बुधवार, 7 मार्च 2018

Vadvanal - 07




''What is happening in the base?'' कोल सुबहसुबह लेकमाण्डर स्नो पर बरस  रहा  था ।  अपने  साथ  लाए  हुए  पोस्टर्स  स्नो  के  मुँह  पर  मारते  हुए  वह  बोला, ‘‘पढ़कर  देखो,  क्या  लिखा  है  इनमें ।  हिन्दुस्तानी  सैनिको!,  एक  हो  जाओ  और जुल्मी  हुकूमत  के  ख़िलाफ - अंग्रेज़ों  के  ख़िलाफ  खड़े  हो  जाओ ।  तुम  कुछ  भी  नही खोओगे । खोओगे   तो   सिर्फ   गुलामी!   अपने   आप   को   जैसे   कार्ल   मार्क्स   समझ रहे      हैं!      ये      दूसरा  पोस्टर  देखो,      ''Kill the dogs, Kill the British!" और ये तीसरा, ‘‘गुलामी  के  खिलाफ  लड़ना  गद्दारी  नहीं;   बल्कि  गुलामी  थोपनेवालों  का  साथ  देना है मातृभूमि   के   प्रति   गद्दारी”। वे   औरों   को   भी   फुसला   रहे   हैं,   बग़ावत   के   लिए   उकसा रहे हैं । और हम क्या कर रहे हैं ? हाथ पर हाथ रखे खामोशी से सब कुछ देख रहे हैं...’’ कोल गुस्से से लाल हो रहा था । अपने क्रोध को प्रकट करने के लिए उसके    पास    शब्द    नहीं    थे ।
‘‘मैंने  सारे  पोस्टर्स  को  हटाने  का  हुक्म  दिया  है ।’’  स्नो  ने  जवाब  दिया ।
‘‘बहुत   अच्छे!   यानी   जिन   हिन्दुस्तानी   सैनिकों   ने   पोस्टर्स   देखे   नहीं   होंगे   उन्हें भी अब ये पोस्टर्स पढ़ने का मौका मिल जाएगा और फिर पूरी नेवी में इस पर चर्चा होगी । तुम सब लोग मिलकर मुझे गोते में डालने वाले हो ।’’ कोल के मन का    डर    शब्दों    में    प्रकट    हो    ही    गया ।
‘‘मेरा विचार है, कि यूँ ही हताश होने से कुछ नहीं होने वाला । जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए वर्तमान परिस्थिति जिम्मेदार है । यदि यह सब रोकना है तो   हमें   सामूहिक   प्रयत्न   करना   होगा ।   नौसेना   का   क्रान्तिकारी   गुट      केवल कार्यरत    है;  बल्कि    अपनी    ताकत    बढ़ाने    की    भी    वह    कोशिश    कर    रहा    है ।’’
‘‘तुम्हारी  बात  सही  है ।  बाहर,  देश  में,  जो  चल  रहा  है;  क्रान्तिकारियों  ने निडरता से ब्रिटिश अधिकारियों पर गोलियाँ चलाई हैं, नौसेना के ये क्रान्तिकारी शायद...’’  सिर्फ  विचार  मात्र  से  कोल  के  बदन  पर  काँटे    गए ।  ‘‘नहीं,  नहीं, रोकना   ही   होगा ।’’   वह   अपने   आप   से   बुदबुदाया,   ‘‘ठीक   है,   स्नो   तुम   आज   दोपहर बारह    बजे,…  इंडियन ऑफिसर्स सहित - सभी    अफसरों को    इकट्ठा    करो ।    मैं    उनसे बात    करूँगा ।’’
''Yeah, Yeah, Sir!'' स्नो  ने  सैल्यूट  मारा  और  हुक्म  की  तामील  करने  के लिए   निकल   पड़ा ।
कोल  कुर्सी  से  उठकर  बेचैनी  से  अपने  चेम्बर  में  चक्कर  लगाने  लगा ।  मगर उसकी   अस्वस्थता   कम   नहीं   हो   रही   थी ।   तंग   आकर   वह   कुर्सी   पर   बैठ   गया । उसने    पाइप    सुलगाया    और    दोचार    गहरेगहरे    कश    लिये ।
‘‘पिछले डेढ़ महीने में तलवारपर जो कुछ भी हुआ, शर्मनाक है ।’’ वह बेचैन   हो   गया,   ‘‘पन्द्रह   दिन   पहले   ही   तो   रिअर एडमिरल रॉटरे   ने   सावधानी   बरतने को  कहा  था... फिर  भी...  दोषियों  को  पकड़  ही  नहीं  पाया,  मगर...  अब  तबादला तो  निश्चित  ही  होगा–––  तबादला  तो  एक    एक  दिन  होने  वाला  ही  था,  मगर बट्टा    लगकर    तबादला ।’’    वह    और    ज्यादा    उद्विग्न    हो    गया ।



दोपहर   को   ठीक   बारह   बजे   कोल   ऑफिसर्स   मेस   में   आया ।   सभी   अधिकारियों ने    उठकर    उसका    अभिवादन    किया ।
''Sit down,'' कोल   ने   कहा   और   सीधे   विषय   पर   आया ।
‘‘कल  मेस  में  जो  कुछ  भी  हुआ उसकी  हम  सब  को  शर्म  आनी  चाहिए । ठीक  एक  महीने  पहले  भी  ऐसा  ही  हुआ  था ।  मगर  हमने  क्या  किया ?  कुछ  भी नहीं । कहाँ  है रेग्यूलेटिंग ऑफिसर ?’’
तलवार   पर   नयानया   आया   सब   लेफ्टिनेंट   लॉरेन्स   उठकर   खड़ा   हो   गया ।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      
 ‘‘क्या कर रहे हैं तुम्हारे लोग ? कल्प्रिट्स को क्यों नहीं पकड़ सके ? कल ऑफिसर    ऑफ    दि    डे    कौन    था ?’’
स. ले.    रावत    उठकर    खड़ा    हो    गया ।
‘‘तुम्हें  किसने  कमीशन  दिया ?  मेरा  खयाल  है,  इसके  लिए  तूने  जूते  चाटे होंगे ।’’
रावत    गर्दन    झुकाए    खड़ा    था ।
‘‘कल    रात    को    क्या    ड्यूटी    पर    सो    रहे    थे!    कितने    राउण्ड्स    लगाए ?’’
‘‘सर,    मैंने...’’    रावत    ने    स्पष्टीकरण    देने    का    प्रयत्न    किया ।
''No arguments. Sit down!'' कोल गरजा और अपमानित रावत चुपचाप नीचे    बैठ    गया ।
''Now, listen to me carefully.  कल  बेस  में  जो  कुछ  भी  हुआ  उसके लिए  हम  सभी  जिम्मेदार  हैं । तुममें  से  ही  कोई  गद्दारों  से  मिला  हुआ  था ।  मगर तुम्हें  वह  मिला  नहीं ।  उसी  की  गलती  के  कारण  वह  पकड़ा  गया ।  बेस  में  नारे लिखने   का   यह   दूसरा   मौका   था ।   दोनों   बार   नारे   रात   में   ही   लिखे   गए ।   अगर हम   कुछ   और   जागरूक   रहते,   रात   को   बेस   पर   राउण्ड   लगाए   होते   तो   हम   इन क्रान्तिकारियों   को   जरूर   पकड़   सकते   थे ।   ये   सब   हमारे   आलसीपन   का   नतीजा है ।  इस  दिशा  में  मैंने  कुछ  निर्णय  लिये  हैं  और  उनका  कठोरता  से  पालन  किया जाएगा ।   समूची   बेस   को   छह   भागों   में   विभाजित   किया   जाएगा   और   तुम   बारह लोगों   में   वे   बाँटे   जाएँगे ।   इन   विभागों   में   होने   वाली   घटनाओं   के   लिए   वे   अधिकारी ही  जिम्मेदार  होंगे ।  अधिकारियों  को  अपने  विभाग  में  रात  में,  चारचार  घण्टे  के अन्तर    से    तीन    राउण्ड    लेने    ही    पड़ेंगे ।    और    अन्तिम    और    महत्त्वपूर्ण    बात;  जब तक   ये   क्रान्तिकारी   पकड़   नहीं   लिये   जाते,   बेस   पर   पार्टियों   का   आयोजन   नहीं होगा । Be on your toes. By hook or crook I want the Culprits.''  कोल    ने    मीटिंग    खत्म    की ।



1 जनवरी की घटना के कारण तलवारपर सारे वातावरण में उथलपुथल मच गई ।  स्वतन्त्रता,  स्वतन्त्रता  आन्दोलन  इत्यादि  से  दूर  रहने  वाले  सैनिकों  के  मन में  क्रान्तिकारी  सैनिकों  के  प्रति  आदर  दुगुना  हो  गया  था ।  कोल  अथवा  अन्य  गोरे अधिकारी   क्रान्तिकारियों   का   कुछ   भी   बिगाड़   नहीं सकते   इसका   उन्हें   पूरा   विश्वास हो     गया     था ।     इस     बात     का     यकीन     हो     गया था कि क्रान्तिकारी सैनिकों की  गतिविधियाँ, उनके कार्यक्रम सूत्रबद्ध एवं सुनियोजित होते हैं । स्वतन्त्रता से प्रेम करने वाले; हमें भी कुछ करना चाहिए ऐसा महसूस करने वाले;  मगर डर के मारे कुछ भी न बोलने वाले    हिन्दुस्तानी    सैनिक    अब    अंग्रेज़ों    के    खिलाफ;  हिन्दुस्तानी सैनिकों    के    साथ    किए    जा    रहे    बर्ताव    के    विरुद्ध    बोलने    लगे    थे ।
तलवार  में  हुई  नेवी  डे  और  ‘1 जनवरी  की  घटनाओं  का  पता  नर्मदाके सैनिकों को लगा और अनेक सैनिकों को ऐसा लगा कि उन्हें भी कुछ करना चाहिए ।
रात   के   ग्यारह   बज   चुके   थे ।   नर्मदा   फ्लैग   डेक   पर   सिगनलमैन   प्यारा   सिंह, एबल    सीमन    अस्लम    खान,    टेलिग्राफिस्ट    राव    फुसफुसाकर    बातें    कर    रहे    थे ।
‘‘कुछ  भी  कहो,  तलवार  के  सैनिकों  को  मानना  पड़ेगा!’’  प्यारा  ने  कहा ।
‘‘नहीं तो हम! नपुंसक हो गए हैं । गट्स ही नहीं हैं हममें ।’’    अस्लम बोला ।
‘‘अंग्रेज़ों के हमारे प्रति बर्ताव से हम चिढ़ जाते हैं । विरोध करने का मन होता   है ।   मेस   में   राउण्ड   पर   आने   वाले   गोरे   अधिकारी   के   थोबड़े   पर   खाने   की थाली फेंककर उससे कहने का जी करता है कि इससे अच्छा खाना तो तू अपने कुत्ते को देता    है ।’’    राव    के    स्वर    में    चिढ़    थी ।
‘‘मुझे  भी  ऐसा  ही  लगता  है  कि  हमें  भी  इस  सरकार  के  विरुद्ध  बगावत करनी   चाहिए,   मगर   हिम्मत   नहीं   होती ।   अकेले   हैं - यही   बात   मन   में   आती  है और    पैर    पीछे    हट    जाते    हैं ।’’    प्यारा    ने    कहा ।
‘‘एक बार तो किसी को ऐसी हिम्मत करनी ही पड़ेगी । सभी सैनिकों के मन में असन्तोष खदखदा ही रहा है । जैसे ही यह महसूस हो कि वह बाहर आ रहा  है,  तभी  सारे  असन्तुष्ट  एकजुट  होंगे!’’  अब  तक  नींद  का  बहाना  बनाए  पड़ा कुट्टी बोला । कुट्टी कोचीन के निकट के एक गाँव का रहने वाला था । इण्टर तक  पढ़ा  था  कॉलेज  में  एक  कम्युनिस्ट  नेता  के  सम्पर्क  में  आया ।  कार्ल  मार्क्स के    विचार    पढ़कर    उसे    इस बात का ज्ञान हो गया कि जिस प्रकार पूँजीवादी श्रमिकों का शोषण करते हैं; उसी प्रकार पूँजीवादी राष्ट्र भी उपनिवेशों का शोषण करते हैं ।   यदि   उपनिवेशों   में   रहने   वाले   लोग   मजदूरों   के   ही   समान   बग़ावत   करने   के लिए  एकजुट   हो   गए   तभी   इन   देशों   की   गुलामी   से   मुक्ति   होकर   उनका   शोषण रुक  जाएगा ।  सामर्थ्य  की  दृष्टि  से  देखा  जाए  तो  इंग्लैंड  हिन्दुस्तान  से  श्रेष्ठ  है, इसके  अलावा  उनकी  यहाँ  पर  जो  हुकूमत  है,  वह  सेना  और  पुलिस  के  आधार पर  ही  टिकी  है ।  यदि  अंग्रेज़ों  को  इस  देश  से  निकालना  है  तो  सशस्त्र  आन्दोलन ही  करना  होगा ।  अहिंसा  का,  सत्याग्रह  का  मार्ग  कमजोर  है ।  उसके  इन  विचारों का   पता   जब   वरिष्ठ   नेताओं   को   चला   तो   उन्होंने   उसे   सेना   में   भर्ती   होने   की   सलाह दी ।  अभी  भी  वह  कम्युनिस्ट  नेताओं  के  सम्पर्क  में  था  और  इस  कोशिश  में  था कि    तलवार    में    जो    हुआ    वैसा    ही    नर्मदा    में    भी    हो    जाए ।
‘‘ठीक  है,  तुम्हारी  हिम्मत  नहीं  हो  रही  है  ?  मैं  करता  हूँ  हिम्मत ।  मगर इसके    आगे    आप    लोगों    का    साथ    चाहिए ।    मंजूर    है ?’’    कुट्टी    ने    पूछा ।
तीनों  ने  पलभर  को  विचार  किया  और  भावविभोर  होकर  हाथ  आगे  बढ़ा दिये ।
‘‘ठीक  है ।  मैं  अब  चलता  हूँ ।  मगर  एक  बात  याद  रखना ।  चाहे  जान  चली जाए, मगर अंग्रेज़ों की शरण में नहीं जाएँगे । और दोस्तों के साथ गद्दारी नहीं करेंगे ।’’    कुट्टी ने जातेजाते चेतावनी    दी ।
‘‘ये  लो,’’  वापस  लौटकर  कुट्टी  ने  प्यारा  सिंह  के  हाथ  में  एक  पैम्फलेट रखा ।    ‘‘राव,    तू    गोंद    ला ।’’    कुट्टी    ने    राव    से    कहा ।
‘‘मैं ये पोस्टर अपर डेक पर चिपकाऊँगा । और मैंने यह साहस किया तो आप    लोग    मेरा    साथ    देने    वाले    हैं ।
और    कुट्टी    पोस्टर    चिपकाने    के    लिए    चला    गया ।
रात   का   एक   बजा   था ।   सारे   सैनिक   निद्राधीन   हो   चुके   थे ।   जहाज़    के   बुझाए गए   बल्ब   फिर   से   जलाए   गए   और   नर्मदा   के   क्वार्टर   मास्टर   ने   घोषणा   की,  "All Indian Sailors to muster on Jetty.''
सो   रहे   सैनिकों   को   उठाया   गया ।   उनकी   गिनती   की   गई ।   गैरहाज़िर   सैनिकों  की    तलाश    की    गई ।
नर्मदा    का    एक्स.ओ.    लेफ्टिनेंट पीटर्सन जेट्टी पर आया ।
‘‘रात  को  बारह  बजे,  अपर  डेक  का  राउण्ड  लेते  समय  मुझे  एक  खतरनाक पोस्टर चिपकाया हुआ दिखाई दिया । यह काम हिन्दुस्तानी सैनिकों का ही होना चाहिए ।   मुझे   उनके   नाम   चाहिए ।   यदि   तुममें   से   किसी   को   मालूम   हो   तो   बताओ । यह   कारनामा   करने   वाला   अगर   अपने   बाप   की   औलाद   है   तो   आगे   आए । मैं बड़े दिल से उसे माफ़ कर दूँगा । मगर यदि कोई भी आगे नहीं आया तो I tell you, I will take out your juice. R.P.O, take charge; and don't spare the bastards,
 गुस्साया हुआ पीटर्सन हिन्दुस्तानी सैनिकों को धमका रहा था ।
R.P.O.(रेग्यूलेटिंग  पेट्टी  ऑफिसर)  पॉवेल  ने  ऑर्डर  एक्नॉलेज  की  ओर दनादन    हुकुम    छोड़े:   
''Squad, right turn.''
''Double march.''
''About turn.''
हर पन्द्रहबीस मिनट बाद वह पूछ रहा था, ''Who is that bastard? Come on, come forward.''
मगर  कोई  भी  आगे  नहीं  आता  और  अगली  सजा  शुरू  हो  जाती ।  डबल मार्च  के  बाद  फ्रॉग  जम्प  और  फ्रॉग  जम्प  के  बाद  क्राउलिंग ।  सैनिकों  की  कुहनियाँ और   घुटने   लहूलुहान   हो   गए,   मगर   पीटर्सन   या   पॉवेल   को   उन   पर   दया   नहीं   आई । दौड़तेदौड़ते   दोएक   सैनिक   बेहोश   हो   गए,   मगर   छुट्टी   नहीं   मिली ।   उल्टे   कामचोर सैनिकों    की    पिछाड़ी    पर    पॉवेल    नि:संकोच    लातें    बरसा    रहा    था ।
कुट्टी    ने    प्यारा    सिंह,    राव    और    अस्लम    की    ओर    देखा ।    वे    तीनों    शान्त थे ।
मुर्गे  ने  पहली  बाँग  दी  फिर  भी  सैनिक  जेट्टी  पर  सज़ा  भुगत  ही  रहे  थे । आख़िर    तंग आकर   पीटर्सन    ने    पॉवेल    से    रुकने    को    कहा ।
‘‘तुम  लोगों  की  सहनशक्ति  की  मैं  दाद  देता  हूँ;  मगर  याद  रखो,  मुकाबला मुझसे   है ।   अपराधी   को   पकड़े   बिना   मैं   चैन   से   नहीं   बैठूँगा   और   एक   बार   मुझे वह  मिल  जाए  तो... Well, ये   सब   मैं   अभी   नहीं   बताऊँगा ।’’   पीटर्सन   ने   फिर से    धमकाया ।
गैंग वे से जहाज़  में जाते हुए अनेक सैनिकों के पैरों में गोले आ गए थे । उन्हें मालूम था कि अगले आठदस दिन वे शौच के लिए नहीं बैठ पाएँगे । हर कोई   ऊपर   खड़े   पीटर्सन   को   मन   ही   मन   गालियाँ   दे   रहा   था ।   अंग्रेज़ों   के   प्रति उनके    मन    में    गुस्सा    बढ़    गया    था ।



जनवरी  का  एकएक  दिन  आगे  सरक  रहा  था  और  हर  दिन  के  साथ  कोल  की अस्वस्थता   बढ़   रही   थी ।   ‘‘क्या   अपराधी   पकड़े   गए ?   यदि   पकड़े   गए   हों   तो   उनके खिलाफ  क्या  कार्रवाई  की  गई ?  और  यदि    पकड़े  गए  हों  तो  उन्हें  पकड़ने  के लिए  कौनसे  उपाय  किये  गए ?’’  हर  चारछह  दिनों  में  फ्लैग  ऑफिसर  बॉम्बे  की ओर    से    पूछताछ    की    जाती    थी    और    कोल    निल    रिपोर्ट    भेजता ।
मगर आजाद हिन्दुस्तानीगुट खुश था । क्रान्ति की आग धीरेधीरे अन्य जहाजों    पर    भी    फैल    रही    थी ।  
 ‘‘इतने   सारे   बिस्किट्स!   क्या   हम   सबको   पार्टी   देने   वाले   हो ?’’   मदन   के हाथ    में    बिस्किट्स    के    पैकेट    देखकर    दत्त    ने    पूछा ।
‘‘हाँ,   पार्टी   देने   वाला   हूँ; मगर   तुम्हें नहीं।”
‘‘फिर    किसे ?’’
‘‘तलवार    के    कुत्तों    को!    वे    बेचारे    कब    बिस्किट    खाएँगे ?’’
मदन  के  इस  बेसिरपैर  के  उत्तर  से  सभी  बौखला  गए ।  मदन  आखिर  क्या करने    वाला    है,    यह    वे    समझ    ही    नहीं    पाये ।
मदन   ने   अपनी   योजना   समझाई ।
सूर्यास्त   हो   गया ।   हमेशा   की   तरह   सम्मानपूर्वक   रॉयल   नेवल   एनसाइन   नीचे उतारा    गया ।    क्वार्टर    मास्टर    ने ‘Hands to Supper’ घोषणा    की    और    सारे    सैनिक खाना    खाने    गए ।    बैरेक्स    खाली    हो    गई ।
मेस    के    आसपास    मँडरा    रहे    आवारा    कुत्तों    को    बिस्किट्स    का    लालच    दिखाकर दत्त,  मदन,  खान,  दास  और  गुरु  उन्हें  बैरेक  के  पास  वाली  करौंदे  की  जाली  के पास  ले  जाते  और  उनके  शरीर  पर  चले  जाओ!’,  वन्दे  मातरम्’,  जय  हिन्द!जैसे    छोटेछोटे    नारे    लिखकर    उन्हें    छोड़    देते ।
दूसरे  दिन  ये  श्वान  सेना  आज़ादी  के  नारे  अपने  शरीरों  पर  लगाए  पूरी  बेस में  घूम रही थी ।
कोल   ने   उन   कुत्तों   को   देखा   और   उसका   माथा   ठनका ।   उसने   उन   कुत्तों को  मारने  का  हुक्म  दिया ।  शाम  को  मेस  के  आसपास  माथे  पर  लगे  जख्मों  का झेलते    वे    सारे    कुत्ते    शान्त    हो    गए ।    दो    दिनों    तक    मदन    बेचैन    रहा ।



‘‘पिछले      आठपन्द्रह      दिनों      में      काफी      कुछ      हुआ      है ।      शेरसिंह      से      मिलकर      आना      चाहिए ।
पोस्टर्स लेने गया था तब भी वे कराची गए हुए थे । इसलिए मुलाकात नहीं हो सकी ।’’   मदन   ने   गुरु   और   खान   से   कहा ।
वे   शेरसिंह   के   पास   गए ।   सौभाग्य   से   शेरसिंह   मुम्बई   में   ही   थे ।   दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह से घटित घटनाएँ मदन ने उन्हें विस्तार से बतलाईं । शेरसिंह शान्ति    से    सुन    रहे    थे ।
‘‘सैनिकों   को   उकसाने   का   काम   इसी   तरह   जारी   रहना   चाहिए;  यह   सच है,     मगर फिर  भी     उचित     मौका     पाते     ही     ठूँसठूँसकर  भरी इस     बारूद     को     बत्ती     लगाकर विस्फोट  भी  करवाना  होगा ।  इस  विस्फोट  से  पूरी  नौसेना  में  आग  भड़क  उठनी चाहिए ।   यदि   अन्य   जहाज़    और   बेस   इस   विद्रोह   में   शामिल   नहीं   हुए   और   वह सीमित   होकर   रह   गया   तो   उसका   उचित   परिणाम   नहीं   होगा ।   आप   लोगों   को मालूम   ही   है ।   पहले   भी   नौसेना   में   इस   तरह   के   छहसात   विद्रोह   हुए   परन्तु   अंग्रेज़ी हुकूमत   पर   उसका   ज़रा   भी   परिणाम   नहीं   हुआ ।   अब   विद्रोह   करते   समय   दो   बातों का ध्यान रखना होगा : अधिक से अधिक बेसेस और जहाज़  इसमें शामिल हो पाएँगे,    यह    सुनिश्चित    करना    होगा;  और अधिकाधिक सैनिक इस विद्रोह में  शामिल हों    यह    सुनिश्चित    करना    होगा ।’’    शेरसिंह    अपनी    राय    दे    रहे    थे ।
‘‘यदि हमारे विद्रोह में भूदल एवं हवाईदल के सैनिक भी शामिल हो गए तो वह  ज़्यादा    प्रभावशाली    होगा ।    मगर    इन    सैनिकों    से    सम्पर्क    किस    प्रकार    स्थापित किया जाए ये समस्या है ।’’    मदन    ने    अपनी    कठिनाई    सामने    रखी ।
‘‘ठीक है, आपकी समस्या हम समझ रहे हैं और इसीलिए हमारे कार्यकर्ता अन्य   दलों   के   सैनिकों   से   सम्पर्क   बनाए   हुए   हैं ।   भूदल   के   सैनिकों   से   अपेक्षित सहयोग     प्राप्त     नहीं     हो     रहा     है,     परन्तु     हवाईदल     के     सैनिक     विद्रोह     करने     की     मन:स्थिति में   हैं ।   मुम्बई   और   दिल्ली   के   हवाईदलों   की   बेस   पर   इस   प्रकार   का   वातावरण बन गया है । मेरा ख़याल है कि हवाई दल की एक भी बेस पर यदि विद्रोह हो जाए   तो   वह   आग   पूरे   हवाईदल   में   फैल   जाएगी ।   उनका   विद्रोह   खानेपीने   की चीजों  और  उनके  साथ  किए  जा  रहे  व्यवहार  के  मुद्दों  पर  होगा ।’’  शेरसिंह  ने परिस्थिति    स्पष्ट    की ।
‘‘पर्याप्त भोजन नहीं मिलता, अथवा खाना अच्छा नहीं होता; अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता ये सारे प्रश्न महत्त्वहीन नहीं प्रतीत होते । क्या इस विद्रोह का स्वार्थ    के    लिए    किया    गया    विद्रोह    नहीं    समझा    जाएगा ?’’    दत्त    ने    पूछा ।
‘‘तुम्हारा सन्देह उचित है ।’’     पलभर सोचकर शेरसिंह उनकी शंका  का समाधान  करने  लगे,  ‘‘यदि  अधिकाधिक  सैनिकों  को  बग़ावत  में  शामिल  करना हो तो ऐसी समस्या को लेना चाहिए जो उनकी अपनी हो । 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम  में  कारतूसों  की  समस्या  इसीलिए  उठाई  गई  थी ।  आज  ज़रूरत  है  बगावत करने  की  और  अंग्रेज़ी  सरकार  के  विरुद्ध  हाथों  में  हथियार  उठाने  की ।  यदि  ऐसा होगा,   तभी   अंग्रेज़   यह   देश   छोड़कर   जाएँगे; ऐसा लोगों का ख़याल है । कांग्रेस का  समाजवादियों  का  गुट  और  कम्युनिस्ट  तुम्हें  समर्थन  देंगे ।  नौसेना  के  कराची बेस के सैनिक मुझसे मिले थे । वहाँ तो बड़े पैमाने पर असन्तोष व्याप्त है, और इस   असन्तोष   का   कारण   भी   थोड़ा   भिन्न   है ।   घटिया   किस्म   का   भोजन   तथा   उनके साथ  किया  जाने  वाला  अपमानास्पद  व्यवहार,  ये  कारण  तो  हैं;  मगर  महत्त्वपूर्ण कारण है इंडोनेशिया,   बर्मा आदि देशों  के स्वतन्त्रता आन्दोलनों को दबाने के लिए भेजी  गई  फौजें ।  उनकी  माँग  है  कि  इन  फौजों  को  तुरन्त  वापस  बुलाया  जाए । खास  बात  यह  है  कि  सिर्फ  हिन्दू  सैनिक  ही  बगावत  की  बात  नहीं  कर  रहे,  बल्कि मुसलमान    भी    उनका    साथ    दे    रहे    हैं ।    उनका    कहना    है – पहले आज़ादी ।’’
‘‘हमें    भी    यहाँ    मुस्लिम    तथा    सिख    सैनिकों    का    समर्थन    मिल    रहा    है ।    विभिन्न जहाज़ों पर  किये  जा  रहे  विरोधी  आन्दोलनों  में  सभी  धर्मों  के  सैनिक  हैं;’’  खान ने    कहा ।
‘‘यह  तो  अच्छा  ही  है ।  इससे  शायद  विभाजन  के  प्रश्न  का  समाधान  मिल जाएगा । मगर सैनिकों में जागृति फैलाते हुए तुम लोग सभी जहाजों और बेसेस के   सैनिकों   का   संगठन   बनाओ ।   यह   बात   मत   भूलना   कि   जो   अंग्रेज़ों   का   शत्रु – वह हमारा    मित्र    है ।’’
‘‘जय    हिन्द!’’    मदन,    दत्त    और    खान    ने  शेरसिंह    से    बिदा    ली ।



कोल   का   फौरन   तलवार   से   तबादला   कर   दिया   गया ।   उसे   तुरन्त   दिल्ली   के   नेवल हेडक्वार्टर्स में रिपोर्ट करना था । हालाँकि उसके तबादले का कोई कारण बताया नहीं    गया    था,    मगर    फिर    भी    वह    सबको    ज्ञात    था ।
उसी   दिन   दोपहर   को   नये   नियुक्त   किए   गए   कमाण्डर   किंग ने   तलवारकी  बागडोर  सँभाल  ली ।  कमाण्डर  किंग  हर  तरह  से  कोल  से  भिन्न  था ।  मन  की थाह      देने   वाली   गहरी नीली आँखें,   हिन्दुस्तान   की   हवा   में   रहने   से   भूरा   पड़ गया  रंग;  मगर  तीखे  नाकनक्श,  लम्बा  चेहरा ।  पहली  ही  नजर  में  प्रभावित  करने वाले  व्यक्तित्व  का  किंग ।  हालाँकि  चालीस  के  आसपास  था  मगर  वह  बीस  वर्ष के   नौजवान   की   तरह   उत्साह   से   बेस   में   घूमता ।   दया,   प्रेम   आदि   भावनाएँ   उस छू  तक  नहीं  गई  थीं ।  अपने  फायदे  के  लिए  वह  जरूरत  पड़ने  पर  गधे  को  भी बाप    कहता    था ।
हालाँकि  किंग  ने  हिन्दुस्तान  की  मिट्टी  में  जन्म  लिया  था,  मगर  उसे  अपने ब्रिटिश    खून    पर    बड़ा    गर्व    था ।    इंग्लैंड    में    जन्मे    लोगों    जैसा    ही    मैं    भी ब्रिटिश    साम्राज्य के प्रति वफादार हूँ यह प्रदर्शित करने का मौका वह कभी भी नहीं छोड़ता था ।
मेरा  जन्म  इन  काले  लोगों  पर  राज  करने  के  लिए  ही  हुआ  है ।  यह  हेकड़ी  उसके मुख पर     और     बर्ताव     से     साफ     झलकती     थी ।     उसने     तलवार     की     बागडोर     इस     निश्चय के  साथ  सँभाली,  ताकि  बेस  के  हिन्दुस्तानी,  विशेषकर  क्रान्तिकारी,  सैनिकों  को अपने जूते की    नोक    तले    दबाये    रखे ।
''Divisions attention!''
किंग   की   आज्ञानुसार   एकत्रित   किए   गए   सैनिकों   को   लेफ्टिनेंट   कमाण्डर स्नो    ने    ऑर्डर दिया और    इस    बारे    में    किंग    को    रिपोर्ट    दी ।
''Ship's Company is fall in for your address, Sir.''
‘‘ऑफिसर्स      और      सेलर्स,’’      किंग      ने      खनखनाती      आवाज़      में      बोलना शुरू किया ।
‘‘आज मैंने तलवारकी बागडोर सम्भाल ली है । पिछले दो महीनों में तलवारपर    जो    कुछ    भी    हुआ    उसकी    जानकारी    मुझे    है ।    तुम्हारे    जैसे    ईमानदार    और    साम्राज्य के  प्रति  वफादार  सैनिक  यह  सब  करेंगे,  इस  पर  मैं  विश्वास  नहीं  करता ।  मगर यह    हुआ    है - यह    भी    सत्य    है ।
‘‘इससे पहले जो कुछ भी हुआ, उसे भूल जाने के लिए; उसे तुम्हारी एक गलती  मानकर  उदार  हृदय  से  माफ  करने  के  लिए  मैं  तैयार  हूँ ।  मगर  यदि  दुबारा ऐसा    हुआ    तो    मैं    क्षमा    नहीं    करूँगा ।
‘‘याद रखो,  नारे लगाना,     नारे लिखना या ऐसा कोई भी काम जिससे अनुशासन  गड़बड़ा  जाए,  साम्राज्य  के  विरुद्ध  बगावत  समझा  जाएगा,  ऐसे  काम के लिए कठोर सश्रम कारावास और फाँसी की सजा का प्रावधान है । वही तुम्हें सुनाई जाए   इसका   बन्दोबस्त   मैं   करूँगा ।   इसके   लिए   वक्त   आने   पर   मैं   कानून को  भी  ताक  पर  रख  दूँगा ।  तलवार’  का  मैं  कैप्टेन  हूँ  और  यहाँ  सिर्फ  मेरा  ही राज    चलेगा ।
‘‘तुममें  से  अधिकांश  वफादार  सैनिक  हैं,  उनसे  मैं  गुजारिश  करता  हूँ  कि यदि  तुम्हें  ऐसे  घर  के  भेदी  नजर  आएँ  तो  उनके  बारे  में  मुझे  बताएँ ।  इसके  लिए मैं   तुमसे   कभी   भी,   कहीं   भी   मिलने   के   लिए   तैयार   हूँ ।   तुम्हारा   नाम   गुप्त   रखा जाएगा ।  यदि  तुम्हारे  द्वारा  दी  गई  जानकारी  सत्य  सिद्ध  हुई  और  हमें  उसे  लाभ हुआ तो तुम्हें   उचित   इनाम   दिया   जाएगा ।   तुम   जिनका   अन्न   खाते   हो,   उनसे   यदि ईमानदार        रहे    तो    नरक    में    जाओगे!’’
किंग    की    आवाज    में    धमकी   थी ।
''Dismiss the ship's Company'' उसने   स्नो   को   आज्ञा   दी ।   सारे   सैनिकों के परेड ग्राउण्ड से जाने के बाद किंग अफसरों से बातें करने लगा, ‘‘पिछले दो महीनों   में   तलवार   पर   जो   कुछ   भी   हुआ   उसके   लिए   तुम   सब   जिम्मेदार   हो । इन घटनाओं पर तुम्हें शर्म आनी चाहिए । तुम्हें सरकार तनख़्वाह किसलिए देती है ?   मैं   यह   बर्दाश्त   नहीं   करूँगा ।   मेंरे   कार्यकाल   में   यदि   ऐसा   कुछ   हु   तो   मैं सहन नहीं करूँगा । याद रखो, इसका परिणाम तुम्हारी सेवा पर होगा । आज से ऑफिसर  ऑफ  दि  डे,  ड्यूटी  पेट्टी  ऑफिसर,  ड्यूटी  चीफ  पेट्टी  ऑफिसर,  ड्यूटी आर.पी.ओ.  चैबीसों  घण्टे  यहाँ  उपस्थित  रहेंगे  और  इनमें  से  हरेक  रात  में  कम से कम दो राउण्ड, पूरी बेस के, लगाएगा ।’’ वह पलभर को रुका और स्नो की ओर  देखते  हुए  उससे  कहने  लगा,  ‘‘ले  कमाण्डर  स्नो,  बेस  के  अँधेरे  हिस्से  में, परेड ग्राउण्ड पर, ऑफिसर्स मेस के पास चारों ओर प्रकाश फेंकने वाली लाइट्स कल   दोपहर   तक   लग   जानी   चाहिए ।   सनसेट   से   लेकर सनराइज़ तक दुगुने सैनिकों का पहरा लगाओ । ज़रूरत हो तो  Convert three watch system into two watch system. आप  सभी  सैनिकों  पर  कड़ी  नजर  रखें,  किसी  पर  थोड़ासा  भी शक हो, तो मुझसे      कहें ।      मैं      उसका      फ़ौरन      तबादला      कर      दूँगा ।’’      किंग  ने अधिकारियों को   चेतावनी   दी''Negligence on duty will not be tolerated.''



उसी दिन रात को खान ने परिस्थिति पर विचारविमर्श करने के लिए सभी को इकट्ठा किया ।
‘‘किंग  के  आने  से  परिस्थिति  बदल  गई  है ।  हमारी  गतिविधियों  पर  रोक लगने   वाली   है ।   पहरेदारों   की   संख्या   बढ़ा   दी   गई   है ।   पूरी   बेस   में   तेज   प्रकाश डाला जा    रहा    है ।’’    सलीम    ने    चिन्तित    स्वर    में    कहा ।
‘‘मेरा   ख़्याल   है   कि   किंग   की   परवाह      करते   हुए अपना   कार्य   आगे   बढ़ाना ही  होगा ।  ऐसे  हजारों  किंग  भी  हमें  रोक    हीं  सकते ।  हमें  हिम्मत  नहीं  हारनी चाहिए ।’’   दत्त   ने   हौसला   बढ़ाया ।
‘‘जब आदमी  बहुत  ज्यादा  सावधान  होकर  काम  करते  हंै,  तब  वे  गलतियाँ कर बैठते हैं । इन गलतियों को ढूँढ़कर हमें उनका फायदा उठाना होगा। ” खान उनका   मार्गदर्शन   कर   रहा   था ।’’   किंग   ने   बड़ी   सावधानी   से   सुरक्षा   योजना   मजबूत की  है  फिर  भी  कहीं  तो  कोई  बारीकसा  छेद  उसमें  रह  ही  गया  होगा ।  हमें  अचूक उसे    ही    ढूँढ़    निकालना    है    और    उसकी    सुरक्षा    योजना    को    बारूद    लगाना    है ।’’
‘‘ठीक   कह   रहे   हो ।   यदि   हम   यह   कर   लें   तो   उसकी   सुरक्षा   यन्त्रणा   को एक जबर्दस्त धक्का पहुँचेगा । सैनिकों पर इसका परिणाम होगा, वे प्रभावित हो जाएँगे ।   मगर...’’   दत्त रुक गया ।
‘‘मगर   क्या ?’’   दास   ने   पूछा ।
‘‘हमें बोस जैसे लोगों से सावधान रहना होगा । हमें किंग और  उसकी सुरक्षा यन्त्रणा की अपेक्षा इन घर के भेदियों से ही ज्यादा डर है । हमें शीघ्र ही, सुरक्षा यन्त्रणा  के  दोषों  को  ढूँढ़ने  से  पहले  ही,  हंगामा  मचाकर  अपनी  ताकत  दिखानी होगी,”  दत्त    ने    उत्साह    से    कहा ।
‘‘ऐसा    मौका    आया    तो    है,’’    दास    ने    उत्साहपूर्वक    कहा ।
‘‘कैसा   मौका ?’’   सलीम   ने   पूछा ।
‘‘2  फरवरी  को  कमाण्डर  इन  चीफ  सर  एचिनलेक  तलवार  पर  आने  वाले हैं ।  यह  उनका  पहला  ही आगमन  होने  के  कारण  उनका  जोरदार  स्वागत  किया जाने  वाला  है ।  समूची  बेस  को  रंग  लगाने  वाले  हैं ।  मेरा  विचार  है  कि  हमें  इस मौके   का   फायदा   उठाना   चाहिए ।’’
‘‘अरे,  सिर्फ  विचार  से  क्या  होता  है,  मौके  का  फायदा  उठाना  ही  है  और वरिष्ठ    गोरे    अधिकारियों के    सामने    अपना    असन्तोष    प्रकट    करके    उन्हें    यह    चेतावनी देनी   है: सीधेसीधे   हिन्दुस्तान   छोड़कर   चले   जाओ; वरना   गुस्साए   हुए सैनिक   तुम्हें चैन से जीने नहीं देंगे,’’    दत्त    आवेशपूर्वक    बोला ।
‘‘मैं   कल   ही   जाकर   पोस्टर्स   लेकर   आता   हूँ ।   इस   बार   हम   सिर्फ   पोस्टर्स ही    चिपकाएँगे ।’’    खान    ने    सुझाव    दिया ।
‘‘मेरा    भी    यही    ख़याल    है,’’    मदन    ने    सहमति    जताई ।
‘‘नहीं,   हम   पूरी   की   पूरी   बेस   रंग   देंगे ।   चिपकाए   गए   पोस्टर्स   तो   दिखते ही सुबह निकाल दिये जाएँगे । हमारा गुस्सा, हमारा देशप्रेम एक ही पल में नोंच कर  फेंक  दिया  जाएगा,  उन्हें  फिर  एचिनलेक  को  हमारे  मन  के  तूफ़ान  का  पता कैसे चलेगा ?’’   दत्त ने असहमति जताई ।
‘‘मेरा ख़याल है कि  हम ये दोनों काम करेंगे । परेड ग्राउण्ड सैल्यूटिंग, डायस रंग  देंगे  और  बैरेक्स  के  बाहरी  ओर  पोस्टर्स  चिपकाएँगे ।’’  गुरु  ने  बीच  का  रास्ता सुझाया    और    उसे    सभी    ने    मान    लिया ।
‘‘इस काम के लिए हम तीन गुट बनाएँगे । एक गुट किंग की सुरक्षा योजना के   कमज़ोर बिन्दु   ढूँढेगा; दूसरा   रंगने   का   काम   करेगा   और   तीसरा   गुट   पोस्टर्स चिपकाएगा ।’’  मदन  लाइन  ऑफ  एक्शन  समझा  रहा  था ।  ‘‘आज  से  हम  सभी सुरक्षा     व्यवस्था     का     निरीक्षण     करेंगे     और     कमज़ोर बिन्दु ढूँढेंगे । इसके  बाद 28 जनवरी को हम मिलेंगे तथा अपनेअपने निष्कर्ष बताकर अगला कार्यक्रम निश्चित     करेंगे ।’’


कमाण्डर  किंग  ने  27  जनवरी  को  बेस  के  सभी  अधिकरियों  की  बैठक  बुलाई  थी ।
 ‘‘आज   तुम   सबको   मैंने   क्यों   बुलाया   है,   इसका   अन्दाज़ा आपको   होगा । आप   सबको   ज्ञात होगा   कि   कमाण्डर   इन   चीफ   सर   एचिनलेक   2   फरवरी   को   सुबह आठ बजकर तीस मिनट पर तलवारपर तशरीफ लाने वाले हैं । पहले वे परेड का निरीक्षण करेंगे और इसके बाद खुली जीप में बेस का राउण्ड लेने वाले हैं । इस  भेंट  के  दौरान  मैं  किसी  भी  तरह  की  गड़बड़  अथवा  परेशानी  नहीं  चाहता । बेस  के  आन्दोलनकारी  सैनिक  अभी  तक  पकड़े  नहीं  गए  हैं ।  इस  बात  को  नकारा नहीं   जा   सकता   कि   वे   गड़बड़   मचा   सकते   हैं ।   आज   से   रात   के   पहरेदारों   की   संख्या दुगुनी   करनी   है ।’’
‘‘मगर,    सर,’’    किंग    को    बीच    में    ही    रोककर    स्नो    अपनी    समस्या    बताने    लगा, ‘‘आज   ही   बेस   के   लगभग   पचास   प्रतिशत   सैनिक   दिनभर   की   ड्यूटी   पर   रहते हैं। और    अधिक    सैनिक    लाएँ    कहाँ    से ?’’
‘‘सर, मेर ख़याल है कि अंग्रेज़ी सैनिकों को ड्यूटी पर रखा जाए ।’’ सब लेफ्टिनेंट    रावत    ने    जल्दी    से    सुझाव    दिया ।
‘‘बेवकूफ जैसी बकबक मत  करो!  गोरे  सैनिक  यहाँ  पहरेदारी  करने  नहीं आए हैं । They are here to control you और    उन    काले    स्काउण्ड्रेल्स ने    एकाध गोरे   सैनिक   को   मार   डाला   तो   मैं   सम्राज्ञी   को   क्या   जवाब   दूँगा ?   उनकी   ड्यूटी नहीं   लगेगी ।   सिग्नल   स्कूल   के   प्रशिक्षार्थियों   को   पहरे   पर   लगाओ ।’’   किंग   ने   रावत की    सलाह    ठुकराते    हुए    आज्ञा    दी ।
‘‘मगर,   सर,   इन   सैनिकों   को   सिर्फ   रात   के   आठ   बजे   तक   ही   ड्यूटी   पर रखने   का नियम   है ।’’   स्नो   ने   कहा ।
‘‘नियमों  की ऐसी की तैसी । नियमों को गोली मारो । My ship, my command उन   सबको   सुबह   चार बजे   तक   ड्यूटी   पर   रखो ।’’   किंग   ने   कहा,
‘‘28 जनवरी से ड्यूटी आर.पी.ओ. ,   ड्यूटी चीफ,     ड्यूटी पेट्टी ऑफिसर और ऑफिसर  ऑफ  दि  डे - इनमें  से  हरेक  समूची  बेस  का  बारीबारी  से  राउण्ड  लेगा । इनमें  से  दो  व्यक्ति  ऑफिसर  ऑफ  दि  डे  के  दफ्तर  के  निकट  रहेंगे  और  अन्य दो   बेस   का   राउण्ड   लगाएँगे ।   रात   को   मुझे   सिर्फ   दो   ही   व्यक्ति   कार्यालय   में   दिखाई दें । दूसरी बात यह, कि ड्यूटी पर तैनात सैनिकों के अलावा अन्य कोई व्यक्ति यदि  रात  को  बेस  में  घूमता  हुआ  नजर  आए  तो  उसे  फ़ौरन  गिरफ्तार  कर  लो ।
I hope, you all will take utmost care and will avoid unwanted happenings. I shall not tolerate any slackness in carrying out my orders; किंग की आवा रहस्यमय हो गई थी।
किंग   ने   अपना   वक्तव्य   समाप्त   किया   और   वह   दनदनाता हुआ   चला   गया ।



28 जनवरी से ही बेस का बन्दोबस्त अधिक चुस्त हो गया था । कोईकोई लगातार राउण्ड लेता ही रहता था । रात बारह बजे की सिग्नल सेंटर की ड्यूटी पर    जाते    हुए    मदन,    दत्त,    गुरु    को    रोका    गया    था ।
‘‘पूरा परेड ग्राउण्ड प्रकाश से सराबोर है । किंग रोज रात को राउण्ड लेता है ।  पूर्व  में  घटित  घटनाओं  का  अध्ययन  करके  कमजोर  बिन्दु  ढूँढ़ता  है  और  उन्हें दूर करता है । आज कहीं भी उँगली घुसाने की जगह   नहीं   है ।’’   दास   ने   बन्दोबस्त का   वर्णन   करते   हुए   चिन्तायुक्त   स्वर   में   पूछा,   ‘‘हम   अपनी   योजना   कार्यान्वित कैसे    करेंगे ?’’
‘‘आज दोपहर को मैं शेरसिंहजी से मिलने के लिए निकला था । मगर आधे रास्ते से ही वापस लौट आया । मुझे शक हो गया था कि बोस मेरा पीछा कर रहा है,’’    खान ने कहा ।
‘‘साले की यह हिम्मत! उसकी एक बार फिर से कम्बल परेड करना चाहिए,’’ मुट्ठियाँ    भींचते    हुए    दास    ने    कहा ।
‘‘नहीं, यह वक्त मारपीट करने का नहीं है । उससे तो हम बाद में निपट लेंगे ।  पहले  हाथ  में  लिया  हुआ  काम,  और  उसे  पूरा  करना  ही  है ।  हमें  खुद  ही पोस्टर्स   बनाने   होंगे ।’’   खान   ने   जिद   से   कहा ।
‘‘मेरा ख़याल है कि इस बार के कड़े बन्दोबस्त को देखते हुए हमें अपना कार्यक्रम स्थगित करना चाहिए । यदि    कोई    गलती    हो    गई    तो–––    हम    सबके    सब–––’’ दास    भयभीत    था ।
‘‘अभी तो लड़ाई का आरम्भ हुआ ही नहीं, और तू अभी से हिम्मत हार बैठा ?   हमने   इस   आह्वान   को   स्वीकार   करने   का   निश्चय   किया   है ।   अब   पीछे   हटने का    सवाल    ही    नहीं    उठता ।’’    मदन    ने    निश्चयपूर्वक    सुर    में    कहा ।
‘‘गलती  जैसे  हमारे  हाथों  से  हो  सकती  है,  वैसे  ही  वह  किंग  के  हाथ  से भी  हो  सकती  है ।  यह  तो  युद्ध  है,  जो  दूसरों  की  गलतियाँ  भाँपकर  उनका  फायदा उठाते  हैं,  वे  ही  विजयी  होते  हैं ।  अरे,  यदि  हममें  से  एकाध  पकड़ा  भी  जाए  तो क्या   फर्क   पड़ेगा!   यह   तो   कभी      कभी   होने   ही   वाला   है ।   यदि   हममें   से   कोई भी पकड़ा जाए तो उसे दूसरों को बचाने की अन्त तक कोशिश करनी होगी ।’’ दत्त    ने    राय    दी ।
 ‘‘हममें से यदि कोई भी पकड़ा जाएगा तो हमारी ताकत कम हो जाएगी, और   किंग   के   लिए   यह   जीत   होगी ।   उसी   के   बल   पर  वह तलवार   को झुकने पर मजबूर  कर  देगा ।  इसका  परिणाम  उन  जहाज़ों  पर  भी  होगा  जहाँ  बगावत  की तैयारी चल रही है । इस बात पर भी हमें गौर करना चाहिए,’’ सलीम ने सुझाव दिया ।
सुबह  के  दो  बजे  तक  इस  विषय  पर  एक  राय    बन  सकी ।  अन्त  में  यह निर्णय   लिया   गया   कि   30   और   31   तारीख   को   पूरी   बेस   का   निरीक्षण   किया   जाए ।
मदन   ने   हरेक   को   बेस   का   एकएक   हिस्सा   बाँट   दिया ।   रात   को   सिग्नल   सेंटर से    ड्यूटी पास लेकर ड्यूटी करने वालों ने बाहर निकलकर बेस में घूमने का निश्चय किया ।
अगले  दो  दिन  वे  बेस  का   निरीक्षण   करते   रहे । पहरेदार कहाँ होते हैं,  वे ही सैनिक वापस उसी स्थान   पर कब लौटते हैं,   किस   तरह   से   घूमते   हैं,   किस क्रम में राउण्ड लगाए जाते हैं, कितनी देर चलते हैं, किस मार्ग से जाते हैं – इन सब    बातों    का    सूक्ष्म    निरीक्षण    किया    गया ।
तीस की रात को वे फिर एकत्र हुए ।
‘‘किंग की योजना में कहीं भी कोई ख़ामी नहीं है । मेरा ख़याल है कि हमें Suicide attack करना होगा और इसके लिए मैं तैयार हूँ,’’ दास ने स्पष्ट किया ।
‘‘निराश  होकर  एकदम  अन्त के बारे में न सोचो । कोई    कोई  मार्ग  ज़रूर निकलेगा ।’’  गुरु ने समझाया ।
‘‘किंग हरामी  है,  साला!  थोड़ासा भी  मौका  मिले  तो  साले  को  धुनक  के रख    दूँगा ।’’    दास    को    गुस्सा        रहा    था ।
‘‘इस तरह गुस्सा    करो । Be a sport! अरे,  शत्रु  के  गुणों  की  भी  तारीफ़ करनी  चाहिए ।  यदि  किंग  ने  हमारे  लिए  सारे  मार्ग  खुले  छोड़  दिये  तो  फिर  हमला करने  में  मज़ा  ही  क्या  आएगा ?  पहरा  कड़ा  है,  इसीलिए  तो  यह  काम  करने  में एक    थ्रिल    है ।’’    मदन    ने    समझाया ।
''All right! As you wish!'' दास बुदबुदाया । सभी ने अपनेअपने निरीक्षणों के निष्कर्ष सामने रखे । मदन,   खान   और   दत्त   ध्यान   से   सुन   रहे   थे ।   इसके   पश्चात् आई   निर्णय   की   घड़ी ।   बैठक   में   गहन   शान्ति   छा   गई ।   मदन   सभी   के   निष्कर्षों का मन ही मन जायज़ा ले रहा था । ख़ामोशी    बर्दाश्त    नहीं    हो    रही    थी ।
‘‘किंग  से  कुछ  गलतियाँ  हुई  तो  हैं,’’  मदन  ने  खामोशी  को  तोड़ा,  ‘‘चार से  आठ  बजे  के  दौरान  परेड  ग्राउण्ड  के  चारों  ओर  सिग्नल  स्कूल  के  प्रशिक्षार्थी होते हैं । परेड ग्राउण्ड पर लाइट रात के आठ बजे के   बाद   जलाई   जाती   है ।   दोपहर के  चार  बजे  के  बाद  अनेक  सैनिक  बाहर  जाते  हैं ।  अधिकारी  आराम  फर्मा  रहे होते हैं । साढ़े छह बजे से साढ़े सात बजे के बीच बेस के सैनिक रात के भोजन के    लिए    जा    चुके    होते    हैं ।    और    एक    घण्टे    में    ड्यूटी    खत्म    होने    वाली है,    यह    सोचकर पहरेदार  अलसा  जाते  हैं ।  किंग  यह  मानकर  चला  है  कि  क्रान्तिकारी  सिर्फ  रात को  ही  नारे  लिखते  हैं ।  उनकी  कार्यपद्धति  निश्चित  होती  है ।’’  मदन  ने  किंग  की गलतियों    का    विश्लेषण    किया ।
मदन के इस विश्लेषण से सभी उत्साहित हो गए । मदन पर छाई हताशा दूर   हो   गर्ई ।
‘‘हमें   अपनी   कार्यपद्धति   बदलनी   होगी,’’   खान   ने   कहा ।
‘‘बिलकुल  ठीक  है,  हम  अपना  काम,  हमेशा  की  तरह,  रात  को  नहीं  बल्कि शाम को छह बजे से साढ़े सात बजे के दौरान पूरा करेंगे ।’’ मदन एक्शन प्लान समझा   रहा   था । ‘‘1   तारीख   को   सलीम   और दास   ड्यूटी   पर   हैं ।   मैं,   गुरु,   दत्त और  खान  खाली  हैं ।  गुरु  और  दत्त  काम  निपटाएँगे ।  मैं  और  खान  पीछे  से  नज़र रखेंगे ।’’    मदन    ने    प्लान    बताया ।
‘‘डायस पर रंग से नारे लिखने का और पोस्टर्स चिपकाने का काम सिर्फ़ पैंतालीस मिनटों में पूरा करना है । ''Hands to supper'' की घोषणा होते ही अपना काम शुरू कर देना है । सलीम और दास उस दिन चार बजे से आठ बजे वाली ड्यूटी  पर  है ।  शाम  को  ड्यूटी  पर  जाते  समय  सलीम  और  दास  अपनी  जेब  में रंग के दो छोटे डिब्बे और ब्रश ले जाएँगे ।   झण्डा   उतारने   के   बाद   उसकी   तह करने  तक  के  बीच  में  समय  निकालकर  रंग  के  डिब्बे  और  ब्रश  दाहिनी  ओर  वाली मेहँदी  की  बागड़  में  छिपाएँगे। 1  तारीख  की  दोपहर  तक  हर  व्यक्ति  पाँच  पोस्टर्स तैयार    करके    दत्त    को    सौंप    देगा ।’’    खान    सूचना    दे    रहा    था ।    ‘‘हर    कोई    अपनीअपनी अलमारी  से  आपत्तिजनक  किताबें,  पोस्टर्स,  पर्चियाँ  आदि  बाहर  फेंक  देगा ।  हमारा यह काम ख़तरनाक है । हम खुद  को बचाने की कोशिश तो करेंगे ही,  परन्तु यदि   कोई   पकड़ा   गया   तो   वह   हर   तरह   के   अत्याचार   सहन   करेगा,   मगर   औरों के  नाम  नहीं  बताएगा ।  दत्त  और  गुरु  यथासम्भव  कम  ख़तरा  उठाते  हुए  नियत समय    में    काम    पूरा    करेंगे ।’’
‘‘मतलब     यह     कि     पूरी     बेस     में     पोस्टर्स     नहीं     चिपकाए     जाएँगे । पैंतालीस मिनटों में     आख़िर     कितने     पोस्टर्स     चिपकाए     जा     सकते     हैं ?     सिर्फ चालीस से  पचास तक - यह  कैसा फालतू,    छोटासा    काम    है ।’’    दत्त    असन्तुष्ट    था ।
‘‘हर  व्यक्ति  नियत  काम  निश्चित  किए  गए  समय  में  ही  पूरा  करेगा ।  ये टीमवर्क    है ।’’    खान    ने    जताया ।
दत्त    ने    परिस्थिति    को    स्वीकार    किया ।



1  तारीख  को  शाम  चार  बजे  की  चाय  हुई ।  2  तारीख  के  डेली  ऑर्डर  की  घोषणा की गई । सर एचिनलेक के आगमन के कारण पूरा रुटीन बदल गया था । परेड के  लिए  फॉलिन  सुबह  पौने  आठ  बजे  ही  होने  वाली  थी ।  सैनिक  बगैर  ड्यूटीपास के बाहर न निकलें यह सख्त हिदायत दी गई थी ।
चार बजे से आठ बजे वाले पहरेदार पहरे पर आए । दत्त, गुरु, मदन और खान करीब पाँच बजे बाहर निकले । उनके   अनुमान   के   मुताबिक   सेल्यूटिंग   डायस और  परेड  ग्राउण्ड  के  आसपास  सिग्नल  स्कूल  के  प्रशिक्षार्थी  थे ।  एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक   में   इस   समय   खामोशी   थी ।   वहाँ   के   पहरेदार   जानेपहचाने   थे । मगर वे कहाँ तक साथ देंगे इस बारे में सन्देह    था ।
छह बजे क्वार्टर मास्टर ने ''Hands to supper'' की घोषणा की । दत्त बाहर निकला । करौंदे की जाली में छिपाकर रखे गए पोस्टरों में से उसने तीस पोस्टर बाहर निकाले और उन्हें सिंगलेट में छिपा लिया । कम्युनिकेशन सेंटर से उसने कल ही गोंद की एक बोतल पार की थी । वह उसके लॉकर में ही थी ।
वह बैरेक में आया तो वहाँ सन्नाटा था । बैरेक के बाहर गुरु, मदन और खान   उसकी   राह   देख   रहे   थे ।   दत्त   ने   अपनी   प्लेट   और   मग   उठाया   और   चारों मेस  की  ओर  निकले ।  मौका  देखकर  उन्होंने  अपने  मग  और  प्लेटें  छिपाकर  रख दीं । काम पूरा होने के बाद ही खाना खाने का उन्होंने निश्चय   किया   था । वे चारों  मेस  से  बाहर  निकले  और  विभिन्न  दिशाओं  में  चले  गए ।  यदि  किसी  की नज़र उन पर पड़ी होती तो  उनकी पोशाक और जल्दबाजी को देखकर यही समझता कि    वे    ड्यूटी    पर    ही    हैं ।
चार   घण्टे   खड़ेखड़े   ड्यूटी   करने   की   आदत      होने   से   सिग्नल   स्कूल   के ट्रेनी    बुरी    तरह थक गए थे । किसी का ध्यान इस तरफ नहीं है यह देखकर दोतीन व्यक्ति  इकट्ठे  होकर  गप्पें  मारने  लगते ।  मदन  और  खान  ऐसा  दिखा  रहे  थे  मानो परेड   ग्राउण्ड   के   बाहर   यूँ   ही   मँडरा   रहे   हों,   मगर   असल   में   वे   उस   परिसर   पर पूरी    तरह    नजर    रखे    हुए    थे ।
''Good evening, Sir!'' पास में आकर एक सन्तरी ने उन्हें विश    किया ।
''Good evening भाई! बोलो कैसे हो,’’    मदन ने भी विश  किया ।
''Hello Sir!'' और    दो    पहरेदार    निकट    आए ।
चार में से तीन पहरेदार उनके पास आए थे । खान ने चौथे को भी पास में बुला लिया ।
मदन अपने जूते का फीता बाँधने के बहाने से नीचे झुका यह संकेत था गुरु  और  दत्त  के  लिए ।  वे  दोनों जल्दीजल्दी  सैल्यूटिंग  डायस  की  ओर  चल  पड़े ।
‘‘घर  से  चिट्ठी  तो  आई  थी  ना ?’’  मदन  ने  सेन्ट्री  ड्यूटी  पर  तैनात  सुजान से पूछा । सुजान और मदन एक ही गाँव के थे । सुजान कई बार मेसेंजर ड्यूटी के लिए कम्युनिकेशन सेन्टर जाया करता था, उस समय दोनों का परिचय हुआ था ।
‘‘पन्द्रहबीस   दिनों  से नहीं   आई   है ।’’   सुजान   ने   कहा ।   खान ने जेब   से सिगरेट  का  पैकेट  निकालकर  मदन  को  सिगरेट  दी  और  चारों  पहरेदारों  के  सामने भी    पैकेट    बढ़ा    दिया ।
‘‘अरे,   पीते हो ना,   तो लो ना!’’   दास   ने  आग्रहपूर्वक उनके हाथों में सिगरेट थमा    दीं ।
वे  चारों  परेशान  हो  गए ।  मदन  सुजान  के  गाँव  का  है ।  मदन  और  खान ये    दोनों    एकदूसरे    को    जानते    हैं; मगर फिर भी वे सीनियर हैं । उनके    सामने    सिगरेट पीना––– ’’
''No, thanks, Sir!'' सुजान   बुदबुदाया ।
''Oh, forget about our seniority, come on.'' मदन ने आग्रहपूर्वक कहा ।
‘‘हम मेहँदी के उस पार ओट में छिपकर पियेंगे,’’ खान ने सुझाव दिया ।
डायस के पीछे की ओर वाली छोटीसी बगिया और इस बगिया के चारों ओर  लगाई  गई  पाँचसाढ़े  पाँच  फुट  मेहँदी  की  सुरक्षात्मक  बागड़  के  बारे  में  किंग भूल गया था । मेहँदी की ओट में ये छह व्यक्ति आये और उसी समय गुरु एवँ दत्त डायस पर चढ़े ।
अब    पहरेदारों    को    कम    से    कम    पन्द्रहबीस    मिनट    तक    बातों    में    लगाए    रखना आवश्यक था । सिगरेट पीने में सात के करीब मिनट लगते ।
‘‘परीक्षा    कब    है ?’’
‘‘अगले    महीने    में ।    मगर    अभी    तक    कुछ    भी    पढ़ाई    नहीं    हुई ।’’
 ‘‘और फिर ये हर एक दिन बाद वाली चारचार  घण्टे की सेन्ट्री ड्यूटी ने बेहाल कर दिया है ।’’    एक    पहरेदार    चिढ़कर बोला ।
‘‘कोई बात यदि समझ में न आए तो मुझसे पूछ लेना ।’’ मदन ने सलाह दी ।
‘‘आपको शायद मालूम नहीं है कि फ्लीट वर्क और क्रिप्टो में यह अव्वल आया    था ।’’    खान    ने    जानकारी    दी ।
मदन और खान ने हालाँकि पहरेदारों को बातों में उलझा लिया था, मगर साथ ही उनकी चारों ओर बारीक नजर    थी ।
यदि    किसी    ने    हमें    इस    तरह    खड़े    देख    लिया    तो...  बेकार की मुसीबत...सभी पकड़े    जाएँगे ।    मदन    के    मन    का    डर    बोल    रहा    था ।
मगर  यह  ख़तरा  तो  उठाना  ही  होगा ।  लम्बी  साँस  छोड़ते  हुए  उसने  स्वयँ को    आगाह    किया ।    सिगरेट    ख़त्म    हो    चुकी    थी ।
दत्त  और  गुरु  समय  पर  काम  पूरा  कर  लें; वरना... कुछ  और  समय  इन्हें हिलगाए    रखना    होगा ।    खान    सोच    रहा    था ।
‘‘तुम्हें   ताऊ   रामलाल   के   बारे   में   पता   चला ?’’   मदन   ने   सुजान   से   पूछा ।
‘‘नहीं ।   क्या   हुआ ?’’
‘‘आज   दसवाँ   दिन   है––– ’’
‘‘अचानक ?    क्या    हुआ    था ?’’
‘‘कुछ  पता  नहीं  चला ।  प्यारेलाल  ने  कहलवाया  था,  कल  ही  मुझे  चिट्ठी मिली    है ।’’
ताऊ की यादें ताजा हो गर्इं। खान को अच्छा लगा, थोड़ा और टाइमपास हो जाएगा मगर मन दोनों के बेचैन ही थे ।
दत्त और गुरु को बैरेक्स की ओर जाते देखा और मदन की जान में जान आ गई । क्वार्टर मास्टर ने साढ़े सात    का    घण्टा    बजाया ।



‘‘चलो,    सब    कुछ    समय    के    भीतर    हो    गया!’’    चारों    ने    राहत    की    साँस    ली ।
‘‘सब  कुछ  ठीकठाक  हो  गया  ना ?  फिर  तेरा  चेहरा  उतरा  हुआ  क्यों  है ?’’ खान    दत्त    से    पूछ    रहा    था ।
‘‘सब   कुछ   योजना   के   अनुसार   तो   हो   गया,   मगर   जिस   तरह  1 दिसम्बर को अधिकारियों के होश उड़ गए थे,    वैसा इस बार नहीं होगा ।’’

 ‘‘ठीक कह रहे हो, मगर इस नयी परिस्थिति में जितना सम्भव था उतना हमने   किया   है । देख,   तेरे और गुरु   के   हाथों   में   रंग   लगा   है   वो   साफ   कर   लो और  बढ़े  हुए  नाखून  भी  काट  लो ।  नाखूनों  के  नीचे  का  रंग  चोरी  पकड़वा  देगा ।’’
चारों खाने के लिए बैठे । दत्त गुमसुम था । चेहरे का उत्साह गायब हो गया था । चार ग्रास निगलकर दत्त खाने   की मेज़ से उठ गया ।
''Excuse me! मुझे    बारह    से    चार    की    ड्यूटी    पर    जाना    है ।’’
जवाब    का    इन्तजार        करते    हुए    वह    दनदनाते    हुए    चला    गया ।
‘‘दत्त  का  मन  जब  अस्वस्थ  होता  है  तो  वह  गुमसुम  हो  जाता  है ।’’  दत्त के  जाने  के  बाद  मदन  खान  से  कह  रहा  था,  ‘‘उसके  मन  में  तूफान  मँडरा  रहा होगा,  ऐसे  तूफान  में  फँसा  हुआ  दत्त परिणाम  की  परवाह    करते  हुए  मनमानी कर   बैठता   है ।   हमें   उसे   समझाना   होगा,   वरना   हम   सभी   मुसीबत   में   फँस   जाएँगे ।’’
वे तीनों बैरेक में लौटे । दत्त बैरेक में नहीं था । बैरेक के सामने वाले प्रकाशपुंज फेंकते  बल्ब  बैरेक  का  सामने  वाला  परिसर  और  सामने  वाला  रास्ता  रोशन  कर रहे थे ।
‘‘दत्त,    कहाँ    गया    था ?’’    वापस    लौटे    हुए    दत्त    से    खान    पूछ    रहा    था ।
अस्वस्थ    दत्त    चुप    ही    रहा ।
‘‘शान्त रहो । आततायीपन मत  करो । अगर तुम पकड़े गए तो हमारी आधी शक्ति घट जाएगी और अगला    कार्यक्रम    असफल    हो    जाएगा ।’’
‘‘मैंने  हाथों  में  चूड़ियाँ  नहीं  पहनी  हैं,’’  दत्त  के  शब्दों  में  चिढ़  थी ।  हमारे आदर्श  हैं  सुभाष  बाबू  और  हमारा  नारा  है,  जीतेंगे  या  मरेंगे  यह    भूलो । यदि कोई   एक   पकड़ा   गया,   तो   भी Show must go on.'' वह   दनदनाते   हुए   अपने बिस्तर    की    ओर    गया ।
‘‘उसे    सोने    दो ।    चार    घण्टे    सो    जाएगा    तो    ठीक    हो    जाएगा ।’’    खान    ने    कहा ।
असल    में    मुझे    भी    बड़ी    नींद        रही    है ।    पिछली    तीनचार    रातों    का    जागरण,    योजना बनाना, उसकी तैयारी करना, पोस्टर्स लिखना––– और यह सब रोज़ के काम को सँभालते हुए,  सबकी   नजरें   बचाते   हुए -  मन   पर   बड़ा   टेन्शन   था ।’’   गुरु   खान और  मदन  को  समझा  रहा  था । हाथों  में  चूड़ियाँ  नहीं  पहनी  हैं  ये  उसने  टेन्शन के मारे ही कहा था । आज तक हमने एकदूसरे को सँभाला है, उसी तरह आगे भी सँभालना होगा । हम सबका उद्देश्य एक ही है ।’’
वे   तीनों   समझ   ही      पाये   कि   उन्हें   कब   नींद      गई ।   रात   के   नौ   बज गए ।  ऑफिसर  ऑफ  दि  डे  का  रात  का  राउण्ड  हो  गया ।  बैरेक  की  बत्तियाँ  बुझा दी गर्इं और चारों ओर अँधेरा छा गया । पूरी बैरेक नींद के आगोश में थी, मगर दत्त की आँखों में नींद नहीं थी ।
‘‘आज हम ज्यादा कुछ कर ही नहीं सके । और अधिक पोस्टर्स चिपकाने चाहिए  थे ।  नारे  लिखने  चाहिए  थे ।  वैसे  खतरे  की  तो  कोई  बात  नहीं  थी ।  सब बेकार ही में डर गए थे...  मगर मैं क्यों डर   गया ?   सबके   साथ   रहना   है   इसलिए ?’’
वह    एक    के    बाद    एक    सिगरेट    सुलगा    रहा    था ।
बारह  कब  बज  गए,  पता  ही  नहीं  चला ।  एक  दृढ़  निश्चय  से  वह  ड्यूटी पर हाज़िर हुआ ।



“Come on, get up and fall in on the ground.” बैरेक्स के सारे बल्ब जल रहे थे । गोरे सैनिक हिन्दुस्तानी सैनिकों   के   बदन   से   कम्बल   खींचकर,   डंडे से कोंचकोंचकर  उन्हें उठा रहे थे और परेड ग्राउण्ड पर धकेल रहे    थे ।
''Hey you bloody fool, come on get up'' पलंग पर डंडा मारते हुए और कम्बल खींचते हुए एक गोरा सैनिक गुरु को उठा रहा था । आधी नींद में गुरु को कुछ समझ में ही नहीं आया कि हो क्या रहा है और वह दुबारा बिस्तर पर लुढ़क गया ।
‘‘, सुनाय नाय देता? Come on, get up run to the parade ground.'' वही गोरा सैनिक गुरु के बदन पर दौड़ गया ।
गुरु  उठकर  बैठ  गया ।  आधी  नींद  के  कारण उसका सिर चकरा  रहा  था ।
उसका  ध्यान  दत्त  के  बेड  की  ओर  गया ।  कम्बल  की  तह  खुली  तक  नहीं  थी । दत्त की ड्यूटी तो चार बजे खत्म हो गई । वह गया कहाँ ? कहीं रात को उसने    कोई    गड़बड़    तो    नहीं    की ?    उसे    पकड़    तो    नहीं    लिया    गया!...
''You, Come on, hurry up.'' गोरा सैनिक उस पर फिर बरसा और विचारों की श्रृंखला टूट गई । अंतर्वस्त्र पहने ही    वह    बैरेक    से    बाहर    निकला ।
पूरा   परिसर   रोशनी   में   नहा   गया   था ।   उजाला   होने   में   करीब   घण्टाडेढ़   घण्टा था ।   हवा   में   काफी   ठण्डक   थी,   मगर   मदन,   गुरु,   दास,   खान   और   सलीम   के   पसीने छूट   रहे   थे ।
‘‘एकदूसरे   से   दूरदूर   रहो ।   मन   का   सन्तुलन   छूटने      पाये ।   चेहरे   पर   कोई भाव   नहीं ।’’   सभी   सवालों   के   जवाब   में – मालूम   नहीं,   कहना’,   मदन   ने   जातेजाते सबको सलाह दी । सामने क्या आने वाला है, इसकी किसी को भी कल्पना नहीं थी । परेड  ग्राउण्ड  पर  पूरी  शिप्सकम्पनी  फॉलिन  हो चुकी  थी ।  हर  डिवीजन  के सैनिकों  की  गिनती  की  जा  रही  थी ।  कुल  सैनिकों  की  संख्या  का  बारबार  मिलान किया    जा    रहा    था ।
दास,  गुरु,  खान,  सलीम  और  मदन  की  नजरें  दत्त  को  ढूँढ़  रही  थीं ।  दत्त के  साथ  बारह  से  चार  ड्यूटी  करने  वाले  वहाँ  उपस्थित  थे,  मगर  दत्त  दिखाई  नहीं दे रहा था ।   उनके   दिल   धक्क   रह   गए ।
दत्त पकड़ा तो नहीं गया ?’    सभी के दिमाग में यही    सवाल था ।
किससे  पूछें ?’  गुरु  ने  सोचा ।  मगर,  नहीं  पूछताछ  करने  का  मतलब  होता सन्देह   उत्पन्न   करना,’   उसका   दूसरा   मन   कह   रहा   था ।   यदि   दत्त   पकड़ा   गया है, तो अब हम कर ही क्या सकते हैं ? सारी शंकाएँ, सारी उत्सुकता दबाते हुए, चेहरा  निर्विकार  रखना  चाहिए  और  प्रस्तुत  परिस्थिति  का  सामना  करना  चाहिए ।
''Hey you bloody, black. come on more forward. Double up.'' गोरा सैनिक चीख रहा था ।
गुरु होश में आया, गालियाँ देने वाला वह सिपाही मुझसे जूनियर है, यह बात  उसके  ध्यान  में  आई  और  उसने  सोचा,  ‘‘साले  को  पकड़  के  धुनक  दूँ ।  मन ही   मन   उस   पर   गालियों   की   बौछार   करते   हुए   वह   जाँच   के   लिए  आगे   बढ़ा ।
''Show me your hands.''
गुरु  ने  हाथ  आगे  बढ़ाए ।  मन  ही  मन  खान  को  धन्यवाद  दिया ।  ‘‘खान ने  हाथ  साफ  धोने  के  लिए,  नाखून  काटने  के  लिए  यदि  नहीं  कहा  होता  तो  आज शायद...   दत्त शायद बगैर हाथ धोए वैसे ही इधरउधर...  रंग के कारण तो दत्त...’’
वह    बेचैन    हो    गया ।
पूर्व   में   क्षितिज   पर   एक   नया   दिन   और   एक   नया   आह्वान   प्रस्तुत   करत हुए सूरज धीरेधीरे    ऊपर        रहा    था ।    कहीं    आज    का    दिन    नौसेना    में    मेरे    अस्तित्व को   नष्ट   करने   वाला   तो   नहीं   है ?   अगर   वैसा   हुआ   तो   हमारी   बगावत   की   तैयारी...जो   सामने   आएगा,   उसका   हिम्मत   से   मुकाबला   करना   ही   होगा ।   गुरु   मन   ही मन  आने  वाले  दिन  के  बारे  में  सोच  रहा  था,  मुफ्त  में  तो  किसी  को  भी  कुछ भी    नहीं    मिलता ।    कीमत    तो    चुकानी    ही    पड़ती    है ।


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