''Let's go back to our
barracks.'' एक–एक का हाथ पकड़–पकड़कर खान और कुछ सैनिक उत्तेजित सैनिकों
को मना रहे थे।
‘‘दो मिनट खत्म हो गए हैं। अब मैं तीन तक गिनती
करूँगा।’’ जेम्स ने चेतावनी दी।
‘‘एऽऽक! ’’
खान ने फिर मनाया। ‘‘गोलीबारी की नौबत न आने दो, कृपया
पीछे हटो... ।’’
कुछ सैनिक खान की मिन्नतों से प्रभावित होकर
बैरेक्स में वापस लौटने लगे थे, मगर उनका मन बहुत उत्तेजित हो रहा था। उनकी
आँखों में खून उतर आया था, दिल में दबी हुई नफ़रत लावा बनकर बाहर निकलेगी, ऐसा भय महसूस हो रहा था। इस नफरत को निकालने के
लिए वे वापस लौटते हुए खिड़कियों को, दरवाजों को ज़ोर–ज़ोर से पटक रहे थे, हाथों से काँच फोड़ रहे थे। मगर करीब हज़ार–बारह
सौ सैनिक मेन गेट के पास खड़े होकर जेम्स
को चुनौती दे रहे थे ।
खान को यकीन हो गया कि गोलीबारी अटल है। पल भर
में गोलीबारी शुरू हो जाएगी और फिर... तड़पते
हुए हज़ारों सैनिक... हिंसा, कत्लेआम... सेना
में भी और शहर में भी... नेताओं पर दोषारोपण... सिर्फ
विचार मात्र से उसे ऐसा लगा कि उसके
चारों ओर की हर चीज़ गर–गर
घूम रही है; दिमाग में हज़ारों बिच्छुओं के डंकों की वेदना महसूस
हुई। उसने कसकर आँखें बन्द कर लीं। उसे समझ में ही नहीं आया कि क्या हो रहा है और वह नीचे गिर गया ।
‘‘खान गिर गया... खान
बेहोश हो गया!’’ चार–पाँच
सैनिक चिल्लाए ।
कुछ सैनिकों ने खान को उठाया और वे बैरेक की ओर
चले। खान को हुआ क्या है, यह
जानने के लिए गेट के निकट खड़े सैनिक भी पीछे–पीछे आए और गोलीबारी टल गई।
रात को साढ़े आठ बजे के बाद जेम्स मेन गेट खोलकर
खाद्यान्नों का ट्रक अन्दर बेस
में ले गया, मगर सैनिकों का विरोध
देखकर उसे वह ट्रक वापस बाहर लाना पड़ा।
धूर्त जेम्स ने ट्रक और अनाज के बोरों का इस्तेमाल गोलीबारी के
लिए बचाव
के रूप में किया।
खान ने कैसेल बैरेक्स के सारे सैनिकों को
इकट्ठा किया।
“दोस्तों! तुम्हारी चिढ़, तुम्हारा गुस्सा मैं समझ सकता हूँ। वह स्थिति
ही ऐसी थी कि तुम्हारी जगह यदि कोई और होता
तो अपना नियन्त्रण खो बैठता। हम सैनिक हैं। तुमने अपने आप पर काबू रखा और गोलीबारी
टाली इसलिए मैं तुम्हें बधाई देता हूँ, ’’
खान ने तारीफ़ के सुर में कहा।
‘‘ध्यान रखो। रात बैरन है और हमारी सफ़लता की
दृष्टि से यह रात बड़ी महत्त्वपूर्ण है।
हमें जागरूक रहना ही होगा। ये गोरे कब और किधर से अन्दर घुसकर कैसल बैरेक्स को
दूसरा जलियाँवाला बाग बना दें, इसका कोई भरोसा नहीं। हम मौत से नहीं डरते। जब
सेना में भर्ती हुए थे, तभी अपने पिंड के लिए चावल चूल्हे पर रखकर ही
घर छोड़ा था। हम मरेंगे, तो लड़ते–लड़ते। हम आक्रामक नहीं हैं; यह हमारे देश का इतिहास है, मगर
हम पर आक्रमण हुआ तो हम करारा जवाब देंगे। अब हमें इस दृष्टि से तैयारी करनी होगी।
सभी गेट्स पर रात के पहरे बिठाओ। गेट्स अन्दर से बन्द कर लो।’’ खान
ने सुझाव दिया।
‘‘अगर रात को अचानक हमला हुआ तो?’’ मणी
ने पूछा।
‘‘करारा जवाब दो!’’ खान
ने कहा।
‘‘हथियारों का इस्तेमाल...’’ हरिचरण
ने पूछा।
‘‘चींटी की मौत न मरो। वक्त पड़े तो हथियारों का
इस्तेमाल करो!’’ खान ने इजाज़त दी। सैनिकों ने नारे लगाए; पहरे
लगाए गए और कैसल बैरेक्स में शान्ति छा गई।
कैसल बैरेक्स के साथ ही ‘तलवार’ के
चारों ओर भी भूदल सैनिकों का घेरा पड़ा था। प्लैटून कमाण्डर्स को बिअर्ड ने आदेश
दिया था, ‘‘ ‘तलवार’ के चारों ओर का घेरा अधिक कड़ा होना चाहिए।
किसी भी सैनिक को बाहर मत जाने देना। याद रखो। 1857 के बाद सैनिकों ने पहली बार अंग्रेज़ी सरकार को
चुनौती दी है, वह इसी ‘तलवार’ से।
विद्रोह के सारे सूत्र सेंट्रल कमेटी के हाथों में है, जो ‘तलवार’ में
है। अन्दर उपस्थित सैनिक यदि प्रतिकार की कोशिश करें तभी जवाब देना। शान्त सैनिकों
को न कुरेदना!’’
‘तलवार’ के
सैनिकों को यह जानने की उत्सुकता थी कि बाहर क्या हो रहा है; और घेरा डालने वाले सैनिक भी यह जानने के लिए
उत्सुक थे कि अन्दर क्या हो रहा है।
‘‘यदि हमने भूदल और हवाईदल के सैनिकों से सम्पर्क
करके उन्हें विद्रोह के लिए प्रवृत्त किया होता तो आज यह घेरा न पड़ा
होता!’’
दत्त अपने मन की टीस व्यक्त कर रहा था।
‘‘तुम ठीक कह रहे हो। 18 तारीख से दास, यादव, राव... ऐसे पाँच–छह सैनिक हवाई दल और भूदल के बेसेस पर जाकर
सम्पर्क करने की कोशिश कर रहे थे। मगर 18
तारीख की दोपहर से ही अंग्रेज़ों ने बाहर की दुनिया का इन बेसेस से सम्पर्क काट
दिया था। गेट पर गोरे सिपाहियों का पहरा था, वे किसी भी हिन्दुस्तानी को अन्दर नहीं जाने दे
रहे थे; उसी प्रकार आपातकाल की झूठी गप मारकर अन्दर से
किसी को बाहर भी नहीं आने दे रहे थे ।’’ गुरु ने जवाब दिया।
‘‘ये सब हमें दिसम्बर से शुरू करना चाहिए था। कम से कम शेरसिंह की गिरफ़्तारी
के बाद ही सही...’’ दत्त ने कहा।
‘‘गलती तो हो गई!’’ गुरु
की आवाज़ में अफ़सोस था। ‘‘अब जो
सैनिक घेरा डाले हुए हैं,
उनसे बात करें तो?’’ गुरु ने सुझाव दिया।
‘‘कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है। वे भी तो इसी
मिट्टी के सपूत हैं। उनके मन में भी स्वतन्त्रता की आस तो होगी; हो
सकता है वह क्षीण हो, हम उसे तीव्र करेंगे।’’ दत्त
के मन में आशा फूल रही थी।
गुरु के साथ दत्त मेन गेट की ओर निकला।
गेट बन्द था। गेट के बाहर तीन संगीनधारी सैनिक
खड़े थे। तीनों को देखकर गुरु बोला, ‘‘मराठा रेजिमेंट के लगते हैं।’’
उन्हें गेट के पास खड़ा देखकर संगीनधारी हवलदार
साळवी आगे बढ़ा। ‘‘आपस में काय को खाली–पीली झगड़ते हो भाई; अरे
हिन्दू भी इसी मिट्टी का और मुसलमान भी इसी मिट्टी का। दोनों को भी इधर ही रहना
है। फिर झगड़ा काय को?’’ साळवी समझाते हुए बोला।
साळवी का प्रश्न गुरु और दत्त की समझ में ही
नहीं आया।
‘‘तुम्हें किसने बताया कि हिन्दू–मुसलमानों में झगड़ा हुआ है और हम एक दूसरे से
लड़ रहे हैं?’’ दत्त ने अचरज से पूछा।
चालीस बरस का, रोबीले
चेहरे, घनी
मूँछोंवाला सूबेदार कदम आगे आया। उसने साळवी से पूछा, ‘‘क्या
कहते हैं रे ये बच्चे, ज़रा समझा तो ।’’
‘‘उनमें हिन्दू–मुसलमानों का झगड़ा नहीं है, कहते
हैं, मेजर
सा’ब।’’ साळवी
ने जवाब दिया।
‘‘पर हमें तो साहब ने ऐसा हीच बताया... झूठ
बोला होगा। गोरा सा’ब बड़ा चालू! अब इधर आकर पाँच घण्टा हो गया, मगर
है क्या कहीं कोई गड़बड़? सब कुछ कैसा बेस्ट है।’’ कदम
अपने आप से पुटपुटाते हुए बोला।
गुरु ने और दत्त ने उन्हें ‘नेवी डे’ से घटित घटनाओं के बारे में बताया। कदम ने
सिगरेट का पैकेट निकाला और दोनों के सामने बढ़ाते हुए बोला, ‘‘हमें
तो ये सब मालूम ही नहीं था।’’
‘‘आज हमारी सिगरेट पिओ! देखो ये सिगरेट कैन्टीन
में एक रुपये में मिलती है, जब कि गोरों को पाँच आने में।’’ पाँच
सौ पचपन का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए दत्त बोला। महँगी सिगरेट देखकर साळवी और कदम खुश
हो गए।
‘‘हमें नहीं मिलती ऐसी भारी सिगरेट,’’ कदम
कुरबुराया। ‘‘ये तो सिर्फ़ सा’ब को मिलती है।’’
‘‘मतलब, देखो! ये गोरे भूदल और नौदल में भी फर्क करते
हैं ।’’ दत्त
गोरों का कालापन दोनों के मन पर पोतने की कोशिश कर रहा था।
दत्त और गुरु इतनी देर तक क्या बातें कर रहे
हैं, किससे
बातें कर रहे हैं, यह जानने के लिए उत्सुकतावश एक–एक करके कई सैनिक गेट के पास आ गए। गाँववालों
ने एक–दूसरे को पहचाना और गप्पें होने लगीं ।
‘‘दिन के तीन बजे से यहाँ खड़े हैं, मगर एक कप पनीली चाय तक नहीं मिली।’’ मराठा
रेजिमेंट के चार–पाँच सैनिकों ने कदम से शिकायत की।
‘‘पिछले तीन दिनों से हमें राशन ही नहीं मिला।
हमारे पास चाय, शक्कर, दूध... कुछ
भी नहीं है। मगर चिन्ता न करो। हममें से दो को बाहर जाने दो, हम
चाय का बन्दोबस्त करते हैं।’’ दत्त ने विनती की।
कदम किसी को भी बाहर छोड़ने को तैयार नहीं था।
जब दत्त और गुरु ने इस बात की गारंटी दी कि बाहर गया हुआ सैनिक वापस लौट आएगा, तभी थोड़े से नखरे करते हुए उसने दास को बाहर
जाने दिया।
दस–पन्द्रह
मिनट में ही दास वापस लौट आया। उसके साथ होटल का ईरानी मालिक और उसका नौकर था।
घूँट–घूँट चाय मिलने से सैनिक खुश हो गए।
‘‘अंकल, ये चाय के पैसे लो।’’ दत्त
ने पैसे आगे बढ़ाए।
‘‘ठहरो, बच्चों, पैसे
हम देते हैं।’’ कदम ने दत्त को रोका।
‘‘अरे, तुम
आजादी के लिए लड़ रहे हो । सरकार के प्रोपोगेंडा पर हमारा भरोसा नहीं। तुम्हारे लिए
हमें कम से कम इतना तो करने दो। कदम सा’ब ये
बच्चे देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं। उन्हें कुत्ते की मौत मत मारना; उन पर गोलियाँ न बरसाना। सुनो रे, बच्चों! मेरा होटल तुम्हारा ही है। कभी भी आओ, मेरे पास जो भी है वह सब तुम्हें दूँगा।’’ ईरानी होटल मालिक ने कहा ।
‘‘अंकल हम आपके निमन्त्रण को स्वीकार करते हैं।
तुम जैसे लोगों के समर्थन पर ही तो हम यह लड़ाई लड़ रहे हैं।" दत्त का गला भर आया था।
ईरानी की इस उदारता से सभी भावविभोर हो गए ।
इस घटना के बाद भूदल और नौदल के सैनिकों के बीच
एक अटूट सम्बन्ध का निर्माण हो गया। विद्रोह का कारण उन्हें ज्ञात हो गया था।
‘‘बच्चो! चाहे जो हो जाए, हम
तुम पर बन्दूक नहीं चलाएँगे!’’ कदम ने सैनिकों को आश्वासन दिया।
‘‘हम ‘तलवार’ के
मेन गेट का नाम बदल दें?’’ दास
ने पूछा। दास का विचार सबको पसन्द आ गया और नाम बदलने की तैयारी शुरू हो गई। ऊँची
सीढ़ी दीवार से लग गई, रंग के डिब्बे आ गए । गेट पर लिखा ‘तलवार’ ये नाम खरोंच–खरोंचकर मिटा दिया गया और लाल रंग में नया नाम
रंगा गया, ‘आज़ाद हिंद गेट’ मानो
सैनिकों ने इस नाम को खून से रंगा था। उत्साही सैनिकों ने नारे लगाना शुरू कर
दिया। कुछ लोगों ने गम्भीर आवाज़ में ‘सारे
जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा’ गाना
शुरू कर दिया और नारे रुक गए। सारा वातावरण गम्भीर हो गया। नामकरण समारोह में भूदल
के सैनिक भी शामिल हो गए।
21 तारीख का सूरज पूरब के क्षितिज पर आया और नौसेना
के विद्रोह के तीन दिन इतिहास की गोद में समा गए: हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता के
इतिहास के, कांग्रेस और लीगी नेताओं की दृष्टि में
तीन नगण्य दिन! मगर नौसेना के इतिहास में और आत्मसम्मान जागृत हो चुके सैनिकों के
जीवन के तीन निर्णायक दिन; हर सैनिक के मन में अंगारे चेताने वाले तीन
दिन। इन तीन दिनों का लेखा–जोखा
किया जाए तो सैनिकों के हाथ में कुछ भी नहीं लगा था। हाँ, काफी
कुछ गँवाना पड़ा था। मगर सैनिक हतोत्साहित नहीं हुए थे। उनके हृदय की स्वतन्त्रता
का जोश अभी भी हिलोरें ले रहा था। अपने सर्वस्व का बलिदान करके अनमोल स्वतन्त्रता
प्राप्त करने की उनकी ज़िद कायम थी।
देर रात तक जहाज़ों के और नौसेना तलों के सैनिक
अगले दिन की योजनाओं पर चर्चा करते रहे थे। जहाज़ों और तलों के अस्त्र–शस्त्रों का अन्दाज़ा लगाया गया। सैनिकों के गुट
बनाकर यह तय किया गया कि किस मोर्चे को कौन सँभालेगा। अन्यत्र आक्रमण होने की
स्थिति में कितने सैनिक भेजना सम्भव होगा, ये
सैनिक कौन से हथियार ले जायें, ये
भी निश्चित किया गया। परिस्थिति का जायज़ा लेने के लिए जब वे सुबह बाहर आए तो आँखें
लाल–लाल और चढ़ी हुई थीं। रात की सभाओं में सैनिकों
ने यह निर्णय लिया था कि चाहे कितनी ही कठिनाइयाँ आएँ, उन्हें
आखिरी दम तक लड़ना है।
सुबह कैसेल बैरेक्स के बाहर करीब दो सौ गज की दूरी पर भूदल के अस्त्र–शस्त्रों से लैस सैनिकों का हुजूम था। आज उनकी
संख्या भी ज़्यादा थी। यह खबर बेस में फैल गई। सेन्ट्रल कमेटी के जो प्रतिनिधि कैसल
बैरेक्स में थे, उन्होंने छत पर चढ़कर स्थिति का जायज़ा
लिया और ‘तलवार’ में मौजूद कमेटी के अध्यक्ष को और सदस्यों को संदेश
भेजा।
- सुपर फास्ट - 210730– प्रेषक–कैसेल बैरेक्स–प्रती - सेन्ट्रल स्ट्राइक कमेटी=अपोलो बन्दर
से बैलार्ड पियर तक के परिसर को भूदल के हथियारों से लैस सैनिकों ने घेरा डालकर
मोर्चे बनाना शुरू कर दिया है । कैसेल बैरेक्स पर आक्रमण होने की सम्भावना है।
आदेशों की और प्रतिआक्रमण की इजाज़त की राह देख रहे हैं।
कैसेल बैरेक्स का सन्देश मिलते ही खान ने
सेन्ट्रल कमेटी की मीटिंग बुलाई और कैसेल बैरेक्स से आया हुआ सन्देश सदस्यों को
पढ़कर सुनाया।
‘‘अरे, फिर
किस चीज़ की राह देख रहे हैं? कह दो उनसे कि भूदल सैनिकों के गोली चलाने से
पहले फुल स्केल अटैक करो, ’’ चट्टोपाध्याय
ने सलाह दी ।
‘‘यह निर्णय हमारे संघर्ष का भविष्य निर्धारित
करने वाला होगा, इसलिए हमें सभी पहलुओं पर विचार करके ही फैसला
करना होगा।’’ दत्त ने चेतावनी दी।
‘‘हम एक बार फिर कांग्रेस के नेताओं से मिल लें, ऐसा
मेरा ख़याल है, ’’ मदन ने सुझाव दिया और सभी एकदम चीख़ पड़े।
‘‘ये नेता कुछ भी करने वाले नहीं हैं।’’
‘‘इसमें हमारे भाई–बन्धु नाहक मरेंगे।’’
‘‘अब हिंसा–अहिंसा के फेर से बाहर निकलो और बन्दूक का जवाब
बन्दूक से दो!’’
हरेक सदस्य अपनी राय दे रहा था।
खान सबको शान्त करने की कोशिश कर रहा था, मगर
उसकी बात सुनने के लिए कोई भी तैयार नहीं था।
''Now, listen to me, I am
President of the Committee,'' दो
मिनट शान्त बैठा खान उठकर बोलने लगा, ''Please,
all of you sit down.'' उसने सभी बोलने
वालों को बैठने पर मजबूर किया।
‘‘हम
अनुशासित सैनिक हैं, यह न भूलो और कमेटी की मीटिंग का मछली
बाजार न बनाओ!’’ खान काफी चिढ़ गया था। उसका यह आवेश देखकर सभी
ख़ामोश हो गए। मीटिंग में शान्ति छा गई।
‘‘दोस्तों! तुम्हारी भावनाओं को मैं समझता हूँ।
घेरा डालकर जो सैनिक बैठे हैं वे भी हिन्दुस्तानी हैं, यह
हमें नहीं भूलना है। मेरा ख़याल है कि किसी भी हालत में पहली गोली हमें नहीं चलानी
है...।’’ खान समझा रहा था।
कैसल बैरेक्स के बाहर भूदल के सैनिक हमले की
तैयारी कर रहे थे। टाउन हॉल के निकट के सैनिकों ने तो बिलकुल ‘फ़ायरिंग पोज़ीशन’ ले ली थी। सुबह साढ़े नौ बजे भूदल सैनिकों ने
पहली गोली चलाई। ये गॉडफ्रे की चाल थी। इस गोली का परिणाम देखकर अगली चाल चलने का
उसका इरादा था।
बैरेक्स के सैनिकों ने गोली की आवाज़ सुनी और
उनके दिल से अहिंसात्मक लड़ाई का जोश काफ़ूर हो गया।
‘‘अरे, उनकी चलाई हुई गोलियाँ बिना प्रतिकार दिए, चुपचाप
अपनी छाती पर झेलने के लिए हम कोई सन्त–महन्त
नहीं हैं, Let us get ready.'' मणी ने कहा।
‘‘हम र्इंट का जवाब पत्थर से देंगे।’’ धर्मवीर
चीखा। रामपाल ने सभी सैनिकों को परेड ग्राउण्ड पर फॉलिन किया।
‘तलवार’ पर
जब सेंट्रल कमेटी की मीटिंग चल रही थी, तभी पहली गोली चलने का सन्देश आया और कमेटी ने
इस गोलीबारी का करारा जवाब देने का निर्णय लिया और वैसा सन्देश कैसेल बैरेक्स को
भेजा।
रामपाल कैसल बैरेक्स के सैनिकों को अगली व्यूह
रचना के बारे में बता रहा था, ‘‘दोस्तो!
हमने अहिंसक संघर्ष का मार्ग अपनाने का निश्चय किया था, मगर
ब्रिटिश सरकार यदि गोलियों की ज़ुबान बोल रही है, तो हमारा जवाब भी उसी भाषा में होगा। अभी–अभी सेंट्रल कमेटी का सन्देश आया है और कमेटी ने
हमें करारा जवाब देने की इजाज़त दे दी है।’’
सैनिकों को इस बात का पता लगते ही उनका रोम–रोम पुलकित हो उठा। युद्धकाल में अमेरिकन, फ्रेंच, ऑस्ट्रेलियन
सैनिकों को मातृभूमि के लिए लड़ते हुए उन्होंने देखा था और हिन्दुस्तानी नौसैनिकों
को उनसे ईर्ष्या होती थी। आज मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए लड़ने का अवसर उन्हें
मिला था। उन्होंने नारे लगाना शुरू कर दिया, ‘वन्दे मातरम्!, ‘ भारत माता की जय!’ , ‘जय
हिन्द!’
‘‘हम उन्हें जवाब देने वाले हैं। मगर इसके लिए
हमें पर्याप्त समय चाहिए। दूसरी बात यह, कि कैसेल बैरेक्स के बाहर के भूदल–सैनिक हिन्दुस्तानी हैं। शायद उन्हें यह भी न
मालूम हो कि हम किसलिए लड़ रहे हैं। हम उनसे गोलीबारी न करने की विनती करें। मेरा
ख़याल है कि वे हमारी विनती मान लेंगे और यदि ऐसा हुआ तो हमारा धर्मसंकट टल जाएगा
और हमें पूरी तैयारी के लिए वक्त भी मिल जाएगा।’’ रामपाल
का सुझाव सबने मान लिया।
हरिचरण, धर्मवीर
और मणी ने आर्मरी खोलकर रायफलें, गोला–बारूद
एल.एम.जी. रॉकेट लांचर आदि हथियार सैनिकों में
बाँट दिये और हरेक को उसकी जगह बताकर मोर्चे बाँध दिये।
‘‘भाइयो,’’ रामपाल
खुद अपील करने लगा, ‘‘हमारी ये जंग आज़ादी की जंग है; केवल
पेटभर खाना मिले इसलिए नहीं है, या अच्छा रहन–सहन और ऐशो–आराम नसीब हो इसलिए नहीं है। हम लड़ रहे हैं आज़ादी
के लिए। भाइयों! भूलो मत! हमारी तरह आप भी इसी मिट्टी की सन्तान हो। हमारी आपसे गुज़ारिश
है कि हम पर, अपने भाइयों पर, गोलियों
की बौछार करके भाईचारे से रहने वाले अपने पुरखों के मुँह पर कालिख न पोतें! जय
हिन्द! वन्दे मातरम्!’’
यह अपील बार–बार की जा रही थी।
दो–चार
बार इस अपील के कानों पर पड़ने के बाद कैसेल बैरेक्स के घेरे पर बैठे हुए मराठा
रेजिमेन्ट के सैनिक समझ गए कि यहाँ हिन्दू–मुस्लिम संघर्ष नहीं हो रहा है। यह संघर्ष स्वतन्त्रता के लिए, आत्मसम्मान के लिए है। गोरे धोखा देकर उन्हें
यहाँ लाए हैं।
‘‘सूबेदार मेजर, अपने
टारगेट पर फ़ायर करने का हुक्म दो। हमको Accurate
Firing माँगता। Just
on the bull!'' मेजर सैम्युअल ने सूबेदार राणे को आदेश
दिया।
सूबेदार राणे ने मेजर सैम्युअल की ओर घूरकर
देखा।
‘अपनी स्वतन्त्रता के लिए लड़ने वाले भाई–बन्दों पर हमला करें।’ यह कल्पना
भी उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। उसकी आँखों में और दिल में उभरते विद्रोह को
सैम्युअल ने भाँप लिया।
''Come on, Open Fire, open
fire, you Fools...'' सेकण्ड ले. जैक्सन
चिल्ला रहा था।
मराठा रेजिमेन्ट के सैनिकों ने अपने सूबेदार के
मन की दुविधा को महसूस कर लिया और अपनी–अपनी
राइफल्स नीचे कर लीं। यह देखकर जैक्सन का
क्रोध उफ़न पड़ा और वह सैनिकों से हाथापाई करते हुए चिल्लाया, 'Come
on, bastards, take aim and Fire! Otherwise...'' जैक्सन
उन पर चढ़ा आ रहा है यह देखकर गरम दिमाग वाले कुछ सैनिकों ने अपनी मुट्ठियाँ भींच
लीं और बॉक्सिंग की मुद्रा में आ गए । जैक्सन को पीछे खींचते हुए मेजर सैम्युअल उस
पर चिल्लाया, ‘‘बेवकूफ, ये सारी रामायण जिस बर्ताव के कारण हुई है वही
तू करने जा रहा है। हट पीछे!’’
मराठा रेजिमेन्ट के सैनिक ज़ोर–ज़ोर से ‘हर–हर
महादेव’ का नारा लगा रहे थे, मगर
उनकी बन्दूकें ख़ामोश थीं।
मराठा रेजिमेन्ट ने कैसेल बैरेक्स पर हमला करने
से इनकार कर दिया। मराठा रेजिमेन्ट को बैरेक ले जाकर नजर कैद कर दिया गया और उसके
स्थान पर गोरों की प्लैटून्स आ गर्इं।
कैसेल बैरेक्स के सैनिकों को तैयारी के लिए दो
घण्टे मिल गए। उपलब्ध गोला–बारूद
और हथियार बाँट दिये गये। कैसेल बैरेक्स में जाने के लिए मेन गेट के अलावा दो और
गेट्स थे। इन दोनों, गेट्स - गन-गेट तथा डॉकयार्ड-गेट से हमला होने की सम्भावना थी, इसलिए
इन दोनों गेट्स पर भेदक–शस्त्रों
से लैस अतिरिक्त सैनिक नियुक्त किए गए। सुरक्षा दीवार के पास टोही टीम नियुक्त की
गई । कैसेल बैरेक्स का छोटा–सा
दवाख़ाना उपलब्ध साधनों की सहायता से सुसज्जित किया गया; ज़ख्मी सैनिकों पर उपचार करने की दृष्टि से यह ज़रूरी
था। दवाख़ाने पर हमला न हो इसलिए उस पर रेडक्रॉस का झण्डा फ़हराया गया। कम्युनिकेशन
के दो सैनिकों ने कमेटी के सदस्यों से सम्पर्क स्थापित किया।
गॉडफ्रे और बिअर्ड ने कैसेल बैरेक्स पर चारों
ओर से फुल स्केल अटैक करके सैनिकों को ख़त्म करने का निश्चय किया था। पहली गोली
चलाने के बाद बीच के दो घण्टों में सैनिकों की ओर से कोई जवाब नहीं आया था, इसलिए वे ख़ुश थे। गद्दार मराठा रेजिमेन्ट को
पीछे हटाकर साम्राज्य के प्रति ईमानदार गोरी सैनिक टुकड़ी के दाखिल होने तक वे चुप
बैठे रहे।
''Maratha Regiment replaced by British troops
Request Further instruction.'' बिअर्ड ने सैम्युअल की ओर से आया सन्देश गॉडफ्रे
को पढ़कर सुनाया ।
‘‘ब्रिटिश ट्रूप्स लाने में उन्होंने बड़ी देर कर दी।’’ गॉडफ्रे की आवाज़ में नाराज़गी थी। ''Any way, अब समय गँवाने से कोई फ़ायदा नहीं। Ask them to launch full scale
attack.'' गॉडफ्रे ने आदेश दिया।
‘‘सर, मेरा ख़याल है कि हम चारों ओर से हमला करने का
नाटक करेंगे, मगर हमला कमज़ोर भाग पर ही करेंगे।’’ कैसल बैरेक्स का नक्शा फैलाते हुए बिअर्ड ने
कहा।
‘‘पहले हम मेन गेट पर हमला करेंगे। नौसैनिक इस
हमले में उलझ गए कि हम गन-गेट और डॉकयार्ड-गेट पर हमला करेंगे। यहाँ प्रतिकार कम
होने के कारण हमें आसानी से विजय प्राप्त होगी और कैसेल बैरेक्स पर हम कब्जा कर
सकेंगे। यह ‘बेस’ एक
बार अपने हाथ में आ जाए, फिर तो आगे का काम आसान हो जाएगा।’’ गॉडफ्रे
की सहमति के लिए बिअर्ड ने योजना उसके सामने रखी।
‘‘तुम्हारा जो जी चाहे, करो! मुझे कैसेल बैरेक्स चाहिए!’’ गॉडफ्रे ने कहा और व्यूह रचना समझाने के लिए
बिअर्ड कैसेल बैरेक्स की ओर निकला।
‘‘अटैक!’’ बिअर्ड की ओर से ग्रीन सिग्नल मिलते ही सैम्युअल
ने हुक्म दिया और गोरे सैनिकों की बन्दूकें धड़धड़ाने लगीं। मेन गेट और बायें पार्श्व
से, रिज़र्व
बैंक की इमारत के ऊपर से उन्होंने मार करना आरम्भ किया। पूरा वातावरण बन्दूकों की
आवाज़ से दनदनाने लगा। नौसैनिक इस मार का करारा जवाब दे रहे थे। रिज़र्व बैंक की इमारत
से तीव्र हमला हो रहा है और वहाँ हमारी मार कम पड़ रही है, यह
बात ध्यान में आते ही धरमवीर और मणी सुरक्षा–दीवार की आड़ से आगे सरके। रिज़र्व बैंक की गैलरी
में बन्दूक की नली दिखाई देते ही दोनों ने अपनी–अपनी मशीनगनों से फ़ायर करना आरम्भ कर दिया।
स्टेनगन पकड़े एक गोरा सेकण्ड लेफ्टिनेंट गैलरी से अन्तिम हिचकियाँ लेते हुए नीचे
गिरा।
एक अन्य गोरा सैनिक सीने पर सात–आठ गोलियाँ झेलकर चित हो गया। पाँच सैनिक ज़बर्दस्त
जख्मी हुए थे। अब उस तरफ़ से होने वाला आक्रमण रुक गया था।
कामचलाऊ अस्पताल की छत पर नि:शस्त्र कृष्णन यह
देखने के लिए गया कि बाहर क्या चल रहा है। छत पर रेडक्रॉस का झण्डा फ़हरा रहा था
इसलिए वह निश्शंक था।
ब्रिटिश सैनिकों ने कृष्णन को देखा और पलभर में
एक सनसनाती गोली उसके सीने को छेद गई। कृष्णन नीचे गिर पड़ा। खून के सैलाब में
धराशायी कृष्णन विद्रोह का पहला शहीद था।
‘‘****साले! रेडक्रॉस के झण्डे के नीचे खड़े निहत्थे
सैनिक पर गोली चला रहे हैं। अरे, हिम्मत है तो ऐसे, सामने
आओ!’’ हरिचरण
चीखते हुए आगे दौड़ा ।
हरिचरण का जोश देखकर कैसल बैरेक्स का गुरमीत
सिंह भी आगे बढ़ा और उनकी स्टेनगन्स आग उगलने लगीं। इस अचानक हुए हमले से अवाक् गोरे
सैनिक होश में आकर जवाब दें, तब
तक दो गोरे सैनिक खत्म हो गए थे और चार–छह
घायल हो गए थे।
नौसैनिकों ने मानो अपनी इस हरकत से अंग्रेज़ी
सरकार को चेतावनी दी थी कि ‘‘तुम
अगर हम पर हमला करोगे, तो वह तुम्हें महँगा पड़ेगा, और एक घूँसे
का जवाब हम दो घूँसों से देंगे।’’
चार ब्रिटिश सैनिकों और एक अधिकारी के मारे
जाने की ख़बर से गॉडफ्रे अस्वस्थ हो गया। जितना उसने समझा था, उतना
आसान नहीं था विद्रोह को दबाना।
''Bastards, हमारी ताकत का अन्दाज़ा नहीं है तुमको। तुम
जाओगे कहाँ? अच्छा सबक सिखाऊँगा मैं तुम्हें।’’ चिढ़ा
हुआ गॉडफ्रे चीख रहा था। ''Call
Rautre'' उसने पहरे पर तैनात सैनिक से कहा।
‘तलवार’ पर
सेंट्रल कमेटी की मीटिंग दोपहर के बारह बजे तक चल रही थी।
‘‘कैसल बैरेक्स के सैनिक गोरे सैनिकों को करारा
जवाब दे रहे हैं। हमारे मुकाबले में गोरों का नुकसान ज़्यादा हुआ है।’’ खान
ने जानकारी दी।
‘‘अंग्रेज़ों ने सभी नाविक तलों पर पहरे बिठा ही
रखे हैं। यदि इन तलों पर हमले हुए तो नौसैनिकों को बचाया कैसे जाए?’’ गुरु
ने पूछा।
‘‘नाक दबाए बिना मुँह नहीं खुलेगा।’’ दत्त
ने कहा।
‘‘मतलब?’’
खान ने पूछा।
‘‘आज नौसेना के जहाज़ हमारे कब्जे़ में हैं। उनका
इस्तेमाल हम करें, ऐसी मेरी राय है।’’ दत्त
ने कहा।
‘‘अब ‘तलवार’ के
चारों ओर भी घेरा पड़ा है। यहाँ के हिन्दुस्तानी सैनिक हटाकर सरकार कब गोरों की
सेना लाएगी और हमला करेगी इसका कोई भरोसा नहीं है। यदि ऐसा हुआ तो सेंट्रल कमेटी
के सदस्य विवश हो जाएँगे और तब पूरा संघर्ष ही नेतृत्वहीन हो जाएगा।’’ गुरु
ने डर व्यक्त किया।
‘‘गुरु का भय जायज़ है। मेरा विचार है कि ‘तलवार’ पर
दो–तीन लोग रुकें और बाकी लोग अन्यत्र चले जाएँ।’’ दत्त
ने सुझाव दिया।
‘‘अन्यत्र मतलब कहाँ? हमले का ख़तरा तो सभी स्थानों पर है, ’’ खान
ने पूछा।
“जहाज़ अधिक सुरक्षित हैं। यदि ऐसा पता चले कि
हमला हो रहा है, तो
जहाज़ों को समुद्र में हाँका जा सकता है और वहाँ से प्रतिकार किया जा सकता है,” दत्त ने सुझाव
दिया।
दत्त
के सुझाव को सबने मान लिया और थोड़ी बहुत चर्चा के बाद यह निश्चित किया गया कि
सेंट्रल स्ट्राईक कमिटी का कार्यालय HMIS
‘नर्मदा’ पर स्थानांतरित किया जाए।
HMIS ‘नर्मदा’ हिंदुस्तान
की शाही नौसेना की ध्वज नौका थी। सन् 1941 में निर्मित इस जहाज़ ने दूसरे महायुद्ध
में भाग लिया था. उस समय का वह एक अत्याधुनिक जहाज़ था। ‘नर्मदा’
के शस्त्रागार में बारा पौण्ड वाली तोपें, विमान
विरोधी तोपें, पनडुब्बी विरोधी टॉरपीडो दागने की सामग्री,
चार इंच वाली तोपें...यह सब था। ज़रूरत पड़ने पर इस सब का प्रयोग करना
संभव होगा, इसी उद्देश्य से सेन्ट्रल कमिटी का कार्यालय
नर्मदा पर स्थानांतरित किया गया था. ‘तलवार’ पर दास, पांडे, चाँद, सूरज – ये चार लोग रुक गए.
‘नर्मदा’ पर पहुँचते ही
खान ने सभी जहाज़ों और नाविक तलों को संदेश भेजा:
- फ़ास्ट – 211205 – प्रेषक – अध्यक्ष सेंट्रल स्ट्राईक
कमिटी – प्रति – सभी जहाज़ व नाविक तल।
= कमिटी का कार्यालय 211205 से ‘नर्मदा पर आ गया है।सात सौ किलो साइकल्स पर
चौबीसों घण्टे वॉच रखो, हमला होने पर करारा जवाब दो =
संदेश भेजने के बाद सेंट्रल कमिटी की बैठक शुरू हुई।
“नाविक तलों पर सैनिकों की संख्या और गोला बारूद मर्यादित
है। यदि अंग्रेज़ फ़ुल स्केल अटैक करते हैं तो नौसैनिक टिक नहीं पाएँगे। उनकी ताकत
बढ़ानी होगी। यह कैसे करना है, इस
पर विचार करना होगा,” गुरू ने सुझाव दिया।
“यही तो असल बात है। चारों ओर सैनिकों का घेरा पड़ा है...ये
घेरे तोड़कर सैनिकों तक मदद पहुँचाना नामुमकिन है,” असलम के स्वर में निराशा थी।
“हम ‘फ़ोर्ट
बैरेक्स’, ‘कैसेल बैरेक्स’, और ‘तलवार’ को जहाज़ों की सहायता से ‘फ़ायर अम्ब्रेला’ दे सकेंगे।“ खान ने उपाय सुझाया।
“मगर ऐसा करते समय संभावित जान और माल की हानि का भी विचार करना होगा। होने वाला
नुक्सान हिंदुस्तान का होगा। मरने वालों में निरपराध हिंदुस्तानी नागरिक होंगे। इस
नुक्सान से ब्रिटेन का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा।“ गुरू ने ख़तरे स्पष्ट किए।
“मेरा विचार है, कि सबसे पहले हम सैनिकों का हौसला बढ़ाएँ। उन्हें सूचित करना होगा कि हम सब
तुम्हारे साथ हैं। आक्रमण होने पर हमें सूचना दें। हमले का प्रतिकार करें, मगर आक्रामक न बनें!” दत्त का यह सुझाव मान लिया गया और वैसा संदेश भेज
दिया गया।
“इस समय हमारे कब्ज़े में बीस जहाज़ हैं। इन जहाज़ों पर
पर्याप्त मात्रा में गोला बारूद और तोपें हैं। इन जहाज़ों का इस्तेमाल हम ‘डॉकयार्ड’, ‘कैसेल
बैरेक्स’ और ‘फोर्ट बैरेक्स’ की सुरक्षा के लिए करेंगे। अंग्रेज़ों ने यदि हिंदुस्तान की नौसेना की
सम्पत्ति को नष्ट करने का प्रयत्न किया तो हम उसका प्रतिकार करेंगे; क्योंकि ये सम्पत्ति हमारी है।“ गुरू ने सुझाव दिया।
खान और दत्त ब्रेक वाटर में खड़े ‘नर्मदा’ पर आए हैं यह
पता चलते ही डॉकयार्ड के जहाज़ों के सैनिक इकट्ठे हो गए और उन्होंने दत्त और खान से
मार्गदर्शन लेने की इच्छा प्रकट की। ‘नर्मदा’ के एक बाज़ू में खड़े HMIS ‘कुमाऊँ’ के ब्रिज पर खान खड़ा हो गया और उसने वहाँ एकत्रित नौसैनिकों को संबोधित
किया।
खान ने सुबह से ‘कैसेल बैरेक्स’ में हुई घटनाओं को स्पष्ट किया;
बैरेक्स के सैनिकों ने गोरे सैनिकों के थोबड़े कैसे तोड़ दिए ये बताकर
उसने भूदल सैनिकों से अपील की:
“ ‘कैसेल बैरेक्स’ का घेरा डाले हुए मराठा रेजिमेंट के सैनिकों ने ‘कैसेल
बैरेक्स’ पर हमला करने से इनकार कर दिया। उनकी इस दिलेरी की
जितनी भी तारीफ़ की जाए, कम है। हम उनसे अपील करते हैं कि
हमारे साथ इस संघर्ष में शामिल हो जाएँ। अपनी इज़्ज़त को, आत्म
सम्मान को बचाने के लिए, देश की स्वतंत्रता के लिए हमारे साथ
आइए।” एकत्रित सैनिकों ने नारे लगाए: ‘इन्कलाब ज़िंदाबाद! ‘जय हिंद!’ आर्मी-नेवी एक हों!’
खान ने सबको शांत किया।
“स्वतंत्रता के सूर्य के उदित होने के लक्षण देखते ही गोरे
चमगादड़ों ने जहाज़ों और नाविक तलों से अपना मुँह काला कर लिया है। मगर अभी भी कुछ
गोरे सैनिक और अधिकारी जहाज़ों और नाविक तलों पर दुबक कर बैठे हैं। वे तुरंत जहाज़
और नाविक तल छोड़ दें; हम उनका विरोध
नहीं करेंगे। आज़ाद हिंद नौसेना की ओर से मैं हिंदुस्तानी नौसेना अधिकारियों से
अपील करता हूँ कि उनका हमारा शत्रु एक ही है। वे भी हिंदुस्तानी हैं। हमारा संघर्ष किसी स्वार्थ से प्रेरित नहीं है, वह
स्वतन्त्रता के लिए है, हमारे आत्मसम्मान के लिए है। यदि हिन्दुस्तानी अधिकारी
हमारे साथ आएँ तो, बेशक, उन्हें प्राप्त होने वाली सभी सहूलियतों से
महरूम होना पड़ेगा, मगर मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए
लड़ने की खुशी उन्हें प्राप्त होगी। स्वतन्त्र हिन्दुस्तान में वे सम्मान से जी
सकेंगे। यदि हिन्दुस्तानी अधिकारियों को हमारे साथ नहीं आना है तो वे जहाज़ और
नाविक तल छोड़ दें, हमारे साथ दगाबाज़ी न करें। मैं उन्हें आश्वासन
देता हूँ कि तुम्हारे अंग्रेज़ों के जूते चाटने वाले कुत्ते होने के बावजूद हम तुम
पर वार नहीं करेंगे, क्योंकि तुम राह भूल गए हो । तुम
हिन्दुस्तानी हो । मगर, यदि
हमसे दगाबाजी की तो फिर तुम्हारी ख़ैर नहीं, हम
तुम्हारा कोई लिहाज नहीं करेंगे।“
‘‘दोस्तो!’’ खान ने आगे कहा, ‘‘हमें
अपनी नौदल सम्पत्ति की – डॉकयार्ड और डॉकयार्ड में उपलब्ध सुविधाओं की रक्षा करनी
है। नागरी सम्पत्ति का नाश न हो,
हमारे देशवासी अपनी जान न गँवाए - यह सुनिश्चित करना है, मगर
इसके साथ ही आज़ाद हिन्द नौसेना के जवानों की रक्षा के लिए हम किसी की भी परवाह
नहीं करेंगे इस बात का ध्यान रहे। हम लड़ने वाले हैं आख़िरी साँस तक, लड़ने
वाले हैं एक दिल से। अन्तिम विजय हमारी ही है। जय हिन्द!’’
खान ने भाषण समाप्त किया और सैनिकों ने नारे
लगाए।
खान और दत्त ‘नर्मदा’ पर
लौटे। खान ने सभी जहाज़ों को सेमाफोर से सन्देश भेजा।
सुपरफास्ट – 211245 – प्रेषक - अध्यक्ष सेन्ट्रल कमेटी – प्रति - सभी
जहाज़ = बन्दरगाह से बाहर निकलने के लिए तैयार रहो। पन्द्रह मिनट पहले सूचना दी जाएगी, तोपें
तैयार रखो =
सन्देश भेजते समय किसी ने भी नहीं सोचा था कि
कोई एक अंग्रेज़ अधिकारी यह सन्देश पढ़ लेगा और तिल का ताड़ बना देगा।
अपोलो बन्दर से लेकर बैलार्ड पियर तक के पूरे
परिसर ने युद्धभूमि का स्वरूप धारण कर लिया था। वह पूरा परिसर भूदल की टुकड़ियों से
व्याप्त था, जिसमें हिन्दुस्तानी सैनिक कम और
ब्रिटिश सैनिक ही ज़्यादा थे। सेना के पीछे पुलिस थी और पुलिस के पीछे रंग–बिरंगी कपड़े पहने सैकड़ों बच्चे, नौजवान, बूढ़े, स्त्री
और पुरुष जमा थे।
पूरी मुम्बई ने सुबह के अखबार पढ़े थे।
अंग्रेज़ों की कुटिल नीति को नागरिक समझ गए थे, और
इसीलिए वे बड़ी तादाद में ‘गेटवे’, ‘ अपोलो
बन्दर’
, ‘ तलवार’ आदि भागों में इकट्ठे हो गए थे।
‘फ्री
प्रेस जर्नल’ ने लिखा था, ‘‘नौसेना
के अनेक सैनिकों ने दिनांक 18 से
भूख हड़ताल शुरू की है। नाविक तलों और जहाजों के अनाज, सब्ज़ियों
और ताजे दूध का स्टॉक ख़त्म हो गया है। दिनांक 18 से सैनिकों के लिए पानी की सप्लाई भी बन्द कर
दी गई है। सैनिकों को चारों ओर से दबोचकर उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने
की कुटिल चाल सरकार ने चली है। सभी सैनिक भूख के सामने मजबूर हो जाएँगे इस तथ्य को
ध्यान में रखकर सैनिकों में फूट डालने
की दृष्टि से
कल रात को ‘कैसल बैरेक्स’ में खाद्य सामग्री से भरा हुआ एक ट्रक भेजा गया।
मगर सैनिकों ने उसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने भूखे रहना पसन्द किया। इस ट्रक के
खाद्यान्नों के बोरों की आड़ से भूदल सैनिकों ने ‘कैसल बैरेक्स’ पर
हमला करने की तैयारी की थी।“
यह ख़बर पढ़ने वाले हरेक व्यक्ति ने नौसैनिकों की
तारीफ़ की। इससे पूर्व मुम्बई के नागरिकों ने उनका अनुशासन देखा था और अब वे उनका
दृढ निश्चय देख रहे थे।
‘‘ये सैनिक स्वतन्त्रता के लिए ज़ुल्मी सरकार के ख़िलाफ
खड़े हैं, उनकी मदद करनी ही चाहिए।’’
‘‘सरकार यदि सैनिकों का अन्न–जल तोड़कर उन्हें आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर
रही है तो हम सैनिकों को भूखे नहीं मरने देंगे। सैनिक हैं तो क्या वे हमारे ही तो
भाई–बन्धु हैं।’’
अनेक लोगों के मन में यही विचार थे। ‘गेटवे ऑफ इण्डिया’, ‘अपोलो बन्दर’ , ‘तलवार’ इन
भागों में आए हुए नागरिक अपने साथ खाना लाए थे। कुछ लोग तो पानी की बोतलें भी लाए
थे।
‘तलवार’ के
चारों ओर इकट्ठा हुए नागरिकों ने जब देखा कि ‘तलवार’ के मेन गेट को ‘आज़ाद हिन्द गेट’ का
नाम दिया गया है तो उनका हृदय गर्व से भर आया। रात से ही भूदल सैनिकों से दोस्ती
हो जाने के कारण ‘तलवार’ के सैनिक आज़ादी से घूम रहे थे। मराठा रेजिमेंट
के गोरे अधिकरियों को ‘फ़ोर्ट’ परिसर
ले जाया गया था, इसलिए तो इन सैनिकों के लिए मैदान साफ़ था।
‘तलवार’ के
सैनिकों को खाना देने के लिए जो आए थे उनमें गरीब थे, अमीर
थे, मज़दूर
थे, नौकरी–पेशा थे। समाज के विभिन्न स्तरों के लोगों का
वह एक मेला ही था। विद्रोह के लिए सामान्य जनता का ऐसा समर्थन देखकर ‘तलवार’ के सैनिकों का मन भर आया था।
‘‘ए, बाबा
लोग, मुझे
जाने दे रे आगे।’’ सत्तर साल की एक वृद्धा सिपाही जाधव को मना रही
थी।
‘‘ए, दादी, आगे किधर जाती। दब जाएगी पूरी!’’ जाधव
उसे समझा रहा था।
‘‘ऐसा न कहो, मेरे राजा बेटा! बुढ़िया की छड़ी बन के ले चल
मुझे सफ़ेद कपड़े वाले बच्चे के पास, ले चल रे, बच्चे!”
बुढ़िया विनती कर रही थी।
‘‘दादी, दे
वो इधर, मैं ले जाकर दे देता हूँ उसे,’’ जाधव
उसे समझा रहा था।
‘‘अरे, चार दिन का भूखा है रे बच्चा! मुझे अपने हाथ से
खिलाने दे उसे,’’ वह अभी भी मना रही थी।
जाधव उसकी बात टाल न सका। उसने बुढ़िया का हाथ
पकड़ा और धीरे–धीरे उसे आगे ले चला।
‘‘क्या कहती हो मौसी?’’ बुढ़िया
उससे मिलने आई है यह पता चलते ही दास ने पूछा।
दास के मुँह पर हाथ फेरते हुए, उसकी
नज़र उतारते हुए बुढ़िया ने कानों पर अपनी उँगलियाँ मोड़ीं। दास को उस वृद्धा में
अपनी माँ नज़र आई। वह जल्दी से नीचे झुका और उसके पैरों को स्पर्श करने लगा।
वृद्धा ने उसे उठाकर सीने से लगा लिया।
‘‘ चार दिनों से एक टुकड़ा भी नहीं खाया रे! चेहरा
कैसा सूख गया है देख। सत्यानाश हो जाए उन गोरे बन्दरों का।‘’ अंग्रेज़ों के नाम से उसने उँगलियाँ कड़कड़ाकर मोड़ीं।
‘‘अरे, वो नहीं देता तो न दे। मैं लाई हूँ ना, वो
ही खा ले।’’
वृद्धा ने अपनी गठरी खोली। कपड़े में बँधी ज्वार
की चार रोटियाँ बाहर निकालीं। सबसे ऊपर वाली रोटी पर एक प्याज़ थी, चटक
लाल रंग की चटनी थी। उस चटनी पर डालने के लिए बूँद भर तेल भी बुढ़िया के पास नहीं
था। उसने रोटी का एक टुकड़ा तोड़ा, चटनी से लगाया और दास के मुँह में भरा।
दास की आँखों में आँसू तैर गए।
‘‘ मिरची बहुत लगी ना? क्या
करूँ रे, तेल ही नहीं था।’’
‘‘ नहीं, नहीं, मौसी! माँ की याद आई ना!’’ दास
ने जवाब दिया। बुढ़िया की आँखों में पानी आ गया।
ज्वार की रोटी की भरपूर मिठास दास ने महसूस की।
गेटवे ऑफ इण्डिया के निकट मुम्बई के नागरिकों
की जबर्दस्त भीड़ थी। सैनिकों के लिए उन्हें रोकना मुश्किल हो रहा था।
‘‘नहीं, तुम
आगे नहीं जा सकते।’’ दो–चार
लोगों को रोकते हुए एक पुलिस का हवलदार चिल्ला रहा था।
‘‘अरे, इन्सान हो या हैवान? वे कोमल बच्चे भूखे पेट आज़ादी के लिए लड़ रहे
हैं और तुम इसी मिट्टी के होकर उनकी हालत मज़े से देख रहे हो? उनके
ख़िलाफ़ बन्दूकें तान रहे हो?’’ एक अधेड़ उम्र के नागरिक ने चिढ़कर पूछा।
‘‘अगर तुम उनकी कोई मदद नहीं कर सकते तो कम से कम
हमारा लाया हुआ खाना तो उन तक पहुँचा दो।’’ दूसरे
ने विनती की।
‘‘हम
अपनी ड्यूटी से बँधे हुए हैं।’’ एक सैनिक समझाने की कोशिश कर रहा था।
‘‘भाड़ में जाए तेरी ड्यूटी। आज़ादी के लिए लड़ने
वाले भाई पर गोली चलाना तेरी ड्यूटी है क्या?’’ पहले
नागरिक ने चिढ़कर पूछा।
‘‘मेरे होटल की सारी चीज़ें मुझे सैनिकों को देनी
हैं। उन्हें लाने में मेरी मदद करो रे!’’
एक
होटल मालिक लोगों को मना रहा था।
एक भिखारी हाथ में रोटियों के टुकड़े लिये खड़ा था।
उसे भीड़ में खड़ा देखकर किसी ने पूछा,
‘‘यहाँ क्यों खड़ा है? यहाँ कोई भीख नहीं देने वाला है तुझे।’’
‘‘मेरे को भीख नहीं चाहिए। मुझे भी ये टुकड़े देना
है,’’ उसने
ऐसी शीघ्रता से जवाब दिया कि मानो यदि वह जवाब न देता तो उसे वहाँ से धक्के मारकर निकाल
देते।
‘‘अरे, तेरे पास तो पाँच–छह टुकड़े ही हैं। वही दे देगा तो तू आज रात को
खाएगा क्या?’’ पास खड़े एक सैनिक ने पूछा।
‘‘नर्इं रे राजा, ऐसा
नको कर। मेरा भी टुकड़ा ले रे! मेरा क्या, चार घर माँग लूँगा और मिला तो खा लूँगा, नहीं
तो पानी पीकर सो जाऊँगा। मुझे आदत है।’’ वह दयनीयता से कह रहा था, ‘‘मेरे
उन भाइयों को चार दिन से खाना नहीं मिला है। अरे, ऐसे
दुश्मन से लड़ने को ताकत तो होना चाहिए ना। दो उन्हें ये टुकड़े!’’ उसने
विनती की।
यह सब खामोशी से सुनने वाले सूबेदार मेजर पाटिल
को महाभारत वाली सुनहरे नेवले की कहानी याद आ गई।
आज़ादी के लिए लड़ने वाले नौसैनिकों के प्रति आदर की भावना जागी। उसकी
अन्तरात्मा ने उससे कहा, ‘‘नौसैनिकों
की मदद करनी ही चाहिए।’’ उसने एक पल सोचा और आठ–दस लोगों को एक ओर ले जाकर कहा, ‘‘खाना
इकट्ठा करो और ‘अपोलो बन्दर’ के आगे जाकर रुको। खाना सैनिकों को पहुँचा
दिया जाएगा। उस भाग में पहरा कच्चा है।‘’ और
अनेक नागरिक अपोलो बन्दर की ओर चल पड़े।
सामने समुद्र में खड़े ‘खैबर’ से दो मोटर लांचेस तेज़ी से ‘अपोलो बन्दर’ की ओर आर्इं। सिविल ड्रेस में ‘खैबर’ के
सैनिक खाने के पैकेट्स लेकर ‘खैबर’ की
ओर कब वापस लौट गए किसी को पता ही नहीं चला। खाना ‘कैसल बैरेक्स’ , ‘फोर्ट बैरेक्स’ और जहाज़ों
में पहुँचा दिया गया। नौसैनिकों की खाने–पीने
की समस्या हल हो गई थी। दो–तीन
दिनों के लिए पर्याप्त भोजन उनके पास था।
दोपहर का डेढ़ बज गया। ब्रिटिश सैनिकों ने ‘कैसल बैरेक्स’ का
हमला और अधिक तेज़ कर दिया। गॉडफ्रे और बिअर्ड को ‘कैसेल बैरेक्स’ पर कब्ज़ा करने की जल्दी पड़ी थी । ‘कैसल बैरेक्स’ के सैनिक हमले का करारा जवाब दे रहे थे ।
नौसैनिकों ने सेन्ट्रल कमेटी के आदेशानुसार सुरक्षात्मक रुख अपनाया। इस हमले में
ब्रिटिश टुकड़ियों का ही ज़्यादा नुकसान हुआ - मारे गए और ज़ख़्मी सैनिकों की संख्या पन्द्रह
से ऊपर चली गई, जबकि हिन्दुस्तानी नौसैनिकों में कृष्णन को
वीरगति प्राप्त हुई और चार सैनिक ज़ख्मी हुए।
गॉडफ्रे, रॉटरे
और बिअर्ड स्थिति पर लगातार नज़र रखे हुए
थे। फॉब हाउस का फ़ोन खनखनाया ।
‘‘सर, ‘नर्मदा’ से एक सन्देश सभी जहाज़ों को भेजा गया है।’’ गेटवे
के सामने तैनात एक गोरी प्लैटून का कमाण्डर बोल रहा था।
‘‘एक मिनट, ‘’ रॉटरे
ने पैड अपने सामने खींचा, ‘‘हाँ, बोलो।’’ वह
सन्देश लिखने लगा।
सुपरफास्ट – 211245 – प्रेषक - अध्यक्ष सेन्ट्रल कमेटी – प्रति - सभी
जहाज़ = बन्दरगाह से बाहर निकलने के लिए तैयार रहो। पन्द्रह मिनट पहले सूचना दी
जाएगी, तोपें
तैयार रखो =
''Well done, officer.'' रॉटरे ने अधिकारी को शाबाशी दी।
''What's the matter?'' गाडफ्रे ने उत्सुकता से पूछा।
रॉटरे ने प्राप्त हुआ सन्देश दिखाया।
धूर्त गॉडफ्रे की आँखों में एक विशिष्ट चमक
दिखाई दी। उसने पलभर विचार किया और रॉटरे से कहा, ‘‘मुम्बई के सभी जहाज़ों और नाविक तलों के लिए एक
सन्देश भेजकर रॉयल इण्डियन नेवी के सभी ब्रिटिश अधिकारियों और नौसैनिकों को तुरन्त
फॉब हाउस में पहुँचने के लिए कहो।’’
‘‘मगर
सर, जहाज़ों के और तलों के सारे अधिकारी और ब्रिटिश सैनिक जहाज़
छोड़कर कब के वापस आ गए हैं।” रॉटरे ने स्पष्ट किया।
‘‘मुझे मालूम है ।’’ गॉडफ्रे ने सुकून से जवाब दिया। मानो वह यह
कहना चाहता हो, ‘‘रॉटरे, बेवकूफ़
हो!’’
‘‘ब्रिटिश अधिकारी और सैनिक भले ही 19 तारीख को वापस लौट गए हों, फिर भी यह सन्देश जाना ही चाहिए, वरना
लोग समझेंगे कि गोरे घबराकर भाग गए। यह सन्देश हमारे सैनिकों और अधिकारियों की
कर्तव्यनिष्ठा दिखाएगा ।’’
गॉडफ्रे
ने अपनी बात स्पष्ट की।
‘‘मैं समझ नहीं पाया।’’ रॉटरे
अपने आप से पुटपुटाया।
‘‘और, दूसरी बात यह, कि
इस सन्देश का उपयोग करके एक प्रेसनोट तैयार करो। प्रेसनोट से यह प्रतीत होना चाहिए
कि नौसैनिकों ने मुम्बई पर हमला करने की
तैयारी की है, और
किसी भी क्षण
हमला हो सकता
है ।‘’
गॉडफ्रे ने सूचना दी।
वापस जाने के लिए मुड़े रॉटरे को रोकते हुए
गॉडफ्रे ने कहा, ‘‘ ‘कैसल बैरेक्स’ जब
तक हमारे कब्ज़े में नहीं आ जाता तब तक ये सैनिक झुकेंगे नहीं और विद्रोह कुचला
नहीं जा सकेगा।’’
‘‘आप ठीक कहते हैं, सर!’’ बिअर्ड
ने कहा, ‘‘मेरे हिसाब से मुम्बई के करीब–करीब आधे सैनिक ‘कैसल बैरेक्स’ में
हैं।‘’
‘‘दिन के ग्यारह बजे से हम हमला कर रहे हैं, मगर
हिन्दुस्तानी सैनिक समर्पण नहीं कर रहे हैं। उल्टे, प्राप्त
जानकारी के अनुसार, हमारा ही ज़्यादा नुकसान हो रहा है।’’ रॉटरे
ने जानकारी दी।
‘‘मेरा ख़याल है कि अब हम डॉकयार्ड से हमला करें, ’’ गॉडफ्रे
ने सुझाव दिया। ‘‘तुम्हारी क्या राय है, बिअर्ड?’’ उसने
पूछा।
‘‘डॉकयार्ड से हमला करने की योजना मेरी भी थी मगर
वहाँ से हमला करना कठिन है। क्योंकि डॉकयार्ड गेट से दीवार के पास हिन्दुस्तानी
सैनिकों ने मोर्चे बनाए हैं और वहीं से हुए हमले में हमारे दो सैनिक शहीद हुए हैं।
डॉकयार्ड में प्रवेश करने पर हमारे सैनिकों को ‘नर्मदा’, ‘सिंध’, ‘औध’
जहाज़ों के हमले का सामना करना पड़ेगा। इस रुकावट को पार किए बिना हम आगे बढ़ ही नहीं
सकेंगे।’’ बिअर्ड ने कठिनाइयाँ बतार्इं।
‘‘मेरा ख़याल है कि हमें कोशिश करनी चाहिए।’’ गॉडफ्रे
ने ज़िद की।
बिअर्ड ने फ़ोन उठाया और मेजर सैम्युअल को
सूचनाएँ दीं।
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