रविवार, 18 मार्च 2018

Vadvanal - 17




‘‘चार बज गए। अरुणा आसफ़ अली अभी तक क्यों नहीं आर्इं ?’’  गुरु ने पूछा ।
‘‘निर्णय तो नहीं बदल दिया ?’’  बोस ने पूछा ।
‘‘फ़ोन करके देखो ना ?’’  मदन ने सुझाव दिया ।
‘‘पिछले पन्द्रह मिनट से फ़ोन कर रहे हैं, मगर कोई फ़ोन उठा ही नहीं रहा है ।’’  खान ने स्पष्ट किया ।
जैसेजैसे अरुणा आसफ़ अली को देर हो रही थी,  वैसेवैसे सैनिकों की बेचैनी बढ़ती गई। नारे गरजे ही जा रहे थे ।  दत्त,  खान,  गुरु,  मदन,  बोस और कमेटी के सदस्य बेचैन हो रहे थे। उन्हें एक ही डर सता रहा था - अरुणा आसफ़ अली की राह देखदेखकर उकताए हुए सैनिक यदि बेकाबू हो गए तो ?
‘‘खान, मेरा ख़याल है कि तुम उनसे बात करो। कुछ लोगों को अपने अनुभव सुनाने की विनती करना ठीक रहेगा। We must keep them busy.'' दत्त ने सलाह दी ।
‘‘दोस्तो! खान ने सैनिकों से बातचीत आरम्भ कर दी । हम सभी अरुणा आसफ़ अली का मार्गदर्शन लेने और उनके   जोशीले भाषण सुनने के लिए उत्सुक हैं । मुझे यकीन है कि वे ज़रूर आएँगी ।’’
‘‘फिर अब तक क्यों नहीं आर्इं ?’’  किसी ने ज़ोर से पूछा ।
‘‘नहीं भी आर्इं,  तो भी कोई बात नहीं । अब पीछे नहीं हटना है ।’’ दूसरा सैनिक चिल्लाया । उसने वहाँ एकत्रित सैनिकों की भावनाएँ ही व्यक्त कीं ।
‘‘दोस्तो! वे एक राष्ट्रीय नेता हैं । किसी और ज़रूरी काम में उलझ गई होंगी। हम उनसे सम्पर्क करने की कोशिश कर रहे हैं । जब तक वे यहाँ पहुँचती हैं,   हम विभिन्न जहाज़ों से  आए अपने मित्रों की वेदना को जानें। जितना अधिक एकदूसरे के दर्द को  हम जानेंगे उतना ही  अधिक उनके निकट आएँगे, और एकदूसरे को अच्छी तरह समझ सकेंगे ।’’  खान ने सैनिकों को हिलगाए रखने की कोशिश की ।
खान के आह्वान के बाद तो भाषणों की मानो झड़ी लग गई । हर कोई पूरे दिल से बोल रहा था, अंग्रेज़ों के खिलाफ़ आग उगल रहा था; अंग्रेज़ों  की जूठन उठाकर अपने ही देशबन्धुओं पर अन्याय,  अत्याचार करने वाले हिन्दुस्तानी अधिकारियों की भर्त्सना कर रहा था,   उनका   धिक्कार   कर   रहा   था;  अपने भाषण में  अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ संघर्ष का समर्थन कर रहा था;  अन्तिम साँस तक लड़ने की प्रतिज्ञा कर रहा था । अंग्रेज़ों के प्रति गुस्से     को और देशप्रेम को ज़बर्दस्त समर्थन मिल  रहा  था। परिस्थिति बदल रही थी,  अंग्रेज़ विरोधी नारों में वृद्धि हो गई थी ।
कुछ अतिउत्साही सैनिक बीच ही में उठकर डंड ठोंकते हुए अंग्रेज़ों को ललकार रहे थे,   उन्हें गालियाँ दे रहे थे । सेंट्रल कमेटी के सदस्यों को सैनिकों का त्वेष और उनकी चिढ़ देखकर डर लगने लगा । वहाँ वर्णन किया जाने वाला हर अनुभव आग भड़काने का काम कर रहा था ।
‘‘यदि ये सैनिक अपना आपा खो बैठे तो...’’  सेंट्रल कमेटी के सदस्य बेचैन हो गए ।



सैनिकों की गतिविधियों पर सरकार का पूरा ध्यान था । मुम्बई में होने वाली हर छोटी से छोटी घटना की सविस्तर रिपोर्ट जनरल हेडक्वार्टर को भेजी जा रही थी और वहाँ से प्राप्त सूचनाओं पर तुरन्त अमल किया जा रहा था ।  मुम्बई  के  कांग्रेसी और लीगी नेताओं,   विशेषत: अरुणा आसफ़ अली और सरदार पटेल की गतिविधियों पर सरकार  की  नज़र थी। अरुणा आसफ़ अली को जबसे बटलर ने फ़ोन किया था तब से उनके घर के चारों ओर गुप्त पुलिस  का  पहरा  लगा  दिया  गया  था ।
दिल्ली और मुम्बई में सरकार का जनसम्पर्क विभाग सक्रिय कर दिया गया था । तीन मन्त्रियों के शिष्टमण्डल की नियुक्ति,  नौसेना का विद्रोह स्वार्थ प्रेरित है,   सैनिक हिंसक मार्ग पर चल पड़े हैं - ऐसी खबरों को प्रसारित करने का काम यह विभाग कर रहा था । विद्रोह हमारा आन्तरिक मामला है, राष्ट्रीय पक्ष इससे दूर रहें - इस तरह की धमकीभरी चेतावनी भी दी जा रही थी ।
सरकार विचलित प्रतीत नहीं हो रही थी, फिर भी विद्रोह को कुचलने की व्यूह रचना की तैयारी हो रही थी ।
सैनिकों के संघर्ष का नेतृत्व अरुणा आसफ़ अली करने वाली हैं, यह पता चलते ही अखबारों और समाचार एजेन्सियों के संवाददाता आ गए थे । सैनिकों की एकता,  उनके जोश और अंग्रेज़ों के खिलाफ उनका गुस्सा देखकर वे अवाक् रह गए ।
पाँच बज चुके थे । अनुभवकथन का कार्यक्रम पूरे जोश में चल रहा था ।
एक सफ़ेद कार खट् से ब्रेक लगाते हुए परेड ग्राउण्ड के सामने खड़ी हो गई। सैनिकों ने नारे लगाने शुरू कर दिये:
‘‘अरुणा आसफ़ अली, ज़िन्दाबाद!’’
‘‘वन्दे मातरम्!’’
‘‘भारत माता  की जय!’’
सेंट्रल कमेटी के कुछ सदस्य स्वागत के लिए दौड़े । कार में अरुणा आसफ़ अली के बदले रॉटरे को देखकर वे अवाक् रह गए । उनका उत्साह खत्म हो गया, उन्होंने नारा लगाया:
‘‘रॉटरे,    गो बैक!’’
''Down with British Raj!''
‘‘रॉटरे,    हायहाय!’’
सैनिकों को रॉटरे के आगमन का पता चलते ही वे उसकी कार की तरफ़ दौड़े । खान और दत्त डायस की ओर भागे। 
वे समझ गए कि यह उनकी परीक्षा की घड़ी है ।
‘‘दोस्तो! शान्त रहिए। भूलो मत कि हम अनुशासित सैनिक हैं । हम रॉटरे से कोई भी बात नहीं करने वाले हैं ।’’  हालाँकि खान और दत्त की अपील को अनेक सैनिकों का समर्थन प्राप्त हुआ,  फिर भी करीब पचास सैनिकों का झुण्ड रॉटरे की ओर दौड़ा । सेन्ट्रल कमेटी के सदस्यों ने रॉटरे के चारों ओर घेरा बनाया ।
‘‘सावधान रहो! सैनिकों को रॉटरे से दूर रखो!’’   गुरु सूचनाएँ देते हुए परिस्थिति की जानकारी दे रहा था । ‘‘यदि सैनिकों ने रॉटरे पर हमला किया तो वह तिल का ताड़ बना देगा। हथियार इस्तेमाल करेगा और संघर्ष हिंसक मार्ग पर चल पड़ेगा ।’’
नारे लग ही रहे थे । सैनिक अब तैश में आ गए थे । पन्द्रहसोलह हज़ार सैनिकों का यह विराट समूह देखकर रॉटरे के धृष्ट चेहरे पर घबराहट फैल गई ।
एक  बार  तो  उसे  ऐसा  लगा  कि  सशस्त्र  सैनिकों  को  साथ  में  लाना  चाहिए  था ।
यहाँ ज़्यादा देर रुकना नहीं है। ज़्यादा कुछ कहना भी नहीं है,’  उसने मन में निश्चय किया। ‘‘तुम्हारी  माँगें  क्या हैं,  यह तो पता चले ।’’  अपने  चारों  ओर सुरक्षा घेरा बनाकर खड़े सेंट्रल कमेटी के सदस्यों से उसने पूछा ।
किसी ने रॉटरे के हाथ में माँगपत्र थमा दिया । उस चिल्लाचोट में भी रॉटरे ने शान्ति से उस माँगपत्र को पढ़ा, पलभर सोचकर बोला,  ‘‘तुम्हारी  माँगें राजनीतिक तथा सेवा सम्बन्धी माँगों का मिश्रण हैं । सेवा सम्बन्धी माँगों के बारे में मैं कुछ कर सकूँगा;  मगर राजनीतिक माँगों के बारे में... well, मैं ये सब नेवल हेडक्वार्टर को भेजता हूँ । They will look into it.''
रॉटरे शीघ्रता से कार में बैठ गया ।
तलवार  आने का रॉटरे का उद्देश्य सफ़ल हो गया था । सैनिकों के आन्दोलन की दिशा को वह समझ गया था; अरुणा आसफ़ अली अथवा किसी अन्य नेता ने तलवार  पर पहुँचकर सैनिकों का मार्गदर्शन नहीं किया है यह उसे   मालूम हो गया था; सैनिकों की एकता उसे दिखाई दे रही थी; उनका अनुशासित व्यवहार उसने देखा था ।
सैनिकों के प्रतिनिधियों के साथ यदि चर्चा का नाटक कर सकता तो अच्छा होता,’   वह स्वयं से पुटपुटाया,  फिर भी, कोई हर्ज नहीं; मैं तलवार पर जाकर आया;  मैंने समझौते की कोशिश की मगर सैनिक कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं हैं, यह बात राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं से कहकर सैनिकों पर दबाव डालकर संघर्ष मिटाने को कहा जा सकता है ।   उसने अगली चाल निश्चित की ।
राष्ट्रीय नेताओं की बात सुनेंगे ये सैनिक ?’   वह सोच रहा था,  ये सैनिक अभी तक तो अहिंसा के मार्ग पर जा रहे हैं । यदि ये हिंसक हो  गए तभी वे कांग्रेस की सहानुभूति खो देंगे और फिर बन्दूक के ज़ोर पर इस विद्रोह को इस    तरह कुचल दूँगा कि सैनिक दुबारा सिर ऊपर न उठा सकें ।
रॉटरे की कार मेन गेट के पास आई और सामने से आते हुए चार सैनिकों को देखकर उसने कार रोकने को कहा ।
‘‘फ्रेंड्स,’’  उसने  उन चारों को बुलाया और खुद उतरकर पैदल उनके पास गया,   ‘‘तुम किस जहाज़ के हो ?’’   उसने   पूछा ।
‘‘पंजाब ।’’
‘‘इन तलवार  के  सैनिकों के बहकावे में क्यों आते  हो ?  तुम्हारे पंजाबके ही नहीं,  बल्कि तलवार  के अलावा अन्य बेसेस और जहाज़ों के सैनिकों की अलग  माँगें दो;  मैं सबको मंज़ूर कर लूँगा । मगर उसके लिए you must withdraw your agitation and should not join with sailors from Talwar.'' रॉटरे ने अंग्रेज़ों की सधीसधाई चाल चली,    मगर ग़लत सैनिकों के सामने ।
रॉटरे के इस प्रस्ताव पर पंजाब  का Able seaman रणधावा हँसा और चुभती हुई आवाज़  में उसने जवाब दिया,    ''Look Rautre do not try to divide us.  हम कोई कांग्रेस या लीग के लोग नहीं हैं । हमतुम अंग्रेज़ों को पूरी तरह से  पहचानते  हैं ।  हमारी  सारी  माँगेंसबके लिए जब तक मंज़ूर नहीं होंगी,   हम पीछे नहीं हटेंगे!’’
रणधावा ने उससे तूतड़ाक से बात की इससे रॉटरे को गुस्सा आ गया । मगर गुस्सा दिखाने का यह समय नहीं है यह ध्यान में रखकर गुस्सा निगलते हुए यथासम्भव प्यार से उसने जवाब दिया,  ''Well, my side is clear, Now ball is in your ground.''  उसने  ड्राइवर  को  इशारा  किया  और  गाड़ी  की  चाल  तेज़ हो गई ।




खान तलवारके परेड ग्राउण्ड पर जमा हुए सैनिकों से कह रहा था, ‘‘दोस्तो! हम राह देख रहे थे देवदूत की और सामने आया शैतान। तुम्हें मालूम है,   अभीअभी यहाँ रॉटरे आया था । सेंट्रल कमेटी के सदस्यों से उसने बात की। तुम्हारी माँगें हेडक्वार्टर को भेजता हूँ,  ऐसा उसने कहा। माँगें दिल्ली भेजी जाएँ या लन्दन, यह उसे तय करना है ।  बिना किसी शर्त के हमारी सभी माँगें मान्य होनी चाहिए ।
‘‘मेनगेट, के पास वह पंजाबके कुछ सैनिकों से मिला और हमारे बीच फूट डालने की उसने कोशिश की । तलवारछोड़कर अन्य जहाज़ों के सैनिकों के लिए सेवा सम्बन्धी माँगें मान्य करने को वह तैयार था। इसके लिए उसकी एक ही शर्त है - अन्य सैनिक तलवार  का साथ छोड़ दें ।’’  खान का वाक्य पूरा होने से पहले ही सैनिकों ने नारे शुरू कर दिये :
‘‘रॉटरे - हाय,  हाय!’’
‘‘शेम,    शेम!’’
खान ने सैनिकों को शान्त किया ।
‘‘पंजाब  के सैनिकों ने रॉटरे को घुड़की दे दी है ।’’  खान परिस्थिति स्पष्ट कर रहा था । मुझे यकीन है कि हमारी एकता अखण्ड है। हममें से हरेक सैनिक जानता है कि यदि हम बँट गए तो पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा और अपना सर्वस्व गँवाना पड़ेगा । सेंट्रल कमेटी हमारी एकता को बनाए रखने की भरसक कोशिश करेगी । एकता ही हमारी ताकत है!
 ‘‘सरकार अफ़वाहें फैलाएगी । दोस्तों! अफ़वाहों पर विश्वास न करना, अफ़वाहों की बलि न चढ़ जाना!’’
सभा में आठदस सैनिक उठकर खड़े हो गए । उनमें से एक ने seaman knife निकालकर अपने अँगूठे से खून निकाला   और   चिल्लाया,   ‘‘इस   खून   की कसम,   मैं तुम सबके साथ हूँ । यदि मैं तुम्हारा साथ छोडूँ तो एक बाप का नहीं!’’ अनेकों ने उसका अनुकरण किया ।
रात के आठ बजने के बाद अनेक सैनिक अपनेअपने जहाज़ों पर लौट गए । कुछ लोगों ने  तलवार  में ही रात बिताने की ठानी ।
जहाज़ों पर वापस लौट गए सैनिकों ने जहाज़ों   पर सभाएँ करके जहाज़ का पूरा नियन्त्रण अपने हाथ में किस तरह रखा जाए;  तलवार   अथवा अन्य जहाज़ों पर और बेसेस पर यदि ब्रिटिश सेना हमला करती है तो उन्हें रसद किस तरह पहुँचाई जाए;  गोलाबारूद की कितनी मात्रा उपलब्ध है इसका अनुमान लगाकर यदि ज़रूरत पड़े तो किस स्थिति में शस्त्र उठाना है आदि प्रश्नों पर चर्चा की।



18 फरवरी को जनरल हेडक्वार्टर में जो उलझन की परिस्थिति थी वह आज भी कायम  थी। दिनभर बैठकें चलती रहीं। विद्रोह द्वारा लिया गया नया मोड़,  विद्रोह में सैनिकों का सहयोग,  उनके द्वारा राजनीतिक पक्षों और सामान्य जनता से समर्थन के लिए की गई अपील,  और विद्रोह को कुचलने के लिए प्रस्तावित व्यूह रचना इन प्रश्नों पर चर्चा हो रही थी। रिपोर्ट्स मँगवाई जा रही थीं;  निर्णय सूचित किए जा रहे थे; प्रचार पर ज़ोर देने के लिए जनरल हेडक्वार्टर्स में प्रचार विभाग कार्यरत हो गया था। लोगों के सामने घटनाएँ जिस तरह से घटित हुर्इं उसके स्थान पर सरकार को जिस तरह लाभदायक हों उस तरह से घटनाओं को प्रस्तुत किया जा रहा था । अधिकृत न्यूज़ बुलेटिन प्रसिद्ध किए जा रहे थे । शान्तिपूर्वक निकाले गए जुलूस का वर्णन सैनिक पागलों के समान प्राणघातक हमले करते रहे’, इस प्रकार के विकृत स्वरूप में किया गया ।
रात को करीब नौ बजे यह ख़बर आई कि कलकत्ता के HMIS हुगलीके सैनिकों ने  Commoder Bay of Bengal को अपनी माँगें पेश करते हुए शान्तिमय  काम बन्द  आरम्भ कर दिया है । कलकत्ता में ही राजपूताना  जहाज़ के सैनिक भी विद्रोह में शामिल होने का विचार कर रहे हैं । जामनगर के HMIS वलसुरा  बेस के सैनिकों ने विद्रोह की तैयारी शुरू कर दी है।
 तलवार  एवं अन्य नौसेना तलों पर ये समाचार पहुँचते ही उत्साह का वातावरण फैल गया ।



जनरल हेडक्वार्टर्स में अस्वस्थता बढ़ गई थी। एचिनलेक ने Operation Room में Report Centre शुरू करने का आदेश दिया और रात के ग्यारह बजतेबजते रिपोर्ट सेंटर कार्यान्वित हो गया । तीनों सैन्यदलों के अधिकारियों की नियुक्तियाँ की गर्इं । दीवार पर हिन्दुस्तान के बड़ेबड़े नक्शे लगाए गए । विद्रोह में शामिल नौसेना तलों और  जहाज़ों को लाल रंगों के निशानों से दर्शाया गया । ब्रिटिश पलटन की उपस्थिति वाले स्थानों को यूनियन जैक जैसे   निशानों से प्रदर्शित किया गया ।
19 तारीख की रात तक सरकार का रवैया संरक्षणात्मक था । रात को ग्यारह बजे एचिनलेक के घर का फ़ोन खनखनाया,  ‘‘गुड  मॉर्निंग सर । मैं बिअर्ड बोल रहा हूँ ।’’
‘‘सर,  अरुणा आसफ़ अली के तलवार  पर न जाने के बारे में आपको पता चल ही गया होगा।’’ बिअर्ड ने पूछा ।
‘‘हाँ, पता चला । विद्रोह को कुचलने की जिम्मेदारी तुम्हें सौंपी गई है यह भी पता चला । मुम्बई में विद्रोह ज़ोरों पर है और वह पूरे हिन्दुस्तान में फैल रहा है, यह भी पता चला। मुम्बई में विद्रोह कुचल दिया गया तो अन्य स्थानों के सैनिक निर्बल हो जाएँगे । इस बारे में तुम्हारी क्या राय है?   तुमने कौन सी कार्रवाई करने का निश्चय किया है ?’’    एचिनलेक ने पूछा ।
‘‘सर,  मेरा ख़याल है कि हम आक्रामक रुख अपनाएँ । इससे मुम्बई का विद्रोह दबा दिया जाएगा । मुम्बई का विद्रोह यदि टूट गया तो अन्य स्थानों पर विद्रोह को समाप्त करना कठिन नहीं होगा। हमें आक्रामक नीति का मौका दिया जाए और आक्रामक होने का दोष न लगे इसलिए सैनिकों को निहत्थे करके हिंसा के लिए प्रेरित किया जाए । कल से इन सैनिकों का दानापानी बन्द कर दिया है ।’’    बिअर्ड ने अपनी रणनीति बतलाई ।
‘‘तुम्हारी इस योजना पर विचार करके कल सुबह नौ बजे तक तुम्हें निर्णय बता दिया जाएगा ।’’   एचिनलेक ने फ़ोन बन्द किया ।



रात के ग्यारह बजे थे । अरुणा आसफ़ अली से मिलने गए सेंट्रल कमेटी के  सदस्य वापस लौटने लगे थे। पाण्डे, दत्त,  गुरु और अन्य सदस्य उनकी राह देख रहे थे । खान और मदन के उतरे हुए चेहरे देखकर वे आशंकित हो गए।
 ‘‘क्या हुआ?  मिलीं क्या वो ?’’   गुरु ने सबके दिलों की बात पूछ ली ।
‘‘न आने की वजह तो उन्होंने बताई ही नहीं उल्टे माँगपत्र देखकर सलाह दी,  माँगें प्रस्तुत करने में तुम लोगों ने गड़बड़ कर दी है । तुम्हारी माँगों को दो भागों में बाँटा जा सकता है; एक सेवा सम्बन्धी माँगें और दूसरी राजनीतिक माँगें । तुम राजनीतिक और सेवा सम्बन्धी माँगों को एक में न मिलाते हुए सिर्फ सेवा सम्बन्धी माँगों के पीछे लगो’’  खान ने निराशा से कहा ।
‘‘और तुम चुप बैठ गए ?’’   दत्त ने पूछा ।
‘‘नहीं, हमने उनसे साफसाफ कह दिया, हमारा संघर्ष स्वतन्त्रता के लिए है । सेवा सम्बन्धी माँगें दूसरे स्थान पर हैं।  स्वतन्त्रता प्राप्त हुए बगैर हमारी माँगें सच्चे अर्थों में पूरी नहीं होंगी यह हमें पता है । सबका समर्थन हमें प्राप्त हो इसलिए ये सेवा विषयक माँगें डाली गई हैं । इस पर उन्होंने फिर से सलाह दी,  तुम लोग शान्त रहकर अपनी सेवा सम्बन्धी माँगों के लिए संघर्ष करते रहो ।’’   मदन ने कहा ।
‘‘ये सलाह हम मान ही नहीं सकते थे । अब उनसे मिलने में कोई तुक नहीं है । हम लोग बड़ी आशा लेकर उनके पास गए थे, मगर उन्होंने हमें अधर में लटका दिया। सुबह वे मुम्बई से बाहर जाने वाली हैं । उन्होंने हमें सरदार पटेल से मिलकर उनसे सलाह लेने का मशविरा दिया ।’’  खान के चेहरे से निराशा छिप नहीं रही थी ।
‘‘ठीक है । तो अब अपना रास्ता हमें खुद ही ढूँढ़ना होगा । हम जिसे सूरज समझते थे,  वह सूरज नहीं था,  वह था दूसरे के प्रकाश में टिमटिमाता चाँद ।’’ दत्त समझा रहा था ।
‘‘आज अगर शेरसिंह मुक्त होते... किसी और के पास जाने की तब ज़रूरत ही नहीं थी ।’’    गुरु को शेरसिंह की याद आई ।
‘‘जो हुआ सो हुआ। अब उसके बारे में सोचने से कोई फ़ायदा नहीं । जहाज़ों के और बेसेस  के प्रतिनिधियों के आने के बाद हम अपनी व्यूह रचना निश्चित करेंगे ।’’  दत्त  ने  सुझाव  दिया  और  सब  लोग  विश्राम  करने  के  लिए  अपनीअपनी बैरेक में गए । मगर नींद किसी को भी नहीं आई ।



सुबह मुम्बई छोड़ने से पहले अरुणा आसफ़ अली ने पंडितजी को तार भेजा,  ''Naval strike tense, situation serious climaxing to a grim close. You alone can control and avoid tragedy. Request your immediate presence in Bombay.''
सुबह से घने बादल छाए थे । पूरे वातावरण में नीरव उदासी छाई थी। सरदार पटेल का फ़ोन सुबहसुबह खनखनाया,  ''Good morning, Sir.''  गवर्नर के पी.ए. ,  बटलर ने विशकिया ।
‘‘बोलो, क्या खबर है?   हमें फिर से पकड़ने का इरादा तो नहीं है ना सरकार का ?’’    पटेल ने हँसते हुए पूछा,   ‘‘सुबहसुबह फोन किया,  इसलिए पूछा ।’’
‘‘नहीं,  वैसी कोई बात नहीं है। मुम्बई के नौसैनिकों का विद्रोह बिगड़ता ही जा रहा है । कल सैनिक बेकाबू हो गए थे । अरुणा आसफ़ अली सैनिकों से मिली नहीं, यह अच्छा ही हुआ,  वरना परिस्थिति और बदतर हो जाती। उनकी माँगें देखी हैं  आपने ?’’   बटलर ने पूछा ।
‘‘नहीं अभी तक तो नहीं ।’’  सरदार ने कहा ।
‘‘उन्हें अधिक सुविधाएँ चाहिए,  ज़्यादा खाना चाहिए । ये सब हासिल करने के लिए उन्हें राष्ट्रीय पक्ष का समर्थन चाहिए । मुम्बई के गवर्नर साहब की यह राय है कि सेना सम्बन्धित प्रश्न उनके आन्तरिक प्रश्न हैं; सरकार उन्हें  अपने स्तर पर सुलझाएगी;  राष्ट्रीय दल इसमें हस्तक्षेप न करें । ऐसे हस्तक्षेप से परिस्थिति खतरनाक हो जाएगी । लीग इस विद्रोह को समर्थन नहीं दे रही है यह स्पष्ट हो गया है । कांग्रेस की क्या भूमिका है ?’’   बटलर ने पूछा ।
‘‘कांग्रेस उन्हें समर्थन नहीं देगी,  मगर उनकी समस्याओं का क्या ?  उन्हें यदि सुलझाया नहीं गया तो स्थिति नियन्त्रण से बाहर हो जाएगी ऐसा मेरा विचार है ।’’   पटेल ने कांग्रेस की भूमिका स्पष्ट की ।
‘‘ये सैनिक दूसरे महायुद्ध में साम्राज्य की खातिर लड़े हैं । उनकी बहादुरी और कर्तृत्व पर हमें नाज़ है । ये सैनिक साम्राज्य का एक हिस्सा हैं। उनकी समस्याएँ हम सुलझाने ही वाले हैं। शर्त बस यह है कि वे अपना संघर्ष वापस लें और फ़ौरन काम पर वापस आएँ ।’’   बटलर ने सरकार की भूमिका प्रस्तुत की,  ‘‘ये सब सामोपचार से हो जाए इसके लिए कांग्रेस सहायता करे ऐसी सरकार  की इच्छा है।‘’
‘‘कांग्रेस से किस प्रकार के  सहयोग की अपेक्षा है ?’’   पटेल ने पूछा ।
‘‘कांग्रेस  सैनिकों  पर  दबाव  डालकर  उन्हें  बिना  शर्त  काम  पर  लौटने  को कहे । उनकी समस्याएँ कानूनी मार्ग से हम सुलझाएँगे ।’’   बटलर ने आश्वासन दिया ।
 ‘‘कांग्रेस कोशिश करेगी ।’’
''Thank you very much, sir.'' बटलर ने फ़ोन बन्द किया।



सुबह के अखबारों  ने 19  फरवरी की  घटनाओं  की  जानकारी  घरघर  में पहुँचाई थी। कुछ समाचारपत्रों ने इस विद्रोह  के बारे में अरुणा आसफ़ अली की राय प्रकाशित की थी । उन्होंने कहा था,  ‘‘मुम्बई के करीब पन्द्रह हज़ार नौसैनिकों ने इतवार से भूख हड़ताल कर दी है । सैनिकों की माँगें उचित हैं। वेतन, विविध प्रकार के भत्ते, खाना,   सुविधाएँ आदि बातों में हिन्दुस्तानी एवं ब्रिटिश सैनिकों में जो भेदभाव है उसे दूर किया जाए यह उनकी माँग है । ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा  हिन्दुस्तानी  सैनिकों  के साथ जो  भेदभाव  किया  जाता  है  उसका  वे विरोध करते हैं । इन सैनिकों की आर्थिक और सेवा सम्बन्धी माँगों पर वर्तमान तनावपूर्ण राजनीतिक परिस्थिति का परिणाम हुआ है । सेना के नौजवान अब मतिमन्द व्यक्तियों  की  तरह  अंग्रेज़ों  की  दादागिरी  और  गालीगलौज  सहन  करने  को  तैयार नहीं   हैं ।’’
खान ने अरुणा आसफ अली के विचार पढ़े और दत्त से बोला, ‘‘अरुणा आसफ़ अली ने अपने विचार स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किये हैं। मगर हमारी स्वतन्त्रता सम्बन्धी माँगों के बारे में उन्होंने कुछ भी क्यों नहीं कहा है ?  और यदि उन्हें हमारे बारे में इतना अपनापन लग रहा था तो वे हमारा मार्गदर्शन करने, हमारा नेतृत्व स्वीकार करने आईं क्यों नहीं ?’’
‘‘उन्होंने हमारे स्वतन्त्रताप्रेम के बारे में अथवा स्वतन्त्रता विषयक हमारी माँगों के बारे में कुछ भी नहीं कहा है ।   इससे ग़लतफहमी होने की सम्भावना है ।  वैसा    हो  इसलिए  हमें  कुछ  करना  चाहिए । वे आईं क्यों नहीं,  इसकी  वजह तो वे ही जानें ।’’   दत्त ने  जवाब दिया ।
‘‘मुम्बई से प्रकाशित होने वाले और स्वतन्त्रता आन्दोलन का पक्ष लेने वाले फ्री प्रेस जर्नल   ने नौसैनिकों के विद्रोह पर सम्पादकीय लिखा था । अस्वस्थ नौदल (Not a Silent Navy) शीर्षक से इस सम्पादकीय में लिखा था,  ‘‘नौदल सैनिकों द्वारा निकाले गए जुलूस अर्थपूर्ण थे ।’’  सम्पादकीय में इन जुलूसों का राजकीय स्वरूप स्पष्ट करके आगे लिखा गया था, ‘‘इन सैनिकों ने राष्ट्रध्वज फहराते हुए राष्ट्रप्रेम के नारे लगाए ।’’   सम्पादकीय में दिल्ली में हवाईदल के सैनिकों की हड़ताल के तुरन्त बाद नौदल के सैनिकों द्वारा की गई हड़ताल और जुलूसों का सम्बन्ध राजनीतिक परिस्थिति से जोड़ा गया था । सम्पादकीय में आगे कहा गया था,  ‘‘आज़ाद हिन्द सेना के  जय हिन्द   इस नारे का सैनिक जिस खुलेपन से इस्तेमाल कर रहे थे,  उससे यह बात ध्यान में आती है कि उन्हें आज़ाद हिन्द सेना का केवल महत्त्व ही समझ में नहीं आया था,   बल्कि वे स्वयँ को भी बड़े गर्व से उसके सदस्य मान रहे थे ।’’
सैनिकों द्वारा आयोजित जुलूसों के बारे में सम्पादकीय में कहा गया था, ‘‘मुम्बई में सैनिकों द्वारा निकाले गए प्रदर्शन शायद राष्ट्रीय पक्षों के प्रदर्शनों से छोटे हों;  चाहे सैनिकों की हड़ताल और प्रदर्शन परिस्थिति को ध्यान में न रखते हुए  अथवा इसमें से कुछ अच्छा ही होगा,  ऐसी उम्मीद न रखते हुए किए गए हों;  फिर भी स्वतन्त्रता संघर्ष में यह घटना एक मील का पत्थर बन गई है । सैनिकों को राजनीतिक प्रभाव से दूर रखने के सरकार के अब तक के सभी प्रयास असफल हो गए हैं ।’’
‘‘देख, सरकार के खुशामदी अख़बारों ने विकृत समाचार दिया है ।’’ ‘गोंडवनका बैनर्जी जगदीश से कह रहा था ।
‘‘हाँ,  देखा है। टाइम्स ने तो यहाँ तक कह दिया है कि कल सैनिक पागलों के समान प्राणघातक हमले कर रहे थे।    असल में कल तो हम पूरी तरह संयमित थे। कल से रेडियो भी हमारे ख़िलाफ़ काँवकाँव कर रहा है। ये सब हमारी छवि को मलिन करने के लिए किया जा रहा है। यदि यह इसी तरह चलता रहा तो...!’’
‘‘मैं नहीं समझता कि यह प्रचार हमें बदनाम कर सकेगा। क्योंकि स्वतन्त्रता के समर्थक, सरकार विरोधी अख़बार सही खबरें दे रहे हैं और लोग इन्हीं अखबारों पर विश्वास करते हैं। फिर लोगों ने हमारे शान्तिपूर्ण जुलूस देखे हैं। इसलिए ग़लतफहमी होगी नहीं ।’’   बैनर्जी ने समझाया ।
‘‘तुम ठीक कह रहे हो ।’’  इतनी देर सारी चर्चा शान्ति से सुनने वाले यादव ने सहमति दर्शाते हुए कहा, ‘‘कांग्रेस का समर्थन मिलेगा ऐसा हम सोच रहे थे । मगर कल अरुणा आसफ़ अली मार्गदर्शन करने आर्इं ही नहीं। और उधर कांग्रेस के और देश के सर्वश्रेष्ठ एवं वन्दनीय नेता - महात्माजी ने हमारे विद्रोह पर असन्तोष व्यक्त किया है। उन्हें सैनिकों का यह काम पसन्द नहीं आया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि सैनिक यदि असन्तुष्ट हैं तो  वे नौकरी छोड़ दें’’
‘‘क्या महात्माजी को यह मालूम नहीं है कि सेना की नौकरी एक अनुबन्ध होती है। अनुबन्ध तोड़ने से सज़ा मिलती है। ठीक है। हम सज़ा भुगतने के लिए भी तैयार हैं। मगर इससे होगा क्या?  हज़ारों नौजवान नौकरी के लिए दरदर भटक रहे हैं। वे सेना में भर्ती हो जाएँगे और तब हमारे नौकरी छोड़ने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा । नयी भर्ती के कारण अंग्रेज़ी हुकूमत का हिन्दुस्तान में सैनिकीआधार ही उखड़ नहीं पायेगा,  इस बात का एहसास हमें था इसलिए हमने यह मार्ग चुना। मगर यह सब उस महात्मा से कौन कहे!’’  बैनर्जी के शब्दों से उसकी आन्तरिक पीड़ा झाँक रही थी ।
ठाणे के HMIS अकबर  का वातावरण कल से तनावपूर्ण था । तलवार  पर विद्रोह की ख़बर मिलते ही अकबर  के सैनिक जोश में नारे लगाते हुए बैरेक से बाहर निकले । अकबर  के कमांडिंग अफ़सर ने आपातकालीन उपाय के रूप में बेस  के लगभग चालीस गोरे सैनिक बाहर निकाले। उनके हाथों में लाइट मशीनगन्स देकर हिन्दुस्तानी सैनिकों को देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया।
‘‘कितनी देर हम यहाँ इसी तरह,  कैदियों की भाँति रहने वाले हैं ?   ये मुट्ठीभर गोरे  हम पाँच सौ  लोगों को बन्द करके रखते हैं,  इसका मतलब क्या हुआ ?’’ Able Seaman  रामलाल अपने साथियों से पूछ रहा था।
‘‘अरे, मगर उनके हाथों में मशीनगन्स हैं। फिर उन्हें Shoot at Sight  की ऑर्डर भी तो स्टीवर्ड ने दे रखी है ।’’   हाल ही में भर्ती हुआ हवासिंह बोला ।
‘‘रहने दो ना!  अरे,  एक मशीनगन हाथ में आ गई तो उन तीसचालीस लोगों पर काबू पाना मुश्किल नहीं है ।’’ रामलाल के दिमाग में  कुछ और ही विचार उमड़ रहे थे ।
‘‘मगर यह एक मशीनगन हाथ में आएगी कैसे ?’’ सोहन लाल ने पूछा ।
‘‘उसी के बारे में सोच रहा हूँ । मशीनगन वाले सैनिक हालाँकि चालीस हैं फिर भी वे सब एक साथ नहीं घूमते। यदि हम आठदस लोग एक गोरे को घेर लें तो मशीनगन छीनना मुश्किल नहीं है ।’’
‘‘और उस एक गोरे को बन्धक बनाकर अन्य मशीनगन्स और गोरे सैनिकों को अपने कब्जे में ले सकते हैं...’’ मोहन  लाल उत्साह से योजना बना रहा था ।
बैरेक के बाहर गश्त लगा रहे सैनिक को घेरकर उसकी मशीनगन पर कैसे काबू किया जाए यह निश्चित किया गया। इसके लिए जब वह चल रहा होगा तो उसके पीछे की ओर पत्थर, बोतलें आदि फेंककर उसका ध्यान विचलित किया जाए । वह पीछे घूमकर ढूँढ़ने लगेगा,  तब वह निश्चय ही बैरेक के सामने वाले आम के पेड़ के  नीचे से आएगा,   तब पेड़ पर छिपकर बैठे दो लोग अचानक उस पर हमला कर दें । उसी समय अन्य सैनिक उसे घेर कर उसे अपने कब्ज़े में लें । इसी तरीके से और एकदो को कब्जे  में लिया जाए ।  इस कार्रवाई की ज़िम्मेदारी रामलाल और हवासिंह ने ली ।
सुबह नौ बजे इस ज़बर्दस्त घातक चाल से  अकबर  के हिन्दुस्तानी सैनिकों ने तीन मशीनगनधारी गोरे सैनिकों को अपने कब्जे में ले लिया,  और इसके ज़ोर पर सैनिकों से मशीनगन्स छीन लीं । गोरे सैनिकों और अधिकारियों को बेससे भगा दिया और बेसपर अधिकार कर लिया । चालीस सैनिकों को बेस की सुरक्षा के लिए छोड़कर बाकी सैनिक रेल से तलवारकी ओर निकले । लोकल ट्रेन में सफ़र करते हुए वे नारे लगा रहे थे; लोकल के हर कम्पार्टमेंट में जाकर विद्रोह का उद्देश्य, उन्हें होने वाली तकलीफों, उनके साथ किये जा रहे अमानुष बर्ताव के बारे में मुसाफ़िरों को बता रहे थे।
गोंडवन  के सैनिकों ने भी तलवार  की ओर जाने की तैयारी कर ली । निकलने से पहले गोंडवन  पर अधिकार कर लिया;  सैनिकों के एक्शन स्टेशन्स निश्चित किए गए;  गोलाबारूद और हथियारों पर कब्जा करके उनका इस्तेमाल कब करना है इस बारे में निर्णय लिये गए और वे तलवार  की ओर निकले ।



तलवार   में मुम्बई और आसपास के जहाज़ों और नौसेना तल के सैनिक इकट्ठा हुए थे । आज सभी जहाज़ और सारे नौसेना तल पूरी तरह से हिन्दुस्तानी सैनिकों के कब्ज़े में थे । इन जहाज़ों पर और नौसेना तलों पर तिरंगे के साथसाथ कम्युनिस्ट और मुस्लिम लीग के झण्डे शान से फ़हरा रहे थे । सैनिक अब तक हिंसात्मक मार्ग से दूर थे । कुछ सैनिकों के अहिंसात्मक मार्ग का विरोध करने के बावजूद सैनिकों के नेता उन्हें अहिंसात्मक मार्ग पर रोके रखने में सफ़ल हो गए थे ।
सैनिकों के नारों से दिशाएँ गूँज उठी थीं । खान ने लाउडस्पीकर से सैनिकों को सम्बोधित किया। ‘‘सभी सैनिक परेड ग्राउण्ड पर जमा हो जाएँ । सभा आरम्भ होने वाली है ।’’
खान ने 19 तारीख की शाम से घटित हुई घटनाओं का जायज़ा लिया और गुरु को बोलने की दावत दी।
‘‘दोस्तो! गुरु बोलने लगा,   अंग्रेज़ सरकार के ख़िलाफ हमारे विद्रोह का आज का तीसरा दिन है। इन तीन दिनों में हमने जुलूस निकाले,  जहाज़ों और तलों पर कब्ज़ा किया और इस दौरान हमने अहिंसात्मक मार्ग का ही अवलम्बन कियाआप सब लोगों ने जो संयम दिखाया उसके लिए सेंट्रल कमेटी आप सबकी आभारी है’’ 
‘‘आज हमने मुम्बई में पूरी नौसेना पर अधिकार कर लिया है। इन जहाज़ों और तलों पर आज तिरंगा, लीग का और कम्युनिस्टों का - ऐसे तीन ध्वज फहरा रहे हैं। हम तमाम जनता से और प्रमुख राजनीतिक पक्षों से कहना चाहते हैं,  एक हो जाओ;  इस ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध एक हो जाओ।  यदि ऐसा हुआ तभी स्वतन्त्रता का सूरज जल्दी निकलेगा और हमारी इच्छानुसार हमें आज़ादी मिलेगी... वह अंग्रेज़ों की मेहरबानी नहीं होगी ।’’
‘‘हमने नौसेना पर किसी स्वार्थ की खातिर अधिकार नहीं किया है । हमें सत्ता में हिस्सेदारी नहीं चाहिए । हम स्वतन्त्र हिन्दुस्तान की नौसेना में आत्मसम्मान से सेवा करना चाहते हैं । अपने कब्ज़े में ली गई नौसेना राष्ट्रीय नेताओं के चरणों में अर्पण करना चाहते हैं । हम कांग्रेस के  अध्यक्ष से लेकर सभी पार्टियों के नेताओं से मिले, न्हें अपनी व्यथा सुनाई,   मार्गदर्शन करने की विनती की । अरुणा आसफ़ अली ने  मार्गदर्शन करना स्वीकार किया था,   मगर वे आई ही नहीं;  उल्टे हमें सलाह  दी  कि  राजनीतिक  और  सेवा  सम्बन्धी  माँगों  में  गड़बड़  मत करो;  तुम लोग सिर्फ सेवा सम्बन्धी माँगों के लिए संघर्ष करो और राजनीतिक माँगें छोड़ दो । क्यों ?  क्या  हम  इस  देश  के  कुछ  नहीं  हैं ?  इस  मिट्टी  से  हमारा  कोई  नाता  नहीं ? क्या हमारे सेना  में भर्ती होने का यह मतलब है कि हमने अपना सर्वस्व बेच दिया है ?  हम सेना में भर्ती क्यों हुए ?   इसलिए  कि  तुमने  फ़ासिज्म का भूत हमारे सामने खड़ा किया था । भूलो मत,    तुममें से ही कुछ नेता सेना में भर्ती के लिए सरकार की  मदद कर रहे थे । क्रान्ति के नारे लगाने वाले नेता,   जिन पर हमें विश्वास था,   उन्होंने भी हमें अकेला,   निराधार छोड़ दिया ।
‘’पूज्य महात्माजी भी इसके अपवाद नहीं हैं । महात्माजी ने हिंसक संघर्ष का कभी भी समर्थन नहीं किया । हमारा अब तक का संघर्ष अहिंसक ही तो है ना ? फिर महात्माजी ने हमें दूर क्यों धकेल दिया?  कल पुणे में सायंकालीन प्रार्थना में उन्होंने हमें और हमारे संघर्ष को  लताड़ा । उन्होंने कहा,  अहिंसक कृति का पहला सिद्धान्त यह है कि जोजो अपमान कारक है उससे असहयोग किया जाए। वे कहते हैं,  रॉयल इंडियन नेवी की स्थापना हम हिंदुस्तानियों के हित के लिए तो नहीं ना की गई । सैनिक अपनी स्थिति में सुधार चाहते हैं । मगर वह विद्रोह के माध्यम से कैसे सुधरेगी ?  सैनिक यदि असंतुष्ट हैं तो वे सेना की नौकरियाँ छोड़ दें ।
‘‘पूज्य बापूजी,   यहाँ एकत्रित मेरे पन्द्रह  हज़ार साथियों की ओर से  नम्रतापूर्वक आपसे निवेदन करना चाहता हूँ कि हमारा संघर्ष - असहकार का संघर्ष है । जबसे हमने  तलवार  में यह संघर्ष शुरू किया है तब से आज तक हम असहकार के मार्ग से ही जा रहे हैं । चूँकि  हम सैनिक हैं,   हम इसे विद्रोह कह रहे हैं । यह अहिंसक विद्रोह है ।
‘‘बापूजी,  आपने सरकारी नौकरों को नौकरियाँ छोड़ने के लिए कहा,  नौजवानों से पढ़ाई छोड़ देने को कहा! अनेकों ने आपके शब्द की इज़ज़त रख ली। क्या आज़ादी मिली?  चूँकि हम अनुबन्ध से बँधे हैं इसलिए हम नौकरी नहीं छोड़ सकेंगे। यदि हम अनुबन्ध तोड़ देते तो क्या होता ?  सरकार ने हमें जेल में डाल दिया होता। हमारे स्थान पर अन्य बेकार लोग सेना में भर्ती हो गए होते। यदि वे नहीं मिलते तो सरकार किराये के सैनिक लाकर स्वतन्त्रता आन्दोलन को दबा देती । आज हमें इण्डोनेशिया का आन्दोलन कुचलने के लिए ले ही जा रहे हैं ना ?   बापूजी,   हमने मुम्बई के नौसेना दल पर कब्जा किया है तो उसे आपके चरणों में समर्पित करने के लिए। अब हमारा नौसेना दल  रॉयल इण्डियन नेवीनहीं, बल्कि अब वह है  ‘‘इण्डियन नेशनल नेवी’,,,’’
गुरु के इस नामकरण के पश्चात् सैनिकों ने इण्डियन नेशनल नेवी  का जोश से जयजयकार किया।
‘‘मेरा विचार है कि ये कांग्रेस के नेता दुहरी नीति वाले हैं। एक तरफ़ तो इंटरव्यू देते समय हमारी प्रशंसा करते हैं; हम पर किये जा रहे अन्याय की भर्त्सना करते हैं;  हमारा संघर्ष न्यायोचित है ऐसा कहते हैं और दूसरी ओर हमें सलाह देते हैं! राजनीतिक माँगों को छोड़ने की सलाह देते हैं । ऐसी दोहरी भूमिका किसलिए?  मुझे तो अब  यकीन हो गया है कि वे हमारा साथ नहीं देंगे। अब समय आ गया है कि अपना निर्णय हम स्वयं लें; आत्मसमर्पण करेंगे या अन्तिम साँस तक लड़ते रहेंगे ?’’
सैनिकों ने फिर एक बार नारा लगाया,  ‘‘करेंगे या मरेंगे,   जय हिन्द!’’
गुरु के भाषण से वहाँ उपस्थित सैनिकों के मन सुलग उठे। गुरु के भाषण के बाद डलहौजीका एबल सीमेन चट्टोपाध्याय जोश से बोलने के लिए खड़ा हुआ। छोटी कदकाठी वाले चट्टोपाध्याय की आँखों में दृढ़ निश्चय था, आवाज़ में आवेश था,   एक तरह की मिठास थी ।
‘‘दोस्तो! आज जो मैं यहाँ खड़ा हूँ,  वह सुभाष बाबू की याद दिलाने के लिए और मेरा ख़याल है कि यह अप्रासंगिक नहीं है। सुभाष बाबू ने अपने देशबन्धुओं के लिए अन्तिम सन्देश हबीबुररहमान के पास दिया था । उन्होंने कहा  था, ‘‘देशबन्धुओं से कहना,  देश के लिए मैं आख़िरी साँस तक लड़ता रहा। अब कोई भी ताकत और अधिक समय तक देश को गुलाम बनाए नहीं रख सकती । हिन्दुस्तान स्वतन्त्र होगा - जल्दी ही ’’ , नेताजी द्वारा दिखाया गया मार्ग हम स्वीकार करते हैं या  नहीं ?’’
सैनिकों ने नेताजी के और जय हिन्द  के नारे लगाए। नेताजी के उल्लेख से उनमें नयी चेतना भर गई ।
‘‘हम लड़ने वाले हैं इस ज़ुल्मी अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ,  निपट अकेले । मुझे विश्वास है कि देश की स्वतन्त्रता का यह अन्तिम संग्राम होगा। यह संग्राम हम जीतेंगे । कांग्रेस के नेता अब बूढ़े हो गए हैं । उनकी लड़ने की ताकत ख़त्म हो गई है । आज कांग्रेस दुविधा में पड़ गई है । कांग्रेस आज सिर्फ लोगों को नैतिक उपदेश ही दे सकती है,   वरना आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों पर और अधिकारियों पर जब मुकदमें चलाए जा रहे हैं तो इस कारण उत्पन्न जनता के क्षोभ की ओर से कांग्रेस खड़ी रहती। कांग्रेस ने अपने मरियल प्रस्ताव में कहा था,  देश की स्वतन्त्रता की   ख़ातिर चाहे कितने ही गलत मार्ग से क्यों न हो,  खपने के कारण उन अधिकारियों,  स्त्रियों और पुरुषों को यदि सज़ा दी जाती है तो वह एक शोकांतिका होगी।  कांग्रेस का मत है कि आज हम भी ग़लत रास्ते पर हैं;  तो कांग्रेस हमारा मार्गदर्शन करने,  स्वतन्त्रता के इस संघर्ष में हमारा साथ देने आगे क्यों नहीं आती?  सन् ’42 के पश्चात् किस संघर्ष का आह्वान कांग्रेस ने किया है?  किसी भी नहीं। इसका कारण सिर्फ एक ही है,  ये नेता अब थक चुके हैं। इन  नेताओं के बारे में मेरे मन में नितान्त आदर है । उनके द्वारा किये गए त्याग के सामने,   उनके द्वारा झेली गई तकलीफों के सम्मुख मैं नतमस्तक हूँ । इतना होने पर भी मुझे ऐसा लगता है कि इन नेताओं को स्वतन्त्रता प्राप्ति का श्रेय चाहिए।  इसी कांग्रेस ने 1942 में घोषणा की थी,   करेंगे या मरेंगे  अब वही कांग्रेस ब्रिटिश सरकार से उनकी शर्तों पर समझौता करने चली है ।
‘’ यह मेरी राय नहीं,   बल्कि युद्धकाल के दौरान नेताजी द्वारा प्रकट की गई राय है और वह आज सत्य सिद्ध हो रही है। कांग्रेस के नेताओं को यह डर सता रहा है कि यदि  उनके जीवनकाल में स्वतन्त्रता प्राप्त न हुई तो इतिहास में उनका समावेश 'Also ran'  की फ़ेहरिस्त में हो जाएगा; लोग उगते सूरज को प्रणाम करेंगे और उन्हें भूल जाएँगे । भूलो मत, दोस्तो! हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता का श्रेय कांग्रेस,   महात्माजी और उनके अहिंसात्मक संघर्ष को जितना जाएगा, उससे कहीं ज़्यादा वह सुभाष बाबू,  उनकी आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों और  राजगुरु,   भगतसिंह, धिंग्रा,  चाफेकर जैसे शहीदों के बलिदानों को जाता है; वह उनके खून की कीमत है ।
‘‘दोस्तो! कोई भी वस्तु प्राप्त करने के लिए उसका मूल्य चुकाना पड़ता है । स्वतन्त्रता तो एक अनमोल रत्न है।  उसकी कीमत भी वैसी ही होगी! हम अपने खून से यह कीमत चुकाने को तैयार हैं,  हमें यह रत्न हासिल करना है। कांग्रेस और अन्य राष्ट्रीय नेता हमें समर्थन दें अथवा न दें,  फिर भी हम लड़ते रहेंगे। यदि वैसी नौबत आ गई तो अपने खून का समन्दर बनाकर अंग्रेज़ों की वापसी का  मार्ग बन्द कर देंगे। हम अकेले नहीं हैं । सेना के तीनों दलों में बेचैनी है। हमारे पीछेपीछे वे भी विद्रोह करके हमारा साथ देंगे ।’’
चट्टोपाध्याय द्वारा किए गए परिस्थिति के विश्लेषण से सभी सहमत थे ।
उसके हर वाक्य पर तालियाँ पड़ रही थीं,   नारे लगाए जा रहे थे ।
‘‘दोस्तों, हमारा संघर्ष हम अहिंसक ही रखेंगे;  मगर... मगर वक्त पड़े तो हमें हाथों में शस्त्र लेने के लिए भी तैयार रहना चाहिए ।’’  चट्टोपाध्याय ने अपना विचार रखते हुए भाषण समाप्त किया ।
‘‘पक्का कम्युनिस्ट है!’’
‘‘होगा कम्युनिस्ट,   मगर उसका एकएक अक्षर सही था ।’’
‘‘मगर कांग्रेस की आलोचना...’’
‘‘इसमें गलत क्या है?’’
‘‘हिंसक मार्ग अपनाना...’’
‘‘वैसी नौबत आई तो करना ही पड़ेगा ।’’
सैनिकों के बीच चल रही चर्चा खान के कानों में पड़ी और वह बेचैन हो गया ।
मतभेदों के कारण एकता तो नहीं टूट जाएगी ? यदि ऐसा हुआ तो तीन दिनों से चल रहा यह संघर्ष यहीं ख़त्म हो  जाएगा ।’’
इस ख़याल से वह डायस पर गया और उसने हाथ में माइक लिया ।
‘‘दोस्तो! कौनसी राजनीतिक पार्टी हमें समर्थन दे रही है, इस बारे में विचार न करते हुए हमें अब सिर्फ लड़ना है; आख़िरी दम तक लड़ना है... शायद अकेले ही। कल हमारे जुलूस को मुम्बई की जनता ने जैसा अद्भुत् समर्थन दिया,  उससे मुझे यकीन है कि मुम्बई की जनता हमें अकेला नहीं पड़ने देगी; वह हमारे साथ आएगी। आखिरी दम तक लड़ने का निश्चय करने के बाद उसके लिए किस मार्ग का अवलम्बन करना है,   व्यूह रचना कैसी होगी यह निश्चित करने का अधिकार,   मेरे ख़याल में,   हम सेंट्रल कमेटी को दें । कमेटी उचित निर्णय लेगी। शायद आप इससे सहमत होंगे ।’’
खान की इस अपील के साथसाथ मंज़ूर है,  मंज़ूर है   यह एक ही आवाज़ गूँजी ।
‘‘यदि हमारी एकता अटूट रही और हमारा बर्ताव अनुशासित रहा तभी हमारी विजय होगी...’’
खान का वाक्य अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि एक हिन्दुस्तानी अधिकारी भागते हुए आया और डायस पर चढ़ गया।
‘‘मैं सब-लेफ्टिनेंट जोगिंदर अभी,  इसी क्षण से तुम्हारे साथ आ रहा हूँ । क्योंकि यह संघर्ष स्वतन्त्रता के लिए है और एक हिन्दुस्तानी होने के नाते इस संघर्ष में शामिल होना मैं अपना कर्तव्य मानता हूँ। मैं वाइसरॉय कमीशन  का ये जुआ उतारकर फेंकता हूँ,’’  और उसने कैप फेंककर कन्धों पर टंकी स्ट्राइप्स उखाड़ फेंकी और नारा लगाया, ‘‘जय हिन्द!’’
खान ने इसे शुभ शगुन समझा। उसने जोगिंदर का स्वागत किया। सभा समाप्त हुई तो ग्यारह बज चुके थे। बाहर से आए हुए सैनिकों में से अनेक लोग तलवार   में ही मँडराते रहे ।



दिल्ली में लॉर्ड एचिनलेक आज़ाद से पूर्वनियोजित मीटिंग की तैयारी कर रहा था। अलगअलग शहरों से प्राप्त हुई सुबह की रिपोर्ट्स का वह अध्ययन कर रहा था। मुम्बई से प्राप्त रिपोर्ट में रॉटरे ने लिखा था,  ‘‘कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेता विद्रोह से दूर हैं । सरदार पटेल मुम्बई में हैं फिर भी सैनिक अब तक उनसे मिले नहीं हैं। विश्वसनीय सूत्रों से ज्ञात होता है कि सरदार किसी भी हालत में समर्थन नहीं देंगे,   अरुणा आसफ़ अली के पल्ला झाड़ लेने के बाद अन्य समाजवादी नेता संघर्ष को कहाँ तक समर्थन देंगे इस बारे में सन्देह है ।’’
सिंध के गवर्नर से प्राप्त रिपोर्ट में कहा गया था,   ‘‘विद्रोही सैनिक यदि कांग्रेस तथा लीग के नेताओं से मिले भी हैं, तो भी उनसे समर्थन प्राप्त करने में असफल रहे हैं ।’’
सुबह की रिपोर्ट में सैनिकों के विद्रोह के बारे में महात्माजी द्वारा पुणे में व्यक्त राय भी थी । महात्माजी का समर्थन नहीं;  मतलब विद्रोह आधा लड़खड़ा गया ।  एचिनलेक ने अपने आप से कहा।
 अब इस विद्रोह को कुचलना मुश्किल नहीं है। सैनिकों का विद्रोह अपने स्वार्थ के लिए है,  वे हिंसा पर उतर आए हैं - ऐसा झूठ प्रचार माध्यमों की सहायता से सच  कहकर फैलाना  चाहिए ।  वह खुश था,  उसने घड़ी की ओर देखा।  दस बजने में पाँच मिनट कम थे । शोफ़र ने गाड़ी तैयार होने की सूचना दी ।
ठीक दस बजे लॉर्ड एचिनलेक पार्लियामेंट हाउस पहुँचा,  आज़ाद उसकी राह ही देख रहे थे। एचिनलेक के चेहरे पर हल्कीसी मुस्कान थी। अब आने दो चर्चा के लिए,  तुरुप के सारे पत्ते मेरे हाथों में हैं ।  मगर फ़ौरन उसने अपने आप से कहा, ‘सावधान’, उसके अंतर्मन ने उसे सावधान किया, ‘अधिकार का रोब दिखाकर, तुरुप के पत्ते दिखाने से पूरा खेल मटियामेट हो जाएगा । रोब दिखाना नहीं है,   मीठी आवाज़ में  बात करना है, विश्वास निर्माण करना है और फिर असावधानी के एक क्षण में  धोबी पछाड़ देना है ।
पहले कुछ मिनट मौसम की बातें होती रहीं ।
‘‘आपको पता चल ही गया होगा ?’’   एचिनलेक ने शुरुआत की।
‘‘किस बारे में ?’’
‘‘कल प्राइम मिनिस्टिर एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में घोषणा की है कि हिन्दुस्तान में कैबिनेट मिशन भेजा जाएगा ।’’  एचिनलेक ने एक गहरी साँस छोड़ी ।  ‘‘अब शायद हमारी यहाँ की हुकूमत ख़त्म हो जाएगी। जो चार दिन बचे हैं,  वे शान्ति से गुज़र जाएँ यही इच्छा  है!’’  आवाज़ की धूर्तता छिपाते हुए एचिनलेक ने कहा ।
तीन मन्त्रियों के शिष्टमण्डल के बारे में आज़ाद को सूचना मिली थी। अंग्रेज़ों को इतनी जल्दी देश छोड़कर जाना पड़ेगा,  ऐसा लगता नहीं था । एचिनलेक की बातों से ऐसा लग रहा था कि वह वक्त आ गया है।
स्वतन्त्रता हमने प्राप्त की और अहिंसा तथा सत्याग्रह के मार्ग से प्राप्त की ऐसा गर्व से कह सकेंगे,’  आज़ाद के मन में ख़याल तैर गया।  मगर नौसेना का विद्रोह?  अगर हिंसा के मार्ग पर चला गया तो... नहीं,  कांग्रेस को इस विद्रोह से दूर ही रखना है ।   उन्होंने मन में  निश्चय किया ।
‘‘मुम्बई में नौसैनिकों द्वारा मचाई गई हिंसा के बारे में आपको पता चला ही होगा। हम बड़े संयम से परिस्थिति से निपट रहे हैं । कल सैनिकों ने दुकानदारों से,  विशेषत:  विदेशी दुकानदारों से सख़्ती से दुकानें बन्द करवार्इं।  इसके लिए उन्होंने हिंसा का सहारा लिया। दो कॉन्स्टेबल्स को बेदम मारा । आज वे अस्पताल में एडमिट हैं । अंग्रेज़ों के प्रति उनके गुस्से को मैं समझ सकता हूँ;  मगर अमेरिका ने उनका क्या बिगाड़ा है?  उन्होंने अमेरिका का राष्ट्रीय ध्वज भी जला दिया...’’
एचिनलेक पलभर को  रुका।  वह आज़ाद के चेहरे के भाव परख रहा था ।
‘‘ये मुझे पता चला था,  मगर ये सब इस हद तक पहुँच जायेगा होगा ऐसा सोचा नहीं  ’’  आज़ाद ने चिन्ता के सुर में कहा ।
सैनिकों द्वारा अमेरिकन कोन्सुलेट से माँगी गई माफी,   खान द्वारा सैनिकों से शान्त रहने की और अहिंसा के मार्ग पर चलने की अपील - इसके बारे में धूर्त एचिनलेक ने कुछ भी नहीं कहा था । उसने सैनिकों का सिर्फ काला पक्ष ही दिखाया था ।
‘‘कांग्रेस की इस विद्रोह की बाबत क्या नीति रहेगी ?’’   एचिनलेक ने पूछा ।
आज़ाद को इस  सवाल का जवाब देने में ज़्यादा सोचना ही नहीं पड़ा ।
‘‘कांग्रेस इस विद्रोह का समर्थन न करे ऐसा मेरा मत है,   क्योंकि इन सैनिकों ने विद्रोह के बारे में कांग्रेस को कोई पूर्व सूचना नहीं दी थी । और दूसरा कारण यह कि  सैनिकों द्वारा अपनाया गया मार्ग कांग्रेसी विचारधारा के विरुद्ध है’’
 एचिनलेक के चेहरे पर समाधान था । अपेक्षित उत्तर उसे मिल गया था ।
मगर आज़ाद के चेहरे पर शरारती हँसी थी। वे एचिनलेक की ओर देखते हुए बोले,  ‘‘जो मैंने कहा,  वह मेरा मत था,  अपने सहकारियों के विचार जानना भी तो ज़रूरी है। अगर मुझे इस सम्बन्ध में सरकार की भूमिका का पता चला तो मैं उसे प्रस्तुत कर सकूँगा ।’’
एचिनलेक ने एक गहरी साँस ली,  पलभर  को कुछ विचार किया और धीमी आवाज़ में कहना शुरू किया:
‘‘हमारी इस सम्बन्ध में भूमिका स्पष्ट है। ये सैनिक हमारे हैं। यदि कोई नादान मेमना राह भूल जाए तो उसे अकेला न छोड़कर रेवड़ में वापस लाना हमारी नीति है । मुम्बई के फ्लैग ऑफिसर एडमिरल रॉटरे इतवार से सैनिकों से मिल रहे हैं;  बातचीत करने की अपील कर रहे हैं,  मगर सैनिक कोई जवाब ही नहीं दे रहे। यदि सैनिक   अपनी राजनीतिक माँगें छोड़ने को तैयार हों तो हम उनकी सभी माँगों पर सहृदयता से विचार करेंगे। कांग्रेस इससे दूर रहने वाली है - यह अच्छी बात है। यदि अन्य पार्टियाँ सैनिकों को समर्थन देने के लिए आगे आएँगी तो हम उनसे कहेंगे कि यह हमारा अन्दरूनी मामला है । इसमें हस्तक्षेप हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।’’    उनकी आवाज़ में अब दहशत थी ।
‘‘अगर कांग्रेस सैनिकों को काम पर लौटने की सलाह देती है तो क्या उन्हें काम पर हाज़िर कर लिया जाएगा ?’’   आज़ाद ने पूछा। ‘‘दूसरी बात यह कि काम पर लौटे हुए सैनिकों पर कोई दोषारोपण न किया जाए और उनकी सेवा सम्बन्धी समस्याओं को तत्परता से सुलझाया जाए,  वरना...’’
‘‘हमें इस प्रश्न को देर तक लटकाए नहीं रखना है । जैसे ही सैनिक काम पर लौटते हैं, हम चर्चा आरम्भ कर देंगे। हमें इस प्रश्न को सामोपचार से सुलझाना है। मेरे अधिकार क्षेत्र में  जो कुछ भी सम्भव है, मैं करूँगा।’’   एचिनलेक ने जवाब दिया ।
मीटिंग खत्म हो गई । ज़ाद और एचिनलेक दोनों खुश थे । बाहर निकलतेनिकलते आज़ाद ने निश्चय किया कि सैनिकों से काम पर लौटने के लिए अपील करेंगे;  और एचिनलेक ने अब तक का सुरक्षात्मक रुख छोड़कर आक्रामक व्यूह रचना करने का निर्णय लिया ।
लॉर्ड एचिनलेक ने पार्लियामेंट हाउस से ही जनरल बिअर्ड से सम्पर्क किया और उसे सूचित किया। उसकी योजना के सम्बन्ध में यथोचित निर्देश देकर विशेष विमान द्वारा फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग रॉयल इण्डियन नेवी, वाइस एडमिरल गॉडफ्रे को मुम्बई भेजने की सूचना दी। विद्रोह कुचलने की ज़िम्मेदारी अब गॉडफ्रे को सौंपी गई है, यह भी बताया।



सेंट्रल कमेटी की बैठक शुरू हुई। आज की बैठक में पैंतालीस प्रतिनिधि उपस्थित थे। उपस्थित सदस्यों के चेहरों पर आत्मविश्वास था। आसमान से बादल और सैनिकों के मन की निराशा कभी की छँट चुकी थी ।
‘‘अरुणा आसफ़ अली ने सूचना दी है कि राजनीतिक माँगें छोड़कर अन्य सेवा सम्बन्धी माँगों के लिए बातचीत की जाए। इसके बारे में सबसे पहले चर्चा कर ली जाए ऐसा मेरा विचार है,’’   चट्टोपाध्याय ने सुझाव दिया।
‘‘बातचीत के मार्ग का हम अभी से विचार न करें । हालाँकि राष्ट्रीय नेता हमारे साथ नहीं हैं,  फिर भी जनता का समर्थन निश्चित ही हमें मिलेगा। इसी समर्थन के बल पर हम संघर्ष करेंगे। बातचीत के मार्ग पर विचार करना सैनिकों के धैर्य और उनकी ज़िद को तोड़ने जैसा होगा।‘’ दत्त ने अपना मत रखा।
''Let us hope for the best and prepare for the worst!'' खान ने कहा।
‘‘सेवा सम्बन्धी माँगें चाहे एक बार हम छोड़ भी दें,  मगर राजनीतिक माँगें छोड़ेंगे तो नहीं,  हाँ,  एकाध और माँग भी उसमें जोड़ देंगे। हमें इंडोनेशिया में चल रहे स्वतन्त्रता संग्राम को नेस्तनाबूद नहीं करना है,  इसलिए हिन्दुस्तानी सेना को इंडोनेशिया से बाहर निकालना ही चाहिए,  यह हमारी माँग है। हिन्दुस्तान में जो सरकार फिलहाल अस्तित्व में है वह अवैध मार्ग से प्रस्थापित की गई है। जिस सरकार को जनता का समर्थन प्राप्त नहीं है उसे हटाने के लिए लड़ने का, विरोध करने का नैसर्गिक और नैतिक अधिकार है । उसका उपयोग करने वाले नागरिकों को बन्दी बनाने का अधिकार इस सरकार को नहीं है। सरकार को इन राजनीतिक कैदियों को मुक्त करना ही चाहिए ।’’ खान ने राजनीतिक माँगों का स्पष्टीकरण देते हुए उनका महत्त्व बताया ।
‘‘तीसरी माँग,   हिन्दुस्तान छोड़ो   होनी   चाहिए,’’   पाण्डे ने माँग की जिसका अनेक सदस्यों ने समर्थन किया ।
‘‘हमारी पहली दो  माँगें ही इस तरह की हैं कि उनको पूरा करने का मतलब होगा अंग्रेज़ों द्वारा हिन्दुस्तान छोड़ने की तैयारी आरम्भ करना,’’   खान ने स्पष्ट किया ।
‘‘आज,  जब यह धीरेधीरे स्पष्ट हो रहा है कि राष्ट्रीय नेता हमें समर्थन नहीं देंगे,  सरकारी प्रसार माध्यम हमारे विरुद्ध प्रचार किये जा रहे हैं,  फिर भी हमें सरदार पटेल तथा अन्य राष्ट्रीय नेताओं से मिलना चाहिए ऐसा मेरा विचार है ।’’  गुरु अपनी राय दे रहा था, ‘‘यह हमें करना चाहिए जिससे यदि कल हमें मजबूरी में संघर्ष करना पड़ा तो हम कह सकेंगे कि हम संघर्ष नहीं चाहते थे;  हम राष्ट्रीय नेताओं से मार्गदर्शन करने की विनती कर रहे थे, पर उन्होंने हमारा साथ नहीं दिया ।’’
गुरु की यह राय सबने मान ली और सेंट्रल कमेटी की भिन्नभिन्न उपसमितियाँ बनाई गईं ।



‘‘सैनिकों की हिंसा के लिए किस प्रकार प्रवृत्त किया जाए, पहले यह देखो और  फिर धीरेधीरे आक्रामक रुख अपनाओ। मगर एक बात का ध्यान रखो – राष्ट्रीय पार्टियों और उनके नेताओं को यही प्रतीत होना चाहिए कि सैनिकों ने ही सरकार को हिंसा पर मजबूर किया।’’  एचिनलेक ने निकलतेनिकलते गॉडफ्रे को सूचनाएँ दी थीं।
‘‘वक्त पड़े तो सेना का इस्तेमाल करने से पीछे न हटना,  इसके लिए  सैन्यबल उपलब्ध करवाने की ज़िम्मेदारी जनरल बिअर्ड को सौंपी है। उससे सलाहमशविरा करके आगे की व्यूहरचना निश्चित करना।’’




गॉडफ्रे मुम्बई में उतरा तो इसी निश्चय के साथ कि वह इस तूफ़ान का सामना करके सफ़लतापूर्वक उसे वापस फेर देगा। गॉडफ्रे ने आज तक अनेक तूफानों का सफ़लतापूर्वक सामना किया था,  मगर यह तूफ़ान अलग ही तरह का था – उसकी परीक्षा लेने वाला!
मुम्बई पहुँचते ही उसने तुरन्त मुम्बई के नौसेना तलों एवं जहाज़ों के कमांडिंग ऑफिसर्स की मीटिंग बुलाई और 18 तारीख से हुई घटनाओं को समझ लिया ।
‘‘किंग द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा अपमानकारक थी और देश की मौजूदा परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए उसे ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए था ।’’   रॉटरे के इस मत से गॉडफ्रे ने सहमति जताई ।
‘‘तुमने कमांडिंग ऑफ़िसर बदल दिया यह अच्छा किया। मगर मुझे एक बात बताओ,  क्या यह विद्रोह पूर्व नियोजित था ?’’  गॉडफ्रे ने पूछा ।
‘‘नहीं,   मुझे ऐसा नहीं लगता। एक चिनगारी गिरी जिससे आसपास की सूखी घास भी जलने लगी,   बस इतना ही!’’    रॉटरे ने जवाब दिया ।
‘‘आग बुझाते समय हम जिस सिद्धान्त का प्रयोग करते हैं,  उसी को यहाँ लागू करना है ।’’
‘‘मतलब ?’’
‘‘आग पकड़ सकें ऐसी चीजें दूर हटाएँ;  ऑक्सीजन की सप्लाई बन्द करें और तापमान कम करें। यहाँ भी हमें बस यही करना है सैनिक यदि इकट्ठे हुए तो उनकी ताकत बढ़ेगी और आग भड़केगी,  इसलिए पहले सैनिकों के गुट बनाकर उन्हें अलगअलग स्थानों पर ठूँस दें;  राष्ट्रीय नेताओं,  अर्थात् ऑक्सीजन सप्लाई करने वालों को सैनिकों से दूर रखने का काम चल ही रहा है। किसी एक गुट की छोटीमोटी माँगें मान्य करके उनके पाल की हवा ही निकाल लें ।’’
गॉडफ्रे ने लाइन ऑफ एक्शन समझाई ।
‘‘हम कोशिश करेंगे। मगर मुझे ऐसा लगता है कि हमें हथियारों का इस्तेमाल करना चाहिए ।’’  गॉडफ्रे की योजना के बारे में रॉटरे आशंकित था ।
‘‘हमें एकदम आक्रामक नहीं होना है,  मगर उन्हें ऐसा सबक सिखाना है कि  bastards दुबारा विद्रोह का नाम तक नहीं लेंगे।’’ गॉडफ्रे की नीली आँखों में चिढ़ साफ़ नज़र आ रही थी । ‘‘सैनिकों को अपनीअपनी बेस  पर फ़ौरन पहुँचने की सूचना देंगे। इसके लिए ट्रकों की व्यवस्था करें। वक्त पड़ने पर सैनिकों को ट्रकों में ठूँसकर उनके अपनेअपने जहाज़ों और बेसेस पर पहुँचा देंगे ।’’
‘‘यदि सैनिकों ने विरोध किया तो ?’’   रॉटरे ने सन्देह व्यक्त किया।
 ‘‘यदि ऐसा होता है तो बड़ी अच्छी बात है,  कुत्ते को पागल बताकर गोली चलाना... सैनिकों को बलपूर्वक ले जाएँगे; और जहाज़ों पर तथा बेसेस  पर फ़ौरन पहरे लगा देंगे।  उन्हें निहत्था कर देंगे।’’  गॉडफ्रे की योजना पर रॉटरे मन ही मन खुश हो  गया।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Vadvanal - 23

  ‘‘ कल की मीटिंग में अनेक जहाज़ों और नाविक तलों के प्रतिनिधि उपस्थित नहीं थे। उनकी जानकारी के लिए ; और कोचीन , कलकत्ता , कराची , ...