गुरुवार, 15 मार्च 2018

Vadvanal - 15




खान   के   आदेश से 'Clear lower deck' का बिगुल बजाया गया और सैनिक परेड ग्राउण्ड की ओर भागे ।
खान ने वहाँ एकत्रित सभी सैनिकों को इस बात की जानकारी दी कि  रॉटरे के बेस में आने के बाद क्याक्या हुआ ।
‘‘दोस्तो! यह लड़ाई मुझे और किंग के विरुद्ध जिसजिसने शिकायत की  थी उन्हें तो लड़ना ही है; परन्तु  चूँकि  यह  लड़ाई  हम  सब  की  है,  इसलिए  मुझे   इस बात का जवाब चाहिए कि क्या इस लड़ाई को हम आख़िर तक   लड़ें या इसे यहीं रोक दें ?’’    खान के शब्दों  में अस्वस्थता थी ।
''Unto the last''  एक सुर में जवाब आया ।
‘‘यह निर्णय लेने से पहले इस बात को ध्यान में रखो कि संघर्ष बड़ा जटिल है;  शायद हमें अपना सर्वस्व गँवाना पड़े,   और हाथ में कुछ भी न आए । क्या आप लोग तैयार हैं ?’’    खान ने पूछा ।
“हम अपनी जान की बाज़ी लगाने को तैयार हैं,” एक सुर में जवाब आया।
‘‘तुम्हारी इस जिद के लिए बधाई! मगर दोस्तो, यह  याद रखना कि सपनों को अगर हकीकत में बदलना है तो हमें अनुशासित होना होगा । रॉटरे यहाँ से तनतनाता हुआ गया है । उसके विरोध में लगाए गए नारों की चुनौती को उसने स्वीकार किया है । उसने कल सुबह साढ़े नौ बजे तक की मोहलत दी है । इस दरम्यान वह हमें  नेस्तनाबूद  करने  की  कोशिश  कर  सकता  है ।  सूर्यास्त के बाद या तो आर्मी का  पहरा लगाएगा या फिर तलवार   में आर्मी घुसाकर हमें कैद कर सकता है । एक बार अगर हम गिरफ़्तार हो गए तो  सब कुछ समाप्त हो जाएगा, सिर्फ चौबीस घण्टों में ख़त्म हो जाएगा । क्या हुआ था, कैसे हुआ था, इसका किसी को भी पता लगे बगैर यह संघर्ष समाप्त हो जाएगा और हम भी ख़त्म हो जाएँगे । यदि इसे टालना है तो हमें सावधान रहना होगा, अनुशासित रहना होगा,   अनुशासनहीनता   हमारे   लिए   अंग्रेज़ों   जितनी   ही   घातक शत्रु है।‘’
खान के एकएक शब्द में समाई तिलमिलाहट सैनिकों  के दिलों तक पहुँची और दसबारह सैनिकों  ने  चिल्लाकर कहा,  ‘‘हम  तैयार  हैं ।  ये  बताओ  कि  करना क्या  है!’’
और तलवारपर अनुशासित कार्यक्रम की शुरुआत हो गई । ड्यूटी वाच फॉलिन हुए। क्वार्टर मास्टर्स लॉबी,   मेन गेट और अन्य जगहों पर पहरे बिठाए गए । पहरेदारों को सूचनाएँ दी गर्इं; ‘‘यदि   गोरे   सैनिक   और   अधिकारी बाहर जाएँ तो  उन्हें  जाने  दिया  जाए;  मगर  रात  में  किसी  को  भी  तलवार  में  प्रवेश    करने  दिया जाए । साथ  ही  तलवार  की  महिला  सैनिकों  को  रोका    जाए,  उनके  साथ असभ्य व्यवहार न किया जाए ।’’



तलवार    से निकलते ही रॉटरे ने तलवार    की बागडोर कैप्टेन जोन्स  को थमा दी ।
‘‘जोन्स,   तलवार   की ज़िम्मेदारी अब तुम पर है । एक बात ध्यान में रखो, एक  भी  गोरे  सैनिक  अथवा  अधिकारी  का  बाल  भी  बाँका  नहीं  होना  चाहिए ।’’ रॉटरे ने जोन्स को ताकीद दी ।
जोन्स  दो  सशस्त्र  गोरे  सैनिकों  के  साथ  तलवार  में  आया,  उस  समय  परेड ग्राउण्ड पर सैनिक इकट्ठा हुए थे और पहरेदार नियुक्त किये जा रहे थे । जोन्स के  ध्यान  में  यह  बात  आए  बिना  नहीं  रह  सकी  कि  सुबह  की  अनुशासनहीनता समाप्त   हो   गई   है ।   वह   जानता   था   कि   अनुशासित   सैनिकों   पर   विजय   प्राप्त   करना कठिन  होता  है ।  जोन्स  वहाँ  से  निकलकर  सीधे  ऑफिसर्स  मेस  में  आया ।  सुबह से  जबर्दस्त  तनाव  से  ग्रस्त  गोरे  अधिकारियों  ने  जोन्स  को  देखा  और  राहत  की साँस    ली ।
‘‘हमारी जान को यहाँ खतरा है । हम नि:शस्त्र हैं । हमें तलवार   छोड़ने की इजाज़त दीजिए या फिर पर्याप्त शस्त्र दीजिए ।’’    स.  लेफ्टि.  कोलिन्स ने कहा ।
‘‘मैं यहाँ तलवारके कमाण्डिंग ऑफिसर की हैसियत से आया हूँ । मुझ पर समूचे तलवार   की सुरक्षा की  ज़िम्मेदारी है । तुम्हारी सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था मैं करूँगा,   इसका यकीन रखो ।’’   जोन्स ने गोरे अधिकारियों को आश्वस्त किया ।
‘‘सर,  मैं  कैप्टेन जोन्स,  तलवार  से’’ जोन्स ने अन्तिम  निर्णय  लेने  से पूर्व रॉटरे से सम्पर्क स्थापित किया ।
‘‘बोलो,   परिस्थिति   कैसी   है ?’’   रॉटरे   ने   उत्सुकता   से   पूछा ।   ‘‘मैंने   अभीअभी तलवार   का   राउण्ड   लगाया ।   हालाँकि   सैनिक   शान्त   दिखाई   दे   रहे   हैं   फिर   भी उनके  मन  में  लावा  खदखदा रहा  है ।  सुबह  की  अनुशासनहीनता  तो  इस  समय नज़र नहीं आ रही है । बल्कि वे अनुशासित हो गए हैं। क्वार्टर मास्टर्स लॉबी में,  मेन गेट पर पहरेदार तो नियुक्त किये ही हैं, और बेस में भी गश्त चल रही है । अभी तक तो वे गोरे सैनिक या अधिकारी की ओर मुड़े नहीं हैं । मगर यह भी  नहीं  कह  सकते  कि  वे  हमला  करेंगे  ही  नहीं।  हमें  सावधानी  बरतनी  पड़ेगी ।’’
जोन्स    ने    तलवार    की    परिस्थिति    का    वर्णन    किया ।
‘‘अब  इस  समय  भूदल  सैनिकों का पहरा लगाकर अथवा उनके हाथों में  तलवार  सौंपकर  सैनिकों  को  गिरफ्तार  करना  सम्भव  है ।  मगर  यह  भी  मत  भूलो कि   बेस   में   गोरे   अधिकारी   और   सैनिक   भी   हैं । पहले उन्हें बाहर निकालना होगा ।’’ रॉटरे ने सुझाव दिया ।
जोन्स ने गोरे सैनिकों को, अधिकारियों को और महिला सैनिकों को एक घण्टे में तलवार    छोड़ने का आदेश दिया ।
‘‘बाहर   निकलते   समय   यदि   रुकावटें   आएँ   तो   प्रतिकार   करना!   जो   भी   पास में  हों  उन हथियारों  का  इस्तेमाल  करना!  याद  रखना,  हिन्दुस्तानी  सैनिकों के खून की  नदियाँ  भी  बहें  तो  कोई  बात  नहीं,  मगर  एक  भी  गोरे  के  ख़ून की  एक  भी बूँद नहीं गिरनी चाहिए!’’    उसने    आदेश    के    साथ    यह    पुश्ती    भी    जोड़ी ।
रात के नौ बजे बेस में एक भी गोरा सैनिक और अधिकारी नहीं बचा था । जाते समय वे महिला सैनिकों को भी ले गए ।
रात के नौ बज चुके थे ।  बेस  के  मास्ट  पर  इंग्लेंड़  का  नौदल  ध्वज  गर्दन नीचे   झुकाए   दीनतापूर्वक   लटक रहा था । सबकी नज़रों में वह कपड़े का एक टुकड़ा  भर  था । पहरे पर तैनात एक  सैनिक  का  ध्यान  उस  ध्वज  की  ओर  गया और उसने तलवार    से अंग्रेज़ी साम्राज्य का एक और निशान दूर    किया ।
रेडियो पर रात का समाचार बुलेटिन आरम्भ हुआ । उद्घोषक समाचार दे रहा था ।
‘‘मुम्बई के H.M.I.S ‘तलवार नौसेना तल पर हिन्दुस्तानी नौसैनिक उन्हें दिए जा रहे अपर्याप्त एवं निकृष्ट प्रति के   भोजन   को   लेकर   आज   सुबह   से   हड़ताल पर   गए   हैं... ’’
''Bastards!'' दास ने गुस्से से कहा । ‘‘हम रोटी के दो ज़्यादा टुकड़ों के लिए,   और उस पर मक्खन माँगने के लिए   नहीं खड़े हैं । हमारा उद्देश्य इससे कहीं बड़ा है । हमारा यह विरोध हड़ताल नहीं,  अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ विद्रोह है!’’  बेचैन दास हाथपैर पटकते हुए चीख रहा था ।
''Take it easy दास। अरे,  गोरों की यह पहली चाल है। अभी तो और भी बहुत कुछ होने वाला है ।’’   दत्त ने शान्तिपूर्वक समझाया ।
तलवार  में  घटित  घटनाओं  पर  रिपोर्ट  लिखने  में  दंग  रॉटरे  ने  रेडियो  द्वारा प्रसारित  समाचार  सुना  और  वह  मन  ही  मन  खुश  हुआ ।  उसकी  उम्मीद  से  भी कहीं जल्दी  यह  ख़बर  प्रसारित  हुई  थी ।  उसे  मन  ही  मन  यह  लग  रहा  था  कि सैनिकों की हड़ताल का विकृत चित्र ही प्रस्तुत किया जाए; दिल्ली ने ठीक यही किया था ।
 ‘‘मेरी  और  दिल्ली  की  सोचने  की  दिशा  एक  ही  है ।’’  प्रसन्नता  से  सीटी बजाते हुए उसने सिगार जलाई,   शीघ्रता से गॉडफ्रे से सम्पर्क किया और तलवारके हालात, उसके द्वारा किये गए समझौते के प्रयास, किंग के स्थान पर की गई नियुक्ति आदि सभी छोटीबड़ी घटनाओं की जानकारी दी ।
‘‘ठीक   है,   मगर   परिस्थिति   चाहे   कितनी   ही   कठिन   क्यों      हो   परले   सिरे की  भूमिका  लेकर  कार्रवाई  मत  करना ।  भूदल  के  अधिकारियों  को  सतर्क  करो ।’’ गॉडफ्रे    ने    रॉटरे    को    सूचनाएँ    दीं ।



मुम्बई  के  विद्रोह  की  खबर  जनरल  हेडक्वार्टर  में  हवा  की  तरह  फैल  गई । सभी अस्वस्थ हो गए । चार ही दिन पहले हवाई दल के सैनिकों के विद्रोह की  ख़बर... दिल्ली  का  वह  विद्रोह  अभी  थमा  भी  नहीं  था  कि  मुम्बई  में  विद्रोह...सैनिकों  में व्याप्त असन्तोष से सम्बन्धित पिछले डेढ़ महीनों से लगातार आ रही रिपोर्ट्स...और आज के समाचार ने तो इस सबको मात दे दी थी ।
तलवार   के विद्रोह की सूचना गॉडफ्रे ने ज़रा भी समय न गँवाते हुए कमाण्डर इन चीफ सर एचिनलेक को दे दी और एचिनलेक ने दिल्ली के सभी वरिष्ठ सैनिक एवं प्रशासकीय अधिकारियों की इमर्जेन्सी मीटिंग बुला ली ।
‘‘मीटिंग शुरू हुई तो नौ बज चुके थे । मीटिंग की वजह सभी को मालूम थी । एचिनलेक ने औपचारिक रूप से मीटिंग आयोजित करने का कारण बताया और गॉडफ्रे ने मुम्बई की घटनाओं की जानकारी दी ।
‘‘अब तक तलवार   में जो कुछ भी हुआ है वह वाकई में चिन्ताजनक है। हमें कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए । यह सब समय रहते ही रोका    गया तो एक बार फिर 1857  का  सामना  करना  पड़ेगा ।’’  एक  भूदल  अधिकारी  स्थिति की गम्भीरता स्पष्ट कर रहा था ।
‘‘दोस्तो, परिस्थिति को मात देने के लिए हम क्या कर सकते हैं और जो कुछ भी सुझाव हम पारित करेंगे उन पर किस तरह अमल किया जाए यही तय करने  के  लिए  हम  यहाँ  एकत्रित  हुए  हैं।  कार्रवाई  की  दिशा  निश्चित  करते  समय इस बात का ध्यान रखना होगा कि परिस्थिति बिगड़े नहीं और सत्ता पर हमारी पकड़   ढीली न हो पाये । इसलिए आपको आज यहाँ बुलाया गया है ।’’   गॉडफ्रे ने चर्चा की दिशा स्पष्ट की ।
 ‘‘एडमिरल गॉडफ्रे,  क्या यह विद्रोह पूर्व नियोजित है ?  क्या  इस  विद्रोह  को राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं का समर्थन प्राप्त है ?’’    जनरल बीअर्ड ने पूछा ।
‘‘ऐसी आशंका है कि यह विद्रोह पूर्व नियोजित है । राजनीतिक नेताओं द्वारा मध्यस्थता की जाए,   यह माँग नेताओं के समर्थन की ओर इशारा करती है ।’’    गॉडफ्रे ने जवाब दिया ।
‘‘इस हालत में हमें राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं को विद्रोह से दूर रखना चाहिए ।’’    मुम्बई के गवर्नर के सेक्रेटरी ब्रिस्टो ने कहा ।
‘‘साथ  ही  सामान्य  जनता  को  भी  विद्रोह  से  दूर  रखना  चाहिए ।’’  बीअर्ड ने सुझाव   दिया ।
‘‘ऐसा करना चाहिए यह तो एकदम स्वीकार है; मगर ये किया कैसे जाए ?’’ एडमिरल कोलिन्स ने पूछा ।
‘‘यदि  यह  कहा  जाए  कि  इस  विद्रोह  को  समर्थन  देने  से  स्वतन्त्रता  के  बारे में जो वार्ताएँ हो रही हैं उनमें विघ्न पड़ सकता है और स्वतन्त्रता स्थगित हो जाएगी  तो  कांग्रेस  और  कांग्रेसी  नेता  इस  विद्रोह  से  दूर  रहेंगे ऐसा मेरा ख़याल है ।’’    गॉडफ्रे ने उपाय सुझाया ।
‘‘हमने  आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों के सम्बन्ध में जो गलती की थी वह इस बार न करें ऐसा मेरा विचार है ।’’ जनरल स्टीवर्ट ने कहा ।
‘‘मतलब ?’’    गॉडफ्रे सहित सभी के चेहरों पर प्रश्नचिह्न था ।
‘‘जब सामान्य जनता आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों का स्वागत कर रही थी  तब  हमें  इन  सैनिकों  के  विरुद्ध ज़ोरदार प्रचार करना चाहिए था । अपनी जान बचाने के लिए ये सैनिक आज़ाद हिन्द सेना में शामिल हो गए हैं,   वे स्वार्थी हैं,  गद्दार हैं । इस बात को हमने उछाला ही नहीं । हिन्दुस्तानी युद्ध कैदियों पर जर्मनी और जापान द्वारा किये गए अत्याचारों का वर्णन हमने जनता तक पहुँचाया ही नहीं । इसका परिणाम यह हुआ कि ये सैनिक महान   हो गए । उन्हें जनता की सहानुभूति प्राप्त हो गई और जनमत के दबाव के कारण कांग्रेस को उनका पक्ष   लेना   पड़ा ।   हम   इस   विद्रोह   के   सम्बन्ध   में   यह   ग़लती      करें ।   यह   विद्रोह स्वार्थप्रेरित है; देशप्रेम, स्वतन्त्रता आदि की आड़ में ये सैनिक वेतनवृद्धि, अच्छा खाना आदि माँगों के लिए ही अनुशासनहीन बर्ताव   कर रहे हैं,   ये बात लोगों के मन तक पहुँचानी चाहिए ।’’   स्टीवर्ट ने सुझाव दिया ।
‘‘जनरल स्टीवर्ट का कहना बिलकुल सही है ।इसी के साथ मैं एक और सुझाव दूँगा: कांग्रेस और विशेषत: महात्माजी हिंसक मार्ग का विरोध करते हैं। इन आन्दोलनकारी सैनिकों ने हिंसक मार्ग का अनुसरण किया है यदि ऐसा प्रचार हमने किया तो कांग्रेस इस विद्रोह से दूर रहेगी । सैनिक यदि आज अहिंसक मार्ग पर चल भी रहे हैं,  तो भी अन्तत: वे सैनिक हैं। उन्हें हिंसक मार्ग पर घसीटना मुश्किल नहीं है । हम उन्हें हिंसा करने के लिए उकसाएँगे। "Let us call the dog mad and kill it.'' ब्रिस्टो का यह सुझाव सबको पसन्द आ गया ।
‘‘मुझे ब्रिस्टो का सुझाव मंजूर है । सैनिकों को हिंसा के लिए प्रवृत्त करना कठिन नहीं है । उन्हें दी जा रही खाने और पानी की रसद बन्द करो । वे हिंसा पर उतर आएँगे!’’ कोलिन्स ने प्रस्ताव रखा ।
‘‘क्या राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं को इस विद्रोह में दिलचस्पी है ?    मेरे विचार में तो नहीं है, क्योंकि ये नेता अब थक चुके हैं । अगर ऐसा न होता तो वे सन् ’42 के बाद और एकाध आन्दोलन छेड़ देते। दूसरी बात यह है कि स्वतन्त्रता का श्रेय वे लेना चाहते हैं और इसीलिए वे विभाजन स्वीकारने की मन:स्थिति में हैं । इस विद्रोह के कारण यदि आज़ादी मिलती है तो श्रेय कांग्रेस को नहीं मिलेगा,  और  इसीलिए  वे  इस  विद्रोह  को  समर्थन  नहीं  देंगे । मेरा ख़याल है कि हमारा यह भय निराधार  है ।’’  जनरल  सैंडहर्स्ट  के  विचार  से  कोई  भी  सहमत  नहीं हुआ ।
‘‘यदि  ऐसा  हुआ  तो,  समझिए  सोने  पे  सुहागा!’’  गॉडफ्रे  ने  कहा,  ‘‘मगर let us hope for the best and prepare for the worst. इन सैनिकों द्वारा राष्ट्रीय  नेताओं  की  मध्यस्थता  की  माँग,  नेता  कौन  होगा  यह  हम  निश्चित  करेंगे, ऐसा कहना - यही प्रदर्शित करता है कि सैनिक राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं की सलाह  पर  चल  रहे  हैं । मेरा अनुमान है कि कांग्रेस के नेताओं में से नेहरू और पटेल इन पर नज़र रखे हुए  हैं क्योंकि  कांग्रेस  के  ये  दोनों  नेता  प्रभावशाली  तो हैं ही,   मगर   किसी   घटना   का   उपयोग   अपने   अभीष्ट   की प्राप्ति के लिए किस तरह किया जाए,    इस कला में भी वे निपुण हैं; और पटेल आजकल मुम्बई में हैं ।’’
‘‘हमें  कम्युनिस्टों  और  कांग्रेस  के  अन्तर्गत  समाजवादी  गुट  को  कम  नही समझना   चाहिए ।’’   जनरल   स्टीवर्ट   कह   रहा   था,   ‘‘1942   के   आन्दोलन   में   सहभागी न होने की ग़लती कम्युनिस्टों ने की । इस गलती को सुधारने के उद्देश्य से कम्युनिस्ट इस विद्रोह का साथ देंगे । समाजवादी गुट क्रान्तिकारी गुट है ।    विद्रोह,    बम-विस्फोट इत्यादि   हिंसक मार्गों में उन्हें कुछ भी अनुचित नज़र नहीं आता । यह गुट न केवल उनका मार्गदर्शन करेगा, बल्कि हो सकता है, उनका नेतृत्व भी स्वीकार कर ले । हमें इस गुट पर भी नज़र रखनी    चाहिए ।’’
 ‘‘सभा  में  प्रस्तुत  विभिन्न  सुझावों  को  सर  एचिनलेक  ने  नोट  करवा  दिया और विद्रोह को कुचलने के  लिए व्यूह रचना तैयार की ।
‘‘प्रभावशाली प्रचार यन्त्रणा खड़ी करके सैनिकों के विद्रोह को  बदनाम करना; सैनिकों  का  राशनपानी  बन्द  करके  उन्हें  हिंसा  के  लिए  उकसाना;  महत्त्वपूर्ण  बात यह  कि सैनिकों को मदद करने वाले अथवा उनसे सम्पर्क साधने का प्रयत्न करने वाले  सम्भावित  नेताओं  की  गतिविधियों  पर  नजर  रखना;  उनसे  सम्पर्क  बनाकर अतिरंजित  समाचार  प्रसारित  करना; जरूरत  पड़े तो शस्त्रों  की  सहायता  से  इस विद्रोह  को  कुचलना ।’’  एचिनलेक  ने  अपनी  योजना  सबके  सम्मुख  रखी और  इस व्यूह रचना को सभी ने मान लिया ।   सेना   के   वरिष्ठ   अधिकारी   विद्रोह   को   कुचलने के निर्धार से ही वहाँ से  उठे ।



‘‘रॉटरे  जैसे  वरिष्ठ  अधिकारी  को  गर्दन  नीची  करके  जाना  पड़ा  यह  हमारी  विजय है,  नहीं  तो  आज तक फ्लैग  ऑफिसर  बॉम्बे,  रिअर  एडमिरल  रॉटरे  की  कितनी दहशत थी । इन्स्पेक्शन के लिए रॉटरे बेस में आने वाला है यह सुनते ही हमारे हाथपैर   ढीले   पड़   जाते   और   हम   आठआठ   दिन   पहले   से   तैयारी   में   लग   जाते थे, मगर आज वही रॉटरे आवारा कुत्ते जैसा पैरों में पूँछ दबाए भाग गया । यह हमारी जीत ही है ।’’  पाण्डे सीना    ताने    सबसे    कहता    फिर    रहा    था ।
तलवार   का वातावरण ही बदल गया था । हर कोई विजेता की मस्ती में ही घूम रहा था । सैनिकों की मनोदशा   में यह परिवर्तन देखकर दत्त,   खान, गुरु,   मदन सभी कुछ चिन्तित हो गए,   क्योंकि उन्हें इस बात की पूरी कल्पना थी कि असली लड़ाई तो आगे है, यह तो सिर्फ    सलामी    है ।
‘‘खान,   मेरा   ख़याल   है   कि   सभी   सैनिकों   को   असलियत   के   बारे   में   जानकारी दी  जाए,  वरना  बिछी  हुई  बिसात  बीच  ही  में  उलट  जाएगी ।  अपने  हाथ  कुछ  नही लगेगा ।’’    मदन    ने    अपनी    चिन्ता    व्यक्त    की ।
‘‘मेरा   विचार   है   कि   हम   सबको   इकट्ठा   करके   उनसे   बात   करें   और   यह काम  दत्त  ही  अच्छी  तरह  कर  सकेगा ।  हमारे  इस  विद्रोह  की  प्रेरणा  और  शक्ति वही है ।’’    गुरु की इस सूचना को    सबने मान लिया । तलवार    पर फिर एक बार  'Clear lower decks'  बिगुल  का  स्वर  सुनाई  दिया  और  सारे  सैनिक परेड ग्राउण्ड पर इककट्ठे हो गए । ''Silence please and pay attention to me. Friends, Please listen to me.'' दत्त  ने  प्रार्थना  की  और  पलभर  में  सब  शान्त हो गए ।
‘‘दोस्तो! अन्याय के विरुद्ध विद्रोह करके, स्वतन्त्रता की सामूहिक माँग करने के लिए आपने जिस एकजुटता का परिचय दिया,    उसके लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन! जातीयवाद को सींचकर फूट पैदा करने के अंग्रेज़ी सिद्धान्त के शिकंजे में देश के मान्यवर नेता फँसते जा रहे हैं,   ऐसे वक्त में आप सामान्य जनता के  सामने  हिन्दूमुस्लिम  एकता  का  जो  उदाहरण  पेश  करने  जा  रहे  हैं  उसके  लिए आपकी जितनी तारीफ़ की जाए,  कम है ।
‘‘रॉटरे क्रोधित होकर बेस से बाहर गया और घण्टे भर में उसने गोरे सैनिकों, अधिकारियों और महिला सैनिकों को   बेस से बाहर निकाल लिया । हम सबके विरोध की परवाह न करते हुए उसने कैप्टेन जोन्स को तलवार  का  कमांडिंग ऑफिसर  नियुक्त  किया  है ।  ध्यान  दीजिए,  वह  कहीं  भी  पीछे  नहीं  हटा  है,  बल्कि अधिकाधिक  आक्रामक  होने  की  कोशिश  कर  रहा  है ।  मेरा  ख़याल  है  कि  आज ही रात को वह  कोई न कोई कार्रवाई करेगा । रॉटरे साँप है । डंक धरने की उसकी आदत है । उसका काटा पानी नहीं माँग सकेगा,  यह मत भूलो!’’
‘‘आज,  इस  पल  नौसेना  के  कितने  सैनिक  हमारे  साथ  हैं  इसका  अन्दाज़ नहीं ।  आज  सबेरे  ही  हमारे  द्वारा  किए  गए  विद्रोह  की  पूरी  जानकारी  नौदल  के सभी  बेसेस    को और जहाजों को भेजी है ।    यदि अंग्रेज़ हमारे सूचना प्रसार साधनों में दखलअंदाज़ी न करें तो कल सुबह तक हमें यह पता चल जाएगा कि नौदल के  कौनकौन से  बेस    और जहाज़ हमें समर्थन दे रहे हैं ।’’
‘‘हम  अन्तिम  पल  तक  लड़ते  रहेंगे ।  जो  साथ  में  आएँगे  उन्हें  लेकर,  वरना अकेले ही लड़ेंगे ।’’   कोई चिल्लाया और नारे शुरू हो गए :
‘‘हिन्दूमुस्लिम   एक   हैं ।’’
‘‘वन्दे    मातरम्!’’
‘‘इन्कलाब    जिन्दाबाद!’’
‘‘दोस्तो!  मैं  तुम्हारे  जोश  को  समझता  हूँ ।’’  सैनिकों  को  शान्त  करते  हुए दत्त  ने  आगे  कहा,  ‘‘यह  समय  नारेबाजी  का  नहीं,  बल्कि  कुछ  कर  दिखाने  का है । हमें कुछ महत्त्वपूर्ण बातों के बारे में विचार करना है, निर्णय लेना है । रॉटरे ने हमें सुबह साढ़े नौ बजे तक की मोहलत दी है । हमारे प्रतिनिधि को उसने बातचीत  के लिए बुलाया है ।’’
 ‘‘हमारी ओर से बातचीत करने के लिए कोई राष्ट्रीय नेता जाने वाला है ।’’ दोतीन लोग चिल्लाए ।
‘‘बिलकुल ठीक । मगर उस नेता को हमें यह तो बताना होगा ना कि हमारी माँगें  क्या  हैं ।  वरना  वह  किस  विषय  पर  बात  करेगा ?  और  ये  माँगें  क्या  होंगी यह हमें निश्चित करना है ।’’     दत्त के इस कथन पर  सैनिकों ने अपनी माँगें गिनवाना शुरू कर दिया ।
‘‘सम्पूर्ण    स्वतन्त्रता ।’’
‘‘अंग्रेज़    देश    छोड़कर    चले    जाएँ ।’’
‘‘तुम्हारी  हर  माँग  महत्त्वपूर्ण  है ।  मगर  हमारा  माँगपत्र  ऐसा  होना  चाहिए कि  उसमें  हरेक  की  माँगों  का  समावेश  हो ।’’  दत्त  ने  समझाने  की  कोशिश  की ।
‘‘हमारा यह संघर्ष स्वतन्त्रता के लिए है और यह माँग स्पष्ट रूप से बतानी होगी ।’’    क्रान्तिकारी विचारों के कुछ    सैनिकों ने माँग की ।
‘‘स्वतन्त्रता की माँग यदि हमारे माँगपत्र में परावर्तित हो गई तो भी चलेगा।’’ दूसरे गुट ने कहा ।
‘‘दोस्तो!  हमारा  संघर्ष  स्वतन्त्रता  के  लिए  ही  है ।  यह  हमारी  प्रमुख  माँग है ।  अब  सवाल  यह  है कि  इसे  प्रस्तुत  कैसे  किया  जाए ?  यदि  हम  सब  लोग  चर्चा ही  करते  रहेंगे  तो  हासिल  कुछ  भी  नहीं  होगा ।  हमें  एक  यही  निर्णय  नहीं  लेना है,  कुछ और महत्त्वपूर्ण निर्णय भी लेने हैं । उदाहरण के लिए, बातचीत करने के लिए राष्ट्रीय नेता कौनसा होगा,   किस राष्ट्रीय नेता से सम्पर्क स्थापित किया जाए,   और   इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण   बात - बेस   में अनुशासन बनाये रखने के  लिए  एक  समिति  बनाई  जाए ।’’  दत्त  ने  सुझाव  दिया  और  सभी  ने  इसे  मान लिया ।
‘‘हमारा नेता – दत्त;  हमारा नेता - दत्त!’’    कुछ लोग चिल्लाये ।
‘‘दोस्तो!  आपका मुझ पर जो प्रेम एवं विश्वास है वह अतीव है । मगर हम सभी की भलाई की दृष्टि से मैं   आपकी   इच्छा   अस्वीकार करता   हूँ । तुम्हें मालूम  है  कि मेरे  खिलाफ  वारंट्स  तैयार  हैं ।  किसी  भी  पल  वे  यह  घोषणा  कर सकते हैं कि मुझे नौसेना से निकाल दिया गया है;  पुलिस के कब्जे में दे सकते हैं ।   और   यदि   ऐसा   हुआ   तो   गड़बड़   हो   जाएगी ।   तुम्हें   चिढ़ाने   के   लिए,   तुम्हारे विद्रोह  की हवा  निकाल  देने  के  लिए  सरकार  यह  करेगी ।  मैं  तुम्हारे  साथ  हूँ ।  मेरा सुझाव   है   कि   तुम   कोई   दूसरा   नेता   चुनो । हममें से हर व्यक्ति नेतृत्व करने में समर्थ है । परिस्थिति को स्पष्ट करते हुए   दत्त ने सुझाव दिया । थोड़ी देर चर्चा करने के बाद खान की अध्यक्षता में मदन, गुरु, दास, पाण्डे, एबल सीमन चाँद और सूरज  की  सदस्यता  वाली  एक  समिति  बनाई  गई ।  समिति  ने  अपनी  बैठक तत्काल आरम्भ कर दी । दत्त सलाहकार के रूप में बैठक में उपस्थित था । सर्वसम्मति से निम्नलिखित माँगपत्र तैयार किया गया:
1.   सभी राजनीतिक कैदियों और आज़ाद  हिन्द सेना के सैनिकों को आज़ाद करो ।
2.   कमाण्डर किंग द्वारा इस्तेमाल किए गए अपशब्दों के कारण उस पर कड़ी कार्रवाई की जाए ।
3.   सेवामुक्त  होने  वाले  सैनिकों  को  शीघ्र  सेवामुक्त  करके  उनका  पुनर्वसन किया जाए ।
4.  रॉयल नेवी के सैनिकों को जो वेतन तथा सुविधाएँ दी जाती हैं वे ही हिन्दुस्तानी सैनिकों को मिलें।
5.   तीनों  सैन्य दलों  के  लिए  जो  एक  कैन्टीन  है  उसमें  हिन्दुस्तानी  सैनिकों को भी प्रवेश दिया जाए ।
6.   सेवामुक्त करते समय कपड़ों के पैसे न लिये जाएँ ।
7.   रोज़ के भोजन में दिये जानेवाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए ।
8.       इण्डोनेशिया का स्वतन्त्रता आन्दोलन कुचलने के लिए भेजे गए हिन्दुस्तानी सैनिकों को फ़ौरन वापस बुलाया जाए ।
‘‘क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि इस माँगपत्र में ज़रा भी दम नहीं है ?’’ गुरु ने दत्त से पूछा ।
‘‘तुम्हारी राय  से  मैं  पूरी  तरह  सहमत  हूँ ।  इन  माँगों  में  स्वतन्त्रता  की  माँग का  उल्लेख  साफसाफ  होना  चाहिए  था ।  परन्तु  यदि  स्वतन्त्रता  संग्राम  में  शामिल होने   के   इच्छुक   तथा   इस   संग्राम   से   दूर   रहने   के   इच्छुक   लोगों   को   साथ   लेकर चलना  हो,  संघर्ष  को  सर्वसमावेश  बनाना  हो  तो  यही  माँगपत्र  योग्य  है ।’’  दत्त ने माँगपत्र का समर्थन किया ।
‘‘आज  शेरसिंह  को  आजाद  होना  चाहिए  था!’’  गुरु  ने  निराशा  से  कहा ।
‘‘शेरसिंह  की  गिरफ्तारी  होने  के  बाद  उन्हें  किस  विशेष  स्थान  पर  ले  जाया गया है  यह मालूम करने के लिए मैंने उनके निकट सहयोगियों से सम्पर्क स्थापित किया था । मगर कुछ भी पता नहीं चला ।’’    मदन    ने    जानकारी    दी ।
‘‘दुर्भाग्य हमारा,   और क्या!’’   गुरु ने गहरी साँस छोड़ी,   ‘‘सोचा था कि बाबूजी का आशीर्वाद लेकर हम युद्ध का बिगुल बजाएँगे मगर...   और अब शेरसिंह साथ में नहीं हैं!’’    गुरु की  आवाज़ में विषण्णता थी ।
‘‘उन्हें  यदि  इस  बात  की  भनक  भी  मिल  जाए  तो  वे  जेल  तोड़कर  हमारे बीच आएँगे  और अन्य सैनिक दलों में इस वड़वानल को प्रज्वलित करने का काम करेंगे!’’    मदन ने विश्वासपूर्वक कहा ।
‘‘ठीक कह रहे हो । वे आज नहीं हैं इसलिए हमें दुगुने जोश से काम करना चाहिए ।’’    दत्त  ने सुझाव दिया ।
उस  रात  को  तलवार  पर  कोई  भी  नहीं  सोया ।  हर  बैरेक  में  एक  ही  चर्चा हो रही थी - कल क्या होगा ?   कुछ भोले सैनिक स्वतन्त्रता के और हिन्दुस्तानी नौसेना  के  सपनों  में  खो  गए  थे ।  रात  के  उस  शान्त  वातावरण  में  रास्ते  से  गुजरने वाले एकाध ट्रक की आवाज़ यदि सुनाई देती तो रॉटरे भूदल के सैनिकों   को तलवार   में   लाया होगा,   इस आशंका से सैनिक अस्वस्थ हो जाते और नारे लगाते हुए  मेन  गेट  पर  जमा  हो  जाते ।  मगर  बगैर  किसी  विशेष  घटना  के  वह  रात  गुज़र गई ।



मुम्बई से प्रकाशित होने वाले  सभी  सायंकालीन  अखबारों  ने  नौदल  के  विद्रोह  की खबर मुम्बई के घरघर   में   पहुँचा   दी   थी । लाल बाग स्थित लाल झण्डे के कार्यालय में इकट्ठा हुए कार्यकर्ता इसी खबर पर चर्चा    कर रहे थे ।
‘‘जोशी, पहले पृष्ठ पर छपी वह नौदल की खबर पढ़!’’ वैद्य ने अखबार आगे बढ़ाते हुए कॉम्रेड जोशी से कहा ।   जोशी   ने   कुछ   जोर   से   नौसैनिकों के विद्रोह  की  खबर  पढ़ी  और  नाक  पर  चश्मे  को  सीधा  करते  हुए  जोर  से  वैद्य  से कहा,   ‘‘मुझे उम्मीद ही थी इस ख़बर की।’’
‘‘बड़ा ज्योतिषी बन गया है ना ?   कहता है,   उम्मीद ही थी इस ख़बर की ।’’  वैद्य ने हमेशा की तरह जोशी की फिरकी लेने की कोशिश की ।
‘‘अरे,   आँखें खुली रखकर चारों ओर देखते रहो तो क्या होने वाला है इसका अन्दाज़ा हो जाता है । एक सप्ताह पहले ही बिलकुल सुबहसबेरे मालाड़ के आसपास  स्वतन्त्रता  के  नारों  से  रंगा  हुआ  ट्रक  बेधड़क  घूमता  हुआ  दिखा  था । करीब  महीना  भर  पहले  तलवार  में  दत्त  नामक  सैनिक  के नारे लिखते हुए पकड़े जाने की ख़बर उसकी फोटो समेत छपी थी । मुझे तभी ऐसा लगा था कि जल्दी ही यह विस्फोट होने वाला है।" जोशी ने सुकून से जवाब दिया ।
 ‘‘सैनिकों में भी असन्तोष व्याप्त होगा,   ऐसा लगता तो नहीं था ।’’   वैद्य ने कहा ।
‘‘क्यों ?  वे भी इसी मिट्टी के हैं । मेरा ख़याल है कि हम राजनीतिक पक्षों से  ही  ग़लती  हुई  है।  हमने  उन्हें  कभी  भी  अपने  निकट  करने  की  कोशिश  नही की ।  कम  से  कम  हमारी  पार्टी  को  तो  उन्हें  अपना  बनाना  चाहिए  था ।  रूस  की क्रान्ति सैनिकों द्वारा ही की गई थी ।’’
‘‘रूसी  क्रान्ति  का  आरम्भ  भी  इसी  तरह  जहाज़   पर  ही  हुआ  था ।’’  वैद्य ने जानकारी दी ।
‘‘चाहे जो भी हो जाए, हमें इन सैनिकों को समर्थन देना ही चाहिए । इस सम्बन्ध  में  कल  ही  मीटिंग  बुलानी  चाहिए ।’’  जोशी  की  राय  से  वैद्य  ने  सहमति जताई    और    वे    दूसरे    दिन    की    बैठक    की    तैयारी    में    लग    गए ।



''It's done, it's done...''  तलवार  के  विद्रोह  की  खबर  सुनकर  मुम्बई  के  नौदल के जहाज़ HMIS  गोंडवन  का  यादव  नाचते,  चिल्लाते  हुए  बैरेक  में  घूम  रहा  था ।
‘‘मैं शनिवार को दत्त और मदन ने मिलने तलवार   पर गया था । उस समय वातावरण बहुत गर्म था । मगर यह सब इतनी जल्दी हो जाएगा ऐसा लगता नहीं था । मगर गुरु,  खान,  मदन,  दत्त  इन  सबने  यह  कर  दिखाया। They are great. Bravo!" वह जो भी मिलता उसे गले लगाते हुए कह रहा था ।
‘‘ये सब ख़त्म होना ही था । अब हम अंग्रेज़ों के अत्याचार से निश्चय ही  मुक्त हो जाएँगे। हम स्वतन्त्र हो जाएँगे । स्वतन्त्रता प्राप्त होने तक हमें रुकना  नहीं चाहिए!’’ बैनर्जी चिल्ला रहा था । आनन्दातिरेक से उसका गला भर आया था ।
‘‘अरे, तो फिर खामोश क्यों बैठे हो ? गोरों को समझ में कैसे आएगा कि यहाँ के सैनिक भी सुलग उठे हैं । हम   भी विद्रोह में शामिल हैं ।’’  जगदीश ने कहा और पूरा जहाज़  जोशीले नारों से गूँज उठा। कुछ लोगों ने थालियों पर चमचे पीटते हुए हंगामे को अधिक ज़ोरदार बना दिया ।
जहाज़  पर मौजूद गोरे अधिकारियों और गोरे सिपाहियों को पलभर समझ ही में न आया कि हुआ क्या है ।
‘‘इन bloody black pigs  को हुआ क्या है ? क्यों चिल्लाचोट मचा रहे हैं ये ?’’  स.  लेफ्ट.  जॉन पूछ  रहा  था ।  और  वह  यह  देखने  के  लिए  निकला  कि क्या हुआ है ।
‘‘जाओ मत उधर;  तुमने शायद अभी समाचार नहीं सुने । नौसैनिकों ने विद्रोह कर दिया है ।’’    जॉन को रोकते हुए लेफ्टिनेंट शॉ ने कहा । समूची ऑफिसर्स मेस  में  एक  खौफनाक  ख़ामोशी  छाई  थी ।  हरेक  के  मन  में एक  ही  सवाल  था: यदि ये सैनिक हिंसक हो गए तो?  इस परिस्थिति से कैसे बाहर निकला जाए ?’
‘‘अरे,  हमें  भी  इस  ऐतिहासिक  संघर्ष  में  शामिल  होना  चाहिए!’’  यादव  की इस राय का सभी ने समर्थन किया और अलगअलग गुटों में बैठे सैनिक फॉक्सल पर इकट्ठा हो गए ।
‘‘हम अभी जाकर तलवार    के सैनिकों को समर्थन देंगे ।’’  उत्साही जगदीश ने एकत्रित हुए सैनिकों से कहा ।
‘‘दोस्तो!   हमें   इतनी   जल्दबाजी   नहीं   करनी   चाहिएए   ऐसा   मेरा   विचार   है । सरकार  ने  यदि  तलवार  की  घेराबन्दी  कर  दी  तो  संघर्ष  को  आगे  बढ़ाने  के  लिए किसी  का  तो  बाहर  होना  ज़रूरी  है  और  हम  वह  करेंगे ।’’  यादव  ने  सुझाव  दिया ।
‘‘मतलब, क्या हमें सिर्फ देखते रहना है ?’’   किसी ने गुस्से से पूछा ।
‘‘नहीं, हम शतप्रतिशत शामिल होने वाले हैं । तलवार   के सैनिकों  की योजना समझकर शामिल होना अधिक योग्य है ऐसा मेरा ख़याल है ।’’   यादव का  यह  विचार  सबको  उचित  लगा  और  यह  तय  किया  गया  कि  कल  सुबह  ही तलवार    पर चला जाए ।
सरकार  की  पराजय  के  सपने  देखते  हुए  सारा  गोंडवन  रातभर  जाग  रहा था ।



‘‘अरे ताऊ, देख क्या लिखा है!’’   एक सायंकालीन समाचारपत्र नचाते हुए सज्जन सिंह अपने हरियाणवी ढंग में रामपाल से कह रहा था ।
‘‘क्या लिक्खा है?’’    रामपाल ने पूछा ।
‘‘अरे, तलवार  के  सैनिकों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह कर दिया है,’’ सज्जन सिंह ने जवाब    दिया ।
सज्जन सिंह द्वारा लाया गया समाचारपत्र पूरी मेस डेक पर घूमता रहा ।
जैसेजैसे वह एक हाथ से दूसरे हाथ जाता रहा,  वैसेवैसे सैनिकों का उत्साह बढ़ता  गया । HMIS. पंजाब   के उत्साहित सैनिक नारे लगाते हुए अपर डेक पर आते रहे । कुछ जोशीले सैनिकों ने ऊँची आवाज़ में सारे जहाँ से अच्छायह गीत गाना आरम्भ कर दिया । धीरेधीरे पूरी शिप्स कम्पनी डेक पर जमा हो गई और फिर रात को बड़ी   देर   तक   वे   सब   लोग   विद्रोह,   विद्रोह के परिणाम,    उनका इसमें सहभाग आदि विषयों पर चर्चा करते    रहे ।
धीमीधीमी   हवा   चल   रही   थी । सैनिकों के मन में स्वतन्त्रता की आशा की चाँदनी छिटकी थी । नींद किसी को भी नहीं आ रही थी । स्वतन्त्रता के सपने सजाते हुए वे रातभर जागते रहे ।



मंगलवार को सुबह पंजाब  के सैनिक जल्दी ही उठ गए । हरेक के मन में उत्सुकता थी,   आगे क्या होगा?’   सुबह से जहाज़ का लाऊडस्पीकर चुप्पी साधे हुए था, क्योंकि सूचनाएँ देने वाला क्वार्टर मास्टर ड्यूटी पर हाज़िर ही नहीं हुआ था,   और किसी  भी  गोरे  सैनिक  की  हिम्मत  ही  नहीं  हो  रही  थी  कि  सूचनाएँ  दें ।  हिन्दुस्तानी नौसैनिक मेसडेक में आराम से बैठे थे ।
‘‘स. लेफ्टिनेंट रंगाराजू,  मेरा  ख़याल  है कि तुम आज सुबह आठ बजे तक ड्यटी पर हो ।’’  पंजाब   का कैप्टेन स्मिथ पूछ रहा था ।
''Yes, sir.''  रंगाराजू ने जवाब दिया ।
‘‘हिन्दुस्तानी सैनिक आज फॉलिन के लिए नहीं आए...’’
‘’ ‘तलवारके विद्रोह की ख़बर आई और सैनिक बिफर गए हैं...’’  स्मिथ को टोकते हुए रंगाराजू ने  जवाब दिया। 
'You bloody fool!  मुझे तुमसे ये जवाब नहीं सुनना है । तू जाकर उनसे कह दे कि वे तलवार   नहीं, बल्कि पंजाब   हैं,   और यहाँ कमाण्डर स्मिथ है । उनकी मनमानी यहाँ नहीं चलेगी ।’’    स्मिथ गुर्राया ।
सुबहसुबह हुए इस अपमान से आहत रंगाराजू  ने स्मिथ को गाली देते हुए जवाब दिया,  ‘‘ठीक है,  सर,  मैं कोशिश करता  हूँ ।’’  और  वह  मेसडेक  की ओर चल पड़ा ।
रंगाराजू  को  मेस  में  आया  देखकर  सैनिकों  ने  ज़ोरज़ोर से नारे लगाना शुरू कर दिया ।
‘‘प्लीज़,   ये   सब   रोको   और   अपर   डेक   पर   फॉलिन   हो   जाओ ।’’   रंगाराजू के शब्दों में हमेशा की    दहशत और हुकुमशाही नहीं थी ।
''You, bloody shoe licker, go back!'' सैनिकों ने नारे लगाते हुए रंगाराजू को लगभग बाहर खदेड़ दिया।
सुबह के आठ बजने में अभी पैंतालीस मिनट बाकी थे ।
 ‘‘आज हम मास्ट पर यूनियन जैक वाली व्हाइट एनसाइन नहीं चढ़ाने देंगे ।’’ रामपाल   ने   कहा।
‘‘आज हम तिरंगा फहराएँगे ।’’   गोपालन् ने कहा ।
‘‘चलेगा ।’’    रामपाल    ने    कहा ।
‘‘फिर मुस्लिम लीग का झण्डा क्यों नहीं ?’’    सलीम ने पूछा ।
‘‘हम सब एक हैं । वह झण्डा चढ़ाकर अपनी एकता अधिक मज़बूत करेंगे ।’’ सुजान ने समर्थन किया ।
‘‘कम्युनिस्ट पार्टी का झण्डा भी फ़हराया जाए ऐसा मेरा ख़याल है ।’’ टेलिग्राफिस्ट चटर्जी ने कहा ।
‘‘उस झण्डे के लिए भी कोई आपत्ति नहीं होगी,   ऐसा मेरा विचार है । हमारा ध्येय एक है और उस ध्येय के लिए हमें एक होना चाहिए। हमारी एकता के प्रतीक के रूप में इन तीनों ध्वजों को एक ही रस्सी पर चढ़ाएँगे ।’’ गोपालन् के सुझाव को सबने स्वीकार कर लिया ।
कुछ लोग स्टोर की ओर दौड़े और उपलब्ध कपड़े से तीन झण्डे तैयार करने लगे ।
HMIS पंजाब   पर से अंग्रेज़ों का नियन्त्रण छूट गया था । अंग्रेज़ अधिकारी और सैनिक हतबल होकर अपनीअपनी मेसडेक में बैठे रहे ।
आठ  बज  गए ।  पंजाब  के  सैनिक  क्वार्टर  डेक  पर  इकट्ठा  हो  गए ।  हर ब्रैंच  के  वरिष्ठ  सैनिकों  ने  अपनीअपनी  ब्रैंच  के  सैनिकों  को  अनुशासन  में  खड़ा किया ।  आठ  बज  गए  तो  घण्टे  के  आठ  ठोके  देते  हुए  क्वार्टर  मास्टर  चिल्लाया,
‘‘कलर्स,   सर ।’’
ब्यूगूलर  ने  अलर्ट  बजाया ।  सैनिकों  ने  सलामी  दी  और  बिगुल  की ताल पर तीनों झण्डे मास्ट पर चढ़े ।
‘‘दोस्तो! स्वतन्त्र हिन्दुस्तान के राष्ट्रध्वज को पूरे सैनिक सम्मान से फहराने का सौभाग्य आज सर्वप्रथम हमें प्राप्त हुआ है । यह क्षण हमारे जीवन का सबसे बड़ा,  महत्त्वपूर्ण  और  सुख  का  क्षण  है ।’’  गोपालन्  हर्षोत्साह से कह  ही  रहा  था कि सैनिकों ने नारे लगाना आरम्भ कर दिया।
‘‘भारत    माता    की    जय!’’
‘‘वन्दे    मातरम्!’’
मुम्बई के बंदरगाह में खड़े जहाज़ों के सैनिकों ने  पंजाब   पर फ़हरा रहे तीन  ध्वज  देखे  तो  वे  रोमांचित  हो उठे । थोड़ी  ही  देर  में  बंदरगाह  में  खड़े  मद्रास सिंध’,   मराठा’,   तीर’,   धनुष   और   आसाम   इन   जहाजों   ने   भी पंजाब   का अनुकरण किया । मगर कुछ जहाजों पर अभी भी ब्रिटेन का व्हाइट एनसाइन ही फ़हरा रहा था । पंजाब  के  सैनिक  बिरार’,  मोती’,  नीलम’,  जमुना’,  कुमाऊँइत्यादि जहाज़ों पर गए । हर जहाज़  पर उनका उत्साहपूर्वक स्वागत किया गया ।
‘‘दोस्तो!  कल  से  तलवार  के  सैनिकों  ने  अंग्रेज़ी  हुकूमत  के  विरुद्ध  विद्रोह कर दिया है । उनका विद्रोह व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं है । वे संघर्ष कर रहे हैं स्वतन्त्रता  के  लिए  हम  सबको  अधिक  अच्छा  खाना  मिले,  अधिक  सुविधाएँ मिलें,   हमारे साथ अधिक अच्छा बर्ताव किया जाए इसलिए यह संघर्ष है  और यह सब स्वतन्त्रता के बिना असम्भव है । दोस्तो! ये माँगें हम सभी की हैं । हम पंजाब  के  सैनिकों  ने  एक  राय  से  तलवार  के  सैनिकों  का  साथ  देने  का  निर्णय लिया है । दोस्तो! सबका साथ मिले बगैर यह संघर्ष यशस्वी    होने वाला नहीं, इसलिए हमारी आपसे विनती है, कि आप सब हमारा साथ दो । अन्तिम विजय हमारी  ही  होगी!’’  पंजाब  के  सैनिक  आह्वान  कर  रहे  थे  और  उनके  आह्वान  को ज़ोरदार समर्थन मिल रहा था ।



सुबह के समाचारपत्रों में नौसेना के विद्रोह की ख़बर मुम्बई के घरघर में जिस तरह पहुँचाई थी,   उसी तरह उसे देश के कोनेकोने में भी पहुँचाया। सरकार विरोधी समाचारपत्रों के साथसाथ सरकार समर्थक समाचारपत्रों को भी   इस   घटना   के   बारे   में   लिखना   ही   पड़ा । टाइम्स   जैसे सरकार समर्थक अख़बार ने लिखा था, ‘‘मुट्ठीभर असन्तुष्ट सैनिकों द्वारा खाने तथा अन्य सुविधाओं को लेकर किया गया विद्रोह ।’’
मगर फ्री प्रेस जर्नल   जैसे सरकार विरोधी अख़बार ने 18 तारीख की सभी घटनाओं के बारे में विस्तार से लिखा था,  ‘‘मुम्बई,  सोमवार,  दिनांक  18  फरवरी, सिग्नलिंग की ट्रेनिंग देने वाले मुम्बई के HMIS तलवार   नामक नौसेना तल पर एक हज़ार से भी ज़्यादा सैनिकों ने आज सुबह से भूख हड़ताल आरम्भ कर दी  है । तलवार  के मुख्य  अधिकारी,  कमाण्डर  किंग  द्वारा  रॉयल  इण्डियन  नेवी के हिन्दुस्तानी सैनिकों के लिए 'Sons of bitches' और 'Sons of coolies'  जैसे अपशब्दों का प्रयोग किये जाने का यह परिणाम है । भूख हड़ताल से उत्पन्न परिस्थिति  पर  सरकार  गम्भीरता  से  विचार  कर  रही  है ।  तलवार  के  गोरे  सैनिकों को अन्यत्र हटा दिया गया है । बेस   से गोलाबारूद भी हटा लिया गया है । इस हड़ताल को समाप्त करने के लिए फ्लैग ऑफिसर्स द्वारा की गई कोशिशें असफल सिद्ध हुई हैं ।
हड़ताल कर रहे सैनिकों ने यह माँग की है । इस हड़ताल में राष्ट्रीय नेता, सम्भवत: अरुणा आसफ अली मध्यस्थता करें!
खबर में आगे कहा गया था कि तलवार  के  सैनिकों  ने आह्वान किया है कि पूरे हिन्दुस्तान के नौसैनिक विद्रोह में शामिल हों । तलवार  का वातावरण जय हिन्द’, ‘भारत छोड़ो  'Down with the British' आदि नारों से गूँज रहा था ।
फ्री प्रेस   ने तलवार   पर पिछले दोतीन महीनों में हुई घटनाओं की रिपोर्ट देकर सैनिकों की माँगों के बारे में भी लिखा था। अख़बार ने आगे लिखा था, ‘‘मुम्बई के फ्लैग ऑफ़िसर ने तलवार  के मुख्याधिकारी का फ़ौरन तबादला करके उसके स्थान पर कैप्टन इनिगो जोन्स की नियुक्ति की है । सैनिकों को यह नियुक्ति मान्य नहीं है । उनकी राय में एक हिन्दुस्तान द्वेषी अधिकारी के स्थान पर दूसरा हिन्दुस्तान  द्वेषी  अधिकारी  लाकर  बिठाया  गया  है ।  सैनिकों  ने  रॉटरे  और  उसके साथ के अधिकारियों को तलवार   और हिन्दुस्तान में चल रहे विद्रोह के बारे में बताया ।
‘‘आगे क्या होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । इन नौजवानों की हिम्मत ज़बर्दस्त है । उनके निर्णय में   अब कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकता । तलवार  की दीवारें भी अब जय हिन्द’,  भारत छोड़ो,’  'Down with the British' इत्यादि नारे लगा रही हैं ।’’
ए.पी.ए.   ने यह सूचना दी है कि ‘‘मुम्बई के फ्लैग ऑफ़िसर रियरएडमिरल रॉटरे ने यह कहा है कि हमेशा की   तरह तलवार   में समय पर भोजन तैयार किया गया,  मगर किसी भी सैनिक ने खाना नहीं लिया । सैनिकों को उनकी माँगें पेश करने के लिए कहा गया मगर कोई भी आगे नहीं आया। उनकी शिकायतें क्या हैं,   यदि यह पता चले तो शिकायतों को दूर करने के सभी प्रयत्न करने का आश्वासन रॉटरे ने सैनिकों को दिया है, इसके बावजूद सैनिकों ने काम पर लौटने  और  खाना  खाने  से  इनकार  कर  दिया  है ।  यह  भी  ज्ञात  हुआ  है  कि  इन सब घटनाओं की रिपोर्ट दिल्ली भेज दी गई है ।’’



‘‘भण्डारे,  अरे  फ्री  प्रेस  में  छपी  यह  ख़बर  पढ़ी  क्या ?’’  गिरगाँव  की  एक  चाल में रहने वाले सप्रे ने अपने पड़ोसी से पूछा ।
 ‘‘सैनिकों की भूख हड़ताल वाली खबर ना ?   टाइम्स  ने भी दी है । दो निवाले ज़्यादा खाने के लिए की गई हड़ताल... ’’
‘‘भण्डारे,   टाइम्स   की ख़बर एकदम विकृत है । सैनिकों की हड़ताल केवल खाने के लिए नहीं है । उन्होंने स्वतन्त्रता की माँग की है ।’’   भण्डारे की ख़बर को खारिज करते हुए सप्रे ने कहा ।
‘‘मतलब,  अब  सैनिक  भी ?  मगर  एक  दृष्टि  से  यह  अच्छा ही हुआ । वरना, महात्माजी के मार्ग से आज़ादी पाने के लिए और न जाने कितने सालों तक संघर्ष करना पड़ेगा! यह काम,  मतलब  कैसा,  कि  बाप  दिखा, नहीं तो  श्राद्ध  कर!  देश छोड़ के जाएगा या तुझे मारूँ गोलियाँ ?’’   भण्डारे का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा था ।
‘‘हमें सैनिकों का साथ देना चाहिए । वे अकेले नहीं पड़ने चाहिए । यदि हमारा साथ मिला तो उनका काम और अधिक आसान हो जाएगा ।’’   सप्रे ने साथ देने की बात पर ज़ोर देते हुए कहा ।
‘‘साथ देने का मतलब क्या करने से है ?’’   हम बन्दूक तो चला नहीं सकते या तोप दाग नहीं सकते,   फिर हम करें तो क्या करें ?’’   भण्डारे पूछ रहा था ।
‘‘उन पर चलाई गई कम से कम एकाध गोली तो अपने सीने पर झेल सकते  हैं ?  कारखाने  बन्द  करके  सड़क  पर    सकते  हैं। अरे,  ज्यादा  नहीं,  तो कम से कम जब वे लड़ रहे होंगे तब उनके कपड़े ही सँभाल सकते हैं ।  बहुत कुछ कर सकते हैं हम ।’’    सप्रे सहयोग देने के मार्ग सुझा रहा था ।
‘‘हम भी सहभागी होकर उनका साथ देंगे,’’  भण्डारे ने कहा ।
मुम्बई के घरघर में ऐसी ही बातें हो रही थीं । लोग सैनिकों को समर्थन देने की बात कर रहे थे ।
फ्री  प्रेस  में छपी नौसैनिकों के विद्रोह की ख़बर से दिल्ली में उपस्थित कांग्रेस के अध्यक्ष - मौलाना अबुल कलाम आज़ाद – को विशेष आश्चर्य नहीं हुआ । उन्होंने कराची,  लाहौर और सैनिक कैंटोनमेंट वाले शहरों का जब दौरा किया था तो देशप्रेम से झपेटे हुए सैनिक खुद आकर उनसे मिले  और तीनों दलों के अधिकारियों द्वारा  कमाण्डरइनचीफ  को  उनकी  समस्याएँ  सुलझाने  के  लिए  15  फरवरी  तक का   समय   दिए   जाने   की   बात   उन्हें   पता   चली   थी ।   वे   तभी   समझ   गए   थे   कि इन   विरोधों   का   विस्फोट   अवश्य   होगा,   मगर   वह   इतनी   जल्दी   हो   जाएगा इस   बात की  उन्होंने  कल्पना  नहीं  की  थी ।  लाहौर  स्थित  गुरखा  रेजिमेंट  के  सैनिकों  द्वारा किये गए स्वागत की याद ताज़ा हो गई :
‘‘आज़ाद जिन्दाबाद!’’    उनके कानों में फिर एक बार नारे गूँज गए ।
सेना  और  पुलिस  में  आया  यह  परिवर्तन... वरिष्ठों  की  परवाह    करते हुए नारे... ऐसा साहस!     मगर इसकी परिणति विद्रोह में और वह भी  इतनी जल्दी ?’ आज़ाद को विश्वास ही नहीं हो रहा था ।
‘‘सर,  हम  कांग्रेस  के  साथ  हैं ।’’  कराची  के  सैनिक  ज़ा  से  कह  रहे  थे । यदि कांग्रेस में और सरकार में मतभेद हो गए तो हम कांग्रेस की तरफ से खड़े रहेंगे और कांग्रेस द्वारा दिए गए आदेशों का पालन करेंगे ।’’ आज़ाद को सब कुछ याद आ रहा था। वे मन ही मन खुश हो रहे थे ।
‘‘युद्ध समाप्त होने के बाद हिन्दुस्तान को आज़ादी दी जाएगी, ऐसा आश्वासन  अंग्रेज़  सरकार  ने  दिया  था  इसलिए,  उनके  वादे  पर  विश्वास  करते  हुए हम इंग्लैंड की ओर से लड़े ।’’ कराची में लीडिंग सिग्नलमैन पन्त कह रहा था । उसके सुर में धोखा दिये जाने का मलाल था । ‘‘अब अंग्रेज़ अपना वादा पूरा करने में हिचकिचाए और बातचीत का नाटक करने के लिए यदि उन्होंने खोखली समितियों का गठन किया तो वह हमें मंज़ूर नहीं होगा ।   हम   खामोश नहीं   बैठेंगे!’’  पन्त की आवाज़ में निश्चय था ।
विद्रोह की पार्श्वभूमि का आज़ाद को स्मरण हो आया ।
यह समय विद्रोह का  नहीं... हिन्दुस्तानी सैनिकों के मन में जागृत हुई आत्मसम्मान की,  स्वाभिमान की,    देशप्रेम    की भावना,   सब कुछ काबिले तारीफ़ है । सरकार ने सैनिकों की भावनाओं की अनदेखी की,  राजनीतिक परिस्थिति का नासूर बनने दिया... यह सब सच होते हुए भी,  जब देश ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा हो,   व्यापारियों द्वारा   शान्ति की उम्मीद की जा रही हो,   तो यह समय विद्रोह का कतई नहीं है ।’’  वे  सोच  रहे  थे,  ‘‘सैनिकों  को  रोकना  होगा । कांग्रेस को  इस  विद्रोह  से  दूर रखना होगा । सैनिक यदि आगे चलकर हिंसात्मक हो गए तो...कांग्रेस के सिद्धान्त महात्माजी द्वारा स्थापित आदर्श... नहीं,  कांग्रेस को इस विद्रोह से दूर रहना होगा!’’
उन्हें सरदार पटेल की याद आई । वे मुम्बई में हैं । वे विद्रोह का समर्थन नहीं करेंगे । मगर समाजवादी गुट, खासकर अरुणा आसफ अली...सुबह के समाचारपत्र में उनका नाम पढ़ने की बात याद आई ।
उसे किसी भी तरह रोकना होगा । सरकार से, सरदार से सम्पर्क स्थापित करना ही होगा,    तभी...
और वे सरदार पटेल को फ़ोन करने के लिए उठे ।




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Vadvanal - 23

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