सोमवार, 12 मार्च 2018

Vadvanal - 12




मदन  और  दास  को  सामने  से  स.  लेफ्टिनेंट  रावत  आता  दिखाई  दिया ।  जब  से दत्त   पकड़ा   गया   था,   इन   आज़ाद   हिन्दुस्तानी   सैनिकों   की   आँखों   में   रावत   चुभ रहा था, असल में मदन और दास रावत को टालना चाहते थे, मगर बातोंबातों में  वे  रावत  के  इतने  निकट  पहुँच  गए  कि  अब  रास्ता  बदलना  अथवा  पीछे  मुड़ना सम्भव  नहीं  था ।  उसके  सामने  सैल्यूट  का  एक  टुकड़ा  फ़ेंककर  वे  आगे  बढ़  गए ।
''Hey, both of you, Come here'' उसने   आगे   बढ़   चुके   दास   और   मदन को पास    में    बुलाया ।
मन ही मन रावत को गालियाँ देते हुए वे उसके सामने खड़े हो गये ।
''Come and see me in my office.''  उसने इन दोनों से कहा और दनदनाता    हुआ    निकल    गया ।
मदन और दास रावत के ऑफिस में गए । रावत उनकी राह ही देख रहा था ।
‘‘तो,   कमाण्डर   किंग   के   विरुद्ध   शिकायत   करने   वाले   तुम्हीं   दोनों   हो ?’’   कुछ गुस्से  से  रावत  ने  पूछा,  ‘‘मुझे  मालूम  है  कि  यह  सब  तुम  उस  साम्राज्यविरोधी दत्त के कारण कर रहे हो । वही तुम्हारा सूत्रधार है ।’’ रावत ने पलभर दोनों के चेहरों को देखा और बोला,    ‘‘तुम    सबको    बेवकूफ    बना    सकते    हो,    मगर    मुझे    नहीं ।’’
दत्त  को  पकड़वाने  के  पश्चात्  रावत  अपने  आप  को  अंग्रेज़ी  साम्राज्य  का खेवनहार समझने  लगा  था ।  मदन  और  दास  से  वह  इसी  घमण्ड  में  बात  कर  रहा था ।  हालाँकि  मदन  और  दास  ऊपर  से  शान्त  नजर    रहे  थे,  मगर  उनके  भीतर एक ज्वालामुखी धधक रहा था । यदि मौका मिलता तो दोनों मिलकर रावत की हड्डीपसली एक कर देते।
‘‘दत्त को बीच में मत घसीटो । दत्त का इससे कोई संबंध नहीं है ।’’ दास की आवाज़ में गुस्सा छलक रहा  था ।  ‘‘अपमान  मेरा  हुआ  है  और  मैंने  शिकायत नहीं,    बल्कि रिक्वेस्ट-अर्जी दी है ।’’
‘‘मगर  तुम्हारी  वह  रिक्वेस्ट  शिकायत  के  ही  तो  सुर  में  है  ना ?  मैं  पूछता हूँ इसकी ज़रूरत ही क्या    है ?’’    रावत    ने    पूछा ।
‘‘मतलब,    अपमान    हुआ    हो    तो    भी    खामोश    बैठें ?’’    मदन    ने    पूछा ।
‘‘अरे  इन्सान  है!    जाता  है  गुस्सा,  कभीकभी,  बिगड़  जाता  है  मानसिक सन्तुलन । अगर मुझसे पूछो तो मैं कहूँगा कि किंग मन और स्वभाव का अच्छा है ।’’    रावत    किंग    की    तरफदारी    कर    रहा    था ।    ‘‘हम इतने ज़िम्मेदार अधिकारी हैं,  मगर वह हम पर भी चिल्लाता है; मगर हम चुपचाप बैठते ही हैं ना ? क्यों ? इसलिए कि वह हमसे बड़ा है; फिर गालियों से शरीर में छेद तो नहीं हो जाते ना ?’’
‘‘नामर्द है साला,’’ दास बुदबुदाया,   ‘‘ये किंग की चाल हो सकती है । सैनिक अपनी अर्जियाँ वापस ले लें इसलिए रावत के ज़रिये से कोशिश कर रहा होगा ।’’
‘‘क्या हमारा कोई मानसम्मान नहीं है?  हम गुलाम नहीं हैं । खूब बर्दाश्त किया है आज तक। अब इसके आगे...’’   चिढ़े   हुए   मदन   को   दास   ने   चिकोटी काटी  और  चुप  किया ।  रावत  गुस्से  से  लाल  हो  गया  और  कुछ  गुस्से  से  ही  उसने मदन    और    दास    को    समझाने    की    कोशिश    की ।
''Look, boys, तुम जितना समझते हो उतने बुरे नहीं हैं अंग्रेज़ । तुम बेकार ही में उनके ख़िलाफ जा रहे हो । यदि वे इस देश से चले गए तो हिन्दुस्तान में अराजकता फैल जाएगी । और फिर... ’’
‘‘गुलामी  की  जंजीर,  यदि  सोने  की  भी  हो,  तो  भी  बुरी  ही  है ।  यदि  छुरी सोने   की   भी   हो,   तो   भी   उसे   कोई   अपने   सीने   में   नहीं   उतार   लेता ।’’   मदन ने चिढ़कर कहा ।
‘‘मैं  भी  हिन्दुस्तानी  हूँ ।  मुझे  भी  आज़ादी चाहिए ।’’  रावत  के  जवाब  पर मदन  अपनी  हँसी  नहीं  रोक  पाया ।  उसकी  ओर  ध्यान    देते  हुए  रावत  बोलता ही  रहा,  ‘‘अरे,  हम  ठहरे  सिपाही  आदमी ।  हमारा  सिद्धान्त  एक  ही  है । Obey the orders without question.ज़ादी के लिए लड़ने वाले और लोग हैं । उन्हें करने दो यह काम,    हम अपनी राइफ़ल सँभालेंगे ।’’
‘‘आपकी  बात  हमारी  समझ  में    रही  है,’’  मदन  के  इस  जवाब  पर  दास को अचरज हुआ । मगर रावत के सामने मदन का दम घुट रहा था और उसे वहाँ से निकलने का यही रास्ता दिखाई दे रहा था ।
‘‘सच कह रहे हो ?’’  रावत  अपने  चेहरे  की  प्रसन्नता  को  छिपा  नहीं  सका ।
‘‘अगर तुम रिक्वेस्टअर्जी वापस ले लो तो मैं तुम्हारे लिए ज़रूर कुछ न कुछ करूँगा । एकाध प्रमोशन के लिए रिकमेंडेशन या सर्विस डॉक्यूमेंट में अच्छा रिमार्क; जो तुम चाहो ।’’
''Thank you, very much, sir, अब हम चलते हैं ।’’ मदन ने जल्दी से कहा और रावत के जवाब की राह न देखकर वे दोनों बाहर निकल गए ।
‘‘ये  रावत,  साला,  महान  स्वार्थी  है ।  अरे,  बंगाल  में  जब  लोग  अनाज  के एकएक दाने के लिए तड़पतड़प कर प्राण छोड़ रहे थे,    तब ये महाशय एक चम्मच ज़्यादा मक्खन के लिए लड़ रहे थे । देश की आज़ादी,  देश बन्धुओं की गुलामी – इससे उसे कुछ लेनादेना नहीं था । उसे दिखाई दे रहा था सिर्फ खुद का स्वार्थ!’’   खुली हवा    में    साँस    लेते    हुए    मदन    कह    रहा    था ।
‘‘हमारे रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट हैं रावत जैसे चापलूस ।’’ दास चिढ गया   था,   ‘‘इस   बार   की   भी   उसकी   चाल   हमेशा   की   तरह   अपने   स्वार्थ   से   ही   प्रेरित थी ।  अगर  हम  अपनी  रिक्वेस्ट्सअर्जियाँ  वापस  ले  लेते  हैं  तो  इसका  श्रेय  स्वयँ लेकर एकाध प्रमोशन या कोई प्रशंसापत्र वह नेवी से लपक    लेगा!’’
‘‘रावत से हमें सावधान रहना होगा!’’  मदन ने कहा और दोनों बैरेक में वापस लौटे ।



‘‘क्यों रे,  आज बड़ा खुश दिखाई दे रहा है ?’’    गुरु ने दत्त से पूछा ।
आजकल  दत्त  की  ओर  विशेष  ध्यान  नहीं  दिया  जा  रहा  था ।  पहरे  पर  अब सिर्फ  दो  ही हिन्दुस्तानी  सैनिक  रखे  जाते  थे ।  दत्त  को  सभी  सुविधाएँ  दी  जा  रही थीं । शाम को एक घण्टा टहलने    की    भी    इजाजत    थी ।    टहलते    समय    एक    अधिकारी उसके साथ होता था । पहले दोनों ओर सन्तरी होते थे, अब उन्हें भी हटा दिया गया था ।   दत्त   आज   अपनी   ही   धुन   में   मस्त   था ।   सीटी   बजाते   हुए   सेल   में   ही चक्कर लगा रहा था ।
 ‘‘अरे    खुश    क्यों        होऊँ ?    आज़ादी मिलने वाली है,  आज़ादी!’’    दत्त ने हँसते हुए जवाब दिया ।
आजादी   शब्द सुनकर गुरु और जी.  सिंह चौंक गए ।
‘‘क्या अंग्रेज़ों ने देश छोड़कर चले जाने का और हिन्दुस्तान को आज़ादी देने का फ़ैसला कर लिया है?’’    जी.  सिंह ने पूछा ।
‘‘आज़ादी क्या इतनी आसानी से मिलती है ?  उसके  लिए  स्वतन्त्रता  की वेदी  पर  हजारों  सिरकमलों  की  आहुति  देनी  पड़ती  है ।  स्वतन्त्रता  का  कमल  रक्त मांस के कीचड़ में उत्पन्न होता है ।’’    गुरु    ने    उद्गार व्यक्त    किये ।
‘‘ठीक कह रहे हो । मैं बात कर रहा हूँ अपनी आज़ादी की,    देश की आज़ादी की नहीं ।’’   दत्त   ने   कहा ।
‘‘तुझे   कैसे   मालूम ?’’   गुरु   ने   आश्चर्य   से   पूछा ।   ‘‘क्या   पूछताछ   ख़त्म   हो गई ?    कमेटी    ने    फैसला    सुना    दिया ?’’
‘‘नहीं,   पूछताछ   का   नाटक   तो   अभी   भी   चल   ही   रहा   है ।   मगर   मुझे   यह पता  चला है कि  कमाण्डरइनचीफ  का  ख़ास  मेसेंजर  यहाँ  आया  था ।  उसने  एक सीलबन्द   लिफाफा   पूछताछ   कमेटी   के   अध्यक्ष   एडमिरल कोलिन्स   को   दिया   है ।
कमाण्डरइनचीफ  के  आदेशानुसार  मुझे  नौसेना  से  मुक्त  करने  वाले  हैं  और  छह महीनों   के   कठोर   कारावास   के   लिए   सिविल   पुलिस   के   अधीन   करने   वाले   हैं ।’’ दत्त ने स्पष्ट किया ।
‘‘ये तुझे किसने बताया ?’’   जी.   सिंह ने पूछा ।
‘‘रोज शाम को जब मुझे घुमाने के लिए बाहर ले जाया जाता है तो साथ में एक अधिकारी होता है । आज साथ में लेफ्टिनेंट कूपर था । उसी ने मुझे यह ख़बर दी है ।’’  दत्त    ने    जवाब    दिया ।
‘‘लेफ्टिनेंट कूपर ने बताया ?’’   जिसे   सज़ा मिलने वाली है उसी को यह गोपनीय सूचना एक अधिकारी द्वारा   दी   जाए   इस   पर   गुरु   और   जी.   सिंह को विश्वास नहीं हो रहा था ।
‘‘यह    सच    है,    मुझे    कूपर    ने    ही    बताया    है ।’’    दत्त    ने    जोर    देकर    कहा ।
‘‘सँभल के रहना । कूपर अंग्रेज़ों का पक्का चमचा है’’,   गुरु ने उसे सावधान किया ।
‘‘मुझे मालूम है। मैं उसे अच्छी तरह पहचानता हूँ । पक्का हरामी है ।’’ दत्त कह रहा था, ‘‘इंग्लैंड में मजदूर पक्ष की सरकार बन गई है । कई लोगों का ऐसा  अनुमान  है  कि स्वतन्त्रता का  सूरज  अब  निकलने  ही  वाला  है ।  कूपर  जैसे लोग  इस  पर  विश्वास  करने  लगे  हैं ।  ये  लोग  यह  दिखाने  का  एक  भी  मौका  नहीं छोड़ते  कि  वे  स्वतन्त्रता  प्रेमी  हैं ।  इसीलिए  कूपर  ने  मुझे  यह  जानकारी  दी ।’’  दत्त ने  स्पष्ट किया ।
‘‘स्वतन्त्रता   मिलने   के   बाद   अंग्रेज़ों   के   जूते   चाटने   वाले   इन   अधिकारियों को  घर  बिठा  देना  चाहिए ।  आज  अपने  प्रमोशन  की  ख़ातिर  ये  अंग्रेज़ों के प्रति वफादारी दिखा रहे हैं और इसके लिए अपने देशबन्धुओं पर अत्याचार कर रहे हैं,’’    गुरु का गुस्सा उसके हरेक शब्द से प्रकट हो रहा था ।
दत्त नौसेना से मुक्त होने वाला है इस बात की खुशी दोनों के चेहरों पर दिखाई दे रही थी; मगर हम एक बढ़िया कार्यक्षमता   वाले   मित्र   को   खो   रहे   हैं यह    बात    उन्हें    दुखी    भी    कर    रही    थी ।
तलवार  से  भेजे  गए  सन्देशों  को  मुम्बई  से  बाहर  के  जहाजों  और  बेसेससे जवाब प्राप्त हो रहे थे । तलवारके सैनिकों द्वारा की गई पहल की सभी ने तारीफ़ की थी । कुछ लोगों ने खान,  मदन,  गुरु का अनुसरण  करते हुए अपनेअपने  कैप्टेन्स  के  विरुद्ध  रिक्वेस्ट्सअर्जियाँ  दे  डालीं ।  कोचीन  के  वेंदूरथीऔर विशाखपट्टनम के सरकार्सकी बेसके सैनिकों ने तो यह सन्देश भेजा था कि ‘‘तुम   लोग   विद्रोह   करो;   हम   तुम्हारे   साथ   हैं ।   कोचीन,   विशाखापट्टनम पर   हम   कब्जा   कर   लेंगे,   मुम्बई   पर   तुम   कब्जा   करो!’’   विशाखापट्टनम   के   सैनिकों ने सूचित किया,   ‘‘हम मद्रास की अडयार   बेस और कलकत्ता के   हुगली   के सम्पर्क में हैं ।’’ विभिन्न बेसेसऔर जहाज़ों से आए हुए सन्देश काफ़ी उत्साहवर्धक थे।



शनिवार को सुबह आठ बजे कैप्टेन्स रिक्वेस्ट्स एण्ड डिफाल्टर्स फॉलिन किये गए । आज  कमाण्डर  किंग गम्भीर  नज़र    रहा  था ।  उसके  मन  में  हलचल  मची हुई  थी ।  सामने  पड़ी  हुई  आठ  रिक्वेस्ट्स  पर क्या  निर्णय  लिया  जाए  इस  पर  वह कल रात से विचार कर रहा था ।
अगर   सारी   रिक्वेस्ट्स   खारिज   कर   दूँ   तो...   वह   विचार   कर   रहा   था ।
यह बेवकूफी होगी !  उसका  दूसरा  मन  उसे  चेतावनी  दे  रहा  था, ‘इससे सैनिक और भी बेचैन हो जाएँगे और   विरोध   बढ़ेगा ।   शायद   वे   विद्रोह   भी   कर दें । यदि ऐसा हुआ तो...  परिणाम गम्भीर होंगे ।
उसे    रॉटरे    द्वारा    दी    गई    चेतावनी    की    याद    आई ।
यदि सारी रिक्वेस्ट्स पेंडिंग रखूँ तो ?’
 तो  क्या ?  परिस्थिति  में  कोई  खास  अन्तर  नहीं  आएगा ।  सवाल  पूछने वाले एक मन को दूसरा मन जवाब दे रहा था ।
फिर करूँ  क्या ?’    दोनों मनों के सामने था प्रश्न ।
गेंद  उन्हीं  के  पाले  में  भेजनी होगी ।  दोनों  मनों  ने  एक  ही  सलाह  दी ।
मगर कैसे ?’    इसी    के    बारे    में    वह  सुबह    से    विचार    कर    रहा    था ।
पीसने    बैठो    तो    भजन    सूझता    है ।  गले    से    आवाज    निकलती    है ।
वे   आठ   लोग सामने आए कि रास्ता दिखाई देगा! उसने अपने आप से कहा । पहली दोचार छोटीमोटी रिक्वेस्ट्स निपट गर्इं और मास्टर एट आर्म्स ने आठों को एक साथ अन्दर बुलाया । किंग यही चाहता था ।
सामने खड़े आठ लोगों पर उसने पैनी नजर डाली और कठोरता से पूछा, ‘‘तुम  सबकी  शिकायत  मेरे  खिलाफ  है  और  एक  ही  है - मैंने  अपशब्दों  का  प्रयोग किया,   तुम्हारी   माँबहनों   को   गालियाँ   दीं ।’’   किंग   के   भीतर   छिपा   सियार   बोल   रहा था ।
मदन,    गुरु,    दास    और    खान    सतर्क    हो    गए ।
‘‘मेरी   शिकायत   अलग,   स्वतन्त्र   है,   और   वह   सिर्फ   मुझ   तक   ही   सीमित है,’’   मदन   ने   मँजा   हुआ   जवाब   दिया ।  औरों ने   भी   उसी   का   अनुसरण   किया ।
शिकार घेरे में नहीं आ रहा है यह देखकर किंग ने आपा खो दिया । वह चिढ़कर चीखा,  ''you fools, don't teach your grandfather how to... तुम्हारी    शिकायत    किसके    खिलाफ    है,    जानते    हो ?    मेरे    खिलाफ,    कमाण्डर किंग के खिलाफ,  Captain of the HMIS तलवारके खिलाफ । तुम पैदा भी नहीं हुए थे  तबसे  मैं  नौसेना  का  पानी  पी  रहा  हूँ ।  मैंने  कइयों  को  समयसमय  पर  पानी पिलाया  है ।  तुम  क्या  चीज  हो ?  देख  लो,  तुम्हें  एक  ही  दिन  में  सीधा  करता  हूँ  या नहीं ।’’
किंग    की    इन    शेखियों    से    गुरु,    मदन    को  हँसी        गई ।
‘‘तुम   अपने   आप   को   समझते   क्या   हो ?’’   किंग   ने   पूछा,   ‘‘ये   रॉयल   इण्डियन नेवी है । किसी स्थानीय राजा की फटीचर फौज नहीं । यहाँ कानून चलता है तो सिर्फ Her majesty Queen of England     का । चूँकि यह तुम्हारी पहली ही ग़लती है,   इसलिए   तुम्हें   एक   मौका   देता   हूँ,’’   उसने   गहरी   साँस   छोड़ी ।   उसका   गुलाबी रंग लाल हो गया था । रिक्वेस्ट करने वालों के चेहरों पर निडरता थी । किंग को क्रोधित देखकर उन्हें अच्छा लग रहा था ।
किंग   पलभर   को   रुका ।   मन   ही   मन   उसने   कुछ   सोचा,   उसकी काइयाँ आँखें एक  विचार  से  चमकने  लगीं ।  अपनी  आवाज  में  अधिकाधिक  मिठास  लाते  हुए उसने    उनके    सामने    एक    पर्याय    रखा ।
‘‘तुम  लोग  या  तो  अपनी  रिक्वेस्ट्स  वापस  लो,  या  फिर  जो  कुछ  भी  तुमने मेरे   बारे   में   कहा   है   उसे   सिद्ध   करो ।   वरना   मैं   तुम्हें   कमांडिंग   ऑफिसर   को   बदनाम करने    के    आरोप    में    सजा    दूँगा ।’’
कमाण्डर  किंग  वस्तुस्थिति  को  समझ  ही  नहीं  पाया  था ।  स्नो  ने  उसे  सतर्क करने की कोशिश तो की थी मगर वह सावधान हुआ ही नहीं था । बेस के गोरे अधिकारियों से हिन्दुस्तानी सैनिक डर के रहते हैं, इसलिए वह यह समझता था कि  वे  अंग्रेज़ी  हुकूमत  के  साथ  हैं ।  तलवार  के  तीन  हजार  सैनिकों  में  से  कोई भी इन मुट्ठीभर आन्दोलनकारियों का साथ नहीं देगा ऐसा उसे विश्वास   था ।
‘‘मैं  तुम्हें  दो  दिन  की  मोहलत  देता  हूँ ।  सोमवार  तक  या  तो  तुम  अपनी रिक्वेस्ट्स वापस लो और मुझसे माफी माँगो, या फिर सुबूत पेश करो ।’’ उसने उनके    सामने    पर्याय    रखे ।    अब    गेंद    सैनिकों    के    पाले    में    थी ।
‘‘किंग   पक्का   है ।   वह   हमें   उलझाने   की कोशिश   कर   रहा   है ।’’   मदन   ने कहा ।
‘‘हम    गवाह    कहाँ    से    लाएँगे ?’’    दास    को    चिन्ता    हो    रही    थी ।
हम   एकदूसरे के लिए तो गवाह बन नहीं सकते । अगर ऐसा करेंगे तो यह सिद्ध हो जाएगा कि हमारी रिक्वेस्ट्स एक षड्यन्त्र का हिस्सा है ।’’    गुरु का डर बोल रहा था ।
‘‘अब,  अगर  ऐसे  गवाहों  को  लाना  है  जिन्होंने  रिक्वेस्ट्स  नहीं  दी  है;  तो हमारी    ओर    से    गवाही    देने    के    लिए    सुमंगल    आएगा,    सुजान    आएगा    और    कुछ और लोग भी आगे    आएँगे ।’’    पाण्डे    ने    उपाय    बताया ।
‘‘मतलब, हम वही करने जा रहे हैं जो किंग चाहता है ।’’ खान ने विरोध किया ।
‘‘क्या   मतलब ?’’   पाण्डे   ने   पूछा ।
‘‘यदि हम गवाह लाए तो हमारे सारे पत्ते खुल जाएँगे । हमारे साथी कौन हैं,  इसका  किंग  को  पता  चल  जाएगा  और  वह हमें  खत्म  करने  की  कोशिश  करेगा ।’’ खान ने स्पष्ट किया ।
‘‘इसके   अलावा   यह   भी   नहीं   कहा   जा   सकता   कि   हमारे   द्वारा   पेश   किए गए  सुबूतों  को  वह  मान  ही  लेगा ।  यहाँ  तो  आरोपी  ही  न्यायाधीश  है ।’’  गुरु  ने कहा।
 ‘‘ठीक है । और दो दिन हैं हमारे पास । कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकलेगा ।’’ खान    ने    आशा    प्रकट    की ।



जब कमाण्डर किंग अपने दफ्तर में पहुँचा तो बारह बज चुके थे । उसने अपनी डायरी पर नज़र दौड़ाई तो पाया कि   अभी   बहुत   सारे   काम   निपटाने   हैं ।   इन   आठ रिक्वेस्ट्स  ने  काफी  समय  खा  लिया,’  वह  अपने  आप  से  बुदबुदाया ।  मगर  एक बात अच्छी हुई । इनका फैसला हो गया । अब कुछ कामों को आगे धकेलना ही पड़ेगा । उसने फिर से डायरी में मुँह घुसाया और देखने लगा कि कम महत्त्वपूर्ण काम  कौनसे  हैं ।  कॉक्सन  बशीर  ने  उसके  सामने  चाय  का  कप  रखा ।  गर्मगर्म चाय गले से उतरते ही उसे ताज़गी का अनुभव हुआ । दिमाग का तनाव कुछ कम हुआ, उसने पाइप सुलगाया । कड़क तम्बाखू के चार कश सीने में भर लेने के बाद उसकी थकावट और निराशा भी दूर भाग गए ।
''May I come in, sir?'' सेक्रेटरी   ब्रिटो   दरवाजे   पर   खड़ा   था ।
''Yes, Lt. Britto, anything important?'' उसने   भीतर आने वाले ब्रिटो से पूछा ।
‘‘सर,  दत्त की सज़ा से सम्बन्धित कल आया हुआ पत्र आपने देखा ही है । आज इन्क्वायरी  कमेटी  ने  अपनी  रिपोर्ट  दी  है ।  उसमें  उन्होंने  स्पष्ट  रूप  से लिखा है कि दत्त को फौरन सिविल पुलिस के हाथों में दे दिया जाए, सेवामुक्त कर   दिया   जाए ।   उन्होंने   उसे   छह   महीनों   के   कठोर   कारावास   की   सजा   सुनाई   है ।’’
ब्रिटो ने जानकारी दी ।
''Oh, hell with them! अरे, अभी बजे हैं साढ़े बारह । सिर्फ आधे घण्टे में उसके लिए आवश्यक कागज़ातों के ढेर कैसे टाइप हो सकते हैं ? और आज उसे नौसेना से कैसे निकाल सकते हैं ?’’    ब्रिटो सुन सके इस अन्दाज़ में वह पुटपुटाया ।
‘‘सर, इन्क्वायरी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में आपके द्वारा समयसमय पर लिये  गए  निर्णयों  की  प्रशंसा  तो  की  ही  है,  साथ  ही  यह  भी  कहा  है  कि  वे  निर्णय अत्यन्त   योग्य   थे ।’’   ब्रिटो   के   चेहरे   की   प्रशंसा   का   भाव   उसके   शब्दों   में   झलक रहा था ।
मतलब,    मैं    सही    रास्ते    पर    हूँ,’    किंग    ने    सोचा ।
‘‘लेफ्टिनेंट ब्रिटो,  एडमिरल कोलिन्स को इन Compliments के लिए  आभार दर्शाते हुए पत्र भेजो और उसकी एक प्रति पार्कर को भी भेजो ।’’ किंग ने ब्रिटो को सूचना दी ।
क्या तुम्हें राजनीतिक कैदियों को दी जाने वाली सुविधाएँ चाहिए ? ’   ब्रिटो के बाहर जाते ही किंग के मन में दत्त का ख़याल आया ।
कागज़ात पूरे करने तक  सोमवार  की  दोपहर  हो  जाएगी ।  मतलब  अभी  पूरे  डेढ़  दिन  दत्त  मेरे  कब्ज़े में है । इन डेढ़ दिनों में यदि उसके साथियों को पकड़ सकूँ तो ?’
उसके   मन   का   सियार   जाग   उठा ।   किंग   ने   एक   चाल   चलने   की   सोची । वह  बाहर  निकला  और  सीधा  सेल  की  दिशा  में  चलने  लगा ।  कमाण्डर  किंग  के पैरों   की   आहट   सुनते ही सन्तरी सावधान हो गया । सैल्यूट को स्वीकार करते हुए किंग सेल के लोहे के दरवाजे के पास गया ।
दत्त शान्ति से बैठा कुछ पढ़ रहा था । दत्त को इतना शान्त देखकर किंग को  अचरज  हुआ ।  इतना  सब  कुछ  हो  जाने  के  बाद  भी  यह  इतना  शान्त  कैसे है ?’    किंग    ने    अपने    आप    से    पूछा ।    सेल    का    दरवाजा    खुला ।
‘‘गुड   नून’’   दत्त   ने   कहा ।
किंग    ने    हँसकर    उसका    अभिवादन    स्वीकार    किया ।
‘‘तुम सोमवार को सेवामुक्त हो जाओगे । क्या तुम्हें अपनी सज़ा के बारे में पता है ?’’    किंग ने पूछा ।
दत्त ने इनकार करते हुए गर्दन हिला दी । चेहरे पर भोलेपन के भाव थे ।
‘‘तुम्हारे हाथ से हुई ग़लतियाँ अनजाने में हुई हैं,   ऐसी रिपोर्ट भेजी थी मैंने । उस रिपोर्ट का और तुम्हारी उम्र का ख़याल करते हुए कमाण्डर इन चीफ ने   दया   दिखाते   हुए   तुम्हें   डिमोट   करके   नौसेना   से   मुक्त   करने   की   सजा   सुनाई है ।’’    आधीअधूरी    जानकारी    देते    हुए    किंग    दत्त    का    चेहरा    देखे    जा    रहा    था ।
‘‘ठीक  है ।  मतलब  तुम  मुझे  सोमवार  को  सेवामुक्त  करोगे!’’  दत्त  निर्विकार चेहरे से बोला,   ‘‘मतलब और   दो   दिन   मुझे   सेल   में   गुजारने   पड़ेंगे ।   इसके   बाद मैं  आज़ाद हो जाऊँगा,    अपनी मर्ज़ी से काम    करने    के    लिए ।’’
हरामखोर,   सोमवार को जब गिट्टी  फ़ोड़ने के लिए जाएगा,   तो पता चलेगा कि आज़ादी कैसी है! यहीं सड़ तू  और   दो   दिन ।   दत्त   की   स्थितप्रज्ञता   को   गालियाँ देते   हुए   किंग   मन   ही   मन   पुटपुटाया ।   दत्त   और   दो   दिन   सेल   में   रहने   वाला है इस ख़याल से अचानक उसके भीतर के सियार ने सिर    बाहर    निकाला ।
‘‘अगर   तुम   चाहो   तो   बैरेक   में   जाकर   रह   सकते   होय   मुझे   कोई   आपत्ति   नहीं । मगर तुम्हें बेसछोड़कर जाने की इजाजत नहीं होगी । और हर चार घण्टे बाद   ऑफिसर ऑफ दि डे को रिपोर्ट करना होगा,   बिलकुल रात में भी ।’’   किंग   ने सोचा कि यह मानेगा नहीं । ‘‘अगर तुम्हारी इच्छा न हो तो... ’’
अन्धा माँगे एक आँख और...  मैं तो सिर्फ अपने दोस्तों से मिलना चाहता था,  मगर  यह  तो...  दत्त  ने  मन  में विचार  किया ।  ‘‘नहीं,  यह  बात  नहीं ।  मुझे यह  सब  मंजूर  है ।  असल  में  यहाँ  अकेले  पड़ेपड़े  मैं  उकता  गया  हूँ ।  वहाँ  कम से कम मेरे दोस्त तो मिलेंगे ।’’ और दत्त ने अपना सामान समेटना शुरू किया ।
किंग मन ही मन बहुत खुश हो गया । एक बार तो उसे लगा था कि यदि इसने इनकार  कर  दिया  तो  इसके  साथियों  को  पकड़ने  की  मेरी  चाल  पूरी  नहीं  होगी ।
‘‘मैं ऑफिसर ऑफ दि डे को इस सम्बन्ध में आदेश देता हूँ । दो सन्तरी तुम्हें  बैरेक  में  छोड़  आएँगे ।  वहाँ  यदि  तुम्हें  कोई  तंग  करे  तो  तुम  ऑफिसर  ऑफ दि डे को रिपोर्ट करना और सेल में वापस आ जाना ।’’ किंग ने बाहर निकलते हुए कहा ।
दत्त हँसा और मन ही मन पुटपुटाया, ‘बेवकूफों के नन्दनवन में घूम रहा है,  साला! बैरेक में मुझे तो सुरक्षा की ज़रूरत नहीं है;  मगर मेरे बैरेक में जाने के बाद कहीं तुझे ही सुरक्षा की ज़रूरत न पड़  जाए!’’



‘‘बशीऽऽर,’’  अपने  चेम्बर  में  पहुँचते  ही  किंग  ने  बशीर  को  बुलाया ।  बशीर  अदब से अन्दर आया ।
''Call Sub Lt. Rawat, ask him to see me immediately.'' बशीर रावत को बुलाने गया और किंग पाइप में तम्बाखू भरने लगा ।
अन्दर आए रावत को किंग ने इशारे से ही अपने पास बुलाया ।
‘‘दत्त को आज आज़ाद करके उसे मैंने बैरेक में भेजा है । वह सोमवार तक वहीं रहेगा...’’
‘‘सर   बहुत   बड़ा   खतरा   मोल   ले   रहे   हैं   आप ।   सोमवार   तक   वह   क्या   उत्पात मचाएगा  इसका  कोई  भरोसा  नहीं     मेरा  ख़याल  है  कि  आप  उसे...’’  रावत  किंग को   अनावश्यक   सलाह   देते   हुए   किंग   की   गलती दिखाने की कोशिश कर रहा था ।
''Rawat, listen to me first.'' किंग ने रावत को फटकारा । ‘‘तुम्हारा काम इतना ही है कि तुम किसी के माध्यम    से दत्त पर नज़र रखो...  वह किसकिस से मिलता है,   क्याक्या   कहता   है,   यह   सब   मुझे   मालूम   होना   चाहिए ।   उस   पर नज़र रखकर उसके साथियों को पकड़ना है । तुमने दत्त को जिस कुशलता से पकड़ा था,   उसी   तरह   उसके   साथियों   को   पकड़ो ।   यह   काम   सिर्फ   तुम   ही   कर सकते   हो,   इसका   मुझे   यकीन   है ।’’   किंग   ने   उसे   उसकी   ज़िम्मेदारी समझाई ।   किंग द्वारा की गई प्रशंसा से खुश होकर रावत दत्त पर नजर रखने की योजना बनाते हुए बाहर निकला ।



‘‘अरे,  वो देख, अपना हीरो दत्त आ रहा है ।’’ कोई चिल्लाया और सबकी नजरें बैरेक से बाहर की ओर देखने लगीं । दत्त ही था वह!
सुमंगल दत्त की ओर दौड़ा और उसके हाथ से किट बैग ले ली । सुमंगल ने नारा लगाया,  ''Three cheers for Dutt!''
‘‘हिपहिप हुर्रे!’’  और इसे ज़ोरदार प्रत्युत्तर मिला । बैरेक के सैनिक दौड़कर आगे  बढ़े  और  उन्होंने दत्त  के  विरोध  की  परवाह    करते  हुए  उसे  ऊपर  उठा  लिया  और किसी  विजयी  वीर  के  समान  बैरेक  के  एक  कोने  से  दूसरे  कोने  तक  उसका  जुलूस निकाला ।



रावत ने बोस को अपने क्वार्टर में बुलाया ।
‘‘ये क्या सर,   दत्त को छोड़ दिया ?  उसे बैरेक में रहने की इजाज़त दे दी ?’’ बोस की आवाज़ में आश्चर्य था ।
‘‘मैं कौन होता हूँ उसे छोड़ने वाला ? ये सारी कप्तान साब की मेहरबानी है! फिर भी मैंने उनसे कहा कि दत्त को बैरेक में भेजना खतरनाक है । मगर मेरी  बात  सुनता  कौन  है ?’’  रावत  शिकायत  के  सुर  में  बोस  से  कह  रहा  था  और यह  कहते  हुए  यह  जताने  की  कोशिश  कर  रहा  था  कि  वह  कितना  समझदार         है ।
‘‘दत्त  को  बैरेक  में  भेजा  और  आगे  का  सब  कुछ  निपटाने  की  ज़िम्मेदारी मुझ पर डालकर किंग फ़ारिग हो गया। हम ठहरे साम्राज्य के वफ़ादार सेवक; तो ये करना ही होगा और इसके लिए तुझे मदद करनी होगी ।’’
‘‘मैं  हमेशा  ही  आपकी  और  साम्राज्य  की  तरफ  हूँ ।  आज  वह  साम्राज्य  का दुश्मन  बैरेक  में  आया  और  किसी  वीर  की  तरह  उसका  स्वागत  किया  गया ।  मुझे इतना  गुस्सा  आया  था,  मगर  करता  क्या ?  चुप  रहा!’’  बोस  ने  अपनी  नाराज़गी ज़ाहिर की ।
‘‘दत्त   को   किंग   सा   ने   बैरेक   में   जाने   दिया   इसके पीछे उद्देश्य यह था कि दत्त के साथियों को ढूँढ़ा जाए । दत्त पर बारीक नज़र रखकर उसके साथियों को ढूँढ़ने का काम हमें सौंपा गया है ।’’    रावत    ने    काम    के    स्वरूप    के    बारे    में    बताया ।
 ‘‘सर, करीब पन्द्रह दिन पहले मैंने इन आन्दोलनकारियों के एक भूमिगत क्रान्तिकारी  के  छुपने  की  जगह  के बारे  में  आपको  सूचना  दी  थी ।  उसका  आगे क्या हुआ ?   और दूसरी बात यह,   कि यह सब मैं करूँ,   समय आने पर उनकी मार भी खाऊँ,    मगर मुझे इससे क्या लाभ होगा?’’    बोस ने पूछा ।
‘‘मैंने   साहब   से   तुम्हारा   नाम   अगले   प्रमोशन   के   लिए   रिकमेंड   करने   को कहा   है   और वे   भी   इसके   लिए   तैयार   हो   गए   हैं ।   किंग   साहब   की   तुम्हारे   बार में बिलकुल    अच्छी    राय    है ।’’    रावत    ने    ठोक    दिया ।
‘‘ठीक  है ।  मैं  दत्त  पर  नजर  रखता  हूँ ।  और  यदि  कोई  खास  बात  देखूँगा तो   आपको   सूचित   करूँगा ।   मगर   मैंने   आपको   जो   पता   दिया   है   उस   पर   धावा बोलिए । मुझे यकीन है कि काफ़ी कुछ आपके हाथ लगेगा । बैरेक के इन विस्फोटकों का फ़्यूज वहीं है ।’’    बोस ने अनुमान व्यक्त  किया ।
‘‘ठीक है । मैं देखता हूँ । तू अपने काम पर लग जा!’’ रावत ने बोस को यकीन दिलाया और बोस अपने काम पर निकल गया ।



रावत  ने  खुद  किंग  से  मिलकर  बोस  द्वारा  दिया  गया  शेरसिंह  का  पता  देने  का निश्चय  किया ।  वह  तैयार  हुआ  ही  था  कि  उसके  फोन  की  घण्टी  बजने  लगी ।
''Sub Lt. Rawat speaking.''
''Rawat, King here, मैंने जो बताया था वह काम हो गया?’’
''Yes Sir, आदमी   तैनात   कर   दिए   हैं । दूसरी एक महत्त्वपूर्ण बात – मुझे एक पता मिला  है। वहाँ  इन सैनिकों  को  भड़काने  वाला  और  उनका  मार्गदर्शन करने  वाला  क्रान्तिकारी  छुपकर  बैठा  है ।  यदि  उसे  गिरफ्तार  कर  लिया  जाए  तो तलवार    के    आन्दोलनकारी    ठण्डे    पड़    जाएँगे ।    रावत    ने    कहा ।
‘‘तुम पता दो । मैं देखता हूँ कि आगे क्या करना है ।’’  किंग  को  जल्दी पड़ी थी । “मगर खबर पक्की है ना ?’’    उसने    सुनिश्चित    करने    के    लिए    पूछा ।
‘‘बिलकुल  सौ  प्रतिशत ।  आप  सिर्फ  धावा  बोलिये ।’’  रावत  ने  जवाब  दिया और शेरसिंह का पता बता दिया ।
किंग  ने  पता  लिख  लिया ।  उसके  चेहरे  पर  समाधान  था ।  रॉटरे  द्वारा  दी गई समयावधि से पहले वह हालाँकि क्रान्तिकारी सैनिकों को गिरफ्तार नहीं कर सका था,   मगर   एक   बड़े   क्रान्तिकारी   को   गिरफ्तार   करवाने   में   अमूल्य   सहयोग देने   वाला   था ।




इतवार को सुबह आठ से बारह वाली ड्यूटी पर जाने वाले सैनिकों को छोड़कर बाकी  पूरी  बेस  में  छुट्टी  का माहौल  था ।  इतवार  की  साफसफाई  के  लिए  होने वाली  फॉलिन  और  उस  दिन  की  साफसफाई बस  नाममात्र  की  होती  थी ।  रोज़ की तरह भागदौड़, गहमागहमी नहीं होती थी । सब कुछ सुस्ताए हुए अजगर के समान सुस्ती से होता था । 17 फरवरी,   1946 का इतवार हमेशा के इतवार की  तरह  नहीं  था ।  उस  इतवार  के  गर्भ  में  असन्तोष  का  लावा  खदखदा  रहा  था ।
पिछले दो महीनों से बेस में जो कुछ हो रहा था, उसी का परिपक्व रूप लेकर निकला था यह इतवार। समूची बेस   ही ज्वालामुखी के मुहाने पर सवार थी । हर कोई चाह रहा था कि इस ज्वालामुखी में विस्फोट हो जाए और अंग्रेज़ी    हुकूमत    की    धज्जियाँ    उड़    जाएँ ।
‘‘दत्त    कहाँ    है ?’’    बशीर    ने    पूछा ।
‘‘क्यों  रे,  क्या  किंग  को  देने  के  लिए  कोई  जानकारी  चाहिए ?’’  पाण्डे  ने पूछा ।
‘‘पाण्डे,  प्लीज,  मुझ  पर  ऐसा  अविश्वास    दिखाओ ।  कमाण्डर  किंग  का कॉक्सन   होते   हुए   भी   मैं   हिन्दुस्तानी   ही   तो   हूँ   और   तुम्हारे   जितना   ही   मैं   भी   अपनी मिट्टी से प्यार करता हूँ!’’ अविश्वास का दुख बशीर के चेहरे पर स्पष्ट झलक रहा    था ।
''I am sorry, Bashir.'' खुले  दिल  से  बशीर  से  माफी  माँगकर  आते  हुए दत्त  की  ओर  इशारा  करते  हुए  पाण्डे  बोला,  ‘‘देखो,  वह  इधर  ही    रहा  है!’’
''Good morning, Dutt.'' बशीर   ने   कहा ।
‘‘अरे,    आज तू यहाँ कैसे ?’’
‘‘तुझसे ही मिलने और तुझे आगाह करने आया था ।’’   बशीर फुसफुसाया ।
‘‘तुम  और  तुम्हारे  सभी  दोस्तों  को  होशियार  रहना  होगा ।  बोस  और  उसके  दोस्त तुम पर नज़र रखे    हुए हैं । तुम्हारी हर हलचल की खबर हर घण्टे किंग तक पहुँचाई जाती है ।’’
''Thanks, बशीर,   हम सब सावधान ही हैं; मगर अब और ज़्यादा सावधान रहेंगे ।’’    दत्त    ने    कहा ।
ड्यूटी  पर  गया  हुआ  यादव  आठ  बजे  वापस  आया - वह खान,  गुरु,  दत्त, मदन  इन  सभी  को  ढूँढ़  रहा  था ।  उसके  थके  हुए  चेहरे  पर  एक  अजीब  आनन्द था ।
‘‘क्या रे,   बड़ा खुश है आज ?’’    गुरु ने पूछा ।
 ‘‘पहले यह बताओ,    सब लोग कहाँ हैं ?’’    यादव ।
‘‘क्यों रे,    पकड़ने वाले तो नहीं हैं ना ?’’    गुरु ने सन्देह व्यक्त किया ।
‘‘बिलकुल   खास   महत्त्व   की   और   उत्साह   बढ़ाने   वाली   खबर   है ।’’   यादव ने    कहा ।
सभी    आजाद    हिन्दुस्तानी    बैरेक    के    पीछे    इकट्ठा    हो    गए ।
‘‘हँ!   जल्दी   से   बता!’’   खान   उत्सुकता   से   कहा ।
‘‘शेरसिंह ने जैसा बताया था,   उसी तरह से दिल्ली के हवाईदल की यूनिट्स में  विद्रोह हो  गया  है।’’  यादव  ने बताया ।  सभी  आज़ाद  हिन्दुस्तानी  खुशी  के  मारे चीख पड़े । खान ने उन्हें शान्त किया ।
‘‘यह   खबर   तुझे   किसने   दी ?’’   खान   ने   पूछा ।
‘‘अरे,  किसी  के  देने  की  जरूरत  क्या  है!  ये  कमाण्डर  इन  चीफ  की  ओर से आया हुआ सन्देश ही देख लो ना!’’ हाथ में पकड़े कागज को फड़काते हुए यादव   ने   कहा ।
‘‘तू ही पढ़ ना,    मगर धीमी आवाज़ में!’’    खान ने सुझाव दिया ।
''Secret–Priority–161830—
From C-in-c.
To–R.I.N. General
= R I N G 654. Mutiny reported in Delhi units of Royal Indian Air Force. All commanding officers of the ships and the establishments are to be alert and to report the suspected incidents immediately"=  यादव   ने   सन्देश   पढ़ा ।
‘‘ये सीक्रेट मेसेज तुझे कैसे मिला ?’’    खान ने पूछा ।
‘‘ये  देख,  तू  बेकार  में  मीनमेख    निकाल ।  भरोसा  रख  मुझ  पर!’’  यादव बोला,  'Four figure coded message था । मैंने  डीक्रिप्शन  शुरू  किया । पहला ही शब्द था सीक्रेट     मैंने पूरा मेसेज डीकोड किया और     फिर     ड्यूटी     क्रिप्टो     ऑफिसर को    सूचित    किया ।’’
''Well done! शेरसिंह ने इसके बारे में बताया ही था । मगर गुरु,   तुझे याद   है,   सब   लेफ्टिनेंट   रामदास   ने   जो   ख़त   दिखाया   था ?   उस   ख़त   पर   तारीख नहीं थी,   किसी के भी हस्ताक्षर तक नहीं थे । उस ख़त     में सरकार को यह चेतावनी  दी  गई  थी  कि  यदि  सैनिकों  में  व्याप्त  असन्तोष  को  दूर  करने  की  दिशा में यदि प्रयत्न नहीं किए गए तो सेना में गड़बड़ी फैल जाएगी, सेना विद्रोह कर देगी । तुझे याद है, उस ख़त की अन्तिम तारीख 15 फरवरी थी ।’’ दत्त ने याद दिलाई ।
‘‘हमें रामदास पर विश्वास करना चाहिए था ।’’ गुरु ने पछतावे से कहा ।
‘‘अरे,  मुम्बई  के  मरीन  लाइन्स  के  हवाईदल  के  सैनिकों  ने  सात  तारीख  का जो   विद्रोह   किया   था,   उसकी   जानकारी   हमें   मिली   ही   नहीं ।’’   मदन   ने   कहा,   ‘‘कल हवाईदल    का    एक    जवान    बता    रहा    था ।’’
‘‘इससे एक बात स्पष्ट है । सैनिक विद्रोह करने की मन:स्थिति में है । वे विद्रोह  कर  भी  रहे  हैं  और  सरकार  हर  सम्भव  तरीके  से  विद्रोह  को  दबा  रही  है ।’’ खान ने परिस्थिति का विश्लेषण किया ।
‘‘‘अरे,   मगर   इन   हवाईदल   के   यूनिट्स   को   हुआ   क्या   है ?   वे   सब   एक   होकर विद्रोह    क्यों    नहीं    करते ?’’    दास    ने    पूछा ।
''Lack of communication'' मदन ने जवाब दिया ।
‘‘ऐसे  छोटेछोटे  विद्रोहों  से  क्या  हासिल  होने  वाला  है ?’’  पाण्डे  ने  सन्देह व्यक्त किया ।
‘‘इन  दबाए  गए,  असफल  विद्रोहों  में  ही  अगले  विद्रोह  के  बीज  होते  हैं । असफल विद्रोह भी साम्राज्यवाद की जड़ पर किया गया प्रहार होता है और हर घाव   साम्राज्यवाद   को   जर्जर   करने   का   काम   करता   है ।’’   खान   समझा   रहा   था ।
‘‘अब हम अपने दिल्ली स्थित नौसैनिकों के जरिये हवाई दल के सैनिको को  सूचित  करें  कि  अब  पीछे    हटना ।  हम  तुम्हारे  साथ  हैं ।  आज  बारह  से  चार वाली ड्यूटी में दिल्ली को यह सन्देश भेजने की ज़िम्मेदारी मेरी । नाश्ते के बाद मदन   और   गुरु   शेरसिंह   से   मिल   कर   आएँगे ।   और   आज   छह बजे के बाद हम मिलेंगे । कोई भी बाहर नहीं जाएगा।’’


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