शनिवार, 10 मार्च 2018

Vadvanal - 09





रियर  एडमिरल  रॉटरे  ने  दिल्ली  में  फ्लैग  ऑफिसर  कमांडिंग  रॉयल  इंडियन  नेवी, वाइस  एडमिरल  गॉडफ्रे  से सम्पर्क  करके  उन्हें  तलवार  पर  घटित  घटनाओं  की जानकारी दी थी । गॉडफ्रे ने जाँचसमिति     गठित करने की सलाह दी; बल्कि जाँचसमिति   के   अधिकारियों   के   नाम   भी   उसी   ने   बताए।   इस   समिति   में   तलवारसे   कोई   नहीं   था ।   जाँचसमिति   में   चार   अधिकारी   थे ।   दो   हिन्दुस्तानी   और दो अंग्रेज़ । रियर एडमिरल कोलिन्स इस समिति का अध्यक्ष था । कैप्टेन पार्कर नामक अंग्रेज़ी  अफसर  के  साथ  कमाण्डर  खन्ना  और  कमाण्डर  यादव - ये  दो  हिन्दुस्तानी अधिकारी     थे ।     कमाण्डर     खन्ना     दुभाषिये     का     काम     करने     वाला     था ।     दत्त     की     अलमारी से    मिली    डायरियाँ    और    काग़ज़ात  से मिले सबूत वह प्रस्तुत करने वाला था ।
दत्त   को   आठ   बजे   इन्क्वायरी   रूम   की   ओर   ले   जाया   गया ।   जाँच   साढ़े   आठ बजे   आरम्भ   होने   वाली   थी ।   वातावरण   का   दबाव   डालने   के   लिए   उसे   आधा   घण्टा इन्तजार    करवाया    गया ।
शेरसिंह  की सलाह के अनुसार सारे आरोप मान्य करना है,   मगर खुलासा नहीं करना है । मालूम नहीं, याद नहीं... ऐसे ही जवाब देना है ।दत्त सोच रहा था । कल किंग को जैसे धक्के दिये थे, वैसे ही आज जाँच समिति को भी देना है... ज्यादासेज्यादा  क्या  कर  लेंगे ?  फाँसी  तो  नहीं  ना  देंगे... और  दी  तो  दी । सैनिक   भड़क   उठेंगे...  
आठ बजकर पच्चीस मिनट पर जाँचसमिति के सदस्य इन्क्वायरी रूम में आए । अपनीअपनी जगह पर बैठने   के   बाद   कोलिन्स   ने   सदस्यों   को   जाँचसमिति के कार्यक्षेत्र और समिति के अधिकारों के बारे में जानकारी दी और दत्त को हाज़िर करने का हुक्म दिया ।
दत्त बड़े रोब से इन्क्वायरी रूम में आया । उसके मन पर किसी भी तरह  का दबाव नहीं था । मन विचलित नहीं   था । वह शान्त प्रतीत हो रहा था । उसका ध्यान मेज़ पर रखे कागज़ों और डायरियों की ओर गया ।
बेकार  ही में डायरी लिखने की आदत डाल ली,’    वह अपने आप से बुदबुदाया, ‘यह  तो  खुशकिस्मती  है  कि  उसमें  नाम  स्पष्ट  नहीं  लिखे  हैं;  जो  हैं वे    सांकेतिक    भाषा    में    हैं,    अन्य    प्रविष्टियाँ    भी    वैसी    ही    हैं ।
''Read out the charges.'' कोलिन्स   ने   पार्कर   को   हुक्म   दिया ।

''Dutt, leading telegraphist, official No. 6018, was absent from the place of duty on the second day of February one thousand nine hundred forty six, did behave arrogantly and disobeyed his seniors. Did carry out the acts which are included in mutiny. And appealed other sailors to join the mutiny...'' पार्कर  आरोप  पढ़  रहा  था ।  इन्क्वायरी रूम    में    खामोशी    छाई    थी ।
इतने सारे आरोपों का मतलब है उम्रकैद या फाँसी...   कम     से     कम     आठदस सालों का सश्रम कारावास तो होगा ही होगा... आरोप मान लूँ ? जो सरकार...उसने    मन    में    विचार    किया ।
‘‘क्या    तुम    आरोप    स्वीकार    करते    हो ?’’    पार्कर    ने    पूछा ।    दत्त    हँस    पड़ा,    ‘‘जिस सरकार को मैं नहीं मानता उस सरकार द्वारा लगाये गए आरोपों को मैं स्वीकार कर लूँगा,    यह    आपने    सोच    कैसे    लिया ?’’    दत्त    ने    सवाल    किया ।
‘‘हमें प्रतिप्रश्न नहीं चाहिए ।’’ कोलिन्स की आवाज में धमकी थी । ‘‘यह जाँच   समिति   है - यह   याद   रखो   और   उसी   प्रकार   बर्ताव   करो,   पूछे   गए   सवालों के जवाब    दो । तुम्हें ये आरोप   मान्य हैं ?’’
दत्त    ने    पलभर    सोचा    और    जवाब    दिया,    ‘‘सारे    आरोप    मान्य    हैं ।’’
''That's good.'' कोलिन्स  को  मन  ही  मन  खुशी  हो  रही  थी,  ''You may sit down now.''  एक स्टूल की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा ।
दत्त स्टूल पर बैठ गया । स्टूल इतना ऊँचा था कि दत्त के पैर ज़मीन पर टिक नहीं रहे थे । करीबकरीब हवा में बैठा था । वह स्टूल ऐसी जगह पर रखा था कि वहाँ बैठने से चेहरे पर प्रखर प्रकाश आ रहा था ।   इस   कारण   दत्त के चेहरे  के  बिलकुल  सूक्ष्म  भाव  भी  स्पष्ट  नजर    रहे  थे ।  उस  कमरे  का  वातावरण ही    ऐसा    बनाया    गया    था    कि    एक    मानसिक    दबाव    उत्पन्न    हो    जाए ।
‘‘ये पोस्टर्स    तुम्हारे    पास    कहाँ    से    आए ?’’    कमाण्डर    खन्ना    ने    पूछा ।
‘‘मैंने   खुद   बनाये हैं ।’’
 ‘‘शहर   में   भी   ऐसे   ही   पोस्टर्स   लगे   हैं । कैसे   कह   सकते   हो   कि   ये   उनमें से ही नहीं हैं ?   दोनों   पोस्टर्स   की   भाषा   एक   समान   क्यों   है ?’’   पार्कर   ने   पूछा ।
‘‘हमारी भावनाएँ एक हैं ,   इसीलिए   भाषा   एक   है ।   अगर   आपको   यकीन नहीं    हो    रहा    हो    तो    बिलकुल    ऐसा    ही    पोस्टर    मैं    अभी,    इसी    पल    तैयार    करके    दिखाता हूँ, जिससे आपको विश्वास हो जाए, और अगर चाहें तो आप उसे यहीं चिपका सकते   हैं,   जिससे   समानता   समझ   में      जाए ।’’   दत्त   के   चेहरे   पर   व्यंग्य   था ।
''Leading telegraphist Dutt, be serious, you are facing the board of enquiry. This is the last warning for you !'' कोलिन्स   ने   धमकाया ।
दत्त    सिर्फ    हँसा ।    उसका    उद्देश्य    सफल    हो    रहा    था ।
‘‘इस पोस्टर    की    इबारत    सरकार    विरोधी    है    यह    तुम    समझते    हो ?’’
‘‘ये  पोस्टर  मैंने  ही  तैयार  किया  है ।  इसका  एक  एक  शब्द  मैंने  ही  सोचा और  उन्हें  सोचते  हुए  वह  सरकार  विरोधी  हो  इस  बात  का  पूरा  ख़याल  रखा  है,’’ दत्त    अडिग    था ।
दत्त को हर पोस्टर दिखाया जा रहा था और एक ही सवाल अलगअलग तरह से    पूछा    जा    रहा    था ।
‘‘ये    सारे    पोस्टर्स    तुमने    ही    बनाए    हैं ?’’
‘‘हाँ’’,   दत्त   ने   जवाब   दिया ।
‘‘तुम्हें    एक    पोस्टर    बनाने    में    कितना    समय    लगा    था ?’’
‘‘ये    पोस्टर    दुबारा    बनाकर    दिखाओ,    कहे    अनुसार    पाँच    मिनट    में ।’’
दत्त    ने    पोस्टर    तैयार    करके    दिखा    दिया,    तब    कमाण्डर    खन्ना    ने    पूछा,    ‘‘अभी तुमने   जो   शब्द Brothers लिखा   है,   वह   पोस्टर   में   लिखे Brothers से अलग लग    रहा    है ।    इस    पोस्टर    को    लिखने    में    तुम्हारी    किसने    सहायता    की ?’’
‘‘सारे   पोस्टर्स   मैंने   खुद   ही   लिखे   हैं ।   मनोदशा   में   अन्तर   होने   के   कारण लिखाई  में  फर्क    गया  है ।  मेरी  किसी  ने  भी  मदद  नहीं  की  है ।’’  दत्त  शान्ति से    जवाब    दे    रहा    था ।
वहाँ बोले गए हर शब्द को नोट करने के लिए एक स्टेनो नियुक्त किया गया था । उसके द्वारा लिखा गया हर   शब्द टाइप हो रहा था और उसकी एकएक प्रति  हर  अधिकारी  को  दी  जा  रही  थी ।  दत्त  के  जवाबों  के  फर्क  को  नोट  किया जा    रहा    था ।
तीव्र   प्रकाश   के   कारण   दत्त   अस्वस्थ   हो   रहा   था ।   उसने   चिल्लाकर   कहा, ‘‘इस   बेस   में   पिछले   तीन   महीनों   में   ब्रिटिश   सरकार   के   विरुद्ध   जो   भी   पोस्टर्स  चिपकाए   गए,   जो   भी   नारे   लिखे   गए   वह   सब   मैंने   अकेले   ने   किया   है ।   मुझे   इसका गर्व  है,  क्योंकि  मेरा  हर  कदम  देशप्रेम  की  भावना  से  उठाया  गया  था,  देश  की स्वतन्त्रता के लिए उठाया गया था और इस सबका    जो आप चाहें वह मूल्य चुकाने के लिए मैं तैयार हूँ । बिलकुल फाँसी भी!’’
''Don't get excited.'' कोलिन्स ने शान्ति से समझाया । ‘‘तुमसे केवल अपराध  कबूल  करवाना  ही  इस  समिति  का  काम  नहीं  है,  हमें  इस  अपराध  की जड़ तक पहुँचना है । जब तक तुम सत्य नहीं बताओगे, अपने साथियों के नाम हमें  नहीं  बताओगे; हम  तुम्हें  छोड़ेंगे  नहीं ।  बारबार  वही  सवाल  दुहराएँगे,  मेंटल टॉर्चर   करेंगे ।   अगर   इस   सबको   टालना   चाहते   हो   तो   पूरी   बात   सहीसही   बता दो ।’’      अब      कोलिन्स      धमका      रहा      था ।      दत्त      शान्त      था ।      उसे      इसी      बात      का      अन्देशा         था ।
‘‘30 नवम्बर से लेकर तुम्हारे गिरफ्तार होने तक जो कुछ भी हुआ,   विस्तार से  बताओ ।’’  पार्कर  ने  कहा,  ‘‘याद  रखो ।  तुम्हारा  एकएक  शब्द  नोट  किया  जा रहा    है ।’’
दत्त,  उसे  जो  भी  याद    रहा  था,  वह  अपनी  मनमर्जी  से,  बेतरतीबी  से बता रहा था । उससे एक ही प्रश्न बारबार पूछा जा रहा था और दत्त जानबूझकर घटनाओं  के  क्रम  को  ऊपरनीचे  कर  रहा  था,  समय  बदल  रहा  था,  उद्देश्य  एक ही था,    समिति को हैरान करना ।
‘‘पहले तुम कहते हो कि नारे पहले लिखे; फिर तुम कहते हो कि पोस्टर्स पहले   चिपकाए; कभी कहते हो रात के   दस   बजे   शुरुआत   की; कभी कहते हो सुबह दो बजे शुरुआत की; ऐसा अन्तर क्यों ?’’    खन्ना ने पूछा ।
‘‘मैं  गड़बड़ा  गया  हूँ ।  इसीलिए,  हालाँकि  मुझे  सारी  घटनाएँ  याद  हैं,  मगर उनका    क्रम    और    समय    याद    नहीं        रहा ।’’    दत्त    ने    जवाब    दिया ।
‘‘हम   तुम्हें   ऐसे   नहीं   छोड़ेंगे ।   तुम्हें   सब   कुछ   याद   करना   पड़ेगा ।’’   यादव ने डाँट  पिलाते हुए कहा ।
अब  सारे  सदस्य  प्रश्नों  की  बौछार  करने  के  लिए  तैयार  हो  गए ।  वे  उसे सोचने    के    लिए    समय    ही    नहीं    देने    वाले    थे ।
‘‘तुम्हारे    साथ    कौनकौन    रहता    था ?’’    खन्ना।
‘‘कोई   नहीं ।   मैं   अकेला   ही   था ।’’   दत्त
‘‘तुम    सारा    सामान    कहाँ    रखते    थे ?’’    पार्कर।
‘‘जहाँ जगह मिले,   वहीं ।’’   दत्त।
‘‘मतलब,   कहाँ ?’’   खन्ना।
 ‘‘शौचालय  की  बिगड़ी  हुई  टंकी  में,  अलमारी  के  पीछे;  बिलकुल  जहाँ  जगह मिल जाए वहीं’’,    दत्त
‘‘इन    स्थानों    के    बारे    में    और    किसे    जानकारी    थी ?’’    कोलिन्स
‘‘सिर्फ   मुझे ।’’
‘‘इस   काम   के   लिए   ड्यूटी   छोड़कर   कितनी   बार   बाहर   आए ?’’   कोलिन्स
‘‘कई   बार   गिना   नहीं ।’’   दत्त
‘‘तुम्हें    सामान  लाकर    देने    वाले    दो    लोग    थे,    ये    सही    है ?’’    खन्ना
‘‘मैं    ही    सामान    लाता    था ।’’    दत्त
‘‘कोई   पकड़   लेगा   इसका   डर   नहीं  लगा ?’’   यादव
‘‘कौन पकड़ेगा ?   कोल में अकल की कमी थी और किंग का आत्मविश्वास झूठा था ।’’   दत्त
‘‘सीनियर्स के बारे में ऐसा बोलते हुए शर्म नहीं आती ?’’    खन्ना की आवाज़ में   चिढ़   थी ।
‘‘सच बात ही कह रहा हूँ और सच बोलने में किसी के बाप से नहीं डरता!’’ दत्त
‘‘तुम्हारे इन जवाबों पर समिति ने गौर किया है ।’’    इसके परिणाम बुरे होंगे ।’’    कोलिन्स
''I care a hang.'' दत्त
‘‘पूछे गए सवालों के सीधे और सही जवाब दो । हमें सत्य ढूँढ़ निकालना है ।’’    यादव ने गुस्से से कहा ।
‘‘मेरे  जवाब  सही  ही  हैं ।  तुम  ढूँढो  ,  सच  क्या  है ।’’  दत्त  भी  चिढ़  गया था ।
इन्क्वायरी  रूम  का  वातावरण  गरम  हो  चला  था ।  उसे  ठण्डा  करने  के  लिए कोलिन्स     ने     पाँच     मिनट     की     छुट्टी     ली ।     रूम     में     समिति     के     सदस्यों     के लिए चायबिस्किट्स   आए; सिगार और सिगरेटें जलीं । गप्पें छँटने लगीं । मगर दत्त वैसे ही    अटपटेपन    से    बैठा    रहा ।
‘‘1  जनवरी,  1945  को  एस.बी.  से  मिला,  ऐसा  लिखा  है ।  ये  एस.बी.  कौन है ?’’ खन्ना ने एक डायरी का पन्ना टटोलते हुए पूछा प्रश्नों का बौछार का यह संकेत    था ।
‘‘सत्येन   बोस ।’’   दत्त ।
‘‘कहाँ   रहता   है   वह ?’’   खन्ना ।
 ‘‘वी.टी.   स्टेशन   पर ।’’
‘‘कौन है वह ?’’   यादव ।
‘‘हज्जाम साला,    हज्जाम है ।’’
‘‘उससे किसलिए मिले थे ?’’
‘‘दाढ़ी    बनवाने    के लिए ।’’
‘‘दुबारा    कब    मिले ?’’
‘‘जब   दाढ़ी   बढ़   गई   तब ।’’
दत्त  के  इस  जवाब  से  कोलिन्स  को  क्रोध    गया ।  उसकी  और  समिति के सदस्यों  की समझ में आ   गया   था   कि वह इस जाँच की ज़रा भी परवाह नहीं कर रहा है,    सच को छुपाने की कोशिश कर रहा    है ।
‘‘दत्त,     don't bullshit! सवालों का सम्मान करके उनके जवाब दो । सवालों का मज़ाक बनाकर मनमर्जी से जवाब     मत     दो ।     इसकी     कीमत     तुम्हें     चुकानी     पड़ेगी ।’’
कोलिन्स    के   शान्ति    से    कहे    जा    रहे    हर    शब्द    में    कठोरता    थी ।
‘‘मुझे जो याद आ रहा है जैसा याद आ रहा है वही बता रहा हूँ ।’’ दत्त ने लीपापोती    की ।
‘‘तुम्हारी     डायरी     में     लिखे     गए     ये     आँकड़े     कैसे     हैं ?’’     पार्कर     ‘‘दोस्तों     की     लम्बाई के,    वज़न के....,
बस यूँ ही मज़ाक में लिख लिए थे ।’’
‘‘आर. वी.टी.    का क्या  मतलब है ?’’
‘‘याद   नहीं ।’’
सवाल   पूछे   जा   रहे   थे ।   दत्त   जो   मुँह   में   आए   वो   कह   रहा   था ।   शुरू   में उसे अच्छा  लगा ।  मगर  बाद  में  यह  सब  बर्दाश्त  के  बाहर  होने  लगा ।  पूरे  साढ़े चार  घण्टे – सुबह साढ़े  आठ  बजे  से  दोपहर  के  एक  बजे  तक - पैर लटकाए उस स्टूल पर बैठना; पूरा शरीर जकड़ गया था ।
जाँच   कमेटी   के   सदस्यों   को   हर   आधे   घण्टे   में   चाय,   कॉफी,   शीतल   पेय, फल  आदि  दिये जा  रहे  थे ।  सिगरेट  वे  पी  सकते  थे ।  उकता  जाने  पर  थोड़ा  टहल सकते    थे ।
मगर   दत्त   मानो   उस   स्टूल   से   बँधा   बैठा   रहा ।   ऊपर   से   वह   तीव्र   प्रकाश और  सवालों  की  बौछार;  मस्तिष्क  धुनक  गया  था ।  भूख  से  पेट  में  चूहे  दौड़  रहे थे । यह सब कब खत्म होगा,    इसकी वह बेचैनी से राह देख रहा था ।
कमेटी  दत्त  को  बेज़ार करके  सत्य  खोजना  चाहती  थी ।  उसके  साथियों  को ढूँढना था । कमेटी सन् 1857 की पुनरावृत्ति नहीं चाहती थी । उन्हें आजाद  हिन्दुस्तानी के  रूप  में  दूसरी  आज़ाद हिन्द सेना का निर्माण नौसेना  के  भीतर  नहीं होने देना था । बग़ावत के इस बढ़ते हुए पौधे को यहीं उखाड़ फेंकना था ।
''Secure Hands to Dinner!'' क्वार्टर    मास्टर    ने    घोषणा    की ।
''Board is adjourned till 14.30 hrs today.'' सामने रखी फाइल बन्द करते हुए एडमिरल कोलिन्स ने घोषणा की ।
''March off the accused.''  कमाण्डर   खन्ना   ने   ऑर्डर   दिया ।
दत्त   ने   राहत   की   साँस   ली । वह स्टूल से नीचे उतरा । उसके पेट में खलबली मच   रही   थी ।   कानों में विचित्रविचित्र आवाज़ें आ रही थीं । पहरेदारों की सहायता से वह किसी तरह सेल    में    आया ।    सेल    में    उसका    खाना        चुका    था । खाने की  इच्छा  ही  नहीं  हो  रही  थी ।  मगर  दोपहर  को  दुबारा  जाँच  का  सामना  करना है ।  अत:  पेट  में  कुछ  डालना  ही  चाहिए  इसलिए  उसने  खाना  बड़े  बेमन  से  छुआ ।
पानी के घूँट के साथसाथ चार निवाले मुँह में डाले । पेट बुरी तरह से खलबला गया । वह समझ गया कि शरीर मन का साथ नहीं दे पा रहा है ।
‘‘नहीं,    ऐसा नहीं होना चाहिए!’’    वह स्वयं को हिदायत दे रहा था ।
‘‘ये तो कुछ भी नहीं । असली इम्तहान तो आगे है । इसलिए स्वयं को सँभालना होगा ।’’
पेट में बड़ा लोढ़ा घूम गया,     शरीर की शक्ति किसी ने निचोड़ ली,   भड़भड़ाकर उल्टी  और  चक्कर...  खुद  को  सँभालने  से  पहले  ही  वह  गिर  गया ।  किसी  तरह घिसटते  हुए  गन्दगी  से  दूर  हुआ ।  बड़ी  देर  तक  वह  पड़ा  रहा ।  उठना  हो  ही  नही पा रहा था ।
‘‘अब  कुछ  करना  चाहिए,  वरना  गलती  से  मुँह  से  निकला  एक  भी  शब्द घात  करेगा!’’  वह  पुटपुटा  रहा  था ।  कुछ  भी  सूझ  नहीं  रहा  था ।  मस्तिष्क  कीचड के गोले की तरह लिबलिबा हो रहा था ।
क्वार्टर    मास्टर    ने    चार    घण्टे    बजाये ।    दो    बज    रहे    थे ।
''Come on, get up and get ready.''  गोरा सन्तरी दत्त पर बरसा । दत्त किसी  तरह  उठा ।  कपड़े  ठीक  किए ।  शेरसिंह  से  मिलना  चाहिए  था–––’’  मन  में ख़याल  आया  और  सुबह  दास  ने  धीरे  से  जो  चिट्ठी  थमाई  थी  उसकी  याद  आई ।
वह    सँभला ।
इन्क्वायरी रूम के ऊँचे स्टूल पर वह  सन्तुलन बनाए बैठा । सवालों की बारिश फिर शुरू हो गर्ई ।
‘‘तुमने    सरकार    विरोधी    काम    किए    हैं ?’’    पार्कर
 ‘‘मैंने   स्वीकार   किया   है ।’’   दत्त
‘‘क्या  तुम्हें  याद  है  कि  तुमने  सरकार  के  प्रति  ईमानदार  रहने  की  अपनी निष्ठा   हर   मैजेस्टी   के   चरणों   पर   अर्पित   करने   की   शपथ   ली   थी ?’’   खन्ना
‘‘हाँ ।’’   दत्त
‘‘फिर यह  गद्दारी  करने  के  लिए  तुम  क्यों  प्रवृत्त  हुए ?  तुम्हें  ये  सब  करने के लिए किसने उकसाया ।’’    पार्कर।
‘‘शपथ  ली  थी  तब  मैं  बेवकूफ  था ।  स्वतन्त्रता  का  मूल्य  मैं  नहीं  जानता था । मगर आज मुझे स्वतन्त्रता   का   सही   अर्थ   समझ   में      गया   है ।   मुझे   उकसाने की ज़रूरत ही नहीं थी ।    मैं    खुद    ही    भड़क    उठा    था ।’’    दत्त
स्वतन्त्रता,      सत्याग्रह,      कानून      तोड़ना - ये सारे राजनेताओं के खेल हैं ।  सैनिकों का इससे कोई लेनादेना   नहीं   है ।   मुझे   आज्ञा   देने   वाले   लोग   वैध   हैं   या   नहीं;  उनकी  आज्ञाएँ  कानूनन  सही  हैं  अथवा  नहीं;  इस  सबका  विचार  सैनिकों  को  नहीं करना  चाहिए,  यह  बात  तुम  निश्चित  रूप  से  जानते  हो ।  तुमने  अपने  मन  से  यह सब किया नहीं है,  तुम्हें बाहरी क्रान्तिकारियों की शह है । कौन थे ये क्रान्तिकारी ?’’ कमाण्डर यादव
दत्त   कमाण्डर   यादव   को   और   उस   जैसे   अन्य   हिन्दी   अधिकारियों   को   अच्छी तरह जानता था । अपने स्वार्थ के लिए वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, इस बात की उसे जानकारी थी । कमाण्डर यादव ने   दत्त   से   प्रश्न   पूछकर   अपनी   निष्ठा स्पष्ट     की     थी ।     दत्त     ने     यादव     को     खरीखरी     सुनाने     का     निश्चय     कर     लिया,     ‘‘स्वतन्त्रता हर   व्यक्ति   का   नैसर्गिक   अधिकार   है,   फिर   चाहे   वह   व्यक्ति   सैनिक   हो,   मुल्की हो  या  अधिकारी  हो,  उसे  यह  अधिकार  मिलना  ही  चाहिए ।  यदि  यह  अधिकार अप्राप्य हो तो  परिणामों की परवाह किये बिना इस अधिकार के लिए    प्रयत्न करना चाहिए । किसी भी व्यक्ति को अपनी निष्ठा सर्वप्रथम अपनी मातृभूमि को,  मातृभूमि की स्वतन्त्रता को समर्पित करना चाहिए । जो व्यक्ति अपनी तथा मातृभूमि की स्वतन्त्रता  को  तिलांजलि  देकर  क्षुद्र  स्वार्थ  के  लिए  विदेशियों  के  पैर  चाटते  हैं  उन्हें इस  देश  में  रहने  का  अधिकार  नहीं,  ऐसा  मेरा  दृढ़  विश्वास  है  और  इसीलिए  पूरी तरह से स्वतन्त्र रूप से मैं सत्ता के विरुद्ध खड़ा हो गया ।’’
दत्त के उत्तर से यादव और खन्ना गुस्से से लाल हो गए थे । यदि सम्भव होता  तो  वे  दत्त  पर  हाथ  भी  चला  देते,  मगर  कोलिन्स  के  सामने  यह  सम्भव  नहीं था ।
''Mind your language, पूछे गए सवालों के सीधेसीधे जवाब दो ।  औरों को  सिखाने  की  कोशिश  मत  करो,  और  यह  मत  भूलो  कि  तुम  एक  सैनिक  हो, राजनेता नहीं,’’    कोलिन्स    ने    कहा ।
दत्त    को    शेरसिंह    की    याद    आई ।    सुबह    दास    के    हाथों    आया    सन्देश - ‘‘हिम्मत करो ।  अंग्रेज़ों के विरुद्ध खड़े रहो । तुम्हारे पीछे सैनिक खड़े हो जाएँगे,    सर्वसामान्य जनता   खड़ी   हो   जाएगी–––   यही   वक्त   है ।   चल   उठ,   आवाहन कर अगले संघर्ष का...’’   शेरसिंह   के   शब्द   मन   में   गूँजने   लगे ।   उसकी   क्षीणता   दूर   हो   गई ।   एक नये चैतन्य का आभास हुआ और वह झट    से    उठकर    खड़ा    हो    गया ।
‘‘मैं  तुम्हारी  इस  रॉयल  इंडियन  नेवी  के  कायदेकानूनों  को  नहीं  जानता । हिन्दुस्तान   की   स्वतन्त्रता   के   लिए   खड़ा   हुआ   स्वतन्त्रता   सैनिक   हूँ   मैं...’’   दत्त   चीख रहा    था ।
''You better shut your mouth and answer the questions'', तिलमिलाया हुआ रियर एडमिरल कोलिन्स चिल्लाया ।
''No. you cannot keep my mouth shut. I am fighting for the freedom of my motherland.'' दत्त चिल्ला रहा था। '' I am a freedom fighter and you must treat me as a political prisoner.'' वह दृढ़ निश्चय के साथ खड़ा    रहा ।
दत्त   की   इस   अचानक   चली   गई   चाल   से   जाँच   कमेटी   के   सदस्य   अवाक् रह  गए ।  इससे  पूर्व  भी  नौसेना  में  विद्रोह  हुए  थे,  मगर  ऐसी  माँग  तो  किसी  ने भी   नहीं   की   थी ।   दत्त   मन ही मन खुश हो रहा था,   वांछित परिणाम प्राप्त हो गया    था ।
‘‘तुम   एक   सैनिक   हो   और   सैनिकों के सारे कायदेकानूनों से बँधे हो’’, खन्ना चीखा ।
‘‘चिल्लाचोट मचाकर मुझे डराने की कोशिश न करो । मैं राजनीतिक कैदी हूँ । नारे मैंने लिखे हैं, पोस्टर्स चिपकाए   हैं,   और   उन्हें   चिपकाते   हुए   तुमने   मुझे पकड़ा  है ।  इसलिए  तुम्हें  मुझे  राजनीतिक  कैदी  का  दर्जा  देना  होगा ।  राजनीतिक कैदियों  को  दी  जाने  वाली  सुविधाएँ  मुझे  मिलनी  चाहिए,  वरना  मैं  तुम्हारे  किसी भी   सवाल   का   जवाब   नहीं   दूँगा ।   सत्याग्रह   शुरू   कर   दूँगा ।’’   खन्ना   से   अधिक ऊँची  आवाज़  में दत्त ने सुनाया ।
‘‘सन्तरी ऽऽऽ’’     यादव ने दत्त को काबू में लाने के लिए सन्तरी को पुकारा ।
‘‘बुला, सन्तरी को बुला ।’’ दत्त ने जमीन पर पालथी मारे बैठते हुए कहा और   उसने   जाँच   कमेटी   को   चेतावनी   दी । “मैं पूरी बेस को यहाँ इकट्ठा करता हूँ और फिर...’’   वाक्य आधा छोड़कर उसने नारे लगाना शुरू     किया,     ‘‘वन्दे मातरम्... जय हिन्द... क्विट इण्डिया... अंग्रेज़ों!  चले जाओ... ’’
''Stop him! Hey, you, stop this nonsense!''  कोलिन्स    चीखा ।
‘‘मारो,  पीटो साले को!’’  यादव और खन्ना सन्तरी पर चिल्लाए ।
दरवाजे़    में    खड़े    सन्तरी    की    दत्त    को    रोकने    की    हिम्मत    ही    नहीं    हुई ।
‘‘क्या   हुआ ?   कौन   चिल्ला   रहा   है ?   किसलिए   चिल्ला   रहा   है ?’’   दत्त   की चीखपुकार   से   एडमिनिस्ट्रेटिव   ब्लॉक   के   सारे   सैनिक   इन्क्वायरी   रूम   के   सामने इकट्ठा    होकर    एकदूसरे    से    पूछ    रहे    थे ।
''Come on, all of you get back to your work! Come on!''  पार्कर के चिल्लाने का वहाँ एकत्रित सैनिकों पर कोई    असर    नहीं    हो    रहा    था ।
''Oh, god! इसे रोकना ही होगा ।’’ कोलिन्स अपने आप से बुदबुदाते हुए  दत्त के निकट गया और यथा सम्भव दिमाग को ठण्डा रखकर उसे समझाने लगा ।
''Listen to me, stop shouting and listen to me.''
दत्त शान्ति से उठकर खड़ा हो गया । उसने नारे लगाना बन्द कर दिया ।
कोई भी  समझ  नहीं  पा  रहा  था  कि  क्या  करना  चाहिए ।  दत्त  ने  एक  बार  फिर बाज़ी मार ली थी ।    उसने जाँच कमेटी को परेशानी में डाल दिया था ।
''You wait outside, we shall let you know our decision.'' कोलिन्स ने दत्त से कहा और दत्त पहरेदार के साथ   बाहर   गया ।   बाहर जातेजाते   उसने फिर    से    चेतावनी    दी, ''Remember, my cooperation depends on your decision.''   
दत्त के बाहर जाने के बाद जाँच कमेटी के अधिकारी अपनीअपनी जगह बैठ गए । उनके चेहरों पर अस्वस्थता     झलक     रही     थी । नौसेना     के     कानून     के     अनुसार क्या   गुनहगार   सैनिक   राजनीतिक   कैदी   हो   सकता   है ?’   कोलिन्स   के   इस   सन्देह पर   पार्कर   ने   नौसेना   के   कानूनों   की   किताबें   पलटना   शुरू   कीं,   मगर कोई कड़ी नहीं    मिली ।
‘‘सर,  कानून  में  तो  ऐसा  कोई  प्रावधान  नहीं  है,  यदि  हो  तो  भी  दत्त  को राजनीतिक  कैदी  का  दर्जा  दिये  जाने  पर  भविष्य  में  इसके  क्या  परिणाम  होंगे  इस पर    भी    विचार    करना    होगा ।’’    खन्ना    के    मन    में    भय    था ।
‘‘कमाण्डर खन्ना ठीक कह रहे हैं । कल को हर गुनहगार चार नारे लगाएगा और राजनीतिक कैदियों की सुविधाएँ माँगने लगेगा ।’’ यादव ने खन्ना की बात का    समर्थन    किया ।
 ‘‘मेरा ख़याल है कि नौसेना के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक डेढ़ दमड़ी का काला सैनिक एक रियर एडमिरल के सामने मुँह उठाकर न सिर्फ  बोल  रहा  है,  बल्कि  मेरी  माँगें  पूरी    हुर्इं  तो  मैं  असहकार  आन्दोलन  करूँगा ऐसी धमकी  दे रहा है । It is too much. We must teach him a good lesson.'' खन्ना ने    अपनी    राय    दी ।
‘‘इन्कलाब जिन्दाबाद, वन्दे मातरम्, जय हिन्द’’ बाहर हो रही गड़बड़ी से बेचैन  होकर  कोलिन्स  ने  पार्कर  की  ओर  देखा,  ‘‘ये  सब  बन्द  कमरे  में  हो  रहा था तब तक तो ठीक था । मगर अब खुले में, सबके सामने इसका परिणामgo and stop it.'' उसने पार्कर से कहा । पार्कर शीघ्रता से बाहर आया ।
‘‘क्या   गड़बड़   है ?’’   उसने   पहरेदार   से   पूछा ।
‘‘मैं बताता हूँ, तुमने जो ऊँचा स्टूल दिया था उस पर बैठने से मेरी पीठ अकड़  गई  है । इसलिए मैंने इस पहरेदार  से  एक  कुर्सी  माँगी  तो  साला  डरपोक मुझसे  कहता  है,  तू  एक  कैदी  है,  साम्राज्यद्रोही  है ।  अधिकारियों  की  इजाज़त के बगैर दूँगा तो मुझे सज़ा हो जाएगी ।’’  दत्त ने जानकारी दी और पार्कर के सामने ही पहरेदार पर चिल्लाया,   ‘‘अरे,   बहरा हो गया है क्या?   क्या कह रहा हूँ,   वो सुनाई नहीं देता?  मुझे कुर्सी चाहिए...।’’
‘‘दे उसे, कुर्सी लाकर दे ।’’ पहरेदार से पार्कर ने कहा । 
‘‘हँ  हँ,  एक  मिनट अब  मुझे  कुर्सी  नहीं चाहिए । अब मुझे बेंच चाहिए। अन्दर तुम लोगों की चर्चा पूरी होने तक थोड़ी नींद ले लूँगा ।’’   पार्कर   की   ओर   देखते   हुए   दत्त   ने   कहा ।
दत्त  की  इस  मुँहजोरी  पर  पार्कर  को  गुस्सा    गया  था । यह अपने आप को समझ क्या रहा है ? Bloody black pig!’  मन ही मन उसने दत्त को गालियाँ  दीं, मगर चेहरे पर कुछ भी न दिखाते हुए उसने सन्तरी से कहा, ‘‘ठीक है उसे बेंच लाकर दे ।’’
सन्तरी  ने  उसे  बेंच  लाकर  दी ।  उस  सन्तरी  के चेहरे  पर प्रशंसायुक्त  आदर के भाव थे । आज  पहली   बार   उसने   एक   हिन्दुस्तानी   सैनिक   को   शाही   नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी को बिना डरे उल्टे जवाब देते हुए देखा था; अधिकारी को झुकाते हुए देखा था।
इन्क्वायरी  रूम  में  कोलिन्स  सिर  पकड़कर  बैठा  था । स्टिवर्ड  द्वारा लाई गई गरमागरम चाय के दो घूँट पीकर उसे कुछ अच्छा लगा । कोलिन्स ऊपर से शान्त प्रतीत  हो  रहा  था,  मगर  भीतर  से  वह  बहुत  अस्वस्थ  था ।  अपने  खलासीजीवन में    उसने    अनेक    तूफानों    का    सामना    किया    था ।
वे सारे तूफ़ान प्रकृति निर्मित थे । मगर आज का यह तूफ़ान एक फटीचर सैनिक  ने  अचानक  खड़े  होकर  अपने  देशप्रेम  के  बलबूते  पर  पैदा  किया  था ।  इस तूफान में न केवल जाँच कमेटी की नैया,   बल्कि अंग्रेज़ी   हुकूमत के विशाल जहाज़ के भी डूबने की आशंका से वह बेचैन हो गया था । उसे डर था कि यह तूफ़ान सब    कुछ ध्वस्त कर देगा ।
''It is too much, sir!'' पार्कर वहाँ की खामोशी तोड़ते हुए अपने विचार प्रस्तुत कर रहा था,   ‘‘मेरा   ख़याल   है   कि   हम   उसे   ज्यादा   ही   सिर   पर   चढ़ा   रहे हैं । उसे उसकी जगह दिखा देनी    चाहिए ।’’
''We must get rid of him at the earliest.'' खन्ना ने पुश्ती जोड़ी ।
''Take it easy. क्रोध    करने    से    काम    नहीं    चलेगा ।    पूरी    तरह    से    विचार    करना होगा ।’’    अनुभवी    कोलिन्स    ने    उन्हें    समझाया ।
‘‘हम इस समस्या के दोनों पक्षों पर विचार करेंगे । पहला - यदि उसे सहूलियत दी जाती है तो क्या होगा ?’’
‘‘सेना    में    एक    गलत    प्रथा    आरम्भ    हो    जाएगी ।’’    खन्ना।
‘‘सेना   का   सारा   अनुशासन   ख़त्म   हो   जाएगा ।   सेना   पर   से   हमारी   पकड़ छूट  जाएगी । हडताल,   सत्याग्रह,   काम   रोको   आदि   की   छूत   सेना   को   लग   जाएगी ।’’ यादव।
‘‘हिन्दुस्तान हाथ से निकल जाएगा और साम्राज्य पर से सूरज कुछ साल पहले ही अस्त हो जाएगा।’’    पार्कर
‘‘और  इस  सबके  लिए  जिम्मेदार  ठहराया  जाएगा  मुझे  और  सिर्फ  मुझे ।’’ कोलिन्स    ने    उद्विग्नता    से    कहा ।
‘‘और    यदि    सहूलियतों    से    इनकार    करें    तो––– ’’
‘‘सर,  मेरा  ख़याल  है,  सहूलियतों  से  इनकार  करें तो,  यदि वह जाँच कमेटी को सीधे रास्ते से सहयोग नहीं दे रहा हो,   तो हमें सख़्ती करनी पड़ेगी । वक्त आने पर थर्ड डिग्री मेथड का भी प्रयोग करना होगा, ‘‘खन्ना ने राजकर्ताओं को खुश करने वाला जवाब दिया ।
‘‘सर,   इतनी   आसानी   से   यह   निर्णय   नहीं   लिया   जा   सकता...। अकेले अपने बलबूते पर तो दत्त यह कर नहीं रहा है । यदि सहूलियतें न दी गईं तो एक तो वह  सहयोग  नहीं  करेगा; दूसरे चिल्लाचोट  मचाएगा ।  हमें  कुछ  भी  हासिल  नही होगा,    उल्टे क्रोधित सैनिक शायद बग़ावत कर देंगे । शायद दूसरा 1857…’’   पार्कर का सन्देह ।
‘‘सर,  मेरा  ख़याल  है कि यदि  उसके  पीछे  कोई  होता  तो  उन्होंने  अब  तक बग़ावत कर दी होती । ‘‘यादव ने पार्कर के शक को खारिज करने की कोशिश की । यादव के जवाब पर कोलिन्स हँस पड़ा ।
‘‘वे,  यूँ  ही,  अचानक  अंग्रेज़ों  के  ख़िलाफ  खड़े  होकर  क्या  आत्मघात  कर लेंगे ?  पिछले  तीन  महीनों  की  घटनाओं  पर  अगर  गौर  करें  तो  इसका  जवाब  होगा नहीं  एकएक  व्यक्ति  को  आगे  बढ़ाकर  माहौल  को  ज्यादा  से  ज्यादा  गरमाने का  उद्देश्य  है  उनका ।  देखा  नहीं  उसने,  दत्त  कैसे  आत्मविश्वास  से  बोल  रहा  था ? तुम   हिन्दुस्तानी   होकर   उनकी   चालें   नहीं   समझते ?’’   कोलिन्स   की   टिप्पणी   से   यादव का मुँह लटक गया ।
‘‘सर,    पहले  हमें इस बात की  जाँच करनी चाहिए कि क्या उनके पीछे केवल सैनिक  हैं,  या  बाहर  के क्रान्तिकारी  हैं ?’’  पार्कर  के  इस  विचार  पर  कोलिन्स  ने सहमति दर्शाई ।
‘‘दूसरे,  उसकी  माँगें  मामूली  भी  हो  सकती  हैं ।  यदि  वे  मामूली  हैं  तो  हम उन्हें  मान्य  कर  लेंगे ।  इसमें  हमारा  कोई  नुकसान  नहीं  है,  बल्कि  हमारे  दिल  का बड़प्पन    ही    दिखाई    देगा ।’’
‘‘तुम्हारी    बात    विचार    योग्य    तो    है; मगर...’’
कोलिन्स    को    बीच    ही    में    रोकते    हुए यादव कहने लगा,    ‘‘माफ कीजिए,    सर । मैं   पार्कर की   राय   से   सहमत   नहीं   हूँ ।   मेरे   अनुमान   से   दत्त   के   पीछे   हद   से   हद आठदस  सैनिकों का  गुट  होगा ।  दण्ड  और  भेद  की  नीति  अपनाकर  हम  उन्हें ढूँढ़ निकालेंगे ।’’
‘‘यादव, तुम मूर्खों के नन्दनवन में टहल रहे हो ।’’ पार्कर ने उसके ऊपर अखबार फेंकते हुए कहा,  ‘‘यह अखबार देखो। दत्त की गिरफ़्तारी की ख़बर उसकी फोटो समेत छपी है पहले पृष्ठ पर ।’’
‘‘मैंने  देखी  है  वह  ख़बर  और  इसीलिए  मैं  जल्दबाजी  नहीं  करना  चाहता । तुम    अपनी    राय    बताओ ।’’    कोलिन्स    ने    पार्कर    को    प्रोत्साहित    किया ।
‘‘सर,  ध्यान  दीजिए ।  आज  तक  नौसेना  में  कई  विद्रोह  हुए,  मगर  उनकी न तो कोई ख़बर बनी, न ही वह मुल्की लोगों को ज्ञात हुए । आज एक सैनिक को  गिरफ्तार  करते  ही    केवल  उसकी  ख़बर  बन  गई,  बल्कि  उसकी  फोटो  भी छप  गई - वह  भी  मोटेमोटे  अक्षरों में,  प्रमुख  समाचार  के  रूप  में – पहले पृष्ठ पर । इसी  का  यह  मतलब  हुआ  कि  दत्त  के  पीछे  केवल  सैनिक  ही  नहीं,  बल्कि  बाहर के   भूमिगत   क्रान्तिकारी   भी   हैं ।   वे   इस   घटना   पर   नजर   रखेंगे,   दत्त   की   इन   हरकतों की  प्रतिक्रियाओं  का  लाभ  उठाकर  वातावरण  कैसे  विस्फोटक  बनाया  जाए  और सेना   में   कैसे   बगावत   करवाई   जाए   इस   बारे   में   उन्होंने   कुछ   योजनाएँ   बनाई   होंगी । इसलिए हमें अत्यन्त सावधानी से कदम उठाना होगा ।’’ पार्कर ने परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए अपनी राय दी ।
‘‘तुम्हारा  कहना  उचित  है ।’’  कोलिन्स  ने  सहमति  प्रकट  की । ‘‘अब  निर्णय हमें लेना है । शायद हमारा निर्णय ऐतिहासिक सिद्ध हो । हमारा कोई भी कदम,  कोई   भी   निर्णय  यदि गलत सिद्ध हुआ तो उसके साम्राज्य पर घातक परिणाम होंगे  और  इसके  लिए  हम,  सिर्फ  हम,  पूरी  तरह  से  जिम्मेदार  होंगे ।  मेरा  विचार है कि हम जो भी निर्णय लें,    वह अपने वरिष्ठों की सलाह से लें ।’’
औरों   की   सम्मति   की   राह      देखते   हुए   उसने   रियर   एडमिरल   रॉटरे   से  फोन पर सम्पर्क स्थापित  किया  और  उसके  सामने  सारी  परिस्थिति  का  वर्णन  किया ।
‘‘तुम्हारा  निर्णय  उचित  है ।  मैं  दिल्ली  में  एडमिरल  गॉडफ्रे  से  सम्पर्क  करता हूँ  और  उनकी  राय  लेता  हूँ ।  क्योंकि  हमारी  तुलना  में  गॉडफ्रे  को  परिस्थिति  का बेहतर अनुमान होगा । फिर दो के बदले तीन व्यक्तियों द्वारा विचारविनिमय के पश्चात्  निर्णय  लेना  बेहतर  है  ।’’  रॉटरे  ने  जवाब  दिया  और  उसने  हॉट  लाइन  पर गॉडफ्रे    से    बात    की ।

‘‘कोलिन्स,    मैंने    गॉडफ्रे    से    विचारविनिमय    किया,’’    रॉटरे    फोन    पर    था । हिन्दुस्तान की वर्तमान परिस्थिति अत्यन्त   विस्फोटक   है   इस   बात   को   ध्यान   में रखकर ही योग्य कदम उठाने की सलाह   गॉडफ्रे   ने   दी   है ।   सेना   की   इस   अस्वस्थता के   पीछे   कुछ   राजनीतिक   दल   एवं   नेता   होंगे   ऐसा   खुफिया   विभाग   का   अनुमान है । सैन्य दलों की विस्फोटक परिस्थिति का फ़ायदा राजनीतिक   नेता   उठाएँगे ।   और हमें    बस    यही    टालना    है ।    इसलिए    हर    कदम    फूँकफूँककर    ही    रखना    होगा ।‘’
‘‘मगर   वर्तमान   परिस्थिति   में   मैं   क्या   निर्णय   लूँ ?   दत्त   को   कौनसी   सुविधाएँ दूँ ?’’    कोलिन्स    ने    पूछा ।
‘‘दत्त   को   आसानी   से   सुविधाएँ   मत   देना ।   सहयोग   देने   की   शर्त   पर   ही सुविधाएँ दो ।   राजनीतिक   कैदी   का   दर्जा   मत   देना   और   यदि   उसकी   खुशी   के   लिए देना पड़े तो भी उसको कहीं नोटन करना । यदि सुविधाएँ मामूली हों तो देने में  कोई नुकसान नहीं’’,   रॉटरे   ने   सलाह   दी ।

कोलिन्स इन्क्वायरी रूम में वापस लौटा । दत्त का चिल्लाना बन्द हो गया है यह देखकर उसने राहत की साँस ली ।
 ‘‘मैंने   रॉटरे   से   सम्पर्क   स्थापित   किया   था   और   अब   हम   रॉटरे   और   एडमिरल गॉडफ्रे    की    सूचनाओं    के    अनुसार    ही    कार्रवाई    करेंगे ।’’    कोलिन्स    अपनी    चाल    समझा रहा    था,    ‘‘हम    इतनी    आसानी    से    उसे    सुविधाएँ    नहीं    दे    रहे    हैं । यदि वह हमें सहकार्य देने के लिए तैयार हो तो छोटीमोटी सुविधाएँ दी जाएँगी,   मगर उनके बारे में कहीं भी नोट     नहीं     करेंगे ।     मेरा     ख़याल     है,     पार्कर,     कि     पहले     तुम     उससे     बात     करो ।’’
पार्कर ने    इस    जिम्मेदारी    को    स्वीकार    किया    और    वह    बाहर    आया ।
‘‘देखो,     तुम     एक     सैनिक     हो     और     नौसेना     के     कानून     के     मुताबिक तुम्हें राजनीतिक  कैदी  का  दर्जा  दिया  नहीं  जा  सकता ।  मगर  यदि  तुम  जाँच  के  काम में  पूरी  तरह  सहयोग  देने  के  लिए  तैयार  हो  तो  कमेटी  तुम्हारी  माँगों  के  बारे  में सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी ।‘’ 
‘‘तुम्हारी दया की भीख नहीं चाहिए मुझे । मुझे मेरा अधिकार चाहिए । मैं राजनीतिक कैदी हूँ,   जब तक मुझे मेरा हक प्राप्त नहीं होता,   मैं सहयोग नहीं दूँगा ।’’  और  वह  बेंच  पर  लेट  गया,  ‘‘मैं  यहाँ  से  हिलूँगा  नहीं ।  मैं  अपना  सत्याग्रह शुरू कर रहा हूँ ।’’    दत्त    ने    अपना    निर्णय    सुनाया ।
पार्कर को दत्त की इस बदतमीज़ी पर बड़ा क्रोध आया । वह उस पर चिल्लाते हुए बोला, ‘‘तू समझता क्या है अपने आप को ? तू इस तरह से रास्ते पर नहीं आएगा ।’’  पहरेदार  की  ओर  देखते  हुए  उसने  कहा,  ‘‘इसे  उठाकर  सेल  में  पटक दो,    बिलकुल बेंच समेत ।’’
पहरेदार  ने  पार्कर  को  सैल्यूट  मारा  और  जवाब  दिया,  ‘‘यस  सर ।’’  मगर बेंच   उठाने   के   लिए   कोई   भी   आगे   नहीं   आया ।   सुबह   से   रौद्र   रूप   धारण   किए हुए दत्त   से   वे   डर   गए थे । और उनके मन में दत्त के प्रति आदर भी पैदा हो गया    था ।
पहरेदारों   को   खड़े   देखकर   पार्कर   को   एक   अजीब   सन्देह   हुआ   और   वह   फिर से   चिल्लाया,   ‘‘मैंने   क्या   कहा   वो   सुना   नहीं   क्या   तुमने ?   चलो,   उठाओ   उसे ।’’
जैसे  ही  पहरेदार  आगे  बढ़े,  दत्त  ने  नारे  लगाना  शुरू  कर  दिया ।  पहरेदारों ने  उसे  उठाने  की कोशिश  की  तो  वह  बेंच  से  उतरकर  नीचे  जमीन  पर  लेट  गया ।
पहरेदारों   को   वह   चुनौती   देने   लगा,   ‘‘हिम्मत   हो   तो   उठाकर   ले   जाओ   मुझे!’’   और उसने    नारे    लगाना    शुरू    कर    दिया ।
बाहर     की     गड़बड़ी     बढ़ती     गई,     बेचैन     कोलिन्स     बाहर     आया     और     चीखा, ‘‘बन्द करो ये गड़बड़!’’
कोलिन्स का क्रोध चरम सीमा तक पहुँच चुका था । अधिकार होते हुए भी वह कुछ भी नहीं कर सकता था । अपने   गुस्से   को   पीते   हुए   वह   दत्त   पर   चिल्लाया, ‘‘तुम    भी    चुप    बैठो,    मुझे    तमाशा    नहीं    चाहिए ।’’
‘‘मैं   चुप   रहूँ,   यह   चाहते   हो   ना ?’’   दत्त   के   चेहरे   पर   सन्तोष   झलक   रहा था,  ‘‘तो  फिर  मुझे  राजनीतिक  कैदी  के  रूप  में  मान्यता  दो  और  उस  तरह  का बर्ताव    करो    मेरे    साथ!’’    दत्त    ने    कहा ।
‘‘ठीक   है ।   हम   तुम्हें   राजनीतिक   कैदी   का   दर्जा   देते   हैं;  मगर   तुम्हें   जाँच कार्य में पूरी तरह सहयोग देना होगा,’’    कोलिन्स    ने    दत्त    की    माँग    मान    ली ।
पहली    लड़ाई    जीतने    का    सन्तोष    दत्त    के    चेहरे    पर    था ।
धूर्त अंग्रेज़ों से पाला पड़ा है,   सावधान रहना होगा,’    उसने खुद को हिदायत दी ।
‘‘मुझे खाली वचन नहीं चाहिए, उस पर अमल भी होना चाहिए ।’’ उसने कोलिन्स    को    चेतावनी    दी ।
‘‘अमल      करने      से      क्या      मतलब      है ?      क्या      चाहते      हो ?      तुम्हें      ठीकठीक      कौनकौनसी  सुविधाएँ  चाहिए ?’’  ड्रामेबाज  कोलिन्स  ने  इस  बात  की  टोह  लेने  की  कोशिश की    कि    दत्त    की    छलाँग    कहाँ    तक    जाती    है ।
‘‘शौचालय  एवं  स्नानगृहयुक्त  सेल  में  मुझे  रखा  जाए;  सोने  के  लिए  पर्याप्त बिछानेओढ़ने  का  सामान मिलना  चाहिए; रोज  कम  से  कम  एक  घण्टा  खुली  हवा में घुमाने ले जाया जाए; जाँच के समय मुझे भी बीचबीच   में   विश्राम   मिलना चाहिए ।  इस  विश्रामकाल  के  दौरान  चाय  मिलनी  चाहिए;  जाँचकक्ष में  और  सेल में मुझे सिगरेट पीने की इजाजत मिलनी चाहिए और जाँच के दौरान मुझे बैठने के लिए कुर्सी मिलनी चाहिए ।’’    दत्त    ने    अपनी    माँगें स्पष्ट    कीं ।
‘‘अरे,  ये  तो  उचित  माँगें  हैं,  ‘‘कोलिन्स  ने  हँसते  हुए  कहा,‘‘तुम्हारी  ये  माँग हम    मानवतावादी    दृष्टिकोण    से...’’
‘‘तुम  अंग्रेज़  लोग  कितने  मानवतावादी  हो,  यह  मैं  अच्छी  तरह  जानता  हूँ । ये   सुविधाएँ   मुझे   राजनीतिक   कैदी   की   हैसियत   से   ही   मिलनी   चाहिए ।   आपकी मेहरबानी   नहीं   चाहिए ।’’   दत्त   ने   दृढ़ता   से   कहा ।
दत्त  जिस  दृढ़ता  और  जिद  से  माँग  कर  रहा  है,  उससे  यही  प्रतीत  होता है कि वह अकेला नहीं है ।कोलिन्स अनुमान लगा रहा था । सेना में सरकार विरोधी    कार्रवाई के कारण यदि किसी को सज़ा दी जाए तो    उसका    फायदा    उठाकर बगावत   करने   का,   या   इसी   तरह   का   कोई   षड्यन्त्र   रचा   गया   होगा ।'   उसने सुबह से   घटित   घटनाओं   का   मन   ही   मन   जायजा   लिया   और   हर   कदम   फूँकफूँककर रखने का निश्चय किया । हर निर्णय वरिष्ठ अधिकारियों से समुचित चर्चा करने के बाद ही लेने का    निश्चय किया ।
''Enquiry is adjourned till fifth February at three zero hours.'' कोलिन्स    ने    घोषणा    की    और    वह    रॉटरे    से    मिलने    चल    पड़ा ।



तलवार  पर  हमेशा  की  तरह  रूटीन  चल  रहा  था,  मगर  फिर  भी  दत्त  के  साहस और उसकी निडरता से पूरा वातावरण खौल गया था । हरेक के मुँह में दत्त का ही विषय था । उसकी हिम्मत एवं निडरता की चर्चा हो   रही   थी ।   मदन,   गुरु, दास तथा अन्य आजाद हिन्दुस्तानियों को दत्त के पकड़े जाने का दुख नहीं था । उल्टे उन्हें ऐसा लग रहा था कि जो हुआ वह अच्छा ही हुआ । दत्त की निडरता एवं उसके साहस की कथाएँ मुम्बई में उपस्थित जहाजों पर पहुँच गई थीं । दत्त की   गिरफ्तारी   से   उत्पन्न   चैतन्यहीनता   अब   दूर   हो   गई   थी ।   गुरु,   मदन,   दास,   खान में एक नये चैतन्य का संचार हो रहा था ।
‘‘शेरसिंह    से    मिलकर    यहाँ    की    घटनाओं    की    सूचना    उन्हें    देनी    चाहिए ।    बदली हुई परिस्थिति में उनका मार्गदर्शन भी लेना चाहिए ।’’    गुरु    ने    सुझाव    दिया ।
‘‘पिछली  बार  की  ही  तरह  दो  लोग  बाहर  निकलेंगे  और  दो  बोस  पर  नज़र रखेंगे ।’’  मदन  ने  कहा,  ‘‘मैं  और  खान मिलने जाएँगे और  दास  तथा  गुरु  बोस पर नजर रखेंगे ।’’    मदन    की    सूचना    को    तीनों    ने    मान    लिया ।
बोस  ने  मदन  और  खान  को  बाहर  जाने  की  तैयारी  करते  हुए  देखा  और वह   बैरेक   से   बाहर आया ।   गुरु और दास उसके पीछेपीछे यह देखने के लिए बाहर निकले कि वह कहाँ जा रहा है ।
''May I come in, Sir?'' बोस सीधे सब-लेफ्टिनेंट रावत के निवास पर पहुँचा ।
''Yes, come in,'' रावत ने बोस का स्वागत किया ।
‘‘बोलो,    क्या काम है ?’’    रावत ने पूछा ।
गुरु और दास ने बोस को रावत के क्वार्टर में जाते देखा और वे एक  पेड़ के  पीछे खड़े हो गए ।
‘‘सर,  आज  वे  दोनों  मदन  और  खान,  बाहर  निकले  हैं  वे  आज  शायद  फिर से   उनके   भूमिगत   क्रान्तिकारी   नेता   से   मिलने   के   लिए   जा   रहे   हैं । पिछली बार  उन्होंने मुझे कैसे धोखा दिया इसके बारे में मैं आपको बता ही चुका हूँ ।’’ बोस रावत  से  कह  रहा  था,  ‘‘जब  से  हमने  दत्त  को  गिरफ्तार  किया  है,  मदन,  खान, गुरु और दास बेचैन हो गए हैं । उन्हें मुझ पर शक है । वे मुझ पर नज़र रखे हुए हैं । अभी भी गुरु और दास मेरी निगरानी कर ही रहे थे ।’’
‘‘कहाँ हैं वे ?    उन्हें मैं अभी पकड़वाता हूँ ।’’    रावत ने सुझाव दिया ।
‘‘नहीं, सर! इससे कुछ भी हाथ नहीं आएगा ।’’    बोस ने समझाया ।
‘‘तो फिर तुम उनका पीछा करो । मैं  तुम्हारे साथ और तीनचार लोगों को देता हूँ । फिर तो तुम्हें कोई ख़तरा    नहीं    है ?’’    रावत    ने    पूछा ।
‘‘अपने      भरोसे      के      दो      आदमियों      को      मदन      और      खान      की      निगरानी      पर      लगाइये । मैं    यहाँ    गुरु    और    दास    को    उलझाए    रखता    हूँ,’’    बोस    ने    सुझाव    दिया ।
बोस  और  उसके  पीछेपीछे  दास  तथा  गुरु  बैरेक  में  आए ।  गुरु,  मदन  और खान को सावधान रहने की चेतावनी देता, इससे पहले ही वे दोनों जा चुके थे ।
मदन  और  खान  को  इस  बात  का  आभास  भी  नहीं  था  कि  उनका  पीछा  किया जा रहा है । बोस मन ही मन खुश हो रहा था ।
2 फरवरी से बेस में जो कुछ भी घटित हुआ था उसके बारे में खान ने विस्तार से शेरसिंह को सूचना दी । दत्त के   स्वाभिमानी और निडर कारनामे के बारे में बताते हुए खान का दिल गर्व से भर गया था ।
‘‘मुझे  एक  बात  का  अचरज  हो  रहा  है,  पूछताछ  करने  वाले  अधिकारी  दत्त के सम्मुख झुक कैसे गए, उन्होंने   दत्त   को   राजनीतिक   कैदी   का   दर्जा   और   सुविधाएँ देने की बात क्यों मान ली ?’’    मदन    ने    अपना    सन्देह    व्यक्त    किया ।
‘‘सरकार   बेहद   सावधान   है । सैन्यदलों के प्रमुखों ने अधिकारियों को सूचित किया है कि असन्तुष्ट सैनिकों से अत्यन्त सावधानीपूर्वक पेश आएँ । ऐसी कोई भी कार्रवाई न की जाए जिससे असन्तोष बढ़ जाए ।’’ शेरसिंह ने स्पष्ट किया ।
‘‘मगर    यह    सावधानी    किसलिए ?’’    मदन    ने    पूछा ।
‘‘अंग्रेज़ों   का   गुप्तचर   विभाग   सर्वश्रेष्ठ   है ।   देश   में   हो   रही   प्रत्येक   घटना   एवँ उसके सम्भावित परिणामों की सूचना वह अंग्रेज़ों को देता है । साथ ही अंग्रेज़ भी अत्यन्त  सतर्कता  से  परिस्थिति  पर  नज़र रखे हुए हैं ।  उनकी  इसी  सतर्कता  की बदौलत  वे  इस  उपमहाद्वीप  पर  करीब  डेढ़  सौ  वर्षों  से  राज  कर  रहे  हैं । अंग्रेज़ों को इस बात  की  पूरीपूरी  कल्पना  है  कि  महायुद्ध  समाप्त  होने  के बाद  से  और विशेषकर  आज़ाद  हिन्द  सेना  के  सैनिकों  पर  मुकदमे  चलाने  के  कारण  हिन्दुस्तानी सैनिकों      के बीच असन्तोष व्याप्त हो गया है,   और इस असन्तोष की परिणिति विद्रोह में  होने  की  सम्भावना  है ।  जनरल  एचिनलेक  ने  तो  एक  पत्र  लिखकर  चीफ  ऑफ स्टाफ को सूचित किया है कि रॉयल इंडियन नेवी और रॉयल इंडियन एअरफोर्स के सैनिकों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता,   क्योंकि ये सैनिक सुशिक्षित हैं । वे सैनिकपरम्परा  वाले  नहीं  हैं,   और  राजनीतिक  प्रचार  से  उनके  प्रभावित  होने  की काफी  अधिक  सम्भावना  है ।  गोरखा  रेजिमेंट  को  छोड़कर  सरकार  का  अन्य  किसी भी रेजिमेंट पर विश्वास नहीं है । लोगों में व्याप्त असन्तोष यदि भड़क उठा या सैनिकों   ने   विद्रोह   कर   दिया   तो   हिन्दुस्तानी   सैनिक   अपने भाईबन्धुओं पर गोलियाँ नहीं चलाएँगे ।  इस  बात  का  उन्हें  पूरा  यकीन  है,  इसलिए  एचिनलेक  ने सूचना  दी है  कि इंफेन्ट्री की  तीन ब्रिगेड्स तथा आर्टेलरी की तीन रेजिमेंट्स की ज़रूरत पड़ेगी; साथ  ही  यदि  आन्तरिक  परिवहन  टूट  जाए  तो  जलमार्ग  से  सैनिकों  और  सामग्री को  ले  जाने  के  लिए  कुछ  लैंडिग  क्राफ्ट्स  और  अतिरिक्त  परिवहन  विभागों  की भी व्यवस्था की जाए । अंग्रेज़ इस बात को अच्छी तरह   जानते हैं कि सेना में - ख़ासकर,  नौसेना  एवं  वायुसेना  में - जो अस्वस्थता व्याप्त  है,  जिस  तरह  से  सैनिकों का आत्मसम्मान जागृत हो चुका है उसके पीछे प्रमुख कारण है – राजनीतिक परिस्थिति । सरकार सैनिकों को देश में व्याप्त  राजनीतिक  आन्दोलनों से दूर  नहीं रख  सकी ।’’  शेरसिंह  ने  परिस्थिति  का  विश्लेषण  करते  हुए  कहा ।
‘‘हिन्दुस्तानी   सैनिकों   के   आत्मसम्मान   के जागृत होने के पीछे एक और कारण   भी   है – आज़ाद हिन्द   फौज   और   नेताजी ।   पिछले   कुछ   महीनों   में   राष्ट्रीय समाचारपत्रों  ने  आज़ाद  हिन्द  फौज  से सम्बन्धित  समाचारों  को  प्रथम  पृष्ठ  पर स्थान   दिया   और   कांग्रेस   के   सभी   नेता   लगातार   आज़ाद हिन्द फ़ौज के बारे में चर्चा कर रहे हैं ।’’    मदन ने दूसरा कारण स्पष्ट किया ।
‘‘क्या  आप  ऐसा  नहीं  सोचते  कि  कांग्रेस  की  विचारधारा  में  परिवर्तन  हुआ है ?’’    खान ने पूछा ।
‘‘मेरे  विचार  में  यह  परिवर्तन  सिर्फ  आज़ाद  हिन्द  फौज  के  सैनिकों  के  प्रति उनके    रवैये    में    हुआ    है’’,    मदन    ने    अन्दाज़ा  लगाया ।
‘‘नहीं,   यह बात नहीं है । कुछ दिन पहले आज़ाद ने इस बात पर दुख प्रकट किया था कि हिन्दुस्तानी सैनिक बन्धनमुक्त नहीं हैं । इस बात से यही तो स्पष्ट होता है ना कि सैनिकों के बारे में उनके दृष्टिकोण में  परिवर्तन    हो रहा है ?’’   खान   ने   पूछा ।
 ‘‘कांग्रेस  के  नेता  आज़ाद  हिन्द  फौज  से  निकटता  स्थापित  कर  रहे  हैं। इन सैनिकों  के  प्रति  उनका  दृष्टिकोण  एकदम  भिन्न  है ।  फील्डमार्शल  वेवेल  से  बात करते हुए आज़ाद ने कहा था कि पार्टी यह चाहती   है कि आज़ाद हिन्द फौज एक ऐसा संगठन बने जो सभी लोगों तथा राजनीतिक नेताओं के लिए उपयोगी हो । वेवल का यह विचार है कि कांग्रेस युद्ध करने वाले लोगों पर दबाव डालना चाहती है ।’’    शेरसिंह  ने आज़ाद हिन्द    फौज के प्रति कांग्रेस के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया ।
‘‘मुझे  यही  तो  कहना  है । कांग्रेस आज़ाद  हिन्द  फौज  के  पक्ष  में  अदालत में  खड़ी  है ।  आज  तक हिंसक  आन्दोलन  का  विरोध  करने  वाले  कांग्रेसी  नेता  अब इन    सैनिकों    के    त्याग    की,    स्वतन्त्रताप्रेम    की    स्तुति    कर    रहे    हैं,    उनके    लिए    धनराशि इकट्ठा कर रहे हैं। इस निधि  में हिन्दुस्तानी सैनिकों द्वारा दी गई सहायता स्वीकार कर रहे  हैं । आज़ाद,   कांग्रेस के अध्यक्ष,   कराची   में   नौसैनिकों से मुलाकात कर रहे हैं । इससे मुझे यह लगता है कि यदि हिन्दुस्तानी सेना में सशस्त्र क्रान्ति हो गई    तो    कांग्रेस    इसका    समर्थन    करेगी ।’’    खान    ने    अपना    तर्क    प्रस्तुत    किया ।
शेरसिंह इस तर्क को सुनकर हँस पड़े, ‘‘बड़े भोले हो । जनमत का दबाव है; लोगों की सहानुभूति आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों को और सुभाषचन्द्र को प्राप्त हो रही है यह देखकर वे इन सैनिकों के पीछे खड़े  हैं ।  एक  बात  ध्यान में  रखो: कांग्रेस के नेता धूर्त हैं । परिस्थिति का फ़ायदा उठाना उन्हें ख़ूब आता है। नेताजी के स्वतन्त्रताप्राप्ति  के  लिए  किये  गए  प्रयत्नों  का  कांग्रेस  ने  समर्थन नहीं किया था । उनकी राय में आज़ाद   हिन्द फौज के सैनिक अपने मार्ग से भटक गए  हैं । परन्तु  आज  परिस्थिति  में  परिवर्तन  होते  ही  नेहरू उन्हें  स्वतन्त्रता  सैनिक कहते हैं,   आज़ाद उनका उपयोग करने की योजनाएँ बनाते हैं,   उत्तर भारत में एक   सभा   की   स्थापना   करके   इन सैनिकों   और   अधिकारियों   को   कांग्रेस   का   सदस्य बनाया  जा  रहा  है ।  मगर  यह  सब  तब,  जब  परिस्थिति  बदल  चुकी  है ।  तुम्हारी बगावत  को  कांग्रेस  और  कांग्रेसी  नेताओं  का  समर्थन  मिलने  वाला  नहीं - यह  बात पूरी  तरह  समझ  लो  और  उसे  याद  रखो,  क्योंकि  कांग्रेसी  नेता  आन्दोलन  करने की मन:स्थिति में नहीं हैं ।’’   शेरसिंह   ने   खान   और   मदन   को   सावधान   किया ।
‘‘कलकत्ता  में  पिछले  वर्ष  के  अन्त  में  कांग्रेस  वर्किंग  कमेटी  की  बैठक  में कांग्रेस   हाई   कमाण्ड   की   भूमिका   में   हुए   परिवर्तन   पर   गौर   करो ।   नेताओं   के   भाषण काफी  सौम्य  तथा  कम  उकसाने  वाले  थे ।  अंग्रेज़ी  अधिकारियों  के  मतानुसार  अब कांग्रेसी   नेता   इस   बात   का   अनुभव   करने लगे हैं कि सेना में अनुशासनहीनता  तथा अवज्ञा ये दोनों बातें स्वतन्त्रताप्राप्ति  के पश्चात् कांग्रेस के हाथ   में सत्ता आने  पर  उसी  के  लिए  घातक  सिद्ध  होंगी  और  इसीलिए  कांग्रेस  वैधानिक  मार्ग से  ही  स्वतन्त्रता  प्राप्त  करने  का  प्रयत्न  करेगी ।  वर्तमान  परिस्थिति  में,  आज  के नेतृत्व में कोई भी नेता जून    ’46 से पूर्व व्यापक दंगे नहीं होने देगा ।’’
‘‘फिर   हमें   क्या   करना   चाहिए ?’’   खान   ने   पूछा ।
‘‘तुम्हारा   विद्रोह   होना   ही   चाहिए । तुम्हारी ताकत कम नहीं है । तुम्हारे साथ अन्य  दलों  के  सैनिक  भी  खड़े  होंगे ।  और, तुमने  विद्रोह  कर  दिया  है  यह  कहते ही सामान्य जनता तुम्हारा साथ देगी । जनता का समर्थन किसी भी राजनीतिक दल के अथवा उनके नेताओं के समर्थन की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है ।’’     शेरसिंह ने   मदन   और   खान   को   प्रोत्साहन   दिया - ‘‘दिल्ली से आने वाले समाचार काफी उत्साहजनक    हैं । इस महीने के मध्य में दिल्ली के एअरफोर्स की दो यूनिट्स विद्रोह कर देंगी । हिन्दुस्तानी सैनिकों के लिए यह    एक इशारा होगा । इस विद्रोह के साथसाथ तुम भी बग़ावत कर दो । तुम्हारे पीछे मुम्बई की एअरफोर्स की यूनिट्स विद्रोह  कर देंगी और  इस  क्रम  में  एकएक  कड़ी  जुड़ती  जाएगी ।  धीरेधीरे  यह दावानल  सेना  के  तीनों  दलों  में  फैल  जाएगा  और  उसमें  अंग्रेज़  बुरी  तरह  झुलस जाएँगे ।’’    शेरसिंह    ने    लाइन    ऑफ    एक्शन    समझाई ।
‘‘यदि   तीनों   दलों   के   सैनिक   विद्रोह   कर   दें   तो   उसका   परिणाम   अच्छा   होगा । अंग्रेज़ देश छोड़कर चले जाएँगे; परन्तु क्या ऐसा नहीं लगता कि बड़े पैमाने पर रक्तपात होगा ?’’    मदन    ने    पूछा ।
‘‘रक्तपात  होने  ही  नहीं  देना  है ।  यदि  जनता  का  समर्थन  प्राप्त  करना  है तो  शान्ति  के  रास्ते  पर  ही  चलना  होगा ।  जनता  के  दिलोदिमाग  पर  महात्माजी के विचारों ने कब्जा कर लिया है – यह मत भूलो । मगर यह बात भी सही है कि  यदि  अंग्रेज़  आक्रमण  करें  तो  खामोश  नहीं  बैठना  है,  उसका  मुँहतोड़  जवाब देना है । यह सरकार अहिंसात्मक आन्दोलन को घास नहीं डालने वाली - इस बात को   ध्यान   में   रखो   और   आक्रमण   होने   पर   मुँहतोड़   जवाब   दो ।   दिल्ली   के   हवाईदल के  सैनिकों   के विद्रोह करने से पहले अपना संगठन बनाओ । सभी जहाज़ों के और  सभी  बेसेस  के  सैनिकों  को  विद्रोह  के  लिए  प्रवृत्त  करो ।  दत्त  को  गिरफ्तार करने  के  बाद  शायद  किंग  यह  समझ  रहा  होगा  कि  उसने  विद्रोहियों  को  सबक सिखा    दिया    है,    उसकी    इस    सोच    को    झूठी    साबित    करो ।    अब तुम मुझसे 17 तारीख, शनिवार को शाम को मिलो । तब तक दिल्ली से कोई विश्वसनीय, पक्की खबर मिल    जाएगी ।’’    शेरसिंह    ने    संक्षेप    में    व्यूह    रचना    स्पष्ट    की ।
खान    और    मदन    बाहर    निकले ।    रात    के    आठ    बज    चुके    थे ।

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