकी  इस  घोषणा  का  स्वागत  करेंगे, गलत निकला ।
‘‘अब यदि हम खामोश रहे तो रॉटरे इसे हमारी सम्मति मानकर कुछ बातें हम पर लाद देगा । अब हमें बोलना ही   चाहिए ।’’   गुरु   ने   दत्त   से   पुटपुटाकर   कहा ।
‘‘सिर्फ बोलने से कुछ नहीं होगा । कड़ा विरोध करना चाहिए और हमारी माँगें आगे बढ़ानी चाहिए।’’    दत्त ने    कहा ।
‘‘हमें    जोन्स    नहीं    चाहिए ।’’    खान    ने    आगे    बढ़कर    जोर    से    कहा ।
‘‘क्यों    नहीं    चाहिए ?    वह    एक    अच्छा    अधिकारी    है ।’’    रॉटरे    ने    अपनी    पेशकश का    समर्थन    किया ।
‘‘वो  अच्छा  होगा  तुम्हारे  लिए ।  हम  हिन्दुस्तानी  सैनिकों  की  नज़र में उस जैसा नीच और हिन्दुस्तान का द्वेषी अधिकारी और कोई नहीं । वह डॉकयार्ड में था,  सरकारमें था, वहाँ की समस्याएँ वह सुलझा नहीं सका; उल्टे हिन्दुस्तानी सैनिकों को बिना किसी कुसूर के उसने आननफानन में सज़ा दे डाली । गोरे सैनिकों का हमेशा बचाव किया । उसका विश्वास है कि हिन्दुस्तानियों का जन्म ही गुलामों की ज़िन्दगी जीने के लिए हुआ है - उस जोन्स को हम पर मत लादिये ।’’
खान    शान्ति    से    मगर    दृढ़तापूर्वक    कह    रहा    था ।
''It is a good sign. we are establishing communication, filling up the gaps. That's a good spirit. Come on speak out.''
खान के जवाब से उत्पन्न अप्रसन्नता को मन ही में दबाकर, कृत्रिम हँसी से रॉटरे उन्हें बोलने के लिए प्रवृत्त कर रहा था। उसका ख़याल था कि सैनिक जब  बोलने लगेंगे  तो  उनके  मन  में  हो  रही  हलचल  का  पता  चलेगा,  उन्हें  क्या चाहिए इसका अनुमान हो जाएगा, उनके पीछे कौन है इसका अन्दाज़ा हो जाएगा ।
‘‘फिर तुम्हें कौन चाहिए ?   तुम्हें आख़िर चाहिए क्या ?’’    रॉटरे ने पूछा ।
‘‘हमें कोई भी हिन्दुस्तानी अधिकारी चलेगा । अंग्रेज़ अधिकारियों के नीचे हम काम नहीं करेंगे ।’’   गुरु चिल्लाया ।
‘‘हमें आजादी चाहिए। तुम यह देश छोड़कर चलते बनो।’’   मदन चिल्लाया ।
और वहाँ एकत्रित सैनिकों ने नारे लगाना शुरू कर दिया:
‘‘क्विट   इण्डिया!’’
‘‘वन्दे    मातरम्!’’
करीब पाँच मिनट तक नारे चलते रहे । रॉटरे कुछ क्षण खामोश रहा, फिर जोरजोर  से  चिल्लाचिल्लाकर,  हाथ  हिलाहिलाकर  उसने  सैनिकों  को  शान्त  रहने की अपील की । मगर शोरगुल कम हुआ ही नहीं । चीखपुकार चलती रही ।
''Silence please, silence!'' दत्त आगे आया और उसने सैनिकों को शान्त  रहने को कहा । सैनिक खामोश हो गए ।
‘‘रॉटरे क्या कहना चाहता है यह हम सुन लेते हैं । उसे स्वीकार करना है अथवा नहीं,  इसका फैसला हम बाद में  करेंगे । सुनने में क्या हर्ज़ है ?’’  दत्त ने सैनिकों को समझाया।
‘‘आप कहिये,  आपको जो कहना है कहिये। वे शान्तिपूर्वक सुनेंगे।’’   रॉटरे की ओर देखते हुए दत्त ने कहा ।
रॉटरे ने दत्त की ओर देखा । उसकी एक नज़र में कई अर्थ छिपे हुए थे । रॉटरे इस बात को समझ गया था कि   सैनिकों   का   यह   विद्रोह केवल वेतन,   खाना, बर्ताव जैसी छोटीमोटी माँगों की ख़ातिर नहीं था,   बल्कि वह   स्वतन्त्रता   आन्दोलन का एक हिस्सा था; और खान, दत्त तथा गुरु उनके नेता थे । उसने मन ही मन इन घटनाओं की ओर एक अलग दृष्टि से देखने का और अलग तरीके से उन्हें सुलझाने का निश्चय किया ।
‘‘मैं  तुम्हें  एक  और  मौका  देता  हूँ,  तुम  अपने  प्रतिनिधि  चुनो,  अपनी  माँगों की फेहरिस्त तैयार करो और सुबह साढ़े नौ बजे तक मुझे दो ।’’ उसने सैनिकों से कहा,   ‘‘माँगें पेश करने से पहले तुम काम पर वापस लौटो ।’’
‘‘काम पर वापस लौटने की शर्त हम कभी भी मान्य नहीं करेंगे ।’’ मदन ने चीखते हुए कहा ।
‘‘हमारा कोई भी प्रतिनिधि चर्चा करने के लिए तुम्हारे दरवाज़े पर नहीं आएगा । हमारी ओर से राष्ट्रीय पक्ष का नेता  तुमसे  चर्चा  करेगा ।  यह  नेता  कौन होगा यह आपको कल सूचित किया जाएगा ।’’  खान ने चिल्लाकर    कहा ।
‘‘रॉटरे Go back!''  सैनिकों के नारे शुरू हो गए और अपमानित रॉटरे तेज़ी से बैरेक से बाहर निकल गया ।
रियर एडमिरल रॉटरे,  पश्चिमी किनारे का सर्वोच्च नौदल अधिकारी; किसी अंग्रेज़ अधिकारी की भी उसकी नज़रों से नज़र मिलाकर बात करने की हिम्मत नहीं होती थी; मगर आज...  उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था । वह समझ ही नहीं  पा  रहा  था  कि  उसने  यह  अपमान  कैसे  सहन  किया। मगर  यह  सच  था । उसने अपमान का हलाहल निगला था। बिलकुल शान्ति से। वह दो कदम पीछे हटा था । चीते की तरह छलाँग लगाने के लिए ।
आज तक के विद्रोहों जितना आसान नहीं है यह विद्रोह । ये सैनिक अकेले नहीं हैं उनके पीछे अवश्य ही राष्ट्रीय नेता,  भूमिगत  क्रान्तिकारी  होने  चाहिए ।वह मन ही मन विचार कर रहा था । सैनिकों के मन में लावा उफ़न रहा है ।  वह सतर्क हो गया ।
चाहे   जो   भी   हो   जाए,   राष्ट्रीय   पक्षों   के   हाथ   में   यह   विद्रोह   जाना   नहीं चाहिए ।  उसका  चप्पू  अपने  ही  हाथ  में  रखना  होगा । उसने  मन  ही  मन  निश्चय किया ।
रॉटरे    के    चेहरे    पर    अब    बेफिक्री    का    भाव    नहीं    था;  बल्कि ये  प्रकरण आसान नहीं है ।  यह चिन्ता    थी ।
स्टाफ कार   में   बैठते   हुए   उसने   अपने   आप   से   पूछा,  आगे क्या करना चाहिए ?’
भूदल सैनिकों की सहायता लेकर यदि इन आन्दोलनकारी सैनिकों को गिरफ़्तार कर लिया जाए तो?’
हालात बिगड़ जाएँगे... यदि भूदल के सैनिक अपने देशबन्धुओं के खिलाफ़ खड़े    हुए  तो... यह  दावानल  पूरे देश  में  फैल  जाए  तो... अंग्रेज़ों  का  बचा  हुआ साम्राज्य...’’
इस   ख़याल   के   आते   ही   वह   चौंक   गया   और   उसके   दूसरे   मन   ने   आदेश दिया,    सब्र करो ।
गॉडफ्रे   को   यह   सब   सूचित   कर   दिया   जाए   और   उसकी   सलाह   के   मुताबिक कार्रवाई की    जाए    उसने    निश्चय    किया    और    वह    तलवार    से    बाहर    निकला ।




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Vadvanal - 23

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