बुधवार, 21 मार्च 2018

Vadvanal - 21




‘‘क्या हमें लॉकहर्ट से मिलना चाहिए? ’’ मदन ने टाउन हॉल से बाहर निकलकर पूछा।
‘‘मैं नहीं समझता कि इससे कोई लाभ होगा,’’  निराशा से खान ने जवाब दिया।
‘‘यह न भूलो कि हम पर बीस हज़ार सैनिकों की ज़िम्मेदारी है। हर सम्भव पत्थर को पलटकर देखना होगा।’’ गुरु ने सुझाव दिया। दत्त का भी यही विचार था। अत: चारों फॉब हाउस पहुँचे। मगर लॉकहर्ट वहाँ नहीं था।
जैसे ही पता चला कि सेन्ट्रल कमेटी के सदस्य आए हैं,  रॉटरे ने उन्हें भीतर बुलाया।
‘‘फिर क्या तय किया आपने?’’  रॉटरे ने कुछ अकड़ से पूछा।
‘‘तय क्या करना है?   जब तक माँगें पूरी नहीं हो जातीं,   हम पीछे नहीं हटेंगे।’’   खान अपना संयम खो रहा था,  वह बेचैन हो गया था।
‘‘सैनिकों को शान्त रखो। यदि उन्होंने ज़रासी भी गड़बड़ी की तो किसी भी तरह की दया नहीं दिखाई जाएगी,  यह याद रखो!’’  रॉटरे ने घुड़की दी।
‘‘हिन्दुस्तानी सैनिक शान्त थे और शान्त ही हैं। गड़बड़ की थी ब्रिटिश सैनिकों ने। आप उन्हें काबू में रखिये, और याद रखिये, यदि उन्होंने एक भी गोली चलाई तो हम उसका मुँहतोड़ जवाब देंगे। यह न भूलिये कि हमारे पास बहुत सारा गोलाबारूद है।’’  खान ने टकासा जवाब दिया।
खान के जवाब से रॉटरे को काफ़ी गुस्सा आ गया। सालों को सबक सिखाना होगा।  वह अपने आप से पुटपुटाया,  ये समय नहीं है   उसने स्वयँ को समझाया। चेहरे के भाव न बदलते हुए वह शान्त सुर में बोला, ‘‘भूदल के पहरेदार शान्त  हैं,  हाँ,  मगर यदि तुम लोगों ने हथियार नहीं डाले तो फिर....’’
‘‘भूदल का घेरा उठाकर हमारी सारी माँगें मान लो, ’’   खान ने कहा।
‘‘वह मेरे हाथ में नहीं है,’’   रॉटरे ने असमर्थता जताई।
दोनों पक्ष ख़ामोश हो गए और फॉब हाउस में सन्नाटा छा गया।
‘‘तो, बिना शर्त आत्मसमर्पण करोगे ?’’   कुछ देर रुककर रॉटरे ने पूछा।
‘‘यह सम्भव नहीं, ’’  खान ने जवाब दिया ।
‘‘ठीक है।’’  रॉटरे उठ गया। खान और उसके साथियों को यह जाने का आदेश था।



खान और उसके साथी फॉब हाउस से बाहर निकले। पूरे वातावरण पर हताशा छाई थी। चारों ओर जानलेवा ख़ामोशी थी। पिछले तीन दिनों से उस भाग के सभी व्यवहार ठप  पड़े  थे । बीच में  ही  सेना  का  एकाध  ट्रक  वातावरण  की  शान्ति को भंग करते हुए फुर्र से निकल जाता। भूदल के सैनिक अब कुछ सुस्त हो गए थे। उन चारों के सामने  एक  ही  सवाल  था,  आगे  क्या ?  इस  बात  में  उन्हें कोई सन्देह नहीं था कि गॉडफ्रे अपनी धमकी पूरी करेगा। क्या समूची नौसेना और हज़ारों नौसैनिकों को खुली आँखों से ख़त्म होते हुए देखें या नौसैना एवँ निरपराध नागरिकों को बचाने के लिए आत्मसमर्पण कर दिया जाए?   इस पर विचार करते हुए वे नर्मदा  की ओर नि:शब्द जा रहे थे।
वे काला घोड़ा   की ओर आए और चार नागरिकों ने उन्हें रोका।
‘‘मैं, कॉमरेड वैद्य, ये कॉमरेड जोशी, ये कॉमरेड भिसे और यह है कॉमरेड रणदिवे।’’  वैद्य ने अपने साथियों का परिचय दिया। ‘‘तुम नौसैनिक अंग्रेज़ी हुकूमत का जिस तरह सामना कर रहे हो उस पर हमें गर्व है।’’
दत्त ने इस अपनेपन और  सहानुभूति के प्रति आभार व्यक्त किया और अपना तथा अपने साथियों का परिचय करवाया।
 ‘‘असल में हम तुमसे और खान से मिलने ही आए थे और इसी के बारे में सोच रहे थे कि तुम लोगों से कैसे मिला जाए। तुम दोनों के बारे में हमने अख़बारों में पढ़ा है। आप पर हमें अभिमान है।’’   वैद्य ने कहा।
‘‘यहाँ रास्ते पर खड़े रहने के बजाय क्या हम उस दुकान की सीढ़ी पर बैठकर बातें करें ?’’  गुरु ने सुझाव दिया और वे सब एक अँधेरी गली में गए।
‘‘हमने अपनी पार्टी की कार्यकारिणी की दोपहर में मीटिंग की जिसमें एक मत से तुम्हें समर्थन देने का निर्णय लिया गया है। इस समर्थन के एक भाग के रूप में कल मुम्बई बन्दकी घोषणा की है । यह बन्द आज रात को बारह बजे से शुरू होगा।  हमारे कार्यकर्ता मुम्बई की मिलों और कारख़ानों में मज़दूरों से बन्द का आह्वान करने के लिए घूम रहे हैं ।’’  वैद्य ने जानकारी दी।
‘‘हमारे संघर्ष के भविष्य की दृष्टि से आपका समर्थन महत्त्वपूर्ण है। यदि इसी तरह कांग्रेस और लीग ने भी हमें समर्थन दिया होता तो सरकार पर दबाव पड़ता, उसे हमारी माँगें मंज़ूर करनी पड़तीं और स्वतन्त्रता की सुबह हो गई होती।’’
खान के शब्दों में आशा की अपेक्षा निराशा ही ज़्यादा थी।
‘‘कल के बन्द के सिलसिले में पहले हम मुम्बई कांग्रेस के सेक्रेटरी एस. के.  पाटिल से मिले। उन्होंने पटेल से मिलने की सलाह दी। जब हम पटेल से मिले तो उन्होंने बन्द का विरोध किया। कांग्रेस न केवल इस बन्द से दूर रहेगी, बल्कि वह इसका विरोध भी करेगी। उन्होंने हमें सलाह दी कि चार बेवकूफ़ सैनिकों की ज़िद की खातिर तुम लोग मुम्बई की शान्ति को ख़तरे में न डालो। इतना ही नहीं, उन्होंने अख़बारों में यह आवाह्न भी छपवाने के लिए भेज दिया कि कोई बन्द में सहभागी न हो’’  वैद्य ने उन्हें ज्ञात हुई कांग्रेस की भूमिका के बारे में बताया।
‘‘तुम्हारे संघर्ष के बारे में कांग्रेस ने यह रुख़ क्यों अपनाया?’’  कॉमरेड जोशी ने पूछा।
‘‘कांग्रेस ने ऐसा क्यों किया यह तो हम समझ नहीं पा रहे हैं। आज सुबह ग्यारह बजे तक तो हम अहिंसा के रास्ते पर ही थे। दिन में ग्यारह बजे ब्रिटिश सेना ने हम पर गोलीबारी की और हमारे भीतर का लड़ाकू सैनिक जाग उठा। हमने करारा जवाब दिया। हम कोई मँजे हुए राजनीतिज्ञ तो नहीं हैं,  राजनीति के दाँवपेंच हम नहीं समझते, मगर युद्ध के दाँवपेंचों में हम पारंगत हैं, और इसी के बल पर आज तक टिके हुए हैं। कांग्रेस के किसी भी नेता ने आकर  न हमारा हालचाल पूछा, न ही हमसे कोई जानकारी प्राप्त की। अंग्रेज़ों से मिलने वाली जानकारी के आधार पर वे निर्णय ले रहे हैं। वे हमें अपना तो मानते ही नहीं, बल्कि इस मिट्टी के लाल भी नहीं मानते। इसी बात का हमें दुख है।’’   दत्त ने दिल की बात साफ़साफ़ बता दी।
‘‘मगर हम आख़िरी दम तक लड़ेंगे। आपके समर्थन से हमारा उत्साह दुगुना हो गया है।’’   मदन ने कहा।
‘‘ये आज शाम के अख़बार,  हम खास तौर से तुम लोगों के लिए लाए हैं। इन अख़बारों में छपी ख़बरें गुमराह करने वाली हैं। जनता को सत्य का पता चलना चाहिए। ये ख़बरें परस्पर विरोधी हैं,   इन्हें पढ़कर इनका करारा जवाब दीजिए।’’  वैद्य ने शाम के अख़बारों के अंक देते हुए कहा,   ‘‘ये कल के बन्द का आह्वान करने वाले पत्र हैं जो हमने अख़बारों को भेजे हैं। आप भी एक आह्वान भेजिए ।’’
‘‘अब हम नर्मदा  जा रहे हैं। वहाँ सेन्ट्रल कमेटी की मीटिंग बुलाकर कल के बारे में निर्णय लेने वाले हैं।’’   खान ने कहा ।
‘‘अपने निर्णय लेते समय यह न भूलिये कि हम तुम्हारे साथ हैं। संघर्ष निर्धारपूर्वक जारी रखिये। अंग्रेज़ों को बाहर से हवाई जहाज़ मँगवाकर यहाँ का संघर्ष कुचलना पड़ता है,  इसी का अर्थ यह है कि हिन्दुस्तानी सेना सरकार का साथ नहीं दे रही है। अगर और दो दिनों तक संघर्ष खिंचा तो वे खुल्लमखुल्ला तुम्हारे साथ हो जाएँगे। कल के लिए और आगे के संघर्ष के लिए शुभेच्छा!’’ कॉमरेड जोशी ने शुभेच्छाएँ दीं।



जब  खान,  दत्त,  गुरु और मदन नर्मदा पर पहुँचे तो सारे सैनिक उनकी राह ही देख रहे थे। सभी के मन में उत्सुकता थी। क्या बातचीत हुई?  यदि हुई तो क्या निर्णय लिया गया?  एकत्रित हुए सैनिकों से खान ने कहा, ‘‘सॉरी दोस्तों!, तुम्हें बताने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं है। हमारा संघर्ष जारी है। अब हम सेंट्रल कमेटी की मीटिंग कर रहे हैं। इसके बाद आपको अगली व्यूह रचना के बारे में बताया जाएगा। मैं आप सबसे विनती करता हूँ कि आप अपनेअपने जहाज़ों पर जाएँ और हमें शान्ति से विचारविनिमय करने दें।’’   खान की इस विनती पर सैनिकों ने नर्मदा  का डेक खाली कर दिया और सेन्ट्रल कमेटी की बैठक शुरू हुई।
खान ने कैसल बैरेक्स से बाहर जाने के बाद साउथगेट और रॉटरे से हुई बातचीत,  उनका धृष्टतापूर्ण बर्ताव,  उनका बिना शर्त हथियार डालने के अतिरिक्त अन्य किसी विकल्प को नकारना,  नौसेना नष्ट करने की धमकी के बारे में जानकारी दी।
खान जब यह जानकारी दे रहा था तो सभासदों ने शेम,  शेम  के नारे लगाने शुरू कर दिये।
‘‘दोस्तों!  हमें कई बातों के बारे में चर्चा करना है,  निर्णय लेना है। आपकी  भावनाओं को हम समझ गए हैं। अत:  नारे न लगाएँ,  यह विनती है।  दत्त ने विनती की और नारे बन्द हो गए।
‘‘हमसे कुछ कम्युनिस्ट कार्यकर्ता मिले थे । उन्होंने कल मुम्बई बन्दका आह्वान किया है,  साथ ही कुछ और पर्चे भी इस आह्वान के बारे में उन्होंने हमें दिये हैं जो कल के अख़बारों में प्रकाशित होगा। हम उन्हें पढ़ते हैं। हमारा आह्वान भी छपने के लिए देना है इसलिए पहले हम इस विषय पर चर्चा करेंगे।’’   खान ने सुझाव दिया।
सबकी सम्मति मिलने के बाद दत्त ने कम्युनिस्टों का आह्वान पढ़ना शुरू किया।

‘‘सभी राजनीतिक पक्षों और जनता से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया की ओर से अपील की जाती है कि ब्रिटिश सरकार नौसेना और हवाई सेना के सैनिकों पर जो अमानुष दबाव डाल रही है उसका निषेध करते हुए कल,  शुक्रवार को दुकानों,  स्कूलों, कॉलेजों और मिलों में पूरी तरह हड़ताल की जाए और सरकार इस अमानुषता को रोककर बातचीत का मार्ग खोले,  इसलिए सरकार पर दबाव डाला जाए। सरकार सैनिकों की न्यायोचित माँगें फौरन पूरी करे। यह निवेदन कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से कांग्रेस वैद्य ने छपवाने के लिए भेजा है । यह दूसरी अपील कम्युनिस्ट पार्टी की सेन्ट्रल कमेटी के सदस्य डॉ.  अधिकारी ने भेजी है।’’

दत्त ने दूसरी अपील पढ़ना शुरू की।

‘‘ब्रिटिश सरकार जिस निष्ठुरता और रक्तरंजित मार्ग से रॉयल इंडियन नेवी की मुम्बई बेस के नौसैनिकों के विद्रोह को कुचलने की कोशिश कर रही है,  उसकी हर हिन्दुस्तानी निन्दा ही करेगा। फ्लैग ऑफिसर, बॉम्बे ने इन बहादुर सैनिकों को जैसी धृष्टता से धमकी दी है,  आत्मसमर्पण  करो,  वरना  तुम्हें  खत्म  कर  देंगे’, यह धमकी गुस्सा दिलाने वाली है। आगे इस पत्र में उन्होंने हड़ताल की अपील की है। हमें समर्थन देने वाला यह तीसरा पत्र है।  बॉम्बे  स्टूडेन्ट्स  यूनियन  की जनरल सेक्रेटरी कुमारी सुशीला का। उन्होंने विद्यार्थियों से अपील की है ।’’

‘‘हिन्दुस्तान की नौसेना के सैनिकों ने जो विद्रोह किया है, उस विद्रोह के प्रति हमारे समर्थन को और सैनिक बन्धुओं से हमारी दृढ़ एकता को प्रदर्शित करने के लिए बॉम्बे स्टूडेन्ट्स यूनियन के विद्यार्थी दिनांक 22 को शान्तिपूर्ण हड़ताल एवं बन्द का पालन करें। कांग्रेस और लीग द्वारा समर्थित विद्यार्थी संगठन से भी बॉम्बे स्टूडेन्ट्स यूनियन हार्दिक अनुरोध करती है कि इस हड़ताल में सहभागी हों।’’

दत्त एक मिनट रुका। सूखे गले को उसने गीला किया और आगे कहने लगा:

‘‘दोस्तो! यह अपील है हमारे ख़िलाफ। यह अपील कांग्रेस ने की है।

"हिन्दुस्तानी नौसैनिकों और ब्रिटिश सैनिकों तथा मिलिटरी पुलिस के बीच की दुर्भाग्यपूर्ण झड़पों के कारण शहर में तनावपूर्ण वातावरण निर्मित हो गया है। आज जब इन झड़पों की खबरें पूरे शहर में फैलीं तो यह परिस्थिति और भी गम्भीर हो गई। ये झड़पें क्यों हुईं इसका कारण अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। इन झड़पों में कितनी जानें गर्इं यह ठीक से मालूम नहीं हुआ है। मगर आशंका व्यक्त की जाती है कि काफ़ी जानें गई हैं। यह सब क्यों हुआ?  जब तक इसके पीछे निहित सभी कारणों का पता नहीं चल जाता,  यह कहना कठिन है कि क्या इन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को टाला जा सकता था?  कांग्रेस हर सम्भव मार्ग से नौसैनिकों की दीर्घकालीन न्यायोचित शिकायतों को दूर करने का शान्तिपूर्ण प्रयत्न कर रही थी। यह उम्मीद की जा रही थी कि कल तक सब कुछ शान्तिपूर्ण ढंग से समाप्त हो जाएगा और सरकार एवं सैनिकों के बीच एकता और सामंजस्य का वातावरण बन जाएगा। इसे किस कारण चेतावनी दी गई,  यह ज्ञात नहीं। आज की परिस्थिति में इन कारणों पर विचार करके ज़िम्मेदारी निर्धारित करना या किसी एक पर दोषारोपण करना उचित नहीं है।
‘‘इस घड़ी में हर ज़िम्मेदार नागरिक का कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकार और नौसैनिकों के बीच समझौता हो जाए और साथ ही यह भी कि पूरा मुम्बई शहर इस संकट में न पिस जाए तथा शान्तिपूर्ण वातावरण बिगड़ने न पाये।
‘‘शहर में उत्पन्न इस गड़बड़ को सामान्य करने का प्रयत्न करना चाहिए,  साथ ही गड़बड़ वाली इस स्थिति का फ़ायदा उठाने की कोशिश करने वाले असामाजिक तत्त्वों को भी रोकना चाहिए। इसलिए लोग अपने दैनंदिन व्यवहार को सुचारु रूप से चलने दें।
‘‘इसलिए कोई भी स्कूलों, कॉलेजों और मिलों को बन्द करने की अपील न करे। इसका अभागे नौसैनिकों की न्यायोचित शिकायतें दूर करने में ज़रा भी उपयोग नहीं होगा,  या जिस गम्भीर संकट में वे इस समय घिरे हुए हैं,  उससे बाहर निकालने में भी इसका कोई उपयोग नहीं होगा।
‘‘नौसैनिकों को इस संकट से उबारने के लिए और उनकी योग्य शिकायतों को दूर करने के लिए कांग्रेस प्रयत्नशील है। सेन्ट्रल असेम्बली में कांग्रेस एक बड़ा पक्ष है वह इन सैनिकों की मदद करने के लिए हर सम्भव कोशिश करेगी।
मैं तहेदिल से सबसे विनती करता हूँ कि सहनशीलता पूर्वक शान्ति बनाए रखें।

दोस्तों! तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है । कांग्रेस पक्ष की ओर से यह अपील की है सरदार पटेल ने ।’’
दत्त नीचे बैठ गया और तीनचार प्रतिनिधि इस अपील पर अपनी राय प्रकट करने के लिए खड़े हो गए।
‘‘पटेल का मैं निषेध करता हूँ। इससे पहले वे मध्यस्थता करने क्यों नहीं आए ?’’
‘‘जब गोलीबारी हो रही थी,   तो पटेल कहाँ थे?  तब क्यों सामने नहीं आए?’’
‘‘पटेल ने और कांग्रेस ने हमारी समस्याएँ सुलझाने के लिए कौनसे प्रयत्न किए हैं ?’’
वे सभी एक साथ बोलने लगे तो खान उठकर खड़ा हो गया ।
‘‘चर्चा करने के लिए हमारे पास पूरी रात पड़ी है। यदि हमारा निवेदन समय पर पहुँचेगा तभी वह कल के अंक में छप सकेगा। इसलिए सबसे पहले हमने जो निवेदन तैयार किया है उसे मान्यता दीजिए।’’  खान ने विनती की।
अन्य सभासदों ने उत्साही सभासदों को नीचे बैठाया,  गुरु अख़बारों में दिया जाने वाला निवेदन पढ़ने लगा:
‘‘हम सब नौसैनिक पिछले अनेक वर्षों से नौसेना में हैं,  इस दौरान हमें अनेक पीड़ाएँ झेलनी पड़ी हैं,  जिनका वर्णन  नहीं किया जा सकता। कम वेतन, गन्दा भोजन और इस सबके ऊपर बर्दाश्त न होने वाला रंगभेद। आज इन सबके साथ सैनिकों की सेवामुक्ति और उनके पुनर्वसन का सवाल भी हम हज़ारों सैनिकों के सामने है। और इन प्रश्नों का हल हिन्दुस्तान आज़ाद हुए बिना नहीं मिल सकता ऐसा हमारा विश्वास है ।
‘‘हमने कई बार अपनी शिकायतें,  ख़ासकर रंगभेद सम्बन्धी शिकायतें,  वरिष्ठ अधिकारियों के सामने पेश करके न्याय माँगने का प्रयत्न किया। हमारी माँग थी समान व्यवहार की। हमारी इस माँग का पूरापूरा समर्थन हर स्वाभिमानी और देशप्रेमी नागरिक करेगा। वरिष्ठ अधिकारियों ने हमारी शिकायतें सुनी ही नहीं,  इसीलिए हमारे हवाईदल के बन्धुओं के आदर्श को सामने रखकर हमने भी सत्याग्रह करने का निश्चय किया। पिछले पाँच दिनों से हमारा विद्रोह शान्तिपूर्ण तरीके से और अनुशासन से चल रहा है। ऐसा होते हुए भी वरिष्ठ अधिकारियों ने न केवल हमारी बात नहीं सुनी,   उलटे भूदल सैनिकों का घेरा डलवा दिया। हिन्दुस्तानी भूदल सैनिक हम पर गोलियाँ चलाने को तैयार न थे । ब्रिटिश सैनिकों ने कैसल बैरेक्स’ ’ में  हम पर गोलीबारी की,   और अपनी रक्षा के लिए हमें हाथों  में शस्त्र लेने पर मजबूर कर दिया। अब वरिष्ठ अधिकारी हमें धमका रहे हैं कि साम्राज्य के पास जितना भी सशस्त्र बल उपलब्ध है उस सबका उपयोग करके हिन्दुस्तानी नौदल को नष्ट कर देंगे । कोई भी हिन्दुस्तानी नागरिक यह नहीं चाहेगा कि हम अपमानजनक शर्तों पर आत्मसमर्पण करें और उनकी धमकियों से डरकर साम्राज्य के पैरों पर लोट जाएँ। हम अपनी माँगों के सन्दर्भ में बातचीत के लिए सदा तैयार हैं, मगर डरकर आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।
‘‘हमें इस बात की पूरी कल्पना है कि यदि आप,  हमारे देशबन्धु और हमारे नेतागण,   हमारे पक्ष में खड़े नहीं होंगे, हमारी सहायता नहीं करेंगे तो फ्लैग ऑफ़िसर बाम्बे और नौदल प्रमुख गॉडफ्रे अपनी धमकी सही कर दिखाएँगे । आप, बेशक, यह नहीं चाहेंगे कि आपके हिन्दुस्तानी भाई ब्रिटिशों की गोलियों का निशाना बनें, आप जानते हैं कि हमारी माँगें न्यायोचित हैं । आपको हमें समर्थन देना ही होगा ।
‘‘हम, आप सबसे और विशेषत: कांग्रेस,  लीग और कम्युनिस्ट पार्टियों के नेताओं से अपील करते हैं कि –
    अपनी पूरी सामर्थ्य से मुम्बई की होली रोकें!
   नौदल  के  वरिष्ठ  अधिकारियों  पर  दबाव  डालकर  उन्हें  गोलीबारी  और धमकियाँ रोककर हमारे साथ बातचीत करने पर मजबूर करें!
    लोगों  को इकट्ठा करके शान्तिपूर्ण हड़ताल करके हमें समर्थन दें!
     भाइयों और बहनों! हमारे  इस आह्वान को समर्थन दें!
हम    आपके    जवाब    की    राह    देख    रहे    हैं!!’’
गुरु ने आह्वान पढ़कर सुनाया और चट्टोपाध्याय उठकर खड़ा हो गया।
‘‘इस आह्वान में हमारी राजनीतिक माँगों का जिक्र होना चाहिए ।’’ उसने सुझाव दिया।
‘‘हमारी माँगें 19 तारीख के अख़बार में प्रकाशित हुई हैं,  इसलिए उन्हें दुहराया नहीं गया है।’’   खान ने जवाब दिया।
 ‘‘इस आह्वान में इस बात का उल्लेख किया जाए कि कांग्रेस ने हमें आज तक समर्थन नहीं दिया है, सत्य को जानने के लिए खुद होकर हमसे सम्पर्क किया नहीं और जब हमने उन्हें परिस्थिति से अवगत कराने का प्रयत्न किया तो उन्होंने हमें झिड़क दिया। इसमें कांग्रेस का निषेध होना चाहिए।’’   यादव ने सुझाव दिया।
‘‘मेरा ख़याल है कि इस बात का उल्लेख न किया जाए,  क्योंकि हमें लोगों को जोड़ना है, तोड़ना नहीं है। यह वक्त लोगों के दिल दुखाने का नहीं ।’’ दत्त ने स्पष्ट किया ।
आह्वान का मसौदा सर्वसम्मति से पारित करके उसे प्रकाशन के लिए भेज दिया गया।
‘‘कल हम क्या करेंगे?’’  चट्टोपाध्याय ने पूछा।
‘‘कल का दिन हमारे लिए फ़ैसले का दिन है। इसकी सफलता पर ही हमारा भविष्य निर्भर है। नागरिकों द्वारा किए गए प्रदर्शन, मज़दूरों,   दुकानदारों की हड़ताल ही सरकार पर दबाव डाल सकेंगे और सरकार को हमारी माँगों पर विचार करना ही पड़ेगा। कल के दिन, मेरी राय  है,  कि हम शान्त रहें, ’’  खान ने सुझाव दिया।
‘‘मैं खान की राय से सहमत नहीं हूँ, ’’  यादव चिल्लाया। ‘‘मेरा ख़याल है कि कल हम हथियार लेकर नागरिकों की रक्षा के लिए सड़क पर उतरें ।’’
बेचैन यादव को शान्त करते हुए मदन ने समझाया,  ‘‘अगर हम हथियार लेकर रास्ते पर गए तो ब्रिटिश सरकार को एक बहाना मिल जाएगा और वे रास्ते पर ही खून की नदियाँ बहा देंगे और उसका दोष हमारे माथे मढ़ेंगे। इसलिए मैं सोचता हूँ कि हम अपनेअपने जहाजों और बेस को न छोड़ें,’’  दत्त मदन की राय से सहमत था।
‘‘मान लो, अंग्रेज़ों ने अगर अचानक हमारी बेस पर हमला कर दिया तो उसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी हम पर है, यह हमें नहीं भूलना चाहिए, ’’ गुरु ने अपनी राय दी।
‘‘यदि सदस्यों की राय पर विचार किया जाए तो यह प्रतीत होता है कि सैनिक अपनेअपने बेस पर और जहाज़ों पर ही बने रहें। यदि हमला हुआ तो करारा जवाब दें, मगर बेबात आगे न बढ़ें। कल की परिस्थिति पर नज़र रखकर ही अगला निर्णय लिया जाए, ’’  खान ने अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए निर्णय दिया।
सेन्ट्रल कमेटी द्वारा लिए गए निर्णय की सूचना सभी जहाज़ों और नाविक तलों को भेज दी गई।



फॉब हाउस में गॉडफ्रे,  रॉटरे और लॉकहर्ट बेचैनी से देर रात तक बैठे थे।
‘‘आज सुबह ब्रिटिश सैनिकों द्वारा हिन्दुस्तानी नौसैनिकों पर की गई गोलीबारी के कारण कांग्रेस के नेता चिढ़ गए और उन्होंने हिन्दुस्तानी नौसैनिकों को समर्थन देने की ठान ली तो?’’  रॉटरे ने अपने मन का सन्देह व्यक्त किया। ‘‘यदि ऐसा हुआ तो हमारे लिए परिस्थिति और ज़्यादा गम्भीर हो जाएगी।’’  गहरी साँस छोड़ते हुए गॉडफ्रे ने जवाब    दिया।
‘‘नौसैनिकों को फिलहाल तो कांग्रेस का समर्थन प्राप्त नहीं है। इस दृष्टि से वे अकेले पड़ गए हैं। मैं नहीं सोचता कि कांग्रेसी नेता कल उन्हें समर्थन देंगे। और,  मान लो,  यदि समर्थन दे भी दें तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कांग्रेस उनके साथ है यह समझने से पहले ही नौसैनिकों को नेस्तनाबूद कर दिया जाएगा। कल बिना किसी दयामाया के इस बन्द को और इस विद्रोह को कुचल दिया जाएगा।’’   लॉकहर्ट की आवाज़ में चिढ़ थी।
‘‘जितना आप समझ रहे हैं, यह उतना आसान नहीं है। मैंने पुलिस कमिश्नर बटलर से कांग्रेसी,  लीगी और कम्युनिस्ट नेताओं की हरकतों पर नज़र रखने और मुझे इसकी रिपोर्ट देने को कहा है। उन्हीं के फोन की मैं राह देख रहा हूँ ।’’ गॉडफ़्रे ने कहा।
गॉडफ्रे और रॉटरे बेचैनी से चक्कर लगाने लगे । हर मिनट रबड़ की तरह लम्बा खिंचा जा रहा था।
भूतकाल में समा जाने वाले हर मिनट के साथ मन में नाच रहे काल्पनिक भूतों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी।
फोन की घंटी बजी और गॉडफ्रे ने अधीरता से फ़ोन उठाया।  ‘‘गॉडफ्रे,’’ अपनी आवाज़ की बेसब्री छिपाते हुए गॉडफ्रे ने जवाब दिया।
‘‘मैं बटलर बोल रहा हूँ,  सर। मैंने कांग्रेसी,  लीगी और कम्युनिस्ट नेताओं की हरकतों की कल दोपहर से रिपोर्ट इकट्ठा की है । उन्होंने अख़बारों को जो निवेदन भेजे हैं,  उन्हें इकट्ठा किया है । इस सबसे यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस और लीग न केवल कल के बन्द से दूर रहेंगे,  बल्कि वे इसका जमकर विरोध भी करेंगे। कांग्रेस का समाजवादी गुट शायद बन्द का समर्थन करे। कम्युनिस्ट पार्टी ने बन्द का आह्वान किया है। आज लोगों का विद्रोह को जो प्रत्युत्तर मिला है,  उस पर अगर गौर किया जाए तो ऐसा लगता है कि कल के बन्द को भी ज़बर्दस्त जवाब मिलेगा। मज़दूर रात को बारह बजे के बाद काम बन्द करके निकल गए हैं इसलिए मिलों के भाग में बन्द का ज़ोर ज़्यादा रहेगा।’’   बटलर ने अपनी रिपोर्ट पेश की।
गॉडफ्रे ने फ़ोन नीचे रख दिया और लॉकहर्ट की ओर देखकर बोला,  ‘‘एक रुकावट तो कम हो गई। कांग्रेस और लीग हड़ताल का विरोध करने वाले हैं ।’’ गॉडफ्रे उत्साह  से  बता  रहा  था।
 ‘‘जो भी हो, यदि यह हड़ताल कुचल दी जाती है तभी अंग्रेज़ों की हुकूमत कुछ और समय तक टिकी रहेगी, ’’ लॉकहर्ट ने कहा।
दुबारा फ़ोन की घण्टी बजी। गॉडफ्रे ने  फ़ोन उठाया।
‘‘गॉडफ्रे ।’’
‘‘ब्रिगेडियर साउथगेट, May I speak to General, sir?''  साउथगेट ने पूछा।
गॉडफ्रे ने लॉकहर्ट को फ़ोन दिया।
‘‘जनरल लॉकहर्ट।’’
‘‘सर,  पुणे,  नगर,  नासिक के सैनिक ठिकानों से ब्रिटिश रेजिमेंट के सैनिक मुम्बई आ गए हैं। अब मेरे पास पच्चीस टैंक,  अस्सी ट्रक्स,  लाइट मशीनगन्स वाली दस जीपें तैयार हैं।’’
‘‘That's good.'' लॉकहर्ट खुशी से चहका।
‘‘सर,   अब इनको नियुक्त...’’
साउथगेट को बीच में ही रोककर लॉकहर्ट कहने लगा,  ‘‘अब मैं जो कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो - बैलार्ड पियर से अपोलो बन्दर तक सैनिकों की संख्या बढ़ा दो,  इस हिस्से में दस टैंक्स तैयार रखो। मैं सुबह चार बजे से सारे ट्रक्स को रास्तों पर देखना चाहता हूँ। हर ट्रक में पन्द्रह से बीस सैनिक होंगे रायफ़ल या मशीनगन समेत। ये ट्रक परेल से अपोलो बन्दर तक के भाग में घूमेंगे और उन्हें Shoot at sight की ऑर्डर दे दो। मुम्बई के लोगों और सैनिकों में  ऐसी दहशत फैलनी चाहिए कि वे फिर कभी बन्द,  हड़ताल या विद्रोह का नाम तक न लें।‘’ लॉकहर्ट ने साउथगेट को हुक्म दिया।
‘‘सर,  इतनी कठोर कार्रवाई के परिणाम...’’   रॉटरे ने पूछा।
‘‘मुझे सर एचिनलेक ने सिर्फ चौबीस घण्टों की मोहलत दी है। इस मोहलत में मैं अन्य किसी भी बात का विचार नहीं करूँगा।’’  लॉकहर्ट की आवाज़ में बेफ़िक्री थी। कल की  सफ़लता का उसको यकीन हो गया था।
फॉब हाउस का वातावरण अब पूरी तरह बदल गया था। अभी कुछ देर पहले का तनाव ख़त्म हो गया था और एक उत्साह का माहौल बन गया था।
रॉटरे की मेज़ पर पड़ा लाल फोन बजने लगा। रॉटरे समझ गया कि ये हॉट लाईन है और सर कोलविल लाइन पर है। उसने भागकर फोन उठाया।
''Good morning sir, Rautre Speaking.''
 ‘‘आज लीग के मुम्बई राज्य के प्रमुख, मि.  चुंद्रिगर और मुम्बई प्रदेश कांग्रेस के सेक्रेटरी, मि. एस. के. पाटिल मुझसे मिलने आए थे। उन दोनों ने इस गड़बड़ी वाली परिस्थिति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए यह इच्छा प्रकट की कि ये परिस्थिति टाली जानी चाहिए। इस काम के लिए उन्होंने पुलिस की सहायता के लिए अपने स्वयंसेवक देने की पेशकश की है। मैंने मुम्बई के मेयर से कहा है कि पीस कमेटी  की मीटिंग बुलाएँ। इसका भी हमें फ़ायदा होगा। कल की व्यूह रचना करते समय इन बातों को ध्यान में रखें इसलिए आपको सूचित किया ।’’ गवर्नर ने जानकारी दी।
''Thank you, sir.'' रॉटरे ने फ़ोन नीचे रखा।
गॉडफ्रे और लॉकहर्ट को यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि कांग्रेस और लीग के स्वयंसेवक उनकी सहायता के लिए आ रहे हैं। गॉडफ्रे ने रॉटरे से कहा,  ‘‘अब शैम्पेन की पार्टी होनी चाहिए।’’



ब्रिटेन के हाऊस ऑफ़ कॉमन्स में हिन्दुस्तानी नौसेना के विद्रोह पर ज़ोरदार चर्चा हो रही थी। विरोधी पक्ष सरकार पर टूट पड़ा था। स्थगन प्रस्ताव भी पेश किया था। इस चर्चा का उत्तर प्रधानमन्त्री एटली बड़े आत्मविश्वास से दे रहे थे।
‘‘विद्रोहियों को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया है और मुझे यकीन है कि वे बिना शर्त समर्पण कर देंगे। कांग्रेस पार्टी विद्रोहियों की तरफ़ नहीं है। लेफ्टिस्ट विचारधारा के नेता और कम्युनिस्ट पार्टी विद्रोहियों के प्रति सहानुभूति निर्माण करने का प्रयत्न कर रहे हैं। सरकार को परिस्थिति के सामान्य होने से पहले थोड़ीबहुत गड़बड़ी की आशंका है।’’
एटली को इस बात की पूरीपूरी कल्पना थी कि कम्युनिस्टों का हिन्दुस्तानी जनमानस पर विशेष प्रभाव नहीं है। उनके समर्थन से कोई विशेष बात नहीं होने वाली,  मगर मान लीजिए,  अनुमान गलत हुआ तो अपयश का ठीकरा किसके सिर पर फ़ोड़ना है,  यह एटली ने पहले से ही तय कर लिया था।



कैसल बैरेक्स में देखने में तो शान्ति नज़र आ रही थी,  मगर सैनिकों के मन खदखदा रहे थे। अनेक लोगों को ऐसा लग रहा था कि ले. कमाण्डर मार्टिन और दीवान को छोड़ना और सीज फायरकरना बहुत बड़ी गलती थी। मगर इन अनुशासित सैनिकों ने सेंट्रल कमेटी की आज्ञा का पालन किया था।
बैरेक्स में सैनिक अभी तक जाग ही रहे थे और कल क्या होगा इसके बारे में अटकलें लगा रहे थे। मौके की जगहों पर नियुक्त पहरेदार आँखों में तेल डालकर अपना कर्तव्य निभा रहे थे। छोटेछोटे झुण्डों में चर्चा कर रहे सैनिक रास्ते से गुज़रते हुए टैंक की आवाज़ सुनते तो संरक्षक दीवार के पास जाकर झाँककर देख लेते।
‘‘ऐसा लगता है कि कमेटी की आज्ञा तोड़ दें और स्टोर से हैंडग्रेनेड्स लाकर फेंक दें टैंकों पर,’’  मणी जैसे बेचैन सैनिक कह रहे थे। मगर सेंट्रल कमेटी द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को पार करने का साहस उनमें न था।
‘‘कल क्या होगा किसे पता?  मगर मुझे ऐसा लगने लगा है कि हम यह लड़ाई हार जाएँगे।’’   गजेन्द्रसिंह के शब्दों में निराशा थी।
''Be hopeful.  अरे,  कुछ अच्छा होगा और हमारी जीत होगी।’’  हरिचरण ने कहा।
‘‘कुछ अच्छा मतलब क्या ? कांग्रेस हमारी मदद करने के लिए तैयार नहीं। लोगों का समर्थन रहा तो भी सरकार उसे मिटा देगी। अगर कल लोग रास्ते पर आए तो बहुत बड़ा खूनखराबा हो जाएगा,  सैकड़ों लोग मारे जाएँगे,  हज़ारों ज़ख़्मी हो जाएँगे। सरकार ही की तरह गुण्डे और असामाजिक तत्त्व परिस्थिति का लाभ उठाकर लूटमार करेंगे। इससे हमें क्या लाभ होगा?  यदि हमने आत्मसमर्पण नहीं किया तो सरकार हमें नेस्तनाबूद कर देगी।’’   गजेन्द्रसिंह ने चिन्तायुक्त स्वर में कहा।
‘‘और यदि ऐसा हुआ तो सिर्फ मैं ही नहीं,  मुझ पर निर्भर मेरे सभी परिवारजन भी बर्बाद हो जाएँगे।’’
‘‘ये सब तुम्हारी कल्पना के खेल हैं!’’   हरिचरण उसे समझाने लगा।  ‘‘आज की  गोलीबारी से चिन्तित कांग्रेस के नेता शायद कल हमारे पक्ष में खड़े हों,  क्रान्ति के बारे में लम्बेचौड़े भाषणों और वातावरण को हिला देने वाले नेता शायद हमारा साथ देंगे,  या आज हम पर बन्दूक चलाने से इनकार करने वाले अन्य दोनों दलों के सैनिक शायद कल हमारे साथ आकर अंग्रेज़ों पर बन्दूकें तान दें। लोगों का समर्थन बढ़ेगा और सरकार को झुकना ही पड़ेगा। कुछ भी हो सकता है,  मगर जो होगा,  अच्छा ही होगा।’’
 ‘‘दिल को समझाने के लिए ख़याल अच्छा है।’’   गजेन्द्र ने कहा।
‘‘आत्मविश्वास खो चुके सैनिकों के कारण जीतती हुई लड़ाइयाँ गँवानी पड़ती हैं। इस रोग का संक्रमण जल्दी होता है। इसलिए तू आराम से जाकर सो जा। चारपाँच घण्टे नींद लेने के बाद अच्छा लगेगा।’’  हरिचरण ने सलाह दी।
तीन रातों के लगातार जागरण और दिनभर की भागदौड़ से कुछ सैनिकों के मन का सन्तुलन खो गया था। गजेन्द्रसिंह जैसे कुछ कमज़ोर दिल के सैनिक अस्वस्थ हो गए थे।
कैसल बैरेक्स के कुछ सैनिकों ने उस दिन के सायंकालीन अख़बारों के अंक प्राप्त किये थे। अंक काफ़ी कम और सभी के मन में उत्सुकता बहुत ज़्यादा! इसलिए कई गुटों में अख़बारों का सामूहिक पठन हो रहा था।
रामलाल ख़बरें पढ़कर सुना रहा था। दोपहर को रॉटरे और गॉडफ्रे द्वारा जारी किया गया प्रेस रिलीज़ शाम के अख़बारों में छपा था। उस रिलीज़ पर एक नज़र डालकर रामलाल ने कहा, ‘‘लोगों को और नेताओं को गुमराह करने वाले प्रेस रिलीज़ जारी करने में इन अंग्रेज़ों का हाथ कोई भी नहीं पकड़ सकता। जिस सत्य को जनता जानती है उसे नकारते हुए ये अंग्रेज़ झूठ पर सत्य की पॉलिश करके पेश कर रहे हैं।
‘‘अरे, भाषण बाद में दे, पहले ख़बर तो पढ़!’’  धरमवीर ने रामलाल को रोकते हुए कहा।
‘‘ठीक है।’’  रामलाल ने कहा और वह ख़बर पढ़ने लगा:
 ‘‘आज सुबह नौ बजे कैसेल बैरेक्स में आमतौर से शान्ति थी। नौसैनिकों की भूख हड़ताल जारी थी। इन दोनों नाविक तलों की कैन्टीन सैनिकों ने तोड़ दी और लूट लीं। लगभग नौ बजकर चालीस मिनट पर कैसेल बैरेक्स का वातावरण बिगड़ गया। अन्दर खड़े किये गए कामचलाऊ बैरिकेड्स को लाँघकर नौसैनिकों ने बाहर आने की कोशिश की, और बाहर घेरा डाले भूदल सैनिकों के सामने गोलीबारी के अलावा कोई और चारा ही न रहा। भूदल सैनिकों ने नौसैनिकों को बैरेक्स में ही रखने के लिए बन्दूकों का एक राउण्ड चलाया और कैसल बैरेक्सके सैनिकों ने पत्थरों से उसका जवाब दिया। यह पत्थरों की बौछार लगभग आधे घण्टे चली और इस पत्थरबाजी में गार्ड कमाण्डर घायल हो गया। दस बजकर पचास मिनट पर भूदल सैनिकों की सहायता के लिए अतिरिक्त बल मँगवाया गया। नर्मदा नामक जहाज़ से भेजा गया एक सन्देश हमारे हाथ पड़ गया । इसमें लिखा था,  ‘‘भूदल के सैनिक यदि एक गोली चलाएँ, तो जहाज़ अपनी तोपें दागें। सभी जहाज़ अपनीअपनी तोपें भरकर तैयार रहें।’’  कैसल बैरेक्स के कुछ सैनिकों ने जमुना  पर जाकर कहा कि बैरेक्स के सारे सैनिकों के बाहर निकलने के बाद बैरेक्स पर तोपें  दाग़ी जाएँ।
‘‘विद्रोह के नेताओं ने जहाज़ों को एक सन्देश भेजा था,  वह भी हमारे हाथ लगा है। इस सन्देश में ब्रिटिश अधिकारियों को जहाज़ और नाविक तल छोड़ने को कहा गया है और हिन्दुस्तानी अधिकारियों से विद्रोह में शामिल होने की अपील की गई थी। करीब साढ़े ग्यारह बजे जहाज़ों ने तोपें चलानी शुरू कीगेटवे ऑफ इण्डिया के सामने खड़े पंजाबने निकट खड़े रॉयल नेवी के जहाज़ पर भी हमला किया।
“एडमिरल गॉडफ्रे की सम्मति से एक सन्देश द्वारा ब्रिटिश अधिकारियों को तुरन्त जहाज़ और तल छोड़ने का आदेश दिया गया।
‘‘मुम्बई के अन्य नाविक तलों पर दिनभर शान्ति रही। अधिकांश सैनिक अपनीअपनी बेस   पर लौट गए थे।’’    रामलाल    पलभर    को    रुका ।
‘‘ये सब सरासर झूठ है, ’’ हरिचरण चीखा।
‘‘अरे, झूठ बोलने की और परस्पर विरोधी वक्तव्य करने की भी कोई सीमा होती है!’’  मणी चिढ़ गया था। ‘‘गॉडफ्रे, रॉटरे और उसके साथी बौखला गए हैं - लगता तो यही है।’’
“इस प्रेस रिलीज़ में सरकार ने यह मान्य किया है कि सैनिक शान्त थे और वे सत्याग्रह की राह पर थे। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह,  कि सरकार यह मान रही है कि भूदल के सैनिकों ने पहले गोलीबारी की।’’  धरमवीर ने प्रेस रिलीज़ से वह बातें बतार्इं जो नौसैनिकों के पक्ष में थीं।
‘‘भूख हड़ताल जारी थी,  यह कहने के बाद आगे कहते हैं, ‘सैनिकों ने कैंटीनलूट लीकैसल बैरक्स और तलवारके चारों ओर भूदल सैनिकों का घेरा था। कैसेल बैरेक्स का बाहरी जगत् से सम्पर्क टूट चुका था इसलिए बाहर से कोई भी अन्दर नहीं आया,  ना ही अन्दर से कोई बाहर गया। फिर ब्रिटिश अधिकारियों को कैसे पता चला कि कैन्टीन्स लूटी गई हैं ? और इन कैन्टीन्स में है ही क्या? स्नो,  पाउडर,  साबुन,  सिगरेट,  बूटपॉलिश,  सारी  अखाद्य  वस्तुएँ! भूखे सैनिकों के किस काम की?  दूसरी बात यह कि बाहर भूदल के सैनिक बन्दूकें ताने जब बैठे थे,  जब हमारी जान की बाज़ी लगी हुई थी,  तब हम गोलाबारूद के गोदाम लूटेंगे या कैन्टीन्स के ताले तोड़ते बैठेंगे?’’   मणी का तर्क सही था।
 ‘‘कहते हैं, हमने पत्थरबाजी की और इस पत्थरफेंक में गार्ड कमाण्डर ज़ख़्मी हो गया।’’  हरिचरण के चेहरे पर चिढ़ थी। ‘‘हमारे पास आधुनिक हथियारों के होते हुए हम क्यों पाषाण युगीन हथियारों का इस्तेमाल करेंगे ? क्या मुम्बई एक छोटासा गाँव है या भीड़भाड़ वाले देश का महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र?  फोर्ट जैसे  इलाके  में  इतनी मात्रा में पत्थर उपलब्ध हैं इस पर कौन समझदार आदमी विश्वास करेगा?  रॉटरे और गॉडफ्रे को क्या ऐसा लगता है कि 18 तारीख़ से हम सिर्फ छोटेबड़े पत्थर ही इकट्ठे कर रहे हैं?  और, यदि हमें पत्थरबाजी करनी ही होती तो जिस रात भूदल सैनिकों ने घेरा डाला उसी रात को कर देते। उस रात तो सैनिक बेकाबू हो रहे थे,  यदि खान न होता तो हम बन्दूकों,  मशीनगनों और हैण्डग्रेनेड्स का ही इस्तेमाल करते। हमने पत्थरबाजी की - यह निरी गप है। क्या वे हमें रास्ते के मवाली समझ रहे हैं?  क्या गॉडफ्रे और रॉटरे को यह नहीं मालूम था कि उसके अधिकारी 19 तारीख से पहले ही जहाज़ और नाविक तल छोड़कर भाग गए हैं?  मगर नौसैनिक कितने क्रूर हो गए हैं और गोरे अधिकारी कितने कर्तव्यदक्ष हैं यह दिखाने के लिए अधिकारियों को जहाज़ और तल छोड़ने के बारे में सन्देश भेजा। हमने विद्रोह किया 18 को। आज है तारीख 21। मतलब पूरे चार दिनों बाद उन्हें अपने अधिकारियों की याद आई – ऐसी है इनकी कार्यक्षमता।‘’ हरिचरण की आवाज़ ऊँची हो गई थी।
‘‘ब्रिटिश दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि नौसैनिकों के शस्त्र उठाने तक उनके अधिकारी अपनेअपने जहाजों में पैर जमाए खड़े थे। अब, सैनिकों के बेकाबू होने के बाद ये अधिकारी कुछ नहीं कर सकते थे,   इसलिए उन्हें वापस बुला लिया।’’ गुरुचरण अंग्रेज़ों के झूठ का पर्दाफाश कर रहा था, ‘‘गॉडफ्रे और रॉटरे द्वारा जारी ये प्रेस रिलीज़ नौसैनिकों को बदनाम करने के योजनाबद्ध षड्यन्त्र का एक भाग है। देश की राजनीतिक परिस्थिति और सामाजिक अस्थिरता का फ़ायदा लेकर हमें लूटपाट करने वाले लुटेरे और गुण्डेबदमाश साबित करने की यह साज़िश है। सरकार यह साबित करना चाहती है कि इस विद्रोह के पीछे सैनिकों का स्वार्थ है,  अहिंसा और सत्याग्रह तो उनके द्वारा पहना हुआ झूठा मुखौटा है।’’
‘‘हमने तोपें चलार्इं यह बिलकुल सच है।’’  रामलाल  ने  कहा,  मगर ऐसा क्यों किया?  पंजाब  की तोपें गरजीं - गोलाबारूद प्राप्त करने के लिए। हम रॉयल नेवी के उस जहाज़ को आसानी से डुबो सकते थे। मगर वह हमारा उद्देश्य ही नहीं था। डॉकयार्ड के जहाज़ों ने भी जो तोपें दागीं, वो इसलिए कि पीछे से वार करने को तैयार ब्रिटिश सैनिकों से कैसल बैरेक्स के सैनिकों को बचा सकें। हमारे पास लम्बी दूरी की और अधिक भेदक तोपें थीं,  मगर हमने जो तोपें इस्तेमाल कीं वे थीं छोटी तोपें। हमें इस बात की पूरी कल्पना थी कि यदि हमने अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल किया तो मुम्बई का परिसर तो नष्ट हो ही जाएगा, बल्कि बड़ी मात्रा में जान और माल की हानि भी होगी। इसका परिणाम शहरी जीवन पर पड़ेगा,   तनाव बढ़ेगा और असामाजिक तत्त्व इस स्थिति का गलत फ़ायदा उठाएँगे,’’   रामलाल ने स्पष्ट किया।
‘‘यह सब तो हम जानते हैं, मगर सामान्य जनता को इसका पता चलना चाहिए। हम सेंट्रल कमेटी से कहेंगे कि इन ख़बरों में दिए गए झूठ को दिखाने के लिए अखबारों में स्पष्टीकरण भेजें।’’   हरिचरण ने कहा।
‘‘हमने हथियार उठाए, अहिंसक संघर्ष को मिटा दिया, यह सच होने पर भी हमें इसका ज़रासा भी अफ़सोस नहीं है, क्योंकि कुछ देर और टिके रहने, मौत को आगे धकेलने का यही स्वाभिमानपूर्ण मार्ग हमारे सामने था। हमने जो कुछ किया वह सहज प्रवृत्ति से किया गया काम था... मौत को सामने देखकर की गई हरकत थी।’’   सैनिकों की कार्रवाई का समर्थन करने वाला तर्कसंगत विश्लेषण गुरु ने प्रस्तुत किया।
‘‘अब आगे सुनो,’’ मणी ने आगे पढ़ना शुरू किया:
कैसल बैरेक्स और डॉकयार्ड का वातावरण तनावपूर्ण था। बीचबीच में गोलियों के राउण्ड हो रहे थे। दोपहर दो बजकर पैंतीस मिनट पर सभी जहाजों पर गोलीबारी रोक दी गई है  यह दर्शाता हुआ सफ़ेद झण्डा फ़हराया गया और बाहर से पन्द्रह नौसैनिकों का एक झुण्ड एक मोटर लांच से अपोलो बन्दर पर उतरा और हाथों में पकड़ी संगीनों के ज़ोर पर उन्होंने खाद्य भण्डार और उपहार गृहों को लूटा,   इसके पश्चात् वे जहाज़ पर वापस लौट गए।’’
‘‘गॉडफ्रे की अक्ल पर रोना आता है, मगर साथ ही उसके झूठेपन पर चिढ़ भी आती है।’’  धरमवीर ने कहा।
‘‘जो कुछ हुआ उसे हज़ारों लोगों ने देखा है,  फिर भी यह झूठ! इसका मतलब ये कि गॉडफ्रे के पैरों के नीचे ज़मीन खिसक रही है। वह बौखला गया है।’’ हरिचरण ने कहा।
‘‘यह ख़बर मुम्बई के लोगों के लिए तो है ही नहीं। ख़बर है मुम्बई से बाहर के लोगों के लिए, जिन्होंने इन घटनाओं को देखा नहीं है उनके लिए। मुझे डर है कि कल को इतिहास लिखते समय इन सरकारी ख़बरों को आधार मानकर विकृत वर्णन किया जाएगा। इन ख़बरों के कारण भावी पीढ़ी की नज़रों में हम गुण्डेबदमाश,  लुटेरे,  हिंसक – ऐसे ही चित्रित होंगे।’’  मणी ने परिणाम को स्पष्ट किया।
‘‘इस ख़बर के ज़रिए अंग्रेज़ हमारी सेना की बदनामी ही कर रहे हैं। आज बॅलार्ड पियर से अपोलो बन्दर तक भूदल के सशस्त्र सैनिक तैनात किए गए जिनमें अनेक ब्रिटिश सैनिक थे। उसके पीछे दूसरी पंक्ति पुलिस की थी। हम ऐसा मान भी लें कि मोटर लांच में आए नौसैनिकों का हिन्दुस्तानी सैनिकों ने विरोध नहीं किया,   उन्हें आगे आने दिया। उस समय ब्रिटिश रेजिमेन्ट के सैनिक क्या कर रहे थे?  क्या ये बारहपन्द्रह बन्दूकधारी सैनिक उन पर भारी पड़ गए?  उन्हें वे पकड़ नहीं सके?   क्या इस पर कोई विश्वास करेगा?   इस सेना के पीछे खड़े पुलिस के  सिपाही क्या कर रहे थे?  बारहपन्द्रह सैनिकों को रोकने में यदि हज़ारों की संख्या में उपस्थित ब्रिटिश सैनिक असफ़ल रहे तो ब्रिटिश यह देश छोड़ दें, यही बेहतर होगा।’’  हरिचरण ने कहा।



हालाँकि दिन समाप्त हो गया था मगर रात बैरन बनकर सामने खड़ी थी। हर जहाज़ पर और नाविक तल पर  सैनिक इकट्ठे होकर चर्चा कर रहे थे। तलवार’,  कैसल बैरक्स और डॉकयार्ड के सामने के रास्ते पर टैंक्स घूम रहे थे। रास्ते से गुज़रते हुए टैंकों की आवाज़ सुनकर सैनिक कहते,  ‘‘लाने दो उन्हें टैंक्स, दागने दो तोपें। हम लड़ते-लड़ते जान दे देंगे मगर आत्मसमर्पण नहीं करेंगे!’’



लाललाल सूरज आसमान पर आया और सारे आकाश में खूनी लाल रंग बिखर गया। प्रकृति ने मानो उस दिन की भविष्यवाणी कर दी थी। वातावरण की उमस के कारण पक्षी भी चहचहाने से डर रहे थे। समूचे वातावरण में  तनाव था। रातभर के जागे हुए सैनिक खूनी आँखों से बाहर की परिस्थिति का जायज़ा ले रहे थे। कैसल बैरेक्स और फोर्ट बैरेक्स के सामने के रास्तों पर सैनिकों की संख्या बढ़ गई थी। अंग्रेज़ों ने यहाँ से हिन्दुस्तानी भूदल को हटाकर ब्रिटिश रेजिमेंट नियुक्त कर दी थी। डॉकयार्ड’, कैसल बैरेक्स और फोर्ट बैरेक्स के सामने एकएक टैंक खड़ा था। ज़रूरत पड़ने पर टैंक्स अन्दर घुसाने का निर्णय लिया था लॉकहर्ट ने। एक टैंक तलवार   के मेन गेट के सामने खड़ा था और चार टैंक्स बॅलार्ड पियर से अपोलो बन्दर के भाग में दहशत फ़ैलाते हुए गश्त लगा रहे थे।
सुबह के समाचारपत्रों में विभिन्न पक्षों द्वारा बन्द और हड़ताल से सम्बन्धित जारी किये गए आह्वान छपे थे। मगर राजकीय पक्षों के निवेदनों को लेशमात्र भी महत्त्व न देने वाले सरकार के चमचे अख़बारों ने सरदार पटेल के बन्द और हड़ताल विरोधी आह्वान को बड़ेबड़े अक्षरों में जैसे का तैसा छापा था।
मुम्बई के मज़दूर,  विद्यार्थी और सर्वसाधारण नागरिक साम्राज्य के विरोध में नौसैनिकों के पक्ष में रास्ते पर आ गए थे। मगर वे यह नहीं समझ पा रहे थे कि सैनिकों की सहायता के लिए आख़िर करें तो क्या करें। कुछ कल्पनाशील युवकों ने रातभर जागकर तैयार किए गए पोस्टर्स जल्दीजल्दी दीवारों पर चिपकाना शुरू कर दिया। काला घोड़ा और फाउंटेन तक का सारा परिसर
नौसैनिकों की माँगें मंज़ूर करो’;
 नौसैनिकों पर हुई अमानवीय गोलीबारी की हम निन्दा करते हैं’;
 नौसैनिकों,  आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं’;
 गोलीबारी रोको’;
 बातचीत के लिए - आगे आओ! इस तरह के रंगबिरंगे पोस्टर्स से सज गया था। जमा हुई भीड़ नारे लगा रही थी।
‘‘सोचा नहीं था कि सुबहसुबह ही इतनी भीड़ जमा हो जाएगी!’’  भीड़ में से किसी ने कहा।
‘‘क्यों,  तुम्हें ऐसा क्यों लगा?’’   दूसरे ने पूछा।
‘‘सुबह के अख़बार में छपी सरदार पटेल की अपील नहीं पढ़ी?’’   पहले ने पूछा।
‘‘हालाँकि अपील बन्द और हड़ताल के विरोध में थी,  फिर भी क्या जनता को सच मालूम नहीं है?  लोगों ने पटेल की अपील को कचरे के डिब्बे में डाल दिया है।’’  तीसरा बोला।
‘‘पटेल के आदेश की परवाह न करते हुए मुम्बई की जनता हज़ारों की तादाद में, जान की परवाह न करके रास्ते पर उतर आई है। शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि जनता ने सरदार जैसे वरिष्ठ नेता के आदेश की अवहेलना की हो।’’   दूसरे ने कहा।
‘‘मगर ऐसा क्यों हुआ?’’  पहले ने पूछा।
‘‘पटेल की अपील पढ़ी?  क्या उन्होंने ब्रिटिश सैनिकों द्वारा सैनिकों पर की गई फ़ायरिंग की ज़रासी भी निन्दा की है?  वे कहते हैं,  कांग्रेस नौसैनिकों की दीर्घकालीन न्यायोचित शिकायतें सुलझाने का हर सम्भव तरीके से शान्तिपूर्ण प्रयत्न कर रही थी ’; मतलब क्या कर रही थी, इस बारे में कुछ भी नहीं कह रहे हैं,” दूसरे ने स्पष्ट किया।
सरदार पटेल ने अहिंसक मार्ग पर जाने वाले नौसैनिकों को बिना शर्त आत्म समर्पण करने के लिए कहा, यह बात लोगों को अच्छी नहीं लगी। सरदार के आदेश को ठुकराकर नागरिकों द्वारा बंद और हड़ताल में शामिल होने का मतलब है कि जनता कांग्रेसी नेतृत्व को और 1944 के बाद कांग्रेस द्वारा अपनाई गई समझौते की नीति को अस्वीकार करती है।


 
सुबह से ही फ़ॉब हाउस में गॉडफ़्रे का फ़ोन लगातार बज रहा था। विभिन्न भागों में बंद और हड़ताल को रोकने की तैयारी की रिपोर्ट्स के बारे में उसे सूचित किया जा रहा था और हर घण्टे बाद इन रिपोर्ट्स को संकलित करके दिल्ली हेडक्वार्टर को भेजा जा रहा था।
“मैं पुलिस कमिश्नर बटलर बोल रहा हूँ, सर।“ मुम्बई के पुलिस कमिश्नर ने विशकरते हुए कहा।
“बोलिए, कैसे हालात हैं?” गॉडफ़्रे ने पूछा।
“हालात वैसे बहुत अच्छे नहीं हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार कम्युनिस्ट कार्यकर्ता कल रात भर मज़दूर-बस्तियों में सभाएँ कर रहे थे। मिल मज़दूरों की गेट-मीटिंग्ज़भी हुईं, परिणाम स्वरूप आज सुबह शहर की नौ कपड़ा मिलों को छोड़कर अन्य सभी कपड़ा मिलों के बंद होने की ख़बर है। इस समय जिन नौ मिलों में काम हो रहा है, वहाँ से भी मज़दूर कब बाहर निकल आएँगे इसका कोई भरोसा नहीं। BBCI और GIP रेल्वे के वर्कशॉप्स कुछ देर तक खुले थे, मगर घण्टे भर बाद वे भी बंद हो गए। शहर में कारख़ाने और दुकानें पूरी तरह बंद हैं और सभी कामकाज ठप हो गया है। यातायात कम हो गया है और लोग रास्तों पर इकट्ठा हो रहे हैं।”
यह रिपोर्ट लॉकहर्ट तक पहुँची और उसने गश्ती वाहनों की संख्या बढ़ा दी।


मुम्बई के लोग सुबह-सुबह ही सड़कों पर आ गए थे। नौसैनिकों की मदद करने के लिए और अपना समर्थन दर्शाने के लिए वे फ़ोर्टपरिसर में बड़ी संख्या में जमा हो गए थे। आज किनारे की परिस्थिति पूरी तरह बदल गई थी। किनारे पर आज हिंदुस्तानी सैनिक और पुलिस दिखाई नहीं दे रहे थे, उनका स्थान ब्रिटिश सैनिकों ने ले लिया था और इन सैनिकों ने संगीनों के ज़ोर पर नागरिकों को दूर रखा था।
फोर्ट परिसर में ब्रिटिश सैनिकों ने बेलगाम गोलियाँ बरसाना आरम्भ किया और प्रदर्शन करने वाली भीड़ बेकाबू होकर जो भी हाथ में पड़ता उस ब्रिटिश सैनिक को मारने लगती,  जो सामने पड़े उसी वाहन को आग लगा देती। बेकाबू भीड़ ने ग्यारह छोटीबड़ी गाड़ियाँ जला दीं। उस परिसर में घने काले धुएँ का एक परदा ही बन गया।



जहाज़ों के सैनिक आँखों पर दूरबीनें लगाकर किनारे पर क्या हो रहा है यह देख रहे थे। उन्होंने हज़ारों नागरिकों की भीड़ देखी,  उन पर हो रही गोलियों की बौछार देखी और वे बेचैन हो गए।
‘‘ये नि:शस्त्र नागरिक हमारी ख़ातिर गोलियाँ झेल रहे हैं और हम यहाँ बैठे सिर्फ तमाशा देख रहे हैं। चलो,  गन्स लोड करें।’’  सुजान ने सुझाव दिया ।
‘‘कुछ भी बकवास करके सैनिकों को मत भड़का। सेन्ट्रल कमेटी का आदेश याद है ना?  अगर तुम पर हमला हो तभी शस्त्र उठाना!’’  सलीम ने उसे समझाने की कोशिश की।
‘‘अरे, वे हमारी खातिर खून की होली खेल रहे हैं और हम चुप बैठे रहें?  मेरा दिल इस बात को नहीं मानता।’’  सुजान ने जवाब दिया।
‘‘हम किनारे पर चलते हैं, ’’  दयाल ने सुझाव दिया,  ‘‘और गोरे सैनिकों के हाथों से बन्दूकें छीनकर नागरिकों की मदद करेंगे।’’
दयाल का सुझाव सुजान सहित दसबारह लोगों ने मान लिया । किसी ने आगे जाकर मोटर बोट गैंगवे से लगा दी और सब बोट में बैठ गए। जहाज़ों पर नज़र रखने वाले ब्रिटिश सैनिकों की नज़र में यह बात आ गई और मोटर बोट उनकी परिधि में पहुँचते ही उन्होंने उस पर गोलियाँ बरसाना शुरू कर दिया।
बन्दूकों की गोलियों की उस दीवार को पार करके किनारे पर पहुँचना असम्भव था। अत: वे वापस लौट गए।
फ़िरोज़शाह रोड से गोरे सैनिकों से भरा हुआ एक ट्रक आ रहा था। गोरा ड्राइवर बेकाबू होकर ट्रक चला रहा था। रास्ते पर चल रहे लोगों की उसे परवाह ही नहीं थी। सामने से हाथों में तिरंगा लिये आ रहे तीसचालीस लोगों का एक झुण्ड उसने देखा तो तैश में आ गया। झुण्ड के एकदो लोगों से घिसटते हुए वह ट्रक निकल गया।  ‘‘ऐ गोरे बन्दर, रास्ता क्या तेरे बाप का है?’’  झुण्ड में से कोई चिल्लाया। ड्राइवर ने खिड़की से मुँह बाहर निकालकर दोचार गन्दीगन्दी गालियाँ  दीं ।
ड्राइवर की ट्रक से पकड़ छूट गई, फुटपाथ से गुज़रने वाले तीन लोगों को घायल करते हुए वह एक घर के कम्पाउंड से जा भिड़ा।
‘‘पकड़ो! मारो साले को!’’  झुण्ड में से कोई चिल्लाया और वे सभी दौड़कर ट्रक के पास गए और उन्होंने ड्राइवर को नीचे खींचा। ट्रक में खड़े सैनिक सतर्क होकर बाहर कूदें इससे पहले ही उन पर लातोंमुक्कों की बौछार होने लगी।    लोगों ने उनकी बन्दूकें छीन लीं। कुछ साहसी नौजवानों ने तो उस ट्रक को आग ही लगा दी।



‘‘भगवन्त,  देख भाई बाहर की चल रहा है, और हम यहाँ चुपचाप बैठे हैं,’’ प्यारे लाल बाहर हो रही गोलीबारी की आवाज़ सुनकर भगवन्त से बोला।
‘‘चलो जी, चलो, बाहर चलेंगे।’’ भगवन्त ने कहा।
‘‘बाहर कैसे जाएँगे जी?’’  प्यारे लाल ने पूछा।
‘‘दीवार लाँघ के।’’ भगवन्त ने जवाब दिया। और फिर सातआठ सैनिकों का एक झुण्ड सिविल ड्रेस में दीवार फाँदकर नागरिकों से मिल गया और उनके मोर्चे का नेतृत्व करने लगा।
दोपहर के दो बजे तक तलवार  और कैसेल बैरेक्ससे चालीस सैनिक बाहर निकल गए।



‘‘कांग्रेस और लीग के नेता यह सोचते हैं कि चर्चाओं और परिषदों से आज़ादी मिल जाएगी, इसीलिए वे नौसैनिकों का साथ देने के लिए तैयार नहीं हैं।’’  पच्चीस वर्ष का एक युवक गिरगाँव की एक चाल के आँगन में एकत्रित हुए जनसमुदाय से कह रहा था।
‘‘स्वतन्त्रता के प्रश्न पर एक राय कायम न करते हुए, एकदूसरे का गला दबाने के लिए तैयार नेताओं ने, आज़ादी की ख़ातिर अंग्रेज़ों का गिरेबान पकड़ने निकले जवान नौसैनिकों को बेवकूफ, जवान, बचकानी क्रान्ति करने वाले, अकल से ज़ीरो   कहा है। क्या हम इन सैनिकों का साथ नहीं देंगे? क्या आज़ादी के लिए लड़ने वाले इन सैनिकों को अकेला छोड़ दें? उसने एकत्रित समुदाय से पूछा और एक मुख से जवाब आया,  ‘‘नहीं,  वे अकेले नहीं हैं। हम उनके साथ हैं।’’ 
 ‘‘इन सैनिकों द्वारा पढ़ाया पाठ हम दोहराएँ और एक दिल से हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए लड़ें।’’  उसी नौजवान ने अपील की और नारे लगाए,   ‘‘भारत माता की जय! वन्दे मातरम्!’’
रास्ते से जा रहे ब्रिटिश सैनिकों ने नारे सुने और भागते हुए मैदान में आकर फ़ायरिंग शुरू कर दी। जो भाग सकते थे वे आड़ में छिप गए,  बाकी लोगों ने सीने पर गोलियाँ झेलीं। चिढ़े हुए सैनिकों ने छुपे हुए लोगों को खींचखींचकर बाहर निकाला और गोलियाँ दागीं। इनमें छहसात साल के बच्चे भी थे।
परेल की मजदूर चालों में कम्युनिस्ट कार्यकर्ता सभाएँ कर रहे थे, मजदूरों से अपील कर रहे थे, ‘‘नौसैनिक आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं, अपना खून बहा रहे हैं। नौसैनिकों से हाथ मिलाकर हम इस विदेशी सरकार को ऐसा धक्का दें कि वह टूटकर गिर जाए। अंग्रेज़ों को हिन्दुस्तान छोड़कर भागना पड़ेगा। याद रखो,  आज़ादी की कीमत है – आत्मबलिदान। हम यह कीमत चुकाएँगे और आज़ादी हासिल करेंगे।’’
सभाओं में आई हुई महिलाओं से वे कह रहे थे,  ‘‘तुम बहादुर औरतें हों। इतिहास को याद करो: महारानी लक्ष्मीबाई तुममें से ही एक थीं। रशिया की औरतों ने हिटलर के टैंक्स का सामना किया था। इण्डोचाइना की महिलाओं ने गोरे सिपाहियों को भगाभगाकर पस्त कर दिया था। चलो,  हम भी इन अंग्रेज़ों को सबक सिखाएँ।’’
मजदूरों का ज़बर्दस्त समर्थन मिल रहा था। मज़दूर जुलूस लेकर रास्ते पर आ रहे थे। जोश से दीवाने हो रहे मज़दूर नारे लगा रहे थे, ‘नाविकों का विद्रोह जिन्दाबाद! साम्राज्यवादमुर्दाबाद!   क्रान्ति - ज़िन्दाबाद!  जैसे ही गोरे सैनिक आते रास्ता सुनसान हो जाता। सैनिक यदि किसी का पीछा करने लगते तो पड़ोस के घर से उन पर पत्थरों की बौछार होती।
फौज का प्रतिकार करने के लिए रास्तों पर रुकावटें डाली गई थीं। अफ़वाहों का बाज़ार गर्म था। कोई कह रहा था कि गोदी में भयानक विस्फोट होने वाला है, ‘फोर्ट  परिसर में दो सौ लोग मर गए,  एक  हज़ार ज़ख्मी हो गए हैं...सभी सिर्फ ख़बरें ही थीं।
मज़दूर महिलाओं का एक मोर्चा तूफ़ान की तरह आगे बढ़ने लगा। नारे आकाश को छू रहे थे। तभी तेज़ी से आई फ़ौजी गाड़ी से गोरे सैनिकों ने गोलियाँ बरसाना आरम्भ कर दिया। औरतों में भगदड़ मच गई। एक डरावनी चीख सुनाई दी,  पाँचदस खिड़कियों के काँच फूट गए। कुछ औरतें झुण्ड बनाकर खड़ी हो गर्इं। कमल दोदे के सीने में और कुसुम रणदिवे की जंघा में गोली घुस गई थी। वहाँ खून का सैलाब देखकर कुछ औरतें खूब डर गईं। एक महिला ने कमल दोदे का सिर अपनी गोद में लिया,  वे अन्तिम हिचकियाँ लेने लगीं और के.ई. एम.  ले जाने से पहले ही उनकी जीवन ज्योति बुझ गई।




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