मंगलवार, 13 मार्च 2018

Vadvanal - 13





नाश्ते के लिए वे मेस में गए । हमेशा की तरह लम्बी कतार थी । ‘‘पहेण   दी...   त्वाडे मा दी...   साले   दो   काउन्टर   क्यों   नहीं   शुरू   करते ?   हरामी, साले!’’    अश्लील    गालियों    की    बौछार    करते    हुए    जी.    सिंह    पूछ    रहा    था ।
‘‘काउन्टर  बढ़ाने  के  लिए  पर्याप्त  कुक्स  होने  चाहिए  ना ?  यहाँ  तो  हर  वॉच में चारचार कुक्स! वे भी    क्याक्या करेंगे ?’’    खान    ने    स्थिति    स्पष्ट    की ।
कतार    कछुए    की    गति    से    आगे    सरक    रही    थी ।
‘‘चल,  जाने  दे,  मरने  दे उस ब्रेकफास्ट को । देने वाले क्या हैं - दो  पूरियाँ  और चम्मच भर दाल ही तो   मिलने वाली है ना ?’’   चार से आठ ड्यूटी करके आया हुआ यादव उकताकर बोला
  ‘‘सही में,   चल अपन चले जाएँ । एकएक घण्टा राह देखने के लिए हम भिखारी नहीं हैं!’’    गुरु ने सहमति दर्शाई ।
‘‘अपने  अधिकारों  के  लिए  हमें  लड़ना  चाहिए ।  भाग  जाने  में  मर्दानगी  नही है!’’   खान   ने   उन्हें   रोका ।
‘‘वो देख, ऑफिसर ऑफ दि डे मेस में आया है राउंड लेने के लिए और टेस्टिंग के लिए ।’’    गुरु ने सब लेफ्टिनेंट रॉड्रिक्स की ओर देखते हुए कहा ।
‘‘अरे,    वो    राउंड    के    लिए    कम    और    टेस्टिंग    के    लिए    ज्यादा    आता    है ।’’    यादव ने    कहा ।
‘‘चलो,  उससे  पूछें  कि  दूसरा  काउन्टर  क्यों  नहीं  खोलता ?’’  खान  ने  कहा ।
और वह रॉड्रिक्स की दिशा में बढ़ गया । आठदस और भी लोग उसके साथ हो लिए ।
''What's the matter?'' रॉड्रिक्स   ने   पूछा ।
''We are in the Que for last forty five minutes, but...''  चिढ़े हुए खान को बीच में ही रोककर रॉड्रिक्स ने मुँहजोरी से पूछा,  ''So what? Go and stand in que...''
‘‘कितनी देर खड़े रहें, दूसरा काउन्टर खोलने को कहिए, हमें बाहर जाना है ।’’   यादव।
''Don't teach me.'' रॉड्रिक्स ।
''It is a suggestion.'' खान ने कहा ।
''Get lost from here.''  रॉड्रिक्स   सैनिकों   को   तुच्छ   समझते   हुए   बोला ।
''Why get lost? अरे,   ये   क्या   नाश्ता   है ?’’   नाश्ते   की   एक   थाली   और मग रॉड्रिक्स के सामने नचाते हुए दत्त बोला, ‘‘ये चाय पीकर देख । कोई स्वाद है ?  ये  दाल  तो  बस  तीखातीखा  पानी  है  और  ये  पूरियाँ  कीड़ों  से  भरी  हैं ।  भीतर जाकर  ब्रेडमक्खन  खाकर  कमेन्ट्सबुक  में  झूठे  कमेन्ट्स  लिखने  के  बदले  ये  दाल और    पूरी    खाकर    देख...’’
''Shut up!'' रॉड्रिक्स     चीखा ।
''Don't Shout!'' दत्त  की  आवाज  ऊँची  हो  गई  थी । ‘‘ये  हमारी  शिकायत है और तुझे इसे सुनना पड़ेगा ।’’
अब    पन्द्रहबीस    लोग    रॉड्रिक्स    को    घेरकर    खड़े    हो    गए ।
‘‘नौसेना का आज तेरा आख़िरी दिन है,     कम से कम वह तो चैन से बिताओ ।’’    रॉड्रिक्स    कुत्सित    आवाज    में    बोला ।
दत्त ने रॉड्रिक्स की नजरों में देखते हुए हँसकर कहा,  ‘’'I am not a coward, आख़िरी  दिन  तक  तो  क्या,  जीवन  की  अन्तिम  साँस  तक  भी  मैं  अपने  अधिकारों के लिए   लड़ता   रहूँगा ।’’   दत्त   की   नजरों   की   आग   रॉड्रिक्स   तक   पहुँच   रही   थी ।
''Look, officer, you will listen to us.'' भीड़   में   से   किसी   ने   कहा ।
रॉड्रिक्स ने सोचा नहीं था कि सैनिक इस तरह बदतमीजी से बात करेंगे । अपने  चारों  ओर  पड़े  हुए  सैनिकों  के  घेरे  को  देखकर  वह  घबरा  गया  और  मरियल आवाज   में बोला,  ''All right. Come on, speak up.''
‘‘आज इतवार है । डेली ऑर्डर में ब्रेकफास्ट का मेनू ब्रेड, बटर, जैम और बॉइल्ड एग्ज़ हैं । हमें यह सब मिलना ही चाहिए ।   हमारा   राशन   कहाँ   गया ?’’ दत्त   ने   पूछा ।
‘‘आज सप्लाई नहीं आई होगी,  मैं पता करता हूँ ।’’  रॉड्रिक्स  कोई  रास्ता ढूँढ़ने की कोशिश कर रहा था ।
‘‘पहले  अपने  गाल  पर  लगा  मक्खन  तो  पोंछ  लो ।’’  किसी  ने  शरारत  से सलाह    दी    तो    रॉड्रिक्स    का    हाथ    अपने    गाल    की    ओर    चला    गया ।
‘‘अगर गैली में सप्लाई नहीं हुई तो तुम्हारे गाल पर मक्खन कहाँ से आया ?’’ फिर वही शरारती आवाज़ ।
रॉड्रिक्स    के    गाल    पर    कुछ    भी    नहीं    लगा    था ।
'' We want our ration," दत्त   चिल्लाया ।
रॉड्रिक्स अब घबरा गया था । वह सोच रहा था कि यहाँ से निकले कैसे । ड्यूटी चीफ़ पेट्टी ऑफिसर को मेस की ओर आता देखकर उसे कुछ ढाढ़स बँधा । उसने चीफ़ जॉर्ज को बुलाया। मेस में सभी की नज़रें रॉड्रिक्स पर थीं । उसक चारों ओर सैनिकों की भीड़ बढ़ती जा रही थी ।
चीफ    जॉर्ज    मेस    में    आया ।
''You, bloody coolies, you want bread, butter and jam?  अपने घर  में  बासी  रोटी  भी  मिलती  है  क्या ? तुम अपने आप को समझते क्या  हो ?’’ चीफ़ जॉर्ज को मेस में आया देखकर रॉड्रिक्स को जोश आ गया था ।
रॉड्रिक्स  के  इस  अपमानजनक  और  मगरूर  वक्तव्य  से  वहाँ  उपस्थित  सभी लोगों   को   गुस्सा      गया,   कुछ   लोगों   की   आँखों   से   चिंगारियाँ   निकलने   लगीं । ''You bloody...'' मुट्ठियाँ  भींचते  हुए  दास  रॉड्रिक्स  पर  चढ़ने  ही  वाला  था, कि तभी दत्त ने उसे पीछे खींचा । ‘‘नहीं, दास, इस तरह अपना आपा न खोना, यही परीक्षा की घड़ी है ।’’    दत्त ने समझाया ।
दास  के  क्रोध  को  और  दत्त  के  उसे  रोकने  को  रॉड्रिक्स  ने  देख  लिया ।  एक काला   सैनिक   उस   पर   हमला करने   की   कोशिश   करे,   यह   उससे   बर्दाश्त   नहीं   हुआ । वह दत्त और दास पर चिल्लाया,  ''Come on, get lost from here and remember–beggars cannot be choosers.''
''We are not beggars, but we are masters of this country.''  खान ने  चीखकर कहा और उसने अपनी प्लेट की  दाल और पूरियाँ उसके सामने फेंकते हुए चाय का मग भी उड़ेल दिया ।
खान    का    अनुकरण    और    आठदस    लोगों    ने    किया ।
रॉड्रिक्स समझ गया कि सैनिक बेकाबू हो रहे हैं । वह जॉर्ज की सहायता से  बाहर  निकला ।  क्रोधित  दत्त,  दास,  यादव  और  अन्य  हिन्दुस्तानी  सैनिकों  की नज़रों की तीखी सुइयाँ अभी भी उसके पूरे बदन में चुभ रही थीं ।
यदि ये हिन्दुस्तानी सैनिक चिढ़ गए तो...  उसके मन में विचार आया। इस विचार के आते ही उसकी नजरों के सामने घूम गए अंग्रेज़ अधिकारियों के चेहरे जो क्रान्तिकारियों के रोष की बलि चढ़ गए थे । महात्मा गाँधी,   उनके आन्दोलन...  पुलिस की गोलाबारी,  लाठीचार्ज...  और यह सब बगैर किसी हिंसात्मक प्रतिकार के सहन करने वाले सत्याग्रही...
इस देश में महात्माजी हैं - यह अंग्रेज़ों के लिए फायदेमन्द है । उनके अहिंसा के तत्वज्ञान से अधिकांश हिन्दुस्तानी प्रभावित हो गए हैं । वरना इन चिढ़े हुए हिन्दुस्तानियों ने तो अंग्रेज़ों की वो गत बनाई होती कि वे   त्राहित्राहि   कर उठते... ये चिढ़े हुए नौसैनिक शायद–––’’   उसके   मन   में   यह   विचार   आते   ही   वह   बेचैन हो    गया ।
मगर  यह  सम्भव  नहीं ।  क्या  हमने  1857  का  विद्रोह  नहीं  कुचल  दिया ? उसी   तरह   ये   भी... हाँ, यदि जनता भी सैनिकों का साथ देने लगे तो फिर...फिर असम्भव हो जाएगा...
जेब से रुमाल निकालकर उसने माथे से पसीना पोंछा । उसका गला सूख गया था और साँस फूल रही थी । वह जल्दीजल्दी ऑफिसर ऑफ दि डे के दफ़्तर में घुसा । कैप मेज पर फेंक दी । गिलास में रखा पानी गटागट पी गया, कमीज  के  बटन खोलकर,    पंखा पूरे ज़ोर से चलाकर वह कुर्सी पर पसर गया। कुछ आराम महसूस हुआ ।
''May I come in, Sir?' चीफ़ जॉर्ज दरवाजे में खड़ा था ।
''Yes, come in'' उसने जॉर्ज को अन्दर बुलाया। जॉर्ज भीतर आया ।
‘‘बोल, क्या कह रहा है ।’’   अब और कौनसी नबात हो गई - ऐसा भाव उसके शब्दों से झलक रहा था ।
‘‘अभी  मेस  में  जो  कुछ  हुआ  वह  ठीक  नहीं  था । मेरा ख़याल है कि हम कमाण्डर किंग को सब बता दें । कल यदि इसमें से कोई और बात पैदा हुई तो हम पर दोष नहीं लगना चाहिए। फिर बेस   का वातावरण भी तो विस्फ़ोटक हो गया है ।’’    जॉर्ज ने सुझाव दिया ।
‘‘जॉर्जी, तेरी डरने की आदत अभी गई नहीं ।’’ रॉड्रिक्स हँसते हुए बोला, ‘‘मैं नहीं सोचता कि यह सब किंग को बताने   की ज़रूरत है । जो कुछ हुआ उसमें कोई ख़ास बात नहीं,   ऐसा भी  नहीं है । राशन की कमी होने के बाद से ये वाक्युद्ध अक्सर होने लगा है। इसमें कोई सीरियस चीज नहीं । हाँ, आज दिनभर में फिर से  ऐसा  कुछ  हो  जाए  तो  जरूर  सूचित  करेंगे ।  मैं  तो  वह  सब  भूल  गया  हूँ ।  तू भी भूल जा ।’’   उसने   जॉर्ज   को   सलाह   दी ।
जॉर्ज  समझ  गया  कि  किंग  को  यह  सब  बताना  रॉड्रिक्स  को  अपमानजनक लग रहा है; उसे यह अपनी कार्यक्षमता पर दाग जैसा प्रतीत हो रहा है ।



मदन और गुरु शेरसिंह से मिलने के लिए बाहर निकले थे ।
जब वे वापस आए तो दोनों ही के चेहरे उतरे हुए थे । दिल में कोई मरणांतक वेदना लिये वे लौटे थे। वे  चुपचाप कॉट पर बैठ गए ।
‘‘क्या हुआ रे ?’’    खान ने पूछा ।
‘‘क्या कहें! अपना आधार ही खत्म हो गया!’’   मदन भावविह्वल हो रहा था ।
‘‘मतलब  क्या ?  साफसाफ  बता  ना!’’  खान  ने  कहा,  उन्हें  इस  तरह  बैठा  देखकर  दत्त और दास भी वहाँ    आए ।
पूरा धीरज बटोरकर मदन ने कहा, ‘‘शेरसिंह को आज सुबह पकड़ लिया गया ।’’
‘‘क्या ?’’  खान ने पूछा और वहाँ भयानक चुप्पी छा गई । मानो उनके परिवार के किसी प्रिय व्यक्ति को उनसे छीन लिया गया हो ।
 ‘‘कैसे पकड़ा ?’’   कुछ देर बाद दत्त ने पूछा ।
‘‘हम सुबह शेरसिंह के गुप्त ठिकाने पर पहुँचे । हमेशा की तरह दूर ही से हम आहट लेने लगे । दूर पर पुलिस की गाड़ी खड़ी थी । हम सतर्क हो गए। गाड़ी से चार यूनिफॉर्म वाले और छहसात सादे वेश में पुलिसवाले उतरे । उनमें बोस भी था...’’
‘‘हरामी साला,    अब मिलने तो दो,  दिखाता हूँ साले को...’’    दाँतहोंठ भींचते हुए दास ने कहा ।
''Cool down, Das. ये गुस्सा करने का वक्त नहीं है । यदि गुस्से में हमारे हाथ से कोई गलती हो गई तो हम सभी   मुश्किल में पड़ जाएँगे और हमारा उद्देश्य पूरा  नहीं  होगा," दत्त  ने  समझाया,  ‘‘तू  आगे  बता ।’’  उसने  बीच  ही  में  रुके  मदन से    कहा ।
‘‘हम शेरसिंह के मकान पर नजर रखे हुए दूर खड़े थे । इन्तज़ार का वह जानलेवा आधा घण्टा एक युग के समान     प्रतीत हुआ । आधे घण्टे बाद हथकड़ियाँ पहने शेरसिंह को बाहर लाया गया । उनके  साथ  उनके  चारपाँच  साथी भी थे । उन सबको लेकर पुलिस की गाड़ी निकल गई और टूटे दिल से हम वापस लौट आए ।’’    मदन    ने    थरथराती    आवाज    में    कहा।
किसी को कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी । शेरसिंह की गिरफ़्तारी से सभी को आघात पहुँचा था । उन सबका आधार ही टूट गया था । उनका मार्गदर्शक सलाख़ों के पीछे चला गया था ।
‘‘शेरसिंह   की   गिरफ्तारी   हमारे   लिए   दुर्भाग्य   की   बात   है ।   जो   होना   नहीं चाहिए  था,  वही  हो  गया  है ।  दत्त  समझा  रहा  था ।  अब  आगे  जो  कुछ  भी  करना है,    वह    अत्यन्त    सावधानी    से    करना    होगा’’
‘‘जो काम हमने हाथ में लिया है उसे किसी भी हालत में पूरा करना ही है,  फिर चाहे कितनी भी मुसीबतें क्यों न  आएँ । यह सच है कि शेरसिंह का मार्गदर्शन अब  हमें  मिलने  वाला  नहीं  है । अब  हमें  अपना  मार्ग  खुद  ही  ढूँढ़ना  होगा  और एक एक कदम फूँकफूँककर रखना होगा । मेरा ख़याल है कि अब हम शेरसिंह की   गिरफ्तारी   के   बारे   में   भूल   जाएँ   और   आगे   की   योजना   पर   विचार   करें ।   क्योंकि आज वाला मौका यदि हमने गँवा दिया तो फिर शायद ऐसा मौका दुबारा न मिले ।’’ खान अब सँभल गया था ।
‘‘अरे,   तुम   लोग   अब   तक   यहीं   हो ?’’   एबल   सीमन   चाँद   इन   छह   लोगों को इकट्ठा देखकर    पूछ रहा था ।
‘‘मतलब ?’  गुरु ने पूछा ।
 ‘‘मेरा   ख़याल   था   कि   शायद   किंग   ने   तुम   लोगों   को   उठाकर   सलाखों   के पीछे फेंक दिया होगा । अरे, ऐसा सिर्फ मुझे ही नहीं, बल्कि सीमेन मेस के हरेक को   लग   रहा   था ।’’   चाँद   कह   रहा   था,   ‘‘तुम   सब   लोग,   खासकर   यादव,   जिस तरह  से  रॉड्रिक्स  से  बात  कर  रहे  थे,  उससे  हम  समझ  रहे  थे  कि  हम  गुलाम  नहीं हैं । हमारे भी कुछ अधिकार हैं जो हमें मिलने चाहिए ।’’
‘‘आज  तक  हममें  से  अनेक  लोग  सोचते  थे,’’  चाँद  के  साथ  आया  हुआ सूरज  कह  रहा  था, ‘‘स्वतन्त्रता प्राप्ति  वगैरह  हमारा  क्षेत्र  नहीं; मगर  आज  समझ में    गया  कि  स्वतन्त्रता प्राप्ति  के  लिए  हम  भी  कुछ  कर  सकते  हैं ।  अपनी  गर्दन पर पड़े हुए गुलामी के जुए को उतार फेंकना,  अपने आप स्वयं की गुलामी नष्ट करना – ये भी बड़ी सहायता हो सकती है । आज तुमने हमें दिखा दिया। अपने अधिकारों के  लिए  गर्दन  तानकर  गोरे  अधिकारियों  से  बात  कर  सकते  हैं,  इसका  एहसास करा दिया । हम तुम लोगों के साथ हैं । इससे आगे जो लड़ाई तुम लड़ोगे उसमें हमारा केवल समर्थन ही नहीं,  बल्कि  पूरी  तरह  से  सहयोग  रहेगा ।  बैरेक  में  सुबह से यही चर्चा चल रही है । उसका सारांश ही मैं आपको बता रहा था ।’’
‘‘तुम  हमारा  साथ  दोगे,  इससे  हमें  खुशी  ही  हो  रही  है,  मगर  इसके  लिए हम तुम्हारा आभार नहीं मानेंगे;  क्योंकि वर्तमान परिस्थिति में मातृभूमि की स्वतन्त्रता  के  लिए  चल  रहे  संघर्ष  में  शामिल  होना  हर  हिन्दुस्तानी  नागरिक  का कर्तव्य है । तुम अपना कर्तव्य निभाने जा रहे हो,   इसकी हमें खुशी है ।’’   दत्त ने हँसते हुए कहा ।
‘‘अपना  संघर्ष  जारी  रखते  हुए  हमें  अपने  आप  पर  काबू  रखना  होगा । गर्म दिमाग से शारीरिक हमला    करना उचित नहीं है ।’’    दत्त    ने    कहा ।
‘‘मतलब,      क्या तुम  यह कहना चाहते हो कि यदि गोरा अधिकारी हमें भिखारी कहे,   माँबहन की गालियाँ दे फिर   भी   हमें   खामोश   रहना   चाहिए ?’’   मुक्के   का जवाब  मुक्के  से  देने  के  सिद्धान्त  पर  विश्वास  रखने  वाला  दास  जोश  में  कह  रहा था,   ‘‘हमने   अपने   हाथों   में   चूड़ियाँ   नहीं   पहनी   हैं । र्इंट का जवाब पत्थर से ही देना    होगा!’’
‘‘मेरा   ख़याल   है   कि   हमें   शान्त   ही   रहना   चाहिए ।’’   मदन   ने   बड़े   सुकून से    कहा ।
‘‘आज की बदली हुई परिस्थिति में यदि कांग्रेस और सामान्य जनता का समर्थन प्राप्त करना हो तो हमें अहिंसा के मार्ग से ही जाना चाहिए । तभी महात्माजी के    विचारों    से    प्रभावित    जनता    हमारा    साथ    देगी ।’’
‘‘बल प्रयोग किसी भी प्रश्न का समाधान नहीं हो सकता ।’’    खान ने सहमत होते  हुए  कहा ।  ‘‘हमारा  विरोध  नीतियों  से  है,  प्रवृत्ति  से  है,  व्यक्तियों  से  नहीं । किंग   अथवा   रॉड्रिक्स   की   विजेता   के   रूप   में   जो   प्रवृत्ति   है,   उस   प्रवृत्ति   का   हम विरोध  करते  हैं ।  प्रवृत्ति  को  हिंसात्मक  मार्ग  से  नष्ट  नहीं  किया  जा  सकता,  बल्कि इससे   वे   और   प्रबल   हो   जाती   हैं ।   हमारा   उद्देश्य   है   नौसेना   पर   कब्जा   करके   अंग्रेज़ों के पंख काटना । हम उनसे कहने वाले हैं कि हमारा देश छोड़कर चलते बनो!’’
गरम खून वाले दास को यह मंजूर ही नहीं था । ‘‘हम सैनिक हैं । हमें बन्दूक चलाना सिखाया गया है; चुपचाप लाठियाँ और गोलियाँ खाना नहीं ।’’
दास  के  ये  विचार  प्रतिनिधिक  थे ।  अनेक  लोग  सशस्त्र  क्रान्ति  के  पक्ष  में थे ।
‘‘हम पर आक्रमण हो,  फिर भी हम खामोश रहें,    यह बात ठीक नहीं लगती, ‘’ यादव   ने   कहा ।
‘‘मेरा   ख़याल   है   कि   हम   इस   चर्चा   को   यहीं   रोक   दें ।’’   दत्त   के   मन   में   सन्देह के बादल  उठ  रहे  थे । आन्दोलन  का  मार्ग  कौनसा  होना  चाहिए,  इसी  बात  को लेकर यदि आरम्भ में ही दो गुट बन गए तो सब कुछ...  ये गुटबाजी टालनी होगी । हमें एकजुट रहना होगा,    वरना...।
‘‘तुम  लोगों  के  विचार  सही  हैं ।’’  दत्त  ने  दास  और  यादव  के  विचारों  से सहमति दर्शाई। ‘‘हम   सैनिक हैं । हमने शस्त्रास्त्र चलाना सीखा है । शस्त्र चलाने के भी कुछ नियम हैं । मेरा ख़याल है कि पहला आक्रमण हमारी संस्कृति का अंग नहीं है,’’  दत्त    समझा    रहा    था ।
‘‘आज   सभी   के   मन   में   विद्रोह   की   आग   सुलग   रही   है ।   उसके   दावानल बनने  के लिए  कोई  एक  छोटीसी  घटना  भी  पर्याप्त  होगी ।  हम  पहले  ऐसी  किसी घटना पर विचार करें । एक बात   याद   रखो,   यदि   सबको   साथ   लेकर   चलना है तो कहीं न कहीं समझौता करना ही पड़ेगा ।’’
‘‘दत्त  सही  कह  रहा  है ।  हम  प्रसंगानुसार  अपना  मार्ग  निश्चित  करेंगे ।  मगर तब तक हम पूरी तरह अहिंसात्मक मार्ग से ही चलेंगे और एकता बनाए रखेंगे ।’’ खान ने धीरज रखने का सुझाव देकर समझौते का प्रस्ताव रखा ।
‘‘ये एकदम मंज़ूर!’’    दास और यादव ने मान लिया ।
‘‘चाँद  और  सूरज  ही  की  तरह  मुझे  भी  यही  लग  रहा  था  कि  हमें  या  तो गिरफ़्तार  कर  लिया जाएगा,  या  कम  से  कम  गार्ड  रूम  में  तो  बुलाया  ही  जाएगा । मगर वैसा भी नहीं हुआ । या तो हमें मिल रहे समर्थन को देखकर रॉड्रिक्स हक्काबक्का रह गया; या फिर हमें अनदेखा करके मिटा देने का उसने निश्चय किया है । इस परिस्थिति   का   लाभ   उठाते   हुए   हमें   दूसरा   वार   करना   चाहिए ।’’   गुरु   ने   कहा ।
‘‘मतलब,    करना क्या होगा ?’’    यादव ने पूछा ।
‘‘पहले   खाना   खा   लेते   हैं ।   एक   बज   चुका   है ।   भूखे   पेट   कुछ   सूझेगा   भी नहीं ।’’  दास  को  जोर  की  भूख  लगी  थी ।  दास  का  सुझाव  सबको  पसन्द    गया और वे मेस की ओर चल पड़े । मेस में हमेशा ही की तरह गड़बड़ और शोरगुल था ।
‘‘अरे, चीफ साब और थोड़े चावल दे दो ।’’ सुजान ड्यूटी कुक की दाढ़ी को सहलाते हुए विनती कर रहा था ।
‘‘अरे भाई,  ज़्यादा चावल कहाँ से लाऊँ । जो कुछ मिलता है,  जैसा मिलता है,   वैसा ही पकाकर परोसते हैं ।’’   कुक   जीतोड़   कर   कह   रहा   था ।   गुरु,   दत्त, खान,  मदन,  दास,  यादव  और  उनके  साथ  आए  हुए  सैनिकों  ने  खाना  लिया  और हमेशा की तरह अलगअलग टेबल पर बैठ गए ।
‘‘अरे,  प्लेट  के  चारों  ओर  ये  क्या  रंगोली  बना  रखी  है ?’’  खान  ने  सामने बैठे कृष्णन से पूछा ।
‘‘अरे बाबा,    ये रंगोली नहीं,   आज के खाने में मिले विभिन्न प्रकार के सजीवनिर्जीव पदार्थ हैं । ये देख,    यहाँ चावल से निकले पाँच तरह के,    अलगअलग तरह के कंकड़ हैं; ये चारपाँच काले कीड़े हैं; बीच में यह पीला टुकड़ा   इल्ली का है । यह जो टहनी दिखाई दे रही है, वह साँबार नामक पदार्थ से ऑल इन वन  कढ़ीपत्ते  की  है ।  सारे  मसाले  इसी  एक  पत्ते  में  होते  हैं,  ऐसा  गोरों  का  ख़याल है;   साँबार  से  मिले  ये  छह  दाल  के  दाने मतलब  मुझे  मिला  हुआ  इनाम  ही  है––– ’’
‘‘बहुत खूब! साले,   दवाख़ाने में चपरासी बनने के बदले तुझे लेखक ही बनना चाहिए था!’’    खान उसकी पीठ थपथपाते हुए बोला ।
‘‘अरे, वास्तविकता को भूलने के लिए किया गया यह मज़ाक है । अधूरा और  गन्दा  खाना  कितने  दिनों  तक  खाएँगे ?  पेट  की  भूख  कितने  दिनों  तक  मारते रहेंगे ?    देखना,    सभी    को    यही    सवाल    सता    रहा    है ।    सभी    बेचैन    हैं ।’’
कृष्णन का दबा हुआ दुख उफनकर बाहर आ गया। खान ने पूरी मेस में नज़र दौड़ाई । मेस की बेचैनी महसूस हो रही थी ।
यदि एक और धक्का दिया जाए तो विद्रोह का जहाज़ पानी में धकेल दिया  जाएगा  और  फिर  आजादी  का  किनारा  दूर  नहीं ।  खान  के  मन  में  ख़याल आया । पर करना क्या होगा ?’ उसने अपने आप से सवाल पूछा और बेचैन हो गया । दो टेबल छोड़कर बैठे गुरु के मन में एक विचार रेंग गया और वह सम्मोहितसा उठकर खड़ा हो गया । सबको सुनाई दे ऐसी ऊँची आवाज़ में चिल्लाया,  ''Silence please! Silence please! Friends, listen to me.'' मेस में खामोशी छा गई । सबका ध्यान गुरु की ओर खिंच गया । सब यह जानने के लिए  उत्सुक  थे  कि  वह  क्या  कह  रहा  है ।  कुछ  लोग  अपनीअपनी  थालियाँ  लेकर खड़े हो गए,    तो कुछ लोग उठकर उसके पास    गए ।
‘‘दोस्तो!,   सुबह   हमें   दिया   गया   नाश्ता   और   अब   यह   दोपहर   का   भोजन इन्सानों  के  खाने  लायक  नहीं  है ।  हमने  आज  तक  अलगअलग  तरह  से  अपनी शिकायतें   दर्ज   करवाईं,   मगर   उनकी   दखल   किसी   ने   नहीं   ली,   इसलिए   मैं   इसी क्षण    से    इस    खाने    का    बहिष्कार    करता    हूँ ।’’
गुरु ने अपनी प्लेट उठाई और उसे डस्टबिन में खाली कर दिया । गुरु के मेस से बाहर जाते ही मेस में भयानक खामोशी छा  गई ।  गुरु  के  खड़े  होने  से पहले का कोलाहल रुक गया था । दत्त और खान के अन्त:चक्षुओं    को इस खामोशी में छिपे तूफान का एहसास हो गया । वे दोनों नि:शब्द बैठे थे । मेस की यह खामोशी दोचार    मिनट ही रही ।
‘‘मैं  गुरु  की  राय  से  पूरी  तरह  सहमत  हूँ ।  उसकी  इस  कृति  में  सहभागी होकर उसका साथ देने के लिए मैं भी खाने का बहिष्कार करता हूँ ।’’ ‘तलवारपर  हाल  ही  में  आए  परमेश्वरन्  ने  कहा  और  वह  भी  मेस से बाहर निकल  गया ।
‘‘दो,  तीन,  चार–––’’  दत्त  और  खान  बहिष्कार  जाहिर  करके  मेस  से  बाहर निकलने वाले सैनिकों की संख्या    गिन रहे थे ।
‘‘बीस लोग खाना फेंककर उठ गए ।’’    दत्त ने अन्तिम संख्या बताई ।
‘‘तुमने ध्यान दिया ही होगा कि इन बीस लोगों में एक भी आज़ाद हिन्दुस्तानी सैनिक नहीं था ।’’    खान    ने    कहा ।
‘‘गुरु  को  यह  कैसे  सूझा  क्या  पता!  मगर  उसकी  इस  हरकत  से  वातावरण को  गर्म  करने  में  बड़ी  मदद  मिली  है ।’’  दत्त  ने  खुले  दिल  से  गुरु  की  सफलता की    सराहना    की ।



रात के खाने के समय परिस्थिति का जायजा लेने  के  लिए  दास  और  यादव  फिर से वापस आये ।    
''Bravo, Guru! अरे  मेस  में  आज  हमेशा  जैसी  भीड़  नहीं  है । ड्यूटी कुक ब्रेड के बचे हुए टुकड़े लेकर आये हुए सैनिकों को  आग्रह  कर  करके  खिला  रहे हैं ।’’    गुरु    को    बधाई    देते    हुए    दास    उत्साहपूर्वक    कह    रहा    था ।
रात  के  नौ  बज  गए ।  ऑफिसर  ऑफ  दि  डे  के  राउण्ड  के  लिए  आने  की सीटी  बजी  और  ड्यूटी  कुक  अटेन्शन  में  खड़ा  हो  गया । ''Sailors' mess and galley ready for inspection, sir!'' दौड़कर आते हुए  ड्यूटी कुक ने रिपोर्ट किया और रॉड्रिक्स ने इन्सपेक्शन करना शुरू किया ।
‘‘सर,   रात   का   खाना   और   दोपहर   की   चाय   बहुत   सारी   बची   है ।’’   कुक ने राउण्ड समाप्त    होतेहोते अदब से कहा ।
‘‘क्यों ?  इतनी  सारी  सब्जी  क्यों  बची  है ?’’  एक  बर्तन  खोलते  हुए  रॉड्रिक्स ने   पूछा ।
‘‘शाम को बहुत लोग खाने के लिए नहीं आए ।’’ कुक ने जानकारी दी ।
‘‘आज बाहर जाने वाले सैनिकों की संख्या कम थी ।’’ रॉड्रिक्स ने कहा ।
‘‘बिलकुल ठीक,  सर,   मगर अनेक लोगों ने दोपहर को ही खाने का बहिष्कार करने की घोषणा की थी।’’    कुक ने    जवाब दिया ।
''I see! बहिष्कार  कर  रहे  हैं,  साले । जाएँगे कहाँ ?  पेट  में  जब  कौए  बोलने लगेंगे तो नाक घिसते हुए आएँगे...’’    बेफ़िक्री से उसने कुक से कहा ।
सब  लेफ्टिनेंट  एक  बढ़िया  नेवीगेटर  के  रूप  में  जाना  जाता  था, मगर आज तलवार    किस दिशा में    जा रहा है इस पर उसका ध्यान ही नहीं गया था ।
रॉड्रिक्स  के  साथ  आए  हुए  ड्यूटी  चीफ  ने  उसे  फिर  से  सुझाव  दिया,  ‘‘मेरा अभी  भी  यही  ख़याल  है  कि  हमें  यह  सब  कुछ  बेस  कमाण्डर  के  कानों  में  डाल देना चाहिए ।’’
''George, you are a bloody coward.'' रॉड्रिक्स के शब्दों में और उसकी नज़र में तुच्छता  की  भावना  थी ।  ‘‘ये ब्लडी  इंडियन्स  कुछ  भी  नहीं  करेंगे ।  तुम कह ही रहे हो तो मैं इस बात पर विचार करूँगा ।’’
रॉड्रिक्स ने कम्युनिकेटर्स की बैरेक का राउण्ड लिया । सब कुछ कितना शान्त था । वातावरण में फैली शान्ति, सैनिकों का संयमपूर्वक व्यवहार - यह सब देखकर रॉड्रिक्स जॉर्ज की ओर देखकर हँसा । उसकी इस छद्मतापूर्ण     हँसी में अनेक अर्थ छिपे थे ।
बैरेक    की    लाइट्स    बुझा    दी    गर्इं    तो    एकएक    करके    लोग    बीच    वाली    डॉरमेटरी में  गुरु  की  कॉट  के  चारों  ओर  जमा  होने  लगे ।  दिल्ली  में  हुए  हवाईदल  के  विद्रोह की    खबर    अब    बैरेक    में    सबको    हो    गई    थी ।
 ‘‘हमें भी इस सरकार के विरुद्ध खड़ा होना चाहिए ।’’
‘‘यहाँ - सिर्फ मुम्बई में ही हम लोग करीब बीस हजार हैं,  अगर सभी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ खड़े हो गए तो... ’’
‘‘मगर सबको हमारे साथ आना चाहिए,   अगर नहीं आए तो ?’’
‘‘अरे,   आएँगे   क्यों   नहीं ?   हम   सिर्फ   अपनी   रोटी   पर   घी   की   धार   खींचने के  लिए  तो  नहीं  ना  लड़  रहे  हैं ।  हमारी  समस्याएँ  सभी  की  समस्याएँ  हैं ।’’  दूसरी डॉरमेटरी    में    जमा    सैनिकों    के    बीच    चर्चा    हो    रही    थी ।
‘‘और यदि  किसी    ने    साथ    नहीं    दिया    तो    हम    अकेले    ही    लड़ेंगे ।’’    दास    उत्साह से कह रहा था । ‘‘जब तक अंग्रेज़ यह देश छोड़कर नहीं चले जाते, हमारे साथ किये    जा    रहे    बर्ताव    में    कोई    सुधार    होने    वाला    नहीं    है ।’’
‘‘अगर  हमें  सम्मानपूर्वक  जीना  है  तो  स्वराज्य  लाना  ही  होगा ।’’  दत्त  मित्रा को प्रोत्साहित कर रहा था । ‘‘हम इस ध्येय के लिए संघर्ष करने वाले हैं । और इस ध्येय को पूरा करते हुए शायद हमें अपने प्राण खोना पड़े । ध्येय की तुलना में यह मूल्य कुछ भी नहीं । यह बात नहीं है कि हमारे बलिदान से पिछले नब्बे वर्षों से चला आ रहा स्वतन्त्रता संग्राम पूरा हो जाएगा; मगर हमारे बलिदान से प्राप्त स्वतन्त्रता अधिक तेजस्वी होगी, क्योंकि हमारे द्वारा दिये जा रहे अर्घ्य का खून ही ऐसा है । अब समय आ गया है डंड ठोकते हुए खड़े होने का;  न कि पलायन   करने का। तुम हर सैनिक को उस पर हो रहे अन्याय एवं अत्याचार का ज्ञान करा दो । वह अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने को तैयार हो जाएगा ।’’   दत्त के इस वक्तव्य से वहाँ उपस्थित हर व्यक्ति मंत्रमुग्ध हो गया था । हरेक के मन में उस पर हो रहे अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा उफ़न रही थी ।
‘‘तुम्हारा कहना एकदम मंजूर ! हमें  संघर्ष  का आह्वान  देना  होगा ।  मगर संघर्ष  करना - मतलब  वाकई  में क्या  करना  है ?’’  सुमंगल  सिंह  ने  दत्त  से  पूछा ।
‘‘हमारा   संघर्ष   इस   तरह   का   होना   चाहिए   कि   उसे   सबका - अर्थात्      केवल सभी सैनिकों का,   बल्कि देश में स्वतन्त्रता के लिए लड़ रहे हरेक व्यक्ति का समर्थन  प्राप्त  हो ।  जब  सैनिकों  के  कन्धे  से  कन्धा  मिलाकर  नागरिक  खड़े  होंगे तभी अंग्रेज़ इस देश से  निकलेंगे ।’’    खान    ने    संघर्ष    की    दिशा    समझाई ।
‘‘तुम जो कह रहे हो, वह हम समझ रहे हैं, रे,  मगर ऐसा कौनसा काम होगा जो सभी  को  एक  बन्धन  में बाँध  सके,  सबको  संगठित  कर  सके ?’’  सुमंगल ने   पूछा ।
अब इस बात पर चर्चा होने लगी कि कृति किस तरह की होनी चाहिए। पहले पाँचदस मिनट सभी खामोश रहे।  कोई भी सोच नहीं पा रहा था कि करना क्या होगा ।
‘‘क्या    हम    निषेधमोर्चा निकालें ?’’    पाण्डे    ने    पूछा ।
‘‘चलेगा ।    अच्छी    कल्पना    है ।’’    दोतीन    लोगों    ने    सलाह    दी ।
‘‘मोर्चा  निकालेंगे,  गोरे  उस  मोर्चे  को  रोकेंगे,  हमें  गिरफ्तार  करके  सलाख़ों के  पीछे  फेंक  देंगे, हमारा मोर्चा  वहीं  राम  बोल  देगा!’’  गुरु  का  यह  विचार  सबको भा गया और मोर्चे का ख़याल एक तरफ रह    गया ।
‘‘हम इस संघर्ष में नये हैं । सही में क्या करना है, यह सोच नहीं पा रहे हैं । यदि हम इस प्रकार के संघर्ष में रत   अनुभवी   लोगों   की   सलाह   लें   तो ?’’   यादव ने   पूछा ।
‘‘मतलब,    तुम    कहना    क्या    चाहते    हो ?’’    दत्त    ने    पूछा ।
‘‘हम  कांग्रेस  के  नेताओं  से  मिलकर  उनसे  मार्गदर्शन  लें ।’’  यादव  ने  स्पष्ट किया ।
‘‘मेरा ख़याल है कि हम लीग के नेताओं से सलाह लें ।’’ रशीद ने सुझाव दिया ।
‘‘मेरा विचार है कि इन दोनों की अपेक्षा कम्युनिस्ट हमारे संघर्ष को ज़्यादा अच्छा समर्थन देंगे ।’’    दास ने मत प्रकट किया ।
‘‘मेरा  ख़याल  है  कि  पहले  हम  विद्रोह  करें;  फिर जिन राजनीतिक पक्षों को और नेताओं को हमारी मदद करनी होगी वे सामने आ ही जाएँगे ।’’
मदन   ने   बहस   टालने   के   उद्देश्य   से   सुझाव   दिया,   ‘‘विद्रोह   करने   के   बाद हमारा इन नेताओं से मिलना उचित होगा ।’’
‘‘मदन   की   राय   बिलकुल   सही   है ।‘’ दत्त ने समर्थन करते हुए कहा,   ‘‘हमारे बीच विभिन्न पक्षों को मानने वाले सैनिक हैं । यदि हम किसी एक पक्ष के पास सलाह मशविरे  के लिए गए तो अन्य पक्षों को मानने वाले सैनिक नाराज़ हो जाएँगे ।  इन  तीनों  पक्षों  का  ध्येय  भले  ही  एक  हो,  परन्तु  उनके  मार्ग  भिन्नभिन्न हैं;  फिर ये पक्ष एकदूसरे का विरोध भी करते हैं। यदि हम इन पक्षों को अभी से अपने संघर्ष में घसीटेंगे   तो हममें एकता बनी नहीं रह सकती । आज ऐसा नहीं प्रतीत होता कि ये पक्ष एकजुट होकर,    एक दिल से काम    कर रहे हैं । बिलकुल वही हमारे साथ भी होगा । इसलिए अभी तो हम इन सबको दूर ही रखेंगे ।’’ दत्त    ने    पूरी    तरह    से    परिस्थिति    पर    विचार    करके    अपनी    राय    दी ।
 ‘‘दोस्तो!,  नाराज़ मत होना!’’  कुछ  लोगों  के  चेहरों  पर  नाराज़गी देखकर खान समझाने लगा,   ‘‘ऐसा प्रतीत नहीं   होना चाहिए कि हम उनके पास सिर्फ़ सलाहमशविरा  करने  और  मार्गदर्शन  के  लिए  गए  हैं ।  पहले  उनके  दिलों  में  हमारे प्रति विश्वास निर्माण होने दो,   फिर तो वे सभी हमारे होंगे और हम उनके होंगे ।’’
खान पलभर को रुका,  यह देखने के लिए कि उसके बोलने का क्या परिणाम हुआ है । ‘‘दोस्तो!,  हम  राजनेता  तो  नहीं  हैं ।  हमें  कोई  दूसरा,  अलग  राष्ट्र  नही चाहिए,    सत्ता नहीं चाहिए,    सत्ता से जुड़े लाभ भी नहीं चाहिए । हमें चाहिए आज़ादी; हमारे  आत्मसम्मान  की  रक्षा  करने  वाली,  सबके  साथ  समान  बर्ताव  करने  वाली स्वतन्त्रता । हमारा विद्रोह स्वतन्त्रता संग्राम का ही एक हिस्सा है,    स्वतन्त्रता हमारा पहला उद्देश्य है । इस उद्देश्य तक ले जाने वाले हर व्यक्ति का, हर पक्ष का हम स्वागत ही करेंगे ।’’
‘‘यह  बात  सच  है  कि  राजनीतिक  पक्षों  के  मन  में  हमारे  प्रति  विश्वास  नहीं है,  क्यों कि  यदि  वैसा होता तो वे  पहले  ही  हमें  भी  स्वतन्त्रता  आन्दोलन  में  घसीट लेते और यदि वैसा हुआ होता तो स्वतन्त्रता   का सूरज काफ़ी पहले उदित हो चुका होता!’’    मदन ने समर्थन किया ।
विचारविमर्श   में   रात   बीती   जा   रही   थी,   मगर   कुछ   भी   तय   नहीं   हो   पा रहा  था ।  ‘‘क्या  रे,  तेरा  खाने  का  बहिष्कार  अभी  चल  रहा  है  क्या ?’’  पाण्डे  ने गुरु   से   पूछा ।
‘‘बेशक!  जब  तक  अच्छा  खाना  नहीं  मिलेगा  मेरा  बहिष्कार  जारी  रहेगा ।’’ गुरु ने जवाब दिया ।
‘‘तेरे इस आवेश का और निर्णय का परिणाम अच्छा हो गया । कई लोग तेरे   पीछेपीछे   बाहर   निकल   गए   और   कई   लोगों   ने   दोपहर   की   चाय   और   रात का खाना भी नहीं लिया ।’’    पाण्डे गुरु की    सराहना    कर    रहा    था ।
‘‘चुटकी भर नमक...   महात्मा गाँधी का सत्याग्रह...   बार्डोली के गरीब किसान...  सरदार पटेल का नेतृत्व...  दोनों     ही प्रश्न  सबके दिल के करीब...   एकदिल होकर  काम  करने  के  लिए  प्रवृत्त  करने  वाले  प्रश्न...’’  गुरु  सोच  रहा  था,  ‘‘मिलने वाला खाना... बुरा, अपर्याप्त... सबको सम्मिलित करने वाला विषय... दिल को छूने वाला विषय...    खाना ।’’    गुरु    के    चेहरे    पर    समाधान    तैर    गया ।
‘‘क्या रे,  क्या  सोच  रहा  है ?’’  दत्त  ने  गुरु  से  पूछा,  ‘‘मेरा  ख़याल  है  कि हम खाने के प्रश्न पर आवाज़ उठाएँ । हमें संगठित कर सके,   ऐसा यही एक प्रश्न है ।  मुझे  इस  बात  की  पूरी  कल्पना  है  कि  यह  एक गौण प्रश्न  है,  मगर  ये  सबको शामिल करने की सामर्थ्य रखने वाला प्रश्न है । इस प्रश्न को लेकर जब हम संगठित हो  जाएँगे  तो  स्वतन्त्रता,  आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों का प्रश्न,  जेल में डाले गए राष्ट्रीय नेता और अन्य राजनीतिक व्यक्ति,   हमारे साथ किया जा रहा व्यवहार - ये सारे प्रश्न हम सुलझा सकेंगे । सत्याग्रह का मार्ग   ही ऐसा एकमेव मार्ग है कि जिसका हम कहीं भी क्यों न हों,   बिलकुल अकेले ही क्यों न हों, अवलम्बन कर    सकते हैं।’’
गुरु का यह सुझाव सबको पसन्द आ गया । रात के दो बज चुके थे । सुबह सभी को जल्दी उठना था और दिनभर के कोल्हू में जुत जाना था ।‘‘अब चलना चाहिए,  सुबह काफ़ी काम करना है ।’’  खान ने कहा और सभी अपनेअपने बिस्तर की ओर चल दिये ।



दत्त    पूरी    रात    जाग    रहा    था ।
आज की रात नौसेना की आख़िरी रात है। कल रात कहाँ रहूँगा, किसे मालूम! शायद जेल में,   शायद किसी रेलवे स्टेशन पर या ट्रेन में ।   दत्त सोच रहा   था । फिर से एक बार कोरी कॉपी लेकर जाना,   सब कुछ पहले से शुरू करना...अब नौकरी  के  बन्धन  में  नहीं  फँसना ।  नौसेना  की  गुलामगिरी  से  आज़ाद हो  जाऊँ  तो  बस  एक  ही  ध्येय  होगा ।  देश  की  गुलामी  के  ख़िलाफ संघर्ष,  सैनिकों के विद्रोह के लिए कोशिश–– कल का दिन सचमुच ही नौसेना का मेरा आखिरी दिन होगा! यदि कल ही विद्रोह हो जाए तो... यदि सामान्य जनता का समर्थन प्राप्त   हो   जाए   तो...  जहाजों   पर   फड़कता   हुआ   तिरंगा   उसकी   नजरों   के   सामने घूम गया।   सिर्फ   विचार   से   ही   उसे   बड़ी   खुशी   हुई ।   सुबह   की   ठण्डी   हवा चल रही  थी ।  स्वतन्त्र हिन्दुस्तान  का  नौ  सैनिक  बनने  के  सपने  देखते  हुए  कब  उसकी आँख लग गई,    पता ही नहीं चला ।



इतवार के बाद आने वाला सोमवार अक्सर उत्साह से भरा होता था । मगर 18 तारीख  का  वह  सोमवार  अपने  साथ  लाया  था  सैनिकों  के  मन  का  तूफान  और उनके मन की आग । बैरेक में सब कुछ यन्त्रवत् चल रहा था । सुबह की गन्दी, मैली चाय गैली में वैसे ही  पड़ी थी ।
फॉलिन का बिगुल बजा । दत्त को बाहर निकलते देख मदन ने कहा, ‘‘तू क्यों फॉलिन के लिए और सफ़ाई के लिए   आ रहा   है ?   आज   तो   तेरा   नौसेना का आखिरी दिन है ना ?’’
‘‘तुम  सब  काम  करोगे  और  मैं  अकेला  यहाँ  बैठा  रहूँ,  यह  मुझे  अच्छा  नहीं लगता,’’    दत्त    ने    जवाब    दिया ।
‘‘आज तू - सारे अत्याचारों से, बन्धनों से मुक्त हो जाएगा; मगर हम...’’ गुरु की आवाज़ भारी हो गई थी ।
दत्त  के  चेहरे  पर  उदासीनता  स्पष्ट  झलक  रही  थी ।  असल  में  तो  उसे  खुश होना चाहिए था । मगर उसके दिल में कोई बात चुभ रही थी ।
‘‘असल   में   तो   नौसेना   में   रहकर   ही   तुम   सबके   साथ   मुझे   संघर्ष   करना   था । ये संघर्ष  खत्म  होने  के  बाद  अगर  वे  मुझे  नौसेना  से  तो  क्या,  ज़िन्दगी  की  हद से भी बाहर निकाल देते   तो   कोई   बात   नहीं   थी ।   ध्येय   पूरा      हो   सका   यह   वेदना, और...  मैं   काफ़ी   कुछ  कर सकता था यह चुभन लेकर मैं नौसेना छोड़ने वाला हूँ ।’’
दत्त  की  पीड़ा  को  कम  करने  के  लिए  मदन  और  गुरु  के  पास  शब्द    थे । वे दोनों चुपचाप बाहर    चले    गए ।
''Hands to breakfast''  घोषणा हुई ।
‘‘आज क्या होने वाला है ?’’ हरेक के मन में उत्सुकता थी । मेस में भीड़ थी । कल जिन्होंने खाने का बहिष्कार किया था वे भी उपस्थित थे ।  उनके  शान्त चेहरों पर सैनिकों के प्रति आह्वान था ।
‘‘क्या आज का दिन भी बाँझ की तरह गुज़र जाएगा ?’’   गुरु दत्त के कानों में फुसफुसाया ।
‘‘बेकार की शंका मन में न ला; शायद यह तूफ़ान से पहले की खामोशी हो!’’    दत्त का आशावाद बोल रहा था ।
‘‘कल वाली ही चने की दाल आज भी ?   गरम करने से बू छिपती नही है ।’’   सुजान पुटपुटाया ।
‘‘और ब्रेड  के टुकड़े  कीड़ों से भरे हुए!’’  सुमंगल ने जवाब दिया । कई लोग नाश्ते से भरी प्लेट्स लिये चुपचाप बैठे  थे ।  नाश्ता  करने  को  मन  ही  नही हो रहा था ।
‘‘मेस  के  सैनिकों  की  ओर  देख  हृदय  के  भीतर  का  ज्वालामुखी  आँखों  में उतर आया  प्रतीत  हो  रहा है ।’’  दत्त  ने  गुरु  से  कहा ।  मदन  मेस  में  आया ।  उसने एक सैनिक के हाथ की नाश्ते से भरी प्लेट ले ली । उसके चेहरे पर चिढ़ स्पष्ट नज़र आ  रही थी ।  उस प्लेट की ओर देखते हुए वह चिल्लाया,  ''Silence please!''  एक पल में गड़बड़ खत्म हो गई । सबके कान खड़े हो गए ।
दत्त  ने  हँसते  हुए  मदन  की  ओर  देखा  और  हाथ  के  अँगूठे  से  इशारा  किया, ''Well done, buck up!''
‘’कल नाश्ते के समय इतना हंगामा हुआ, ऑफिसर ऑफ दि डे के साथ इतनी बहस हुई; फिर भी आज फिर   हमेशा की तरह,   कुत्ता भी जिसे मुँह न लगाए वैसा खाना... । आज तक हमने अनेक शिकायतें कीं,   मगर किसी ने   भी   उन   पर गौर   नहीं   किया ।   जब   तक   अंग्रेज़ी   हुकूमत   है,   तब   तक   यह   ऐसा   ही   चलता   रहेगा । कदमकदम पर होने वाला अपमान,  हमें दिया जा रहा गन्दा खाना,   कम तनख्वाह...ये सब    बदलने के लिए अंग्रेज़ हटाओ,   अंग्रेज़ी हुकूमत हटाओ,    इसलिए आज से ''No food, No work!''
मेस  में  एकदम  शोरगुल  होने  लगा ।  सैनिकों  ने  जोश  में  जवाब  दिया,   ''No food, No work!''
दत्त को विश्वास ही नहीं हो रहा था । किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि परिस्थिति  इतनी  तेज़ी से बदल जाएगी। खुशी  के  मारे  दत्त  ने  मदन  को  गले  लगा लिया और गद्गद स्वर में बोला, ''We have done it, man; we have done it.'' उसकी आँखें भर आई थीं ।
‘‘दिसम्बर  से  हम  जिस  पल  की  राह  देख  रहे  थे  वह  पल  अब  साकार  हो चुका  है ।  नौसेना  में  विद्रोह  हो  गया  है ।’’  खान  गुरु  को  गले  लगाते  हुए  बोला । वे सभी बेसुध हो रहे थे ।
‘‘आख़िर  वे  सब  हमारे  साथ    ही  गए ‘’,  दास  समाधानपूर्वक  चिल्लाते  हुए कह रहा था ।
‘‘वन्दे...’’   कोई   चिल्लाया । शायद दास ।
एक  कोने  से  क्षीण  सा  प्रत्युत्तर  प्राप्त  हुआ,  ‘‘मातरम्’’  दास  को  इस  बात की उम्मीद नहीं थी ।   दनदनाते   हुए   वह   डाइनिंग   टेबल   पर   चढ़   गया   और   ज़ोरज़ोर से  कहने  लगा,  ‘‘अरे,  डरते  क्यों  हो ?  और  किससे ?  हम  अगर  सूपभर  हैं  तो  वे गोरे  हैं  बस मुट्ठीभर । जो *** होंगे वे ही डरेंगे!’’ दास    ने    दुबारा    नारा    लगाया,
‘‘वन्दे...’’
मानो  एक  प्रचंड  गड़गड़ाहट  हुई ।  इस  नारे  को  पूरी  मेस  का  जवाब  मिला और फिर तो नारों की दनदनाहट ही शुरू हो गई ।
‘‘जय   हिन्द!’’
 ‘‘महात्मा    गाँधी    की    जय!’’
‘‘चले    जाओ,    चले    जाओ!    अंग्रेज़ों,    देश    छोड़    के    जाओ!’’
मेस   के   पास   पहुँच   चुके   ऑफिसर   ऑफ   दि   डे   ने   ये   नारे   सुने   और   वह उल्टे    पैर    वापस    भाग    गया ।    नारे    और    अधिक    जोर    पकड़ने    लगे ।
‘‘आज  एक  अघोषित  युद्ध  प्रारम्भ  हो  गया  है ।’’  गुरु  कह  रहा  था ।  सारे आज़ाद हिन्दुस्तानी इकट्ठे हो गए थे । सपनों में खोए हुए,   वे वापस वास्तविकता में आ गए ।
‘‘यह    शुरुआत    है ।    अन्तिम    लक्ष्य    अभी    दूर    है ।’’    खान    ने    कहा ।
‘‘जान की बाजी लगा देंगे, जीजान से लड़ेंगे । मंज़िल अभी बहुत दूर है, मगर    हम    उसे    पाकर    ही    चैन    लेंगे ।’’    दत्त    ने    निश्चय    भरे    सुर    में    कहा ।
चिनगारी  उत्पन्न  हो  गई  थी ।  वड़वानल  अब  सुलग  उठा  था ।  तभी  सैनिकों के मन की प्रलयंकारी हवा   उसके साथ हो गई । सागर का शोषण करके अब वह आकाश की ओर लपकेगा इसका सबको यकीन था ।
आठ   के   घंटे   सुनाई   दिये... उसके पीछे 'stand still' का बिगुल । मेन मास्ट पर यूनियन जैक वाला  नेवल    एनसाइन राजसी ठाठ से चढ़ाया जा रहा था ।
''Hey, you bloody Indian, it is colours, stand still there.'' एक गोरा सुमंगल पर चिल्लाया ।
''Hey you white pig, that is bloody your flag. I don't care for it.'' सुमंगल सिंह चीखा,  और सीटी बजाते हुए चलता ही रहा ।
बैरेक   में   रोज़ाना   की   तरह   दौड़धूप   नहीं   हो   रही   थी ।   हर   कोई   एकदूसरे से   कह रहा   था,  ''No food, No work, No fall in, No duty.   जो होगा सो देखा जाएगा ।’’
परिणामों    का    सामना    करने    के    लिए    हर    कोई    तैयार    था ।



सुबह के आठ बजकर पच्चीस मिनट हो गए और आदत का गुलाम गोरा चीफ़ गनरी इन्स्ट्रक्टर रोब से चलते हुए परेड ग्राउण्ड में आकर खड़ा हो गया । उसने दायेंबायें नज़र डाली और सकपका गया । सफ़ेद यूनिफॉर्म वाले सैनिकों से ठसाठस भरा रहने वाला परेड ग्राउण्ड आज खाली पड़ा था । चीफ़ के मन में सन्देह कुलबुलाने लगा । पास ही खड़े ब्युगलर को उसने आदेश दिया, ''Bugler, sound alert.''
Stand still  की आवाज़ कानों पर पड़ते ही परेड ग्राउण्ड पर जमा हुए सैनिक अटेन्शन में आ गए ।

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